गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010

विमर्श की दुनिया हड़बड़ी नहीं पेशेंस की मांग करती है


आज भारत ने कोलकता में दक्षिण अफ़्रीका को रगड़ के हरा दिया और एक नंबर की किर्किटिया टीम का खिताब कब्जिया लिया। इसके अलावा भी बहुत कुछ हुआ होगा देश भर में लेकिन ऊ सब छोड़िये! आइये तनिक देर चिट्ठाबाजी किया जाये। त चलिये जरा टहला जाये चिट्ठालोक में।

हफ़्ता भर पहिले विनीत कुमार अपनी पोस्ट में लिखे थे-BUZZ लगाएगा फेसबुक और ट्विटर की बाट ! अब फ़ेसबुक और टिविटर के बारे में तो समाचार विश्वस्त सूत्रों से अभी तक आया नहीं है बकिया BUZZ ने विनीत कुमार की वाट जरूर लगा दी बजरिये मसिजीवी। हुआ ई कि विनीत बाबू ने अपने बजंदेशे में लिख मारा

3:55 pm vineet kumar - Buzz - Public -तमाम कोशिशों के बावजूद भी आखिर आ ही गया- सर्दी,खांसी और बुखार की चपेट में।..रियली,बहुत गंदा फील कर रहा हूं।
बस भैया शुरू हुई गयी चुहलबाजी। किसी ने समझाइस दी गर्म पानी के गरारे करने की किसी ने कुछ और तो मनीषा पाण्डेय ने सलाह दे डाली:
Manisha Pandey - अजीत जी ठीक कह रहे हैं। इलाज कुछ और ही है दोस्‍त। देखो कोई रूपसी हो आसपास।9:43 pm
बाकी की सलाहें आप मसिजीवी के कने ही देखिये! हम इस सबके पचड़े में बेफ़ालतू में ही पड़ गये।

हम तो आपको विनीत कुमार पोस्ट की जानकारी देने की सोचकर शुरू हुये थे। विनीत कुमार की पोस्ट जरुरी नहीं कि सबकी आखों में धीरुबाई अंबानी के सपने हो- पंकज पचौरी को हम कल से पढ़ने के ख्याल से अपने लैपटाप के स्क्रीन पर धरे बैठे थे। इस पोस्ट में विनीत ने अपने पसंदीदा वक्ता पंकज पचौरी के बहाने अंदाजे विमर्श पर अपना मत व्यक्त किया है। उनका मानना है और कहना भी है कि विमर्श सलीके से होना चाहिये वन लाइनर निष्कर्ष की तरह नहीं:

ये बात शिद्दत से महसूस करनी होगी कि विमर्श की एक अपनी रिवायत है और सुननेवाली ऑडिएंस जल्दीबाजी में निष्कर्ष निकालनेवाली नहीं होती। टेलीविजन से अलग उनकी बातों को गंभीरता से लेती है और गुनने का पूरा वक्त होता है। इसलिए उनकी कही गयी बातें बाइट की शक्ल में न आकर विचार की शक्ल में आए तो आगे शोध और अकादमिक जगत में भला हो सकेगा। विमर्श की दुनिया हड़बड़ी नहीं पेशेंस की मांग करती है। इन्हें वनलाइनर पॉपुलर फिलॉस्फर होने से बचना चाहिए।

साहिर लुधियानवी पर लिखी किताब का जिक्र करते हुये पंकज पचौरी की ने आज के युवा का जिक्र करते कहा कि आज का युवा एक झटके में सब कुछ पा लेना चाहता है
इनके सपने पूरी तरह कन्ज्यूमर कल्चर के इर्द-गिर्द जाकर सिमट गयी है। ये सपने 24 साल में किसी कंपनी के सीइओ बनने की है,नई से नई मोबाइल और मोटरसाइकिल खरीदने की है। इनके सपनों में समाज और देश अगर कहीं शामिल है तो बस इतना भर कि टीशर्ट पर तिरंगे का स्टीगर लगाकर आइपीएल देखने चला जाए। इनके रोल मॉडल शाहरुख खान हैं जिनसे अच्छी डिप्लोमेसी सीखी जा सकती है। इनके ख्वाब जल्दी से जल्दी सबकुछ पा लेने की है और ये सबकुछ भी परिभाषित है।
बस यही वह प्रस्थान बिन्दु रहा जहां विनीत पंकज पचौरी की बात से इत्तफ़ाक नहीं रखते। उनकी निगाह में केवल येन-केन-प्रकारण झटके से सफ़लता हासिल करने की आकांक्षा रखने वाला युवा ही नहीं है। उनकी नजर में वह युवा भी हैं जहां तक पंकज पचौरी की निगाह नहीं गयी उस विमर्श के दौरान। यह युवा वह युवा है जो:
इन्हीं युवाओं में से एक हिस्सा ऐसा है जो बाबूजी की पैबंद लगी लुंगी को परे हटाकर चांद मार्का लुंगी पहनाता है। माई की गिरवी/रेहन पर के जेवरों को गुड़गांव और नोएड़ा में ओवरटाइम करके छुड़ाता है। औने-पौने दाम पर बिकी खेत को खरीदने की जद्दोजहद करता है। इस 35 करोड़ का एक बड़ा हिस्सा है जो अपने से ठीक पहलीवाली पीढ़ी के कर्जे और दमित इच्छाओं को पाटने और पूरी करने में लगा है। चार दोस्त मिलकर अपने-अपने बटुए झाड़कर इस साहिर लुधियानवी की किताब को दिल्ली बुकफेयर में खरीदनेवाले इसी जमात के टुकड़े हैं।
युवाओं के बारे में पंकज पचौरी से पर अलग अंदाज में सोचते हुये ही विनीत उन पर झल्लबयानी करते हैं:
अगर साहिर की व्याख्या,विश्लेषण और उनकी प्रासंगिकता को महज पिछले दस दिनों की घटनाओं और आनेवाले 15 दिनों( बजट) की घटनाओं तक जाकर बंध जाती है तो फिर इनके 25 साल पहले पढ़े गए साहिर के अनुभव और अंतराल की समझ को कहां से जानें। यकीन मानिए,हम तब बेचैन हो उठे कि वो हमें इस अंतराल की समझ को साझा करें। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
इसके अलावा विनीत ने और भी किताबों के विमोचन के किस्से बयान किये लेकिन उनको आप उनकी ही पोस्ट पर देखें।

सब कुछ समेटने की ललक के चलते शायद पोस्ट काफ़ी लम्बी हो गयी। विनीत को अपने बेहतरीन लेखन की लम्बाई और प्रस्तुतिकरण के हिसाब से किस्तों में विचार रखने पर विचार करना चाहिये। शायद पूरी पोस्ट को दो-तीन किस्तों पोस्ट करते तो बेहतर रहता।

प्रमोद जी गये थे गोरखपुर फ़िल्म समारोह में। उन्होंने उसके किस्से क्या बयान किये लोग वाह-वाह करने लगे। रवीश कुमार ने लिखा:
मैं बिल्कुल ऐसे ही लिखना चाहता हूं। जैसे आप लिखते हैं।
लवली कुमारी ने तो सवाल पूछ लिया:
कैसे लिख लेते हैं इतना सब कुछ ....आपको सलाम.
पोडकास्ट कमाल का है.
और भी लोगों ने तमाम सवाल किये हैं। लेकिन प्रमोदजी ने अपनी इस पोस्ट में सिनेमा का कोई पहलू नहीं बयान किया है। वो तो छोटे शहर बनाम बड़े शहर का मुकदमा सा लड़ा रहे हैं और कह रहे हैं:

छोटे शहरों के चाय-ठेलेवाले की आत्‍मीयता और रिक्‍शेवाले की हुज्‍जत अपने अपनापों के व्‍यभिचार में उसे आश्‍वस्‍त करती है. मुझे आश्‍वस्‍त करने के लिए मिठाई की दुकानें और अशोक चौधरी की विश्‍वविद्यालय के दिनों की पुरानी औधड़ यारी थी, मगर चूंकि यार से सन् 86 के बाद अब पच्‍चीस वर्षों के लम्बे फ़ासले पर 2010 में मिल रहा था, और बखूबी जानता था कि उसके औधड़ई के धुओं में उतर रहा था, ज़ाहिरन अलबलाया, घबराया हुआ भी था.
लगे हाथ सतीश पंचम की बम्बईया धूप कहानी भी सुन लीजिये-
लेकिन ई बम्मई ....धूप सिंकोड कर खिडकियों से पीस दर पीस काट कर मिलती है धूप.....


मुक्ति ने समाज में व्याप्त लैंगिक विभेद के बारे में अपनी बात कहते हुये लिखा:
धीरे-धीरे पता चला कि मैं अपने भाई जैसी नहीं हूँ, मैं उससे अलग कोई और ही "जीव" हूँ, जिसे जब चाहे छेड़ा जा सकता है, जैसे चिड़ियाघर में बन्द जानवरों को कुछ कुत्सित मानसिकता वाले लोग छेड़ते हैं. जब भी मेरे साथ ऐसी कोई घटना होती मुझे लगता कि मेरे अन्दर ही कोई कमी है ,मेरे शरीर में कुछ ऐसा है जो लोगों को आकर्षित करता है .ऐसी बातें सोचकर मैं अपने शरीर को लेकर हीनभावना का शिकार हो गयी. मैं अपनी लम्बाई के कारण उम्र से बड़ी दिखने लगी थी, इसलिये मैं झुककर चलने लगी. मैं अपने उन अंगों को छिपाने लगी जो मुझे मेरे लड़की होने का एहसास कराते थे. इस तरह एक लड़की जो बचपन में तेज-तर्रार और हँसमुख थी ,एक गंभीर, चुप ,डरी-डरी सी लड़की बन गयी.
उनका सवाल है:
इस अप्रिय परिस्थिति का ज़िम्मेदार कौन है- मेरे परिवार वाले, हर लड़की के परिवार वाले या समाज........और... इसका जवाब कौन देगा या किसे देना चाहिये... क्या आप जवाब देंगे... ???
मुक्ति के सवाल पर अपनी प्रतिक्रिया रेखा श्रीवास्तव जी ने दी है।देखिये।

.. यह सम्बन्ध भगवान ने सोच समझ कर तोड़ा है ? - एक सिपाही की गोली बिंधी डायरी.. यह एक सिपाही का अपनी प्यारी पत्नी के नाम लिखा अंतिम पत्र है। मार्मिक ,भावुक और अब स्तब्ध कर देने वाला।

अदाजी के ब्लॉग मुक्तक की अदा ही कुछ और है पढ़ने के साथ-साथ उनकी ही आवाज में सुनिये तो सही:

ब्लाग दुआरे सकारे गई उहाँ पोस्ट देखि के ही मन हुलसे
अवलोकहूँ कभी सोंचू हूँ कि अब कौन सा पोस्ट पढूँ झट से
घूंघरारी लटें सम दिसें ग़ज़ल कविता भी लगी है झूलन सी
कहीं नज़्म दिखे कुछ मुक्तक दिखे कई पोस्ट पे सुन्दर कपोलन सी
परदन्त की पंगति कथ्य दिखे धड़ाधड़ पल्लव खोलन सी
चपला सम कछु संस्मरण लगे जैसे मोतीन माल अनमोलन सी
कभी गीत दिखे संगीत दिखे कभी हास्य कभी खटरागन भी
कभी राग दिखे, अनुराग दिखे, कभी आग लगावन बुझावन भी
कभी व्याध लगे, कभी स्वाद लगे, ई अगाध सुधा सुहावन भी
कभी मीत मिला, कभी जीत मिली, कभी खोवन है कभी पावन भी
धाई आओ सखी अब छको जरा कुछ ईद पे कुछ फगुनावन पर
न्योछावरी प्राण करे है 'अदा' बलि जाऊं लला इन ब्लागन पर


एक लाईना



  1. ब्लाग दुआरे सकारे गई उहाँ पोस्ट देखि के ही मन हुलसे : जिन देखि लई उन तारीफ़ करी और निज प्रान बचाई के फ़ौरन खिसके

  2. एक पुरानी दिलनहायी यारी की सोहबत में.. :टेप करने को खर्राटे ही मिले?

  3. सहेजने का महत्व: विल्स कार्ड भाग ९ : सौ कार्ड से सिर्फ़ इक्क्यानबे कार्ड की दूरी बची!

  4. भक्तजनों आज का प्रसंग है राम -रावण युद्ध -प्रवचन :पाणिग्रहण प्रसंग की बात छोड़िये जी!

  5. अद्भुत हो सकता है यह दृश्य , मुम्बई से बाहर रहने वालों के लिये :भाई लोगों की चले तो वे इस दृश्य को मुम्बई में रहने वालों के लिये भी अद्भुत बना दें।

  6. रिक्त स्थानों की पूर्ति करो : रिक्त टिप्पणियों से !

  7. कौन अधिक सुखी ---आदि मानव या आधुनिक मानव ? :जिसने यह सवाल देखा ही नहीं!

  8. क्या एक ट्रिगर ही काफी है मौत के लिए ? :हां बशर्ते सब एक दूजे के लिये बनें हों!

  9. स्ट्रीट चिल्ड्रेन देश की जीडीपी बढ़ाते हैं :जीडीपी बोले तो ज्ञानदत्त पाण्डेय!

  10. जोधपुर ब्लोगर मिलन - समापन किश्त : किसका समापन जोधपुर का ,ब्लॉगर का कि मिलन का?

  11. कहीं सर्दी कहीं वसंत :अलग तो रखना ही पड़ेगा भाई दोनों के मामले अलग-अलग हैं!

  12. मेरे पंख कट गये हैं वरना मैं गगन को गाता : चर्चा में अटक गये हैं वर्ना एक पोस्ट और झेलाता

  13. वे सीलोन के दिन, उर्दू सर्विस की रातें...... :सबको बैठकर शाम को हिन्दी में लिखना पड़ा!

  14. माफ करना टिप्‍पणी नहीं कर पाएंगे : नंबर मोबाइल का थमा के चले जायेंगे!

  15. मैं तुम्हारे प्रेम में स्वार्थी हो कहती हूं :तुम विदा लो!

  16. अंडमान में आम की बहार :निकोबार से कोई खबर नहीं आई है अभी तक!

  17. विमर्श की दुनिया हड़बड़ी नहीं पेशेंस की मांग करती है :और मांगे आजकल आसानी से पूरी नहीं होतीं!


मेरी पसंद



वह गायों और मनुष्यों के घर लौटने का वक़्त था
बहुत ज़्यादा फ़र्क नहीं था
उस भीड़ और घर लौटते पशुओं के रेवड़ में
कामकाजी माँओं को चिंता थी बच्चों की
पिता एक दिन गुज़र जाने के सुख से लबालब थे
और बच्चों के लौटने का वक़्त नहीं हुआ था
फिर भी सब घर पहुँचकर सुरक्षित हो जाना चाहते थे
अपनी छोटी छोटी दुनियाओं में

ऐसे में तुम सवार हुई लोकल ट्रेन में
एक हाथ में कॉफी का मग
और दूसरे हाथ में सैंडविच लिये
अपनी पेंसिल हील सैंडिल की धुरी पर
घूमती हुई पृथ्वी सा संतुलन सम्भाले

अद्भुत हो सकता है यह दृश्य
मुम्बई से बाहर रहने वालों के लिये
वे और अचरज से भर जायेंगे
जब वे देखेंगे तुम्हे
अलग अलग हाथों में
कमल , कलश , धन का पात्र लिये लक्ष्मी की तरह
पर्स ,अखबार ,छत्री, कैरीबैग और भाजी का झोला लिये ।

शरद कोकास

और अंत में


फ़िलहाल इतना ही। बकिया कल गुरुकुल घराने की चर्चा की आशा है। तब तक मौज कर लीजिये। क्या हर्ज है। अच्छा ये तस्वीर देखिये खुशदीप के ब्लॉग से ली है!

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11 टिप्‍पणियां:

  1. कल केवल एक लाइना से जी नही भरा था, आज विस्तृत चर्चा पढ के मज़ा आ गया. बहुत बढिया लिंक दिये हैं आपने. कुछ देख लिये, बाकी कल के लिये....

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  2. पकंज पचौरी जी और भाई विनीत की शास्त्रार्थ रूपी चर्चा पढ़ मज़ा आ गया...बाकी अनूप चर्चा में भी आनंद ही
    आनंद...

    जय हिंद...

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  3. देखिये, फिर मैं यही कहूँगी कि सबसे अच्छी मुझे आपकी पसंद लगी, तो ये मत कहियेगा कि मेरे पास कोई और टिप्पणी ही नहीं है. वैसे अदा जी की कविता भी बहुत मज़ेदार है. चर्चा अच्छी लगी...

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  4. सार्थक शब्दों के साथ अच्छी चर्चा, अभिनंदन।

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  5. हम आय गईं हैं ब्लाग दुवारे औ देख रहीं हैं पोस्ट मन से
    आउर चर्चा भई है ताक धिना धिन प्राण बचाई के हम खिसके...:):)
    आभार ..!!

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  6. इस बार की मेरी पसन्द बहुत पसन्द आई.बधाई आपके साथ शरद कोकास जी को भी.

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  7. वाह वाह वाह ई त बहुत ही जबरदस्त चर्चा कड डारे अनूप जी। एकदम फुरसत मा रहे का ? अ‍ऊर हमका लोग धमकाय दिहिन ऊ पोस्ट देखे नहीं का आप ? हा हा । अरे उहई दंगाई वाली।
    मज़ा आय गवा।

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  8. http://hariprasadsharma.blogspot.com/2010/02/jodhapur-blogar-milan-samaapan-kisht.html


    # जोधपुर ब्लोगर मिलन - समापन किश्त : किसका समापन जोधपुर का ,ब्लॉगर का कि मिलन का?
    kaa link sahii kar dae abdii hi rohack report haen

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  9. चर्चा में आज का, बच्चे का चि़त्र वाह...मन बहुत प्रसन्न हुआ :) धन्यवाद.

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