tag:blogger.com,1999:blog-16767459.post6184216299648076080..comments2023-09-21T18:12:30.204+05:30Comments on चिट्ठा चर्चा: स्त्री देह का रहस्य एक सोशल कंस्ट्रक्ट हैdebashishhttp://www.blogger.com/profile/05581506338446555105noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-4674955829686094892009-05-18T03:16:00.000+05:302009-05-18T03:16:00.000+05:30काफी समय लगा ये सोचने में कि क्या लेखक ने इसे एक अ...काफी समय लगा ये सोचने में कि क्या लेखक ने इसे एक अलग सोच देने की कोशिश की है या फिर सुजाता जी ने इसे एक नया अंदाज दिया है। हां पर हर वस्तु को देह से जोड़ने के पक्ष में मैं नहीं हूं।Nitish Rajhttps://www.blogger.com/profile/05813641673802167463noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-74991458726620963452009-05-16T11:39:00.000+05:302009-05-16T11:39:00.000+05:30रविन्द्र व्यास जी का लेखन मुझे प्रभावित करता है .....रविन्द्र व्यास जी का लेखन मुझे प्रभावित करता है ...अक्सर ....उनकी कलात्मकता ..सृजनता ..निसंदेह बेजोड़ है .....पर <br />आज उनका जब ये लेख पढ़ा तो मुझे पता नहीं क्यों एक दो जगह असहजता हुई ........मन को टटोला ....क्या लेखक के इस प्रतीकात्मक विम्ब को समझ नहीं पा रहा हूँ .. ....पकड़ नहीं पा रहा हूँ....दोबारा पढ़के शायद प्रतिक्रिया ओर स्पष्ट दे पायूँ ....सोचा शायद आज सुबह तक शायद लेखक की डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-85173557636203083332009-05-15T21:21:00.000+05:302009-05-15T21:21:00.000+05:30चिंतनीय चर्चा । आभार ।चिंतनीय चर्चा । आभार ।Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-15460591318958430212009-05-15T20:24:00.000+05:302009-05-15T20:24:00.000+05:30नोट पेड जी आप को मानसिक परिपक्वता बढानी होगी । हिन...नोट पेड जी आप को मानसिक परिपक्वता बढानी होगी । हिन्दी ब्लोगिंग मे देह से ऊपर कुछ नहीं हैं उसी मे सब तैर रहे हैं , कुछ डूब गये कुछ उतरा रहे हैं । और सलाह माने हिन्दी ब्लोगिंग को समझना हो तो इंग्लिश के " महान साहित्यकार " जैसे barbara cartland और Uk के बडे publisher " mills and boon " के दस बीस नोवेल पढ़ ले । बहुत सी कलात्मक हिन्दी पोस्ट वही से बिना आभार आती हैं ।Rachna Singhhttps://www.blogger.com/profile/15393385409836430390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-170641076040633452009-05-15T19:56:00.000+05:302009-05-15T19:56:00.000+05:30पुरुष प्रधान समाज में इस तरह के लेख आएँगें. मन का...पुरुष प्रधान समाज में इस तरह के लेख आएँगें. मन का सारा सहेजा हुआ संयम कभी कभी बिखर भी जाता है और पुरुष व्यक्ति न रह कर रह जाता है सिर्फ पुरुष. सम्भवत: नारी प्रधान समाज होता तो कोई नारी ऐसा ही पुरुष के बारे में भी लिखती.<br /><br />एकदम बराबरी या संतुलन एक आदर्श स्थिति है जिसे कभी पूर्णत: नहीं हासिल किया जा सकता. लेकिन सभ्यता की कसौटी इसमें है कि अंतर और उससे जनित शोषण को कम और कमतर किया जाय. जो गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-89093222492465291712009-05-15T19:42:00.000+05:302009-05-15T19:42:00.000+05:30अभी चुनावी ड्यूटी की जल्दी में हूँ। यह पोस्ट विशेष...अभी चुनावी ड्यूटी की जल्दी में हूँ। यह पोस्ट विशेष चिन्तन की माँग करती है। शायद दुबारा लौटूँ। <br /><br />सुजाता जी को इस विचारपरक चर्चा की बधाई।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/15057775263127708035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-4191991652657359392009-05-15T19:08:00.000+05:302009-05-15T19:08:00.000+05:30डॉ अमर कुमार , विजय गौर जी का धन्यवाद ।
यूँ मै रस्...डॉ अमर कुमार , विजय गौर जी का धन्यवाद ।<br />यूँ मै रस्म अदायगी के लिए एक लाइना नही लाना चाहती थी,यह गलती तो हो ही गयी समयाभाव से, क्षमा कीजिएगा! <br /><br />अरविन्द मिश्रा जी ,<br />नज़रिए की बात बहुत महत्वपूर्ण है।एक व्यक्ति के बारे मे यह नज़रिए का फर्क बहुत स्वाभाविक है।लेकिन यह नज़रिया जब दो जातियों , समुदायों के बीच पूर्वग्रग्रस्त हो तो मुश्किल है।सुजाता के बारे मे कहना अच्छा या बुरा - यह सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/12373406106529122059noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-9589823336576859722009-05-15T18:49:00.000+05:302009-05-15T18:49:00.000+05:30अपना अपना नजरिया ,मुझे तो वह लेख सृजनात्मक लेखन का...अपना अपना नजरिया ,मुझे तो वह लेख सृजनात्मक लेखन का अनूठा उदाहरण लगा ! सहमति /असहमति एक दीगर मुद्दा है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-42066118483686389692009-05-15T18:43:00.000+05:302009-05-15T18:43:00.000+05:30ब्लाग चर्चा का यह रूप पसंद आया। विस्तार से किसी एक...ब्लाग चर्चा का यह रूप पसंद आया। विस्तार से किसी एक पोस्ट पर बात हो, सिर्फ़ जिक्र करने भर वाले अंदाज से पाठक तो जुटाए जा सकते हैं, पर पाठक को उससे कुछ खास मद्द नहीं मिलती- कहें तो एग्रीगेटर का ही दूसरा रूप हो जाती है वे चर्चाएं। पर इस तरह से किसी एक पोस्ट के बारे में सहमति और असहमति के साथ की गई बातचीत पाठक को उस अमुक पोस्ट को पढने के लिए प्रेरित करती है। हालांकि कुछ अन्य पोस्टों का एक लाईना जिक्र विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-28199794597891886242009-05-15T17:34:00.000+05:302009-05-15T17:34:00.000+05:30कई प्रश्नों को पिरोये हुये है, यह चर्चा ।
बढ़िया है...<I>कई प्रश्नों को पिरोये हुये है, यह चर्चा ।<br />बढ़िया है, बहुत बढ़िया है... पर,<br />लगता है कि, आप केवल परेशान दिखने के लिये ही परेशान हैं ।<br />विचलित होने का कोई कारण तो नहीं !<br />जो भी चीज अपर्याप्य, दुर्लभ और वर्जनाओं से ढक दी जाती है,<br />वह अनायास ही रहस्य के घेरे में बँध जाती है ।<br />रही बात नारी देह या मन के किताब से तुलना किये जाने की..<br />तो, हर स्त्री या पुरुष अपने आपमें एक डा० अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.com