tag:blogger.com,1999:blog-16767459.post6925596409071372228..comments2023-09-21T18:12:30.204+05:30Comments on चिट्ठा चर्चा: बिछड़ना है दिलासा दे रहे हैं / हम इक दूजे को धोखा दे रहे हैंdebashishhttp://www.blogger.com/profile/05581506338446555105noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-57919463382758396132009-03-17T08:45:00.000+05:302009-03-17T08:45:00.000+05:30विद्वतापूर्ण !विद्वतापूर्ण !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-38642282942050680792009-03-16T22:55:00.000+05:302009-03-16T22:55:00.000+05:30वर्ण-व्यवस्था के व्यक्ति-विरोधी पाठ का अर्थ समझने ...वर्ण-व्यवस्था के व्यक्ति-विरोधी पाठ का अर्थ <BR/>समझने के साथ ही उसके <BR/>सामाजिक पुनर्पाठ की आवश्यकता तथा <BR/>संभावना को उकेरता आमुख <BR/>बार-बार पठनीय और मननीय है. <BR/>चर्चा मंच के इस सटीक उपयोग के लिए धन्यवाद!<BR/><BR/><BR/>होली/रंगपंचमी भारतीय पर्वों की सामूहिकता का सबसे बड़ा प्रमाण है. <BR/>नवजात शिशुओं को खोजने की प्रथा भी सामाजिक अभिप्राय से परे नहीं है.<BR/><BR/><BR/>रघुवंश के अंश RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09837959338958992329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-32640315597832535752009-03-16T20:17:00.000+05:302009-03-16T20:17:00.000+05:30वाह वाह! क्या बात है कविता जी! जिस तरह विभिन्न रंग...वाह वाह! क्या बात है कविता जी! जिस तरह विभिन्न रंगों के संगम से होली रंगमय हो जाती है उसी तरह आज की चर्चा में आपने काफी विविधता लिये हुए घटकों को एकत्रित करके रंगबिरंगी आभा फैला दी है. <BR/><BR/>बहुत सुंदर !!<BR/><BR/>संगणक की सुरक्षा के लिये मेरा सुझाव है कि हर व्यक्ति को अपने संगणक पर "जोन एलार्म" (Zone Alarm) नामक तंत्रांश स्थापित कर लेना चाहिये. इसका मुफ्त संस्करण काफी सशक्त है एवं इसे सही Shastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-87806873697202358862009-03-16T17:58:00.000+05:302009-03-16T17:58:00.000+05:30"किसी ने वाल्मीकि द्वारा क्रौंच पक्षी के वध को पहल..."किसी ने वाल्मीकि द्वारा क्रौंच पक्षी के वध को पहली कविता का प्रस्थान बिन्दु "<BR/><BR/>चर्चा में मेरी इस पंक्ति को " किसी ने वाल्मीकि द्वारा क्रौंच पक्षी के वध को सरापना पहली कविता का प्रस्थान बिन्दु" <BR/><BR/>के रूप में पढ़ें।Kavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-79521327965374511952009-03-16T17:47:00.000+05:302009-03-16T17:47:00.000+05:30चर्चा निश्चय ही आपकी ख्याति के अनुरूप है । चर्चा क...चर्चा निश्चय ही आपकी ख्याति के अनुरूप है । चर्चा के बहुमूल्य लिंक यह तो स्पष्ट करते ही हैं कि इस अन्तर्जाल का काफी रचनात्मक उपयोग आप करती हैं और करने को प्रेरित भी करती हैं । <BR/> धन्यवाद इस चर्चा के लिये ।Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-81515467218126865352009-03-16T16:54:00.000+05:302009-03-16T16:54:00.000+05:30vaakayi bahut mehnat ki gayi haivaakayi bahut mehnat ki gayi haiअनिल कान्तhttps://www.blogger.com/profile/12193317881098358725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-34934472122464825692009-03-16T14:39:00.000+05:302009-03-16T14:39:00.000+05:30आज टिप्पणी नहीं सिर्फ धन्यवाद.इससे सार्थक उपयोग हो...आज टिप्पणी नहीं सिर्फ धन्यवाद.इससे सार्थक उपयोग हो ही नहीं सकता इस मंच का.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-25057244087944677692009-03-16T13:33:00.000+05:302009-03-16T13:33:00.000+05:30ऐसी चर्चाओं से ‘चिट्ठाचर्चा’ की सार्थकता को चार चा...ऐसी चर्चाओं से ‘चिट्ठाचर्चा’ की सार्थकता को चार चांद लेगेंगे ही। हां, जब कोई संजीदगी से इस अभियान को लेगा, तो गरिष्ठ तो लगेगी ही, क्योंकि इसमें कवि के वियोगी मन की बात है न कि किसी व्यंग्यकार के हास्य-व्यंग्य की स्माइली। <BR/>ब्लागिंग करते समय यह भी ध्यान रहे कि वह इसलिए भी शुद्ध और संजीदा रहे क्योंकि इसे भावी पीढी भी कोट करेगी एक रेफरेंस की तरह।[ हास्य-व्यंग्य की विधा तो अलग बात है] इस संजीदगी चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-68952532324532495982009-03-16T12:38:00.000+05:302009-03-16T12:38:00.000+05:30चर्चा को चरचा से वापस पुनः चर्चा की ही ओर मोड़ने के...<I><BR/>चर्चा को चरचा से वापस पुनः चर्चा की ही ओर मोड़ने के लिये धन्यवाद, कविता जी..<BR/>पर आपने एक गड़बड़ कर दी..<BR/>रघुवंश-काव्यम का लिंक देख टिप्पणी को आगे बढ़ाने का धैर्य जाता रहा है ।<BR/>कहाँ से खोज खोज कर लाती हैं, यह उपयोगी ज़ानकारियाँ..<BR/>आप शायद नेट पर ही सोती भी होंगी,<BR/>मुझे तो यहाँ बिनप्रयास नये आयाम हासिल हो जाते हैं..<BR/>सो आपका आभार.. ऎसे ही लिखती रहें !<BR/>हा हा हा.. एक्ठो डा. अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/12658655094359638147noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-23657826875820111062009-03-16T10:01:00.000+05:302009-03-16T10:01:00.000+05:30बहुत मेहनत से की गई एक विस्तृत चर्चा पढ़ कर बहुत अच...बहुत मेहनत से की गई एक विस्तृत चर्चा पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. बहुत बहुत बधाई कविता जी इस चर्चा के लिए.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-19765356103101222482009-03-16T09:34:00.000+05:302009-03-16T09:34:00.000+05:30'कविता जी आप की चर्चा पढकर आपके श्रम का अनुमान लगा...'कविता जी आप की चर्चा पढकर आपके श्रम का अनुमान लगा रही हूँ - बाबारे !! कल अनूप भाई ने भी बहुत सँयत चर्चा करके सिध्ध कर दिया वरिष्ठ ब्लोगर कितनी श्रमसाध्य कर्म को कितनी खूबी से करते हैँ और आज आप ने भी वही किया है आभार <BR/> - लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-68887885505054897272009-03-16T07:59:00.000+05:302009-03-16T07:59:00.000+05:30सबसे पहले तो शुरुआत में लगा फ़ोटॊ बहुत सुन्दर लगा। ...सबसे पहले तो शुरुआत में लगा फ़ोटॊ बहुत सुन्दर लगा। अभिलेखागार में गिरिराज जोशी द्वारा की गयी चर्चा फ़िर से पढ़ना अच्छा लगा। गिरिराज बहुत सक्रिय कवि/ब्लागर और चर्चाकार रहे। आजकल न जाने किधर हैं! रेणू शर्माजी का लिंक देने के लिये शुक्रिया। बड़ी मेहनत से चर्चा की आपने। आज के दिन चर्चा देखने वाले औसत से अधिक होते हैं। यह आपकी चर्चा के कारण हैं। लेकिन द्विवेदी जी हालमोला मांग रहे हैं! :)अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-16767459.post-90211891524591245702009-03-16T07:28:00.000+05:302009-03-16T07:28:00.000+05:30कल अनूप जी की चर्चा और आज आप की। दोनों एक दूसरे से...कल अनूप जी की चर्चा और आज आप की। दोनों एक दूसरे से बेहतरीन रहीं। आप की चर्चा सदैव गरिष्ट गंभीर रहती है, आज भी है। इसे सहज बनाइए न! सुपाच्य?दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com