शुक्रवार, अक्टूबर 06, 2006

इसे कहते हैं पत्रकारिता

मच्छरमार की खबर, लगता है कि कविता अभी जिंदा है। पर देखना यह है कि नोस्टालजिया की नदी सूखने के बाद कविता रस कहाँ से निकलेगा?
ढ़ूंढ़ता हूं रात को अब धूप का छोटा सा टुकड़ा
रंग चाहे श्वेत हो या रंग हो उसका सुनहरा
बस मेरे छज्जे पर आकर
ताप इतना छोड़ जाये
धूप बिन माँ का अचार,
बार अगली सड़ ना पाये।


अगर कविता पढ़ के देश उड़ जाने का मन हो यह जरूर जान लें कि आपको वहाँ ले जाने वाला वायुयान बनता कैसे है? बिहारी बाबू ने कट्टरपँथ की अच्छी धुलाई की है। याद आता है कि ओशो का कहा जिसमें उन्होने स्वामी दयानँद के शिव प्रतिमा पर बैठै चूहे द्वारा प्रसाद खाते देखने पर साकार बर्ह्म से नाता तोड़ने की खिल्ली उड़ाई है। ओशो कहते हैं कि दयानँद जी पत्थर की मूरत में भगवान को न पाकर क्षुब्ध हो गये पर मूषक में उन्हें बर्ह्म क्यों न दिखा? अब इन मूढ़ कट्टरपंथियो को कौन समझायें कि ठेस उनकें अहं को लगती है ऊपरवाले को नही।

ब्लागिंग करने से होने वाले नुकसानो ओर परेशानियों के बारे में बहुत सुना था पर अगर आपको हर मनमानी की छूट दे दी जाये तो क्या कहेंगे? अब सारे चिठ्ठाकारों का कर्तव्य है कि अनुराग भईया के गृहमंत्रालय तक संदेशा पहुँचाये कि हम सब ब्लागर नूर मँजिल से भागे आईटम नही है।

कथा-पात्र की मँशा तो ऊँची है!
काश कि मैं अपना कथाकार
खुद होता,
और तब शायद बदल पाता
अपनी कहानी-
जो बेकार नहीं होती|

राकेश जी को पढ़ कर अनूप भार्गव जी की कविता "कविता क्या है?" याद आ गई।
अलंकार ने उपमाओं के साथ नित्य ही भेजी पाती
मैने भी भेजे संदेसे, कविता किन्तु नहीं आ पाती

यह मेरी व्यक्तिगत राय है इसे चिठ्ठा चर्चा मँडली से जोड़कर न देखा जाये
नीरज दीवान को पढ़कर सिर्फ एक बात कहना चाहूँगा, इसे कहते हैं मीडिया की और दोगले नेताओं की पोल खोलने का हुनर। इसे कहते हैं पत्रकारिता और इसमे जरूरत होती है जिगर की। पिछले दिनों एक मीडिया ब्लाग से आदर्श प्रतिमानों की स्थापना की खातिर मैं भिड़ रहा था, उससे जबरिया उम्मीद कर रहा था कि वह ऐसा क्यो नही लिखता वैसा क्यो नही लिखता। अब उस बेचारे ब्लाग की स्थापना का उद्देश्य जो भी रहा हो मेरे दिमाग में बना एब्सट्रैक्ट आदर्श उस ब्लाग का उद्देश्य नही था। आज नीरज दीवान को पढ़कर लगा, यार यह है मीडिया ब्लाग। जो अधकचरी अँग्रेजी पोंकने वाले एँकर नही पूछ पाते चैनल पर, उन्हें नीरज ने खुलेआम पूछा है अपना नाम लेकर। जिंदाबाद दोस्त!

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    2 टिप्‍पणियां:

    1. बहुत सधी और बंधी हुई चर्चा के लिये अतुल को बधाई.

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    2. रिवाज सा हो गया हैं, खुब लिखे हो कहने का. अब इसे महज हाजरी लगवाना माने, जो सिद्ध करती हैं की हम पढ़ने आए थे.

      जवाब देंहटाएं

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