सोमवार, अक्टूबर 30, 2006

मध्याहन चिट्ठाचर्चा

यह किसी भी चिट्ठाचर्चाकर्ता के काम में टाँग घुसेडने का प्रयास नहीं हैं. हमे ऊपर से आदेश हुआ था कि इस प्रकार का कोई प्रयास करो. यानी अगर पुरा भोजन न परोस सको तो बीच-बीच में अल्पाहार ही करवाते रहो. तो यह मध्याहन चर्चा हैं, फूलमफूल चर्चा नियमित चर्चाकार करेंगे ही.

आधुनिक धृतराष्ट्र के सामने संजय लेपटोप लिए बैठे हैं. अचानक महाराज का आदेश हुआ की उन्हे चिट्ठादंगल में कौन-कौन अपनी कलमे भाँज रहा हैं बताया जाए. आदेश आखिर आदेश होता हैं, संजय ने अपनी उँगलीया कुंजीपटल पर चलानी शुरू की. नारदजी के करतालो की ध्वनि कानो से टकराई साथ ही चिट्ठादंगल का दृश्य स्पष्ट उभरने लगा.
संजय: महाराज जितेन्द्र चौधरी नामक यौद्धा कुछ मुफ्त के कुछ अस्त्र बटोर कर लाए हैं तथा यहाँ बाँट रहे हैं. जरूरतमंद यौद्धा लाभ ले.
धृतराष्ट्र : ठीक हैं, अब आगे कौन हैं?
संजय : महाराज आगे मैं देख रहा हूँ रमाजी फिरंगी भाषा में अपना श्रृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन विस्तार से कर रहे हैं,
"ब्रह्मा जी ने श्रृष्टि रचने का दृढ़ संकल्प किया और उनके मन से मरीचि, नेत्रों से
अत्रि, मुख से अंगिरा, कान से, पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से
भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अँगूठे से दक्ष तथा गोद से नारद उत्पन्न हुये। “

महाराज अधिक जानने के लिए यहाँ चटका लगाएं.
धृतराष्ट्र : ठीक हैं, तुम आगे बढ़ो.
संजय : जी महाराज. नए यौद्धाओं के लिए उपयोगी कड़ीयो का संकलन प्रश्नोत्तरी के रूप में हिन्दी-चिट्ठे एवं पोड्कास्ट पर किया गया हैं.
धृतराष्ट्र : हूँ... यह अच्छा काम हुआ हैं.
संजय : महाराज बेजी इंडीया अपनी कटपुतलियों के साथ जुगलबन्दी करते नजर आ रहे हैं, आप भी आनान्द ले

“गीत है........

साँसें साँसों में घुल...........

संगीत है........

रब़ भी हो चला मगन रे.........”


धृतराष्ट्र : अच्छा आज इतना ही. बाकी हम नियमित चर्चाकार से सुनेंगे.
संजय : जी महाराज.

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