गुरुवार, अक्टूबर 26, 2006

हम अंधविश्वासी कब सुधरेंगे

घर अपना जब से लिये,लखनऊ शहर में जाय
फुरसतिया गंजिंग करें,चर्चा लिखत कविराय.
चर्चा लिखत कविराय कि हर दिन नई कहानी
लिखते लिखते बीत रही,यह नादान जवानी
कहे समीर कि थकते नहीं हम इतना लिख कर
छुपकर समय निकालते,फिर दफ्तर हो या घर.


(गंजिंग लखनऊ में हजरतगंज में मजे के लिये घुमने को कहते हैं)
--समीर लाल ‘समीर’

तो जैसा कि आप सबको कुंड़लीनुमा रचना से विदित हो गया होगा कि आज फुरसतिया जी पुनः अवकाश पर हैं और लखनऊ गये हुये हैं, तो आपको चिट्ठा चर्चा सुनाने हम फिर अवतरित हुये हैं. कहते हैं कि बोलना जरा सोच समझ कर चाहिये, कई बार जुबान पर देवी विराजमान रहती हैं और आपका कहा सच हो जाता है. हमने कल चिट्ठा चर्चा की समाप्ती करते हुये लिख दिया था:

“आज के लिये इतना ही, बाकी समाचर लेकर हम फिर आयेंगे, देखते रहें चिट्ठा चर्चा.”

और देखिये, तुरंत ही सच हो गया. खैर, आगे से सतर्क रहूँगा.

शुरु करते हैं, उड़न तश्तरी के चिट्ठों का वार्षिक भविष्यफल से. आशा है आप सभी ने अपने अपने चिट्ठों के बारे में अगले एक वर्ष में क्या गुजरेगा, जान लिया होगा. कुछ अच्छे फल प्राप्ति के उपाय भी सुझाये गये हैं और उस पर भी जो संतोष न मिले तो आप उड़न तश्तरी पर ५१ टिप्पणी की भेंट चढ़ा ईमेल से जानें. भक्तजनों ने इस दिशा में प्रयास भी शुरु कर दिये हैं और जैसा कि होता है, जब तक देवी का बुलावा नहीं आता, आप लाख कोशिश कर लें, आपको दर्शन नहीं होते. इसका रोना हमारे गिरिराज रो रहे हैं, हाय रे ब्लाग स्पाट, ये तुने क्या किया? और महाशक्ति इस पर भी लगे कविता लिखने, भविष्यफल के फेर मे न करो सत्यानाश

भविष्य जानने के बाद सब बड़े सिरियस टाईप हो गये तो माहौल हल्का करने को, रवि रतलामी ले आये एक बेहतरीन व्यंग श्याम सुंदर व्यास द्वारा रचित उधारी के दर्शन

पान-बीड़ी और परचूनी की दुकाने से लगाकर वित्त निगमों तक आप अपनी ‘साख' को भुना सकते हैं. एक बार साख जमी कि आपकी पौ बारह. साख जमाने का सरल गणित है समय पर भुगतान. सामने वाला आपको परखता है और जब उसे विश्वास हो जाता है कि ‘आसामी' डूबत खाते वाला नहीं है, न रास्ता बदलने या नज़रें चुराने वाला तो आपकी सीमित चादर, उधारी के पैबन्द से लम्बी चौड़ी हो जाती है.


और जीतू भाई ने कुछ चुट्कुले मारे हुये जोक्स सुनाये, बस मजा आ गया. अभी हम हंस ही रहे थे कि जीतू भाई आंसू बहाने लगे उल्लूओं का कत्ले आम देख कर, कहने लगे- हम अंधविश्वासी कब सुधरेंगे:
और कहते कहते बड़ी गहरी बात कह गये:

आखिर हम कब सुधरेंगे? कब बन्द करेंगे बेजुबान जानवरों पर जुल्म ढाना? अव्वल तो मै नही मानता कि इससे लक्ष्मी जी प्रसन्न होंगी, ये सब तांत्रिको, पंडितो का किया धरा है। एक परसेन्ट भी यदि इस बात मे सच्चाई है तो लानत है ऐसे इन्सान पर जो अपने स्वार्थ के लिए बेजुबान जानवरों का खून बहाता है। हम अंधविश्वासी लोग कब जागेंगे? कब फैलेगा ज्ञान का उजाला? जिस दिन हम ढोंगी तांत्रिको और पंडितो के जाल से निकलेंगे वही दिन हमारे लिए असली दीपावली होगी।


माहौल देखा तना तना सा है, तो संगीता मनराल जी अपनी इनर व्याइस लेकर उभरी. उन्हें आज फिर एक अंतराल के बाद खरगोश पकड़ में आ गया और उन्होंने अपनी दिवाली का हाल एक कविता के माध्यम मेरी दिवाली से सुनाया:

तुम्हारे संग मनाई
हर वो दिवाली
कुछ याद सी
आ रही है


उन्मुक्त जी किताब की दुकान में बजते संगीत और वो भी कान फोडू और वो भी दो अलग अलग भाषाओं के गाने, भईया तो झुंझला गये और लगे पूछने आप किस बात पर, सबसे ज्यादा झुंझलाते हैं . अब भईया, हम तो टिप्पणी न मिलने पर झुंझलाते हैं. :)

तरुण जी ने फूलों का सुंदर चित्र दिखाया और अमित जी ने वर्ड प्रेस के नये आयामों के बारे में जानकारी दी और वर्ड प्रेस के मल्टी यूजर संस्करण के बारे में रमण कौल जी जानकारी दे रहे हैं.

सुखसागर पर रोज की तरह आज की नई कथा है कलियुग का आगमन.

पृथ्वी बोली - "हे धर्म! तुम सर्वज्ञ होकर भी मुझ से मेरे दुःख का कारण पूछते हो! सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, सन्तोष, त्याग, शम, दम, तप, सरलता, क्षमता, शास्त्र विचार, उपरति, तितिक्षा, ज्ञान, वैराग्य, शौर्य, तेज, ऐश्वर्य, बल, स्मृति, कान्ति, कौशल, स्वतन्त्रता, निर्भीकता, कोमलता, धैर्य, साहस, शील, विनय, सौभाग्य, उत्साह, गम्भीरता, कीर्ति, आस्तिकता, स्थिरता, गौरव, अहंकारहीनता आदि गुणों से युक्त भगवान श्रीकृष्ण के स्वधाम गमन के कारण घोर कलियुग मेरे ऊपर आ गया है। मुझे तुम्हारे साथ ही साथ देव, पितृगण, ऋषि, साधु, सन्यासी आदि सभी के लिये महान शोक है। भगवान श्रीकृष्ण के जिन चरणों की सेवा लक्ष्मी जी करती हैं उनमें कमल, वज्र, अंकुश, ध्वजा आदि के चिह्न विराजमान हैं और वे ही चरण मुझ पर पड़ते थे जिससे मैं सौभाग्यवती थी। अब मेरा सौभाग्य समाप्त हो गया है।"


गपशप इंडिया पर मिर्च मसाला प्रणव मुखर्जी के विदेश मंत्री बनने के बाद उनकी स्थितियों का आंकलन करते हुये कह रहे हैं कोई मेरे दिल से पूछे.

हिन्दी ब्लाग पर प्रतीक भाई लेकर आये हैं फिल्म डॉन की समीक्षा. अगर आप भी फिल्म देखने का मन बना रहें हैं तो पहले समीक्षा तो पढ़ लें. नहीं तो बाद में मत कहियेगा कि बताया नहीं.

डॉ.भावना दिवाली के शुभकामना संदेश को हाईकु की थाली में सजा कर लाईं और छुटपुट जी प्रकट हुये फेडोर-६ का डाउनलोड लिंक लेकर और उसके बारे में बताने का जिम्मा रवि रतलामी को पकड़ा गये.

अब आज की चर्चा समाप्त करने का समय हो चला है, चलते चलते फुरसतिया जी की उस पोस्ट, इसे अपने तक रखना पर राजू श्रीवास्तव का जिंस पर प्रवचन और राकेश जी के आधुनिकीकरण वाले गीत से प्रेरित एक कुण्ड्लीनुमा प्रस्तुति के साथ बिदाई:

भागे धड़ाधड़ जिन्दगी,लगे हावड़ा मेल
बातें छोटी हो रहीं, रिश्ते हो गये खेल
रिश्ते हो गये खेल के भाषा भी छुटियाई
दीदी को दी, डैडी को हैं डैड बुलाई
कहे समीर अजीब हमें यह फ़ैशन लागे
नीचे खिसके पैंट, शर्ट उपर को भागे.

--समीर लाल ‘समीर’

अब नमस्कार, कल आगे का हाल लेकर आयेंगे अपने सुपर डुपर अंदाज में भाई अतुल..देखते रहिये चिट्ठा चर्चा.

आज की टिप्पणियां:

अनुराग, उन्मुक्त पर:

कई जगहों पर संगीत सरदर्द बन जाता है, मुंबई की टैक्सी या तिपहिये पर बैठिये, झंकार बीट्स वाले गाने इस तरह धमा-धम फुल वाल्यूम पर बजाते हैं कि मन करता है कि पैदल ही निकल लो!
अधिकतर रेस्तोरां में तो गाना ऐसा ज़ोर से बजता है कि बातें करने के लिये चिल्लाना पड़ता है।
कभी कभी तो मन करता है कि उनके स्पीकर्स फोड़ गें तो चैन आये - कसम से!!

रत्ना जी, उड़न तश्तरी पर:

समीर की उड़ान लिए उड़ा कुन्डली रूपी यान
गद्य-पद्य मय हास्य-व्यंग्य,सुसज्जित सब सामान
सुसज्जित सब सामान, देख कर हम चकराए
विभिन्न स्वाद एक तश्तरी किस विधी समाए
कह 'रत्ना' मुस्काए समां बस बंध सा जाए
'समीर लाल' की कलम जब करतब दिखलाए।


राकेश खंडेलवाल, फुरसतिया पर (फरमाईश पूरी करते हुये):


पालीथीन हवा में उड़ कर सोचा बन ले उड़नतश्तरी
और घूम ले टोरंटो की गलियां या घूमे वाशिंगटन
पासपोर्ट, वीसा के बिन्ही छोड़े कानपुरी गलियों को
साथ दिलाया झोले के संग, झोली का भी तो अनुमोदन
पालीथीनी थैलियों में भी छुपी हैं अहल्यायें
हो नजर अवधी, तभी तो ढूँढ़ पाये गौतमी को
आपको अपना समझ, फ़रियाद के स्वर गुनगुनाये
वरना राहों पर फिरी वह ढूँढ़ती थी आदमी को .


आज की तस्वीरें:

१.रचनाकार से:




२. मेरा पन्ना से:


1 टिप्पणी:

  1. क्या भाई साहब हमे जुगाड़ी पीर की उपाधि से नवाज दिया परन्तु चिठ्ठा चर्चा में हमारी इस
    http://nahar.wordpress.com/2006/10/25/radiotv

    प्रविष्टी की चर्चा करना भूल गये।
    परिणाम देखा आपने! कल जिस प्रविष्टी की चर्चा की आपने उसे ११ टिप्पणीयाँ मिली और ज्यादा मेहनत कर लिखी पोस्ट को मात्र दो!! :(
    लगता है अब पाठक नारद से कम और चिठ्ठा चर्चा को ज्य्द देखकर चिठ्ठे पढ़ते हैं।

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