बुधवार, नवंबर 22, 2006

मध्यान्हचर्चा दिनांक : 22-11-2006

धृतराष्ट्र कुर्सी पर पसरे हुए हैं. एक हाथसे पेपरवेट घुमा रहे हैं, दुसरे में उनकी पहचान बन गए कोफी कप को थामे हुए हैं. संजय अपनी नज़रे कमप्युटर स्क्रीन पर गडाये हुए, नारदजी का आह्वान कर रहे है. तभी धुं-धुं की आवाज सुनाई दी, तो धृतराष्ट्र ने आकाश की ओर देखनी की कोशिश में छत को घुरा और ताली बजाई. धुं-धुं की आवाज आनी बन्द हो गई. संजय ने प्रश्नवाचक नजरों से उन्हे देखा.
धृतराष्ट्र : कुछ नहीं उडनतश्तरी गुजर रही थी, ताली बजा देने पर शांति से गुजर जाती है. छोड़ो, तुम देखो कौन अपना कुंजिपटल टकटका रहा है.
संजय : महाराज ई-पंडितजी भारतवर्ष के पृथ्वी नामक प्रेक्षापास्त्र के सफल परिक्षण का समाचार दे रहे हैं, साथ ही वे चाहते हैं भारत के प्रधानमंत्रि आइना दिखाते कंगारूओं से कुछ सिख ले.
धृतराष्ट्र : यह तो हमने सिखा ही नहीं, आगे बढ़ो और कौन द्वन्द में उलझा हुआ है.
संजय : यहाँ तो महाराज डॉ. बेजी ही अपने मन से द्वन्द कर रही है. सुखसागर में कृष्णावतार की कथा चल रही है, तो जितेन्द्र चौधरी नामक योद्धा गागर में सागर भरने की युक्ति बता रहे हैं.
धृतराष्ट्र : दिलचस्प.
संजय : महाराज, दिलचस्प तो यह जैम नामक पत्रिका है, जिसे कानपुर में मात्र रविशंकरजी ही जम कर पढ़ते हैं. तथा जम कर चुटकुले भी सुनाते हैं.
धृतराष्ट्र : पर तुम मन बहलाने के बहाने ‘जमो’ मत आगे देखो.
संजय : आगे महाराज गयाना में छायाचित्रकार एक तस्वीर लिए खड़े हैं, पुछ रहें हैं इसे क्या नाम दूँ. और यह एक और तीर चला तरकश से, पंकज बता रहे हैं एक ही पटरी पर दौड़ती भारतीय मोनोरेल के बारे में.
महाराज अब आप इस रेल की सवारी का आनन्द लें मैं लोग-आउट होता हूँ.

2 टिप्‍पणियां:

  1. हमारा यही कहना है रविरतलामी अभी रतलाम से ही जैम पढ़ते हैं.

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  2. फिर पंगा!
    भई आज भी क्षमा मांगते हैं, रविजी आप जहाँ कहीं भी जैम पढ़ रहे हो चाहे कानपुर हो या रतलाम में हो बस जमे रहें.

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