रविवार, मार्च 04, 2007

होरी खेलूँगी श्याम संग जाय


मिसिरजी का फूल
पता नहीं ये नारद जी कौन से मूड में रहते हैं। आज सबेरे जितने चिट्ठे देखे उनकी चर्चा कर दी। अभी देखा तो जितने सबेरे चर्चित हुये उससे अधिक छूट गये। लिहाजा दुबारा मुखातिब हूं।

सबसे पहले तो आप अनिल रघुराज की डायरी बांच लीजिये। घुघुती बासूती अपने बीते समय को याद करते-करते आने वाले दिन के बारे में कहती हैं:-
कल भी सब आएँगे, पर हम अपना सिर बचाएँगे । मस्ती भी होगी खाना पीना भी । पर अब न साथ में बच्चे हैं न आज रात बच्चों के मित्र होंगे । न कल घर के हर स्नानागार में कोई न कोई बच्चा नहा रहा होगा । न वह हमारे पुराने मित्र हैं न वह जगह । जीवन में बाईस घर बदले हैं व लगभग उतनी ही जगहें, पर अब लगता है हम स्वयं ही बदल गए हैं । तभी तो गुझिया, गोजे, सिहल आदि बनाने की जगह यह लिख रहे हैं । और गहरे गाढ़े रंग बनाने की जगह हल्दी व टैल्कम पावडर से खेलने का मन बना रहे हैं !
फिर भी जानती हूँ कल सुबह होते न होते होली का पागलपन सिर पर सवार हो जाएगा ।

इस पर नीरज रोहिल्ला का कहना है-आपकी इस पोस्ट को पढकर बरबस ही घर की याद आ गयी। आज छ: वर्ष हो चुके हैं घर पर होली अथवा दीवाली मनाये हुये ।
मृणाल लगता है सिद्ध कवि हो रहे हैं जब वेलिखते हैं:-
मुझे तराश दिया और बुत बना डाला
वरना तूफ़ां मे मै गुमनाम गुमशुदा होता

नही गम डूब कर गर कहीं ठहर जाता
असल मे हूँ जो उस हस्ती से न जुदा होता

रचनाकार पर हरिहरझा कहते हैं-
नखरारी नार की अल्हड़ता कैसी
सबके आगोश में बेशरम वैसी
ख्याल बुरा लाये तो देगी वो गारी
वो है तुम्हारी प्यारी पिचकारी

रवीश कुमार के विचार उनके लम्बे अनुभव और सोच निकलते हैं टीवी दौर में दलित चित्रण |अफलातून बता रहे हैं होली की कथा और होली का मर्म।पर्यावरण की उपेक्षा पर अनुनाद सिंह अपना झोभ व्यक्त करते हुयेकहते हैं-
दूसरी तरफ यह पढ़कर बहुत खुशी हुई कि चीन नीम-शक्ति बनने जा रहा है। मैं खुश इसलिये हो रहा हूँ कि हमारी नकल करने की क्षमता अद्वितीय है; इसलिये देर-सबेर हम भी नीम और अन्य देशी पौधों का महत्व समझेंगे। भारतीयों में आत्महीनता का रोग देसी पेड़-पौधों को लेकर भी है; तभी तो ‘पास’ बस्तियों (कालोनियों) में नीम, जामुन, पीपल, अमरूद आदि नहीं दिखते बल्कि विदेशों में फलने-फूलने वाले पेड़-पौधे और फूल ही देखने को मिलते हैं।
गिरीन्द्र नाथ झा के बदलते सिरियापुर को आप भीदेखिये
>-"मालिक आप ?" कहते हुए बदरी और बिल्टू नाश्ता-पानी मुझसे ले लिया और लगा मेड़ पर बैठकर खाने। मैं उस जुते हुए खेत में ढ़ेले पर ऐसे ही बैठ गया और चारों ओर निहारने लगा- बगल में मज्जर से लदे आम के पेड़ जिसकी खूश्बू दूर तक फैली थी, वहीं पेड़ों के नीचे कई भैंसवाह भैंस पर लेटा सुरीले तान छेड़ रहा था, भैंस मस्ती में चरती जा रही थी। लोग धोती या लूंगी पहने और सर पर गमछे का पाग बांधे खेतों में काम कर रहे थे। मुझसे दायीं वाले खेत की जुताई ट्रैक्टर से हो रही थी जबकि बायीं ओर हल-बैल चल रहा था-- यह सबकुछ देखकर बहुत अच्छा लग रहा था।
नितिन बागला ने अपने सवालों के जवाब दिये और होली पर गीत भी सुनाया।:-

होरी खेलूँगी श्याम संग जाय,
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री ॥१॥

फागुन आयो…फागुन आयो…फागुन आयो री
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री

वो भिजवे मेरी सुरंग चुनरिया,
मैं भिजवूं वाकी पाग ।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री ॥२॥

और इसी मौके पर रंजू क्या कहती हैं देखें-
यह दिल अब भी जलता है उनकी याद की आरज़ू ले कर
जो दिल में बस गया है मेरे एक तमन्ना बन कर

मोहब्बबत बिखरी हुई हैं फ़िज़ाओ में एक ख़ुश्बू की तरह'
वो उतर रहा है दिल में मेरे एक प्यारा सा ख्वाब बन कर

ज्ञानदत्त पांडेय अपनी मानसिक हलचल बताते हुये कुछसलाहें देते हैं।उधर गिरिराज जोशी अपने कुछ साथियों के लिये टाइटिल लिखते हैं-होली का त्योंहार
चिट्ठा-जगत ने मिलकर खूब मनाया
हर चिट्ठाकार झुमा मस्ती में, रंग लगाकर प्यार बढ़ाया

होली खेल रहे अनूप को, भंग ने कुछ ऐसे मटकाया
पैर फिसला कै आया चक्कर, श्रीश जोर से चिल्लाया

अफलातून ने देखकर मौका, श्रीश का साथ निभाया
झंडा थमाकर, प्यार जताकर, ला धरने पर बिठाया

पंकज बाबू संग वानर सेना, मिलकर उत्पात मचाया
अमित भय्या का बनाकर कार्टून, जमकर रंग लगाया

होली पर ही मौका भी है और दस्तूर भी इसलिये रवीश कुमार राष्ट्र के नाम झेल संदेश देते हैं:-
मेरा कहना है कि त्योहारों पर जारी होने वाले सरकारी संदेशों का कंटेंट बदला जाना चाहिए । उनमें रस हो । ह्यूमर हो । हम सब इसकी मांग करें । शांति और सद्भावना के लिए नहीं होली के लिए होली खेलें । शांति और सद्भावना । प्रह्लाद हिरण्यकशिपु की कहानी का क्या हुआ ? उसी का हवाला देते कम से कम । ओरीजनल कहानी ही बता देते । प्लीज़ इनके बकवास संदेशों को फाड़ कर फेंक दें ।

इसी कड़ा में प्रियदर्शन भारत की औरत के बारे में बात करते हैं। और फिर सबसे आखिर में हैं हमारे बिहारी बाबू अपनी बिंदास शैली में कहते हुये-
खैर, इस बार बॉलिवुड से जुड़ी चार होली हो रही है- अमिताभ की होली, शाहरुख की होली, बॉलिवुड के वंचितों से बाजार के गठबंधन की होली और आम लोगों की होली। हम आपको आम लोगों की होली के बारे में नहीं बताएंगे, क्योंकि वहां के आम लोग भी हम दिल्लीवालों की तरह ही आम हैं। ये देखिए, यह है अमिताभ का घर 'जलसा'। हालांकि यूपी में मुलायम भाई साहब पर जो आफत आन पड़ी है, उसे देखते हुए अमिताभ ने इस बार होली नहीं मनाने की घोषणा की थी, लेकिन आप तो जानते ही हैं कि लोग मानते कहां हैं! ... तो यहां मेहमानों के आने-जाने का सिलसिला जारी है। ये भांग घोंटने वाले खास इलाहाबाद के सपाई हैं, जिन्हें अमर सिंह जी भाई साहब ने अपने बैंड एम्बैसडर की सेवा के लिए भेजा है।

यह जो लंबा-चौड़ा हैंडसम व्यक्ति दिख रहा है न बिग बी को गले लगाते, यह विधु विनोद चोपड़ा है। इनकी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर लुट गई, सो अपने एकलव्य को उन्होंने जो रॉल्स रॉयस दिया था, उसे वह वापस लेने आए हैं। अब होश में तो अमिताभ गाड़ी लौटाते नहीं, इसलिए इन्होंने भांग के नशे का फायदा उठाने की सोची है। वो देखिए, उन्होंने अमिताभ की जेब से रॉल्स रॉयस की चाबी भी निकाल ली है। चलिए, इनकी होली तो हो ली, क्योंकि 'एकलव्य' से हुआ सारा घाटा ये इस गाड़ी को बेचकर निकाल लेंगे।

आज की दूसरी चर्चा में बस इतना ही। कल आपको अपने हुनर दिखायेंगे रविरतलामी!ऊपर वाला फोटो रामचन्द्रमिश्र केब्लाग से है-साभार भाई!

1 टिप्पणी:

  1. बढ़िया जिम्मेदारी से बकिया भी चर्चा कर ली गई, साधुवाद:

    होली की बहुत शुभकामनायें और मुबारकबाद!! :)

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