मंगलवार, अप्रैल 17, 2007

पत्थर को भी जीने का विश्वास

कहता कैलेन्डर बसन्त है, पर मौसम देता है धोखे
बाहर चलते तेज हवा के साठ मील की गति के झोंके
तापमान चालीस अंश फ़हरनहाईट पर रुका हुआ है
मौसम की इस मनमानी को रोक सके जो कोई, रोके

आज यहाँ पर देखें कितने रंग बिखेरे गये जाल पर
कोई ढूँढ़ रहा है मीटर, लोई कहे कहीं तो होगा
कहीं मुसाफ़िर की सूची है, कहीं रंज अंग्रेज न हुए
एम ए एल एल बी , चपरासी अगर न होगा तो क्या होगा

कोई लिखता गज़लें, कोई कविता में करता प्रयोग है
कोई होता है सम्मोहित कोई खबरें खोज रहा है
देखें क्या उन्मुक्त कह रहे,अंकुर बिना शीर्षल फूटे
धन के नियम कोशिशें करता कोई कहीं पर तोड़ रहा है

गीता का अनुवाद देखिये, परिभाषा भी पढिये मां की
मेरी कलम से निकल रही है फिर थोड़ा उड़ने की चाहत
गांव विषय पर कुछ बातें हैं, बाकी में बस राजनीति है
और शेष से आती लगता, फिर से धर्म गर्म की आहट

बाकी चर्चा कल समीर जी आशा है पूरी कर लेंगे
एक शेर, जो बात अरुणिमा कहती है क्या संभव होगा ?
सिंहासन पर ताजपोशियों की खातिर बढ़ती भीड़ों में
जो पत्थर को भी जीने का
दे विश्वास, कहीं तो होगा

1 टिप्पणी:

  1. चर्चा तो बेहतरीन रही. जैसा मैने कहा कि हमारा X Factor शून्य पर है, लगातर तीसरी बार तीसरी पोस्ट फिर छूट गये. इस बार इसे जरुर देख लेना भईया बिना चर्चा के भी:

    http://udantashtari.blogspot.com/2007/04/blog-post_16.html

    -वैसे किसी की गल्ती नहीं है. हो जाता है भीड़ भाड़ में. :)

    जवाब देंहटाएं

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