मंगलवार, जुलाई 10, 2007

चर्चा ये संक्षिप्त रही है

इक तो कुछ है अधिक व्यस्तता
दूजे परेशान मौसम से
इसीलिये चिट्ठों की पूरी
चर्चा भी हो सकी न हमसे

उड़नतश्तरी को देखें या
पढें श्री
रंजन प्रसाद को
बात
कबीरा की कर लें या
छोड़ें हर
फ़ैले विवाद को

जो
बस्ती से बाहर निकले
या जो रचनाकार कहाये
बाकी चिट्ठे यहां देखिये
जिन्हें ब्लागर लिख कर लाये

1 टिप्पणी:

  1. अरे, संक्षिप्त कैसे कहलाई-हम हैं न इसमे...तब तो मोटी चर्चा कहलाई, पूरी...बाकि कल की जावेगी. :) बढ़िया, आभार..आपने व्यस्ततम समय मे से कुछ इधर बांटा.

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