गुजरात में हुये चुनावों में मोदीजी जीत गये। आज टीवी पर बताया गया कि वे भावुक भी हैं और अपनी पार्टी के लोगों को विनम्र रहने की अपील भी की। मोदीजी ने कहा भी वे सीएम(कामन मैन) थे, हैं और रहेंगे। इससे हमें एकाएक
रागदरबारी की लाइनें याद आ गयीं-
वैद्यजी थे ,हैं और रहेंगे। लेकिन एक और
आम आदमी है जो शायद मोदीजी को ही सम्बोधित करते हुये कहता है-
आपको नयी चुनाव आचार संहिता का शुक्रिया अदा करना चाहिये। अगर आपने उसका उल्लंघन न किया होता तो चुनाव न जीत पाते। मोदीजी की इस जीत के मौके पर तमाम पोस्टें आयीं। इस मौके पर अनिल रघुराज ने भी अपने विचार
व्यक्त किये। उन्होंने लिखा-
मैं अपनी सीमित जानकारी के आधार पर कह सकता हूं कि व्यक्तिगत जीवन में मोहनदास कर्मचंद गांधी जितने पाक-साफ थे, नरेंद्र दामोदरदास मोदी उतने ही पाक-साफ हैं। गुजराती होने के अलावा इन दोनों में एक और समानता है। जिस तरह गांधी ने पूरी आज़ादी की लड़ाई के दौरान हमेशा संगठन और संस्थाओं की अनदेखी की, कभी भी निचले स्तर के संगठनों को नहीं बनने दिया, उसी तरह मोदी ने भी सरकारी संस्थाओं की ही नहीं, बीजेपी और संघ तक की अनदेखी की है। जिस तरह जनता और गांधी के बीच कोई भी कद्दावर नेता नहीं आता था, उसी तरह मोदी ने भी अपने आगे सभी नेताओं को अर्थहीन और बौना बना दिया है। इस मायने में मुझे लगता है कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी ही आज मोहनदास कर्मचंद गांधी के असली राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं।
इस लेख में उन तमाम लेखों के लिंक भी हैं जो गुजरात में मोदीजी की जीत के सिलसिले में लिखे गये।
आज
ज्ञानजी ने अपनी तीन सौं वी पोस्ट लिखी। उनको सबकी तरफ़ से बधाई। वे नियमित ब्लागिंग करने वालों के लिये ईर्ष्या करने लायक ब्लागर हैं। कामना है आगे भी वे नियमित ईर्ष्या के आदर्श प्रतीक बने रहें।
कल ज्ञानजी ने अनूप शुक्ल को एक उपाधि
जबरिया थमा दी- मेहनती सज्जन की। इस तरह हमें दो उपाधियां मिल गयीं।
मूढ़मति और
मेहनती सज्जन की। मुझे पता है कि पहले से
लाइन में लगे शिवकुमार हमारी इस उपाधि पर जलभुनकर टेनिस वाली विलियम्स बहनें हो जायेंगे। लेकिन हम तो यही कहेंगे- जलने वाले जला करें। जाड़े का मौसम है।
कल ज्ञानजी ने एक फोटो भी अनूप शुक्ल के नाम की दिखाई। आलोक पुराणिकजी ने फोन करके राय जहिर की सच में कित्ते क्यूट लग रहे हैं। एकदम चिठेरा-चिठेरी की तरह। अब आप बताओ कहीं ये उत्ते क्यूट लगते हैं जित्ते चिठेरा-चिठेरी हैं?
कभी बोले तो वन्स अपान ए टाइम अतुल अरोरा नियमित ब्लागर हुआ करते थे। उन्होंने एक अधूरी सीरीज भी लिखी थी-
क्योंकि भैंस को दर्द नहीं होता। समय के साथ उनकी प्राथमिकतायें बदली और ब्लागिंग में वे गली के चांद की जगह ईद के चांद होते गये।
आज उन्होंने अपने सुपुत्र को गाय दुहने के काम में लगा दिया। फोटो लग नहीं रही है। आप इधरिच देख लीजिये न!
सात समंदर के पास जाकर।
आज क्रिसमस है। इस अवसर पर सभी को बधाई और मंगलकामनायें। कल शास्त्रीजी ने लिखा था
बड़ा दिन न मनायें। मुझे लगता है इस तरह की पोस्टों से भ्रम फ़ैलता है।
आज के दिन ही अटल बिहारी बाजपेयीजी का
जन्मदिन पड़ता है। राजनीति में उनकी विचार धारा के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना लेकिन भारतीय समाज के एक अद्भुत वक्ता के रूप फिलहाल कोई जोड़ नहीं दिखता। आजकल फ़ायर ब्रांड वक्ताओं का बाजार उठान पर है तब उनके जैसे हाजिर जबाब की कमी खलती है। उनको जन्मदिन की मंगलकामनायें।
अनुगूंज 23 की
घोषणा हो गयी है। बहुत दिनों से यह हो रही है। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी है। अब कल की ज्ञानजी कीपो स्ट से आलोक का उत्साह फिर जगा और वे बाकियों को भी जगा रहे हैं। आप भी भाग लीजिये न! विषय है- कम्प्यूटर प्रयोग। ये तो आप करते हैं- लिख डालिये न!
इसी समय संजय बेंगाणी ने आवाज लगाई है -
सुनो… सुनो… सुनो…| तरकश के द्वारा आयोजित 'सुवर्ण कलम' (स्वर्ण कलम नहीं भाई) में आप भी चुने जा सकते हैं वर्ष 2007 के सर्वश्रेष्ठ चिट्ठाकार। दौड़-धूप शुरू कीजिये।
वन लाइनर शुरू करने से पहले अजय झा ने द्वारा बताये गये चिट्ठाकारी के कुछ
खास नुस्खे देख लें। सबसे अहम नुस्खा जो मुझे लगा वह है-
ज्यादा फिलासफी ना झाडें तो अच्छा , क्योंकि शायद आज के जमाने में किसी के पास इतना वक़्त नहीं होता कि वो आपके आदर्शों को झेलने के लिए समय निकाल सके।
1.
करुणामूर्ति ईसा की जयंती मुबारक! : किसको? हमको, आपको सबको न!कि उनको भी?
2.
और ये अनुगूँज २३ शुरू! : कब से चल रही है! फ़ीता काटो आगे भी बढो भाई।
3.
"बडा दिन" न मनायें !! : हम तो जबरिया मनइबे यार हमार कोई का करिहै!
4.
चमचा: मार्ग में बाधा है, बन जाओ।
5.
बस यूं ही: गुनाह करते रहो, अच्छा लगता है।
6.
रागों में जातियां : यहां भी जातिवाद पसरा है !
7.
एलियंस का अस्तित्व स्वीकार रहे हैं वैज्ञानिक: एस.एम.एस. से वोटिंग करके नतीजे पर पहुंचे होंगे।
8.
मोबाइल, आईपॉड, लैपटॉप, सब पर्यावरण के दुश्मन : ये दुश्मन जो दोस्तों से भी प्यारा है।
9.
चिट्ठाकारी के कुछ खास नुस्खे: कबाड़खाने में मिले।
10.
बापी दास का क्रिसमस विवरण : पार्क स्ट्रीट पर छेड़खानी करने के तरीके।
11.
अख़बार पढ़ते पढ़ते :
धच्च की आवाज के साथ स्वयं अखबार हो जाती हूं।
12.
हाईबर्नेशन की अवस्था में ही सभी पर्वों पर शुभकामनायें : ये हाईबर्नेशन बड़े काम की चीज है।
13.
अपने लेख अखबारी लेख की शक्ल दें : और सागरजी को महानतम ब्लागर मानने से मत हिचकें।
14.
हे गुमशुदा ’उडन-तश्तरी’ तुम कहां हो? : अपनी रपट जबलपुर थाने में लिखायें।
15.
खुशियों को गले लगायें: गम से अपने आप मिल लेंगे क्योंकि खुशी और गम एक ही सिक्के दो पहलू हैं।
16.
*कुम्बले कम्पनी दे रही है गालियो की कोचिंग* : आप भी दीजिये न हिंदी का प्रचार-प्रसार होगा।
17.
क्यो हमसे ज्यादा प्रामाणिक मानी जाती है मोदी की आवाज? : आपने बताया न नक्कारखाने में तूती वाला मामला है।
18.
ईसाई भारतीय नहीं हैं क्या? : कौन कहता है नहीं हैं?
19.
सुबह जब आंख खुलती हैं: तो निगोड़ी नींद आ जाती है।
20.
हिंदी चिट्ठाकारों से एक विनम्र आग्रह : कि वे अपना सम्मान कराने में सहयोग करें।
21.
सत्तर के दशक का कार्टून : इत्ती देर में सामने आया! लखनौवा है- पहले आप,पहले आप में फ़ंस गया होगा।
22.
गुजरात की जनता और नरेन्द्र मोदी ने दिखाई मौन की ताकत: बहुत दहाड़ना पड़ा इसे दिखाने के लिये।
23.
आत्मा की ज्योति : जलायें, बिजली का खर्चा बचायें।
24.
चुनाव के बाद मतदाता के विवेक पर आक्षेप करना अनुचित : लेकिन ये तो अगले चुनाव से पहले कर रहे हैं भाई।
25.
दस्तक के तकनीकी लेख अब नई जगह पर: नयी जगह पर लिख्खेंगे ये फिर से वही कहानी।
26.
अपने दिमाग़ को बचाएं ! अगर अभी तक बचा रह गया हो!
27.
मोकालू गुरू का चपन्त चलउआ : पर ट्रक का पहिया चढ़ा।
28.
सांता जो न कर सका:वह आलोक पुराणिक ने कर डाला।
29.
अपन के मोदी कुंवारे या शादीशुदा : किसको पता है जी ये अन्दर की बात!
30.
कोलकाता को किसने बसाया ? : हमने तो नहीं बसाया।
31.
चुनाव हिटलर ने भी जीता था, चुनाव बुद्धदेव भी जीतते हैं: यही लफ़ड़ा है चुनाव में- कोई न कोई जीत ही जाता है।