रविवार, दिसंबर 09, 2007

एग्रीगेटर चर्चा

चिट्ठा चर्चा पर यह थोड़ी अलग टाईप की समीक्षा है. नये स्वरूप में चिट्ठाजगत आप सबने देखा ही होगा. मैंने भी देखा एक ब्लागर के नजरिये से कहूं तो थोड़ी निराशा सी हो रही है. चिट्ठाजगत का जैसा स्वरूप बना है अगर ब्लाग एग्रीगेटरों का यही भविष्य है तो यह न तो एग्रीगेटरों के लिए शुभ है और न ही ब्लागरों के लिए.

आप पूछेंगे मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं? क्या परिवर्तन मुझे स्वीकार नहीं? इन दोनों सवालों का जवाब मेरे पास यही है कि हिन्दी एग्रीगेटरों का वर्तमान स्वरूप जैसा बन गया था वह सहज मांग को पूरा करनेवाला था. अपने-आप में अनूठा तो था ही. अब इतने वर्गीकरणों के बीच चिट्ठे तक पहुंचना और उस तरह गुत्थम-गुत्था में शामिल हो जाना जैसा परंपरागत स्वरूप के कारण होता था, अब संभव नहीं होगा.

चिट्ठाजगत का नया स्वरूप हिन्दी ब्लागिंग के नैसर्गिक स्वरूप को तोड़कर नये तरह की अवधारणा प्रस्तुत करता है जिसके लिए अपनी हिन्दी जमात मानसिक रूप से शायद ही तैयार हो. वैसे तो आरएसएस फीड और न जाने कैसे-कैसे हथियार हैं जिसके जरिए आप अपने पसंद के चिट्ठे तक पहुंच सकते हैं लेकिन फिर भी एग्रीगेटरों की भूमिका खत्म तो नहीं हो जाती? इसी तरह अगर वर्गीकरणों का ऐसा जाल हमारे सामने बिछा दिया जाए तो शायद हम उधर जाना भी नहीं चाहेंगे. कम से कम मेरा मन तो खटक ही गया है. आपकी आप जानें.

एग्रीगेटर चलानेवाले बंधु कहते हैं क्या करें ब्लाग्स बढ़ रहे हैं तो कुछ नया तो सोचना ही पड़ेगा. परंपरागत स्वरूप से काम नहीं चलेगा. आपकी क्या राय है?

9 टिप्‍पणियां:

  1. लगता है चिट्ठाजगत् के वर्तमान स्वरूप को पूरी तरह देखे भाले और इस्तेमाल किए बगैर इस तरह की बातें की जा रही हैं.

    वर्गीकरण से पहले मेरा और सारे भी तो हैं. जहाँ 'मेरा' में आप अपने पसंदीदा चिट्ठों को छांट कर जमा सकते हैं वहीं 'सार'े में आपको बिना वर्गीकरण के सारे के सारे चिट्ठे दिखाई भी तो दे रहे हैं.

    किसी अनुप्रयोग की पूरी क्षमता को जांचने परखने के लिए हमें उसका पूरा उपयोग करना भी सीखना होगा!

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  2. तकनिकी रूप से भले ही उसे उन्नत करने का प्रयास किया गया हो लेकिन फिलहाल तो यह सुविधाजनक नही लग रहा

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  3. अच्‍छस किया रवि भाई जो आपने यहां टिप्‍पणी की. जिन्‍हें पुराने स्‍वरूप में रुचि है वे सारे पर क्लिक करें, अपना देखने के लिए मेरे पर क्लिक कर लें... क्‍या परेशानी है बंधु? बिना जांचे परखे किसी प्रयोग को खारिज करना कौन सी बुद्धिमानी है. हर वर्ग के चिट्ठे करीने से अलग अलग देखने की व्‍यवस्‍था भर नई की गई है तो इसमें क्‍या गलत है? आपके चिट्ठे जैसे पहले थे वैसे ही अब भी हैं. और यह बात भी समझें कि परिवर्तन अपरिहार्य है. विकास की प्रक्रिया में अबलाव नहीं होंगे तो विकास भी थम जाएगा. क्‍या आप नहीं चाहते कि हिंदी चिट्ठों का विकास हो? रवि भाई की सलाह पर अमल करें आपको भी अच्‍छा लगेगा. जल्‍दबाजी में किसी प्रकार का मानस बनाना अच्‍छी बात तो नहीं.

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  4. मुझे तो नए रूप से आपत्ति कुछ जल्‍दबाजी सी लग रही है, पर ये मेरी व्‍यक्तिगत राय है।

    मेरी अपनी समझ यह है कि चिट्ठाजगत का नया रूप ब्‍लॉगिंग विधा की गहरी समझ को प्रतिध्वनित करता है और साथ ही विषय व्‍सतु को केंद्र स्थिति प्रदान करता है जो होनी ही चाहिए- हॉं वर्गीकरण में जरूर किसी किसी को लग सकता है कि इस नहीं उस खांचे में होना चाहिए था।

    और फिर पहले जैसे रूप में देखने की सुविधा तो है ही, क्लिक भर दूर।

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  5. ये हम हिन्दुस्तानियों की खास आदत है जो भी कुछ नया हो उसका विरोध करो । फिर चाहे वह काल संटर की रात की नौकरी हो , महिलायों का वेस्टर्न पहनावा हो , कुछ ब्लॉगर का अंग्रेजी मे कमेन्ट हो , महिला बार टेंडर की नौकरी हो । हम किसी भी नयी चीज़ को गलत ही समझते है । हम अपने तकनीक के अज्ञान को अनदेखा करते है और नयी तकनीक को अपनाने से डरते है । मोबाइल आया तो वह बुरा था , कंप्यूटर आया तो वह खराब था , मल्टीप्लेक्स बने तो आने वाली पीढ़ियो का संस्कार विहीन होने का ख़तरा था । मॉल आये तो पुराने दुकानदारो का क्या होगा , फैशन शो हो तो नग्नता का नाच का ख़तरा । एग्रीगेटर ने अपना स्वरुप क्या बदला कि सब एक दम हिल गए . अब कोई अपने घर का रंग रूप कैसा भी करे क्या किसी को भी बोलने का अधिकार है ? हम हमेशा अपने अधिकारों की सीमा का अतिकर्मण करते है एग्रीगेटर मात्र एक सुविधा है आप के ब्लोग को एक जगह इकट्ठा दिखाने की और ये सुविधा क्योकि अभी तक फ्री है इसलिय उसपर प्रश्न चिन्ह लगाने का अधिकार भी हमे हे या नहीं ?? पहले इस पर चर्चा होनी चाहिये ।

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  6. प्रिय संजय

    मनुष्य जिन चीजों का उपयोग करता है उनका आदी हो जाता है एवं परिवर्तन कई बार अच्छा नहीं लगता. शायद आपको अच्छा न लगने का एक कारण यह है. मुझे भी अच्छा नहीं लगा कि लोगों जब तक "तकनीक" में नहीं जायेंगे तब तक मेरा चिट्ठा नहीं मिलेगा. लेकिन दो बाते न भूलें:

    1. पुराना स्वरूप उपलब्ध है एवं नये स्वरूप के उपयोग के लिये कोई जबर्दस्ती नहीं है

    2. जो एग्रीगेटर भविष्यदर्शी हैं, वे कल की तय्यारी आज कर रहे हैं. उनको कर लेने दीजिये, खास कर जब वे आपको पुरान स्वरूप दे रहे हैं.

    -- शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
    हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
    मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
    लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??

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  7. चिट्ठाजगत में जो सुविधायें हैं वे वर्गीकरण की हैं। पुराने सारे फ़ीचर तो उपलब्ध हैं वहां भाई। रविरतलामीजी जैसा बता रहे हैं वह सच है।

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