शनिवार, जुलाई 26, 2008

अमेरिका झुमरी तलैया से कित्ती दूर है?

डील डील


कल मानसी ने नारी स्वतंत्रता पर अपने विचार रखे:

अपने घर में छोटी छोटी बातों को नारी शोषण और नारी के प्रति अन्याय का नाम दे कर नारी कई बार खुद अपनी खुशियों को दूर कर देती है। "मैं सब कर सकती हूँ, मुझमें पूरी काबिलियत है" का अहं कई बार उसे अपने ही सुख से वंचित रखता है।


स्वामीजी लगता है सबको ब्लागिंग सिखा के ही मानेंगे। आज उन्होंने पांच टूल बताये ब्लागरों के काम के।

एक ही लेख अलग पाठकों पर अलग असर डालता है। शायदा का लेख पढ़कर आभा जी का सर चकरा जाता है वहीं संजय पटेल : शिकायत करते हैं
शायदा आपा
आप बहुत ख़राब हैं...
इतना अच्छा लिखतीं हैं...
और वह भी इत्ते बड़े अंतराल के बाद ?शायदा आपा
आप बहुत ख़राब हैं...
इतना अच्छा लिखतीं हैं...
और वह भी इत्ते बड़े अंतराल के बाद ?

आपके लिखे को पढ़ें तो समझ में आता है कि इसकू कहते हैं जी ओरिजनल.हम तो बस कुछ कानसेन बनकर क़लमघिस्सी कर लेते हैं , हमारे (यानी मेरे) पास कुछ नया कहाँ


बालकिशन के यहां लगता है दिहाड़ी पर नौकर है- रोज आती है।

ज्ञानजी पर लगता है प्रकाश कारत की आत्मा डोरे डाल रही है। वे कहते हैं-
सही है सतत मौज लेने के अपराध में फुरसतिया को फुरसतियत्व दल से निकाला जाये! :)

डा. अनुराग जब लिखते हैं दिल से लिखते हैं।
अब
चाय की आधी प्यालियों मे
डूबे हुए ना वो नुकते है
ना बँटी सिगरेटो के साथ
जलते हुए
वो बेलगाम तस्सवुर
ना वो
मासूम उलझने है
ना
कहकहों के वो काफिले
बस
कुछ संजीदा मस्ले है
कुछ गमे -रोजगार के किस्से
ओर
जमा -खर्च के कुछ सफ्हे .....



अब कुछ एक लाइना आलोक पुराणिक की अगड़म-बगड़म जिद पर

हम अमरीका में रहते हैं : भैया, कित्ती दूर है ई अमेरिका झुमरी तलैया से?

अगली पोस्ट का टॉपिक?: पोस्ट लिखिये टापिक तो ट्प्प से चू पड़ेगा।

नेता जब नाम सुनावै :इत्ती विकट बहस मच जावै।

अहम मात्र प्रवंचना है! : लेकिन कोई हर्जा नहीं करते रहने में।

सितार रेस्तरां ने बेचे चार सौ खाने: काश बीस और बेच लेता।

छत का वो कोना याद आता है : छत ने क्या गुनाह किया भाई! कोने को याद किया छत भुला गये।


देश अव्यवस्था के भयानक चक्रवात से गुजर रहा होगा: पुरानी खबर है भाई। ये तो ऐसे ही सदियों से गुजरता जा रहा है।

इब्ने सफ़ी बी.ए. के बहाने जासूसी दुनिया की याद: वो जब याद आये तो बहुत याद आये।

ब्लास्ट पर राजनीति, 'थू' हैं इन पर..: बहुत जोर से थूका लेकिन आग बुझी नहीं जी।

नोट निकले हैं तो दूर तलक जायेंगे…:
कहीं भी जायें लौट के फ़िर बैग में आयेंगे।


मेरी पसन्द


हम अमरीका में रहते हैं
तीस हज़ार की गाड़ी है
और पांच-दस पैसे सस्ती कहीं गैस मिल जाए
इस चक्कर में मारे-मारे फिरते रहते हैं

हम अमरीका में रहते हैं
सात लाख का घर है
लेकिन माली के लिए पैसे नहीं हैं
मरे हुए सूखे पत्ते लॉन में फ़ड़फ़ड़ाते रहते हैं

हम अमरीका में रहते हैं
हज़ारों-लाखों की आय है
लेकिन मुफ़्त में खाना मिले
तो एक घंटे तक प्रवचन सुनते रहते हैं

हम अमरीका में रहते हैं
तीन हज़ार स्क्वेयर फ़ीट का घर है
और कोई अगर आ जाए
तो वे कहाँ रहेंगे यहीं सोचते रहते हैं

हम अमरीका में रहते हैं
एक कार-फ़ैक्स एकाउंट को
दस-दस लोग शेयर करते हैं
एक कॉस्टको कार्ड के लिए
दूसरा साथी ढूंढते रहते हैं

हम अमरीका में रहते हैं
कब किस कॉलिंग कार्ड पर
दस डालर का रिबेट मिलेगा
दु्निया भर से पूछते रहते हैं

हम अमरीका में रहते हैं
घर में ढेर सारी आईस-क्रीम है
लेकिन बास्किन राबिन्स
एक फ़्री स्कूप दे दे तो
नुक्कड़ तक हम लाईन लगाए रहते हैं

हम अमरीका में रहते हैं
हम रुपयों के लिए यहाँ आए थे
और जैसे-जैसे वे हमें मिलते जाए
हम उनके लिए और उतावले बने रहते हैं

हम अमरीका में रहते हैं


सिएटल,
25 जुलाई 2008

राहुल उपाध्याय

9 टिप्‍पणियां:

  1. > छत ने क्या गुनाह किया भाई! कोने को याद किया छत भुला गये।

    हमारी छत पर आ खिड़की में झाँकने का शुक्रिया

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  2. केवल सत्रह हाइपर लिंक। तीस होने चाहियें थे तीसमारखां होने को।
    और मेहनत करें - ४३.३३३% और!:)

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  3. शायदा जी से हमें भी शिकायत है ..इतना अच्छा लिखती है की सोचते है की कम से कम महीने में ४ पोस्ट के तो हम हक़दार है ....वैसे इन दिनों आप नियमित है....जामे रहिये ....

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  4. अच्छी चर्चा. अब आप नियमित हैं, बस ऐसे ही बनाये रखें. हमें खुशी होती है. शुभकामनाऐं एवं बधाई.

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  5. मानसी जी के लेख से हम भी पूरी तरह सहमत

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  6. अच्छी झलकियाँ है... बस सिलसिला यूँ ही चलता रहे.

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  7. बहुत सही । ये बदला बदला सा अंदाज़ भी पसंद आया ।

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