रविवार, अगस्त 17, 2008

आदमी था काम का सिफ़र हो गया

रवीन्द्र व्यास की कला  रवीन्द्र व्यास की कला

आलोक पुराणिक हफ़्ते भर जो अगड़म-बगड़म लिखते हैं उसकी भरपाई इतवार के दिन करते हैं। आज उन्होंने एस.एम.एस. चिन्तन किया। उनका कहना है-
हमारी नयी पीढ़ी, जो एसएमएस संदेशों का भरपूर आदान-प्रदान करती है, धीमे-धीमे इस तरह की इंगलिश की अभ्यस्त होती जा रही है। रोज जिस तरह की इंगलिश वह लिख रही है, उसी तरह की उसके दिमाग में स्थापित हो रही है। सो एसएमएस का एक सीधा प्रभाव यह पड़ रहा है कि इंगलिश के टीचर जैसी इंगलिश बच्चों को पढ़ा रहे हैं, एसएमएस बाजार में वैसी इंगलिश नहीं चल रही है।


मोबाइल की भाषा अपना एक नया व्याकरण गढ़ रही है। इसके चलते अखबारों को अपना स्वरूप एस.एम.एस. चुटकुला छापना पड़ता है
युवा पीढ़ी में चूंकि एसएमएस बहुत पापुलर हैं, इसलिए लगभग हर अखबार को रोज एक एसएमएस चुटकुला छापना पड़ता है। इस समय बाजार में सौ से ज्यादा किताबें सिर्फ और सिर्फ एसएमएस चुटकुलों की हैं। एसएमएस चुटकुले एक नयी विधा हैं, जिसमें सिर्फ तेज और संक्षिप्त में सोचने वाले ही सफल हो सकते हैं। कुछेक सालों बाद चार-पांच लाइन से ज्यादा लंबे चुटकुले बाजार से बाहर हो जायेंगे।


अपना सूत्र संदेश बताते हुये आलोक बताते हैं-
एसएमएस मार्केटिंग आने वाले दिनों में व्यापक ही होगी। कुछ मोबाइलधारियों को यह परेशान भले ही करे, पर आज का सच यह है कि मौत और मार्केटिंग से अब कोई बच नहीं सकता,मोबाइलधारी तो बिलकुल नहीं।



भारतीय ब्लॉग्स और ब्लॉगर्स का फ़ोरम बनाने का आवाहन किया है प्रतीक ने। बनिये न आप भी सदस्य।

अनूप सेठी के हम तब से मुरीद हैं जब उन्होंने हिंदी ब्लाग के बारे में वागर्थ में लेख लिखा था सन 2005 में। शायद हिंदी पत्रिकाओं में ब्लाग के बारे में छपा यह पहला लेख था। अनूप सेठी की कवितायें पढ़िये विजय गौड़ के ब्लाग पर। वे कहते हैं:
सफेद फाहों में चाहे धसक जाए चांद
चांदनी टीवी एंटीनों पर बिसूरती रहेगी
मकानों के बीच नए मकानों को जगह देकर
सिहरती हुई सिमट जाएगी हवा चुपचाप
किसी को खबर भी नहीं होगी
बंद देख के द्वार
लौट जाती है धूप सीढ़ियों से


उगता हुआ सूरज गीत चतुर्वेदी की निगाह से देखिये तो जरा:
उगता हुआ सूरज उस औरत की तरह लगता है हमेशा
जो सुबह उठकर चाय के लिए पानी गर्म करती है


रक्षाबंधन के दिन दो अलग रंग की पोस्ट देखने को मिलीं। एक तरफ़ अनिल रघुराज का मानस है जो शादी के तीन साल बाद मानस है जो अपनी अनपढ़ पत्नी के साथ रिश्ते को लेकर पूरी तरह निराश हो गया। जिस पर राज भाटिया की प्रतिक्रिया है-भगवान करे ऎसी बद जुबान ओरत दुशमन को भी ना मिले,लेकिन मुझे गुस्सा भाई पर आता हे उसे तालाक क्यो नही दे देता. वहीं दूसरी तरह कंचन के अनिल भैया हैं जिन्होंने अपनी बहन के उलाहने -इतनी सी बात की एक औरत को इतनी बड़ी सजा....? पर उसको वचन दिया मुझे तेरी राखी की कसम है बहन मैं होली तक तुम लोगो के साथ तुम्हरी भाभी को ले आऊँगा। और निभाया भी - होलिका दहन के दिन भईया एक सुंदर सी औरत और ८ साल के बच्चे के साथ रिक्शे से उतर रहे थे।

बरेलीं कालेज में जींस पहनने पर लगे प्रतिबंध का विरोध करते हुये वर्षा ने कवि मनमोहन की पंक्तियां पढ़वाईं:
फूल के खिलने का डर है सो पहले फूल का खिलना बर्खास्त,
फिर फूल बर्खास्त, हवा के चलने का डर है
सो पहले हवा का चलना बर्खास्त, फिर हवा बर्खास्त...


लोग सोचते हैं भगवानों के तो मौजा ही मौजा हैं। लेकिन उनकी भी पीड़ा कभी महसूस करिये तो पता लगेगा कैसी जटिल परिस्थितियों में उनको अपने दिन बिताने पड़ते हैं। मग्गा बाबा शिव पीड़ा बखानते हुये लिखते हैं:
मेरा वाहन है नन्दी बैल और आपकी भाभी पार्वतीका वाहन है शेर ! और वो शेर २४ घन्टे इसी ताक मे रहता है कि कब नजारा चुके और इन नन्दी महाराज को चीर फ़ाड कर लन्च डिनर कर ले ! और मैने बहुत समझाया था वाहन खरीदते समय कि मेरे पास बैल है तुम कोई दुसरा मिलता जुलता ब्रान्ड देख लो ! पर मेरी कोई सुने तब तो !


पठनीय पोस्ट
: कश्मीर: पत्थर पर दूब: बकौल दिनेशजी-सही चिंतन है। पर निष्कर्ष उबाल देने वाले।

दर्शनीय च श्रवणीय मसाला: देखें और हिंदी तथा मराठी धपाधप टाइप करें

सुनिये नहीं जी पढ़िये:अथ श्री न्यूज़ भाषा कथा


एक लाइना



आलस्‍य मनुष्‍य का महा शत्रु है : शत्रुओं से भी प्रेम पूर्वक व्यवहार करना चाहिये।

जींस में 'क्या' बात है : कुछ नहीं बस थोड़ा कपड़ा और थोड़ी सिलाई है।

हार जीवन का अंत नहीं है! : तब क्या? एक जीवन हजारो हार का स्कोप देता है।

सवाल विकास का है...!: वो तो होने से रहा।

साबुन से नहाओ, पूती फ़लो: साबुन कौन सा? रिन कि लाइफ़बाय या रेक्सोना?

हिन्दी का विकास और विकसित देश: में छ्त्तीस का आंकड़ा है।

सब ढंक गया: अब कैसे दिखेगा अन्दर क्या है?

ध्यान- मैं यह नहीं हूं! : अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश मत करिये जी।

तिरंगे को झाड़ू में बांधकर फ़हराया: जिम्मेदार लोगों को बख्शा नहीं जाएगा!

संवारने से पहले: बिगाड़ना पड़ेगा कायदे से।

ईलू उर्फ एसएमएस भाषा : शरमायें नहीं अपनायें ये बड़े काम की चीज है।

एंडी गार्सीया की आवाज़ में नेरूदा की 'सैडेस्‍ट पोएम' : एन इतवारै को दुखी करना था जी!

मेरे भैया ....मेरे चन्दा.... ! : मेरे अनमोल रतन।

दूरियां कब कर सकीं हैं प्रेम का माधुर्य कम... : उनकी क्या हिम्मत वे प्रेम में दखल दें।

हुस्न और इश्क़ का असर हो गया :आदमी था काम का सिफ़र हो गया!

देश की बदलती राजनीति की नई तस्वीर !!!: बड़ी डरावनी है जी।

खुदा जाने ये क्यों हुआ : कोई कुछ बताता ही नहीं।

राजनीति की रोटी: सेकने का मजा ही कुछ और है।

भाई बहन का त्योहार : बाकी लोग जाने काहे हलकान रहते हैं।

तुझे सब है पता .. है न माँ : लेकिन तू कित्ती अच्छी है किसी को बताती नहीं!

साहित्य-प्रेमियों का स्वागत है : कोई असाहित्यिक घुसा तो समझ ले!

अथ श्री न्यूज़ भाषा कथा : टीवी चोचला श्रूयताम!

ये समझ नहीं आता इनको: और अपने पास इत्ती अकल नहीं कि समझा सकें।

झोपडे के हुमायूँ :बन कर अपनी कर्मवती बहनों " के सच्चे भाई बनने का संकल्प लें !

कश्मीर: पत्थर पर दूब : उगेगी भी या नहीं?

भैया राखी बंधवा लो प्लीज पार्टी का कार्यक्रम है : यहां भी पार्टीबाजी!

ऐ जिन्दगी : हाऊ आर यू?

यादों का काफ़िला : सफ़र जारी है।

आपके आक्रोष-बेचैनी में बेबसी क्यों है? कौन कहता है हम बेचैन हैं जी!

मेरी पसन्द



हुस्न और इश्क़ का असर हो गया
आदमी था काम का सिफ़र हो गया

हँस-हँस के लूटा हर बेब ने मुझे
आप को गिला कि मैं बेबहर हो गया

लिखता हूँ लिखता ही रहूँगा सदा
सुन-सुन के गालियाँ निडर हो गया

ख़ुद की कहता हूँ ख़ुदा की नहीं
जो मार के इन्सां अमर हो गया

नन्हा सलोना सा जीवन था मेरा
बढ़ते बढ़ते दीगर (दूसरा) हो गया

अमर उपाध्याय

आज की फोटो:



सौम्या के ब्लाग से
रक्षा बन्धन  रक्षा बन्धन

7 टिप्‍पणियां:

  1. .

    आई एम सारी गुरु, का करें ?
    ई ससुर चिट्ठाचर्चा हमारी सबेरे की खैनी हुई गयी है,
    सो पहली टिप्पणी आजौ जाय रही है ।
    सबेरे छः बजे से हाज़त रोक के कंप्यूटर अगोरे बइठे थे ।
    बाकी लिखा पढ़ा माफ़ करना ।

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  2. जमाये रहियेजी।
    एसएएमएसी फ्यूचर देखकर ही कहता हूं सारा मामला वन लाइनर ही होने वाला है।
    आपके वन लाइनर इतिहास में जायेंगे।बकिया फुरसतिया पोस्ट पढ़ने की फुरसत सिर्फ फुरसतियाजी को ही होगी।

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  3. डा. साहब की खैनी है तो हमारी चाय है..

    साहित्य-प्रेमियों का स्वागत है : कोई असाहित्यिक घुसा तो समझ ले!

    वैसे ये तो ग़ज़ब लिखा आपने..

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  4. शानदार चिट्ठाचर्चा...शानदार 'पसंद'...और सबसे शानदार फोटो.

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  5. "हार जीवन का अंत नहीं है! : तब क्या? एक जीवन हजारो हार का स्कोप देता है।"

    एक हार हजारों जीत के द्वार खोल सकता है -- नजरिया सही हो तो!!!

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  6. अज दी चिठ्ठाचर्चा मस्त रई जी- मानस ते अनिल भैया ते बौत वदिया हैगे ने जी। अलोक जी ते हमेशा ही सही कैंदे ने जी। एस वारी भी सही बोले, वन लाइनर दा बोलबाला होणा है, तुसी वेख लेना॥रखड़ी दी फ़ोटो वदिया है जी

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  7. तिरंगे को झाड़ू में बांधकर फ़हराया: जिम्मेदार लोगों को बख्शा नहीं जाएगा! सटीक जवाब। चलते रहिए

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