यमुना भी राष्ट्रीय संपत्ति है, जो किसी कारपोरेट के पास जा सकती है। देश की जमीन, नदी, समुद्र से निकलने वाली गैस, कच्चा तेल भी राष्ट्रीय संपत्ति है, जो किसी की निजी संपत्ति हो सकती है। हो क्या सकती है, हो गयी है। रिलायंस इंडस्ट्रीज से जैसे संकेत मिल रहे हैं, उनसे साफ होता है कि यह कंपनी देश की ऊर्जा जरुरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण रोल निभायेगी। गैस के मसले में इस कंपनी की भूमिका महत्वपूर्ण होने वाली है। पर गैस भी रुकी रह सकती है, भूमिका भी रुकी रह सकती है। बल्कि रुकी ही हुई है।
बतौर विश्वविद्यालय संवाददाता सुशील आज से जुड़े । हर सोमवार छपने वाली ‘विश्वविद्यालय की हलचल’ से सिर्फ़ हलचल नहीं मचती थी । विश्वविद्यालय के कर्मचारियों , अधिकारियों और शिक्षकों द्वारा ‘अवकाश यात्रा छूट ( Leave Travel Concession ) में व्यापक भ्रष्टाचार की खबर सुशील ने छापनी शुरु की । कार्रवाई का आदेश जारी करने के पूर्व तत्कालीन कुलसचिव ने खुद एल.टी.सी. की रकम लौटाई - यह भी खबर बनी ।
सुशील त्रिपाठी को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।
बस्तर के साल वनों में काफी भीतर कभी-कभार पहाड़ी मैना दिख ज़रूर जाती है, लेकिन ये अब लगता है विलुप्त होने की कगार पर है। यही हाल रहा तो बहुत ज़्यादा दिन बाकी नहीं रहे जब लोग कहा करेंगे कि बस्तर में पहाड़ी मैना मिला करती थी। वो हू-बहू इंसानों की तरह बोलती थी। हालाकि राजकीय पक्षी घोषित होने के बाद उसकी सुध ली जा रही है, मगर सरकारी काम कैसा होता है ये सबको पता है।
उनके श्रीमुख से
एक लाइना
- तुम बहुत दुबले हो, इज दिस राईट फौर यू? :कि पेपरवेट अपने सर पर रखकर चला करो।
- जो दीखता हे वो बिकता है: बोलो खरीदोगे?
- खूबसूरत मोड़ देता है.....: और हम मुड़ जाते हैं!
- महाभ्रष्ट हूँ क्या कर लोगे ?:हम क्या करेंगे भाई जो करना है आपै करोगे!
- चार सौ बीसी करी थी :जेब तब मेरी भरी थी!
- तेरे चेहरे पर मेरी झलक कोई न देख ले, कसम है तेरे अश्को को शंकर बन पी लूँगा. : ...और अश्ककंठ कहलाऊंगा!
- मैं रोज़ नयी तकलीफ़ें बुनता हूँ : बहुत जानलेवा काम है भाई!
- मिलेगी एक दिन मंज़िल....! : तब फ़िर एक कविता लिखेंगे!
- संत के लिये सब कुछ जायज है : और फ़िर अगर संत बापू आशाराम तो क्या ही कहने!
- बंद करो धर्म के नाम पर यह हिंसा: इसके लिये और तमाम दूसरे नाम मौजूद हैं!
- धूम्रपान पर कड़ी पाबंदी : के कड़कपन का इम्तहान शुरू
- नेताजी पर भारी पड़ी पुलिस:और उनको लादकर हमीदिया अस्पताल में सुपुर्दे बिस्तर कर दिया
- एक क्राइम रिपोर्टर की कविता :एकदम निर्दोष है!
- सिगरेट पीना मना है :क़ानून लागू कराने की अदा कुछ वैसी ही है जैसी सिगरेट पीने की अदा होती है!
- तू चल मैं जन्मजन्मांतर के पाप काट कर आता हूं : लोग यहां मलाई काट रहे हैं और डा. साहब आप पाप काटने के चक्कर में हैं
- अमर सिंह तुम पागल हो गये हो : अधूरी जानकारी के आधार पर कभी बयान नहीं देना चाहिये
- क्या मिलेगा तुम्हें मुसलमानों को धोखे में रखकर ! : हम केवल अफ़रा-तफ़री चाहते हैं और किसी बात का लालच नहीं हमें
- मुश्किल काम है नकल निकालना, अदालत से : रागदरबारी का लंगड़ निपट गया नकल निकलवाते -निकलवाते
- बिग बॉस की फूहड़ता पर रोक लगे ! : बिग बास में फ़िर बचेगा क्या?
- मैडम कभी लाइन में नहीं लगती... : क्योंकि लाइन में लगने के लिये और लोग हैं
- मुर्गी का कभी न पेट खोलो : वर्ना मुर्गी मर जायेगी!
- टिड्डे का दिन - ||रिमोट <> चूहा|| : हमारे-आपके दिन कब बहुरेंगे?
मेरी पसंद

साल के सबसे अंधेरे दिनों ने
बन जाना चाहिये सबसे साफ़.
मुझे तुलना के लिए शब्द नहीं मिल रहे
- कितने मुलायम, कितने प्यारे हैं तुम्हारे होंठ
मुझे देखने को मत उठाना अपनी निगाह
ताकि मैं जीवित रह सकूं
वे सबसे उम्दा ज़हर की शीशियों से भी हल्की है
और मेरे वास्ते उतनी ही घातक
अब समझती हूं मैं, कि हमें शब्द नहीं चाहिये होते
कि बर्फ़ लदी टहनियां हल्की होती हैं, और
बहेलिये ने
नदी किनारे फैला लिया है अपना जाल!
अन्ना अख़्मातोवा, फ़ोटो और कविता कबाड़खाना से साभार
और अंत में
चिठ्ठा चर्चा बन पड़ी, बढ़िया दस्तावेज।
हिन्दी में जो हो रहा, रहे अनूप सहेज॥
रहे अनूप सहेज, यहाँ का गड़बड़झाला।
लिख डाला इतिहास,जवाब उन्हें दे डाला॥
सुन‘सिद्धार्थ’ गज़ब-लिखवइया निकला पठ्ठा।
चर्चा की चर्चा में लिखता चौचक चिठ्ठा॥
प्रति टिप्पणी: सतीशजी आप पता नहीं किन करता-धरताओं के बारे में कह रहे हैं लेकिन यह तो शाश्वत सत्य है कि पाठक बादशाह होता है। अपनी मर्जी/मौज का मालिक। जो उसको पसंद आयेगा वह पढ़ेगा। नहीं जमेगा निकल लेगा। बड़े-बड़े करता-धरता अपना भरता समेटते रहते हैं।
प्रति-टिप्पणी हमने लिखा फ़िलहाल की चिट्ठाचर्चा मेरी नजर में मेरी समझ में बावजूद तमाम कठिनाइयों के आज जिस रूप में चिट्ठाचर्चा है उसी रूप में चलती रहनी चाहिये। अगर संभव हो तो और साथी चर्चाकार जुड़ सकें तो बेहतर। दिशानिर्देश और कितने साफ़ चाहिये डा. साहब? इस जानकारी को दुहाई न समझा जाये भाई। आगे की सुधि लेने के लिये पीछे का इतिहास टटोला गया। यह जो उनके श्रीमुख से लिखा वह कल इतिहास को ही टटोलते हुये मिला। बहुत बार आपका इतिहास आपके आगे का भूगोल तय करता है।
जब तक कमेन्ट पूरा किया डॉ अमर का कमेन्ट आ चुका था सो अपना कमेन्ट दोहराव करता महसूस हुआ फिर भी रचना सिंह
प्रति टिप्पणी: चूंकि सतीशजी और डा.अमर कुमार की बात का जबाब दिया जा चुका है अत: कमेंट दोहराना उचित नहीं होगा!
टिप्पणी-प्रति टिप्पणी के चलते चिठ्ठा-चर्चा स्वयं चर्चा का केन्द्र हो गया है!
जवाब देंहटाएंअच्छा है लोग बहुत रस ले रहे हैं। इसकी पिछली पोस्ट का स्टैटकाउण्ट क्या रहा, बताने पर ज्यादा अन्दाज लगेगा कि लोग कितना झांक रहे हैं इस पर!
एक लाइना का जवाब नहीं । बहुत अच्छा लगा पढ़कर
जवाब देंहटाएंहर इतवार ऐसी ही फुरसतिया चर्चा होती रहे। आज की चर्चा बहुत सुंदर है, और शिवम् भी।
जवाब देंहटाएंभाई शुक्ल जी आज भी सुपर हिट चिठ्ठा चर्चा और खासकर मेरी पसंदीदा एक लाइना ! गजब की एनर्जी है आपमे ! कल की व्यस्तम आपाधापी फ़िर रात को एक पोस्ट और अब सुबह फ़िर हाजिर ! बहुत धन्यवाद आपको और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंवास्तव में,एक ऎत्तिहासिक पोस्ट..
जवाब देंहटाएंठीक ही है,
हम सब मिलकर इतिहास न भी रच रहें हों,
तो इतिहास बनते हुये देखने की भागीदारी तो निभा ही रहे हैं !
निःसंदेह, एक आँख खोलने वाली,
या फिर, थोड़ा लिखा समझना ज़्यादा..
बल्कि आँखों को ज्योति प्रदान करती पोस्ट !
एक बाल-बच्चेदार पोस्ट, कड़वा कड़वा थू... मीठा मीठा गप्प..
नहीं नहीं, सच कह रहा हूँ ( पढ़ें लिख रहा हूँ )
पोस्ट वाक़ई ऎतिहासिक है,
यह कोई मीठा मीठा गप्प नहीं..
मुझे सच महाशय का जिक्र करना चाहिये था क्या ?
सच तो एक छलावा है,
सच महाशय पहले भी जाँचे जा चुके हैं,
उनकी प्रोफ़ाइल उनके छलिया होने का संदेश अनायास नहीं, बल्कि सप्रयास दे रही है
एक और घोस्ट बस्टर, माँ भवानी आदि आदि..
यह 'एक दो तीन.. और लो, हो गया' बड़ा भरमाता है, गुरु
पर, इनका आई.पी. ऎड्रेस तो सच ही होगा, न गुरु ?
फिर तो, चल खुसरो घर आपनो..
बहुत टाइम खोटी हो रहा है
यह अज़दक कहाँ काम लगाये पड़े हैं, हो ?
ख़बर मिले तो सूचित करना..
कल फिर आऊँगा, बाय !
पुराने हिन्दी ब्लॉग लेखकों को उनके किए कार्य का सम्मान मिलना ही चाहिए ! मैंने आपके और तरुण जी के पुराने लेख पढ़े हैं आप लोगों का कार्य सराहनीय है !
जवाब देंहटाएं" हम लाये हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के ...
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभल के .."
नाविक को इज्ज़त हर हाल में मिलनी चाहिए मगर खेद है जब आपसी मतभेदों की चर्चा खुले में की जाए ... इतिहास के जानकार होने के नाते आप लोगों की, बहुत सी समस्याएं हो सकती हैं, मगर वह आपलोग संकेतों में ही कहें और आप लोगों की मेहनत से बनें, इस जबदस्त मंच को ! खेमों में न बाँटें !
यह मेरी विनती है, आशा है बुरा न मानेंगे !
सतीशजी, आपकी सदाशयता के लिये मैं आपका आभारी हूं। आपकी सलाह का बुरा मानने की कोई बात ही नहीं है। लेकिन यह कहना चाहता हूं कि हम लोगों की आपस में कॊई समस्या नहीं। न कॊई आपसी मतभेद। कम से कम हम चर्चाकारों में ऐसे कोई खेमे नहीं हैं! न जाने कैसे आपको यह लगा! और जहां तक रही बात सम्मान की तो ऐसे कोई क्रांतिकारी काम नहीं किये हमने जिसके लिये जिसके लिये हमें सम्मानित किया जाये। यह मात्र संयोग है कि हम यहां पहले आ गये बस्स!
जवाब देंहटाएंप्रत्यक्षाजी के ब्लाग की चर्चा पेपर में बधाई उनको। ये चर्चा अच्छी लगी कुछ कुछ ऐसी ही होती रहे तो बेहतर। वन लाइनर और टिप्पणी पर प्रति टिप्पणी अच्छे रहे। अपनी पोस्ट पर लेकिन आपका ये कमेंट समझ में नहीं आया जरा रोशनी डालेंगे क्या आप।
जवाब देंहटाएंएक लाइना पसंद आयी!!प्रत्यक्षा जी को बधाई!!
जवाब देंहटाएंआपको आभार ॥हमारा प्यार॥चिठ्ठा परिवार!!
और अब नमस्कार
दीपक
चिट्ठा-चर्चा" के बहाने :एक चर्चा और !
जवाब देंहटाएंhttp://sanskaardhani.blogspot.com/2008/10/blog-post_05.html
aapakee post se prerit hokar taiyaa hai
aabhaaree hoon
टिप्पणी-प्रति टिप्पणी के चलते चिठ्ठा-चर्चा स्वयं चर्चा का केन्द्र हो गया है!
जवाब देंहटाएंएक लाइना ...क्या बात कही है आपने........बढ़िया.....
प्रत्यक्षा जी को बधाई!!
चिट्ठा चर्चा के संचालकों और समस्त पाठकों को नवरात्रि की कोटि-कोटि शुभकामनाएं। मां दुर्गा आपकी तमाम मनोकामनाएं पूरी करें।
यूं ही लिखते रहें और दूसरों को भी अपनी प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित करते रहें, सदियों तक...
प्रत्यक्षा जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा, संतुलित जबाब.
बधाई वं शुभकामनाऐं.
चौचक चर्चा के लिए शुक्रिया...।
जवाब देंहटाएंखतरा तो आप मोल ले ही चुके हैं।
प्रत्यक्षा को बधाई ...
जवाब देंहटाएंप्रति टिप्पणिया बहुत धारधार रही.. आनंद आ गया..
जवाब देंहटाएंजानलेवा! क्या बात है अगली कविता कुछ इसी पर दूँ तो शायद बेहतर हो।
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