शुक्रवार, नवंबर 14, 2008

मैं ब्लॉगिंग का मठाधीश बोल रहा हूं

एक बार एक बडे आलोचक ने चिट्ठाकारी को छपास की बीमारी के मारे हुए लोगों की जगह कहा था ! लेकिन आज हम देख रहे हैं मेनस्ट्रीम मीडिया के पत्रकार , अखबार में लिख लिखकर पक और जनता को पका चुके लोग ब्लॉग लिखने पर उतर आए हैं ! इसलिए ब्लॉग की इस अजीब जगह के चुंबकपने पर नए ब्लॉगगर अपनी कलम से ज़रूर कुछ कुछ ब्याजनिंदा या ब्याजस्तुतिमय सा लिख पडते हैं ! जैसे कि विवेक जी ने इस कर्म को फुरसतिया टाइप टाइमपास कहते हुए लिखा है -

 

इण्टरनेट बिना रक्खा है बुद्धू बक्से जैसा ।
हम भी बुद्धू यह भी बुद्धू है जैसे को तैसा ॥
बुद्धू बुद्धिमान क्या दोंनों अलग अलग होते हैं ।
इनमें मेल खूब रहता है साथ साथ सोते हैं

एक अन्य ब्लॉगर का कहना है कि इंटरनेट प्रेमरोग से भी बडा लती और रोगी बनाने वाला मामला है! मतलब ब्लॉगिंग वो लड्डू है जो निगला भी न जाए और उगला भी न जाए !

हिंदी ब्लॉगिंग में साहित्य के लिए प्रेम दिखाई देता है पर साहित्यकारों और आलोचकों के लिए अभी यह नीची दुकान का लड्डू ही ब्वना हुआ है जिसे चखने तक से बीमार होने के चांसेज़ हो सकते हैं ! मज़ाक नहीं कर रही हूं ऎसा मैं अपने ब्लॉगिंग पर मेरी रिसर्च फेलोशिप और उसके बाद के अनुभवों के आधार पर कह रही हूं ! जब किसी सेमिनार में भाग लिया है या दो इंतरव्यूहों का सामना किया है ब्लॉगिंग पर ही सवाल उठे हैं !  इंटरव्यूह के लेवैइये -हिंदी के बडे लेखक वगैरह ही हुए है!  सवालों के दौर के दौर चले हैं और मुख्यधारा लेखन करने वालों के दिल में हिंदी ब्लॉगिंग को लेकर तनाव ,उपेक्षा और मखौल का भाव ही दिखा है !  अपने जवाबों में मैंने कहा कि ब्लॉगिंग में इससे उलत स्थिति है 1 वहां साहित्य और मुख्यधारा लेखन के लिए गहरा लगाव और आत्मीयता दिखती है ! कबाडखाना को लीजिए ! वहां हिंदी साहित्यकारों की कोसानी में हो रही बैठक की जानकारी दी

गई है ! आर अनुराधा ने चोखेरबाली पर साहित्यकार नादिन गार्डिमर के आगमन का स्वागत किया है  !

खैर हम तो अजदकी मुद्रा में यह भी सोच लेते हैं कभी कभी कि

पर्याप्‍त मात्रा में बगलों को झांक चुकने के पश्‍चात् मौलवी साहब मुझसे मेरा परिचय पूछते हैं. मैं हंसते हुए जवाब देता हूं कि वे मदरसों के मठाधीश हैं, मैं ब्‍लॉगिंग का हूं!

मीडिया इतना बुरा भी नहीं है बाज़ार कभी कभी अच्छी बातें भी कर लेता है ! यकीन नहो तो मसिजीवी की पोस्ट पर खुद ही पढ लीजिए

 

कभी कभी विज्ञापन भी ताजगी से भर सकते हैं। मुद्रा विज्ञापन ऐजेंसी इन दिनों यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का एक कैंपेन देख रही है। 'आपके सपने सिर्फ आपके नहीं है'। इसी क्रम में 'दीदी' विज्ञापन भी देखने को मिला। बहुत बौद्धिकता झाड़नी हो तो हम इसे रिश्‍तों का बाजारीकरण वगैरह कहकर  स्‍यापा कर सकते हैं पर मुझे यह विज्ञापन आकर्षक लगा। अक्‍सर बहनों के आपसी प्रेम पर रचनात्‍मक ध्‍यान कम जाता है, शायद इसलिए कि इस रिश्‍ते में आर्थिक, सामाजिक व अन्‍य दबाब अन्‍य रिश्‍तों की तुलना में इतने कम हैं कहानी में ट्विस्‍ट कम होता है और इसी वजह से ये रिश्‍ता इसकी गर्माहट और आनंद भी नजरअंदाज हो जाता है।


ये लोग बम क्यों फुटाते हैं ?  अमर जी पूछते हैं इसका जवाब दिया है  दरवार ब्लॉग में धीरू जी ने ! अंशुमाल जी ने धर्म और आतंकवाद पर विचारणीय लेख लिखा है -

बातें आप कितनी ही बड़ी कर लें। कितने ही नियम-कानून बना दें लेकिन धर्म का धंधा चलता रहेगा और आतंकवाद को खाद-पानी ऐसे ही मिलता रहेगा। कल तक मुस्लिम आतंकवाद का हो-हल्ला था आज हिंदू आतंकवाद बिल्कुल नए रूप में हमारे सामने आ खड़ा हुआ है। कल को किसी और धर्म का आतंकवाद हमारे बीच आ जाए क्या कहा जा सकता है! इसे सिर्फ रोकना नहीं जड़ से ही खत्म करना होगा। क्या धर्म से अलग होकर हम ऐसा कभी कर पाएंगे?

 

वैसे अब चर्चा लंबी चौडी -सी लगने लगी  है तो क्यों न फुरसतिया टाइप वन लाइनर ठेल डालूं ! पसंद आऎ तो टिप्पणी ज़रूर दीजिएगा न पसंद आऎ तो नाराज़ मत होइएगा -


 

शादी के पहले टूटी सगाई - शादी के बाद टूटती तो अच्छा था :)

 भाई ब्लॉगरी करनी है तो डटकर करो –   वरना चैन से सोवो और सोने दो

बताओ तो कौन हूं मैं  -  मतलब पहिचान कौन  

क्या फिर लौटेगा आशिकी का दौर -  हमसे का पूछ्ते हो भाई हमने तो कभी की नहीं आशिकी , कसम से

अपना ब्लॉग मेरे ब्लॉग में जोडें -- वरना का कल्लोगे ?

अब पंछी क्यों नहीं आते - क्या बताऎ ये तो पंछियों का साक्षात्कार लेने के बाद ही पता चलेगा

वन मिनट प्लीज -    श... लेट पप्पू वोट 

दिल्ली हाट भाग  1 जानने वालों को पहचाना  -  और न जानने वालों को नहीं पहचान पाए

मधु मुस्कान  -     को बिन मोल बिकात नहीं सब कोई लहे मुसकान मिठाई

 जीवन बीमा के प्रीमियम की राशि सीधे बीमा निगम को जमा कराएं, एजेंट को दी गई राशि की जिम्मेदारी निगम की नहीं - हाय दइया जब टाइटल का ई हाल है तो पोस्ट कित्ती छोटी होगी

लगता है पतझड बीत गया - आपको कैसे पता लगा सर ?

स्कॉच व्हिस्की के प्रकार -    उइला !! हिंदी ब्लॉगिंग में सुरूर आ रहा है !

दुनिया का मेला मेले की दुनिया -   आपका स्टाल नंबर क्या है बताऎगे प्लीज़

 

 

 

 

नए चिट्ठे, चिट्ठाजगत के सौजन्‍य से-

 

1. जनमानस   - चिट्ठाकार: पिंटू

2. लाइफ मज़ेदार    चिट्ठाकार: अवतार मेहर बाबाब

3. बस यूँ ही   चिट्ठाकार:पूनम

4. भोपाल पुलिस  चिट्ठाकार: प्रकाश

5. काहे को ब्याहे बिदेस....   चिट्ठाकार: नीरा

6. डा. कमल जैन  चिट्ठाकार: डा. कमल जैन

7. थिंकर  चिट्ठाकार: थिंकर

8. स्‍पेशल सिटीजन इंडिया चिट्ठाकार: अमृतसिंह

9. विदिता चिट्ठाकार: एसएम

10. एक कोना मेरा अपना चिट्ठाकार: राजीव रत्‍नेश

11. कोशी लाइव चिट्ठाकार: विवेक

12. आए एम अज़ीब  चिट्ठाकार: पुनीत

13. न्‍यूज अड्डा  चिट्ठाकार: मसरूर

14. सार्थक  चिट्ठाकार: सार्थक

15. हक़ बात  चिट्ठाकार: SALEEM AKHTER SIDDIQUI

16. कुछ इधर की, कुछ उधर की   चिट्ठाकार: पंडित डी के शर्मा 'वत्स'

 

प्यारा सा कार्टून बामुलाहिज़ा फरमाऎ -

 

[cartoon1.JPG]

                                                               और अंत में - भूल चूक लेनी देनी

19 टिप्‍पणियां:

  1. आज के स्टार ब्लॉग
    aap hee nikalee
    aaz kee star charchakar
    BADHAIYAN

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  2. मौलवी साहब के मुकाबले में कोई मठाधीश ही खडा हो सकता है. फिर चाहे वो ब्लागिंग का मठाधीश ही क्यों न हो....:-)
    चर्चा बहुत बढ़िया लगी. एक लाईना भी पसंद आई. नाराजगी का कोई कारण नहीं है.

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  3. जी हमारा यह कहना है,
    कि मैं अपनी यायावरी टूर से लौट आया हूँ,
    अब फिर आपसब को खलने के पूरी तैयारी से..
    आज की चिट्ठाचर्चा पर कुछ नहीं कहूँगा,
    क्योंकि मेरे पीछे कतार में खड़े टिप्पणीकार इसे बहुत अच्छा कहने से नहीं चूकेगे,
    क्योंकि यह वाकई में बहुत अच्छी तरह सँवारी गयी चर्चा है !
    रही बात मठाधीश की, तो...
    तो इसपर भी मैं कुछ नहीं बोलूँगा !
    अपने कबीले में शामिल स्टार-ब्लागर से मिलने का प्रसंग छेडूँ,
    तो स्वामी नाराज़ हो जायेंगे, जी !
    आख़िर को हम भूल जाते हैं कि..
    हम सेवक तू स्वामी क्या लागे मेरा..
    अब तक तो मैं अभी तक सोचता आया था,
    कि सभी अपने अपने घर में शेर हैं..
    और सभी अपने अपने मठ के मठाधीश !

    यही मैं सोचते रहना भी चाहता हूँ,
    अब आप क्या कहते हैं, नीलिमा जी ?

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  4. नए चिट्ठों के लिंक के अंत में ")" हटा दें।

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  5. एक लाइना बहुत बढ़िया लगी ..चर्चा शानदार

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  6. बढ़िया चर्चा रही जी... बाकी बहुत सी बाते तो गुरुवर अमर कुमार जी कह ही गये है... मिश्रा जी की तरह हमे भी कोनू नाराज़गी नही..

    "का कल्लोगे ? " बहुत पसंद आया

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  7. मैं आप को मठाधीश-स्टार ब्लागर [{(नही )}] मानता हूँ | का कल्लोगे ?

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  8. ब्लागिंग निगले बने न उगले बने! जी हाँ, ब्लागिंग भी ब्याहिंग जैसा ही है, ब्याह करने वाला भी परेशान, न करने वाला भी... बधाई...

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  9. आप की चर्चा का अंदाज फुरसतिया जैसा क्यूँ है ? बुरा न मानें फुरसतिया ने तो एक लाइना लिख कर नहीं दिए आपको ? बेहतरीन चर्चाकार है जिसने भी की हो .हमें क्या . बुड्ढा मरे या जवान मुझे हत्या से काम .

    डाक्टर जी के लौट आने की मुझे खुशी है .

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  10. नए चिट्ठाकारों के लिंक सुधार दिए हैं !

    विकेक जी ,वनलाइनर में फुरसतिया पुराने गुरू ठहरे उमका क्या मुकाबिला ! मेहनत हमीं ने की है अब क्रेडिट उन्हें जाए तो कोई गम नहीं ! गुरुदक्षिणा समझकर रह जाउंगी !:)
    अमर जी , मैं क्या कहूं फिलहाल आपकी कविता का आनंद ले रही हूं !

    सभी टिप्पणिकारों का चर्चा पचाने के लिए धन्यवाद !

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  11. ना जानने वालो को भी उस दिन पहचाना गया था , विवरण मे उनका भी जिक्र आएगा इंतज़ार करे

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  12. विवेक सिंह की कही बात में दम है , एक लायना मजेदार हैं !

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  13. सभी टिप्पणिकारों का चर्चा पचाने के लिए धन्यवाद

    --कहाँ पच पाई जी..इतनी स्वादिष्ट रही कि ज्यादा दबा गये और बदहजमी हो ली है.

    -बहुत बढ़िया.

    क्या फिर लौटेगा आशिकी का दौर - हमसे का पूछ्ते हो भाई हमने तो कभी की नहीं आशिकी , कसम से

    --किताना ऊँचा झंडा उठा कर कहा. वो तो चुनाव का समय है तो मौसमानुरुप बातें धक जा रही हैं. :)

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  14. चिट्ठाचर्चा में बदलती कलम निश्चित ही पाठकीय उत्सुकता बढाती है। थोडा स्वरूप भी बदलता रहे तो रोचकता बनी रहेगी। मेरी शुभकामनाएं।

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  15. बड़े बड़े आलोचक अब भी ब्लॉग को गाहे बगाहे धकियाते है ...ओर ब्लॉग लिखने वाले पत्रकार में से कुछ एक विवादों को अब अब भी टॉर्च की तरह इस्तेमाल करते दिखायी देते है...जब चाहा जला दिया ... .. बिहार या किसी दूर सदूर प्रदेश में बैठे किसी आदमी का दुःख अमेरिका या असम में बैठा इंसान कैसे महसूस करता है ..बिना देखे -जाने एक संवाद की प्रकिया का शुरू होना ....शायद यही ब्लोगिंग है.........सुबह की चाय के साथ अब अखबार पढ़कर उससे असहमत होकर आप कही किसी कोम्पुटर में अपनी असहमति दर्ज तो करा सकते है.....यही ब्लोगिंग है.....इस भागती दौड़ती जिंदगी में रोजी रोटी कमाने में आप जब भूले भटके गुलज़ार का कोई गीत सुनते है या जगजीत को सुनते है ...तब आप भी कागज पर कुछ उकेर देते है.......ये आपकी संवेदनाये है ....आपके अहसास है......आप कोई गुलज़ार नही है.......पर इन्हे उकेर कर आप एक राहत सी महसूस करते है.......यही ब्लोगिंग है......
    अब आप मठाधीशो पर निर्भर नही है .....यही ब्लोगिंग है

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  16. Thik hai Bhul chuk next time leni deni.....charcha parcha sab pacha gaye.

    Ek lina bhi gajab aur charcha bhi gajab....bahut khoob

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  17. बेहतरीन! बहुत अच्छा लगा चर्चा देखकर। असल में दिन में कई बार देख लिये इसे। हर बार और अच्छा लगा। फ़ुरसतिया से लिखवाने की क्या जरूरत? नीलिमाजी खुदै इत्ता अच्छा लिख लेती हैं। इंटरव्यू कथा पूरी लिखिये न!

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  18. कई दिन बाद लौटा हूँ और यहीं से शुरू कर रहा हूँ -इतना कुछ छूट गया है की अब केवल गणेश परिक्रमा ही की जा सकती है -ब्लागजगत के मठाधीश की ..और मेरे द्वारा विगत सप्ताह से जो कुछ पढा लिखा गया हो उसे पढा हुआ मान लिया जाना चाहिए चाहे वह समीर चिंतन हो या सूंस चिंतन (सोयिंस ) जय हो ...जय हो !

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