आज की खास खबर रही विवेक का धन्यवाद प्रस्ताव!! छह लाइन में विवेक ने लिखा:
आपके साथ इतना समय बिताया !
समय की माँग है कि अब विराम लूँ !
आप सब की याद मुझे आती रहेगी !
मेरे लायक कोई सेवा हो तो मेल पर मिलें !
ईश्वर ने चाहा तो फिर बिलाग लिखूँगा !
आप सभी को मेरा नमस्कार !
प्रचलन के अनुसार विवेक को मनाने के लिये लोग दौड़ पड़े। यह चर्चा लिखने तक ४८ टिप्पणियां आ चुकी थीं। उसमें एक अनामी और एक महेन्द्र मिश्रजी को छोड़कर सबने विवेक से लौट आने का आग्रह किया है।
देखिये विवेक कब टंकी से उतरते हैं और दुबारा कब सक्रिय होते हैं।
उधर बवाल जी को पता ही नहीं है कि विवेक ने पोस्ट काहे हटायी इसके बाद टंकी पर काहे चढ़े? देखो शायद इस बारे में कभी विवेक बयान जारी करें।
उधर एक सच्चे शुभचिंतक होने का सबूत देते हुये भाई महेन्द्र मिश्र ने चिट्ठाचर्चा वालों के लिये सद्बुद्धि की कामना करी है। तीन बार हमारी कल की चर्चा का लिंक देते हुये सद्बु्द्धि की कामना की है:
चिठ्ठा वालो को सदबुध्धि दे दो ....कम उत्पात मचाये
बिना किसी वजह के.. जबरन सलाह दे उंगली न उठाये
ब्लागिंग को असली आल्हा उदल पढ़ लो ....तुम भैय्या
नर्मदाचल के ब्लॉग वंदो को सलाह देकर... पेंच लड़वाए
इ में तुम्हारी भलाई नही कि. माँ नर्मदा पे उंगली उठाये.
इसी में तुम्हरी भलाई है भैय्या बेबजह उंगली न उठाओ
नर्मदे हर : माँ नर्मदा सदा सहाय करे. हर हर महादेव
फ़िलहाल अभी तक सद्बुद्धि की सप्लाई आई नहीं है लिहाजा ऐसे ही बिना बुद्धि के चर्चा कर रहे हैं। मजबूरी है!
बवाल जी ने लिखा:
पर लगता है ठीक तरह से WWF की कुश्तियाँ वगैरह नहीं देखते। भई देखना चाहिए वो भी। देखते होते तो यूँ रघुनाथ न होते। हा हा। नूरा कुस्ती का नाम नहीं सुने हैं का ?
अरे भाई ई सब नौटंकी हम सब जबलपुरिया कौनऊ कौनऊ की मौज लए की खातर किए रहे अऊ आप लोग समझत रहे कि आप हम लोगन की मौज लै रहे हो। ऎ बबुआ आल्हा-चिट्ठा तक मार दिए। हाहा। कौनऊ बात नाहीं भाई । जि का दुई बोल मा ही लच गई दुनिया सगरी, ऊ लचकदार की बातन माँ लचक हुईबै करी। द्याखा ई का कहत हैं जबलपुरी झटका (जोल्ट) हा हा ।
जबलपुर में ही आज विजय तिवारी’किसलय’जी का जन्मदिन मनाया जा रहा है। विजय जी को हमारी एक बार फ़िर से शुभकामनायें।
दो दिन पहले ज्ञानजी के ब्लाग पर आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री जी के उद्धरण की चर्चा/पड़ताल करते हुये अफ़लातूनजी ने लिखा/लिखना शुरू किया:
गद्दारों के इतिहास और राष्ट्रतोड़क राष्ट्रवाद की विचारधारा वाले समूह का प्रमुख औजार झू्ठ और अफवाहें फैलाना है । तानाशाही , संकीर्ण राष्ट्रवाद और साम्प्रदायिकता की उनकी मुहिम के साथ - साथ उनके संकीर्ण ‘हिन्दू राष्ट्र’ की अवधारणा में वर्णाधारित - पुरुषसत्तात्मक समाज का अक्स दिखाई देता है । इस विचारधारा के लिए हिन्दू-मुस्लिम एकता , जातिविहीन समाज और स्त्री-पुरुष समता के मूल्य सबसे बड़ा खतरा होते हैं । भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में न सिर्फ भाग न लेने अपितु उसका विरोध करने और अंग्रेजों का साथ देने के धब्बे से त्रस्त हो कर राष्ट्र की मुख्यधारा के आन्दोलन पर कीचड़ उछालने के प्रयास के सिवा उनके पास दंगे कराना रह जाता है ।
इस बारे में अफ़लातूनजी की आगे की पोस्ट का इंतजार करिये।
कुश ने कल लिखा:
:हमने कई बार देखा होगा.. बच्चा नीचे गिरता है तब नही रोता है.. जैसे ही उसे कोई अपना दिख जाए वो रोना शुरू कर देता है.. अगर उस पर ध्यान नही दिया जाए तो और ज़ोर से रोता है.. और अगर आप ध्यान दिए बिना निकल जाए वहा से...... तो बच्चा चुप हो जाता है.. बच्चा हमेशा रो तो नही सकता ना...
कल चार फ़रवरी को चोखेरबाली का पहला साल पूरा हुआ। इस अवसर पर कल एक गोष्ठी का आयोजन किया गया है। इस मौके पर सुजाता लिखती हैं:हिन्दी मे पहली महिला ब्लॉगर पदमजा से चोखेरबाली तक का यह ब्लॉगीय सफर बेहद दिलचस्प रहा जिसका साक्षी यह विराट साइबर स्पेस है जिसमें हर गाली, हर प्रशंसा,प्रोत्साहन हर व्यंग्य, हर ताना,अपशब्द ,विरोध और निन्दा और साहस शताब्दियों के लिए दर्ज़ हो गया है। इस एक साल मे हिन्दी ब्लॉगिंग मे चोखेरबाली का क्या अवदान बनता है यह सब आप सुधी पाठक बेहतर बता पाएंगे।फिलहाल हम सभी बालियाँ इसे उत्सव की तरह मनाने के मूड मे हैं। लेकिन एक वैचारिक मंच की भूमिका अदा करते हुए गोष्ठी का आयोजन करके।
अनूप भार्गव काफ़ी दिन बाद कविता लिखते हैं:तुम्हारे होठों के गोल होने से शुरु हो कर
मेरे कानों तक पहुँचने का समय
एक युग के समान लगता है ,
किताबों में पढा था ,
प्रकाश की गति ध्वनि से तेज हुआ करती है ,
तुम्हारे आंखो से कहे बोल
मेरे कानों के लिये कहे शब्दों से पहले ही
मेरी आंख की कोर तक पहुँच कर रुक जाते है ।
ताऊ पहेली के विजेता प्रकाश गोविन्द का साक्षात्कार आप पढ़िये ताऊ के ब्लाग पर। देखिये:ताऊ : और इब लखनऊ मे कैसे पहुंचे?
प्रकाश गोविंद : पिता जी सरकारी सर्विस में थे और दंद - फंद में दक्ष नहीं थे तो नतीजतन पूरे परिवार को हर २ - ३ साल में किसी दूसरे शहर तबादले के रूप में भ्रमण का सु-अवसर मिल जाता ! यह सिलसिला प्रतापगढ़ , बिजनौर, झांसी, हमीरपुर, सुल्तानपुर, लखीमपुर, बहराइच , फैजाबाद, हरदोई, कानपूर इत्यादि से होता हुआ लखनऊ में आकर संपन्न हुआ !
ताऊ : मतलब आपने काफ़ी भ्रमण किया है. लखनऊ कैसा लगा?
प्रकाश गोविंद : सही मायने में लखनऊ की मिटटी ने सबसे बड़ा सहारा दिया ! ग्रेजुएशन व पोस्ट-ग्रेजुएशन लखनऊ विश्विद्यालय से पूरा किया !
एक लाईना
- पब और प्रार्थना :में ’प’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
- धन्यवाद साथियो ! :टंकी पर चढ़ने का मौका देने के लिये!
- चिट्ठाचर्चा:टिप्पणी/प्रतिटिप्पणी :सद्बुद्धि विहीन
- सभी ब्लागरों से निवेदन, कृपया इसे पढ़ें और मुझे सलाह दें :हम तो भाई बिना पढ़े सलाह देते हैं लेना हो तो बताओ
- गुलदस्ते के बहाने... एक स्त्री विमर्श :बहाने से स्त्री विमर्श करते हो, ये अच्छी बात नहीं जी!
- आदमी के पास आँत नहीं है क्या? : है लेकिन क्षमा करने वाली आंत नहीं है!
- कविता कब होती है :जब वो पोस्ट होकर टिप्पणियां पाने लगती है!
- आमदनी चौअन्नी ,खर्चा अढईया ! :अमेरिका में यही तो हुआ है भैया!
- भूख बढ़ाए जल जीरा :एक बार पियो तो सही!
- बहुत खतरनाक है यह तेल की धार :काहे डरा रहे हो यार!
- 20 रुपए में मौत सत्यापित ! :जिंदगी का दाम बताओ भाई!
और अंत में
आज बवाल भाई ने विवेक की पोस्ट पर सवाल किया:फिर अचानक क्या हुआ भाई ? फ़ुर्सतिया जी ने तो नहीं न कुछ कह डाला हमारे प्रिय भाई विवेक को।
इस पर हमको बचपन में सुनी एक कहानी याद आ गयी!:एक गांव से बारात गयी।जब बारात लड़की के गांव पहुंच गयी तो पता चला कि दूल्हे के कपड़े नहीं मिल रहे हैं।लोग परेशान।बारात चलने का समय होने वाला था।लोगों ने सोच-विचार कर एक दूल्हे जैसी ही कद-काठी के लड़के के कपड़े बारात की इज्जत का हवाला देकर दूल्हे को दिला दिये।लड़के ने कपड़े तो दे दिये पर उसे खल रहा था। किसी ने उत्सुकता वश उससे पूछा-दूल्हा कहां है ? वो बोला-दूल्हा वो बैठा है लेकिन जो पायजाम वो पहने है वो मेरा है।लोग हंसने लगे दूल्हे तथा बारात पर।इस पर बुजुर्गों ने उन्हें डांटा -ये बताने की क्या जरूरत है कि पायजामा तुम्हारा है?बारात की बेइज्जती होती है।कुछ देर बाद फिर किसी ने दूल्हे के बारे में पूछा तो वह बोला-दूल्हा तो वो बैठा है लेकिन जो पायजामा वो पहने है वो भी उसी का है।लोग फिर हंसे।दूल्हा शरमाया।बुजुर्गों ने फिर उसे डांटा-क्या जरूरत है तुमको पायजामें के बारे में बताने की?इस पर वह बहुत देर तक चुप रहा ।फिर कुछ लोगों ने जब उसे बार-बार दूल्हे के बारे में पूछा तो वह झल्लाकर बोला-दूल्हा तो वो बैठा है लेकिन उसके पायजामें के बारे में मैं कुछ नहीं बताऊंगा।
तो भैया विवेक से हमने ही अनुरोध किया था वो जबलपुर-डबलपुर वाली पोस्ट हटाने के लिये! विवेक ने हमारे अनुरोध को मानते हुये पोस्ट हटा भी ली। लेकिन हमने विवेक से किसलिये कहा था पोस्ट हटाने के लिये इस बारे में मैं कुछ नहीं बताऊंगा।
कल की चर्चा का दिन मसिजीवी परिवार का है लेकिन कल चोखेरबाली की वर्षगांठ मनाने में व्यस्त होने के कारण वे चर्चा न कर पायेंगे।
फ़िलहाल इतना ही! आपका समय शुभ हो!
ऊपर के कार्टून क्रमश: चंद्रशेखरजी और डूबे जी के ब्लाग से हैं। साभार!
गुड नाइट!
जवाब देंहटाएंये तो बडी जोरदार गुड नाईट चर्चा रही जी. हमने सोचा माईक्रो चर्चा होगी. शब्दों मे तो चर्चा के लिहाज से माइक्रो ही कही जायेगी. पर बडी जबरदस्त चर्चा है. आपने सब कुछ समेट लिया है. आज की जरुरत के लिहाज से वाकई लाजवाब चर्चा. बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ये टंकी वाला रास्ता बढ़िया रहा प्यारे विवेक जी.....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साथियों
जवाब देंहटाएंमैं भी चला विवेक के पीछे।
बहुत अच्छा रहा....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा रही भाई ....
जवाब देंहटाएंवाह कार्टून मज़ा आ गया!
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंकोई मुझको भी टँकी चढ़ा दे, फिर मेरा कमाल देख ले..
सुबराती.. बोले तो शुभरात्रि !
आदरणीय फ़ुरसतिया जी, वास्तव में आप जैसी मेहनत करना आसान नहीं। आप जो चिट्ठा चर्चा करते हैं, लाजवाब होती है। इतनी व्यस्तताओं के बीच आप वक्त निकाला करते हैं, इसके लिए बहुत बहुत आभार आपका। आज किसलय जी के यहाँ आपकी भी याद की गई और हिन्दी ब्ला॓गिंग के संवर्धन के लिए उपायों पर चर्चा हुई।
जवाब देंहटाएंऔर रही बात पयजामे की तो उसके बारे में हम भी कुछ नहीं बताऊँगा। हा हा
बढ़िया चर्चा. पायजामा किसका है, यह मत बताओ मगर सिलवाया कहाँ से, वो एड्रेस तो दे दो. :)
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा ! कार्टून भी बड़े मजेदार रहे ! एक टंकी वाले कार्टून की भी समय की मांग थी !
जवाब देंहटाएंवो दूल्हा वाला प्रसंग एक रजनीशी प्रवचन की याद दिला गया !
जवाब देंहटाएंया ईलाही ये माजरा क्या है, ये पानी की टंकी भी अक्सर खराब होती रहती है अक्सर किसी ना किसी को इसकी मरम्मत के लिये चढ़ना पड़ जाता है।
जवाब देंहटाएंन्य है महाराज अब अपने जनों को अपनी टंकी पे क्यो चडाते है आप ....भाई सब यह अच्छी परम्परा नही है . हा हा हा हा नर्मदे हर
जवाब देंहटाएंजै हो चिट्ठाचर्चा की।
जवाब देंहटाएंटंकी पे चढ़ना ब्लॉगरत्व को प्राप्त करना है..
जवाब देंहटाएंलोग बाग दूल्हे का ठिकाना उसी से क्यो पूछ रहे थे.. फिर शादी में आए है तो क्या दूल्हा भी नही पहचानते..