बुधवार, अप्रैल 15, 2009

लाईफ की छुपम छुपाई और टिप्पणी रुपी भ्रमर


बाबा भीमराव अम्बेदकर

कल संविधान निर्माता बाबा भीमराव अम्बेदकर जी का जन्मदिन था। इस मौके भारतीय समाज में उनके योगदान को याद करते हुये ब्लागर साथियों ने लेख लिखे।

विजय शंकर चतुर्वेदी ने बाबा साहब का परिचय देते हुये लिखा-
भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार एवं भारतरत्न बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर की आज ११८वीं जयन्ती है (१४ अप्रैल २००९). समाज ने उन्हें 'दलितों का मसीहा' की उपाधि भी दी है. भारतीय समाज में स्त्रियों की अवस्था सुधारने के लिए उन्होंने कई क्रांतिकारी स्थापनाएं दीं हैं. कहते हैं कि कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) का विचार डॉक्टर अम्बेडकर ही पहले पहल सामने लाये थे.

विजय शंकरजी ने एक अर्थशास्त्री के रूप में अम्बेदकरजी के कुछ विचार बताये:
डॉक्टर आंबेडकर जानते थे कि भारतीय जनता की भलाई के लिए रुपये की कीमत स्थिर रखी जानी चाहिए. लेकिन रुपये की यह कीमत सोने की कीमत से स्थिर न रखते हुए सोने की क्रय शक्ति के मुकाबले स्थिर रखी जानी चाहिए. इसके साथ-साथ यह कीमत भारत में उपलब्ध वस्तुओं के मुकाबले स्थिर रखी जानी चाहिए ताकि बढ़ती हुई महंगाई की मार गरीब भारतीय जनता को बड़े पैमाने पर न झेलनी पड़े. एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने आयोग के सामने कहा था कि रुपये की अस्थिर दर के कारण वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ती हैं लेकिन उतनी ही तेजी से मजदूरी अथवा वेतन नहीं बढ़ता है. इससे जनता का नुकसान होता है और जमाखोरों का फ़ायदा.


संतप्रकाश जी का मानना है कि अंबेडकर के साथ न्याय नहीं किया कांग्रेस ने|

डा. एस.बशीर ने अम्बेदकर जी के बारे में कविता लिखी है।

इस मौके पर भगवान दास द्वारा लिखी गयी किताब दलित राजनीति और संगठन का भी परिचय दिया मुकेश मानस ने।

कल बाबा साहब के जन्मदिन के मौके पर जौनपुर में एक दलित प्रत्याशी की हत्या कर दी गयी। इसके बारे में जानकारी देते हुये अफ़लातूनजी लिखते हैं:
आज बाबासाहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जन्मतिथि है । इस जन्मतिथि की पूर्व सन्ध्या पर उनकी विचारधारा की कथित धरोहर पार्टी बहुजन समाज पार्टी के जौनपुर से प्रत्याशी माफिया धनन्जय सिंह ने एक अन्य दलित नेता बहादुर सोनकार की हत्या कर पेड़ पर लटका दिया । बहादुर सोनकर एक अन्य दलित नेतृत्व वाली पार्टी इन्डियन जस्टिस पार्टी का उम्मीदवार था ।


अछूत
प्रेमचन्द गांधी ने दया पवार की आत्मकथात्मक कृति अछूत का विस्तार से परिचय दिया:
‘अछूत’ एक ऐसा आत्मकथात्मक उपन्यास है, जिसमें दया पवार और दगडू मारुति पवार का आपसी संवाद है और इस संवाद में चालीस बरस का लेखा-जोखा है। इन चालीस बरसों के विवरण में आपको महाराष्ट्र के एक गांव से लेकर ठेठ मुंबई तक यानी दया पवार के बचपन से लेकर प्रौढावस्था तक जिये गए त्रासद जीवन की दिल दहला देने वाली कथा पढ़ने को मिलती है। मां और नानी के साथ गांव में बिताए दिनों में सवर्णों की जूठन खाने से लेकर पग-पग पर अपमानित होने की अनंत यातना से गुजरना और आजादी के उस संघर्षषील दौर में डा. अंबेडकर के नेतृत्व में दलितों का संगठित होना, अत्याचार के विरूद्ध संघर्ष करना और पढ़-लिख कर आगे बढना, अर्थात कुल जमा हर मुष्किल में सामाजिक बदलाव को जारी रखना।


रंजना भाटिया ने अपने जन्मदिन के मौके पर अपने बचपन को याद किया:

रंजना भाटिया
बनानी है एक कश्ती
कॉपी के पिछले पन्ने से,
और पुराने अखबार के टुकडों से..
जिन्हें बरसात के पानी में,
किसी का नाम लिख कर..
बहा दिया करते थे ...
बहुत दिन हुए .....
गलियों में छपाक करते हुए
दिल ने वो भीगना नहीं देखा

रंजनाजी को एक बार फ़िर उनके जन्मदिन की मुबारकबाद!

अरविन्द मिश्र ने चुनाव प्रक्रिया के बारे में जानकारी देने वाली पोस्ट लिखी है:

वोटर कम्पार्टमेंट चारो ओर से ढंका रहेगा और आप गोपनीय तौर पर सामने बैलट यूनिट में अपनी पसंद के मतदाता सामने नाम और उसके चुनाव चिन्ह के सामने की नीली बटन को दबा दें -एक बीप की लम्बी आवाज आयेगी ! बस हो गया आपका मतदान ! और आप निकास द्वार से बाहर हो लें ! बस यही तो करना है मतदान में ! बिल्कुल न हिचकें और मतदान में जरूर हिस्सा लें ! सुरक्षा की भी अभूतपूर्व व्यवस्था हो रही है -लगभग सभी मतदान स्थल पर केन्द्रीय पुलिस फोर्स को तैनात किया जा रहा है !


विनीत कुमार ने उन लोगों के बारें में लिखा जो पोस्ट लिखकर उसकी सूचना आपको मेल से ठेल देते हैं। वे अपनी राय जाहिर करते हैं:
लेकिन मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि ब्लॉग पर अच्छा-बुरा,महान,घटिया जो मन में आए लिखा जाए लेकिन पोस्ट लिखकर फेरी लगाने का काम न हो तो बेहतर होगा। ऐसा करने से लोग बेहतर चीजों को भी बिना पढ़े डिलीट कर देते हैं,डिफैमिलिएशन का ये रवैया ब्लॉगिंग के लिए सही नहीं होगा।


जितेन्द्र भगत पोस्ट पर अपनी टिप्पणी में लिखते हैं:
एग्रीगेटर अपने आप में एक प्रकार की ऐड एजेंसी है, मेल पर आना घर में घुसकर पर्चा पकड़ाने जैसा है। आपकी बातों से सहमत।

इसी क्रम में शिव कुमारजी भी अपनी बात ले आये। उनको चिट्ठाजगत द्वारा नये ब्लागरों की सूचना देने वाली मेल

"इन्द्रजाल में नवपदार्पण करने वाली इन कलियों का टिप्पणी रूपी भ्रमरों द्वारा स्वागत करें!"
पर चिंतन किया और खूब किया। वे कहते भये:पूरी लाइन पढ़कर लगता है जैसे अति कोमल ह्रदय के ओनर किसी कवि ने रात में खूब तेल खर्च करके इस लाइन को गढा है. कुल मिलाकर घणी गाढ़ी लाइन है.
नवपदार्पण करने वाली कलियाँ! टिप्पणी रुपी भ्रमर. आहा!
लेकिन एक बात है. अति कोमल ह्रदय के इन कवि ने किसी अलग तरह के अलंकार का सदुपयोग कर डाला है. अब देखिये न. टिप्पणी हुई स्त्रीलिंग. भ्रमर जी हुए पुल्लिंग. ऐसे में टिप्पणी रुपी भ्रमर!
ठीक वैसे ही, चिट्ठा हुआ पुल्लिंग. कलियाँ हुई स्त्रीलिंग.
शायद ये ब्लॉग अलंकार है.


डा.अनुराग
डा.अनुराग अपनी स्टाइल में अपने आसपास की चीजों को देखते हैं:
जमाना अब "पोलिशड- कमीनो " का है …ओर कमीनियत की भी लिगेसी होती है ..खानदानी ....मुझे वर्मा का डाइलोग याद आता है .... लाखो की प्रेक्टिस छोड़ वर्मा जी किसी अकेडमिक इंस्टीट्युट से जुड़ रहे है …कुछ ओर नया करने की बात औरो की तरह मेरे पल्ले भी नहीं पड़ती ... पैसो से अलग नया क्या ??????
" क्यों " के सवाल पे ...बस यूँ ही ....का जवाब देते है......पर जमी जमाई प्रेक्टिस .इस उम्र में ?.......
जिंदगी जीने की कोई उम्र नहीं होती ... कुछ फैसले गज फीते से नाप -जोख कर तय नहीं किये जाते….
शाम की विजिट में साइन बोर्ड पे 'गोल्ड मेडलिस्ट "अलग चमक रहा है ,बचपन में "नैतिक -शिक्षा " ऑप्शनल सब्जेक्ट होता था .. अब भी ऑप्शनल ही है... सोचता हूँ हर साइंस के ग्रेज्यूवेट को डिग्री मिलते वक़्त इसका क्रेश कोर्स कम्पलसरी कराना चाहिए ...फिर हर ५ साल बाद रिवाइज़ ...



कुश
कुश भी डा.अनुराग के अंदाज में आइस-पाइस खेल रहे हैं (त्रिवेणी भी है भाई):
छोटा था तब सब छुपम छुपाई खेलते थे.. जब भी मेरी डेन होती मेरा बड़ा भाई कहता इसकी जगह मैं जाऊंगा.. और मैं बच जाता.. स्कूल से लौटते वक़्त भी अपना बस्ता उसी के कंधे पर होता था.. और कभी कभी तो मैं भी..

घर में छुपम छुपाई खेलते वक़्त उसे पता होता था कि मैं कहा छुपा हूँ.. पर फिर भी वो न ढूंढ पाने की ऐक्टिंग करता.. और तो और उसको मुझपे इतना भरोसा था वो अपनी गर्ल फ्रेंड से मिलने वाले गिफ्ट्स भी मुझसे छुपा कर मेरे स्कूल बैग में रखता.. उसे पता था मैं इसको कभी खोल कर नहीं देखूंगा..

वो छुपम छुपाई तो पीछे छूट गयी अब तो लाईफ खेलती है छुपम छुपाई.. इस खेल के अपने नियम है.. सबको अपनी डेन खुद लानी पड़ती है


ज्ञानजी सरकारी नौकरी करने वाले लोगों की आमधारणा (वे काम नहीं करते, ऐश करते हैं, केवल जबान हिलाते हैं, दफ़्तर में ब्लागिंग करते हैं) को बदलने के लिये मेहनत कर रहे हैं और कह रहे हैं:
जिनका सोचना है कि नौकरशाही केवल ऐश करने, हुक्म देने और मलाई चाभने के लिये है; उन्हें हमारे जैसे का एक सामान्य दिन देखना चाहिये।


कल चिट्ठाचर्चा में मां पर लिखी कविताओं का जिक्र किया गया था। तरुण ने इस मौके पर दादी मां फ़िल्म का गीत पेश किया है। आप उनके ब्लाग पर जाकर सुनिये। अच्छा लगेगा। ये लाइनें तो मुझे बहुत अच्छी लगती हैं:
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी


इसी क्रम में फ़िराक गोरखपुरी द्वारा मां पर लिखी गयी लंबी नज्म भी देखें। यह लंबी नज्म फ़िराक़ गोरखपुरी ने बीस साल के नौजवान की भावनायें बताते हुये लिखी है जिसने अपनी माँ को पैदा होते ही खो दिया था। वे लिखते हैं:
वो माँ ,मैं जिसकी महब्बत के फूल चुन न सका
वो माँ,मैं जिसकी महब्बत के बोल सुन न सका
वो माँ,कि भींच के जिसको कभी मैं सो न सका
मैं जिसके आँचलों में मुँह छिपा के रो न सका
वो माँ,कि सीने में जिसके कभी चिमट न सका
हुमक के गोद में जिसकी कभी मैं चढ़ न सका



चर्चा परिचर्चा


पिछले सप्ताह डा.अमर कुमार ने चिट्ठाचर्चा के संबंध में निम्नसुझाव दिया था और उसके लाभ भी गिनाये थे:
हर टिप्पणीकार के लिये अपनी टिप्पणी में एक पढ़े हुये पोस्ट का लिंक और उसके साथ उस पोस्ट पर अपनी मात्र दो पंक्तियाँ जोड़ कर देना अनिवार्य समझा जाये .. अन्यथा उनकी टिप्पणी हटा दी जायेगी ! हाँ, मुझ सरीखे लाचार टिप्पणीकार को यह छूट मिल सकती है ! इससे लाभ ?
१. चर्चा का दुरूह का कार्य चर्चाकार के लिये आसान हो पायेगा !
२. दूरदराज़ के अलग थलग पड़े चिट्ठों का संचयन स्वतः ही होने लग पड़ेगा !
३. एक लाइना की नयी पौध भी सिंचित हो सकेगी !
४. यदा कदा कुछ चर्चा जो थोपी हुई सी लगती है, न लगेगी !
५. मेरे सरीखा घटिया आम पाठक भी चर्चा तक ले जाने को एक बेहतर लिंक तलाशेगा,
६. ज़ाहिर है, कि ऎसा वह अपनी मंडली से बाहर निकल कर ही कर पायेगा !


मानि कि, कउनबाजी तउनबाजी कम हो जायेगी !
७. ’ तू मेरा लिंक भेज-मैं तेरा भेजूँगा ’ जैसी लाबीईंग हो शुरु सकती है, पर ऎसे जोड़े भी काम के साबित होंगे ! क्योंकि तब भाई भाई में मनमुटाव भी न होगा !
८. क्योंकि इस होड़ में नई और बेहतर पोस्ट आने की रफ़्तार बढ़ेगी.. धड़ाधड़ महाराज़ का हाल आप देख रहे हैं, श्रीमान जी स्वचालित हैं.. वह क्यों देखें कि यूनियन बैंक की शाखा के उद्द्घाटन सरीखी पोस्ट हिन्दी को क्या दे रहीं हैं ?
९. मेरे जैसा भदेस टिप्पणीकार अपने साथी से पूछ भी सकता है, चर्चाकार ने तुमको क्या दिया, वह बाद में देखेंगे ! पहले यह दिखाओ कि, टिप्पणी बक्से के ऊपर वाले हिस्से में तुम्हारा योगदान क्या है ?
१०. लोग कहते हैं, चर्चा है कि तुष्टिकरण मंच.. मैं कहुँगा कि, नो तुष्टिकरण एट आल ! तुष्टिकरण के दुष्परिणामों पर यदि हम पोस्ट लिखते नहीं थकते, तो अपने स्वयं के घर में तुष्टिकरण क्यों ?
११. यहाँ पर मैं श्री अनूप शुक्ल से खुल्लमखुला नाराज़ हूँ.. किसी के ऎतराज़ पर कुछ भी हटाया जाना.. नितांत गलत है ! कीचड़ में गिरने को अभिशप्त या संयोगवश, मैं उस रात धुर बारह बजे पाबला-प्रहसन देख रहा था ! बीच बीच में तकरीबन डेढ़ घंटे तक मेरा F5 सक्रिय रहा, निष्कर्ष यह रहा कि कुश ( बे... चारा ! ) को सोते से जगा कर उनकी अनुमति से एक चित्र हटाया गया.. अन्य भी प्रसंग हैं ।
कुश देखने में शरीफ़ लगते हैं, तो होंगे भी ! क्योंकि मैं इन दोनों की तीन कप क़ाफ़ी ढकेल गया.. पर यह अरमान रह गया कि वह इस प्रकरण को किस रूप से देखते हैं, कुछ बोलें !
१२. विषय का चयन, निजता का हनन, अभिव्यक्ति का हनन इत्यादि नितांत चर्चाकार के विवेक पर हो, और ऎसा डिस्क्लेमर लगा देनें में मुझे तो कोई बुराई नहीं दिखती !
१३. क्या किसी को लगता है, कि इस प्रकार पोस्ट सुझाये जाते रहते जाने की परंपरा से अच्छे पोस्ट की वोटिंग भी स्वतः होती रहेगी ?
१४. चिट्ठाचर्चा के अंत में के साथ ही आभार प्रदर्शन के एक स्थायी फ़ीचर में अपना नाम कौन नहीं देखना चाहेगा ?

१५. स्वान्तः सुखाय लिखने वालों के लिये, कोई भी व्यक्ति बहुजन-हिताय जैसे चर्चा श्रम में क्यों शेष हो जाये ? जानता है, वह कि, यह श्रमसाध्य कार्य भी अगले दिन आर्काईव में जाकर लेट जायेगी.. कभी खटखटाओ तो Error 404 - Not Found कह कर मुँह ढाँप लेंगीं !
१६. गुरु, अब ई न बोलिहौ.. लेयो सामने आय कै आपै ई झाम कल्लो, इश्माईली ! यह मेरा मत है.. जिसका शीर्षक है.. मत मानों मेरा मत ! क्योंकि मेरा तो यह भी मत है, कि एक को ललकारने की अपेक्षा सभी को अपरोक्ष रूप से शामिल किये जाने की आवश्यकता है !
१७. इन सब लटकों से पाठकों की संख्या घट सकती है, तो ? मेरी भी तो नहीं बढ़ रही है ! लेकिन कमेन्ट-कोला की माँग पर ’कोई भी बंदा ’ खईके पान बनारस वाला ’ तो नहीं गा सकता .. " मेरे अँगनें में तुम्हारा क्या काम है ..


मेरी समझ में टिप्पणीकार पर किसी तरह की बंदिश लगाना अव्यवहारिक है। आप लोग अपना विचार बतायें!

और अंत में

सबेरे पौने सात बजे से शुरू करके अभी सवा आठ तक इतना कर पाये। शाम तक संभव हुआ तो एक लाईना पेश किये जायेंगे लेकिन फ़ैशन के दौर में गारंटी की अपेक्षा न ही करें तो बेहतर!

दिन आपका चकाचक गुजरे इसके लिये शुभकामनायें!

23 टिप्‍पणियां:

  1. aap ko din raat chaka chak beete kar dena chahiye....

    ek lina ka kya hoti rahegi.....waise bhi charcha me woh jitni kam ho utna achaa

    warna charcha charcha kam, chandni chauk ki bhir bhar wala kendra jyada lagta hai

    ya saajhe ki sarkaar me lagta hai sabko koi na koi ministry pakra di aisa lagta hai.....

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  2. रंजना जी को जन्‍मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं। अच्‍छी चर्चा।

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  3. रंजना जी को जन्‍मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।

    regards

    जवाब देंहटाएं
  4. बढिया चर्चा ! बेहतरीन कवरेज !

    जवाब देंहटाएं
  5. अभी पूरी चर्चा पढ़ भी न पाया था, कि अपना इतना लघु उल्लेख देख रहा नहीं जा रहा, कि सभी को यह कहूँ.. " आइये स्वागत है, आपका " क्योंकि
    " भारतीय ब्लागमेला के सौजन्य से पता चला कि हिदी एक क्षेत्रीय भाषा है.यह भी सलाह मिली कि हिंदी वालों को अपनी चर्चा के लिये अलग मंच तलाशना चाहिये.इस जानकारी से हमारे मित्र कुछ खिन्न हुये.यह भी सोचा गया कि हम सभी भारतीय भाषाओं से जुड़ने का प्रयास करें.

    इसी परिप्रेक्ष्य में शुरु किया जा रहा है यह चिट्ठा.दुनिया की हर भाषा के किसी भी चिट्ठाकार के लिये इस चिट्ठे के दरवाजे खुले हैं.यहां चिट्ठों की चर्चा हिंदी में देवनागरी लिपि में होगी. भारत की हर भाषा के उल्लेखनीय चिट्ठे की चर्चा का प्रयास किया जायेगा.अगर आप अपने चिट्ठे की चर्चा करवाना चाहते हैं तो कृपया टिप्पणी में अपनी उस पोस्ट का उल्लेख करें.यहां हर उस पोस्ट का जिक्र किया जा सकता है जिसकी पहले कभी चर्चा यहां नहीं हुयी है.चाहे आपने उसे आज लिखा हो या साल भर पहले हम उपयुक्त होने पर उसकी चर्चा अवश्य करेंगे.

    वैसे यहां कोई बंधन नही है पर सामाजिक नजरिये से नकारात्मक ब्लाग की चर्चा से हम बचने का प्रयास करेंगे. "
    आज यह चर्चा इतनी ऊँचाईयों पर है, कि एक दिन इसे न पढ़ना ( कम ब कम मुझे ) बेचैन कर देता है ! यह उपलब्धि बरकरार रहे यही कामना है..
    वरना पतन तो रोमन साम्राज्य और चक्रवर्ती सम्राटों के राज्यों का भी हुआ है ! हिन्दी ब्लागिंग का इतिहास पढ़ते समय लोग यह भी पढ़ लिया करेंगे, कि हिन्दी चिट्ठाकारों को आगे बढ़ाने में नारद और चिट्ठाचर्चा का योगदान सदैव स्मरण रखा जायेगा ! ( यहाँ किसी स्माईली की ज़रूरत ? )

    ज़ाहिर है, सामाजिक सरोकारों को जीने और लिखने का दम भरने वाले हिन्दी चिट्ठाकारों को कोई " वाह वाह .. ग़ज़्ज़ब लिख दिया.. अच्छी चर्चा , साधुवाद स्वीकारें " जैसी टिप्पणियों तक ही बाँध कर रखा नहीं जा सकता !
    पहली टिप्पणी आप दें.. में आज ही तरूण भाई भी यह कहते पाये जा रहे कि " साझे की सरकार में लगता है, लगता है सबको कोई ना कोई मिनिस्ट्री पकड़ा दी ! "

    भले ही टिप्पणीकार मौनी बाबा नरसिंहा राव बन यहाँ से सरक लें.. पर, इस " मत विमर्श " को यहाँ तक लाने का धन्यवाद !
    आज की चर्चा में आपके दो घँटे पैंतालिस मिनट के श्रम का.. यह रहा ईनाम में आज का लिंक " ? ? ? ? ? " जो यह लिख रहा कि " आप मानें या न मानें पर जीवन की हर घटना के पीछे एक लॉजिक होता है। जैसे क्रिया के बाद प्रतिक्रिया वाला सिद्धान्‍त है, ठीक वैसा ही। यानी की हर घटना के पीछे उसका एक ठोस कारण होता है। अब यदि कारण का पता लगा लिया जाए, तो क्‍या घटना को प्रभावित किया जा सकता है ? जी हॉं, बिलकुल किया जा सकता है। "

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  6. हत्या एक प्रत्याशी की थी या दलित प्रत्याशी की? दलित या नारी या अल्पसंख्यक के चश्मे से लोगों/घटना को देखना उचित है क्या?

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  7. अमर कुमार जी की टिपण्णी को बेस्ट टिपण्णी का अवार्ड भी दिया जा सकता है.. चर्चा पर टिप्पणीकार तो कई है जिन्होंने अपनी टिप्पणियों के माध्यम से चर्चाकारो का मनोबल बढाया है.. पर सच्चे हितैषी वही है जिन्होंने समय समय पर चर्चा को बेहतर बनाने के लिए अपने सुझाव दिए है.. कई बार चर्चा से किसी लिंक पर जाकर संतुष्टि नहीं होती है.. फिर भी मेरी टिप्पणिया अधिकतर ब्लॉग पर मिल ही जाती है जिनकी चर्चा की गयी हो..

    आते ही कमेन्ट कर रहा हूँ इसलिए कोई लिंक नहीं दे पा रहा हूँ..

    अब आते है टिपण्णी पर"अच्छी चर्चा , साधुवाद स्वीकारें " ( यहाँ किसी स्माईली की ज़रूरत ? )

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  8. "रंजना भाटिया ने अपने जन्मदिन के मौके पर अपने बचपन को याद किया:...." रंजना जी को जन्मदिन की बधाई....बचपन!!
    बचपन के दिन भी क्या दिन थे
    उडते फिरते तितली बन के....
    >"मेरी समझ में टिप्पणीकार पर किसी तरह की बंदिश लगाना अव्यवहारिक है। " सही बात, यदि बंदिश लगी, तो टिप्पणीकार क्या करेगा :) [हां जी, इस्माइली लगी:)]

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  9. चर्चा तो गारंटीड चाहिए। थोड़ा कम ज्यादा चलेगा

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  10. एवार्ड हम नहिं लेंगे.. बिदेसी भशा में है !

    @ सही बात, यदि बंदिश लगी, तो टिप्पणीकार क्या करेगा :) [हां जी, इस्माइली लगी:)]
    टिप्पणीकार के लिये बहुतेरे विकल्प हैं..
    सर्वप्रथम सर्वश्रेष्ठ सर्वसुलभ विकल्प तो यही कि.. ऊटपटाँग टिप्पणियाँ..
    [ जी हाँ, स्माइली भी लगा दिया : (
    बहस तो यह है, कि हमारी ज़रूरत क्या है.. सजग पाठक या मात्र तमाशबीन... आत्म-प्रक्षेपण या सार्थक सहयोग ?
    चर्चाकार की सीमाओं को मानवीय दृष्टिकोण से देखें.. चन्द्रमौलेश्वर पेरसाद जी !
    वईसे आपको इससे बाई-पास छूट मिल सकती है.. अधिक जानकारी के लिये आप " इन महोदय " से सम्पर्क कर सकते हैं..
    लीजिये पकड़िये एक्ठो अउर :) ईश्माईली ! ]

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  11. चर्चा सुन्दर है.
    रंजना जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई.

    मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यवाद.

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  12. अच्छी चर्चा
    हम फ़ैशन के दौर में गारंटी की अपेक्षा नही करेंगे !

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  13. चर्चा में दुबारा शामिल होने के लिए डॊ. अमर कुमार जी ज़िम्मेदार:)
    डॊ. साहब :( ये स्माली नहीं चलेगी । ‘मौज करो मस्त रहो’ वालों के लिए तो कतई नहीं :)
    "बहस तो यह है, कि हमारी ज़रूरत क्या है.. सजग पाठक या मात्र तमाशबीन... आत्म-प्रक्षेपण या सार्थक सहयोग ?" इस बात में तो दो राय नहीं कि टिप्पणी एक सजग पाठक की होना चाहिए। हम तो यहीं समझ रहे हैं कि हर टिप्पणीकार एक सजग पाठक ही है और उनकी सजगता पर प्रश्नचिह्न लगाना अन्याय होगा। रही बात अपने तरीके से टिप्पणी करने की, तो यह तो मानी हुई बात है हर दो विद्वान का एक मत होना आवश्यक नहीं। [इस पर आप जिस तरह की स्माइली लगाना चाहें लगा लें। हम तो यही लगाएंगे]:)

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  14. एक दो दिमाग का भेया-फ्राई होता है कुछ अपना लिखने में. ऊपर से कहते हैं कि टिप्पणी में भी दिमाग लगाईये. काहे बच्चे की जान लेने का सोच रहे हैं. डॉक्टर साहब का क्या है उनको एक और दिमाग मिल जायेगा पोस्टमार्टम करने के लिए.

    आप इंजीनीयर हैं सो डॉक्टर की नजर से नहीं देख रहे. ठीक ही कर रहे हैं.

    एक राज की बात बताया जाए, इतने सारे चिट्ठे आप चर्चाकार लोग पढ़ते कब हैं? माने कि चर्चा करने का मर्म?

    -कौतुक

    जवाब देंहटाएं
  15. - शानदार चर्चा।

    - गारंटी न रहे तो भी वारंटी तो हर कोई थोड़ी बहुत देता ही है।

    @कौतुक जी,
    जितने चिट्ठों पर टिप्पणी करती हूँ और जितने चर्चा में रखती हूँ, कम से कम उनसे ३० गुना अधिक को प्रतिदिन पढ़ती हूँ। बाकी चर्चाकार भी यों ही तो लिखते नहीं होंगे, यह विश्वास रखिए।

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  16. चर्चा में दिये गये सत्रह सुझावों को पढ़ा। कुछ वाकई गौर करने लायक हैं, और कुछ पर तो पी. एच. डी. भी की जा सकती है। रही बात ब्लाग एग्रीगेटर्स की, तो सामान्यत: सभी पर किसी पोस्ट को "पसंदीदा" करने का विधान होता है। उससे पता चल सकता है कि कौनसी पोस्टें सर्वाधिक पसंदीदा हैं। कुछ quality control तो ऐसे ही आ जायेगा।

    दूसरे, अकसर देखने में आया है कि जिस पोस्ट पर कई टिप्पणियाँ होती हैं, उनके "ठेलित" पोस्ट होने का कम ही खतरा होता है। मेरे पास जब समय की कमी होती है, तो सर्वाधिक टिप्पणीप्राप्त पोस्ट पढ़कर ही पूरे चिट्ठाजगत का रस निचोड़ लेता हूँ। इसने अपवाद सिर्फ नामी-गिरामी चिट्ठाकार ही देखे गये हैं ;)

    एक सुझाव: पोस्ट ठेलक तो बहुत देखे हैं, आजकप टिप्पणी ठेलक भी बहुतायत में हैं। ऐसे में कुछ उत्तम टिप्पणियों को भी यदि चिट्ठा-चर्चा में थोड़ी बहुत जगह दी जाये, तो लोग बढ़िया टिप्पणी छोड़ना चाहेंगे।

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  17. जब तक चर्चा तैयार हो.. तबतक मेरी टीप भी दिमगिया के पिरेशर कुकर में सीटी लगने का इंतेज़ार कर रही है, पर आज की चर्चा में पाठक संभवतः यह भी देखना चाहें
    " बिना खाना खाए जी सकते हैं ? "
    एक ब्‍लॉगर ने
    दूसरे से पूछा
    बिना खाना खाए
    जी सकते हो
    कितने दिन।
    ....

    जिए जाऊंगा
    पोस्‍ट लगाऊंगा
    टिप्‍पणियां पिए जाऊंगा
    ब्‍लॉगवाणी पर पसंद
    खूब चटकाऊंगा
    उसी से उर्जा पाऊंगा।

    " लेकिन 93 वर्ष की आयु में ... " ‘‘माया मरी न मन मरा, मर-मर गये शरीर । आशा, तृष्णा ना मरी, कह गये दास कबीर।।’’ कान में सुनने की बढ़िया विलायती मशीन, बेनूर आँखों पर शानदार चश्मा। उम्र तिरानबे साल। सभी पर अपने दकियानूसी विचार थोपने की ललक। घर में सभी थे बेटे-पोते, पड़-पोते, लेकिन कोई भी बुढ़ऊ के उपदेश सुनने को राजी नही । अब अपना समय कैसे गुजारें। किसी भी सस्था में जाये तो अध्यक्ष बनने का इरादा जाहिर करना उनकी हाबी। आज इसी पर एक चर्चा करता हूँ। आखिर मैं भी तो इन्हीं वरिष्ठ नागरिक महोदय के शहर का हूँ। फिर अपने ही ब्लाग पर तो लिख रहा हूँ। किसी को पसन्द आये या न आये। क्या फर्क पड़ता है ?

    जवाब देंहटाएं

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