सोमवार, मई 18, 2009

बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ


अडवानीजी
आम चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। अप्रत्याशित से। कुछ लोगों का जी खट्टा हो गया कुछ लोग सच्चाई स्वीकार करके फ़िर से काम में जुट जाने का आवाह्न कर रहे हैं। रस्मों-रिवाज के अनुसार हारे हुये लोग हार का ठीकरा फ़ोड़ने के लिये सिर तलाश रहे हैं। कोई कह रहा है टिकट वितरण में गलती हुई और हमने पिछली गलतियों से कुछ सीखा नहीं। कोई दूसरे कारण गिना रहा है। लेकिन एक बात से आम जनता खुश है कि कम से कम चंद सीटों के बल पर मंत्रालयों के लिये ब्लैकमेलिंग करने वालों से निजात मिली। जनता ने लगभग सभी जगह (कुछ को छोड़कर) बाहुबलियों और उनके परिवार वालों को नकार दिया। यह अपने आप में बहुत बड़े सुकून की बात है।


ब्लागिंग में कल की ज्यादातर पोस्टें और कार्टून इसी पर केंद्रित हैं। दिनेश राय द्विवेदी जी तो कई दिनों से जनतंतर कथा लिख रहे हैं। चुनाव पर कमेंट्री करते हुये वे कहते भये:
बैक्टीरिया दल का साथ छोड़ कर अपना राग अलापने वाले सब घाटे में रहे थे, उन का सफाया हो गया था। कल तक जो सरकार बनाने के स्वप्न देख रहे थे, आज वहाँ सन्नाटा था। वायरस दल का साथ छोड़ जिन ने बैक्टीरिया दल का हाथ थामा था उन के पौ-बारह हो गए थे। लाल फ्रॉक वाली बहनों के घर भी मातम था। जनता का साथ छोड़ने का उन्हें भी बहुत नुकसान उठाना पड़ा था। पहले अपनी धीर-गंभीर बातों से जिस तरह वे लोगों का मन मोह लेती थीं। आज उस का भी अभाव हो गया था। अपनी ऊपरी मंजिल पर बहुत जोर डालने पर भी वह प्रकाशवान नहीं हो रही थी। कोई सिद्धान्त ही आड़े नहीं आ रहा था जिस के पीछे मुहँ छुपा लेतीं।


विनोद कुमार अपनी पोस्ट सौ 'सोनार' की, एक 'लोहार' की में लिखते हैं:
अब समझ लीजिए- लौहपुरुष कहलाने और कमजोर प्रधानमंत्री करार दिए जाने में क्या फर्क है. राहुल और वरुण गांधी में क्या फर्क है. ये भी जान लीजिए, लोहारों को वंशवाद और विदेशी मूल की बातें 21 वीं सदी में नहीं सुहाती. घटिया मुद्दों के बहाने लोहारों के पेट की अनदेखी होगी, तो वो लात मारेगा ही. दिल की बात कीजिए, लोहार आपके भी होंगे।


अनिल पुसदकर को लगता है कि ऐसा लगता है इस देश मे मुसलमानो का मुसलमानों से बड़ा शुभचिंतक़ है मीडिया? । इस पर एक अनाम ब्लागर ने निर्भय के नाम से टिपियाते हुये सवाल उठाया- जब आजमगढ़ (मुस्लिम बहुल क्षेत्र ) से भारतीय जनता पार्टी जीती और अयोध्या(हिन्दू बहुल क्षेत्र) से भारतीय जनता पार्टी हारी है तो इसका अनालिसिस मीडिया वाले किस प्रकार करेंगे?

चुनाव के बाद किस बड़े नेता के मुंह से कौन सा गीत निकल रहा होगा यह जानने के लिये आपको दुनिया मेरी नजर से देखनी पड़ेगी।

घुघुतीबासूतीजी ने फ़िल्म तारे जमीं के के बहाने अपने विचार व्यक्त किये। फ़िल्म में बच्चे(ईशान) को हास्टल भेजने के निर्णय से सहमत हो जाने पर वे मां की भूमिका पर आक्रोश व्यक्त करती हैं:
किसी बच्चे को इसलिए छात्रावास में डालना क्योंकि वह हमसे संभलता नहीं है अपने दायित्व से मुँह फेरना है। बच्चे संसार के सबसे असहाय प्राणी होते हैं। उनपर अन्याय करना सबसे निकृष्ट काम है। ईशान की असहाय अवस्था देखकर मन तड़प उठता है।


आधुनिक शिक्षा पद्धति पर सवाल उठाते हुये घुघुतीजी ने लिखा:
हम स्कूलों में भेड़ बकरियों की तरह बच्चे भर देते हैं और उनसे आशा करते हैं कि वे चाहे जिस भी नाप या आकार के हों हमारे बनाए खानों में फिट बैठ जाएँ। यदि आपने कभी आलू भी उगाएँ हों तो जानेंगे कि सब आलू एक ही नाप व आकार के नहीं होते। फिर क्या आप बच्चे को काट छाँट कर अपने बनाए खानों में फिट करेंगे?



काकोरी के शहीदों के बारे में जानकारी देते हुये डा.अमर कुमार ने शहीद अशफ़ाक उल्ला के अंतिम संदेश का सार पेश किया:
भारतमाता के रंग-मंच पर अपना पार्ट अब हम अदा कर चुके । हम ने गलत सही जो कुछ किया, वह स्वतन्त्रता प्राप्त की भावना से किया । हमारे इस काम की कोई प्रशंसा करेंगे और कोई निन्दा । किन्तु हमारे साहस और वीरता की प्रशंसा हमारे दुश्मनों तक को करनी पड़ी है । क्रान्तिकारी बड़े वीर योद्धा और बड़े अच्छे वेदान्ती होते है । वे सदैव अपने देश की भलाई सोचा करते है । लोग कहते हैं कि हम देश को भय त्रस्त करते है,किन्तु बात ऐसी नहीं है । इतनी लम्बी मियाद तक हमारा मुकदमा चला मगर हम ने किसी एक गवाह तक को भयत्रस्त करने की चेष्टा नहीं की,न किसी मुखबिर को गोली मारी । हम चाहते तो किसी गवाह,या किसी खुफिया पुलिस के अधिकारी या किसी अन्य ही आदमी को मार सकते थे । किन्तु हमारा यह उदेश्य नहीं था । हम तो कन्हाई लाल दत्त,खुदीराम बोस, गोपी मोहन साहा आदि की स्मृति में फांसी पर चढ़ जाना चाहते थे ।


लेकिन दूसरी तरफ़ डा.अमर कुमार न जाने क्यों मुल्जिम को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाने के प्रयास को राम मंदिर के मुद्दे से जोड़ रहे हैं।

गंदे बच्चे भी कभी-कभी सही सलाह दे सकते हैं। दिलीप राज नागपाल ऐसे ही एक मसले पर अपनी राय इशारे से अपनी राय व्यक्त करते हुये निदा फ़ाजली का शेर सुनाते हैं:
अगर तुम समझते हो बीवी घर की इज्जत होती है
तो खुदा के लिए उस इज्जत की खातिर
दरवाजा खुला हो या बंद
हमेशा दस्तक देकर ही घर में दाखिल हुवा करो


गौतम राजरिशी ये क्या जगह है दोस्तों ये कौन सा दयार हैकी जमीन पर अपनी गज़ल पेश करते हैं:
बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ
न भाये अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है

भरी-भरी निगाह से वो देखना तेरा हमें
नसों में जलतरंग जैसा बज उठा सितार है


राकेश खंडेलवाल जी ने अपनी गीतकलश पर तीन सौंवी प्रस्तुति पोस्ट की और लिखा:

राकेश खंडेलवाल
प्यार था बढ़ा गगन में डोर बिन पतंग सा

सावनी मल्हार में घुली हुई उमंग सा

झालरी बसन्त की बहार की जहाँ उड़ी

आस रह गई ठिठक के मोड़ पे वहीं खड़ी

गंध् उड़ गई हवा में फूल के पराग सी

दोपहर में जेठ के उमगते हुए फ़ाग सी

पतझड़ी हवायें नॄत्य कर गईं घड़ी घड़ी

शाख से गिरी नहीं गगन से बूंद जो झरी

राकेश खंडेलवाल जी को इस मौके पर बधाई और शुभकामनायें।

कुछ दिन पहले समीरलाल जी ने भी अपनी तीन सौवीं पोस्ट प्रस्तुत की थी। समीरजी और राकेशजी हमारे नियमित चर्चाकार थे। राकेश खण्डेलवाल जी गीत लिखकर चर्चा करते थे। अपने आप में अनूठा प्रयोग। अब न जाने कब समीरलाल जी और राकेश खंडेलवाल दुबारा चर्चा के लिये वापस लौटेंगे।

समीरलाल आज विन्डो ड्रेसिंग में व्यस्त पाये गये।

प्रख्यात निर्देशक प्रकाश मेहरा का कल लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया। उनको हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।

टिप्पणी/प्रतिटिप्पणी


  • टिप्पणी: जब हम आलोचक बन एक उंगली किसी व्यक्ति /व्यवस्था की और उठाते हैं तो यह भी देखना चाहिए कि खुद की ओर शेष चार उंगलियाँ इशारा करती हैं -आप ने मनमाफिक नारी विमर्श के अलावा खुद कितने विषयों की चर्चा की है जरा इसे भी देखिये ! आप अपना देखें ,हिन्दी ब्लागजगत पूरी सम्पूर्णता और विविधता के साथ उभर रहा है आप इसकी चिंता में और दुबली मत होईये ! अरविन्द मिश्र

    प्रतिटिप्पणी:
    अरविन्द जी आप मे और मुझमे वही फरक हैं जो एक पढे लिखे जाहिल और एक पढे लिखे संभ्रांत व्यक्ति मे होता हैं आप एक पढे लिखे जाहिल हैं तभी इस भाषा का प्रयोग कर है "आप इसकी चिंता में और दुबली मत होईये !"- रचनासिंह


  • टिप्पणी: मैंने तो आपके दुबली न होने की टिप्पणी स्नेह से की थीं पर आप तो अपनी असलियत पर उतर आयीं -अपने किसी भी ब्लॉगर साथी को जाहिल कहना किस मानसिकता का परिचायक है -आप से तो संवाद ही कोई शिष्ट व्यक्ति क्यों करना चाहेगा -अलविदा !अरविन्द मिश्र

    प्रतिटिप्पणी: अलविदा कहने के लिये धन्यवाद डॉ अरविन्द और एक बात हमेशा ध्यान रखे , स्नेह कि वर्षा वहाँ करे जहाँ आपसी सम्बन्ध ऐसे जिसमे आप आप को अधिकार हो स्नेह कि वर्षा कर सकने का । जरुरी नहीं हैं कि है कोई आपके स्नेह कि वर्षा मे डूबना ही चाहे । संबंधो को जांच परख कर ही सम्बन्ध बनाये जाते हैं और मैने आप को ऐसा कोई व्यक्तिगत अधिकार नहीं दिया हैं कि आप माज़क मे भी मुझ पर स्नेह बरसाए । यही हैं एक जाहिल मानसिकता जो सामने वाले को बिना समझे सम्बन्ध बानाती हैं ताकि समय असमय अपने हिसाब से उस सम्बन्ध को दिखाया जा सके: सादर रचना रचनासिंह


  • केवल टिप्पणी:अरविन्द जी टिप्पणी से आहत हूँ, आपके पलट वार से चकित वीनस केसरी



    कार्टून चर्चा


    कल के अधिकतर कार्टून चुनाव परिणामों पर केन्द्रित रहे और निशाने पर रहे अडवाणी जी। कुछ कार्टून यहां पेश हैं:

    अडवानीजी

    मनमोहनजी


    और अंत में



    आज की चर्चा का दिन कविताजी का था लेकिन वे किसी आवश्यक कार्य में व्यस्त होने के कारण चर्चा न कर सकीं अत: मुझे हड़बड़ चर्चा करनी पड़ी। कविताजी संभवत: कल की चर्चा करेंगी।


    आपका हफ़्ता चकाचक बीते इसके लिये शुभकामनायें।

    31 टिप्‍पणियां:

    1. बेनामीमई 18, 2009 8:58 am

      मै अपनी असलियत अपने हाथ मे ले कर चलती हूँ । मै मोटी हूँ या दुबली हूँ इस बात का ब्लोगिंग से क्या लेना देना । " आप इसकी चिंता में और दुबली मत होईये" मे गौर करने लायक शब्द हैं "और " यानी डॉ अरविन्द सरीखे विद्वान भी मुहावरे को नहीं व्यक्तिगत टिप्पणी लिख रहे हैं । मुहावरा हैं काजी जी क्यूँ दुबले शहर के अंदेशे से अगर ये लिखा जाए तो व्यंग मे भी चलता हैं पर " और दुबली कहना " केवल और केवल ये दिखाता हैं की डॉ अरविन्द के अनुसार मे "दुबली " हूँ तथा बेकार का चिंतन कर के "और दुबली ना हो जायूं " । जिन लोगो ने महान विद्वान डॉ अरविन्द का "और " उस कैमेंट मे ना देखा हो देख ले ।
      मै नेट पर सम्बन्ध बनाने की इच्छुक नहीं हूँ हर किसी से इसलिये निजता पर किये हुआ कमेन्ट को जवाब देना जरुरी हैं ताकि कल कोई और विद्वान ना स्नेह की वर्षा करने लग जाए
      सादर
      रचना

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    2. प्रख्यात निर्देशक प्रकाश झा -प्रकाश झा नहीं, प्रकाश मेहरा करिये इसे तुरंत!!

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    3. समीरलाल-प्रख्यात निर्देशक प्रकाश झा -प्रकाश झा नहीं, प्रकाश मेहरा करिये इसे तुरंत!! कर दिया। शुक्रिया। अब आगे टिपियाइये।

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    4. अब आगे टिप्पणी यह है कि:

      राकेश जी का जन्म दिन भी है, यह ज्ञात हुआ. तो डबल बधाई-एक तो तीसरे शतक की और एक जन्म दिन की-कल उनसे केक खाया जायेगा.

      -चर्चा बहुत उम्दा किये हैं सुबह सुबह, तो आपको भी बधाई!! जय हो!!

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    5. प्रकाश मेहरा को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।

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    6. राकेश जी को जन्म दिन की हार्दिक बधाई । मेहरा साहब का निधन दुखद है । कार्टून बहुत ही पसंद आया ।

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    7. charcha bahut mast ki hai badhayi
      राकेश जी को जन्म दिन की हार्दिक बधाई

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    8. राकेश जी को जन्म दिवस की बहुत-बहुत बधाई। चर्चा गरमागरम है सुबह की चाय की माफ़िक्।

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    9. राकेश जी को जन्म दिन की हार्दिक बधाई

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    10. प्रकाश मेहरा को हमारी श्रद्धांजलि.

      समीर जी की टिप्पणी देख कर लगा ..हड़बड़ चर्चा अक्सर गड़बड़ हो जाती है :-)

      ... रचना जी, अरविन्द जी और सभी ब्लोगरों से मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगी दो विचारधाराएँ एक साथ नही रह सकती ..पर शब्दों की शिष्टता का ध्यान हर किसी को होना चाहिए..वैसे हिंदी ब्लॉग जगत में यह कभी नही रहा और लोग तुंरत सामने वाले की व्यक्तिगत सीमा के उल्लंघन में उतर जातें हैं. इससे हमे बचना चाहिए.

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    11. राकेश जी को जन्म दिन की हार्दिक बधाई

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    12. @ न जाने क्यों...
      इसलिये कि, दोनों ही जगह बेवज़ह के मुद्दे को जिलाये रख, मुनाफ़ा हड़पने की प्रवृत्ति है !
      अब आगे हवाल यह है कि.. रस टपका पड़ रहा है, आज की चर्चा से
      " ... का फ़ुरसतिया जी भाई साहब ?
      जब चिठ्ठा चर्चा चालू हुआ था तब लोग कहते थे कि नये लोगों कॊ भी आगे आना चाहिये तो आप इस तरह डराओगे तो आगे कैसे आयेंगे नये लोग ? "

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    13. चलो पांच साल के लिए पीछा छूटा...
      अब आराम से ब्लॉग पढेंगे.

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    14. चिठ्ठाचरचा, टिप्पणी और प्रतिटिप्पणी के रस से सराबोर ना हो,

      इस शुभकामना के साथ अच्छी चर्चा की बधाई ...

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    15. चर्चा एकदम तरोताजा कर गई. लिखते रहें!!

      सस्नेह -- शास्त्री

      हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
      http://www.Sarathi.info

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    16. चर्चा अच्छी थी..
      राकेश जी को बधाई और प्रकाश मेहरा जी को विन्रम श्रद्धांजलि..

      अब हम परिपक्व हो गए है

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    17. बेनामीमई 18, 2009 2:55 pm

      कब तक बैठे रहोगे बाबा! लास्ट लोकल भी निकल गयी.....

      ....मजेदार है :)

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    18. सब से पहले तो राकेश जी को जन्मदिन और तीन सौ पोस्टों की बहुत बहुत बधाइयाँ। उन जैसा निरंतर लिखने वाला देख कर मेरे वकालत गुरू श्री हरीश 'मधुर' की याद आ जाते हैं। वे आज भी टास्क मिलने पर हर घंटे एक कविता और हर सप्ताह एक उपन्यास लिख सकते हैं। बस न जाने क्यों वे लिखते नहीं।
      रचना जी और अरविंद जी की खिचखिच चलती रहे, वरना ब्लाग जगत एक अनन्य रस से वंचित हो जाएगा। दोनों ही बहुत अच्छे और गंभीर ब्लागर हैं। यह सब न हो तो उन की एकरसता शायद टूटे ही नहीं।

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    19. बहुत बढ़िया चर्चा! ऐसी तो अनूप सुकुल ही कर सकते हैं।

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    20. आदर्णिय राकेश जी को जन्मदिन की बधाई. चर्चा बहुत सुंदर है. धन्यवाद.

      रामराम.

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    21. द्विवेदी जी की टिप्पणी ने मन कुछ हल्का किया ।

      टिप्पणी/प्रतिटिप्पणी की यहाँ प्रस्तुति - माने चर्चा हो ही गयी ।

      अनूप जी, यह टिप्पणी/प्रतिटिप्पणी अच्छी लगी या बुरी, ये तो आपने बताया ही नहीं ।

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    22. राकेश जी को जन्मदिन की बधाई, सुंदर चर्चा है.
      धन्यवाद.

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    23. हडबडी में भी बढिया चर्चा!! भई कमाल है:)
      राकेशजी के जन्मदिन और तीन सौवीं काव्य डेलिवरी के लिए बधाई:)

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    24. मुझे तो लगा था कि साइज जीरो के इस जमाने में मिश्र जी की टिप्पणी का स्वागत होगा...

      ये कुश टिप्पणी में "बोल्ड" वाला विकल्प कहाँ से लाता है?

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    25. ज्ञान जी से सहमत "ऐसी तो अनूप सुकुल ही कर सकते हैं।'

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    26. "मुझे तो लगा था कि साइज जीरो के इस जमाने में मिश्र जी की टिप्पणी का स्वागत होगा..."
      गौतम राजरिशी
      yae likh kar aapne pushti kardee us baat ki jisko maene kehaa ki nijtaa sae uth kar baat karey

      aaj agar mae is baat par aapti nahin karugi to kal size zero sae bikni tak kae kament maere blog par aayae gae so aesi jahiltaa sae durii bhali

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    27. बगैर पूरा प्रकरण जाने अपनी रौ में कुछ लिख गया, जिसके लिये क्षमाप्रार्थी हूँ। मेरी मंशा कहीं से भी रचना जी को आहत करने की नहीं थी।

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    28. टिप्पणी बक्से में क्लिक तो कर चुका था किन्तु डर गया। फिर सोचा टिप्पणी से कुछ ऊपर उठूँ। लेकिन टिप्पणी बक्से से कुछ ऊपर ही ऊठ पाया। सो कॉपी पेस्ट कर भाग खड़ा हो रहा हूँ। इसी को टिप्पणी मान लीजिये ना :-)

      टिप्पणी बक्से के ऊपर ही लिखा पाया मैंने:

      चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

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    29. हम ज्ञान जी और डा अनुराग से सहमत, "ऐसी चर्चा तो अनूप शुक्ल ही कर सकता है"

      बहुत ही रोचक और विविध रंग, रस लिए खट्टी मीठी गोली जैसी चर्चा

      जवाब देंहटाएं

    चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

    नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

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