बुधवार, जुलाई 01, 2009

वह जिंदगी जिंदगी ही क्या जिसमें अस्त व्यस्तताएं न हो

पिछले दिनों की व्यस्तता में चिट्ठाचर्चा ही नहीं लेखन और पठन भी छूट गया....वक्त को चकमा दे देकर पढ़ने का नशा ऐसे जैसे मौका पाते ही मधुरस का पान....पिछले दो दिनों से यही करते करते अनायास ही चर्चा की सामग्री तैयार हो गई.....

अस्त व्यस्त सी ज़िन्दगी बेतरतीब सी चल रही होती है....चाह कर भी उस दशा का बयान करना मुश्किल सा लगता है.... लेकिन प्रियंका ने बड़ी खूबसूरती से कह डाला....

ऐसा नहीं की मैं कुछ बड़ा साहित्यिक लिखती हूँ
कि बिन मेरे लेखन की दुनिया वीरान हो जायेगी
कुछ दोस्त बन गए हैं
बस उन्ही की कमी कुछ दिनों तक खल जायेगी
दोस्ती ही की बात थी
सोचा गायब होने से बता कर जाना ठीक है
मित्रगण कहीं मुझे भी न भूल जायें इसीलिए लगाई यह तरकीब है
क्या कहते हैं वो टीवी में
"मिलते हैं ब्रेक के बाद "
मज़बूरी में ले रही हूँ यह ब्रेक
स्नेह अपना यूँ ही रखियेगा बरक़रार
ब्रेक के बाद एक बार फिर मिलेंगे हम और आप ..

अजितजी कहते हैं किस्मत किसिम किसिम की होती है.....

आयु के विभिन्न कालखंडों में हमारा जीवनानुभव अलग अलग होता है। उम्र के इन हिस्सों में सुख के क्षण भी हैं और दुख के भी। जीवन के यही हिस्से भाग्य अथवा क़िस्मत हैं।

सच भी है... दुख को साथी मान लो तो वे भी हमारे साथ ही खिलखिलाते हुए हल्के हो जाते है...


रविन्द्र व्यास जी ने दुखों को रुई के फोहों में बदल डाला ...

घर में जब कभी कोई दिक्कत आती या दुःख छाने लगता तो मां-पिताजी हंसते। वे नहीं चाहते थे कि छोटे-छोटे दुःखों को हम तक आने दें। यही कारण था कि जब वे हंसते तो हमारे घर पर छाए दुःख रूई के फाहों में बदलकर उड़ने लगते।


आलोकजी सुख दुख पर ओशो के विचार लिख रहे हैं...

वैधानिक चेतावनी-यह व्यंग्य नहीं है

ओशो की पुस्तक-मन लागो यार फकीरी में से कुछ मेरे प्रिय अंश

…….सूरज की रोशनी पानी के बबूले पर सतरंगा इन्द्रधनुष बनाती है, क्षण भर को ही टिकेगा यह रंग, क्षण भर को टिकेगा यह होना। लेकिन संसार में क्षण भर को सुख मिलता है। न मिलता तो तो लोग इतना दुख झेलते ही नहीं। उस क्षण भर के सुख लिए इतना दुख झेल लेते हैं।….

कौतुक का लिखा पढ़ने का कौतुहल हमें हमेशा उनके चिट्ठे पर ले जाता है.... पाठक की पसन्द को आदर देते हुए लिखते हैं....

लगे आपको अप्रतिम
वह शब्द कहाँ से लाऊँ मैं.
स्वरचित अज्ञान शिविर में
जब तड़प रहा हूँ हर दिन मैं.
अतुल्य लगे जो पाठक को
और जलाये दीप तिमिर में
वह कविता कैसे बनाऊँ मैं.


समीरजी व्यथित है.....

कैसे समझाऊँ उसे कि तुम्हारी महत्ता तुम्हारी जगह है ही और अगर बगिया में आती हो तो भी स्वागत करने सब फूल पत्ती फल खुला दिल लिए खड़े ही हैं फिर ऐसी क्या नाराजगी?

आज मुझे जंगली चिड़ियों की भाषा न आ पाने का बहुत दुख हुआ. काश, भाषा समझता होता तो मैं उनका मनतव्य तो जान लेता और उसके अनुरुप ही, उनमें न सही अपनी बगिया में ही कुछ बदलाव या सुधार कर लेता.

कभी कभी कुछ रचनाओं के शब्द और भाव मन पर गहरा असर छोड़ जाते हैं....

पारुल की पोस्ट के एक वाक्य ने ऐसा ही प्रभाव छोड़ा ....

क्षमा की अग्नि में संदेह को जलाओ

क्षमा सहनशीलता और दूरदर्शिता से ही आज की पीड़ी को सही राह दिखाई जा सकती है .....


घुघुतीजी की बात से सभी सहमत होगे

मुझे लगता है कि जीन्स या ट्राउज़र्स का विरोध करने की अपेक्षा कैज़ुअल, फ़ॉर्मल व पार्टी परिधानों का अन्तर समझना व समझाना अधिक उचित होगा।


मीत लिखते हैं....


अंधेरों से रिसती हैं -
तुम्हारी यादें
तुम्हारी बातें .....

उन्ही की पोस्ट पर आई अर्श की टिप्पणी में आवाज़ के लिए खुरदरी मखमली कशिश भरी ---विशेषण ने प्रभावित किया...


शिवजी बजट की बारीकियों के बारे में कुछ इस तरह से लिखते हैं....

बजट एक ऐसे दस्तावेज को कहते हैं, जो सरकार के न होनेवाले इनकम और ज़रुरत से ज्यादा होनेवाले खर्चे का लेखा-जोखा पेश करता है. इसके साथ-साथ बजट को सरकार के वादों की किताब भी माना जा सकता है. एक ऐसी किताब जिसमें लिखे गए वादे कभी पूरे नहीं होते. सरकार बजट इसलिए बनाती है जिससे उसे पता चल सके कि वह कौन-कौन से काम नहीं कर सकती. जब बजट पूरी तरह से तैयार हो जाता है तो सरकार अपनी उपलब्धि पर खुश होती है. इस उपलब्धि पर कि आनेवाले साल में बजट में लिखे गए काम छोड़कर बाकी सब कुछ किया जा सकता हैं.

ज्ञानजी सामान्य जीवन की नैतिकता पर चिंता व्यक्त करते हुए लिखते हैं...

क्लायण्ट और उसके केस के गलत या सही होने की परवाह न करना, तर्क शक्ति का अश्लील या बुलिश प्रयोग, न्यायधीश को अवैध तरीके से प्रभावित करने का यत्न, फर्जी डाक्यूमेण्ट या गवाह से केस में जान डालना, अपने क्लायण्ट को मौके पर चुप रह जाने की कुटिल (या यह कानून सम्मत है?) सलाह देना, गोलबन्दी कर प्रतिपक्ष को किनारे पर धकेलना, मामलों को दशकों तक लटकाये रखने की तकनीकों(?) का प्रयोग करना --- पता नहीं यह सब लीगल एथिक्स का हिस्सा है या उसका दुरुपयोग? जो भी हो, यह सामान्य जीवन की नैतिकता के खिलाफ जरूर जाता है। और आप यह बहुतायत में होता पाते हैं। मेरी तो घ्राण शक्ति या ऑब्जर्वेशन पावर बहुत सशक्त नहीं है पर मुझे भी यह उत्तरोत्तर बढ़ता नजर आता है।

आज के समय में समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास देख कर उन पर से आस्था डगमगाने लगती है.....

नन्ही सी श्रीलक्ष्मी की बुद्धि चकित कर जाती है.... नाहर जी की पोस्ट पढ़ कर मन खुश हो जाता है...

छह: साल की उम्र में अपनी स्कूल की साईट बनाई उसके बाद श्रीलक्ष्मी रुकी नहीं और कुछ दिनों पहले उसने केरल बार काऊंसिल की साईट डिजाईन कर विश्‍व में सबसे छोटी वेब डिजाईनर होने का गौरव प्राप्‍त कर लिया।
द्विवेदीजी ऐसे बच्चों की बात करते है जिनका भविष्य अन्धकारमय है..... मन बेचैन हो उठता है....

कल लाल बत्ती पर मिले बच्चे और वे चार-चार बच्चों वाली औरतें और उन के बच्चे? सोचता हूँ, वे इस देश के नागरिक हैं या नहीं? उन का कोई राशनकार्ड बना है या नहीं? किसी मतदाता सूची में उन का नाम है या नहीं?


इस सम्वेदना को विस्तार देते हुए विचार की महत्ता बताते हुए द्विवेदीजी लिखते हैं....

विचार को धारण करने के लिए एक भौतिक मस्तिष्क की आवश्यकता है। इस भौतिक मस्तिष्क के अभाव में विचार का अस्तित्व असंभव है। मस्तिष्क होने पर भी समस्त विचार चीजों, लोगों, घटनाओं, व्यापक समस्याओं, व्यापक खुशी और गम से अर्थात इस भौतिक जगत और उस में घट रही घटनाओं से उत्पन्न होते हैं। उन के सतत अवलोकन-अध्ययन के बिना किसी प्रकार मस्तिष्क में कोई विचार उत्पन्न हो सकना संभव नहीं। कोई लेखन, कविता, कहानी, लेख, आलोचना कुछ भी संभव नहीं; ब्लागिरी? जी हाँ वह भी संभव नहीं।

द्विवेदीजी की पोस्ट ने जितना प्रभावित किया उससे कहीं ज़्यादा उस पर आई एक टिप्पणी ने अपनी ओर ध्यान केन्द्रित किया.... जो इस प्रकार है.....


समय ब्लॉग

....रथ की संकल्पना या विचार का जन्म, पहिए की वस्तुगतता के बिना नहीं हो सकता। पक्षियों की उडानों के वस्तुगतता के बगैर वायुयान के विचार की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। बिना सोलिड स्टेट इलेक्ट्रोनिक्स के विकास के कंप्यूटर का नया विचार पैदा नहीं हो सकता था।
नये विचार, विचारों की एक सतत विकास की प्रक्रिया से ही व्युत्पन्न होते हैं, जिनके की पीछे वस्तुगत जगत के बोध और संज्ञान की अंतर्क्रियाएं होती हैं।

कहीं बिन बरसात हाहाकार मचा है ----

बदरा, बदरी के संग में, हुआ जाने कहां फ़रार,
बारिश के लाले पड़े, मचा है सबहन* हाहाकार!

सबहन*= सब जगह

उधर पंकजसुबीरजी बरसात की पहली फुहार में भीग कर आनन्दित है .....

हमारे इलाके में मौसम की पहली बरसात हो गई है । रविवार को लगभग एक घंटे खूब बरसे बादल । नानी कहती हैं कि पहली बरसात में नहाने से घमोरियां मिट जाती हैं । सो हमने भी परी पंखुरी और मोहल्‍ले के बच्‍चों के साथ पूरे घंटे भर नहांने का आनंद लिया ....

सुबीरजी सूर्य ग्रहण का आनन्द लेने के लिए अपने जिले में आने का न्यौता भी दे रहे हैं.....

आने वाली 22 जुलाई को हमारे देश में पूर्ण सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है । ये पूर्ण सूर्य ग्रहण अपने तरह का अनोखा होगा । इस पूर्ण सूर्य ग्रहण की केन्‍द्रीय रेखा हमारे जिले से होकर जा रही है । हमारे जिले का ग्राम गूलरपुरा इस केन्‍द्रीय रेखा के ठीक नीचे आ रहा है ।यदि आप भी पूर्ण सूर्य ग्रहण का आनंद लेना चाहते हैं तो पधारें ....

चलते चलते अनुरागजी की ताज़ा पोस्ट पर नज़र गई..... उनके गज़ब के ख्याल आसमान को छूने निकल पड़े....

"मुए जहाजो से कहो कभी हार्न बजाये......
अपनी दुनिया को आसमान से ढक कर
तुम्हारा खुदा बड़ी बेफिक्री से सोया है "

उन्हें पढ़ते ही कुछ ऐसा हमने भी लिख डाला......


बेफ्रिकी से सोए खुदा की नींद मे पड़ता ख़लल

और आसमान की चादर में जब भी होती हलचल

उड़ते शोर करते जहाज ज़मीन पर आ गिरते उसी पल


रवीन्द्रजी एक अंतराल के बाद ब्लॉगजगत फिर लौट आए.... स्वागत है उनका....

वह जिंदगी जिंदगी ही क्या जिसमें अस्त व्यस्तताएं न हो -
"
आह - सी धुल उड़ रही है आज, चाह-सा काफिला खडा है कहीं -
और सामान सारा बेतरतीब, दर्द- सा बिन - बंधे पडा है कहीं !"
इसी को कहते है - आह! जिन्दगी ....वाह! जिंदगी .




खड़ा है एक अंजाना सा काफ़िला ज़िम्मेदारियों का

शायद कभी संजोग हो छोटी छोटी मुलाकातों का

तब तक के लिए कहते है अलविदा ...... !


18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बेहतरीन कवरेज के साथ एक उम्दा चर्चा. बधाई.

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  2. मीनाक्षी जी...बहुत ही बढिया चर्चा रही...सब कुछ मिल गया...

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  3. बहुत बढिया चर्चा .. अनेक महत्‍वपूर्ण लिंक मिल गए।

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  4. चर्चा के दुःख दर्द को समेटती बढियां चर्चा

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  5. बहुत बडिया मगर जरा जल्दी आईयेगा शुभकामनाये्

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  6. चैलेंजेस को चीर के निकलना तो आपको बखूबी आता है.. चर्चा वाकई उम्दा रही.. एक और टेस्ट का शुमार हो गया है चर्चा में..

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  7. वह चर्चा चर्चा ही क्या जो मस्त-मस्त न हो.:) सभी के साथ हमारी भी बधाई।

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  8. चर्चा की तारीफ चर्चा का कलेवर देखते ही करने का मन करता है । बेहतरीन शैली में की गयी चर्चा । आभार ।

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  9. बहुत सुंदर मनभावन चर्चा का रिक्‍शा

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  10. मीनाक्षी जी .....मसरूफियत की अपनी कैफियत होती है....कभी फुर्सत वालो से पूछिए दिन कैसे गुजारते है .

    जाने क्या निस्बत है कि शब जाते जाते
    रोज याद का कासा छोड़ जाती है .....
    हर सुबह एक लम्हा पड़ा मिलता है

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  11. Indore, Madhya Pradesh, India
    Bharti Broadband (122.168.212.118) [Label IP Address



    उम्मीद करता हूँ आशीष इस आई पी एड्रेस को पहचानने में मेरी मदद करेगे.....

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  12. लगभग सभी पोस्ट पढ़ी जा चुकी हैं,
    अतएव चर्चा भी अच्छी ही होनी चाहिये ।
    मैं भी सभी पँचों के सँग अपना हाथ ऊपर उठाता हूँ, जी ।

    @ अनुराग : मैं कोई सहायता करूँ ?
    पर कोई लाभ नहीं है, स्वयँ अपने को ही क्षोभ होगा ।
    दूरभाष पर एक दूसरे तरह की ब्लागिंग चला करती है ।
    अपना भ्रम जीवित रखो, सुखी रहोगे !

    डाक्टर्स डे का देना पावना फिर कभी !

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  13. यह डाक्टर अमर कुमार ने माकूल कहा - "दूरभाष पर एक दूसरे तरह की ब्लागिंग चला करती है ।
    अपना भ्रम जीवित रखो, सुखी रहोगे !"

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  14. मनभावन चिट्ठाचर्चा रही यह। आभार मीनाक्षी दी का।

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