गुरुवार, नवंबर 12, 2009

मन पछितैहै अवसर बीते

 

महाराष्ट्र में विधायक द्वारा हिन्दी में शपथ लेने पर उसकी पिटाई पर अलग-अलग प्रतिक्रियायें देखने को मिलीं। धीरू सिंह मानते हैं कि वन्देमातरम ,मराठी हिन्दी जैसे विवाद प्रायोजित है क्योकि महंगाई पर ध्यान ना जाए वहीं अर्कजेश कहते हैं कि हिन्दी बोलने पीट दिया किसी ने तो इसमें नया क्या है भाई ये तो बहुत दिन से होता आ रहा है।

लवली ने अपने लेख आदिमानव और ईश्वर की खोज में बताया है कि मानव का समाजीकरण प्रकृति की जैविक व्यवस्था के विरुद्ध था. अंतर्विरोधों से संघर्ष करते हुए मनुष्य समाजिकता और सभ्यता की सीढियाँ चढ़ता गया, जटिल होता गया...ईश्वर की अवधारण को कई रूपों में (जैसे चित्रों, गीतों, कहावतों, कहानिओं और लिखित दस्तावेजों द्वारा) अगली पीढी को हस्तान्तरित करता गया..और इसके साथ कई पिढि़ओं से संग्रहित भय (जो उसे अपने बनैले पूर्वजों से विरासत मिला था)भी जटिल होता गया. ईश्वर की अवधारण भी देशकाल समाज के अनुसार बदलती रही...जो आज आपके सामने कई नवीनतम रूपों में उपस्थित है.

इस आलेख को बेहतरीन बताते हुये प्रवीण शाह ने टिप्पणी व्यक्त की परन्तु इस चर्चा के मूल भाव को तभी समझा जा सकता है जब पाठक ईश्वर और धर्म संबंधी माँ के दूध के साथ मिले अपने पूर्वाग्रहों से मुक्त होने का साहस दिखा सके...

 

                             

image समीरलाल आजकल घणे आध्यात्मिक होते जा रहे हैं। उनके लेखन का स्तर ऊंचा हो गया है और वे अब इशारों में बात करने लगे हैं। आज देखिये उन्होंने क्या पता-कल हो न हो!!-एक लघु कथा के माध्यम से सीख दी कि -जब मिले, जैसे मिले, खुशियाँ मनाओ! क्या पता-कल हो न हो!! 

इस समीर संदेश को पकड़ा खुशदीप सहगल ने और कहा

कल क्या होगा, किसको पता
अभी ज़िंदगी का ले ले मज़ा...
गुरुदेव, बड़ा गूढ़ दर्शन दे दिया....क्या ये पेड़ उन मां-बाप के बिम्ब नहीं है जिनके बच्चे दूर कहीं बसेरा बना लेते हैं....साल-दो साल में एक बार घर लौटते हैं तो मां-बाप उन पलों को भरपूर जी लेना चाहते हैं,,,,

समीरलालजी ने खुशदीप की बात को सही करार दिया और कहा- बहुत सही पकड़ा खुशदीप...यही तो वजह है कि तुम... :)  अब इस पकड़म-पकड़ाई में हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि तुम और इस्माइली के बीच क्या है? इसे कौन पकड़ेगा? क्या यह अबूझा ही रह जायेगा?

जगदीश भाटिया लिखते हैं -हिंदी ब्लॉग खोज रहे हैं? आपके बगल में ही है अगला हिंदी ब्लॉग

इस ज़िद को बचाये रखना अल्पना जी में कहानीकार अल्पना मिश्र द्वारा एक पुरस्कार को लेने से मना कर देने की कहानी पढ़िये और अल्पना मिश्र की बड़ाई कीजिये।
कर ली है नौकरी,तोड़ दी बंदूक,फ़िर छोड़ेंगे नौकरी,फ़िर खरीद लेंगे बंदूक। में अनिल पुसदकर अपनी नयी नौकरी पकड़ने की बात बताते हैं और कहते हैं:
नई नौकरी कोई नई बात नही है लेकिन इस बार मेरे साथ एक नया परिवार भी है ब्लाग परिवार सो इस बार की खुशी आप सभी से बांट रहा हूं।ये थोड़ा लम्बी चली ऐसी दुआ करना।मुझे नौकरी की ज़रुरत नही है फ़िर भी मै भी नौकरी करके नौकरी छोड़ू की ईमेज भी तोड़ना चाहता हूं।आप लोगों का स्नेह,आशीर्वाद निश्चित ही मेरा मनोबल बढायेगा।

 

वर्ष-2009 : हिन्दी ब्लॉग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-9) में जानिये हिन्दी ब्लागिंग के सफ़र के बारे में।

 

एक लाईना:

१.कर ली है नौकरी,तोड़ दी बंदूक,फ़िर छोड़ेंगे नौकरी,फ़िर खरीद लेंगे बंदूक।: अब ये मत पूछियो की कारतूस कहां से आयेंगे।

२. कैटी भाभी से चुपके चुपके शादी करली? दगाबाज कहीं के!: पत्तल उठवाने तक न पहुंचे।

३."सजा मौत की दे दो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"): मिलेगी शास्त्रीजी सब मिलेगी लेकिन सीनियारिटी से।

४.कुछ यादें इक गृह विरही की ....: घर में बैठकर लिखी जा रही हैं।

५. वो कोन था??: जो जान बचाकर निकल लिया।

६.आदमी को पकाने की विधि !!!!: सबको पता है यहां वही तो चल रहा है।

७.गलत समझने का आनंद !: ही कुछ और होता है।

८.तुम्हारा सौन्दर्य और मेरा पागलपन.: अक्सर ब्लाग पर मिलते हैं।

९. चिट्ठाचर्चा: ये दुरूह आत्मपीडक कर्म कर कैसे लेते हैं आप?: परपीड़ा का भाव जोड़ लेते हैं बस हो जाता है।

१०.हम भैंस को माता क्यों नहीं कहते...खुशदीप:चलो तुम शुरू कहना।

११.खामोश रात में तुम्हारी यादें--------------(मिथिलेश दुबे ): बहुत हल्ला मचाती हैं।

मेरी पसंद

image "ऐसा नही है कि ये धुंध नया है !!"

धुंध होते आए हैं
और आँखें मात खाती रही हैं
जब जाड़े के दिनों में
साइकिल पे निकला करता था
सुबह-सुबह ट्यूशन के लिए,
ये धुंध तब भी किया करती थी परेशान
ये धुंध तो हटाये नही हटती थी
जब बारहवीं की परीक्षा में
पहले निस्कासित और फिर बाद में
अनुतीर्ण होना हो गया था
इस धुंध ने हाथ पकड़ लिए थे मेरे
जब एक उमरदराज़ औरत के प्रेम में था
और निकलना चाहता था
और तब भी जब मुझे पड़ने लगे थे
मिर्गी के दौड़े अचानक से
पढ़ाई पूरी होने के बाद
रोजगार की तलाश में
जब निकल आया था घर से मैं
तब भी बिल्कुल यही धुंध छाई हुई थी चेहरे पे
आज भी धुंध हैं कुछ
और मैं जानता हूँ आगे भी रहेंगे ये
क्यूँकि जिंदगी बिना धुंधों के सफर नही करती
अभी तक के सारे धुंधों से तो
निकाल लाए हो तुम,
ऊँगली पकड़े रखा है मेरा
और अकसर पूछते हो
कि मैं कहीं लडखड़ा तो नही रहा
और आश्वस्त हो जाते हो जान कर कि मैं सकुशल हूँ.
पर मैं सोंचता हूँ उन दिनो के बारे में
जब धुंध तो होगी, पर तुम नही रहोगे
तब मैं कैसे निकलूँगा उन धुंधों से पापा !!!

ओम आर्य

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सपने में आई एक लड़की
अनदेखी सी
अनजानी सी
पर लगती थी
पहचानी सी
बतला रही थी
खिलखिला रही थी
जीने की आरजू जगा रही थी
फेर कर उंगलियाँ बालों में
खूब सारा दुलार लुटा रही थी
बैठाकर फिर मुझे साईकिल पर
मेरे सपनों को पंख लगा रही थी
कुछ दूर चली और बोली
चल साथी ऐसा करते है
किसी चेहरे पर मुस्कान रखते है...........
बहुत दिन हो गए
आसमान को एक ही रंग में रहते
आ अपने सपनों का रंग उस पर रंगते है.....
तलाशता रहा जिसे जिंदगी की गलियों में
ना जाने क्यूँ?
वो सपनो के चौराहों पर
मुस्कराती मिला करती है। सुशील कुमार छौक्करimage जब मैं प्रेम करता हूँ
तो अनुभव करता हूँ
कि सम्राट हूँ अपने समय का
मेरी अधीनता में है समूची पृथ्वी
इस पर विद्यमान तमाम चीजें
और मैं सूर्य की ओर दौड़ाए जा रहा हूँ अपना अश्व ।

निज़ार क़ब्बानी

और अंत में: फ़िलहाल इतना ही। कल ई-स्वामी की पोस्ट देखी जो उन्होंने चर्चा के बारे में लिखी। इसमें मेरी एक पुरानी पोस्ट की लिंक भी थी। उसमें मैंने लिखा था:

किसी चीज को पटरा करने के दो ही तरीके होते हैं:-

1.उसको चीज को टपका दो(जो कि संभव नहीं है यहां)

2.बेहतर विकल्प पेश करो ताकि उस चीज के कदरदान कम हो जायें.

झटकों में ऊर्जा होती है.उसका सदुपयोग किया जाना चाहिये.बात बोलेगी हम नहीं.ऐसे अवसर बार-बार नहीं आते.पता नहीं अगली मिर्ची कब लगाये कोई.

आपको अगर इस चर्चा से कोई झटका लगा हो तो उसका सदुपयोग करिये। पता नहीं अगला अवसर कब आये! मनपछितैहै अवसर बीते।

देखिये मिशिर सी बाकी सब छीलने के बाद गन्ना छीलते कित्ते क्यूट लग रहे हैं। बाकी क्या छील चुके हैं ये आपको उनसे खुद पूछना चाहिये वे बता भी रहे हैं आपको जानना है तो उनके ब्लाग पर जाइये और देखिये क्या शानदार रचनायें दे रहे हैं वे आजकल।

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26 टिप्‍पणियां:

  1. अंदाज पे तो कुर्बान हूँ मै..

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  2. वाह शुक्ल जी!
    एक लाइना के सवाल तो बढ़िया थे ही,
    जवाब उनसे भी बढ़िया है।
    सान्त्वना देने के लिए आभार!

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  3. लगता है अब बमचक को किनारे करके सबकुछ वापस नॉर्मल होने की राह पर है। बड़ा ही कूल-कूल है जी...!

    ‘छीलने’ और ‘तराशने’ में कितना फर्क है सर जी? जवाब देना जरूरी नहीं है। ऐंवेई पूछ रहा था। :)

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  4. फ़ुरसतिया भैया कारतूस दिलवा देना।धीरू भैया ने बताया है कि आप ही देंगे।हमेशा की तरह मस्त रही चर्चा।

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  5. @गुरुदेव

    १९ चिट्ठों की चर्चा जिनमे शामिल हैं
    ३ कविता वाले, १ गन्ना भक्षण वाला, १ आदमी को पकाने वाला

    आज दो खास चिट्ठे थे - साईंस ब्लागर्स असोसिएशन ने हिन्दी चिट्ठाकारों के लिये दो पुरुस्कारों की घोषणा की थी. दूसरा एक मुस्लिम भारतीय की इमानदार अभिव्यक्ति थी - "एक भी भारतीय मुस्लमान देशभक्त नही है" इस्लाम और कुरान नाम चिट्ठे पर. काफ़ी हिट्स पडी हैं दोनो पर और वे सचमुच उल्लेखनीय थे.

    आज इन दोनो समेत अन्य कई उल्लेखनीय चिट्ठों की कडियां यहां नही मिलीं. जब की इस विषय में आपके चिट्ठे पर भी किसी ने निवेदन किया है. निवेदन की भाषा अनसुनी क्यों की जाती है जब तक वो साण्डिया लेखन में तब्दील ना हो?

    पुन: मेरा निवेदन है की मेरे किसी गैर-तकनीकी लेख से पहले किसी विज्ञान वाले उल्लेखनीय लेख की कडी को यहां प्राथमिकता दी जाए.

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  6. एक लाईना हमेशा की तरह मस्त...

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  7. @ई-स्वामी, सांइस ब्लाग की चर्चा का अनुरोध जिस क्षण मिला था उसके अगले ही क्षण क्षण साइंस ब्लाग चर्चा के लिये चर्चाकार का नाम तय हो गया था। चर्चाकार का नाम देख सकते हो। एकाध दिन में नियमित चर्चा शुरु होगी।
    जो बलाग पोस्ट तुमने बताये उनके लिंक भी देते तो लोग आनन्दित होते।
    कविता वाले चिट्ठे मुझ अच्छे लगे। गन्ने चूसने का सौन्दर्य भी अद्भुत होता है। देखो तो सही। मिसिरजी इतने क्यूट और कभी नहीं लगे मुझे तो।
    प्रतिक्रिया मजेदार है।

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  8. चर्चा से कोई झटका लगा हो तो उसका सदुपयोग करिये ।
    स्माइली लई जा रे .... टीप कैसे दूँ मैं बेदर्दी
    झटकाभिव्यक्तियों से परीशानी होगी ,( स्माइलियाँ लूट दनादन )
    मसलन अभी अभी ई-स्वामी ने एक प्रासँगिक झटके का जिक्र किया ।
    इसका निराकरण पोस्ट में न सही, पर यदि चर्चाकार टिप्पणी बक्से में ही कर दे, तो स्वतः एक स्वस्थ माहौल बनने लगेगा ।
    इन झटकों को सिरे से ही इन्सुलेट करने के प्रयास से मिर्ची लगने जैसी चिंगारियों का सिलसिला निकल पड़ता है ।
    समय से प्रकट होने के धन्यवाद, हे ई-स्वामी !
    बकिया चर्चा असँतुलित नहीं कही जा सकती ।

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  9. उपरोक्त टीप देते समय भान न था कि चर्चाकार की त्वरित निराकरण रस्ते है ।
    इति अस्य टीप ठोकन्ते !

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  10. उपरोक्त टीप देते समय भान न था कि चर्चाकार की त्वरित निराकरण रस्ते में है ।
    इति अस्य टीप ठोकन्ते !

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  11. आज की दो बेस्ट लाइना ...
    खामोश रात में तुम्हारी यादे -बहुत हल्ला मचाती है
    केट भाभी से चुपके चुपके शादी कर ली ?दगाबाज कही के - पत्तल उठवाने तक न पहुंचे।

    गन्ने वाला फोटू भी मस्त है

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  12. बढिया चर्चा....एकलाईना तो एकदम कमाल्!

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  13. अभी अभी हज़ारवीं पोस्ट का जश्न मना है तो मिर्ची लगने की बात कुछ दिन के लिए पोस्टपोन कर दो। अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा आता है तो गन्ना थमा दो:) स्टाक है ना!

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  14. चर्चा बेहतर रही । एक लाइना भी जबरदस्त ।

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  15. बढिया रही चिट्रठा चर्चा .

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  16. झक्कास जी आप की चिट्ठा चर्चा

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  17. "चिट्ठाचर्चा: ये दुरूह आत्मपीडक कर्म कर कैसे लेते हैं आप?: परपीड़ा का भाव जोड़ लेते हैं बस हो जाता है।"

    "सजा मौत की दे दो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"): मिलेगी शास्त्रीजी सब मिलेगी लेकिन सीनियारिटी से।"

    "तुम्हारा सौन्दर्य और मेरा पागलपन.: अक्सर ब्लाग पर मिलते हैं।"

    विनोद-व्‍यंग की ऊंचाई है यह ।


    साधुवाद ।

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  18. हा हा!! बहुत सही टिप्पणी पकड़ लाये यही तो वजह है कि आप...:)

    बेहतरीन चर्चा.

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