मेरा मतलब कुछ नये चिट्ठे से था। स्वागत है बंगलौर के वरुण सिंह का जो कहते हैं
बाकी सब ठीक है, दिल्ली के पराग कुमार खड़े हैं
बीच-बज़ार, दिल्ली की ही शालिनी नारंग से मिलने का माध्यम है
झरोखा, पुरू ने शुरु कर दिया है अपना राग
अपनी ढपली पर, अहमदबाद के संजय ने प्रारंभ की
जोग लिखी तो उसी शहर के कुमार मानवेन्द्र ने रखा है
एक मनोविचार। साथ ही पढ़ें निवेदिता की
उत्तरा और
निशांत उवाच्।
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