मंगलवार, फ़रवरी 06, 2007

नहीं हुई चिट्ठे की चर्चा

भाई रतलामीजी ने चिट्ठे छोड़े चर्चा करने को
लेकिन शायद चिट्ठों को मेरी चर्चा मंजूर नहीं थी
कल संध्या को टूट गया पुल,जो ले जाता मुझे जाल पर
ढूँढ़ थका लेकिन नौकायें और दूसरी कहीं नहीं थीं

तापमान था फ़हरनहाईट केवल यहां अठारह डिग्री
और जम गया था पानी का पाईप मेरी नेबरहुड में
उसे ठीक करने के चक्कर में केबल कट गईं चार छह
इसीलिये हो गया असंभव, पाऊं जरा जाल से जुड़ मैं

फिर समीर को फोने लगाया, लेकिन वे भी व्यस्त बहुत थे
गिनते रहे शुक्ल जी के संग, सर पर बचे हुए बालों को
संभव है वे आज करेंगें, बाकी सब चिट्ठों की चर्चा
और समझ पायेंगे हम भी ठंडे मौसम की चालों को

4 टिप्‍पणियां:

  1. यह भी खूब रही!

    इसे कहते हैं संयोग या फिर दुर्योग!!

    जवाब देंहटाएं
  2. हम तो शाम के लिये अभी से मालिश करवा रहे हैं, इतने चिट्ठों को कवर करने के लिये कौन सी आरती गाऊँ. :)

    जवाब देंहटाएं
  3. धृतराष्ट्र वाला संजय आप लोगो को देख कर ही बिगड़ गया है, काम पर नहीं आता :)

    जवाब देंहटाएं
  4. उडन तश्तरी न घबड़ाना ,कोई रस्ता जरूर निकल आएगा ।

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.