हिन्दी ब्लागिंग में साधुवाद का युग बीत गया इसलिए मैं आतंकवादी बनना चाहता हूं. मुझे इस ढांढस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या साधुवाद का कोई युग होता है. मैं और मेरी चिट्ठाकारी अक्सर ये बाते करते हैं कि काश ऐसा होता तो कैसा होता, काश वैसा होता तो कैसा होता? क्या खाक होता. सब बेहतर हो रहा है लेकिन जिन्दगी बेहतर नहीं हो रही है. और इसी बेहतरी की खोज में मैं जा गिरा एक दिन अष्टधातु के कुंए में. देखा वहां मेरी टिप्पड़ियों के खिलाफ एक लंबी टिप्पड़ी रखी हुई थी. मैं वापस आ गया फिर से अपनी चिट्ठाकारी की दुनिया में, ढाई आखर प्रेम का लिखने.
अब मैं हे दुखभंजन, मारूति नंदन का जाप करूंगा. हनुमान जी से प्रार्थना करूंगा हे भगवान यहां कोई गांधी जी की धोती न खींचे. इसके बाद भी जो अपनी आदत से बाज नहीं आयेगा उसके लिए सलवा-जुड़ूम की वेबसाईट शुरू हो गयी है. वैसे चिट्ठाकारों के लिए यमदूत का भी आभिर्भाव हो गया है. मुश्किल समय है, चिट्ठाकारों. ढाई आखर प्रेम के सांवरे कब समझोगे तुम. वाली कहावत अब हलक के नीचे उतारना ही पड़ेगा. नहीं तो वे भी कह देंगे कि हर एक बात पर कहते हो कि तू क्या है.
अरे हिन्दीसेवा वाली बात तो भूल ही गये. तो मेरी एक विनती है कि प्लीज हिन्दी की सेवा मत करिए.
न्यूयार्क में जो लोग बैठे हैं वे घर की मुर्गी को विश्वमंच पर प्रतिष्ठित करेंगे. यह भी स्थापित सत्य है कि जैसे घर की रक्षा कुलीन स्त्री से होती है. वैसे ही समाज की रक्षा भाषा से होती है. यह लेख नहीं है, विचार भी नहीं है फिर क्या है? (अन्यथा न लें, खादिम की सीआरपी का मामला हैं.) राखी ने कपड़े उतारे तो आधा देश उधर को हो लिया है. फिलहाल मैं उधर को नहीं जा रहा हूं. मैं उधर को जा रहा हूं जहां खुशी बटोरने का एटीएम लगाया जा रहा है. इसके बाद उस भोज-भात का बचा-खुचा बटोरने पहुंच जाऊंगा जहां कल मसालेदार अरवी भी परोसी गयी थी.
क्या कहा, ज्ञान बघारने के चक्कर में चर्चा टर्चा हो गयी. तो चलिए चार दोस्तों को इकट्ठा कर समवेत स्वर में कहते हैं -
संजय तिवारी शेम शेम
अच्छा लिखा है। बधाई!
जवाब देंहटाएंसंजय जी,बहुत सटीक लिखा है।बहुत तरतीब से चिट्ठों और अपनी बात को कहा है। बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह वाह, सुन्दर चर्चा और उससे ज्यादा, सार्थक चर्चा. आनन्द आ गया. बधाई मित्र.
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