मंगलवार, जुलाई 17, 2007

हम बोलें भी तो क्या बोलें

चार दिनों तक, हिन्दी के मैं सम्मेलन में गया हुआ था
इसीलिये अब कार्य भार जो जुड़ा हुआ है, निपटाना है
चाहा तो था, समय किन्तु मिल सका नहीं कुछ भी पढ़ने का
इसीलिये चर्चा में मुश्किल हुआ जरा भी लिख पाना है

नारद पर देखें या जाकर चिट्ठा जग को आप टटोलें
हिन्दी के ब्लाग के जाकर डाट काम पर परदे खोलें
जैसे भी चाहें अपनी पसन्द के चिट्ठे जाकर पढ़लें
लिख देते हैं लिखने वाले, हम बोलें भी तो क्या बोलें

5 टिप्‍पणियां:

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