यदि आपने अभी तक नहीं जाना है तो अब जानना ही होगा कि आज हिमांशु जी का हैप्पी बड्डे है . बधाई देना न भूलें . इसमें कोई समस्या न होगी . बल्कि जिन ब्लॉगर बन्धुओं की ट्यूब खाली हो गई हो उनके लिए एक पोस्ट भी बनती है .
वैसे जिसकी ट्यूब खाली हो जाय वह बिलागर ही क्या ? लोगों की डायरियाँ चोरी कर करके छाप दीजिए, किसी बेचारी का दुपट्टा उड़ जाय तो चटखारे ले लेकर सबको बता दीजिए और कुछ न मिले तो बेचारे मासूम छात्रों की उत्तर पुस्तिकाओं को सरे आम छाप दीजिए यह बताते हुए कि यह रिजेक्ट हो गई थी ! जी हाँ ऐसा किया गया है . हम आपसे झूठ क्यों बोलेंगे ? हम पर भरोसा नहीं आपको ?
आपको हम पर भरोसा हो या न हो , हमें अपने गुरु जी पर पूरा भरोसा है कि वे जो कहेंगे वह ठीक ही होगा ! कहते हैं कि " यह बजट का मौसम है . " और यहाँ सब लोग अब तक यही सोचकर परेशान हैं कि यह बारिश का मौसम है और बारिश का इन्तजार किये जारहे हैं . न जाने कितने कवि कविताएं लिख चुके मानसून पर . उनमें हम भी शामिल हैं . आशा है बजट के मौसम के बाद बारिश का मौसम होगा .
लो बारिश तो आ भी गई . प्रिया ने अपने बिलाग पर पहली बारिश के बारे में लिखा है : "आज पहली बारिश ने मदहोश कर दिया ."
मदहोश प्रिया को होने दीजिए आप होश में रहिये और रवि रतलामी की यह कविता पढिये जो प्रिया से क्षमा याचना सहित लिखी गई है . लिखते हैं :
आज पहली बारिश ने सत्यानाश कर दिया,
पॉलीथीन से तने झोंपड़े को सराबोर कर दिया,
एक झोंका हौले से आया और तिरपाल ले गया,
फिजा ने कान से टकरा कर जैसे, एक गाली दे दिया।
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि चीख पुकार तो मचनी है , चाहे बारिश के अभाव में मचे या बहाव में मचे ! लेकिन सब लोग ऐसे नहीं होते जो चीख पुकार मचायें . कुछ असली हीरो होते हैं जो गुमनाम रहकर भी शान्ति से अपना काम करते रहते हैं .
ऐसे दो हीरों के बारे में सुरेश चिपलूणकर अपने बिलाग पर बता रहे हैं . एक हैं माताप्रसाद जिन्होंने बुन्देलखण्ड के सूखे इलाके में जंगल खड़ा करके प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया है , दूसरे हैं शारदानन्द दास जो एक स्कूल टीचर हैं जिन्होंने जीवन शिक्षा के लिए समर्पित कर दिया .
उदाहरण तो उस शेर ने भी प्रस्तुत किया जिसने गधे को मन्त्री बना दिया . और कुछ परिस्थितियों में शायद यह प्रेरक भी हो . जी हाँ हम बात कर रहे हैं शास्त्री जी के बिलाग सारथी पर छपने वाली कहानी की जिसे तूफ़ान से पहले की शान्तिस्वरूप प्रस्तुत किया गया है . शास्त्री जी आगे क्या तूफ़ान लाते हैं यह जानने के लिए दिल थाम लीजिए !
अब दिल थाम ही लिया है तो अलबेला खत्री की यह पोस्ट भी पढ़ लें जिसकी काफ़ी तारीफ़ें की जारही हैं . कुछ लोगों को शायद यह ठीक न लगा हो पर उन्हें समझना चाहिए कि यह सब तो धरती पर जब से जीवन है तब से होता रहा है और होता रहेगा यानी बारिश न होने पर चीख पुकार !
अभिषेक ओझा को शिव जी से जिज्ञासु होने का वरदान मिला था तो हम उनकी इस जिज्ञासा का समाधान पहले से ही किए देते हैं कि धरती पर जीवन का आरम्भ कहाँ हुआ . बता रहे हैं हमारे संवाददाता अशोक पाण्डेय :
शोधकर्ताओं के एक नए अध्ययन से खुलासा हुआ है कि विंध्य घाटी में मिले जीवाश्म दुनिया में प्राचीनतम हैं। ये धरती के अन्य किसी हिस्से में पाए गए जीवाश्मों से 40 से 60 करोड़ साल पुराने हैं। यदि इन निष्पत्तियों पर भरोसा करें तो जाहिर है कि धरती परअब सवाल उठेगा कि बिलागर को जीवन से क्या कुछ बिलागिंग का आगा पीछा बताओ तो बात बने तो ऐ लो जी वकील साहब से ब्लॉगिंग का आगा जानिए पीछा तो आपणै पता ही होगा . कहते हैं :
जीवन का आरंभ भारत के विंध्य क्षेत्र में हुआ।
जब मनुष्य एक विश्व समुदाय के निर्माण की ओर बढ़ रहा है तो उसे और अधिक सामाजिक होना पड़ेगा। उसे उन मूल्यों की परवाह करनी पड़ेगी जो इस विश्व समुदाय केठीक ही तो कहते हैं पर कोई मानने को तैयार ही नहीं . लोगों को चोरी चकारी से फ़ुर्सत हो तब न . दावा किया गया है कि गगन शर्मा अलग सा वाले की कहानी अमिताभ बच्चन के बिलाग पर अंग्रेजी में रूपान्तरित करके डाली गई है ! दावा करने वाले हैं ab inconvenienti जी . कहते हैं :
बनने और उस के स्थाई रूप से बने रहने के लिए आवश्यक हैं। वाक् और अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता इन मूल्यों के परे नहीं हो सकती। हमें इन मूल्यों की परवाह करनी
होगी। संविधान ने इन मूल्यों की रक्षा के लिए अनुच्छेद 19 (2) में वाक् और
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निर्बंधन लगाने की व्यवस्था की है। ब्लागिंग
सहित संपूर्ण अंतर्जाल पर वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी इन निर्बंधनों के
अधीन हैं।
बधाई दें आज एक हिंदी ब्लॉगर की कृति महानायक अमिताभ ने उधार ले कर पोस्ट की है. अमिताभ का कहना है की यह कहानी उन्हें ईमेल पर मिली थी. ख़ुशी की बात है की एकहालाँकि कविता जी का सोचना भी अपनी जगह ठीक लगता है ! अब देखिए कि कहानी है क्या हिन्दी में यहाँ पढ़ें और अंग्रेजी में यहाँ पढ़ें . इसमें तो कोई शक नहीं कि ऐसी प्रेरक बातों को जितने लोग पढ़ें रूपान्तरित करें उतना ही अच्छा है !
हिंदी ब्लॉगर की रचना पब्लिक को इतनी पसंद आई की अंग्रेजी में रूपांतरित कर इसे
सारे विश्व में लोग एक दुसरे को ईमेल भी करने लगे, पर मूळ लेखक को श्रेय दिए बिना.
हिंदी ब्लागरों से यह कैसी दुश्मनी?
ये छोटी मोटी बातें शान्ति का प्रतीक हैं, जब कोई धाँसू विषय न हो तो बेचारे बेनामी जी को ही सताने लगते हैं लोग . जिस बेचारे के पास अपना नाम तक नहीं उसे सताने में कितना मज़ा आरहा है इन्हें . ये तो कोई अच्छी बात नहीं है न जी ! पिछले दिनों बेनामी जी पर ढेरों लेख लिखे गए . खूब लताड़ पिलाई गई . कुछ लोग शान्ति शान्ति भी चिल्लाते रहे पर शान्ति चुप ही रही ! उस ढेर में से एक मुट्ठी हम ले आये हैं आपको दिखाने के लिए .
- जो ब्लॉगर भी अनाम कमेण्ट से परेशान हैं और मॉडरेशन नहीं लगाना चाहते हैं : रचना सिंह
- अनाम कमेन्ट क्यूँ ?बात की तह तक जाए : रचना सिंह
- बेनामी टिप्पणीकारों, तुम्हारा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता : आशीष खण्डेलवाल
- बेनामी कमेंट करने वालों को ललकार रहा है भड़ास.. : डा. रूपेश श्रीवास्तव
- बेनामी टिप्पणियों से टेंशन क्यों लेना : गगन शर्मा
- टिप्पणी अदृश्य होकर करते हैं हम ... : हिमांशु ( बड्डे बॉय )
- अनामी जी ओर आनमिका जी राम प्यारा चोकी दार आ गया : राज भाटिया
- इंतेहा हो गई ब्लॉग आतंकवाद की (टिप्पणियों पर पूरा नियंत्रण रखिए) : आशीष खण्डेलवाल
बी. एस. पाबला कागज पर छपने वाले बिलागों की सूचना देते रहते हैं . कल उन्होंने बताया कि नवभारत टाइम्स के 'हिन्दी का कच्चा चिट्ठा' लेख में कई ब्लॉगर्स का उल्लेख हुआ है ! यह लेख किन्हीं कंचन श्रीवास्तव ने लिखा है . लिखती हैं :
अमेरिका के एक प्रमुख हिन्ही ब्लॉगर फ़ुरसतिया जब कभी अपने शहर कानपुर आते हैं, अपने ब्लॉगर दोस्तों के साथ महफ़िल जमा लेते हैं .
शुक्र है यह नहीं बताया कि महफ़िल में करते क्या हैं ! इस लेख की विश्वसनीयता पर आप चाहें तो सवाल उठा सकते हैं हम कुछ नहीं कहेंगे ! फ़ुरसतिया का कोनू भरोसा है का ?
ज्ञान जी विकीपेडिया (Wikipedia) की विश्वसनीयता पर तो सवाल उठा चुके हैं देखते हैं इस मामले पर क्या कहते हैं .
कार्टून :अब चर्चा बहुत हो ली . एक कार्टून देखिए . पेश किया है सुरेश शर्मा ने . कहते हैं : महिलाओं से निवेदन, इस ब्लॉग को न देखें.. . चूँकि उनके ब्लॉग पर महिलाओं के जाने पर पाबन्दी है इस लिए नैतिकता का तकाजा यही है कि महिलाएँ यहाँ भी इसे न देखें . पर हम तो जी महिलाओं की पुरुषों से बरावरी में विश्वास करते हैं .
आगे इस ब्लॉग पर कहा गया है कि :
आज के दौर में मजाल है..फिल्में बगैर चुंबन दृश्य के बने, हर निर्माता-निर्देशक स्पेशल रूप से ऐसे दृश्य फिल्मों में रखवाते हैं, आज का दर्शक भी रस लेकर ऐसे दृश्यों का मजा लेता
है, पर उन हीरोइनों पर क्या गुजरती है जो ऐसे दृश्य करने को मजबूर हैं..कभी सोचा है
आपने? आइये देखते हैं कार्टून के माध्यम से हीरोइनों की वेदना .... आप अपने कमेंट्स
जरूर भेजना, .
अमरीका में बस गए, फ़ुरसतिया चुपचाप .