गुरुवार, सितंबर 29, 2005

पहला असमिया चिट्ठा?

मेरी जानकारी में यह शायद पहला असमिया ब्लॉग है जो असमिया लिपी का प्रयोग करता है। दुख की बात यह कि इस ब्लॉग की कोई फीड प्रकाशित नहीं होती।

रविवार, सितंबर 25, 2005

नये रंगरूट?

मेरा मतलब कुछ नये चिट्ठे से था। स्वागत है बंगलौर के वरुण सिंह का जो कहते हैं बाकी सब ठीक है, दिल्ली के पराग कुमार खड़े हैं बीच-बज़ार, दिल्ली की ही शालिनी नारंग से मिलने का माध्यम है झरोखा, पुरू ने शुरु कर दिया है अपना राग अपनी ढपली पर, अहमदबाद के संजय ने प्रारंभ की जोग लिखी तो उसी शहर के कुमार मानवेन्द्र ने रखा है एक मनोविचार। साथ ही पढ़ें निवेदिता की उत्तरा और निशांत उवाच्

शुक्रवार, सितंबर 23, 2005

बबुरी का बबुआ - भये प्रकट कृपाला

बबुरी बालक राजेश कुमार सिंह के जन्मदिन पर आशीष-वर्षा जारी रखी इंद्र कुमार अवस्थी ने। इधर विद्रोही कवि आंसुओं रसायन शास्त्रीय व्याख्या कर रहे हैं। रविरतलामी के गजलों के प्रयोग जारी हैं तथा हृदयेश जी के बारे में संस्मरण की जानकारी दे रहे हैं। सुनील दीपक सच्ची प्रेमकहानी बयान कर रहे हैं तथा लक्ष्मी नारायण गुप्ता जता रहे हैं हिन्दी प्रेम। इधर जीतेन्दर बाबू पूरी तरह से नारद का काम संभाल लिहिन हैं तथा जानकी स्वयंवर के नारदजी की तरह जगह-जगह आशीर्वाद छितरा रहे हैं।

गुरुवार, सितंबर 22, 2005

आओ बैठें, कुछ देर साथ में

हिंदी जाल जगत:आगे क्या आलोक द्वारा आयोजित चौदहवीं अनुगूंज विषय है. साथियों के आलेख आना शुरु हो गये हैं. इसके पहले राजेश ने तेहरवीं अनुगूंज का विषय दिया था - संगति की गति. अपने लेख भेजिये अभी भी देर नहीं हुई है. परिचय की कडी में राजेश के जन्मदिन के अवसर पर उनको शुभकामनायें दी गयीं. इस बीच अनुनाद ने हिंदी सुभाषित का काम पूरा किया. जीतेन्द्र नौ महीने (साल के) पूरे होने के बाद कैलेंडर बनाने का तरीका बता रहे हैं. नींद के बारे में बताने के बाद सुनील दीपक जी दोस्तों के बारे में बता रहे हैं. अक्षरग्राम पर आवाजाही के बारे में बताने वाले पंकज अपना सारा काम अपने साथियों को सौंप देने का मन बना चुके हैं. नारद पहले जीतेन्द्र ने झपट लिया अब सर्वज्ञ को थमा रहे हैं ये रमण कौल को. कवितायें भी लिखी गयीं इस बीच. फ़ुरसतिया लिखते है:
आओ बैठें, कुछ देर साथ में,
कुछ कह लें, सुन लें, बात-बात में।
गपशप किये बहुत दिन बीते,
दिन साल गुजर गये रीते-रीते।
ये दुनिया बड़ी तेज चलती है,
बस जीने के खातिर मरती है।
पता नहीं कहां पहुंचेगी,
वहां पहुंचकर क्या कर लेगी ।


संजय विद्रोही कहते हैं:
जीने को हैं बहुत जरूरी,
आधे सपने, नींदें पूरी.
चाहा जिसको उसे ना पाया,
साध हमारी रही अधूरी


प्रत्यक्षा सपनों की सोनचिरैया से रूबरू हैं:
सपनों की वह सोनचिरैया
छाती में दुबकी जाती थी
उसकी धडकन मुझसे मिलकर
बरबस मुझे रुलाती थी

सपनो की भर घूँट की प्याली
मन मलंग बन उडती थी
याद को तेरी फिर सिरहाने रख
चैन की नींद सो जाती थी

गुरुवार, सितंबर 15, 2005

यूजनेट के माध्यम से विचार-विमर्श

चिट्ठों के बाद क्या हो? यह सवाल आलोक ने उठाया था. विनय ने सुझाया है कि ब्लाग के आगे यूजनेट समूह के माध्यम से विचार-विमर्श के बारे में विचार किया जाना चाहिये. आप भी अपने सुझाव दें. संबंधित कडि़यां हैं गूगल चर्चा और गूगल संवाद.

सोमवार, सितंबर 12, 2005

मराठी चिट्ठों का नायाब ख़जाना

राम राम मंडळीकभी आपके साथ हुआ ऐसा की यूँ ही नेट पर टहलते हुए खजाना मिल जाये। मेरे साथ ऐसा ही हुआ आज! मराठी चिट्ठों को खोजता रहता ही हुँ, आज की खोज में टकराया पवन के शानदार मराठी चिट्ठे गोष्टी गमती से और बस खजाना इन्होंने ही संजो रखा था, एक नहीं, दो नहीं, पूरे ग्यारह नये मराठी चिट्ठों की करीने से बनाई सूची मिली मुझे यहाँ से। यह रहे वे नये महारथी, नंदन का मराठी साहित्य, पुणे के शैलेश खांडेकर का विदग्ध, मुंबई के संदीप देशमुख का सहज, अमित बापट का चिट्ठा, मराठी कविता, ओंकार का तांत्रिक टिप्पण्या, स्पंदन, बेहद सुंदर और चित्रमय, मुकुंद भालेराव की राम राम मंडळी, शांतनू शालिग्राम की माई जर्नी और मी मराठी। जल्द ही सभी चिट्ठों की ताज़ा सुर्खियाँ दिखेंगी चि.वि. के मराठी प्रकोष्ट में।

चक्र चलता रहे

दो चिट्ठे नदारद तो दो नये चिट्ठे हुए अवतरित! मुम्बई के अतुल सबनिस का ठेले पे हिमालय और खड़गपुर के रूपक अग्रवाल का हिन्दी ब्लॉग। स्वागत है!

शनिवार, सितंबर 10, 2005

विकसित देश के आपदा प्रबंधन

अमेरिका में आये तूफान से पीडित लोगों के प्रति कैसा संवेदनशून्य रवैया रहा अमेरिकी सरकार के नुमाइंदों का, इसके बारे में पड़ताल कर रहे हैं स्वामीजी. इसके पहले आशीष ने अमेरिका जैसे विकसित देश के आपदा प्रबंधन की भारत जैसे विकासशील देश के शहर मुंबई के आपदा प्रबंधन से तुलना की. जालस्थल को लोकप्रिय बनाने के फंडे पाइये आलोक से. हिंदी के १०० चिट्ठे पूरे होने के बाद की रूपरेखा की कल्पना कर रहे है आलोक. इधर रविरतलामी ने अपने जीवन के छींटेदार अनुभव बताने शुरु किये. दावतें भी कैसे बवाले-जान बन जाती हैं, जानिये सुनीलदीपकजी से. मंगल पर दंगल का आयोजन कर रहे हैं देवाशीष. लालादीन दयाल अमेरिका से भारत क्यों भागना चाहते हैं जानिये लक्ष्मी गुप्ता जी से. हडबडी मत करिये आराम से पढियेगा पूरा कवि सम्मेलन है उधर. आशीष कयास लगा रहे हैं भारत के विकास के बारे में. भारतेन्दु हरिशचन्द्र् की हजलें पढिए रचनाकार में. हनुमानजी संतोष की शिक्षा देते हैं. जब सब लोग जीतेन्द्र को जन्मदिन की शुभकामनायें दे रहे थे तो वे पता नहीं कहां केक काट रहे थे!

गुरुवार, सितंबर 08, 2005

अस्सी नब्बे पूरे सौ!

पूरे सौहिन्दी ब्लॉगमंडल में हार्दिक स्वागत इन ६ नये चिट्ठों काः IIFM, भोपाल के छात्र भास्कर लक्षकर का संवदिया; लखनउ के निशांत शर्मा, समूह ब्लॉग कहकशां, यूवीआर का हिन्दी, मासीजीवी का शब्दशिल्प और रायबरैली के राहुल तिवारी का जी हाँ! और खुशी के बात यह भी है कि हिन्दी ब्लॉग संसार की संख्या आखिरकार प्रतीक्षित १०० की संख्या तक पहुँच ही गई। शत शत अभिनन्दन सभी चिट्ठाकारों का!

मंगलवार, सितंबर 06, 2005

अमर सिंह का ब्लॉग सन्यास?

यह कदम राजनैतिक या नहीं कहा नहीं जा सकता पर कथित एकलौते सेलिब्रिटी ब्लॉगर अमर सिंह ने अपना खेमा गिरा दिया है ऐसा प्रतीत होता है।

रविवार, सितंबर 04, 2005

कैटरीना का कहर-दरकती चुप्पी

अमेरिका के कैटरीना के कहर के नजारे सुनिये आशीष से तथा आपदा प्रबन्धन में हुई उदासीनता का गणित जानिये स्वामीजी से. मदर टेरेसा क्या वास्तव में संत थीं इस पर विचार कर रहें हैं रमन कौल. शास्त्रीय संगीत की समझ आते-आते आती है कुछ ऐसा मानना है सुनील दीपक का. अगर आदमी अमर हो जाये तो क्या समस्यायें होंगी उनकी कल्पनायें रवि करते हैं. निठल्ले तरुन गैस की कमी, ड्रेस कोड से जूझते हुये अंत में सुभाषित सहस्र में अपना योगदान देते पाये गये. भोलाराम कहते हैं उनको लिखने में 'डिस्टर्ब' न किया जाये. काली की खिचडी का स्वाद खुद चखिये. हिंदी ब्लाग जगत की सक्रिय चिट्ठाकार प्रत्यक्षा के बारे में पढिये फुरसतिया में.

शुक्रवार, सितंबर 02, 2005

इंडिब्लॉग रिव्यू

नामचीन भारतीय ब्लॉगरों के परिचय और साक्षात्कारअमित का बढ़िया प्रयास! पहले अंक में पढ़े पैट्रिक का परिचय।

गुरुवार, सितंबर 01, 2005

हिंदी सुभाषित सहस्र

अनुगूंज के बारहवें आयोजन का अवलोकन करते हुये अनुनाद सिंह ने सारे हिंदी चिट्ठाकारों द्वारा भेजे गये सुभाषितों के संकलन का उल्लेखनीय काम किया। आशीष कुमार को यह विक्रम ने बताया कि केनेडी क्यों मुस्कराये थे। सुनील दीपक जी यादों के रंग में डूब गये। लक्ष्मी नारायण गुप्ता नयी गज़ल के साथ हाजिर हैं। वहीं रवि रतलामी बता रहे हैं कि ज्यादा वजन की चिंता नहीं करनी चाहिये।

बिपाशा का अपहरण

अगर इनके प्रशंसकों के दिल की धड़कन तेज़ हो गई हो तो हमे क्षमा करें। हमारा इशारा तो बस प्रकाश झा की नई फिल्म के प्रचार के लिये बने उनके ब्लॉग की ओर था।

सड़क पर शुतुरमुर्ग नाचा

अतुल का ध्यान आजकल उछलकूद् नाच-गाने देखेने में लगा है। कहीं बालाओं के कन्धों पर सवार, बालक-स्पर्श हेतु, उचकती बालिका को दिखाकर पूछते हैं ये क्या (तमाशा) हो रहा है। कहीं सड़क के शुतुरमुर्ग या घर के जानवर। नितित बागला ने अपने शौक बताने शुरु किये। भोलाराम मीणा बहुत दिन बाद दिखे। आते ही किसी बीमारी के शिकार हो गये। बीमारी का एक इलाज मिला तो किसी ने इनका मेल बाक्स फाड़ दिया। इनके ब्लॉग-परिचय में लिखा है कि "हम फोटो में सबसे लम्बे लडके हैं" लेकिन फोटो अकेले की है वह भी बैठी।

उधर रवि रतलामीजी बता रहे हैं कि ब्लॉग इतिहास की बात हो गई - पाडकास्ट की बात करो। आनलाइन उपन्यास का बाहरवां भाग भी पढ़ा जाये। आशीष ने हिंदिनी पर अपनी पहली पोस्ट में कार्बन उत्सर्जन के बारे में बताया। रविरतलामी जी ने रचनाकार पर अजय जैन की व्यंग्य कविता लिखी जो कि पढ़ी नहीं जा रही है कुछ समस्या है शायद रचनाकार में। लक्ष्मीनारायण गुप्त भरी जवानी में 'प्रौढ़ प्रणय निवेदन' कर रहे हैं। जीतेन्दर को लगता है उनको लोग सुने पर वो हमेशा की तरह खजूर पर लटकना पसन्द करते हैं। फुरसतिया में कन्हैयालाल बाजपेयी की कविता पढ़ें।