बुधवार, दिसंबर 09, 2009

हमारे टिप्पणीकार, मास्टरजी और नकली दांत

 

 

हमारे टिप्पणीकार-चंदर्मौलेश्वर प्रसाद जी

image चिट्ठाजगत में भांति-भांति के टिप्पणीकार हैं। सबका अलग-अलग अंदाज है। समीरलाल सबसे उदार टिप्पणीकार के रूप में प्रसिद्ध हैं और उनकी टिप्पणियां साधुवादी टिप्पणी के रूप में। वाद-विवाद की संभावना वाली जगह पर वे अक्सर अपनी पहली टिप्पणी को ही आखिरी टिप्पणी कहकर टिपियाते हैं।डा.अनुराग आर्य जो भी टिप्पणी करते हैं ,अपना दिल उड़ेल देते हैं। चाहे दिल छोटे पाउच में हो या फ़िर पोस्टनुमा टिप्पणी लेकिन मजाल है कि उनकी टिप्पणी बिना उनके दिल के कहीं टहलती दिखाई दे। ज्ञानजी लेकॉनिक टिप्पणी के नाम पर कभी-कभी खेत के मंच से खलिहान राग गा देते हैं। अक्सर वे फ़ैशन के हिसाब से खिलौना टिप्पणी करने के दौर से गुजरते हैं। काफ़ी दिन भीगी पलकें/आप मेरे ब्लाग पर आयें टाइप टिप्पणियां करते रहे। आजकल उनके ऊपर नाइस (Nice) का बुखार चढ़ा है। डा.अमर कुमार एक बार नहीं टिपियाते हैं बार-बार टिपियाते हैं। उनका टिप्पणी अगर आधी समझ में आ जाये तो समझ लो काम पूरा हो गया। ताऊ राम राम के साथ चलते हैं। राम-राम के दिन आ गये हैं। रचनाजी स्त्री ब्लागों को छोड़कर केवल वाह-वाही टिप्पणियां करने से परहेज करती हैं। वे अक्सर जब भी टिप्पणी करती हैं तो कोई सवाल उठाती हैं या एतराज। विवेक सिंह लगता है पंचर करने वाली कील से टिपियाते हैं। चिट्ठाचर्चा के अन्य नियमित टिप्पणीकारों के अलावा एक टिप्पणीकार ऐसे हैं जिनकी टिप्पणी हमेशा चुहलभरी होती है। वे हैं चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी। 67 साल के युवा चंद्रमौलेश्वर जी की टिप्पणी छोटी होती है और अक्सर वह पोस्ट से ही निकलती है।  आपकी पोस्ट से ही कोई वाक्य निकालकर चुटकी ले जाते हैं। उनकी टिप्पणी का अंदाज खिलंदड़ा होता है लेकिन ऐसा नहीं कि किसी को बुरा लगे। चोट पहुंचाने की बजाय वे चुट्की लेने में यकीन रखते हैं। चिट्ठाचर्चा में आमतौर पर उससे भी/ही चुटकी लेते हैं जो  चिट्ठाचर्चा की खिंचाई करती हुई टिप्पणी करते हैं। इसी क्रम में देखिये चंद्रमौलेश्वर जी की कुछ टिप्पणियां

१.एक लाइना- इधर से भी....
लेकिन आपने सागर से कह दिया।- चुगलखोर कहीं का
मुझे शरम आती है आपसे बात करते हुए.- फिर भी बात कर रहा है बेशरम :)

उसने मुझे चूमा बहुत धीमे मैंने कसके से

२.`इस जमीन की ये बेइंतहा खूबसूरती उसी सर्वशक्तिमान का तो जलवा है और वो यदि चाहे तो यहाँ का सुलगता माहौल भी एक चुटकी में सामान्य हो जाये..'
ईश्वर तो चाहता है पर शायद खुदा नहीं चाहता :)

रेखाचित्र में हिटलर का भी हाथ खूब चलता था से

३.`लेकिन यह एक जीवंत संवाद तो है ही जिसमें नमस्कार भी एक टिप्पणी है/प्रतिनमस्कार भी एक टिप्पणी है। '
NAMASKAR :)

चिट्ठा अर्थव्यवस्‍था में टिप्‍पणी एक ग्रोसली ओवरवैल्‍यूड करेंसी है. से

४. यह टिप्पणी प्राप्त होना कि "बहुत खूबसूरत रचना/ भावपूर्ण रचना/ Nice Post"
जब आपको इस तरह की टिप्पणी प्राप्त हो तो इसका तात्पर्य यह है कि पढ़ने वाले के पास आपकी पोस्ट के बारे में कहने को कु्छ नही है या बहुत से ब्लॉंगर सिर्फ़ बिना पढ़े अपनी अधिक से अधिक टिप्पणी दर्ज कराना चाहते हैं. इसका मतलब यह भी निकलता है कि आप ने इतना रोचक नही लिखा कि पाठक दिलचस्पी ले.'
बहुत खूबसूरत चर्चा........ विदाउट लेकुना :)

लेकोनिक टिप्‍पणी लेकोनिक चर्चा से

५.‘पर सवाल यह है कि क्या आप अपनी जमीन पर वापस लौट सकेंगे?
शहरों ने हमारे भीतर चकाचौंध पैदा की है। शहरों में रहकर जो अपने गांवों को याद करते हैं, साहस क्यों नहीं करते वापस लौटने का। ’
भैया हम तो जिस गांव और घर में जन्मे थे, आज तक उसी से चिपके हैं- ये और बात है कि अब यह गांव का शहरीकरण हो गया है... इसके लिए हम थोडे़ ही न ज़िम्मेदार हैं :)

सम्मान सहित हम सब कितने अपमानित हैं से

६.गज़लियाती चर्चा से बौरा गए:) वैसे अभी बौर लगने में काफ़ी दिन है॥

दीपक हवा के ठीक मुका‍बिल जला लिया से

७.नायिका भेद की कहानी अभी जारी है। देखना है कि उसमें आजकल की नायिकाओं का भी जिक्र हो पाता है कि नहीं जो पुरुष से किसी तरह कम नहीं हैं और जिनका काम सिर्फ़ पलक पांवड़ें बिछाकर नायक की प्रतीक्षा करना ही नहीं है।
नहीं जी... अभी कल ही की बात है... नायक को ब्रश बनाने की बात चल रही थी। हम सिद्धार्थ जी की टिप्पणी से समहत नहीं है...हम तो मौज लेंगे, चाहे तलवारें चलें या बम फटे :)

स्त्री विमर्श, नायिका भेद और हिमालय यात्रा से

८.लड़कियाँ हैं तो छेड़खानी है
साथ में चलती मनमानी है
मनमानी है तो गाली खानी है
ऐसी ही चलती रहे लंतरानी है:)

हे नेता!! तेरी बहुत याद आती है! से

९.सभी तो बदलता ही है, लड़कपन, मौसम, हालात, समाज यहां तक कि नीयत भी :)

मायूस होना अच्छा लगता है क्या?से

१०"काहे चुने थे भाई ऐसी सरकार? साँप काटे था क्या?"
दारू मिली थी वोट देने के लिये!

काश!! आशा पर आकाश के बदले देश टिका होता!!

११.` पता नहीं अगर भागीरथ बन भी पायेंगे तो कैसे बनेंगे। उसके बाबा तो शायद उससे अपनी राजनैतिक विरासत संभालने की बात करें’
चिंता की क्या बात है! आज का हर नेता भागिरथ ही तो है.... तो नत्थू जी राजनीति में आएं तो समझ लो गंगा पार हो गई:)

नत्तू "भागीरथ" पांड़े से

१२.`साहित्य के इतर भी इण्टेलेक्चुअल हैं। वे भी इसे अपनी जागीर समझते हैं।'
dont you think this is overvalued comment:)
वैसे तथू पाण्डेय जी को किस साहित्यकार ने रचा- बढिया है जी:)

ओवरवैल्यूड शब्द से

१३.सीरियस नशा तो बडे लोगों का नशा है। गरीब तो माल्या पांय्ट से ही खुश है:)

शराब पर सीरियस सोच से

वैसे तो हमने सिर्फ़ इतने के लिये ही विचार किया था कि इसके बाद पोस्ट कर देंगे लेकिन एकाध पोस्ट का जिक्र भी कर लें तो क्या कुछ बुरा तो नहीं होगा? तो बात मसिजीवी की पोस्ट की। मसिजीवी के स्कुल में बायोमेट्रिक सिस्टम लगने का हल्ला है। मसिजीवी इस प्रस्ताव को फ़ूहड़ बताते हुये कहते हैं कि कहते हैं:

image पर ये प्रस्ताव कितना फूहड़ है इसे केवल वे ही समझ सकते हैं जो दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय या जेएनयू जैसे विश्‍वविद्यालयों की कार्यसंस्‍कृति से परिचित हैं। ऐसा नहीं है कि यहॉं  गैरहाजिर रहने की समस्‍या यहॉं है ही नहीं पर वाथवाटर के साथ बेबी फेंक देना मूर्खता है। शिक्षक केवल 6-8 घंटे रोजाना शिक्षक नहीं होता वो चौबीस घंटे केवल शिक्षक ही होता है। जिस पचास मिनट के पीरियड में वह कक्षा लेता है उसमें उसके अब तक के सारे ज्ञान को शामिल रहना होता है ठीक वैसे ही जैसे कि एक कलाकार के श्रम को उसके प्रदर्शन के मिनटों की गणना करके नहीं समझा जा सकता। ये पचास मिनट शिक्षक का काम नहीं होते वरन उसकी परफार्मेंस होते हैं उसका काम तो उस सारे रियाज को समझा जाना चाहिए जो वह पूरे दिन करता है और हमारे लिए तो दिन भी कम पड़ता है।  अगर हमारे कॉलेज हमें कॉलेज में ही इस रियाज के मौके देने को तैयार हों तो शायद किसी को भी पूरे दिन वहॉं रहने में तकलीफ न हो!

आगे उनका कहना शहीदाना अंदाज में है:

क्‍या स्‍वविवेक पर निर्भर स्‍वाभिमानी  प्रोफेसर को अंगूठाछाप बना देना उन्‍हें बेहतर शिक्षक बनाएगा.. हमें तो शक है, पर अगर अब द्रोणाचार्य के एकलव्‍य बनने की बारी है तो हमारा अंगूठा हाजिर है श्रीमान। 

मेरी समझ में बायोमेट्रिक सिस्टम का उपयोग उपस्थिति के साधन से अधिक सुरक्षा कारणॊं से ज्यादा होता है। संवेदनशील संस्थानों में मसिजीवी की बजाये कोई असिजीवी न घुस जाये और बालकों को रीतिकाल और भक्तिगाथाकाल के बजाय वीरगाथा काल सिखा-पढ़ा के न चला जाये। मुझे नहीं लगता कि मसिजीवी को एकलव्य बनना पड़ेगा। अंगूठा उनका सलामत रहेगा।

 

प्रिये, सोने से पहले जरा मेरे नकली दाँत संभाल देना! में घुघुती बासूती जी बताती हैं एक किस्सा:

सुहागरात को सबसे पहले दूल्हे ने अपना विग उतारकर रखा। दुल्हन ने सब्र कर लिया। सोचा होगा देर सबेर लगभग सभी पति गंजे तो हो ही जाते हैं तो चलो आज ही सही। किन्तु जब उन्होंने अपने नकली दाँत भी निकाल डाले तो उसने वहाँ से भाग निकलने में ही अपनी भलाई समझी।
दुल्हन ने जिस युवा से सगाई की थी वह कुछ क्षणों में ही दंत व बालविहीन प्रौढ़ में परिवर्तित हो जाएगा इसकी तो उसने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी। उसने अपने घर जाकर माँ को पति के इस मैटामोर्फिसिस के बारे में बताया और फिर पुलिस में धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज करा दी।

इस तरह के मसलों पर अपनी राय जाहिर करते हुये घुघुतीजी कहती हैं:

मुझे तो लगता है कि जैसे लोग दहेज की सूची बनाकर देते हैं वैसे ही दूल्हा दुल्हन को असली नकली की सूची भी बनाकर एक दूसरे को दे देनी चाहिए और हाँ, साथ में अपने पिछले कुछ सालों का वजन भी लगे हाथ लिखकर दे देना चाहिए।

अब बताइये दहेज की बात तो तय नहीं होती शरीर की कैसे होगी? लोग कहते हैं पांच तय हुआ है सात दिया है। ऐसे ही कोई कहे पचास किलो की दुलहन तय हुई थी पचहत्तर की दी है। पचास परसेन्ट तय से ज्यादा दिया है। दूल्हा के बारे में कहिये कहे चार बीमारियां तय हुईं थी  छह के साथ शादी कर रहे हैं और क्या चाहिये आपको?

हमारा अँगूठा हाजिर है श्रीमान: डाल लीजिये अचार हमारे ठेंगे से

अलगनी पर टंगे ख्वाब: सूख गये होंगे अब तक

प्रिये, सोने से पहले जरा मेरे नकली दाँत संभाल देना!: जरा ये पोस्ट पढ़कर मुस्कराना है।

उनके पेट में दर्द हो जायेगा अगर सोचेंगे नहीं तो ... आखिर दार्शनिक, वैज्ञानिक या गणितज्ञ जो हैं ये: और सोचेंगे तो तुम्हारा पेट दुखायेंगे।

कोई आपके कार के शीशे पर अंडों से हमला कर दे तो ……: तो फ़ेंटो अंड़ा बनाओ आमलेट

कोकास जी का कम्प्यूटर भी चढ़ ही गया था टंकी पर: अब पता नहीं कब उतरेगा।

 

और अंत में : फ़िलहाल इतना ही।  आपका समय टनाटन बीते।

26 टिप्‍पणियां:

  1. लो जी, अब चिरकुटों की भी चर्चा होने लगी :) आभार सरजी॥

    ‘ जब उन्होंने अपने नकली दाँत भी निकाल डाले तो उसने वहाँ से भाग निकलने में ही अपनी भलाई समझी। ’
    तब तो नहीं भागना चाहिए था....HARMLESS FELLOW :)

    जवाब देंहटाएं
  2. मजा आया टिप्‍पणी विश्‍लेषण पढकर । सटीक ।

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रसाद जी की टिप्पणियों के तो हम भी दीवाने हैं...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर चर्चा । टिप्पणियाँ वाकई मजेदार हैं cmpershad जी की ।

    जवाब देंहटाएं
  5. @ मसिजीवी की बजाये कोई असिजीवी न घुस जाये और बालकों को रीतिकाल और भक्तिगाथाकाल के बजाय वीरगाथा काल सिखा-पढ़ा के न चला जाये।

    मास्साब का कॉन्सेप्ट किलियर हो गया होगा :)

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रसाद जी कि टिप्पणियाँ वास्तव में उल्लेखनीय होती हैं।
    बायोमेट्रिक लगने की सूचना बताती है कि स्वप्रेरणा से काम करने वाले शिक्षक कितने रह गए हैं और नौकरी बजाने वाले कितने?

    जवाब देंहटाएं
  7. सादर अभिवादन! सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।

    जवाब देंहटाएं
  8. विद्वान तो सारगर्भित टिप्पणी ही देते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  9. आहा..इस चर्चा के अंदाज भी निराले..मै तो भाई खुश हो गया..टिप्पणियों की महिमा गाई जाए तो मुझे तो आतंरिक खुशी मिलती है..चंदर्मौलेश्वर प्रसाद जी तो वास्तव में युवा ही है अपनी टिप्पणियों में...!!!

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत खूब , ये आपने एकदम पते की बात कही कि प्रसाद जी की टिपण्णी पढने का भी दिल एक अलग ही कौतुहल होता है, और मैं तो उनकी टिप्पणियों को खूब चटकारे लेकर पढता हूँ :) !

    जवाब देंहटाएं
  11. नये अंदाज़ में की गयी चर्चा.
    रोचक!

    जवाब देंहटाएं
  12. टिप्पणी पोस्ट को पूर्णता देती है.


    आपकी पोस्ट पूर्ण हुई :)

    जवाब देंहटाएं
  13. मस्त चर्चा.. प्रसाद जी की टिप्पणीया पढ़ कर मजा आया..

    जवाब देंहटाएं
  14. प्रसाद जी की टिप्पणियों के हम भी फैन है.. साथ ही उनकी साफगोई और सच को सच कहने की आदत के भी मुरीद है.. बकिया उनकी टिप्पणिया पढ़कर और भी मज़ा आया.. चर्चा जंची..

    जवाब देंहटाएं
  15. रोचक चर्चा! इतने रोचक टिप्पणीकार से भेंट करवाते करवाते मेरी पोस्ट पर भी एक रोचक टिप्पणी, चाहे चिट्ठाचर्चा में ही, कर डाली। इसे तो मेरी पोस्ट पर भी होना चाहिए था।
    घुघूती बासूती

    जवाब देंहटाएं
  16. ऐसी अर्थव्यवस्था में जहां टिप्‍पणी एक ग्रोसली ओवरवैल्‍यूड करेंसी है...किसी 67 साल के युवा का उद्दात भाव से टिपण्णी करना ....शायद दीनार के बराबर है ... पोस्ट से ताल्लुक टिप्पणिया हमेशा महत्वपूर्ण होती है ..कई बार कुछ टिप्पणिया पोस्ट को भी निखार देती है ....कुछ पोस्ट से भी बढ़कर हो जाती है ......मेरे निजी अनुभव तो ऐसे ही है .....एक गंभीर पाठक बीस सरसरी फ़ॉर्मूला पाठको से अधिक महत्वपूर्ण होता है ...

    जवाब देंहटाएं
  17. टिप्पणीकारों के चरित्र चित्रण का यह उपक्रम अच्छा है .

    जवाब देंहटाएं
  18. चंदर्मौलेश्वर प्रसाद जी को युवा टिप्पणीकार जानना बहुत सुखद एवं राहतदायी रहा. :)

    जवाब देंहटाएं
  19. आज एक और हट कर के की गयी चर्चा...डा० साब की बातों से सहमति जताते हुये मैं भी मुंडी हिला रहा हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  20. डा. अनुराग से सहमति है।
    इधर हमारे ओवरवैल्‍यूड वाले जुमले का फिर उल्‍लेख हुआ इसलिए कहना बनता है बिला शक टिप्‍पणी ही ब्‍लॉगिंग को ब्‍लॉगिंग बनाती है इसलिए इस जुमले को टिप्‍पणीविरोधी न समझा जाए... बस इतना है कि टिप्‍पणी (उसमें भी टिप्‍पणी संख्‍या न कि टिप्‍पणी गुणात्‍मकता) पर बलाघात होने से कई बार मामला असंतुलित हो जाता है।

    जवाब देंहटाएं
  21. फ़र्श पर था
    अर्श पर चढ़ाया-
    धन्यवाद दूं॥

    जवाब देंहटाएं
  22. नकली दांत तलाशा तो यह वाला मिला और पूरा पढ़ डाला। अनूप जी आप तो हमारी आगामी चिट्ठाकारी पुस्‍तक के लिए टिप्‍पणी कला पर एक रोचक लेख उद्धरणसहित तैयार कर दीजिए। यूनीक रहेगा। इंतजार है ...

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.