मंगलवार, मार्च 11, 2008

जिक्र तेरा कर के हम, हाजिर जवाबी हो गए




कल अजित वडनेरकर ने शब्द-सफ़र की जगह शख्सियत-सफ़र कराया। अनीता खरबंदा के अनीताकुमार में बदलने की कथा सुनाई। अनीताजी लिखती हैं-
कॉलेज के जमाने से ही हमें किताबों से बहुत प्यार था, लायब्रेरी हमारे लिए दूसरे घर जैसी होती थी। ऑफ़िस की नौकरी में हम किताबों से दूर हो गये थे, अब वो दिन फ़िर से लौट आए और हमें ऐसा लगा कि हम जैसे बहुत सालों बाद अपने घर लौट आये हों।


और भी बहुत कुछ कहती हैं वे और उनके लेख पर आयी टिप्पणियां। अजितजी की मेहनत की तारीफ़ वही करें।



दो दिन पहले मुम्बई के ही शशि सिंह का भी हल्ला हुआ। शशिसिंह हिंदी ब्लागिंग भले न करें लेकिन ब्लागिंग की चिंता जरूर करते हैं। और कहते हैं-
नि:संदेह बहस एक सार्थक प्रक्रिया है, मगर बहस के नाम पर जो आये दिन निरर्थक बातें होते रहती है वो मेरी नजर में सिर्फ और सिर्फ 'बेवकूफी' है। इससे हिन्दी ब्लॉग जगत की बहुत सारी रचनात्मक ऊर्जा जाया हो रही है। इस तरह की बहसों के प्रतोस्ताओं से अनुरोध है कि विरोधाभासों के बीच जीने की आदत डालिए और उन ब्लॉगर से अपील जो अपने लेखन से अपना या समाज का कुछ भला करना चाहते हैं कि वे इस तरह की निरर्थक बातों में न फंसे।


ऊपर के दोनों लेख ब्लागरों के संबंधित थे। अनीताजी के सफ़र पर आई प्रतिक्रियाओं की मात्रा शशि सिंह के इंटरव्यू से काफ़ी अधिक है। इसके कारण शायद बोलहल्ला का अनियमित और लोगों द्वारा कम पढ़ा जाना हो!

चोखेरवाली के बारे में अमर उजाला में लेख छपा। संपादकीय कैंची के चलते कुछ नाम कट गये होंगे। रचनाजी ने इसपर अपना मत रखा। आप दोनों देख लें। इसके बाद चंद एक-लाइना बांचे।

१.स्त्रियों को अपढ रखें, और देखें परिणाम : वही ढाक के तीन पात!

२. शादी पर आउटसाइड सपोर्ट:मांगते हुये आलोक पुराणिक ने महिला दिवस की शुरुआत की।

३.स्वामी जी और गब्बर सिंह :दोनों एक साथ काकेश के अड्डे पर दिखे। पुलिस सतर्क!

४.नारी तुम केवल सबला हो । :गाने वाला नर अगला हो!

५.विवाहेतर संबंधों पर झूठ बोलना स्वीकार्य!? :मतलब कि झूठ बोलने के लिये भी विवाहेतर संबंध बनाने जरूरी हैं!

६.चार चिट्ठा चोर और आठ दस नंबरी :इनकौ इतिहास कौन लिखै!

७. क्या सचिन से जलते हैं धोनी? :सचिन इस बात को बखूबी समझते हैं! आपको क्या बतायें!

८.चोखेरबालियॉं अमरउजाला में : छा गयीं। लेकिन रचना सिंह छूट गयीं!रचना बजाज भी जी!

९.संघी ऊपर से नीचे तक इतने फ्रॉड क्यों हैं? :ये अन्दर की बात है जी।

१०.मेरी व्यस्तता और मंत्री का मुण्डन :दोनों प्रायोजित हैं!

११. और होली मनाने के बारे में ये लिखते हैं....: इनकी छ्वाडौ कुछ अपन सुनाओ!

१२.चोर बलैया ले :आलोक पुराणिक की।


मेरी पसंद


आज हमने छु लिया, तो वो गुलाबी हो गए |
देखकर उस रूप को, हम भी शराबी हो गए ||

मेरे सीने में सिमटकर, गिनते हैं वो धड़कने |
सांसे पढ़ पढ़ कर जरा हम भी किताबी हो गए ||

महफिले तेरी इनायत, चर्चा भी सरे आम है |
जिक्र तेरा कर के हम, हाजिर जवाबी हो गए ||

अब तो चेहरा बाँट कर, सच दिखा दो तुम प्रिये |
होगी मुश्किल गर् ये, आंसू भी नवाबी हो गए ||

विनोद कुमार

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सोमवार, मार्च 10, 2008

बगैर जिम्मेदारी, चाटें सत्ता की मलाई

अगर आप गाज़ा पट्टी पर न रह रहे हों तो सुरेश की तरह इस तरह फट पड़ने का मन तो आपका भी होता होगा:
लाल झंडे वाले...मूर्खों की तरह परमाणु-परमाणु रटे जा रहे हैं, नंदीग्राम में नरसंहार करवाये जा रहे हैं...समन्वय समिति की बैठक में जाते ही सोनिया उन्हें पता नहीं क्या घुट्टी पिलाती हैं, वे दुम दबाकर वापस आ जाते हैं, अगली धमकी के लिये। पाँच साल तक बगैर किसी जिम्मेदारी और जवाबदारी के सत्ता की मलाई चाटने वाले इन लोगों को दाल-चावल-तेल के भाव नहीं दिखते? परमाणु समझौता बड़ा या महंगाई, इसकी उन्हें समझ नहीं है। सिर्फ़ तीन राज्यों में सिमटे हुए ये परजीवी सरकार को एक साल और चलाने के मूड में दिखते हैं क्योंकि इन्हें भी मालूम है कि लोकसभा में 62 सीटें, अब इन्हें जीवन में कभी नहीं मिलेंगी। भगवाधारी भी न जाने किस दुनिया में हैं, उन्हें रामसेतु से ही फ़ुर्सत नहीं है। वे अब भी राम-राम की रट लगाये हुए हैं, वे सोच रहे हैं कि राम इस बार चुनावों में उनकी नैया पार लगा देंगे, लेकिन ऐसा होगा नहीं। बार-बार मोदी की रट लगाये जाते हैं, लेकिन मोदी जैसे काम अपने अन्य राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि में नहीं करवा पाते, जहाँ कुछ ही माह में चुनाव होने वाले हैं। जिस तरह से हमारा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया “अमिताभ को ठंड लगी”, “ऐश्वर्या राय ने छत पर कबूतरों को दाने डाले”, जैसी “ब्रेकिंग न्यूज” दे-देकर आम जनता से पूरी तरह कट गया है, वैसे ही हैं ये राजनैतिक दल…जिस तरह एनडीए के पाँच साल में सबसे ज्यादा गिरी थी भाजपा, उसी तरह यूपीए के पाँच साला कार्यकाल में सबसे ज्यादा साख गिरी है लाल झंडे वालों की, और कांग्रेस तो पहले से गिरी हुई है ही…

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सोमवार, मार्च 03, 2008

बनना था हुस्बाद तुम्हारा, भइया में तब्दील हुआ!

चर्चा की शुरुआत अच्छी खबर से किया जाये। अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन एवं श्रीमती सुमन चतुर्वेदी स्मृति ट्र्स्ट(भोपाल) के द्वारा डा. रमा द्विवेदी को ’ श्रीमती सुमन चतुर्वेदी श्रेष्ठ साधना सम्मान-२००७’से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उन्हें उनके काव्य संग्रह’ दे दो आकाश’ के लिये दिया गया है। हमारी तरफ़ से डा. रमा जी को बधाईयां।

अब चिट्ठाचर्चा का आज के सफ़र की शुरुआत शब्दों का सफ़र से। अजित जी ने आज कुटनियों की साजिशें और बर्बाद कुटुम्ब की बकौल आलोक पुराणिक 'घणी'जानकारी दी-
गौर करें कि कुटुम्ब के निवास के तौर पर तो हवेली या प्रासाद ही चाहिए। मगर भाषाविज्ञान में कुटुम्ब का रिश्ता जुड़ता है कुटी या कुटि से । देखते हैं कैसे। कुटि दरअसल झोपड़ी या एक छप्परदार घर को कहते हैं। यह बना है कुट् धातु से जिसका मतलब हुआ वक्र या टेढ़ा । इसका एक अन्य अर्थ होता है वृक्ष। प्राचीन काल में झोपड़ी या आश्रम निर्माण के लिए वृक्षों की छाल और टहनियों को ही काम मे लिया जाता था जो वक्र होती थीं। एक कुटि ( कुटी ) के निर्माण में टहनियों को ढलुआ आकार में मोड़ कर , झुका कर छप्पर बनाया जाता है। इस तरह कुट् से बने कुटः शब्द में छप्पर, पहाड़ (कंदरा), जैसे अर्थ समाहित हो गए ।
हम तो इतना ज्ञान पाकर खुश हो गये और लगा यह कहें-
दे दी हमें जानकारी बिना लफ़ड़े बिना बवाल।
शब्दों के जादूगर तूने कर दिया कमाल॥


अजित जी के ही ब्लाग से राजनादगांव के डा.चन्द्रकुमार जैन के ब्लाग का पता चला! उनके ब्लाग कई बेहतरीन कवितायें हैं। उनमें से एक बेहतरीन आशावादी मुक्तक आपको हम पढ़ा देते हैं, बकिया आप खुद आनन्द लेने के लिये डा.जैन के ब्लाग पर जायें!-
वक्त की खामोशियों को तोड़कर आगे बढो
अपने गम ,अपनी खुशी को छोड़कर आगे बढो
जिन्दगी को इस तरह जीने की आदत डाल लो
हर नदी की धार को तुम मोड़कर आगे बढो


काकेश ने आज खोया-पानी की अगली किस्त पेश की। आज बिशारत का इंटरव्यू था। साथ में कौन था? जानना चाहते हैं तो बांचिये नीचे-

बिशारत जब प्रतीक्षालय यानी नीम की छांव तले पहुंचे तो कुत्ता उनके साथ था। उन्होंने इशारों में कई बार उससे विदा चाही, मगर वो किसी तरह साथ छोड़ने को तैयार न हुआ। नीम के नीचे वो एक पत्थर पर बैठ गये तो वो भी उनके क़दमों में आ बैठा और अत्यधिक उचित अंतराल से दुम हिला-हिला कर उन्हें कृतज्ञ आंखों से टुकर-टुकर देख रहा था। उसका ये अंदाज उन्हें बहुत अच्छा लगा और उसकी मौजूदगी से उन्हें कुछ चैन-सा महसूस होने लगा।

बिशारत के साथी के बारे में बताने के चक्कर में हम आपसे यह बताना भूल ही गये कि उम्मीदवार होने के नाते बिशारत के लिये कुछ हिदायतें भी थीं। उनमें से सबसे जरूरी जो लगी वह यह थी-उम्मीदवार कृपया अपनी बीड़ी बुझाकर अन्दर दाख़िल हों।

आज ही रश्मिजी का ब्लाग रूप-अरूप भी पहली बार देखा। रांची की रश्मिजी की पहली पोस्ट २१ जनवरी की है। इसमें वे लिखती हैं-
मेरी रूह,
मेरी धड़कन,
मेरी हर सांस में शामिल हो मगर
मेरे इन हाथों की लकीरों में
कहां हो तुम


अपने जीतेंद्र चौधरी बहुत दिन गंजो के शहर में कंघे और अंधों के शहर में आइने बेचते रहे। अब जुगाड़ी लिंक लेकर आये हैं। आज का उनका जुगाड़ नियोक्ता परीक्षण को लेकर है। अगर आप भारत जाने वाले हैं तो
- क्या आप भारत वापस आ रहे है? क्या आप अपनी नौकरी बदल रहे है? क्या आपको किसी दूसरी कम्पनी से ऑफर मिला है। यदि हाँ तो यह लेख/जुगाड़ आपके लिए है। अक्सर हम इन्टरव्यू के वक्त HR वालों की मीठी मीठी बातों और लुभावने ऑफर मे फ़ंस जाते है और कम्पनी के बारे मे कई चीजे नजर अंदाज कर देते है। जब हम कम्पनी मे काम करना शुरु करते है तो कई चीजे धीरे धीरे सामने आती है, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है। भारत मे नियोक्ताओं के रिव्यू के लिए कोई साइट/स्थान नही था, लेकिन जनाब अब है। पेश है क्रिटीकैट, इस साइट पर आप किसी भी कम्पनी (जिसमे आपको ऑफर मिला हो) के बारे मे जान सकते है, वो भी उनके अपने कर्मचारियों द्वारा।



अब चंद एक-लाइना

१.सुकून की मौत: पूरे बैंक बैलेंस के साथ।

२.बजट की घोषणाएँ और लॉलीपॉप में समानता : दोनों चूसने के लिये होते हैं बस्स!

३.'दैनिक भाष्कर' की चाय पार्टी नौटंकी में 32000 कप चाय पी गयी।

४. लीजिये एक और संत, इस बार औरत: इनको भी चोखेरबाली का सदस्यता दें।

५.दिल्ली से गाजियाबाद वाया छपरा : मुफ़्त यात्रा करने के लिये बारहवीं में फ़ेल हो जायें।

६.हिन्दी ब्लागजगत :में लेखकों की कमी नहीं है।

७.बी.एच.यू. के छात्रावासों :केवल गाली-गलौज ही नहीं होती।

८.बगाल में पोंगापंथ : मचा हुआ है।

९. जाने क्यों ये जाता नहीं है: टिका है अंगद के पाये की तरह।

१०.आज आई है मेरी बारी : कसर निकालूंगी अब मैं सारी।

११.एक म्यान में 145 तलवारें! : कैसे रहती होंगी सटी-सटी।

१२. २००८ अ लव स्टोरी :बनना था हुस्बाद तुम्हारा, भइया में तब्दील हुआ!

१३.संयम और कछुआ ही जीतते हैं आखिर में।

मेरी पसंद


आओ बहस करें
सिद्धांतों को तहस-नहस करें
आओ बहस करें।

बहस करें चढ़ती महंगाई पर
विषमता की
बढ़ती खाई पर।
बहस करें भुखमरी कुपोषण पर
बहस करें लूट-दमन-शोषण पर
बहस करें पर्यावरण प्रदूषण पर
कला-साहित्य विधाओं पर।

काफी हाऊस के किसी कोने में
मज़ा आता है
बहस होने में।

आज की शाम बहस में काटें
कोरे शब्दों में सबका दुख बांटें
एक दूसरे का भेजा चाटें
अथवा उसमें भूसा भरें
आओ बहस करे....

-श्याम बहादुर नम
शब्दों का सफ़र से साभार

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