शनिवार, फ़रवरी 28, 2009

आवा सुनौ शनीचर भाई....


पूजा


प्रातकाल जगि के फ़ुरसतिया। ऊंघत-स्वाचत-ट्वारत चरपईया॥
आवा सुनौ शनीचर भाई । तरुण निठल्ले नहिं परत दिखाई॥
पुनि-पुनि मेल निहारत भाई। तरुण संदेशा नहिं देत दिखाई॥
आलस त्याग बिस्तर पर बैठे। तकिया दुई ठो दाबि के ऐंठे॥
ब्लागन-ब्लागन नजर फ़िराई। सोचा चलौ अब चर्चा निपटाई॥
पोस्ट जहां पूजा मैडम का देखा। लगा कहूं क्या हो गया धोखा॥
मैडम ऐसी धांसू लिखती बानी । पढ़िके सब जनता हरसानी॥
फ़ोटुआ चौकस नई लगाई। चश्मा कहां-किधर गया भाई॥



पच्चीस सालों से धरे थे, मन के अन्दर बात।
आया मौका जब मिलन का, फ़ूट पड़े जज्बात॥

देवता कहि गये बच्चन जी ज्ञानी। अर्थ सुंदर मिसिरजी बखानी॥
रोशनी फ़िजा में पसर सी रही है। रंजना पूछती क्या तुम्ही हो,तुम्ही हो।
मैडम क्यूरी रेडियम वाली। भेंट भई पियरे से व्याह रचा ली॥
रवीश याद करे फ़िर पटना को। डाक्टर देर किया उस घटना को॥
डाक्टर इलाज को होता राजी। शायद होते हमरे बीच पिताजी॥
हम भी आ गए अखबार में | तुल जायेंगे रद्दी में अगले इतवार में॥
आजाद रहे सच में आजाद ही। नमन किया औ इंडियन ने बात कही॥
पारुल ने लिखी दर्द की एक कहानी। जिंदगी है वहां बस पानी ही पानी॥

ममता-युनुस के यहां से ,आया मंगलमय समाचार।
पुत्रवान दम्पति हुये, पुलकित-किलकित अपना घर परिवार॥


हम तो उसको बच्चा समझे भाई। लेकिन वो सब समझ गया प्रभुताई॥
पाकिस्तान के बुरे दिन आये। बादल बोरियत के सब तरफ़ छाये॥
बोरन-बोरन बोरियत फ़ैली। आदत अजीब है गायत्री जी कह लीं॥
रंजूजी द्वापर का उधरै ठहराइन। गोपाल ब्लागर का जिम्मेदारी सिखाइन॥
रायपुर में मिलि भेंटे सब भाई। लिखा विवरण और फोटुऔ सटाई॥
मुझसे तुमको प्यार क्यों नहीं जी। प्यार धंधा है इसका एतबार नहीं जी॥
ब्लागिंग करौ चहै ना भाई। मीटिंग के गुण सीखौ भाई॥
टिम टिम तारों के दीप जले। बूझो आप पहेली हम तो चले॥

सपना सोती आग से सब देखत हैं लोग।
जगी आंख से देखने का हमे लगा है रोग॥


एक लाईना


  1. "जरा नाखून तराशो इन अल्फाजो के " :बढ़िया त्रिवेणी ब्रांड नेलकटर लाना

  2. आखिरी बार कहे देत हैं की ई हमार बिलोग नाही है :वाह रे मैडम चश्मा उतार दिया तो अपन बिलागौ नहीं दिखा रहा है

  3. देवता उसने कहा था .... : मतलब हमें बताना पड़ रहा है

  4. हम भी आ गए अखबार में :अब समोसे लपेट के बेचें जायेंगे दिन दो-चार में

  5. सपने तो वही हैं, जो रातों को सोने नहीं देते.. : नींद की गोली खायें, चैन से सो जायें।

  6. बोरियत की गिरफ्त में पाकिस्तान : शिवकुमार मिसिर को जम्हुआता हुआ दिखा!

  7. द्वापर वहीँ ठहरा है........ : अरे अंदर बुलाइये, बैठाइये द्वापर कौनौ ब्लागर थोड़ी है ....

  8. ब्लागर्स कितने जिम्मेदार-२, एकपक्षीय लेखन बंद हो...... : यहां लिखता कौन है जी! सब तो चढ़ाते हैं पोस्ट!

  9. भंवरा और फूल :एक दूजे के लिये

  10. हँस पडे मुँह खोल पत्ते :खिलखिला पड़ीं सब दिशायें झट से।

  11. प्यारा धंधा प्यार का : आज से शुरू करें! शुरुआत आहें भरने से करने!

  12. 'मर्दानगी' पर दो कविताएं : पढ़ें और मर्द बन जायें!

  13. अंडरडाग मानसिकता के शिकार हैं हमारे फ‍िल्‍‍‍मकार : अरे ब्लागजगत में स्वागत है यार!

  14. मेरा और तुम्हारा परिचय :भी देना पड़ रहा है! ये भी दिन देखने थे!!

  15. शेखावाटी में होली के रंग (घूँघट खोल दे ):तो देख लें जरा रंग

  16. क्या तुमने है कह दिया :नींद में मुस्कराये, और अब खिलखिला दिया

  17. मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद : फ़ौरन बर्नाल लाओ भाई!

  18. मुसलमान मुख्यधारा से अलग क्यों? : सोच के बतायेंगे जी!

  19. हित दिखाकर भी लोग अहित कर देते हैं :ये तो चलन है जी आज का

  20. झुमका: की कहानी, राशि चतुर्वेदी की जबानी

  21. कॉलसेन्टरों में अनपढ़ों की भर्ती : अमित पहुंचे आप भी चलिये न!

  22. नॉल: आईये हिन्दी के लिये कुछ करें — 02: शास्त्रीजी शास्त्रार्थ कब करेंगे?

  23. कोई दीप जलाया होगा : पतंगा कोई फ़ड़फ़ड़ाया होगा

  24. लाल धब्बों की कहानी - महिलाओं की जुबानी : एक उन्मुक्त बयानी

  25. लम्बूद्वीप का श्वानयुग उर्फ़ स्वभूसीकरण की परम्परा :सियाबर रामचन्नर जी की जैहो!

  26. बाइक का कैरेक्टर :पर हमें डाऊट है

  27. ख्वाजा मेरे ख्वाजा…: शब्द सफ़र में आ जा!


मेरी पसंद



भंवरा और फूल<br />
चरमराती सुखी डाली,
छोड़ उपवन रोये पत्ते|

जब अधर पर पाँव पड़ते,
कड़-कड़ाते बोले पत्ते|

धरा धीर धर अनमने से,
रोये मन टटोल पत्ते|

चिल-चिलाती धुप तपती,
जल गये हर कोर पत्ते|

वृक्ष की अस्थि ठिठुरती,
देख मातम रोए पत्ते|

फिर पथिक है ढूंढ़ता,
विश्राम के आयाम को|

देख कर परिदृश्य पागल,
हँस पडे मुँह खोल पत्ते|

अनुराग रंजन सिंह "यायावर"

चलते-चलते



जाट


आए जब अखबार में, फूले नहीं समायँ !
स्वयं तनें यह गर्व से, घरवाले धमकायँ !
घरवाले धमकायँ, गावँ का नाम डुबाया !
लडकी छेडी सही, किंतु क्यों ढोल बजाया ?
फुरसतिया यों कहें, फालतू में इतराए !
घर जाएं या घाट जाट कछु समझि न पाए !
लिखबाड़ हैं विवेक सिंह पोस्टकार हैं फ़ुरसतिया।


आज की टिप्पणी


चिट्ठाचर्चा मस्त बनावा, तब मसिजीवी नाम कहावा
भये प्रसन्न पढी जब चर्चा, कुश ने किया लीक क्यों पर्चा
मसिजीवी मास्साब हमारे, मान लेहु जो भी कहि डारे
स्याही सरिता कलम बहाई, हस्त-लेख कछु कहा न जाई
जय हो जय हो होती जाए, लोग आँकडों में उलझाए
डॉक्टर अमरकुमार कहाँ अब, बिना सूचना कैसे गायब ?

विवेक सिंह

और अंत में


कल मसिजीवी ने बताया कि चर्चा के आठ सौ पोस्ट हो गये। कुश ने कुछ संसोधन किया संख्या में। संख्या तो जो है सो है लेकिन यह देखना वाकई बड़ा सुकून का अनुभव है कि सबके सहयोग से चर्चा का काम नियमित हो रहा है। चाहे अच्छी हो, बुरी हो, छोटी हो ,बड़ी हो। मस्तम-मस्तम हो या लस्टम-पस्टम लेकिन चर्चा का काम नियमित होना अपने आप में एक मजेदार अनुभव है। बिना सब साथी चर्चाकारों के भले ही चाहे मैं हूं या कोई और चर्चा करता भले रहता अपनी धुन में लेकिन जो विविधता है चर्चाकार साथियों के चलते वह दुर्लभ उपलब्धि है। उसे कोई भी अकेला व्यक्ति नहीं कर सकता। चर्चा की विविधता अपने आप में इसका सबसे आकर्षक पहलू है। है न!

आज सबेरे ही विवेक ने चलते-चलते मेल में भेजा जिसे मैंने अभी देखा और पोस्ट कर दिया। इस तरह के सहयोग के बिना चर्चा हम अकेले करते भी तो क्या करते।

जो साथी चर्चाकार चर्चा करना समय और अन्य कारणों से स्थगित कर चुके हैं वे सब हमारी लिस्ट में हैं। उनका इंतजार है कि वे आयें अपना काम करें। इसमें वे सभी नाम हैं जो यहां दिखते हैं। सभी ने जब चर्चा की है बहुत पसंद किये गये हैं।

फ़िलहाल इत्ता ही। आपका दिन शुभ हो।

फोटो विवरण: सबसे ऊपर पूजा मैडम, फ़िर फ़ूलऔर भौंरा जी भारतीय नागरिक के ब्लाग से और फ़िर मुसाफ़िर जाट

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शुक्रवार, फ़रवरी 27, 2009

चिट्ठाचर्चा टाईम्‍स - चर्चा अंक 800

बड़े आकार के लिए छवि पर क्लिक करें

 

chitthacharch inkblog

chitthacharch inkblog pag2

 

इतनी मेहनत के बाद अब देखा तो पाया कि हाट स्पाट लिंक काम नहीं कर रहे हैं। इसलिए मजबूरी में पूरा टेक्‍स्ट लिंकों के साथ नीचे दे रहे हैं। हम रहे न मगलू के मगलू :)

 

चिट्ठाचर्चा ने छुआ 800 का आंकड़ा

हिन्‍दी के इस अदने चर्चाब्‍लॉग ने आज आठ सौ पोस्‍ट का ऑंकड़ा छू लिया। हमें एक चर्चा में औसतन तीन घंटे तक लगते हैं इस‍ लिहाज से देखें तो 2400 घंटे तक चर्चाकारों के कीबोर्ड से जूझने के बाद इस संख्‍या को पाया जा सका है।

बाकी चर्चाकार सोते जागते रहे हैं सिवाय अनूपजी के जो जागते जगाते रहे हैं। तो आप चाहें तो उन्‍हें बधाई दे सकते हैं। इस अवसर पर हमने ये अखबार निकालने की सोची है ताकि इस अंक को यादगार बनाया जा सके । बताया जाए कि चिट्ठाचर्चा टाईम्‍स चर्चा समूह का पुराना अखबार है जो इंक ब्‍लॉगिंग पद्धति से निकलता रहा है। इस बार हम माइक्रोसॉफ्ट पब्लिशर का प्रयोग कर रहे हैं। चर्चा एक तस्‍वीर के रूप में है लेकिन जाहिर है इसमें लिंक भी हैं अत: लिंक पर प्‍वाइंटर ले जाएं और बेझिझक क्लिक करें। मसलन पुराने चिट्ठाचर्चा टाईम्‍स के लिए यहॉं क्लिक करें।

कार्टून काजलकुमार से --->

जाट छोरे ने लड़की छेड़ी

आज की सबसे बड़ी खबर ये है कि जाट छोरे नीरजजी ने लड़की छेड़ी...छेड़ी क न छेड़ी ये त मन्‍नै बेरा नी पर रवीश कै रिआ ऐ तो छेड़ी ई होग्‍गी। इतने बड़ा पत्रकार झूठ थोड़े ही बोल्‍लेगा-

बस, फिर क्या था। पूरे गाँव में "हाई अलर्ट" घोषित कर दिया कि फ़लाने के छोरे ने अखबार में लिखा है कि उसने लड़की छेडी थी। गाँव वालों ने सोचा कि ये नीरज ने ही लिखा है, ना कि रवीश ने। जैसे न्यूज़ चैनलों में छोटी सी खबर भी ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाती है, वैसा ही हाल गाँव वालों का हो गया

रांची मीट की रपट जारी हैं...

रांची की मीट की खबरे अभी सिमटी नहीं हैं मनीष भाई ने अपने हिस्‍से की खबरे दी हैं वे खुद को सकारात्मक, नकारात्मक के बीच पाते हैं।

वैसे हमें लगा तो था कि सभी को सकारात्मक लगी होगी मीट... पर हमें क्‍यों लगा.. लगा तो बस लग गया या कर लोगे।

पर सही में इन लगने वालों से भारी परेशान हैं! दुनिया में हर बीमारी का इलाज हो सकता है पर ये लगने की बीमारी का कोई इलाज नहीं है!

भई हमें तो इस तसवीर के बूते पर लगा कि मीट जबरदस्‍त रही होगी देखें कैसे पतीले दर पतीले मीट रखा है और लाइन से टाई लगाए ब्‍लॉगर खड़े हैं। काश किसी लिंक से द्रव्‍य का आवागमन संभव होता तो कसम से मजा आ जाता वैसे भी बताया गया कि खाना खूब बच गया था। :)

अभिषेक निर्ममता से से कुछ सुझाव दे रहे हैं कि क्‍या हो इन कार्यक्रमों में

फिल्‍म ब्‍लॉगर अजय ब्रह्मात्‍मज का फोटोअप

हे हे हे

कीआ ईश्‍टाइल है ये जो घड़ी थामे हैं वो चवन्‍नी चैप हैं और बाकी के बारे में हम जानते हैं कि वे ब्‍लॉगर नहीं हैं हिन्‍दी के तो नहीं ही हैं दिल्‍ली 6 हिन्‍दी में नहीं है. है .... नही है... पता नहीं

" इंग्लैंड की, इंग्लिश फिल्म में करीब आधी बातचीत, गाली आदि हिंदी-मुंबइया हिंदी में है "

-आर अनुराधा

चलते चलते

हिन्‍दी अनुवादकों के लिए नए समूह की शुरूआत हुई है.. सदस्‍य बनें

सीपीएम में मिंयाबीबी क्‍यों- गजब 'प्रचारक' चिंता

एक नमकीन पोस्‍ट- 'कट्ट' की आवाज के साथ पढ़ी

कोई बताएगा अजीत डी कैसे गलत हैं- सच बोलोगे तो गलत ही तो हुआ न।

गूगल फ्रेंड कनेक्‍ट क्‍या बला है- बता तो दिया बला है

युनुस ममता माता पिता बने..बधाई बजाओ

भावी ब्यूरोक्रेट्स के दिमाग में घुसा गोबर - इससे तो वर्तमान ब्‍यूरोक्रेट्स के दिमाग में गोबराभाव हो सकता है।

जेएनयू हम तो समझे थे- समझे समझे हम समझे पर कितना कम समझे

बिस्‍तर पर सुखी नींद का तरीका- सुखराम से पूछो

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गुरुवार, फ़रवरी 26, 2009

फोटो वाली चिट्ठा चर्चा


नोट : सभी ब्लॉग्स के नाम पोस्ट के शीर्षक के साथ दिए गये है.. पुरी पोस्ट पढ़ने के लिए ब्लॉग की फोटो पर क्लिक करे..


फोटोजेनिक चर्चा में आपका स्वागत है.. हिन्दी में जिसे कहते है मोस्ट वेलकम.. कहते है फोटो लाइफ में बड़ा योगदान है.. अगर आप भारत में रहते है तो अपना फोटो युक्त मतदाता पहचान पत्र बनवाना ज़रूरी है.. राशन कार्ड में भी फोटो चाहिए.. कोई भी फॉर्म भरना हो तो फोटो चाहिए.. शादी के रिश्ते के लिए ज़रूरी है फोटो का आदान प्रदान.. शादी में फोटो खिचवाने के लिए तो लोग खूब तैयार होकर जाते है.. वैसे बच्चे के जन्म लेते ही फोटो ली जाती है.. यहाँ तक की मरने के बाद भी फोटो अख़बार में छापी जाती है.. अच्छी फोटो देखकर ही कई लोग टिप्पणी कर जाते है..

कहने का तात्पर्य ये है की जब आप कुछ विशेष विषय पर चर्चा कर रहे हो तो माहौल बनाना पड़ता है.. उपरोक्त पंक्तियो को भी आप वही समझ ले... अब चलते है आज की चर्चा की तरफ...

ब्लॉग : निर्मल आनंद
पोस्ट : एक गुस्ताख सवाल के बहाने
टिप्पणिया : 18

अब पिछले दिनों पिंक अन्डीज़ को लेकर ब्लॉग पर जो बहस चलीं उसमें सारथी के संचालक शास्त्री फिलिप- जो ईसा के चरण सेवक हैं और ब्लॉग जगत में बेहद सम्मानित हैं- एक बेहद शर्मनाक कमेंट कर बैंठे।
यह कमेन्ट उन्होने कुछ महिलाओं द्वारा प्रमोद मुतालिक नाम के राक्षस -सही अर्थों में राक्षस; उसके अनुसार महिलाओं पर किया गया हमला, भारतीय संस्कृति की रक्षा में था- को पिंक अन्डीज़ भेजकर की जाने वाली अभद्रता का विरोध करते हुए किया। अनैतिकता और अभद्रता के विरोध का ऐसा जज़्बा कि स्वयं अभद्र हो गए!




ब्लॉग : हम और आप
पोस्ट : मैं शर्मिंदा हूँ, कि मैं .......
टिप्पणिया : 9

बात इस वैलेंटाइन डे की है , पार्कों में खुद को हिंदुत्व और धर्म के ठेकेदार बताने वाले पहुंचे तो खबर बना लेने के लिए लालायित पत्रकार लगे उनका मार्गदर्शन करने, लड़के मिले तो इससे पहले की हिंदुत्व के ठेकेदार कुछ करे, फुटेज बनाने और तस्वीरे उतारने के लिए कैमरामेन ही लगे उठक बैठक कराने . पार्क में ही कुछ लड़कियां बैठी थी, हांथो में फॉर्म था, पत्रकार उनकी तरफ दौड़ पड़े , पीछे से कार्यकर्ता भी दौडे, कार्यकर्ताओ से उनकी बेईजयती करवाई गई, लड़कियां रोने लगी कैमरे के हर एंगल से तस्वीरे बनाई गई, और पत्रकारों के लिए बन गई एक सनसनीखेज़ खबर . लड़कियां रो रही थी तो कुछ पत्रकार ऐसे भी थे जो पास ही बैठकर लड़कियों को टीज़ कर रहे थे, जरा सोचिये उन लड़कियों की नजरो में मीडिया या चैनलों के लोगो की क्या छवि बनी होगी ।



ब्लॉग : हिन्दी ब्लॉगिंग की देंन
पोस्ट : देश भक्त की पहचान
टिप्पणिया : 10

देश भक्त कौन होता हैं और इनको वर्तमान समय मे कैसे पहचाना जा सकता हैं ? कुछ लक्षण बताये ब्लॉगर दोस्तों । कुछ जानकारी मिले आप से । कोई पहचान कोई निशानी ??







ब्लॉग : अक्षत विचार
पोस्ट : टिप्पणी दीजिये‚ वरना आप करेंगे अपना नुकसान.
टिप्पणिया : 26

कई लोग ब्लागर को उत्साहित करने के लिये उनके लिखे पर कुछ न कुछ टिप्पणी देते रहते हैं। परंतु कुछ लोग केवल ब्लाग पर अपना लेख लिखते हैं बस। न किसी को कोई टिप्पणी और न किसी को कोई रिस्पांस। परंतु ऐसा करके जानते हैं आप अपना नुकसान कर रहे हैं।


ब्लॉग : नटखट बच्चा
पोस्ट : हिन्दी ब्लॉगिंग के बुद्धिजीवी
टिप्पणिया : 32

कुल जमा कितने लोगो ने स्लम डोग देखी -चार लोगो ने
ओर निबंध कितने लोगो ने लिखा -साठ से ज्यादा लोगो ने
इस्माइल पिंकी कितने लोगो ने देखी - किसी ने नही
निबंध कितने लोगो ने लिखा -दस ने अब तक लिख दिया है



ब्लॉग : शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग
पोस्ट : रांची ब्लॉगर मीट.....आगे का हाल
टिप्पणिया : 26


किसने कब ब्लागिंग शुरू की? ब्लॉग को क्यों ब्लॉग ही कहा जाता है? कितने ब्लॉग हैं? एशिया में कितने ब्लॉग हैं? किस महाद्वीप के ब्लॉगर सबसे ज्यादा कमाऊ हैं? साल के शुरू में हिंदी के कितने ब्लॉग थे? साल के अंत में कितने हैं? अगले साल तक कितने हो जायेंगे?



ब्लॉग : मेरी छोटी सी दुनिया
पोस्ट : एक लड़की के डायरी के पन्ने(पहली मुलाकात - भाग तीन)
टिप्पणिया : 14


इसका अगला भाग ही अंतिम भाग है उसे पढ़ना ना भूलें.. वैसे यह एकता कपूर के धारावाहिक का भी रूप ले सकता है, मतलब जितना चाहो उतना ही बढ़ता चला जाये.. कुछ गाने नहीं ना सही, मगर कुछ कवितायें तो डाल ही सकता हूं.. अगर आप लोग कहें तो थोड़ा और रोमांटिक बना सकता हूं.. या फिर "एक लड़के की डायरी के पन्ने(पहली मुलाकात)" नामक कहानी आपको एक लड़के के नजरीये से भी दिखा सकता हूं.. अरे दोस्तों फागुन का महीना चल रहा है, सो थोड़ा रोमांटिक होना मेरा भी फर्ज बनता है.. ;)



ब्लॉग : जोगलिखी
पोस्ट : सुवास्तु से कुवास्तु तक, कब तक बचेगा सभ्य विश्व
टिप्पणिया : 12


आज इस स्वर्ग समान रहने योग्य क्षेत्र यानी सुवास्तु को स्वात कहा जाता है. जो अब नरक-तुल्य बन गया है. यहाँ इस्लामी कट्टरपंथियों का कब्ज़ा है. महिलाओं को बाहर निकले व पढ़ने की मनाई है. बुर्का पहनना अनिवार्य है. पुरूषों को ऊँची पतलून पहनना अनिवार्य कर दिया गया है. विद्यालयों को बमों से उड़ा दिया गया है और हजारों लोगों को कत्ल कर दिया गया है. पाँच सौ शरीयत अदालतें स्थापित कर शरीयत का आदिम-युगीन कानून लागू कर दिया गया.


ब्लॉग : इंद्रधनुष
पोस्ट : एक पहेली- बूझो तो जाने!
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डॉक्टर ने उस महिला को बताया कि यह बिना साइड-इफेक्ट वाला, सुरक्षित, सस्ता और प्रभावी इलाज है। और उसकी सारी बातें सच भी थीं। उस महिला का अगले दिन से ही इलाज शुरू हो गया, उसी नयी दवा से। लेकिन पूरे इलाज के बावजूद कुछ समय बाद उस महिला की कैंसर से मौत हो गई।


ब्लॉग : कुछ एहसास
पोस्ट : बस हमें लग गया सो लग गया....क्या कर लोगे हमारा
टिप्पणिया : १५

दुनिया में हर बीमारी का इलाज हो सकता है पर ये लगने की बीमारी का कोई इलाज नहीं है! ऑफिस में बाबू से पूछो.." जानकारी तैयार हो गयी?" जवाब मिला .." नहीं क्योकी उन्हें लगा की शायद दो दिन बाद देनी है" अब आप तर्क ढूंढते फिरो की भाई साब जब तारीक आज की डाली है की आज ही तैयार करके देना है तो आपको कैसे लग गया?" उन्हें तो बस लग गया सो लग गया!


ब्लॉग : हास्य व्यंग्य
पोस्ट : कुछ सवाल और जवाब
टिप्पणिया : 4

१. घडी बनाने की कंपनी में तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?
- यह तो समय ही बतायेगा.

२. केले की कंपनी में तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?
- काम करते हुए अक्सर फिसल जाता हूँ.



ब्लॉग : अनुराग हर्ष
पोस्ट : पधारो म्‍हारे सैर बीकानेर
टिप्पणिया : 3

यहां हिन्‍दू भी है और मुसलमान भी। दोनों बडी संख्‍या में है फिर भी कभी साम्‍प्रदायिकता ने इस शहर को अपनी जद में नहीं लिया। ऐसे मुसलमान भी है जो ब्राह़मणों की तरह प्‍याज तक नहीं खाते तो ऐसे हिन्‍दू भी है जो मुसलमानों के घर को अपना परिवार समझते हैं। होली हो या दीवाली मुस्लिम मोहल्‍ले भी कम रोमांच में नहीं होते। घर पर दीपक भले ही न जले लेकिन पटाखों की धूम और नए कपडे पहनकर शहरभर में घूमने में वो भी पीछे नहीं। रोजे के वक्‍त हिन्‍दूओं के घर खाना बनता है और मुस्लिम के घर जाकर रोजा खुलवाया जाता है।


ब्लॉग : आदित्य
पोस्ट : एक नमकीन पोस्ट
टिप्पणिया : 12

मम्मी शाम को ऑफिस के आकर चाय के साथ भुजिया खाना पंसद करती है.. मोटी वाली भुजिया.. नमकीन विशेष रुप से जोधपुर से आता है.. बहुत स्वादिष्ट होता है ये.. मुझे कैसे पता.. अरे मैं भी तो खाता हूँ इसे मम्मी के साथ.. ये भुजिया आसानी से पकड़ में आ जाती है और अब मेरे तीन दांत है इसे तोड़ने के लिये.. दाँतो से तोड़्ते हुए "कट" की आवाज सुन खुश होता हूँ और मजे से खाता हूँ..


ब्लॉग : लविजा
पोस्ट : बुढ़िया के बाल
टिप्पणिया : टिप्पणी मोड़रेशन में है अभी

कल पापा ऑफिस आते वक़्त "बुढ़िया के बाल" ले आये. जानते है आप ये क्या होता है ? विडियो/फोटो में देखिये आपको भी अपना बचपन याद आ जायेगा. पापा कहते है ये उनको बहुत पसंद है बचपन से ही. आज उनको दिख गया तो ले आये. मुझे भी खाने में ये बहुत मजेदार लगा. कुछ अलग सा स्वाद था. मीठे मीठे गुलाबी रेशे. बस मुंह में रखो और गायब. और देखिये तो मेरे होंठ भी इससे रंग गए.





ब्लॉग : Mutual Fund & Insurance Advisor
पोस्ट : सही पेंशन प्लान देता है सुखमय जिंदगी
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जीवन भर मिलने वाली पेंशन
इसमें प्लान खरीदने वाले को पहले से तय अंतराल पर जीवन भर एक निश्चित राशि का भुगतान किया जाता है। व्यक्ति की मृत्यु के साथ ही पेंशन बंद हो जाती है। इस योजना में पेंशन की राशि सबसे अधिक होती है। इसे 'लाइफ एन्युटी' भी कहा जाता है और यह ऐसे लोगों के लिए ठीक रहती है जिन्हें अपनी मृत्यु के बाद कोई पारिवारिक जिम्मेदारी पूरी नहीं करनी होती।


ब्लॉग : युगांतर
पोस्ट : ये तो स्टाफ है
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२६ नवंबर के बाद भी हम कितने लापरवाह है ये आज सुबह फिर से देखने को मिला.. मुंबई एयरर्पोर्ट के गेट नं १B से प्रवेश करते हुऐ मैने देखा कि CSIF के १०-१२ जवानों को बिना किसी जाँच के एयरपोर्ट में दाखिला मिल रहा है..
ये जवान सुरक्षा कर्मी के पीछे से आराम से प्रवेश कर रहे थे.. मन में शंका हुई.. प्रश्न उठे.. एसा क्यों.. ये सुरक्षाकर्मी इतना विश्वास से कैसे ढील दे रहा है....रहा नहीं गया..और पुछ लिया.. जबाब मिला "ये तो स्टाफ है..." मैने कहा पर कम से कम आई कार्ड तो देख सकते हैं.. क्या पता कोई नापा्क इंसान हो.. कुछ जबाब नहीं मिला...



ब्लॉग : ममता
पोस्ट : गोवा के वीवा कारनिवल की कुछ तस्वीरें
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२१ फरवरी से गोवा मे ४ दिन के कार्निवाल का जश्न शुरू हुआ था जो २४ फरवरी तक चला । पंजिम ,मडगांव,वास्को और कैलंगूत मे कार्निवल खूब मौज-मस्ती के साथ मनाया जाता है । खैर हम सभी जगह तो नही जाते है क्योंकि floats करीब-करीब वही होते है और एक जगह का देखने के बाद दूसरी जगह का देखने उतना जोश भी नही रहता है । हालाँकि इस बार का कार्निवाल उतना ज्यादा पसंद नही आया ।क्योंकि इस बार सभी कुछ बहुत ठंडा-ठंडा यानी कम जोशीला था ।


ब्लॉग : हिमालय रहस्य रोमांच का संगम
पोस्ट : कैलाश मानसरोवर यात्रा जोशीमठ- मलारी मार्ग से शुरू करने को लेकर बहस शुरू
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कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग को मोक्ष का रास्ता भी कहा जाता रहा है। स्कंध पुराण में भी इस यात्रा का वर्णन मिलता है। धारचूला से कैलाश मानसरोवर तथा मलारी से कैलाश मानसरोवर मार्ग का प्रयोग आजादी के 15 सालों तक हुआ करता था। 1962 में चीन द्वारा भारत पर आक्रमण के बाद ये दोनों मार्ग बंद कर दिये गये थे । जिन पर पुन: 1981 में चीन की रजामंदी के बाद यात्रा शुरू हो पायी। जबकि मलारी से तिŽबत के तुंन जेन ला तक इस उत्तरपथ से भी व्यापार होता रहा था, और यह मार्ग भी कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए सबसे सुगम बताया गया है।



ब्लॉग : एकोऽहम्
पोस्ट : दावा छूट और पुनर्चलित पालिसियाँ
टिप्पणिया : 2

''पालिसी लेप्स होने पर उसे चालू कराने के साथ ही ग्राहक को बीमा सुरक्षा फिर से मिलने लगती है। किन्तु लेप्स पालिसी चालू करा लेने के बाद भी, (पालिसी के लेप्स होने के कारण उपजा खतरा और उससे होने वाली हानि के कारण) ग्राहक ने अपना कितना बड़ा नुकसान कर लिया है, यह ग्राहक को मालूम नहीं हो पाता।''



ब्लॉग : ज़िंदगी के मेले
पोस्ट : चाचा का रूआंसापन, पिता जी की मुस्कुराहट देखकर मेरी प्रसन्नता …
टिप्पणिया : 11

ना में सिर हिलता देख चाचा ने कहा 'चल, अरनाला खुर्द देख वहाँ से तो बस एक-डेढ़ मील का ही फासला है।' हमने फिर हाजिरी लगाई, गूगल दरबार में। जवाब मिला कि बच्चा, Arnala तो मुंबई में विरार-वसई के पास एक जगह है जहाँ एक किला है। पाकिस्तान रेलवे की वेबसाईट भी देख डाली गयी, नतीजा शून्य।


क्लाइमेक्स से ठीक पहले


वैसे तो हमारी चर्चा का दिन कल का था.. पर हमने सोचा की अगर रोज हम ही चर्चा करेंगे.. तो नये लोगो को ब्रेक कैसे मिलेगा.. इसलिए कल की चर्चा करने का मौका हमने अनूप शुक्ल जी को दे दिया.. सुना है अच्छी चर्चा करते है.. कुछ एक आध एक लाइना वग़ैरह भी लिख लेते है.. जल्द ही एक्सपर्ट हो जाएँगे...

अब ये तो हुई चर्चा का दिन हड़पने वाली बात.. तो ये भी तो पूछिए की दिन किसका हड़पा हमने.. अजी आज की चर्चा का दिन था शिव कुमार मिश्रा जी का जो दिन में चर्चा करके निकल लिए.. अपने चिर परिचित अंदाज़ से कुछ अलग स्टाइल में चर्चा की उन्होने.. पढ़ने के लिए बगल में जो फोटो देख रहे है.. वही क्लिक कर दीजिए..

अब आते है क्लाइमेक्स पर..


ब्लॉग कॉफी विद कुश एक बार फिर से हाज़िर है आपके बीच.. अधिक जानकारी के फोटो पर क्लिक करिए

cwk

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सरदार हमने आपकी टिप्पणी खाई थी.

दो-तीन दिन से ब्लॉगर डरे हुए हैं. कारण यह है कि माहौल डरावना हो गया है. न्यायालय ने बताया है कि ब्लॉग पर न केवल आपत्तिजनक लेख से बल्कि टिप्पणियों की वजह से भी केस चल जायेगा. सज़ा हो सकती है.

सज़ा हो सकती है, ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि तमाम मुकदमों में सज़ा नहीं हो पाती. चोर-डाकू, आतंकवादी, नेता, अभिनेता, प्रणेता वगैरह-वगैरह सजा से बच निकलते हैं. कई बार तो मुकदमा चलता रहता है, तारीख बढ़ती रहती है लेकिन कोई फैसला नहीं आता. जो मुक़दमा दायर करता है वो भी और जिसके ऊपर मुकदमा चलता है, वो भी बोर होकर दुनियाँ से कूच कर जाता है. बच जाते हैं अदालत के रेकॉर्ड्स.

आप पूर्व (या फिर अभूतपूर्व) केन्द्रीय मंत्री माननीय सुखराम जी के केस को ही ले लें. तेरह साल पहले पूजाघर में रूपये की पूजा करते धर लिए गए थे. रुपया मिला था वो भी करेंसी. न किसी बैंक खाते की जांच करनी थी और न ही किसी कागजात की. लेकिन तेरह साल लग गए उन्हें सज़ा होने में.

इसके बावजूद माननीय सुखराम जी कह रहे हैं कि जज लोग जल्दबाजी में फैसला लेते हैं.

रांची में ब्लॉगर मीट हो गई. जो शामिल हुए वे तो खुश हैं लेकिन जो नहीं शामिल हो सके वे इस बात पर पछता रहे हैं. विष्णु बैरागी जी के आह्वान पर अभिषेक मिश्र जी ने एक सफल ब्लॉगर मीट के मूल तत्वों पर एक श्रृंखला आज ही शुरू की है. आज उन्होंने छ महत्वपूर्ण विन्दुओं पर प्रकाश डाला है.

अगले अंक में वे कार्यक्रम के स्वरुप पर चर्चा करेंगे.

आजाद भारत की तमाम सरकारों को आम आदमी के साथ धोखा-धड़ी की तो जैसे आदत पड़ गई है. बात इस कदर बढ़ गई है कि मौजूदा सरकार ने अपने अंतिम बजट में भी आम आदमी को निराश नहीं किया और धोखा-धड़ी जारी रखी.

अब आम आदमी को शायद इस बात का इंतजार है कि चुनाव के बाद अगली सरकार बने तो धोखा-धड़ी फिर से रिज्यूम हो. तबतक क्या कर सकते है? अगली सरकार के बनने का इंतजार.

२२ फरवरी को लालू जी ने पटना में भोलापन अचीव कर लिया और "रविदासों के समक्ष भले भोलेपन से यह सवाल किया हो कि आखिर उनसे क्या गलती हो गयी जो बिहार की सत्ता से उन्हें बेदखल कर दिया गया.."

लालू जी से भी गलती हो सकती है? यह बात विश्वास करने योग्य तो नहीं है लेकिन वे कहते हैं तो हम विश्वास कर लेते हैं. उनके ऊपर अविश्वास का कारण भी तो नहीं है. आखिर आज तक संसद में या विधानसभा में उनके ऊपर अविश्वास प्रस्ताव नहीं आया तो हम क्यों लायें?

कौशल जी ने आज बताया है कि लालू जी भ्रष्टाचार के चलते ही सीएम बने थे. ये नया खुलासा है. हम तो सोच रहे थे कि वे वोट लेकर सीएम बने हैं. खैर, यह चूंकि नया खुलासा है तो आप भी पढिये. हर नया खुलासा पढ़ने की चीज होती है.

अंशुमाली रस्तोगी जी ने गुड क्वेश्चन किया है कि "लोकतंत्र में आम आदमी कहाँ है?"

खो गया है आम आदमी या फिर खोया-खोया है. लोकतंत्र को चलने वाले इतने लोग हैं. नेता हैं, जनता है, मीडिया है, न्याय-प्रणाली है. सबका अपना-अपना आम आदमी है. नेता का आम आदमी बूथ और चुनावी सभाओं में मिलता है तो मीडिया का आम आदमी टीवी के सामने बैठा टीवी देखता है या फिर हाथ में अखबार लिए अखबार पढता है. नाय-प्रणाली चलाने वालों का आम आदमी अदालत में हलकान हुए न्याय खोज रहा है.

अब तो यह हमें तय करने की ज़रुरत है कि हम किसके आम आदमी हैं?

रांची ब्लॉगर मीट के बारे में बहुत कुछ लिखा गया. कुछ लोगों ने व्यंगात्मक लिखा तो कुछ ने सकारात्मक. व्यंगात्मक और सकारात्मक के बाद बचता है तो सिर्फ नकारात्मक. वो भी लिखा ही जा चुका है. लेकिन मनीष जी खुद को इन सब के बीच पाते हैं.

यही कारण है कि उन्होंने रचनात्मक लिख डाला है. साथ में फोटो भी हैं.

विस्फोट एक साल का हो गया. दाना, पानी और विस्फोट लिखते हुए संजय तिवारी जी ने लिखा; "लोगों को लगता है कि संजय तिवारी नाम के किसी आदमी ने विस्फोट को जैसी शक्ल दी है वह बहुत समझदार आदमी होगा. ऐसा नहीं है. मेरी समझ तो औसत भी नहीं है.."

हम बिलकुल यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं. आप हैं क्या? नहीं न. तो पढ़ डालिए संजय जी का आज का लेख.

रोजगार होगा चुनावी मुद्दा, राम नहीं.

भोपाल में बीजेपी की सभा में यही एलान हुआ है. मजे की बात यह है कि बीजेपी की चुनावी सभा हुई है लाल परेड ग्राउंड में. बड़ी गजब जगह सभा कराया है भाई लोगों ने. मध्य प्रदेश के लोग कन्फ्यूजिया नहीं जायेंगे? लाल परेड ग्राउंड में केसरिया पार्टी की सभा?

और फिर राम जी ने इसबार मुद्दा होने से मना कर दिया है क्या?सर-ए-आम अगर ऐसा बोल रहे हैं तो शायद यही बात होगी.

भारतीय विश्वविद्यालयों में एंट्रेंस परीक्षा बहुत ही कठिन होती है. ऊ भी छात्र ही छात्र की परीक्षा ले लेता है. भगीरथ जी ने आज एंट्रेंस टेस्ट के बारे में लिखा है. वे बताते हैं कि एंट्रेंस टेस्ट के प्रैक्टिकल में क्या-क्या करवाया जाता है. पैंट की चेन खोलने से लेकर मुर्गा बनाकर अंडा दिलवाने तक. बड़ा हार्ड टेस्ट होता है. सब नहीं पास कर पाते.

विश्वास नहीं हो रहा? खुद ही पढ़ लीजिये.

पाठ्य-पुस्तकें शिक्षक के अशक्तीकरण का एक प्रतीक है. वैसे तो कई प्रतीक होते हैं. लेकिन मास्टर साहब ने आज केवल पाठ्य-पुस्तकों की बात की है. उनका कहना है कि हर वर्ष सरकारी पाठ्य-पुस्तकों की बाज़ार में कमी का माहौल तैयार किया जाता है.

अब भी जब सरकारी चीज है तो माहौल बनते-बिगड़ते कितना टाइम लगता है? जैसे पेट्रोल, मिट्टी का तेल, गैस का सिलिंडर, वैसे ही पाठ्य-पुस्तक. सब की कमी हो जाती है. ऐसे में पाठ्य-पुस्तकों को बख्स दिया जायेगा तो वो नाराज़ नहीं होगी? पुस्तक को लगेगा कि उसके साथ नाइंसाफी हो रही है.

आप मास्टर साहब की पोस्ट पढिये और उसपर अपने विचार व्यक्त करिए. माने टिप्पणी दीजिये.

पाश्चात्य देशों के लोगों ने हमें कुत्ता तक कहा. यह बात आज शास्त्री जी ने बताई. आज तो क्या अपनी पिछली पोस्ट में बताई है. बताते हुए उन्होंने हर देशभक्त को दुखी होने आह्वान भी किया था. आज उसी पोस्ट पर आई टिप्पणियों पर विमर्श है.

उन्होंने बताया था "किस तरह यूरोप के साम्राज्यवादी अपने कुत्तों को “टीपू” कहते थे क्योंकि टीपू सुल्तान ने उनके छक्के छुडा दिये थे.."

आप शास्त्री जी द्वारा किया गया विमर्श पढिये.

आलोक पुराणिक जी व्हाइट हाउस के सामने जा रहे थे तो अन्दर से ओबामा जी ने आवाज़ लगाईं; "का हो, गऊना हो जाई हमार फिल्मे देखे कि नाही। बहुत बोंबास्टिक भोजपुरी फिलिम है।"

हम अंग्रेजी बोल रहे हैं, पहन रहे हैं, ओढ़ रहे हैं. खा भी अंग्रेजी में ही रहे हैं. कहीं ऐसा त नहीं न कि एही एहसान उतारने का वास्ते ओबामा जी आजकल भोजपुरी और हरियाणवी सीख रहे हैं.

पता नाहीं अईसा काहे कर रहा है ई मनई? अमेरिका में अपना कुर्सी का चिंता त नाहीं सता रहा है सरकार के? शायद सोच रहे हों कि चार बाद री-इलेक्शन नहीं हुआ त भारत ही में आकर इलेक्शन लड़ लेंगे.

पुराणिक जी का बाकी बात ओनके पोस्ट पर ही पढ़ लीजिये. हमसे काहे कॉपी पेस्ट मरवाएंगे? वैसे भी आजकल बसंत का मौसम में पेस्ट लोग बहुत इधर-उधर उड़ रहा है. केतना को मारेंगे?

लवली ने ब्लॉगर मीट के बाद पोस्ट क्या लिखी कुछ लोगों को भुनगई सताने लगी है. आज तो ज्ञान जी भी स्तरीय लेखन के चक्कर में पड़े हुए हैं.

भुनगा-गति को प्राप्त न हों, इसके लिए प्रार्थना भी लिख डाली हैं. वो भी 'अस्तरीय' प्रार्थना. और तो और पोस्ट न ठेलने तक पर राजी हो गए हैं. शर्त खाली एक ही है. "प्रभु जी मोहें भुनगा न करो. इस अस्तरीय प्रार्थना में सतीश पंचम जी स्तरीय री-ज्वाईन्डर दे मारा है. पढ़कर देखिये.

हिन्दुस्तान में बीहड़ आ गया है. लाने वाले हैं रवीश कुमार जी. योगेश जी बता रहे हैं कि एक साल से जिस रंग को पाने के लिए वे मेहनत कर रहे थे, वो मिल गया है. उन्ही के शब्दों में "आखिर बीहड़ का रंग लोगों पर चढ़ना शुरू हो गया है."

चलिए कम से कम सोमेश जी तो भुनगा ब्लॉगर होने से बच गए.

मैंने कहा था न कि डरने-डराने का समय है. आज युसूफ किरमानी जी गब्बर सिंही अंदाज़ में पूछ रहे हैं; "तेरा क्या होगा रे ब्लॉगर?" कालिया वाले अंदाज़ में अभी तक किसी ने नहीं कहा कि; "सरदार, हमने आपकी टिप्पणी खाई थी."

आज बस इतना ही. चर्चा का फॉर्मेट इसलिए चेंज कर दिया कि आज समय की फिर से कमी हो गयी थी. वैसे भी आपलोग भी एक ही तरह के फॉर्मेट से बोरिया गए होंगे.

बाकी सब ठीक है. कोशिश करेंगे कि अगले वृहस्पतिवार फिर से चर्चा करें.

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बुधवार, फ़रवरी 25, 2009

फोकस नहीं मंगता फ़ोकट मांगता है


रांची में ब्लागर मीट
रांची में ब्लागर मीट क्या हुआ, हल्ला मच गया। जो गये थे वे खुश कि चले गये, जो जा नहीं पाये वे नाखुश कि जा नहीं पाये। कई साथियों ने किस्सा-ए-रांची लिखा! जो हमें दिखे वो आप भी देख लीजिये:

  • संगीता पुरी जी ने विस्तार से रपट दी! बताया कि पारुलजी की आवाज मीठी है,घन्‍नू झारखंडी जी की मेहनत और कश्‍यप मेमोरियल हास्पिटल की डाक्‍टर भारती कश्‍यप जी के द्वारा सबके लिये इंतजाम किया गया, मीत की तबियत खराब थी फ़िर भी वे मीट के लिये आये, धनबाद से आयी लवली कार्यक्रम होते ही निकल ली!

  • प्रभात गोपाल ने बमार्फ़त शैलेश भारतीवासी कि ब्लागिंग को बताया कि हिन्दी ब्लाग जगत के विकास को प्री मुहल्ला एरा और पोस्ट मुहल्ला एरा के रूप में हम देख सकते हैं। हम कहते हैं देख लेव लेकिन जब युग की बात चलेगी तो जो जहां होगा वहीं युगावतार हो जायेगा। कुछ युग यहां देख लीजिये। वैसे प्रभात जी ने यह भी बताया कि अब वे और मनीष मित्र हैं और शिवकुमार मिश्र का व्यक्तित्व अनोखा है!

  • रंजनाजी को रांचिये में जाके पता चला कि वे ब्लागर हैं! उन्होंने लिखा:
    हमारा परम कर्तब्य बनता है कि वैयक्तिकता से बहुत ऊपर उठकर हम उन्ही बातों को प्रकाशित करें जिसमे सर्वजन हिताय या कम से कम अन्य को रुचने योग्य कुछ तो गंभीर भी हो. हाथ में लोहा आए तो उससे मारक हथियार भी बना सकते हैं और तारक जहाज भी.अब हमारे ही हाथ है कि हम क्या बनाना चाहेंगे.

  • लवली को तो रांची जाकर जैसे आत्मबोध हो गया और वे कहने लगीं-हम बेचारे भुनगे टाईप ब्लोगर हैं! लवली ने तो यह भी कह दिया-
    अगर आप हिन्दी ब्लोगर हैं तो अपना टाइम खोटी कर रहें हैं ..क्योंकि आपके पास करने के लिए काम नही है .खाए पिए अघाये लोगों की जमात से ज्यादा आप कुछ नही हैं
    .

  • पारुलजी ने कुछ फोटो लगाये। फोटो देखकर दो बातें पता चलीं:
    १. अगर आप ब्लागरों को पहचानते हैं तो फोटॊ देखकर भी पहचान लेंगे।
    २.कैमरा ब्लागर की तरह मुंहदेखी नहीं कहता। लेकिन शिवकुमार मिश्र के कम उम्र दिखने की बात से लगता है कि कैमरा चेहरा देखकर व्यवहार करता है!

  • भूतनाथ जी ने भी विस्तार से रपट लिखी और कहा-
    ब्लोगिंग बेशक कोई आन्दोलन नहीं किंतु वैचारिक दृष्टि का एक महत्वपूर्ण प्लेटफार्म अवश्य बन सकता है....और अब ब्लोगिंग निजी डायरी से ऊपर उठकर एक वैचारिक रूप ले भी रहा है....और देखा-देखी और भी लोग इसके प्रति संजीदा हो रहे है

  • अभिषेक ने जो लिखा वो यहां बांच लें!

  • शिवकुमार मिश्र जब बालकिशन को साथ न ले जा पाये तो इस शेर को ले गये:
    गुलाब, ख्वाब, दवा, जहर, जाम क्या-क्या है
    मैं आ गया हूँ, बता इंतजाम क्या-क्या है

    वहां उनको इंतजाम भी दिख गया। ब्लागिंग स्थल पर अंग्रेजी में लिखा था:"कश्यप आई हॉस्पिटल इन असोसिएशन विद झारखंडी घनश्याम डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम प्रजेंट्स अ कप ऑफ़ काफ़ी विद हेल्दी माइंड्स." अब चूंकि शिवजी ज्ञानजी के साथ ब्लागिंग करते हैं इसलिये इस बात को बूझ नहीं पाये ठीक से कि ऐसा क्यों लिखा है या फ़िर बूझे भी तो गुरुघंटालों की तरह बताये नहीं। अगर हमारा तर्क माना जाये तो हेल्दी माइंड वाली बात इसलिये लिखी थी कि रांची दरअसल ब्लागरों का शहर, धोनी का शहर , झारखंड की राजधानी से पहले अपनी मानसिक आरोग्यशाला के लिये जाना जाता था। वहां परंपरा रही होगी जो ठीक होकर निकला उसका सम्मेलन कर डाला। क्या पता दोनों इंतजाम एक साथ किये गये हों। मानसिक रूप से स्वस्थ लोगों और ब्लागरों/पत्रकारों को एक साथ बैठाकर काफ़ी -साफ़ी हो गयी।
    वैसे रंजना जी ने शिवकुमार मिश्र की लेखन हरकतों पर उनको हड़काते हुये लिखा:
    इसलिए कहते हैं,व्यंगकार बड़ा खतरनाक होता है,उसे साथ लेकर कहीं जाना नही चाहिए..अपनी एक्सरे निगाहों से क्या क्या देख डालेगा और फ़िर कागज पर क्या क्या उड़ेलेगा,पता नही.....खैर ,तू अगली खेप डाल कल ही....फ़िर सोचती हूँ आगे से तेरे साथ कहीं जाया जाय या नही....

    लेकिन रंजनाजी अब पछताये होत क्या जब गये मीट में साथ!

  • प्रशान्त प्रियदर्शी ने बताया कि आजकल की लड़कियां समय का बहुत ख्याल रखती हैं। स्टापवाच रखकर नायकावलोकन करती हैं:
    उन पांच सेकेण्ड में मैंने उसकी कई बातों पर गौर किया.. गर्मजोशी से हाथ मिलाना, हाथों पर सफेद रंग का बैंड, कार्गो जींस, नाईकी के जूते, टी-शर्ट, हाथों में कोई घड़ी नहीं, और भी ना जाने क्या-क्या.

  • समीरलाल टंकी पर चढ़ चुके हैं उतर भी आये। लेकिन आजकल हर कोई टंकी पर चढ़ जाता है सो समथिंग डिफ़रेंट की आदत के चलते इस बार छत पर चढ़ गये और खुद पर लट्टू हो गये, कनकौवे उडा़ने लगे। उन्होंने बड़ी ऊंची बात भी खैंच दी। बोले:
    कईयों को रहता है कि जिससे कुछ लेना देना नहीं, उसे भी नापे हुए हैं बेमतलब मगर मेरी ऐसी आदत नहीं.
    हमने उनसे पूछा कि मानलो अगर कि अगर ऐसे किसी को नापना ही है जिससे कुछ लेना-देना नहीं है तो उसके लिये आप क्या करते हैं? कोई उपाय है क्या?

    समीरलालजी बोले- हां है काहे नहीं! अगर ऐसे किसी को नापना है जिससे लेना-देना नहीं है तो उसके लिये हम उससे पहले लेन-देन शुरू करते हैं फ़िर धीरे से नाप देते हैं! उसे पता ही नहीं चलता।

  • डा.अनुराग आर्य की त्रिवेणी है:
    तुम चाहो तो कोरे काग़ज़ पर आडी तिरछी रेखाये खींच दो
    कुछ रिश्तो को कभी लफ़्ज़ो की दरकार नही रहती.....

    फ़ौजी की अनपढ़ माँ ख़त को सीने से लगाकर सोयी है


  • अशोक पाण्डेय कम लिखते हैं लेकिन जब लिखते हैं तो सिद्धेश्वरजी जैसे आलसी कबाड़ी भी कहते हैं:
    आई आलसी कबाड़ी लाइक्ड दिस पोस्ट..
    आई आई वेरी हैप्पी..

  • रचना बजाज बहुत दिन बाद लिखने का मन बना पाई! पिंकी की तर्ज पर गुड्डी की कहानी बताई उन्होंने:
    दूसरी शल्यक्रिया भी सफ़ल रही और शारिरीक रूप मे उसकी समस्या अब बिल्कुल खत्म हो चुकी थी लेकिन उसके उच्चारण मे सुधार होना अभी बाकी था.. चिकित्सक ने बताया था कि इतनी उम्र तक गुड्डी जिस तरह से बोलती रही उस तरह से उसके मस्तिष्क मे वो अक्षर वैसे ही अन्कित हो चुके हैं और हर अक्षर के लिये जीभ और तालू का सही तालमेल होने मे समय लगेगा…..
    वे कहती हैं:
    परिस्थितीयां सब कुछ सिखा देती है इन्सान को.. उसके लिये उम्र मे बडा होना जरूरी नही..


  • एक लाइना


    1. अरे, वाह !! हम तो ब्लागर हैं !!! :ई रांची में पता चला!

    2. ब्लोगिंग -स्लोगिंग , बेकार की बातें . : यही तो सब कहते हैं

    3. रांची में संभावनाओं को तलाशने जुटे ब्लागर :संभावनायें फ़रार

    4. एक दिन ब्लोगरों का.......!! :रात भूतनाथ के लिये आरक्षित

    5. रांची में ब्लॉगर मीट...कुछ हमसे भी सुन लीजे. : मानोगे नहीं! अच्छा सुनाओ!

    6. हिंदी में बुद्धिजीवी होना भी कम दुखदायी नहीं.....:इसीलिये यहां अकल पैदलों की चांदी है

    7. त्रिवेणी महोत्सव सम्पन्न... अब ब्लॉगरी : को ठिकाने लगाना है

    8. एक लड़की के डायरी के पन्ने(पहली मुलाकात - भाग दो) :भाग मत दो बबुआ गुणा करो

    9. काश!! हर दिन ऐसा ही हो !!! : थोड़ा और लम्बी सांस लीजिये तब कहिये

    10. हर देशभक्त को दुखी होना चाहिये!!:शास्त्रीजी आप शुरू करो हम तो अभी पोस्ट लिख रहे हैं!

    11. ये कैसे दिन हैं ???? : बूझो तो जानें

    12. गर्व है कि हम स्लमडाग से बेहतर फ़िल्में बनाते हैं :जो किसी आस्कर की मोहताज नहीं! है न!

    13. क्या आपके फोलोवर भी गुम हो गए? : चुनाव के मौसम में और क्या होगा?

    14. खोए फोलोवर फिर से पाने की जुगत : आजकल फ़ालोवर भी जुगाड़ से बनते हैं

    15. हमका अईसा वईसा न समझो…:तुम हौ कौन काम की चीज

    16. ब्लॉगर, आपका वकील कहां है! :टि्पियाने में लगाया है अभी

    17. आज मेरी मिठी का पहला जन्मदिन है : मुबारक हो

    18. पाकिस्तान से 1600 करोड़ रुपये से ज्यादा लेना निकलता है…कोई है?:जरा तगादे पर चला जाये

    19. बच्चन साब...अब तो ऑस्कर भी मिल गया...! :चलिये इसका अचार डाल लें

    20. हँसना नहीं है तो मुस्कुराईये तो सही : कौनौ पईसा तो पड़ना नहीं

    21. फोकस नहीं मंगता :फ़ोकट मांगता है



    चर्चा की चर्चा


    कविताजी ने जब चर्चा की तो अभिलेखागार में समीरलालजी की लिखी २७ सितम्बर २००६ की चर्चा के अंश पेश किये। किसी पाठक ने उस पहेली को बुझाने का प्रयास नहीं किया। :)

    गुलजार जी आस्कर इनाम लेने नहीं गये कारण देखिये:गुलजार के अनुसार वे २ कारणों से ऒस्कर में भाग लेने नहीं गए। पहला कारण दाहिने कँधे का लचक जाना ( यद्यपि वे स्वयं कहते हैं कि इसके बावजूद कँधा बाँधकर जाया जा सकता था) और दूसरा कारण ? " वहाँ काला कोट पहनना पड़ता

    कविताजी से अनुरोध है कि वे अपना पूरा गीत (जिसका अंश उन्होंने पेश किया था)अपनी अपनी आवाज में पेश करें :

    बड़े जतन से बाँध गगरिया जल में छोड़ी
    जलपूरित हो उठी, डोर का छोर लपेटा
    अपने होंठों से शीतल जल पी पाने को
    तब कौशल से सम्हल सम्हल कर पास समेटा
    भरे हुए कलशों का पनघट में गिर जाना
    क्या जानो तुम, तुम्हें कहाँ अन्तर पड़ता है !!


    विवेक सिंह तो छाये हुये हैं चर्चा में। उनकी मेहनत देखकर बहुत अच्छा लगता है। आशुकविता बेजोड़ लिखते हैं। अब उनको कभी-कभी अपने ब्लाग पर भी चलते-चलते लिखना फ़िर से शुरू कर देना चाहिये।

    तरुण ने अभी तक एक बार भी देशी पण्डित स्टाइल में अनियमित चर्चा नहीं की। कब करेंगे? बतायें नहीं करें!

    और अंत में


    कल विवेक ने लिखा कि वुधवार की चर्चा का दिन कुश का है जिसे करेंगे अनूप शुक्ल। उनके कहे की तामील हो गयी।अब कुश भी कुछ कर बैठें तो हम कुछ नहीं कर सकते।

    आपका दिन झकास बीते।

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    मंगलवार, फ़रवरी 24, 2009

    जब नोंचोगे तुम बाल सखा, हम मिलकर मौज मनाएंगे

    नमस्कार ! मंगलमयी चर्चा में आपका स्वागत है !

    अगर आप अभी तक नहाए नहीं हैं तो कृपया पहले जाकर ठण्डे पानी से स्नान कर लें तत्पश्चात यह चर्चा पढें । आदित्य ने फतवा जारी कर दिया है कि ठण्डे ठण्डे पानी से नहाना चाहिए । इसलिए अगर आपको ठण्डे पानी से नहाने से कोई समस्या हुई तो इसकी जिम्मेदारी आदित्य के पापा की होगी हमारी नहीं ।

    वैसे आप न भी नहाएं तो हम आपका क्या कर लेंगे ? हम तो खुद नहीं नहाए आज । बस मुफ्त की सलाह दे रहे थे । अब नहाने का जमाना गया । देखिए तो कितने बडे बडे हीरो नहाते नहाते और जुल्फों में तेल लगाते लगाते बुड्ढे हो गए पर ऑस्कर नहीं ला पाए । ऑस्कर मिला तो गन्दगी को । ऐसा पता होता तो अब तक कितने ऑस्कर आ जाते और नहाने धोने का खर्चा बचता वह अलग । ऑस्कर पर इतनी पोस्ट लिखी जारहीं हैं कि दो चार फुरसतिया विमर्श इन्हीं पोस्ट को लेकर आराम से हो जाएं । पर हम चूँकि फुरसतिया नहीं हैं इसलिए ऐसा नहीं करेंगे और ऐसी पोस्ट्स के लिंक देकर पल्ला झाड लेंगे ।

    1. ऑस्कर में भारत का जादू चल गया है। - सुशील कुमार।
    2. क्या कोई इण्डियन slumdog millioare फिल्म बनाता तो उन्हें भी ऑस्कर अवार्ड्स मिल पाता
    3. अब तो हम भी आस्कर वाले हो गए हैं
    4. ‘स्माइल पिंकी’ की जय हो
    5. तमिल में बोलने के लिए रहमान को बधाई !
    6. "आस्कार" जितने का अर्थ है भारत कि गरिबी का जश्न मनाने का समय
    7. गर्व है कि हम स्लमडॉग से बेहतर फिल्में बनाते हैं
    8. स्लमडॉग तमाचा! स्माईल इंडिया स्माईल
    9. स्लमडॉग मिलियनेयर : इन खुशियों को साझा करें
    10. अल्ला रक्खा रहमान के दिल से--- जय हो....शिवमणी.
    11. "जय हो"- रहमान,गुलज़ार साहब ,और रेसुल...
    12. मुझे तो इस पुरस्कार से कोई खुशी नहीं हुई. दुख हुआ, शर्म आई...
    13. आस्कर ने भी कहा, भारत की जय हो
    14. विरोध करने वालो! आओ ख़ुशी मनाते हैं
    15. स्लम को सलाम

    स्लमडॉग से सम्बन्धित कुछ टिप्पणियाँ उल्लेखनीय हैं :

    योगेश समदर्शी : मुझे तो इस पुरस्कार से कोई खुशी नहीं हुई. दुख हुआ, शर्म आई. अंग्रेज पहले हमें ब्लैक डाग कहते थे अब एक और अंग्रेज ने स्लम डोग कह दिया और वह आज के दौर मै आजाद भारत के लोगों को पूरी दुनिया के सामने ऐसा कह पाया इस लिये उसे विदेश में ईनाम मिलना तय था...

    अनाम : सभी पुरस्कारों की हकीकत हर किसी को भी मालूम है साहब, चाहे वो हिन्दुस्तानी
    हों या विदेशी, चाहे पहले रायबहादुरी के खिताब होते थे या आज के पदमश्री, चाहे गली
    मोहल्ले के सिनेमा रतन हों या देशी फिल्मफेयर या अमरीकी आस्कर, सभी तो जोड तोड
    जुगाड से मिलते हैं, क्यों भाव देते हो इन पर लिखकर .

    Suresh Chiplunkar : खुशी का मौका? किसके लिये, और क्यों? श्याम बेनेगल या गोविन्द निहलानी बनाते तो कोई फ़िल्म देखने भी नहीं जाता… सिर्फ़ एक ही गर्व किया जा सकता है रहमान और गुलज़ार, हालांकि उन दोनों के भी सैकड़ों बेहतरीन गीत हैं जबकि पुरस्कार मिला है "जय हो" को… अब और क्या कहें… बस जय हो…

    Udan Tashtari : मुख्य मुद्दा भारत और भारतियों का ऑस्कर मंच
    पर सम्मान है, जो कि निर्विवाद विश्व स्तरीय सम्मान है. बहुत अच्छा लगा देख कर एवं
    गर्व की अनुभूति हुई.भविष्य के लिए भी शुभकामनाऐं.

    सीमा जी की सलाह मानें तो किसी की मुफ्त की सलाह नहीं माननी चाहिए । मजे की बात यह है कि यह सलाह सीमा जी स्वयं मुफ्त में दे रही हैं । अब बताइए मानेंगे ?
    देखिए किसके मन में क्या चल रहा है यह तो हम जान नहीं सकते ना . फिर भी अनुमान लगा सकते हैं कि गुरु जी और शास्त्री जी के दिमाग में फुरसतिया को बाल नुचवाने का षडयंत्र पनप रहा है :

    Shastri JC Philip : पुनश्च: शिव भईया सही कहते हैं. जल्दी ही आप से एक शास्त्रार्थ करना पडेगा! आप को बाल नोचते देखना बडा आनंददायक होगा!!

    इधर फुरसतिया के मित्र ऐसे हैं और उधर अविनाश दास के मित्र कैसे हैं :

    लेकिन सिर्फ चर्चाओं के आधार पर किसी को दोषी करार देने की किसी की इच्छा का आदर करने के लिए मैं तैयार नहीं हूं। किसी व्यक्ति को सिर्फ इस आधार पर मैं खारिज करने को भी तैयार नहीं हूं, कि कुछ लोग ऐसा कह रहे हैं। आप ये नहीं भूल सकते कि देश में बाढ़ की रिपोर्टिंग की चर्चा हो तो जिस एक शख्स का नाम आप नहीं भूला सकते, वो नाम अविनाश का है। अविनाश पर आरोप लगे तो, साबित न होने तक उन्हें दोषी करार दीजिए। लेकिन उससे पहले उन्हें खारिज मत कीजिए। कोई दमदार व्यक्ति इतने भर से खारिज होता भी नहीं है। आपका जीवन अनुभव क्या कहता है इस बारे में? -दिलीप मंडल

    मित्रों की बात चली है तो कुछ लुढकने मित्रों की की बात भी हो जाय :

    मनमोहन से है नहीं उन्हें तनिक परहेज .

    फिर भी शरद पवार की चले सजाने सेज .

    चले सजाने सेज अगर पाएं परधानी .

    सपा समर्थन करे अमर की साफ बयानी .

    दिव्यदृष्टि जोकर को तो है नाच दिखाना .

    जो दे हलवा-पुड़ी उसका साथ निभाना .

    अब कुछ ताजा समाचार :

    फुरसतिया चाहे हमें लाख कॉपीराइट की धमकी दें पर हम आज एक लाइना पार हाथ साफ करके ही रहेंगे । आप लोग साथ देना कोई बात आ पडे तो ।

    एक लाइना

    1. आओ जानें मुहब्बत में ऐसा भी होता है : हमें पहिले से ही मालूम है जी
    2. बेवफाई जुर्म क्यों नहीं ? : हमारी सरकार तो बनने दो , फिर देखना !
    3. शायद... मेरी लॉटरी लग गई है : पक्का बताओ तो रिस्क भी लिया जाय
    4. गीत चलो हम सूरज उगायें : आप कष्ट न करो सुबह खुद ही उगेगा, हमने कह दिया है
    5. रांची में संभावनाओं को तलाशने जुटे ब्लागर : संभावना की तलाशी तो नारी ब्लॉगर्स ने ली होगी
    6. ब्लोगर परिवार से आशीर्वाद की उम्मीद मे : आप भी ?
    7. बच्चन साब...अब तो ऑस्कर भी मिल गया...! : और कोई नहीं मिला चिढाने को ?
    8. प्रत्येक संबंध एक नाजुक खिलौना है : सँभलकर खेलिए
    9. अविनाश और नीति-नैतिकता पर कुछ फुटकर विचार : थोक के रेट में देने हों तो बोलो
    10. मजहब कभी भी नफ़रत के बीज बोना नही सिखाता : फिर कौन सिखाता है ?
    11. यह कार्टून नहीं, इंसानियत का सवाल है!! : पर हमें तो कार्टून जैसा ही लग रहा है
    12. कुत्ता, मंदी....एक्सेक्ट्रा...! : लॉक किया जाय ? बाद में मत कहना कि जल्दी में लिख दिया था
    13. प्रेम चाहिए कि गर्म बिस्तर? : गर्म बिस्तर, अगले जाडों में
    14. हिन्दी ब्लोगिंग की क्लास : है या पोल खोल सेंटर है ?
    15. जुगाड़ को कानूनी मान्यता क्यों नहीं : वकील आप हो कि हम ? कुछ जुगाड करिए ना
    16. बनारस से तो नही दिख रहा लूलिन ! : आप यहाँ भी फेल हो गए ?


    चलते-चलते



    अनूप शुक्ल
    जब नोंचोगे तुम बाल सखा हम मिलकर मौज मनाएंगे ।

    जब त्राहि माम तुम बोलोगे तब हम यूरेका गाएंगे ॥

    ले लो जितनी ले सको मौज आजकल तुम्हारी चलती है ।

    इस समय कोई तुमसे उलझे उसकी ही सारी गलती है ॥

    लेकिन हल्के में मत लेना हम भी शास्त्रों के ज्ञाता हैं ।

    हमको मालुम हैं सभी यार जो अगली पिछली गाथा हैं ॥

    आओ मिलकर हम सभी आज फिर शुरू नया शास्त्रार्थ करें ।

    अगले मंगल फिर आएंगे अब जाएं समय न व्यर्थ करें ॥

    कल कविता जी स्वस्थ होकर चर्चा में लौटीं । और धाँसू चर्चा कर डाली ! न पढ सके हों तो पढ लें । आने वाले कल की चर्चा कुश की होगी । पेश करेंगे अनूप शुक्ल । धन्यवाद !

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    सोमवार, फ़रवरी 23, 2009

    क्षणे क्षणे यत् नवतां उपैति, तदेव रूपं ....



















    क्षणे क्षणे यत् नवतामुपैति तदेव रूपं .......


    पिंकी का रूप





    २१ जनवरी के पश्चात चर्चा का सुयोग आज बन पाया है। इस बीच कई मीठे व कसैले अनुभव जीवन की पुस्तिका के नए जुड़े पन्नों पर अंकित हो गए हैं , इतिहास में जम गए. जीवन का पथ इतना सुघड़ कहाँ होता है कि सब मनचाहा ही होता रहे.

    अपने एक बहुत पुराने गीत की कुछ पंक्तियाँ याद रही हैं -


    बड़े जतन से बाँध गगरिया जल में छोड़ी
    जलपूरित
    हो उठी, डोर का छोर लपेटा
    अपने होंठों से शीतल जल पी पाने को
    तब कौशल से सम्हल सम्हल कर पास समेटा

    भरे हुए कलशों का पनघट में गिर जाना
    क्या जानो तुम, तुम्हें कहाँ अन्तर पड़ता है !!





    तो यह कालचितेरा ऐसा ही है, सब प्रभावों से मुक्त.... तब भी हम उसे सराहते और सरापते हैं ....|

    आज का दिन कईयों ने तड़के व्यग्रता में काट होगा। आने वाले कुछ दिन ब्लोगजगत में फ़िर से ऑस्कर और स्लमडॉग से सम्बंधित पोस्टों की बाढ़ आएगी... नहीं नहीं भरमार होगी। यह भी यही प्रमाणित करता है कि अभी हम `कालजयी' नहीं हुए, :-)



    भारतीय भाषाओं वाली प्रविष्टियाँ अगली बार के लिए छोड़ रही हूँ। मध्य रात्रि से चर्चा को टुकड़ा टुकड़ा लिखते
    पोस्ट करने में दोपहर बीत गई है।



    विश्व से
    १)
    रहमान को २ एकेडेमी सम्मान से उनकी बारे में जानने वालों की जिज्ञासा व उत्कंठा स्वाभविक है। बहुत कम लोग शायद जानते हों कि ६ जनवरी १९६७ को जन्मे ए. एस. दिलीप कुमार ही (पश्चात्/अब) ए. आर. रहमान हैं।
    २)
    गुलजार के अनुसार वे २ कारणों से ऒस्कर में भाग लेने नहीं गए। पहला कारण दाहिने कँधे का लचक जाना ( यद्यपि वे स्वयं कहते हैं कि इसके बावजूद कँधा बाँधकर जाया जा सकता था) और दूसरा कारण ? " वहाँ काला कोट पहनना पड़ता"(बकौल गुलजार)
    ३)
    एक बार इन्हें भी देख लें तो कई प्रश्नचिह्न अपने मीडिया पर कुलबुलाएँगे और हँसी भी आएगी।

    - HONORARY AWARD
    *




    - और यहाँ भी

    वृत्तचित्र श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ चुनी यथार्थकथा की नायिका को जानिए कि -


    बड़ी प्यारी और मासूम बच्ची है पिंकी लेकिन होंठ कटा होने के कारण उसे बहुत चिढ़ाया जाता था. पिंकी ने स्कूल जाना शुरु भी किया था लेकिन छोड़ना पड़ा. उसका बाल सुलभ मन खेलना तो चाहता था लेकिन दूसरे बच्चे उसके साथ खेलते नहीं थे, वो हताश रहने लगी


    डॉक्टर सुबोध कुमार सिंह, पिंकी के सर्जन

    चित्रावली और सम्पूर्णता के लिए यहाँ देखा जा सकता है.


    अंश चर्चा : अभिलेखागार से
    इस बार चर्चा के अभिलेखागार से २७ सितम्बर २००६ की एक चर्चा का कुछ अंश पढ़िए, पर एक शर्त है ... आपको बूझना होगा कि आख़िर इसके कार ( अरे, अरे, वाहन नहीं ) अर्थात् चर्चाकार कौन हैं। शाम जानबूझ कर हटाया गया इसका काव्यांश और शीर्षक का लिंक यथास्थान यथावत् स्थापित कर दिया जाएगा ताकि आप लोग पूरी चर्चा पढ़ सकें और जान सकें कि आपका अनुमान कितना सही है ।
    अनूप जी व अन्य चर्चाकारों से यह आशा की ही जाती है कि तब तक कोई भी डैशबोर्ड के माध्यम से लिए इसका उत्तर नहीं जाहिर करेंगे।... और अनुमान- प्रमाण का सहारा लेंगे। तो

    तैयार हो जाइए ----


    तुम मेरे साथ रहो...




    सुबह सुबह ही सागर भाई ने एक दुखद समाचार दिया. 'मीरा बाई के भजन के नाम से लिखने वाली चिट्ठाकार और मेरी पत्नी श्रीमती निर्मला सागर की बुवा की १६ वर्षीय पुत्री निशा का आज सुबह सूरत में प्रात: १०.०० बजे निधन हो गया। समस्त चिठ्ठा परिवार की ओर से हम परम पिता परमेश्वर से मृत आत्मा की शान्ति हेतु तथा सब परिजनों को इस दुखद घडी को सहने की शक्ति प्रदान करने के लिये प्रार्थना करते हैं . आगे बढे तो नितिन बगला अपनी इन्द्र धनुषी खानपान की व्यथा कथा लिये पूरी रसोई बिगराये बैठे थे और एक से एक व्यंजनो की याद मे आंसू बहा रहे थे: 'और हाँ, कुछ चीजें जिनकी खूब याद आती है..गरमागरम पोहा-जलेबी, दाल-बाटी, सादा रोटी-सब्जी ' आधा दर्जन से भी दो अधिक ज्यादा लोग उन्हे ढाढस बंधाते नजर आये. अब खाने की बात चली, तो लक्ष्मी जी भी पालक के बिछोह मे टेसू बहाते नजर आये:

    धोने से नहीं धुलता है,
    उबालने से नहीं उबलता है,
    अजर अमर यह बैक्टीरिया
    हमें बीमार करता है।
    पालक प्रेमियों पर आफ़त आई है।


    खैर हम तो खुश हैं, इसी बहाने पालक से बचे, नही तो हरी सब्जी की दुहाई देकर बनाने बी सबसे सरल आईटम हफ्ते मे दो बार तो टिकाया ही जा रहा था हमारे घर पर.
    उधर उन्मुक्त जी अपने वही शिगुफाई अंदाज मे आवाज लगाते दिखे: The week मनोरमा ग्रुप के द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी की पत्रिका है। इसके सबसे नये अंक (सितम्बर २५ – अक्टूबर १) के अंक में ब्लौगिंग के ऊपर लेख blogger's park निकला है। इसमें इस बात की चर्चा है कि हिन्दुस्तान में अंग्रेजी में चिट्ठे लिखने वाले कैसे पैसा कमा रहें हैं। क्या हिन्दी चिट्ठेकारों के भी दिन फिरेंगे। अब अभी तो फिरे नही हैं, जब फिर जायें तो आप तो हईये हैं बताने के लिये, तब हम भी लाईन मे लग जायेंगे. तब तक जैसा चल रहा है वैसे ही हांके हुये हैं. रास्ते मे ही जीतू भा जुगाड लिंक मे एक ठो जुगाड लिये खडे थे, बिल्कुल सरकारी हिसाब किताब सा, एक जुगाड बताने के लिये एक पूरा पन्ना निपटा दिये. उससे ज्यादा तो उसे यहां कवर करने को लिखना पड रहा है. खैर, छोडा जाता है क्योंकि जुगाड है बेहतरीन.


    आधी - आबादी

    इधर गत कुछ समय से एक ऐसे चेहरे को देखने का सुयोग बना जो

    "पेशे से पुलिस ,धर्म से मनुष्य ,शरीर से स्त्री ,मन से उभयलिंगी और स्वभाव से प्रेमी"
    है।पुलिस के प्रचलित चेहरे से भिन्न व अपनी कोमलकांत संवेदनाओं को सुरक्षित सहेजे चलता हुआ।
    इस चेहरे के तीन नेट-पक्ष हैं -


    दिल की महफिल,

    कुछ कवितायेँ कुछ हैं गीत ,

    काहे नैना लागे

    आप एक बार यहाँ तक हो आइये। लौटेंगे तो अवश्य मेरी बात को सच पाएँगे कि इस प्रशासनिक व क्रूर-ख्यात विभाग तक में स्त्रियों ने अपने भीतर के मनुष्य को जिलाए रखा है

    मुझे सर्वाधिक रोचक लगता है सीमा जी का "काहे नैना लागे" ...| यथार्थ से भरपूर और जिंदगी के बेहद करीब।



    अतीत के संदर्भ वर्तमान पर इस तरह विनाशकारी धूमकेतु बन छा जाएंगे इसकी सुभद्रा को कल्पना ही नहीं थी। इतने दिनों से मन की जिन कोमल भावनाओं को उसने चारित्रिक दृढ़ता से लौह कपाटों के पीछे बन्द कर रखा था रत्नाकर के प्यार ने उन लौह कपाटों को न जाने किन अदृश्य चाबियों से खोल दिया था। इतने आवेग व संवेग इतनी कोमल और किसलयी भावनाएं,ँ कामनायें जिन्हें सुभद्रा ने मृत समझ लिया था न जाने कहाँं से मन में जाग गई। उसे भी यह आभास हो गया था कि किसी भी दिन रत्नाकर विवाह का प्रस्ताव रख देगा। वह स्वयं इस विषय को उठाना नहीं चाहती थी किन्तु उसने अपने आपको इसके समर्थन के लिये राजी कर लिया था।




    पता नहीं बार बार "गलती किसकी" की लेखिका किरण बेदी अनायास याद आ रही हैं, आती ही हैं । महिला राष्ट्रपति नाम की रबर-मोहर बना कर स्त्रियों की पक्षधरता का मुखौटा पहनी सरकार एक ओजस्वी किंतु सदाशयी महिला से कैसे तो डर जाती है न... | भली स्त्रियाँ भी कैसा खतरा बन जाती हैं ... अगर आप ईमानदार न हों तो। तो एक प्रकार से यदि स्त्री को स्त्री बने रहने देना चाहते हैं तो ख़ुद भले बन कर रहिए, इसे रौद्र रूप के लिए विवश मत कीजिए।

    अहिल्या


    अहिल्या की कथा पढ़ -पढ़ कर
    सोचती रहती थी मैं अक्सर
    कि
    कैसे बदल जाती होगी
    अक जीती जागती औरत
    पाषाण की शिला में ?
    कैसा होता होगा वह क्रूर शाप ?
    जो
    जमा देता होगा शिराओं में बहते रक्त को ।
    आज अपने अनुभव से जाना,
    संवेदनहीन ,प्रवंचना युक्त अंतरंगता का साक्षात्कार ,
    कभी धीरे -धीरे और कभी अचानक
    जमा देता है
    संबंधों की उष्ण तरलता को.



    जाने कितने मूक - यथार्थ इस कलम से अभिव्यक्त होने की आस लगाए है। कलम बरकार रहे।

    अंत में


    पता नहीं, चर्चा आपको कैसी लगती है! बहुधा अपने-अपने चिट्ठे की चर्चा से शून्य प्रमाणित होने वाली इस चर्चा से निराशा ही हाथ लगती होगी। पुनरपि आप लोग आते हैं, पढ़ते हैं, टिप्पणी करते हैं, सो, धन्यवादी हूँ। फोर्मेट की व आमंत्रित अतिथि से चर्चा की चर्चा भी नई संभावना के द्वार खोलती दिखाई पड़ती है। नवीनता का मानव सदा ही आग्रही रहा है। नवता ही सौंदर्य है।

    सौन्दर्य की परिभाषा देते हुए कवि माघ लिखते हैं -

    क्षणे क्षणे यत् नवतामुपैति तदेव रूपं .......

    मेरे तईं फ़ॊर्मेट भले ही कैसा भी हो, कन्टेंट अगर सही है तो गाड़ी सही चलती ही है।


    तो मिलते हैं आगामी सप्ताह... तब तक के लिए .... ऑस्कर मुबारक!


    महाशिवरात्रि समस्त कल्याणों की देनेहारी हो!!

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