बुधवार, सितंबर 30, 2009

चिट्ठा चर्चा एक नए कलेवर में..

नमस्कार चिटठा चर्चा में आपका स्वागत है.. दो दिनों से ब्लोग्वानी ने साथी ब्लोगरो को लिखने की एक वजह दे डाली.. कितने ही लोगो ने ब्लोग्वानी को वापस बुलाया और बुलाकर धन्यवाद् भी दिया.. पर इस मनाने और बुलाने में मूल समस्या की बात पता नहीं कहाँ चली गयी.. ब्लोग्वानी को समझना चाहिए यहाँ पर इल्जाम लगाने वाले कई लोग घात लगाए बैठे है.. आप चाहे जितना बढ़िया बना दे इसे फिर कोई आवाज़ उठा देगा..
हमने अपनी टिपण्णी के रूप में पियूष मिश्रा द्वारा लिखित गुलाल फिल्म का गीत लिखा

सभी जगत ये पूछे था, जब इतना सब कुछ हो रियो तो
तो शहर हमारा काहे भाईसाब आँख मूंद के सो रियो थो
तो शहर ये बोलियो नींद गजब की ऐसी आई रे
जिस रात गगन से खून की बारिश आई रे
ये तो रही हमारी बात, आइये पलटी मारते है आज की चर्चा की तरफ.. शुरुआत करते है मिथिलेश दुबे जी की पोस्ट से मिथिलेश जी कहते है

देखिए, जो कुछ भी होता है, इसी समाज में होता है और इस बात की दुहाई के साथ कि यह समाज का एक अंग है। मैं इससे इनकार नहीं करता। राइट टू इक्वलिटी की बात पर वे लिखते है..
अगर प्रकृति ने हमें यह बताया है कि दो विपरीत लिंगी विपरीत हैं तो प्राकृतिक ढंग से वे एक नहीं हो सकते। प्राकृतिक ढंग से जो विपरीत है, उसके लिए राइट टू इक्वलिटी की बात करना थोपा हुआ सच है। पश्चिमी संस्कृति में है, इसलिए हमारे यहां लागू करने में क्या हर्ज है, यह डिबेट का विषय है।
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आगे वे लिखते है..

न्युज चैनल हो या अखबार, अनर्गल विज्ञापनों और नग्न चित्रों से पटे हैं। तेल,
साबुन, कपड़ा सभी जगह यही नग्नता। यहाँ पर मेरा सवाल उन प्रगतिवादी
महिलाओं से है जो की महिला उत्थान के लिए कार्यरत है इस तरह के बाजारीकरण
से उन्हे समान अधिकार मिल रहें है या उनको बाजार में परोसा जा रहा है ?।

चुनाव प्रचार हो या शादी का पंड़ाल छोट-छोटे कपड़ो में महिलाओं को स्टेज पर
नचाया जा रहा है। यहाँ पर महिला उत्थान के लिए कार्यरत लोग न पता कहाँ है।
अब उन्हे ये कौन समझाये कि उनका किस तरह से बाजारीकरण हो रहा है।
टीवी पर दिखाए जा सारे धारावाहिक एक्सट्रा मैराइटल अफेयर पर केंद्रित हैं। तर्क
यह दिया जाता है कि जो समाज में हो रहा है, हम वही दिखा रहे हैं, अगर आपको
न पंसद हो तो आप स्विच ऑफ कर लें। कल को आप टीवी पर ब्लू फिल्में दिखाने
लगें और कहें कि आपको पसंद न हो तो स्विच ऑफ कर लें।

समाज का एक वर्ग तर्क दे रहा है कि हमारे शास्त्रों में समलैंगिक संबंधों और
यौनिक खुलापन को जगह दी गई है। ठीक है, चार पुरुषार्थो में काम को भी रखा
गया है। उसके ऊपर चिंतन करें, यह गलत नहीं, इसका उद्देश्य प्रकृति को
अनवरत रूप से चलने देना है। मगर मात्र खजुराहो के मंदिर व वात्स्यायन का
कामशास्त्र ही भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व नहीं करते। सामाजिक नियम
द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव के अनुसार बदलते रहते हैं।

खैर ये तो रही मिथिलेश जी की बात, अब मिलते है रवि रावत जी से
अपने परिचय में रवि रावत जी कहते है

किसी से वाद- विवाद करने से अच्छा है चुप रहना, लेकिन चुप रहने से दिमाग भारी हो जाता है। इंसान मनोरोगी हो जाता है। मैंने सोचा, क्यों न लिखकर दिमाग को हल्का कर लिया जाए, सो ये ब्लॉग रच डाला... अब मेरी हर मनोदशा आपके सामने होगी...
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रवि रावत जी अपने ब्लॉग मनोदशा पर श्री राम, कृष्ण को भगवान् मानने से इनकार कर रहे है..

आज छल-कपट का मायाजाल चारों ओर फैला हुआ है। लेकिन क्या राम ने छल नहीं किया या फिर कृष्ण इससे अछूते रहे। कृष्ण का तो एक नाम ही छलिया था। मुझे ऐसा लगता है कि कृष्ण ने सिर्फ अपनी सत्ता मनवाने के लिए महाभारत जैसा दुनिया का सबसे बड़ा युद्ध करवाया था। इसे नाम दिया धर्म युद्ध। जबकि मेरी नजर में कदम- कदम पर यह युद्ध छल और अधर्म की विसात पर लड़ा गया।

आगे वे लिखते है

अब राम की बात करें तो बाली वध में उन्होंने भी छल से ही काम लिया। किसी को भी छिपकर मारना राम जैसे मर्यादापुरुषोत्तम को शोभा नहीं देता।

हालाँकि यदि कोई उन्हें इन बातो पर विस्तृत जानकारी दे पाए तो वे अपनी ये सोच बदल भी सकते है.. ऐसा कहते हुए उन्होंने आगे लिखा है..

हो सकता है कि मुझे उचित तर्क नहीं मिले हैं, इसलिए मैं राम से थोड़ा खफा हूं। अगर कोई भी राम और कृष्ण को लेकर मेरे कुछ सवालों को सही उत्तर देता है, तो शायद में उन पर विश्वास करने लगूं।

यदि आप उनके सवालों के जवाब देना चाहे तो यहाँ क्लिक कर सकते है

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rashmiब्लॉग जगत में हाल ही में एंट्री लेने वाली रश्मि रविज़ा  जी अपने ब्लॉग मन का पाखी पर समाज की विसंगतियों पर लिखती है कि किस प्रकार नवरात्रि में माँ बाप अपने बच्चो पर नज़र रखने के लिए गुप्तचर सेवाए लेते है..

पहले पहल यह खबर पढ़कर मैं हैरान रह गयी थी कि गुजरात में संपन्न माता-पिता अपने बच्चों की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए गुप्तचर संस्थाओं का सहारा लेते हैं.

पर मन यह सोचने पर मजबूर हो गया कि आखिर ऐसी नौबत आयी ही क्यूँ? माँ-बाप को इतना भी भरोसा नहीं, अपने बच्चों पर ?और अगर भरोसा नहीं है तो फिर उन्हें देर रात तक बाहर भेजते ही क्यूँ हैं? बच्चों को वो जाने से नहीं रोक पाते यानि कि बच्चों पर उनका वश भी नहीं.

जाहिर है उनकी परवरिश में कोई कमी रह गयी.अच्छे संस्कार नहीं दे पाए.अच्छे बुरे को पहचानने कि समझ नहीं विकसित नहीं कर पाए. वे अपने काम में इतने मुब्तिला रहें कि बच्चे नौकरों और ट्यूशन टीचरों के सहारे ही पलते रहें.

रश्मि जी का मानना है कि अच्छे संस्कारों की कमी की वजह से ही ऐसा करने की नौबत आती है..

मुंबई में जन्मी,पली,बढ़ी मेरी कई सहेलियां बताती हैं कि वे लोग नवरात्रि के दिनों में डांडिया खेलकर सुबह ४ बजे घर आया करती थीं.साथ में होता था कालोनी के लड़के ,लड़कियों का झुण्ड. उन सबके माता पिता ने उनपर कैसे विश्वास किया?...लोग कहेंगे अब ज़माना खराब है.पर ज़माना हमसे ही तो है. इस ज़माने में रहकर ही,खुद को कैसे महफूज़ रखें, अपना चरित्र कैसे सुदृढ़ रखें,अपने संस्कारों को न भूलें.यह जरूरी है न कि किसी गुप्तचर के साए की दरकार है.

मेरे पड़ोस की मध्यम वर्ग की दो लड़कियां २० साल की कच्ची उम्र में उच्च शिक्षा के लिए विदेश गयी हैं.कभी लिफ्ट में मिल जातीं तो हलके से मुस्करा कर हेल्लो कहतीं.स्मार्ट हैं, पर कभी उन्हें उल्टे सीधे फैशन करते या बढ़ चढ़कर बांते करते नहीं सुना.मैं सुनकर चिंता में पड़ गयी थी,वे लोग वहां अकेले कैसे रहेंगी? पर उनके माता पिता को अपनी परवरिश पर पूरा भरोसा है.

लेख का अंत वे एक शेर से करती है

"ये पत्थरों का है जंगल,चलो यहाँ से चलें
हमारे पास तो, गीली जमीन के पौधे हैं"
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 photo 3राजेश मिश्रा जी की पोस्ट आह दिल्ली शरीफ दिखने वाली दुनिया के गाल पर एक तमाचा है.. समाज की एक
गन्दी सच्चाई दिखाती है उनकी ये पोस्ट

अरे सुनो मैं आवाज लगा देता हूं।ये कौन है तुम्हारी बीवी?
मै पूछता हूं, यह सोचकर कि किसी जगह कुछ जानकार मित्रों से कह कर कहीं इसे दिहाडी पर लगवा दूंगा । लड़की अबतक सड़क के उस पार जा चुकी है।लड़की के जाते ही वह कहता है
"बेटी है बाबू, ऎसी कुलखनी औलाद भगवान किसी को न दें! अविवाहित बेटी का कुंवारापन टूट जाए तो बाप के लिए गाँव में जगह कहां बचती है बाबू "? इसलिये दिल्ली आ गया हूं।

वह मेरा कंधा बड़े इत्मीनान से झकझोर कर कहता है,मेरी नजर में तो मेरी बिटिया आज भी कुंवारी है बाबूजी!आओ न तुम्हारे थके हुये जिस्म की मालिश करवा दें।
मेरी बेटी कर देगी न! महताना कुल बीस रूपए दे देना।
पीछे किसी गाडी की लंबी हार्न सुनकर मैं आगे बढ़ जाता हूं ।
देखता हूँ सडक के उसपार एक सेंट्रो कार का दरवाजा खुलता है और खटक से बंद हो जाता है।उसकी बेटी अब सड़क पर नहीहै और मेरे पास से उसका बाप भी जा चुका होता है।
अनायास मेरे दिल से निकल पड़ता है "आह दिल्ली"।
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प्रवीण सिंह जलते हुए रावण को देखकर कुछ यु लिखते है..

राम ने जैसे ही नाभिकुण्ड में दागा तीर
महिला झुंड में बरसा खुशी का नीर
एक बोला ये इतना क्यों हरस रही है
चेहरे पर इतनी खुशी क्यों बरस रही है
दूजे ने कहा यह है राज
सुनो बहुत खुश ये आज
इसलिए
बार-बार आपस में तालियां टेक रही है
भाई भले रावण पुतला ही सही
पुरुष को जो जलते देख रही है।
000
आज रावण का कद हर साल बढ़ रहा है
जैसे आतंकवाद हमारे सीने पर चढ़ रहा है।
नगरपालिका हर साल बढ़ाती है उसका कद
इधर भी बड़ी होती जा रही है आतंक की हद।
न जाने कब रावण का कद कबसे छोटा होना होगा
आतंक मिटाने को अब हमें और कितना खोना होगा।

अर्चना जी अपनी प्रोफाइल में अपने बारे में कुछ यु लिखती है..

मै, सबसे पहले एक बेटी,फ़िर बहन,फ़िर सहेली,फ़िर पत्नी,फ़िर बहू, फ़िर माँ,फ़िर पिता,फ़िर वार्डन, फ़िर स्पोर्ट्स टीचर और फ़िलहाल "ब्लॊगर" के किरदार को निभाती हुई,"ईश्वर" द्वारा रचित "जीवन" नामक नाटक की एक पात्र।

इसी जीवन के कुछ किरदारों से परिचय कराती उनकी ये पोस्ट त्योहारों पर अकेले रहते बुजुर्गो की व्यथा बताती है..

Zyu0oneमैंने पूछा आ गए आंटी कुछ दिन और वही आराम करलेते ------उनका जबाब था ----अपने घर में ही अच्छा लगता है ........मैंने कहा ----फ़िर भी थोडी देख-भाल हो जाती ,-------उसके लिए तुम हो न ........तुम्हे भगवान ने मेरे लिए भेजा है ....मेरे घर के सामने ...........और मै उनका मुझे पर विश्वास देखकर दंग रह गई ....(बाद में पता चला बहन के बेटी- दामाद आने वाले थे इसलिए वे उन्हें वापस छोड़ गई थी )

ईद के दिन सुबह-सुबह फ़िर मुझे जगाया ------आओ गले मिल लो आज मेरी ईद है ----( सुबह से तैयार होकरबैठी आंटी से शाम तक उनका कोई रिश्तेदार मिलने नही आया ........)

कायरे मामी की उम्र भी अस्सी साल के लगभग होगी , इस उम्र में भी क्रोशिये से बुनाई करती है , और सबको सीखाती भी है ,अकेले रहती है ............वे अपने पति की दूसरी पत्नी है ,पति अपने ज़माने के बहुत बड़े वकील थे


प्रमोद जी के ब्लॉग से कुछ तस्वीरे

azdak

रचना जी का मानना है कि ब्लोग्वानी को सदस्यता शुल्क लेना चाहिए.. 1200 रूपये मात्र.. 

अगर हम ब्रॉड बैंड के लिये ३०० - १००० रुपए महिना खर्च कर सकते हैं तो १२०० साल कि सदस्यता ब्लोग्वानी कि ले कर अपने लिखे को पढ़वा भी सकते हैं । जो सदस्यता ना ले वो पढ़ तो सकते हैं पर उनका लिखा ब्लॉगवाणी पर आयेगा नहीं । हिन्दी को आगे ले जाने के लिये हम इतना तो कर ही सकते हैं ।

बल्ली राय अपने बारे में कुछ यु लिखते है अपनी पोस्ट में..

000बारिश मे भीगना बहुत पसन्द है, जाहिर बचपन मे कागज की नावें बहुत चलायी.
बचपन मे मै बहुत शरारती था ‌और मोहल्ले की वानर सेना का लीडर था.
मै ईश्वर मे विश्वास रखता हूँ.
मै हिन्दी, उर्दू,अंग्रेजी, पंजाबी और फ्रेंच भाषायें बोल लेता हूँ, अब फ्रेंच बोलने के लिये मत बोल देना, मिट्टी पलीत हो जायेगी.
लेकिन मेरे को हिन्दी भाषा सबसे अच्छी लगती है.
कालेज टाइम मे धूम्रपान के कई रिकार्ड तोड़े…..अब स्मोकिंग एकदम बन्द,हालात यहाँ तक कि यदि कोई मेरे सामने स्मोक करे तो धुँए से परेशानी होती है.
पूरी पोस्ट में एक मासूमियत का भाव आपको भिगोये रहता है

जिन्दगी हर रोज कुछ ना कुछ नया सिखाती है, बहुत कुछ सीखा…….नही सीख पाया तो बस किसी से नफरत करना.
मेरा मानना है प्यार के लिये जिन्दगी कम पड़ती है, नफरत के लिये कहाँ जगह है इसमे?
मै किसी को बाय बाय नही कर सकता, मुझे बहुत दुःख होता है किसी को बाय बाय करने मे.
जीवन मे अपनी माताजी से बहुत प्रेरित रहा, अब वो तो नही रही, लेकिन उनके कहे एक एक शब्द आज भी मेरा मार्गदर्शन करते रहते है.

व्यापार के लिये एकदम अनफिट, पिछले अनुभव तो यही बताते है, शायद कई बार दिल से डिसीजन लिये इसलिये.
आत्मनिर्भरता के शौंक की वजह से जल्द ही अपने पैरों पर खड़ा हुआ, पढाई के साथ साथ नौकरी मे भी हाथ आजमाया.
कहते है हर सफल व्यक्ति के पीछे किसी महिला का हाथ होता है, अब मै किस किस का नाम लूँ?

ब्लाग लिखने का मकसद, लोगों तक अपने विचार पहुँचाना और लोगो के विचारों तक पहुँचना.
ब्लाग लिखने के लिये कभी भी ड्राफ्ट का प्रयोग नही किया, जो जी मे आया लिख दिया, हालांकि बाद मे कई बार लगा, कि इससे भी बेहतर लिखा जा सकता था.
आस पास की सबसे बड़ी उपलब्धि-हिन्दी ब्लागजगत के साथियों का सानिध्य पाना.
सपने देखना बहुत पसन्द है, खासकर पिछली जिन्दगी से मुत्तालिक……

प्रेमचंद का सेवासदन डाउनलोड करें
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प्रेमचंद को हिन्दी साहित्य में उपन्यास सम्राट की उपाधि प्राप्त है। 'सेवासदन' ,प्रेमचंद का प्रमुख उपन्यास है,इसका प्रकाशन सन १९१८ में हुआ था। प्रेमचंद को हिन्दी में प्रतिष्ठित करने वाला पहला उपन्यास सेवासदन पहले उर्दू में 'बजारे हुस्न' शीर्षक से लिखा गया था,पर उसका उर्दू रूप हिन्दी रूपांतरण के बाद प्रकाशित हुआ। इसी आधार पर सेवासदन को प्रेमचंद का पहला उपन्यास माना जाता है। आप इस उपन्यास को  यहाँ से डाउनलोड करें

तो दोस्तों ये थी आज की चिटठा चर्चा.. अंत में बात करते है चिटठा चर्चा के बदले हुए रूप की


नया कलेवर


चिटठा चर्चा का हमेशा से प्रयास रहा है अच्छे चिट्ठो की पोस्ट को एक स्थान पर उपलब्ध करना.. खैर पिछले कुछ समय में चिटठा चर्चा की तर्ज़ पर और साथी ब्लोगरो ने प्रयास किये है और कर रहे है ये अच्छी बात है परन्तु चिटठा चर्चा की ही तरह ले आउट बनाकर पाठको को गुमराह करना ठीक नहीं.. फिर भी चूँकि चर्चा का टेम्पलेट एक निशुल्क टेम्पलेट है जिसका उपयोग कोई भी कर सकता है इसलिए हमने चिटठा चर्चा का ही टेम्पलेट बदलना उचित समझा..  और इसीलिए आज आप चर्चा का नया ले आउट देख रहे है..

हमारे लिए ख़ुशी की बात होगी यदि आप टिपण्णी के साथ साथ इस ले आउट से सम्बंधित अपनी प्रतिक्रिया भी दे और साथ ही आपका सुझाव भी दे.. हम इसे और बेहतर बनाने के लिए प्रयत्नरत है..

आभार

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मंगलवार, सितंबर 29, 2009

ब्लागवाणी जनता की बेहद मांग पर वापस

कल ज्यादातर ब्लाग पर ब्लागवाणी के बैठ जाने से जुड़ी खबरें पोस्टों का विषय रहीं। लोगों ने अपनी लम्बी-लम्बी टिप्पणियां कापी-पेस्ट तकनीक से कीं। एकाध लोगों ने वरिष्ठ ब्लागरों से सवाल किया है कि वे चुप क्यों हैं। अब नाम लेकर पूछा नहीं गया और न यह बताया गया है कि किस समय के पहले के ब्लागर वरिष्ठ ब्लागर माने जायेंगे लिहाजा बात वही छायावादी टाइप है।
मास्टर मसिजीवी साहब नें अपनी फ़ड़कती हुई पोस्ट में मौजूं वाल उठाये हैं और कुछ सवाल किये हैं। उन्होंने ब्लागवाणी के बन्द किये जाने को अपने पैरों(आम ब्लागर जनता) के नीचे से कालीन खींचने के समान बताया है और अपनी टिप्पणी दोहराई है
''ये पूरा प्रकरण ही अत्‍यंत खेदजनक है। न केवल आरोप-प्रत्‍यारोप खेदजनक हैं वरन नीजर्क प्रतिक्रिया में ब्‍लॉगवाणी को बंद किया जाना भी। क्‍या कहें बेहद ठगा महसूस कर रहे हैं...अगर ब्‍लॉगवाणी केवल एक तकनीकी जुगाड़ भर था तो ठीक है जिसने उसे गढ़ा उसे हक है कि उसे मिटा दे पर अगर वह उससे कुछ अधिक था तो वह उन सभी शायद लाख से भी अधिक प्रविष्टियों की वजह से था जो इस निरंतर बहते प्रयास की बूंदें थीं तथा इतने सारे लोगों ने उसे रचा था.... हम इस एप्रोच पर अफसोस व्‍यक्त करते हैं। यदि कुछ लोगों की आपत्ति इतनी ढेर सी मौन संस्‍तुतियों से अधिक महत्‍व रखती है तो हम क्‍या कहें...''


मसिजीवी ने आगे धुरविरोधी और नारद के बारे में लिखा। सवाल मौजूं हैं। ब्लागवाणी के बंद करने का कारण यह बताया गया कि कुछ विघ्न संतोषियों की ऊटपटांग आलोचनाओं के कारण शटर गिरा दिया गया। बातें और भी होंगी केवल इत्ती सी आलोचना से ब्लागवाणी बन्द होना होती तो पहले हो चुकी होती क्योंकि पहले भी लोगों ने कम हमले नहीं किये ब्लागवाणी पर।

एकलव्य ने कल कहा कि कल से प्रतिदिन ब्लागवाणी चालू कराने हेतु इस ब्लॉग पर नारे बाजी की जावेगी यह समाचार लिखे जाने तक कोई नया नारा आज नहीं पोस्ट हुआ। बताओ जब नारे बाजी में कामचोरी।

प्रशान्त ने पिछले दिनों कुछ बड़ी अच्छी पोस्टें लिखीं हैं। कल भी उन्होंने लिख के धर ही तो दिया:
अंततः ब्लौगवाणी बंद हो गया.. मेरी नजर में अब हिंदी ब्लौगिंग, जो अभी अभी चलना सीखा था, बैसाखियों पर आ गया है.. मैथिली जी में बहुत साहस और विवेक था जो इसे इतने दिनों तक चला सके.. शायद मैं उनकी जगह पर होता तो एक ऐसा प्लेटफार्म, जिससे मुझे कोई आर्थिक नफा तो नहीं हो रहा हो उल्टे बदनामियों का सारा ठीकरा मेरे ही सर फोड़ा जा रहा हो, को कभी का बंद कर चुका होता..

अजय कुमार झा ने भी कुछ तो लिखा ही है। देख लिया जाये:
लगे हाथ एक सलाह उनके लिये भी जो बंधु सिर्फ़ दूसरों की लेखनी और विषयों को निशाना बना कर लिख रहे हैं....मित्र यदि लिखने को कुछ न रहे...या कोई विषय न सूझ रहा हो...तब भी ..यानि बिल्कुल अंतिम विकल्प के रूप में भी वैसी पोस्टें लिखने से बेहतर होगा कि आप दूसरों को पढने और टीपने में समय दें....अन्यथा यदि एग्रीगेटर्स बंद हो सकते हैं तो ब्लोग..........?

अजय झा ने कुछ संकलकों के नाम भी बताये हैं।

ललित वर्मा ने आवाहन किया है- ब्लॉग वाणी वालो इसे चालू करने का विचार करो

महाशक्ति के हवाले से एक खबर-ब्लागवाणी बन्द IEDig.com सुरु

डा.अमर कुमार तो एकदम कन्फ़्यूजिया गये और कहने लगे-क़न्फ़्यूज़ियाई पोस्ट - हमका न देहौ, तऽ थरिया उल्टाइन देब -" ᵺ ᴥ א ѫ ϡ ʢ ¿ ZZ
इस पर कुश कवितागिरी करने लगे:
सभी जगत ये पूछे था, जब इतना सब कुछ हो रियो तो
तो शहर हमारा काहे भाईसाब आँख मूंद के सो रियो थो
तो शहर ये बोलियो नींद गजब की ऐसी आई रे
जिस रात गगन से खून की बारिश आई रे


जयराम विप्लव पूछते हैं-ब्लोगवाणी के बंद पर इतना मातम क्यों

और देखिये ताऊ कित्ते वैसे हैं जैसे ही इधर ब्लागवाणी बैठा वो तेल शक्कर बेंचने निकल लिये। ज्ञानजी भी ट्रेन परिचालन कथा सुनाने लगे। ब्लागवाणी के गम को भुलाने के लिये सुनो और कथा के अंत में वे छुआ के निकल लिये-
आलोचना इतना टॉक्सिक होती है - यह अहसास हुआ आज जानकर कि ब्लॉगवाणी ने शटर डाउन कर लिया। अत्यन्त दुखद। और हिन्दी ब्लॉगरी अभी इतनी पुष्ट नहीं है कि एक कुशल एग्रेगेटर के अभाव को झेल सके। मुझे आशा है कि ब्लॉगवाणी से जुड़े लोग पुनर्विचार करेंगे।


और लोगों की प्रार्थनाओं, पुनर्विचार की अर्जियों तथा व्यक्तिगत अनुरोधों का सम्मान करते हुये ब्लागवाणी से जुड़े लोगों ने अपनी सेवायें पुन: बहाल कर दीं यह बताते हुये:
ब्लागवाणी को बन्द करने की सोचना भी हमारी गलती थी. आपकी प्रतिक्रिया देख कर लगता है कि यह फिनोमिना हमारी सोच से भी बड़ी हो गई थी. पिछले 24 घंटो में हमें अनगिनत SMS, ई-मेल और फोन आये यह देख कर लगता है कि ब्लागवाणी शुरु करने का फैसला तो हमारे हाथ में था, लेकिन बन्द करने का फैसला अकेले हमारे हाथ में नहीं है. यह फैसला दबाव में ही लिया गया था. लेकिन यह दबाव आर्थिक या काम के बोझ का नहीं था, हम तो हतप्रभ रह गये थे कि ब्लागवाणी की व्यवस्था बनाये रखने के लिये गये उपायों पर भी कोई पक्षधरता के आरोप लगाये जा रहे थे. यही शायद असहनीय बन गया.

आपकी प्रतिक्रिया देखकर लगता है कि ब्लागवाणी को बन्द करना संभव नहीं है.


और इस तरह हिंदी ब्लाग जगत में ब्लाग के टंकी पर चढ़ने-उतरने की की घटना का अनुसरण करते हुये लोकप्रिय संकलक ब्लागवाणी जनता की बेहद मांग पर वापस लौट आया।

इस बीच नीरज गोस्वामी जी ने बचपन की कुछ शैतानियां कर डाली!:
जिंदगी की राह में हो जायेंगी आसानियां
मुस्‍कुराएं याद कर बचपन की वो शैतानियां

होशियारी भी जरूरी मानते हैं हम मगर
लुत्फ़ आता ज़िन्दगी में जब करें नादानियाँ

देख हालत देश की रोकर शहीदों ने कहा
क्‍या यही दिन देखने को हमने दीं कुर्बानियां

तेरी यादें ति‍तलियां बन कर हैं हरदम नाचतीं
चैन लेने ही नहीं देतीं कभी मरजानियां


और अंत में


ब्लागवाणी के वापस आने की बात सुखद रही। वैसे जिस पसंद /नापसंद के चलते इसके बंद करने की बात हुई थी। मैंने आज तक किसी की पोस्ट पसंद नहीं की ब्लागवाणी पर कोई चटका नहीं लगाया। न अपनी पोस्ट पर न किसी दूसरे की पोस्ट पर। इत्ती सी बात पर एक संकलक के बंद होने की बात हो यह सोचकर बड़ा ताज्जुब होता है।

फ़िलहाल इत्ता ही। बकिया फ़िर कभी।

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सोमवार, सितंबर 28, 2009

दशहरे के मौके पर ब्लागवाणी बंद

 

कल रविरतलामीजी ने नारकीय चर्चा करके कलम तोड़ दी। इसके बाद पता चला कि राजस्थान के एक अधिकारी की तबादला तनाव के मृत्यु हो गयी। उधर सिद्धार्थ इलाहाबाद में ब्लागर सम्मेलन/मिलन की तारीख् तय करके निकल लिये देवी दर्शन को। क्या पता देवीजी का ब्लाग बनवाने गये हों।बहरहाल अब जो होगा वो लौट के बतायेंगे हमें तो लगता है चर्चा करके डाल ही दी जाये। वैसे भी तीन दिन से मामला टलता गया।

आज की चर्चा की शुरुआत रवीश कुमार के लेख से अपने लेख
सुपर पावर, आई कार्ड और नेटवर्किंग में रवीश ने दुनिया भर में विकास और सुपर पावर के लिये मची कटाजुज्झ का जायजा लिया और यह् एहतियातन बनाने की कोशिश की है कि फ़ेसबुक और् नेटवर्किंग साइट्स पर जो हम दनादन दोस्त बनाये जा रहे हैं उनके लिये हम धरे भी जा सकते हैं। लेख के कुछ चुनिंदा अंश पेशे खिदमत हैं:

ये ख़्वाब अमेरिका से चुरा कर हम ओरिजिनल बनाकर बेच रहे हैं। करो,मरो और खटो। खटते रहो तब तक जब तक मुल्क भारत सुपर पावर न बन जाए।

मुल्कों की होड़ मची है। मुल्क के भीतर होड़ मची है। पूरी मानव सभ्यता एक भयंकर किस्म के कंपटीशन में आ गई है।

अपने मन की बात वे आखिर में कहते हैं:ये तो नहीं कहूंगा कि कुंठित मानसिकता है। मगर अजीब लगता है। वर्ल्ड क्लास और सुपर पावर का बोध। कितने सालों से हम बनने की कोशिश में लगे हैं। हद हो गई। लात मार देना चाहिए दोनो प्रोजेक्ट को। अपना कुछ करना चाहिए। लिख देना चाहिए कि भारत जो सुपर पावर नहीं है। अब जिसको आना है आए जिसको जाना है जाए।

सुपर पावर बनने की दौड़ का जिक्र देखकर मुझे अपनी ये लाइने याद आ रही हैं:

ये दुनिया बड़ी तेज चलती है ,
बस जीने के खातिर मरती है।

पता नहीं कहां पहुंचेगी ,
वहां पहुंचकर क्या कर लेगी ।

पिछले दिनों किसी एक बयान आडवाणी जी के बारे छपा। उस बयान को लपेटते हुये लोगों ने खूब पोस्टें ठेलीं। एक रविरतलामी

आदमी के सड़ा अचार बनने की तथा कथा. में कहते पाये गये:

आदमी अगर बड़ा नेता है तो वो सड़ा अचार तब बन जाता है जब उसका करिश्मा खतम हो जाता है.

लेकिन शेफ़ाली पाण्डेय ने इस बहाने जनता को अचार बनाने की तरकीब सिखाने के मौके के रूप में इस्तेमाल किया और

अचार - ए - आडवानी के बहाने अचार बनाने का तरीका.. सिखाया।

उन्होंने बीच-बीच में जरूरी हिदायतें भी दीं। जैसे कि:जिस मर्तबान में आचार  डालते हैं उसे कई साल तक धूप में सुखाते हैं ताकि उसमे किसी किस्म की नरमी सॉरी नमी बाकी ना रहे

अचार बनाने में कभी भी विदेशी मसलों सॉरी मसालों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए

जो टुकड़े अचार का  रंग खराब हो जाने का कारण पाकिस्तानी हल्दी को शामिल ना किया जाना मानते हों , और अचार खराब होने के १०१ कारणों  पर किताब भी लिख मारते हों , उनको कई दिनों तक लाल मिर्च में डुबो देना चाहिए।

संजय बेंगाणी अपनी 1335 वीं पोस्ट में अपने

व्याकरण अभ्यास का मलाल कर रहे हैं। वे लिखते हैं:जब कभी अपनी चार साल पहले लिखी चिट्ठा प्रविष्टि को पढ़ता हूँ तो लगता है कितना गलत-सलत लिखता था. मेरी हिन्दी जैसी है उसका मुझे खेद भी है और कभी कभी शर्म भी आती है. काश! विद्यार्थी-काल में भाषा के प्रति थोड़ा सजग रहा होता.

व्याकरण तो ठीक है सुधर जायेगा काफ़ी कुछ सुधर भी गया है लेकिन एक और मलाल की जमीन संजय डाल रहे हैं! काफ़ी दिन तक संजय/पंकज नियमित हिन्दी/गुजराती चर्चों की चर्चा करते रहे हैं। व्याकरण और वर्तनी की छोटी-मोटी छौंक के साथ् की उन रोचक चर्चाओं की याद् करते जब मन्/मौका मिले तब चर्चा करके आगे के संभावित मलाल् से बचने का इंतजाम रखना चाहिये।

इसी बात पर आप् अशुद्ध हिंदी के उदाहरण – 3 देख लीजिये! साथ ही देखिये ब्लॉग को सजाने और सवारने के कुछ आसन नुख्से-भाग पहला

मनीषा पाण्डेय ने एक अर्से बाद फ़िर् से लिखना शुरू किया। वे बताती हैं:लिव टू टेल द टेल, सीन्‍स फ्रॉम ए मैरिज, सोशलिज्‍म इस ग्रेट और कसप के डीडी और बेबी के साथ। सबके दरवाजे खटखटाए, लेकिन किसी के ठिकाने पर मन रमा नहीं। इधर-उधर टहलती रही। सिर्फ दो टोमैटो सैंडविच और तीन कप ब्‍लैक कॉफी पर दिन बसर किया। कल मैंने सोचा था कि आज मुझे कुछ करना है लेकिन आज समझ नहीं आया कि आज क्‍या करना है। कुछ हुआ भी नहीं।

तीन बजे के आसपास मैंने कुछ देर सोने की सोची और वहीं किताबों के ढेर के बीच जमीन पर ही दो तकिया डाल दोहर ओढ़कर ठंडी फर्श पर पसर गई। मोबाइल में चार बजे का अलार्म था। दिन खराब नहीं होने दूंगी। उठकर उस संसार में वापस लौटना है, जहां मुझे लगता है कि मेरा सबसे ज्‍यादा मन लगता है।

कविताओं  में शरद काकोश ने आज् मिता दास की
कविता रसोई में स्त्री पेश की:

कितनी ही रचनायें

नमक दानी के सिरहाने

दम तोड़ देती हैं

रसोई में


खाना बनाती स्त्री

जब शब्द गढ़ती है

हाथ हल्दी से पीले हो जाते हैं

आटा गून्धते हुए

मसालों की गन्ध से घुंघुवाती मिलती है

शरद ने अपनी बात के शुरू में लिखा-"कुछ सम्मानित ब्लोगर्स बहुत अकड़ कर कहते रहे हैं..हम तो कविताओं के ब्लॉग की ओर झांकते भी नहीं.." इस पर निशांत का कहना है:कृपया बताएं किसने ऐसा कहा है. उसके ब्लौग पर विरोध दर्ज किया जायेगा.निशांत ने लिखा:मुझे हिमांशु पाण्डेय की कवितायेँ अत्यंत प्रिय हैं. उन जैसी कवितायेँ कोई और ब्लौगर लिखता है क्या? इसी  बहाने आपको हिमांशु की  कविता पढ़वाते हैं:

मैंने जो क्षण जी लिया है
उसे पी लिया है ,
वही क्षण बार-बार पुकारते हैं मुझे
और एक असह्य प्रवृत्ति
जुड़ाव की
महसूस करता हूँ उर-अन्तरविता

 

 

मुकेश कुमार तिवारी लिखते हैं:

तुम,
आँखों में झांकते हुये
पढ़ लेती हो विचारों को
इसके पहले कि वो बदल सकें शब्द में
शब्दों को जैसे पहचान लेती हो
तुम्हारे कानों तक पहुँचने के पहले
और अपनी पूरी ताकत झोंक देती हो
उस शब्द को बेअसर करने के लिये

 

ओम आर्य लिखते हैं

वक्त खानाबदोश हो गया है
रोज डेरा बदल लेता है
गाड़ देता है तम्बू , जहाँ भी कोई आहट ,
धुंधली सी भी आहट सुनाई दे जाती है
तेरी आवाज की


बस एक बार वो ध्वनियाँ मिल जाएँ
जिनमे तुम बुलाया करती थी मुझे
तो अपना वक्त उससे टांक दूं
और खत्म करून ये सफ़र.

एक लाईना

थूकने पर हजार रुपये का जुर्माना:प्रति दिन बिना थूके लाखों बचाइये।
अशुद्ध हिंदी के उदाहरण – 3: कुछ्  शुद्ध हिन्दी के भी  दिखाओ यार
अगर आपसे सभी खुश हैं,तो इसका मतलब आपने ज़िंदगी मे बहुत ज्यादा समझौते कियें हैं?:एक् बच्चे से सब खुश् रहते हैं
सड़क किनारे खड़े मनचले सेंक सकेंगे अपनी आँखें:आंखें सेकने के बाद बाकी की सिंकाई होगी।

ब्लागवाणी बन्द

आज सुबह-सुबह पता चला कि  ब्लागवाणी बंद हो गई!लोग्

स्वाभाविक रूप से दुखी हैं। कुछ प्रतिक्रियायें निम्न हैं:

बहुत दुख की बात है कि ब्लागवानी बंद हो गई है.. हम जैसे ब्लागरो लिखने और अन्य सभी ब्लागरो को पढने का मज़ा अब कैसे... इस पर विचार किजिये आप लोग कुछ सोचे...प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

हमारे अपनों के कर्म
हम ही तो भुगतेंगे।अविनाश वाचस्पति

ब्लागवाणी की यह घोषणा एक असहाय स्थिति की कथा कह रही है ।
मैं अन्यन्त्र कहीं लिख चुका हूँ कि, स्वाँतः सुखाय लिखने दम भरने वाले पसँद की परवाह ही क्यों करें ?
पसँद पर चटका लगवाने में ब्लागवाणी स्वयँ ही चटक गया, होम करते हाथ जलने वाली बात है, यह !
यह सारा टँटा दुःखद है, और एक अशुभ सँकेत दे रहा है, चिट्ठा चच्चा तो पहले ही चटक कर चुप मारे हुये हैं ।
लगता है कि, हम सब समय से पहले ही शहर की ओर भागने लग पड़े थे... एक आत्मघाती दौड़ !!

डा.अमर कुमार

hame mauka nahi chahiye tha . lekin aap jaiso ko bad tamijiya ham nahi jhelana chahate samajhe aap ? अरुण अरोरा

बेहद अफसोसजनक है ब्लॉगवाणी का बन्द होना ।
पर क्या परेशानी दूर न कर ली जाती (अगर थी), कोई स्पष्टीकरण न दे दिया जाता, दृढ़ता न दिखा दी जाती, तर्क न प्रस्तुत कर दिये जाते ....
वैसे हमें सफाई नहीं चाहिये थी..दस हजार से ऊपर के ब्लॉगर संतुष्ट थे न ! एक दो न भी हों तो क्या ? हिमांशु

बेहद अफसोसजनक, दुखद...चन्द विघ्नसंतोषियों का प्रयास सफल रहा. उन्हें बधाई और उनकी ओर से हमारी ब्लॉगवाणी से क्षमाप्रार्थना. समीरलाल

मेरी भी मनस्थति ऐसी ही है -मैथिली जी पुनर्विचार करें ! अब लोगों के कालेजों को भरपूर ठंडक मिल गयी है !

अरविंद मिश्रा

किसे तसल्ली मिल गई उड़न जी!?
क्यों जख्मों पर नमक छिड़कते हैं!

निशांत

पहचान बनाने निकले थे
खुद का सामान खो दिये
इतने बडे निर्णय पर पुनर्विचार जरूरी है.

M VERMA

और  अंत में

यह चर्चा दो दिन से टल रही है! आज जब सुबह देखा तो  ब्लागवाणी के मौन होने की खबर थी! खबर अप्रत्याशित थी। तमाम लोगों के लिये संकलक का मतलब ब्लागवाणी था। इसके अचानक बंद होने से तमाम लोगों को दुख हुआ। मुझे भी है। अभी सिरिल से बात हुई । उन्होंने कुछ दिन सुकून से गुजारने के बाद कोई नया काम करेंगे।

ब्लागवाणी तीसरा संकलक है तो मेरे देखते-देखते बंद हुआ। चिट्ठालोक,नारद के बाद अब ब्लागवाणी। यह संयोग रहा कि तीनों के बंद होने  कहानी जुदा-जुदा रही लेकिन फ़िर् भी जुड़ा रहा मामला बंदी का। चिट्ठालोक बन्द हुआ अपनी स्पीड की कमी और बढ़ते चिट्ठों को समायोजित न कर पाने की वजह से शायद। नारद बन्द हुआ इसको संचालित करने में लोगों के पास समय की कमीं और ब्लागवाणी बंद हुआ कतिपय तथाकथित विघ्नसंतोषियों की वजह से।

ब्लागवाणी के संचालक शायद अपने खिलाफ़ होती आलोचना से शायद ऊब गये थे और हारकर इसके बन्द होने की घोषणा कर दी। शायद चंद लोगों के द्वारा उनपर उठाये जा रहे सवाल उनके तमाम प्रशंसकों की तुलना में भारी साबित हुये।

जब ब्लागवाणी से जुड़ी साइट कैफ़े हिन्दी शुरू हुई थी तो उसका स्वागत बड़ा हंगामाखेज हुआ था। लोगों ने कैफ़े हिन्दी की खूब लातन-मलानत की थी कि वे दूसरों के ब्लाग से पोस्टें लेकर अपनी साइट पर लगा रहे हैं। इसके बाद ब्लागवाणी को लोगों का भरपूर प्यार मिला। लोगों के लिये ब्लागजगत मतलब ब्लागवाणी हो गया। इस बीचे ब्लागवाणी से जुड़े कुछ साथियों ने भावावेश में अपने ब्लाग बन्द किये। तनाव से निटपने का हुनर का अपना-अपना मेकेनिज्म होता है। कोई शान्त रहकर निपटता है कोई पलटकर जबाब देकर कोई अपना ब्लाग बन्द करके।  ब्लागरों के टंकी पर चढ़ने की प्रक्रिया को संकलक ने अपना लिया और ब्लागवाणी बंद हो गयी।

मैथिलीजी और सिरिल का निर्णय उनका अपना निर्णय है। उनके निर्णय पर सवाल उठाना उचित नहीं है लेकिन अच्छा लगेगा कि वे अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर सकेंगे। अगर किसी किसिम का सहयोग हम कर सकेंगे तो हमको खुशी होगी।

आज मैंने लाइव राइटर का प्रयोग करके चर्चा की। बतायें कैसी लगी लफ़ड़ेवाजी।

आप सभी को दशहरे की मंगलकामनायें।

 

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रविवार, सितंबर 27, 2009

एक नारकीय चर्चा

कुछ दिन पहले अचानक इस पोस्ट पर नजर गई -

देश नरक बन गया है

“…सुबह सुबह एक दोस्त जो की पूर्वी भारत के एक मशहूर राज्य में सिविल सर्विसेस ट्रेनिंग ले रहा है का फ़ोन आया. वो बता रहा था सभी probationers को अपनी सलेरी स्लिप लेने के लिए 500 रुपये घूस देने हैं! जब राज्य के सिविल सर्वेंट को घूस देना पड़े तो बताने की जरूरत नहीं है की क्या दुर्दशा चल रही होगी! उसने घूस नहीं दिया और उसका कागज़ रुका हुआ है! बाकि सब लोग कैसे ट्रेनिंग के बाद कमाने पे रणनीति भी तैयार कर रहे हैं!…”

अब जब देश नरक बन गया है तो फिर बचा क्या है चर्चा के लिए? इस नारकीय चर्चा से पहले और बाद में कोई चर्चा हो सकती है भला? तो, क्यों न हफ़्ते भर का मौन धारण करें देश की नरकगति के लिए?

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बुधवार, सितंबर 23, 2009

चर्चात्मक चिट्ठो की चिट्ठा चर्चा

chittha_charcha copy
लमस्कार
चिटठा चर्चा में आपका स्वागत है.. आज की चर्चा की शुरुआत करते है पंकज बेंगानी जी की पोस्ट से.. पंकज जी बताते है कि किस प्रकार से जीवन में छोटे छोटे बदलाव से हम एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते है..
photo हम भारतीयों की यह एक बहुत बड़ी कमी है. हम घर भले ही स्वच्छ रख लें लेकिन अपना शहर हद दर्जे का गंदा रखेंगे और फिर दोष सरकार को देंगे. क्या व्यवहार बदलना इतना मुश्किल है! लगता तो नहीं. कोशिश करके देखें तो यह काफी सरल है. आखिर पश्चिमी दुनिया के लोग आसमान से तो टपके नहीं है. जब वे ऐसी बातों का ध्यान रख सकते हैं तो हम क्यों नहीं.
इसके लिए हमेंचलता हैवाला व्यवहार समाप्त करना होगा. हर काम सरकार नहीं कर सकती, थोड़ा तो खुद को सुधरना होगा.
सच का सामना देखकर एक महिला ने आत्मदाह किया.. इस पर प्रतिक्रिया देता हुआ अलोक नंदन जी का ये लेख वाकई पढने लायक है.. आलोक कहते है

बढ़िया लेख
पल्लवी की मौत की खबर फेसबुक पर दिखी। पुरी खबर को पढ़ा। खबर में लिखा था कि आगरा की रहने वाली पल्लवी ने सच का सामना में रुपा गांगुली वाला एपिसोड देखने के बाद आत्महत्या कर लिया। पूरे खबर को पढ़ कर यह स्पष्ट नहीं हो रहा था कि पल्लवी ने सच का सामना देखने बाद ही आतमहत्या किया है या नहीं। खबरों के मनोवैज्ञानिक प्रभाव के संदर्भ में पल्लवी का मामला मुझे एक गंभीर मामला लग रहा था। इसलिये इस खबर को और जानने के लिए मैंने नेट पर इधर-उधर सर्च करना शुरु कर दिया। नेट पर पल्लवी से संबंधित जितने भी खबर थे, सब की हेडिंग में इस बात का जिक्र था कि पल्लवी ने सच का सामना देखने के बाद आत्महत्या के लिए कदम उठाया। किसी कार्यक्रम को देखकर जब लोग मनोवैज्ञानिक तौर पर आत्महत्या करने के लिए प्रेरित होते हैं तो जनहित में उस कार्यक्रम पर सवाल उठना जरूरी है।

अवचेतन मस्तिष्क के बारे में यदि आप पढना चाहे तो आप ब्लॉग उठो जागो पर ताज़ा पोस्ट पढ़ सकते है

मैंने निश्चय किया कि, “ मैं, एक महीने में निर्णय कर लूँगा कि मुझे विवाह करना है या नहीं।कई दिनों तक सोने से पहले बिस्तर में पड़े़-पडे़ मैं स्वयं से पूछता, “क्या मुझे इस लड़की से विवाह करना चाहिये ?” अचानक 31 मार्च, 1978 की रात्रि को, जब मैं नींद में था मुझे एक तेज प्रकाश का आभास मेरे कमरे में हुआ। एवं साथ ही मैंने एक आवाज सुनी, इस लड़की से शादी कर लो, भविष्य में इससे तुम्हें किसी प्रकार की समस्या नहीं आयेगी।
आज मैं समझ पाया हूँ कि यह निर्णय मेरे अवचेतन मन से आया था। अब यह स्पष्ट हो गया है कि उस लड़की से विवाह का प्रस्ताव मेरे अवचेतन की शक्ति से प्रभावित था। और वह निर्णय मेरे जीवन में सफल एवं सकारात्मक रूप में उचित सिद्ध हुआ है।
अभिषेक प्यार और वास्तविकता को ग्राफ के द्वारा समझने की कोशिश कर रहे है.. पहले उन्होंने एक समस्या और फिर उसका समाधान भी दिया है.. ज़रूर पढिये
Untitled_thumb[2] शादी के पहले और बाद में कितना कुछ बदल गया दोनों के लिए. परियों की दुनिया से जमीन पर वापस आना शायद इतना आसान नहीं होता. इस ग्राफ में दोनों अक्सिस पर कई गैप हैं और कई परिवर्तन हैं वो क्यों और कैसे हैं ये मैं ज्यादा समझ नहीं पाया, वैसे भी ये चीजें जीतनी उलझनदार होती हैं ठीक-ठीक समझ पाना आसान नहीं, जब खुद उसे स्थिरता का कारण नहीं पता तो... हमें समझ में जाए ये कैसे हो सकता है. बस ये परियों से जमीनी वास्तविकता वाली बात मुझे थोडी समझ में आई. बाकी जो समझ में आया वो ये कि यह एक काम्प्लेक्स नॉन-लीनियर ऑपटीमाइजेशन प्रॉब्लम की तरह है. जिसमें कई सारे कंस्ट्रेंट्स हैं. और फिर इन्हें हल भी उसी तरीके से करना होता है..

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durgapujan

अपनी विशिष्ट शैली से ब्लॉग जगत में को गुदगुदाने वाले नीरज बधवार जी फिर ले आये है एक व्यंग्य, इस बार उनका कहना है कि यदि देश को बचाना है तो उसकी आउटसोर्सिंग कर देनी चाहिए.. आप खुद ही पढिये उनकी ये पोस्ट
18042007606 हम री-लॉन्चिंग का काम आउटसोर्स कर सकते हैं। हम जिस क्षेत्र में जिस भी देश पर निर्भर हैं, उसमें सुधार का काम पूरी तरह से उसी देश को सौंप सकते हैं। भारतीयों को नौकरी कैसे मिले, ये काम हम अमेरिका और ब्रिटेन को आउटसोर्स कर सकते हैं। सुरक्षा को लेकर हमें चीन से सबसे ज़्यादा ख़तरा है लिहाज़ा सुरक्षा का ठेका हम चीन को दे सकते हैं। शिक्षा और खेलों की दशा-दिशा सुधारने के लिए ऑस्ट्रेलिया से कॉन्ट्रेक्ट कर सकते हैं। मनोरंजन उद्योग के लिए अमेरिका में हॉलीवुड से संधि की जा सकती है। कुछ मामलों में अलग-अलग देशों के लोग मिलकर कमेटी भी बना सकते हैं।
तभी मित्र बोला, मगर तुम भूल रहे हो भारत एक लोकतांत्रिक देश है...ऐसे में सरकार का क्या होगा? मैंने कहा...अगर हमें वाकई सुधरना है तो हमें अपना लोकतंत्र भी आउटसोर्स कर देना चाहिए। वैसे भी हर ओर किफायत की बात हो रही है। विदेशी हमें उतने महंगे तो नहीं पड़ेंगे जितने ये देसी पड़ रहे हैं!
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अमिताभ जी अपने ब्लॉग पर मिलवा रहे है आपको प्रसिद्द फिल्मकार विशाल भारद्वाज और उनकी पत्नी रेखा भारद्वाज से.. हम तो इन दोनों के ही बड़े फैन है आप भी मिल आइये .. जाइये जाइए
बच्चों के लोकप्रिय कार्टून सीरियलमोगलीके गीत-‘चड्ढी पहनके फूल खिला है...’ को संगीत से संवारने वाले म्यूजिक कम्पोजर विशाल भारद्वाज यह बताते हुए खुशी महसूस करते हैं कि उनकी सुपरहिट फिल्मकमीनेका कैरेक्टर भोपाल के जूनियर आर्टिस्ट सप्लायर शरीफ-उर-रहमान उर्फ गुड्डू चार्ली से प्रेरित है। फिल्म पंडितों द्वारा सराही गर्इंमकबूलऔरओमकाराजैसीनाटकप्रधान फिल्मबनाने वाले विशाल मीडिया से फ्रैंडली बतियाए...


रेखा भारद्वाज (पार्श्व गायिका)
सूफी गायन में एक अलग मुकाम रखने वालीं पार्श्व गायिका रेखा भारद्वाज स्वीकारती हैं कि अगर पति म्यूजिक कम्पोज कर रहे हों, तो रिकार्डिंग के दौरान थोड़ा डर तो बना ही रहता है। हालांकि वे आगे यह भी कहती हैं कि; विशालजी को मेरी खूबियां और कमजोरियां दोनों पता हैं, इसलिए वे मुझसे अच्छा वर्क करा लेते हैं।
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कविताओं का कोना

औरतों के लिए आगे बढ़ना मुश्किल नही होता
बड़ी आसानी से
वे बढ़ जाती हैं आगे
अगले को
अपनी मुस्कान का "गिफ़्ट-पैक"
पकड़ा कर ...
- मीनू खरे
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बरसों पहले एक सोच को लिखा था
जो आज तक मेरे ख्यालों में पडी है, सिकुडी -मुडी पडी,मुझे देखती रहती है
कभी -कभी आखें तरेर के कहती
मुझे किसी हाट में क्यूँ नही ले जाते?
मैं भी बिकना चाहती हूँ
किसी के बेड -रूम में जीना चाहती हूँ,
आसमान बदरंग हुआ था
दोनों तरफ़ 'अपार्टमेंट्स' थे
सामने ख़ाली सड़क
सूनापन था भीतर-बाहर
चौबीस घंटे चलती-फिरती
हँसती-गाती तस्वीरों के बावजूद
मन था उदास
ढल चुकी थी उम्र उसकी
और जा चुके थे बच्चे परदेस
- दिनेश दधीचि
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अचानक
उन टूटी खिड़कियों
का उतरा रंग
चमकने लगा
शायद
जिंदगी ने
अंगडा़ई ली


डा. महेश परिमल जी बता रहे है कि किस प्रकार धव्नि प्रदुषण हमारे जीवन में जहर घोल रहा है
mahesh parimal (WinCE)[1] बच्चों की परीक्षाएँ हैं, घर में बीमार माँ हैं, दादा भी इस शोरगुल से परेशान हैं। पिताजी को शोर से एलर्जी है। थोड़ा सा भी शोर उन्हें विचलित कर देता है। अभी कुछ दिनों पहले ही वे एक थेरेपी लेने जा रहे थे। थेरेपी से उन्हें लाभ भी हो रहा था। पर मुश्किल भी काफी थी। थेरेपी से लाभांवित लोग रोज वहाँ माइक पर अपने अनुभव सुनाते थे, जो पिताजी को पसंद नहीं था। एक सप्ताह में उन्हें अपनी पीड़ा से आराम तो लग रहा था, पर शोर के कारण सरदर्द बढ़ गया। उन्होंने वहाँ जाना ही छोड़ दिया। पिताजी कह रहे थे कि यदि कुछ दिन और गया होता, तो निश्चित रूप से मैं पागल हो गया होता।
रचना जी टेलीविजन सीरियल के माध्यम से बता रही है किस प्रकार कुरीतिया समाज को और कमजोर कर रही है..
अंतरा की ये बुआ जिनके माता पिता नहीं हैं अपने भाई और भाभी के साथ रहती हैं और वही इनका विवाह भी कर रहे हैं वो अपने भाई की आर्थिक स्थति से पूर्णता अवगत हैं पर शादी मे हो रहे किसी भी खर्चे का विरोध करना तो दूर अपने भाई से जितना ज्यादा खर्चा करा सके इसके लिये आतुर दिखती हैं उनको भाई का बैंक से क़र्ज़ लेकर उनकी शादी मे खर्च करहा इस बात को जानते हुए भी वो ज्यादा से ज्यादा समान खरीदने के लिये और महंगे से मंहगे शादी के इंतजाम के लिये तत्पर हैं उनके लिये अपनी शादी से ज्यादा कोई बात जरुरी नहीं हैं


मैंने झुककर देखा, क्या वह सो चुकी है? ‘हांशायदमैं उठने के लिए हिली तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया- ‘कहां जा रही हो?’ उनकी आंखों में ये प्रश्न चमक रहा था और साथ ही चेहरे पर खुदा हुआ आदेश भी- ‘यहीं रहो, मुझे छोड़कर मत जाओऔर मैं उनके पास बैठकर फिर से उनकी छाती को सहलाने लगी।

- विमला भंडारी जी
कहानियो की बाते
abstract-painting

गांव में बिजली की तरह खबर फैलती है कि शनिचरी धरने पर बैठ गई है, परधानजी के दुआरे। लीडरजी कहते हैं, 'जब तक परधानजी उसकी बेटी वापस नहीं करते, शनिचरी अनशन करेगी, आमरण अनशन।' पिछले एक हफ्ते से लीडरजी शनिचरी को अनशन के लिए पटा रहे थे और अब गांव के हर कान में मंतर फूंक रहे हैं,

- शिवमूर्ति जी
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Madhushala-Book



अब वेब डेवलपमेंट पर हिंदी ब्लाग

आज ही से एक नया ब्लाग वेब डेवलपमेंट पर शुरू कर रहा हूं. अभी अभी एक पोस्ट प्रकाशित की है जोकि वेब डेवलपमेंट की बुनियादीथ्योरी टाइपजानकारी है. इस नये ब्लाग का पता है: http://webtutsbyankurgupta.blogspot.com/
image_thumb[8]
मुझे एक दिक्कत हो रही है कि मैं कहां से शुरू करूं? सामान्य html से या सीधे php के टुटोरियल्स से. आप क्या क्या जानना चाहते हैं टिप्पणियों के जरिये बताइये. अगर कोई विषयों की रूपरेखा बना सकें तो और भी अच्छा रहेगा.



दसविदानिया पोस्ट

तो दोस्तों ये थी आज की चर्चा.. अब हम विदा लेते है लेकिन जाने से पहले आपको पढ़वा देते है संगीता पुरी जी की ये पोस्ट.. उम्मीद है इस बात का मर्म भी समझा जाएगा..

"एक बात समझ में आ गयी , जो आपको बतलाना चाहूंगी .. अज्ञानता और तर्क दोनो मिलकर बहुत खतरनाक स्थिति पैदा करते हैं , यदि कहीं पर ऐसा दिखे तो सामने वाले को समझाना छोड दूर से ही प्रणाम कर लें।"



डाक्टर अनुराग आर्य से मिली अपडेट


सुबह साढे दस बजे कंचन का एस एम एस आया तो उस वक़्त हॉस्पिटल में था.... श्रीनगर में बांदीपुर में आतंकवादियों से मुठभेड़ करते हुए हमारे मेजर गौतम को भी गोली लगी है ....शायद कंधे पर .. जो निकाल दी गयी है....वे फ़िलहाल आई सी यू में है ...शायद तीन दिन या ज्यादा रहे..


इस मुठभेड़ में उनका एक साथी मेजर और घायल हुआ है....और एक मेजर और जवान शहीद हुए है..ईश्वर से उनकी सकुशलता की प्राथना करते है ओर देश के लिए हुए शहीदों को नमन ...सिर्फ इतना ही कह सकते है कि ईश्वर उनके परिवारों को हौसला दे .मुठभेड़ अभी जारी है ...

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