मंगलवार, जून 30, 2009

शुक्ल जी किलियर कर दें

नमस्कार ! चिट्ठा-चर्चा में आप सभी का हार्दिक स्वागत है !

हिमांशु
यदि आपने अभी तक नहीं जाना है तो अब जानना ही होगा कि आज हिमांशु जी का हैप्पी बड्डे है . बधाई देना न भूलें . इसमें कोई समस्या न होगी . बल्कि जिन ब्लॉगर बन्धुओं की ट्यूब खाली हो गई हो उनके लिए एक पोस्ट भी बनती है .

वैसे जिसकी ट्यूब खाली हो जाय वह बिलागर ही क्या ? लोगों की डायरियाँ चोरी कर करके छाप दीजिए, किसी बेचारी का दुपट्टा उड़ जाय तो चटखारे ले लेकर सबको बता दीजिए और कुछ न मिले तो बेचारे मासूम छात्रों की उत्तर पुस्तिकाओं को सरे आम छाप दीजिए यह बताते हुए कि यह रिजेक्ट हो गई थी ! जी हाँ ऐसा किया गया है . हम आपसे झूठ क्यों बोलेंगे ? हम पर भरोसा नहीं आपको ?


आपको हम पर भरोसा हो या न हो , हमें अपने गुरु जी पर पूरा भरोसा है कि वे जो कहेंगे वह ठीक ही होगा ! कहते हैं कि " यह बजट का मौसम है . " और यहाँ सब लोग अब तक यही सोचकर परेशान हैं कि यह बारिश का मौसम है और बारिश का इन्तजार किये जारहे हैं . न जाने कितने कवि कविताएं लिख चुके मानसून पर . उनमें हम भी शामिल हैं . आशा है बजट के मौसम के बाद बारिश का मौसम होगा .

लो बारिश तो आ भी गई . प्रिया ने अपने बिलाग पर पहली बारिश के बारे में लिखा है : "आज पहली बारिश ने मदहोश कर दिया ."


मदहोश प्रिया को होने दीजिए आप होश में रहिये और रवि रतलामी की यह कविता पढिये जो प्रिया से क्षमा याचना सहित लिखी गई है . लिखते हैं :

आज पहली बारिश ने सत्यानाश कर दिया,

पॉलीथीन से तने झोंपड़े को सराबोर कर दिया,

एक झोंका हौले से आया और तिरपाल ले गया,

फिजा ने कान से टकरा कर जैसे, एक गाली दे दिया।



इस कहानी से यह सीख मिलती है कि चीख पुकार तो मचनी है , चाहे बारिश के अभाव में मचे या बहाव में मचे ! लेकिन सब लोग ऐसे नहीं होते जो चीख पुकार मचायें . कुछ असली हीरो होते हैं जो गुमनाम रहकर भी शान्ति से अपना काम करते रहते हैं .


ऐसे दो हीरों के बारे में सुरेश चिपलूणकर अपने बिलाग पर बता रहे हैं . एक हैं माताप्रसाद जिन्होंने बुन्देलखण्ड के सूखे इलाके में जंगल खड़ा करके प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया है , दूसरे हैं शारदानन्द दास जो एक स्कूल टीचर हैं जिन्होंने जीवन शिक्षा के लिए समर्पित कर दिया .


उदाहरण तो उस शेर ने भी प्रस्तुत किया जिसने गधे को मन्त्री बना दिया . और कुछ परिस्थितियों में शायद यह प्रेरक भी हो . जी हाँ हम बात कर रहे हैं शास्त्री जी के बिलाग सारथी पर छपने वाली कहानी की जिसे तूफ़ान से पहले की शान्तिस्वरूप प्रस्तुत किया गया है . शास्त्री जी आगे क्या तूफ़ान लाते हैं यह जानने के लिए दिल थाम लीजिए !


अब दिल थाम ही लिया है तो अलबेला खत्री की यह पोस्ट भी पढ़ लें जिसकी काफ़ी तारीफ़ें की जारही हैं . कुछ लोगों को शायद यह ठीक न लगा हो पर उन्हें समझना चाहिए कि यह सब तो धरती पर जब से जीवन है तब से होता रहा है और होता रहेगा यानी बारिश न होने पर चीख पुकार !


अभिषेक ओझा को शिव जी से जिज्ञासु होने का वरदान मिला था तो हम उनकी इस जिज्ञासा का समाधान पहले से ही किए देते हैं कि धरती पर जीवन का आरम्भ कहाँ हुआ . बता रहे हैं हमारे संवाददाता अशोक पाण्डेय :
शोधकर्ताओं के एक नए अध्‍ययन से खुलासा हुआ है कि विंध्‍य घाटी में मिले जीवाश्‍म दुनिया में प्राचीनतम हैं। ये धरती के अन्‍य किसी हिस्‍से में पाए गए जीवाश्‍मों से 40 से 60 करोड़ साल पुराने हैं। यदि इन निष्‍पत्तियों पर भरोसा करें तो जाहिर है कि धरती पर
जीवन का आरंभ भारत के विंध्‍य क्षेत्र में हुआ।
अब सवाल उठेगा कि बिलागर को जीवन से क्या कुछ बिलागिंग का आगा पीछा बताओ तो बात बने तो ऐ लो जी वकील साहब से ब्लॉगिंग का आगा जानिए पीछा तो आपणै पता ही होगा . कहते हैं :
जब मनुष्य एक विश्व समुदाय के निर्माण की ओर बढ़ रहा है तो उसे और अधिक सामाजिक होना पड़ेगा। उसे उन मूल्यों की परवाह करनी पड़ेगी जो इस विश्व समुदाय के
बनने और उस के स्थाई रूप से बने रहने के लिए आवश्यक हैं। वाक् और अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता इन मूल्यों के परे नहीं हो सकती। हमें इन मूल्यों की परवाह करनी
होगी। संविधान ने इन मूल्यों की रक्षा के लिए अनुच्छेद 19 (2) में वाक् और
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निर्बंधन लगाने की व्यवस्था की है। ब्लागिंग
सहित संपूर्ण अंतर्जाल पर वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी इन निर्बंधनों के
अधीन हैं।
ठीक ही तो कहते हैं पर कोई मानने को तैयार ही नहीं . लोगों को चोरी चकारी से फ़ुर्सत हो तब न . दावा किया गया है कि गगन शर्मा अलग सा वाले की कहानी अमिताभ बच्चन के बिलाग पर अंग्रेजी में रूपान्तरित करके डाली गई है ! दावा करने वाले हैं ab inconvenienti जी . कहते हैं :
बधाई दें आज एक हिंदी ब्लॉगर की कृति महानायक अमिताभ ने उधार ले कर पोस्ट की है. अमिताभ का कहना है की यह कहानी उन्हें ईमेल पर मिली थी. ख़ुशी की बात है की एक
हिंदी ब्लॉगर की रचना पब्लिक को इतनी पसंद आई की अंग्रेजी में रूपांतरित कर इसे
सारे विश्व में लोग एक दुसरे को ईमेल भी करने लगे, पर मूळ लेखक को श्रेय दिए बिना.
हिंदी ब्लागरों से यह कैसी दुश्मनी?
हालाँकि कविता जी का सोचना भी अपनी जगह ठीक लगता है ! अब देखिए कि कहानी है क्या हिन्दी में यहाँ पढ़ें और अंग्रेजी में यहाँ पढ़ें . इसमें तो कोई शक नहीं कि ऐसी प्रेरक बातों को जितने लोग पढ़ें रूपान्तरित करें उतना ही अच्छा है !


ये छोटी मोटी बातें शान्ति का प्रतीक हैं, जब कोई धाँसू विषय न हो तो बेचारे बेनामी जी को ही सताने लगते हैं लोग . जिस बेचारे के पास अपना नाम तक नहीं उसे सताने में कितना मज़ा आरहा है इन्हें . ये तो कोई अच्छी बात नहीं है न जी ! पिछले दिनों बेनामी जी पर ढेरों लेख लिखे गए . खूब लताड़ पिलाई गई . कुछ लोग शान्ति शान्ति भी चिल्लाते रहे पर शान्ति चुप ही रही ! उस ढेर में से एक मुट्ठी हम ले आये हैं आपको दिखाने के लिए .

बी. एस. पाबला कागज पर छपने वाले बिलागों की सूचना देते रहते हैं . कल उन्होंने बताया कि नवभारत टाइम्स के 'हिन्दी का कच्चा चिट्ठा' लेख में कई ब्लॉगर्स का उल्लेख हुआ है ! यह लेख किन्हीं कंचन श्रीवास्तव ने लिखा है . लिखती हैं :



अमेरिका के एक प्रमुख हिन्ही ब्लॉगर फ़ुरसतिया जब कभी अपने शहर कानपुर आते हैं, अपने ब्लॉगर दोस्तों के साथ महफ़िल जमा लेते हैं .


शुक्र है यह नहीं बताया कि महफ़िल में करते क्या हैं ! इस लेख की विश्वसनीयता पर आप चाहें तो सवाल उठा सकते हैं हम कुछ नहीं कहेंगे ! फ़ुरसतिया का कोनू भरोसा है का ?



ज्ञान जी विकीपेडिया (Wikipedia) की विश्वसनीयता पर तो सवाल उठा चुके हैं देखते हैं इस मामले पर क्या कहते हैं .

कार्टून :
अब चर्चा बहुत हो ली . एक कार्टून देखिए . पेश किया है सुरेश शर्मा ने . कहते हैं : महिलाओं से निवेदन, इस ब्लॉग को न देखें.. . चूँकि उनके ब्लॉग पर महिलाओं के जाने पर पाबन्दी है इस लिए नैतिकता का तकाजा यही है कि महिलाएँ यहाँ भी इसे न देखें . पर हम तो जी महिलाओं की पुरुषों से बरावरी में विश्वास करते हैं .

आगे इस ब्लॉग पर कहा गया है कि :
आज के दौर में मजाल है..फिल्में बगैर चुंबन दृश्य के बने, हर निर्माता-निर्देशक स्पेशल रूप से ऐसे दृश्य फिल्मों में रखवाते हैं, आज का दर्शक भी रस लेकर ऐसे दृश्यों का मजा लेता
है, पर उन हीरोइनों पर क्या गुजरती है जो ऐसे दृश्य करने को मजबूर हैं..कभी सोचा है
आपने? आइये देखते हैं कार्टून के माध्यम से हीरोइनों की वेदना .... आप अपने कमेंट्स
जरूर भेजना, .

चलते-चलते :
अमरीका में बस गए, फ़ुरसतिया चुपचाप .
पढी़ खबर अखबार में, गया भरोसा काँप ..
गया भरोसा काँप, समझते थे कनपुरिया .
कितनी छोटी हाय, हो गयी है यह दुनिया ..
विवेक सिंह यों कहें, शुक्ल जी किलियर कर दें .
महफ़िल करके बन्द ध्यान अब ब्लॉगिंग पर दें ..

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सोमवार, जून 29, 2009

हे सूरज महाराज गर्मी को बरसाओ ना यूं


मौसम का जूता
बड़े-बड़े लोग ब्लागरजन से बहुत मेहनत करवा लेते हैं। अब बताइये पुष्पा भारतीजी ब्लागिंग को साहित्य मानती ही नहीं हैं। न माने साहित्य हम भी नहीं मानते। लेकिन ई का कि वे रि-ठेल (रीठेल नहीं है सही ज्ञानजी) पर एतराज करने लगीं। सतीश पंचम जी बताइन कि पुष्पाजी कहती हैं:
ब्लॉग को मैं साहित्य नहीं मानती। वहां मैंने पढा है कि लोग लिखते हैं 'बडी टेंशनात्मक स्थिति है'। ये 'टेंशनात्मक' क्या है ? कितने लोग ब्लॉग पढते हैं। ब्लॉग पढा जाता है अमिताभ बच्चन का। मैं ब्लॉग को साहित्य नहीं मानती।


स्तर-उस्तर का तो हम नहीं जानते लेकिन जितने प्रयोग ब्लागिंग में हो रहे हैं एक से एक धांसू से लेकर एक से एक चौपट तक उतने शायद साहित्य में न हो रहे हों।

नये-नये शब्द गढ़ने में भी ब्लागजगत में कम कलाकारी नहीं हो रही है। आज ही ज्ञानजी ने नया शब्द गढ़ा- लीगल-एथिक्स (Legal Ethics) हीनता | काकटेलिया शब्द गढ़ना ज्ञानजी की हाबी है। शब्दपुजारी की तरह वे वर्णशंकर शब्दों का गठबंधन कराते रहते हैं। लीगल एथिक्स अंग्रेजी से बटोरा और उस पर हीनता की छौंक लगा दी और परोस दिया नैतिकता की परात में। लेओ जीमो जी पाठक महाराज! :)

लेकिन भैया गरमी के कारण और कुछ सूझ नहीं रहा किसी को। मौका देखकर विवेक ने तो गर्मी की सरकार तक बनवा डाली।गर्मी की सरकार की अंदर की बात बताते हुये वे बताते हैं:
पंखों ने तो इसे समर्थन, बिना शर्त ही दे डाला ।
कूलर सिर्फ़ नाम के कूलर, उर में बसती है ज्वाला ॥

एसी सदा ध्यान रखते हैं, बस अपने ही लोगों का ।
ये गैरों की ओर बढ़ाते, बन्द लिफ़ाफ़ा रोगों का ॥


विवेक की अलग तरह की कवितागिरी देखकर लगता है ऐसे के लिये ही कहा गया है! लीक छांड़ि तीनों चलें शायर, सिंह, सपूत! अब संयोग यह कि विवेक सिंह शायर, सिंह और सपूत होने के नाते थ्री इन वन हो गये।

अब जब गर्मी की सरकार बनी तो उसके कसीदे भी काढ़े जायेंगे। इसी चक्कर में कुछ (अ)-दोहे लिख डाले हमने:
बूंद पसीने की चली, अटकी भौहों के पास,
बढ़ने की हिम्मत नहीं ,बहुत गर्म है सांस!

नल पर लंबी लाइन है, मचा है पानी हित हाहाकार,
अब तो जो पानी पिलवाय दे , है वही नया अवतार।




मौसम का जूता
मिसिरजी ने चिट्ठाचर्चा करते हुये आवाहन किया:
आप सभी से अनुरोध है कि आप सभी पर्यावरण और जल संरक्षण हेतु जनजागरण के उद्देश्य से इस विषयो पर अधिकाधिक सार्थक पोस्ट लिखें जो प्रेरक हो और उनसे आम पाठक भी प्रेरणा ग्रहण कर सके. यदि पर्यावरण और जल संरक्षण की ओर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाला समय मानव जाति ओर पशु पक्षियो के खतरे की घंटी साबित होगा .


अलबेलाजी पोस्टें लिखने का रिकार्ड बना रहे हैं। इसी क्रम में वे समीरलालजी को भी बना रहे हैं। आज उन्होंने समीरलालजी को शराब और गधे से जोड़ दिया। टिपियाते हुये ताऊ कह रहे हैं -छा गये गुरू! अब यह समझ में नहीं आया कि छा गये गुरू किसके लिये कहा गया है- अलबेला जी के लिए, समीरजी के लिये या फ़िर गधे जी के लिये। :)

वैसे अलबेलाजी का एक ठो फ़ोटू अनुराग जी बनाइन हैं। सो उसे इहां देखा जाये।

वैसे द्विवेदीजी की यह पोस्ट तो यही कहती है कि ब्लागिंग स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति का अधिकार है! उनको जो मन आये वे सो करें। चाहे जिसको जो बनायें।

अजितजी आज लंबे कद और लंबी जुबान की बातें करते पाये गये। लेकिन आदित्य का कद तो अभी उतना नहीं हुआ लेकिन शरारतें जारी हो गयीं।

अरविन्द मिश्र जी आवाहन कर रहे हैं छ्द्म विज्ञान बांचने का। लग लीजिये साथ में। आश्चर्यजनक रूप से लवली आज पहली बार उनसे सहमत होने की बात कहती पायीं गयीं। :)

कभी-कभी कुछ कवितायें देखकर लगता है कि कवि योजना आयोग का चेयरमैन है। ऐसी योजना बनायी जाती है कि बस वाह-वाह ही सूझता है। दिगम्बर नासवा कहते हैं:
जब कभी
स्याह चादर लपेटे
ये कायनात सो जाएगी
दूर से आती
लालटेन की पीली रौशनी
जागते रहो का अलाप छेड़ेगी
दो मासूम आँखें
दरवाज़े की सांकल खोल
किसी के इंतज़ार में
अंधेरा चूम लेंगी
जैसे क्षितिज पर चूम लेते हैं
बादल ज़मीन को
वक़्त उस वक़्त ठहर जाएगा

अब बताइये इतनी तफ़सील से वक्त कवि के अलावा कौन ठहरा सकता है। इसी तरह इस कविता में कलम के कर्जे पर धरे होने की जानकारी दी है। एक-एक चीज विस्तार से बताई है।

अनिलकान्त ने सामान्य ज्ञान की जानकारी देते हुये बताया -क्या कारण है कि चेहरा, आँखों से दिमाग पर छा जाता है इस पोस्ट पर अनिल पुसदकरजी कहते हैं: तुम्हारी आंखे भी बहुत कुछ बोलती है इस्लिये तस्वीर मे आंखों पर चढा काला चश्मा उतार दो। जबकि घुघुती बासूती जी आत्मस्वीकार करती हैं:
मैं चेहरे याद नहीं रख पाती। समस्या किसी की आँखों की नहीं मेरी आँखों की है।

अब कोई डाक्टर साथी इसका इलाज बताये। :)

बेनामी टिप्पणियों पर अपनी राय देते हुये अरविन्द मिश्र लिखते हैं:
बेनामी टिप्पणियाँ अनेक कारणों से की जा सकती हैं -उचित और तर्कपूर्ण कारणों से भी ! मगर इस समय जो टिप्पणियाँ हो रही हैं केवल घोर हताशा और निराशा का ही परिणाम हैं -कारण जिन्होंने भी हिन्दी ब्लागिंग को ऐसे ही मौज मस्ती के लिए ले लिया और उसके साथ सामाजिक उत्तरदायित्व को नहीं जोड़ा या फिर किसी प्रायोजित उद्येश्यों की पूर्ति में लगे या फिर अपने हारे हुए मुद्दों को यहाँ लाकर हायिलायिट (हाई लाइट) करने लग गये , अब चुक गए हैं ! कुछ लोगों ने बस यही समझ लिया था कि ब्लॉग का मतलब बस अपना रोना धोना, ज्ञान जी के शब्दों में कहूं तो सुबक सुबक पोस्ट है !

अरविन्द जी यह भी कहते हैं:
वैसे भी यदि आप आधी दुनिया -नारी पर कुछ नहीं लिख्रते या फिर पहेलियाँ नहीं पूंछते तो मत घबराईये कोई बेनामी आप तक नहीं पहुँचने वाला है
मतलब बेनामी टिप्पणीकार केवल उनके ब्लाग पर ही अनाम टिप्पणी करते हैं जो या तो नारी से संबंधित कुछ लिखते हैं या पहेलियां बुझाते हैं। समझ रहे हैं ताऊ!

वैसे कुछ साथी बेनामी टिप्पणीकारों की उपस्थिति की जरूरत महसूस करते हैं। अनाम टिप्पणीकारों के समर्थन में लिखी एक पोस्ट में मसिजीवी कहते हैं:
खतरा यह है कि यदि आप इसे वाकई मुखौटों से मुक्‍त दुनिया बना देंगें तो ये दुनिया बाहर की ‘रीयल’ दुनिया जैसी ही बन जाएगी – नकली और पाखंड से भरी। आलोचक, धुरविरोधी, मसिजीवी ही नहीं वे भी जो अपने नामों से चिट्ठाकारी करते हैं एक झीना मुखौटा पहनते हैं जो चिट्ठाकारी की जान है। उसे मत नोचो---ये हमें मुक्‍त करता है।


टिपियाने पर टिप्पणी प्रकाशित करने और न करने का अधिकार चिट्ठाकार का होता है।लेकिन एम.ज्ञान जी अपनी एक टिप्पणी को प्रकाशित न किये जाने का किस्सा बयान करते हुये पूछते हैं- ऐसा क्या था इस टिप्पणी में जो इसे प्रकाशित करने में डर लगा? । इस पर रचनाजी ने अंग्रेजी में अपना जबाब लिखा है। पाबलाजी ने टिपियाया है-अज़ीब लिखा-पढ़ी चल रही :)

ब्लागिंग से जुड़े हैं इंडीरैंक से भी जुड़ लीजिये। जानकारी दे रहे हैं बालसुब्रमण्यमजी

कभी प्रेम का महत्व बताते हुये कबीरदास जी ने लिखा था:

कबिरा यह घर प्रेम का, खाला का घर नाहिं,
शीश उतारै भुईं धरै, तब पैठे घर मांहि।

मतलब प्रेम घर में घुसना हो तो शीश (अभिमान) बाहर छोड़ना पड़ेगा। लेकिन आतंकवादियों के लिये ऐसी कोई शर्त नहीं। वे मौसी का मानकर यहां घुसे चले आ रहे हैं। एक आतंकवादी के बयान जारी करते हुये सतीश पंचम जी लिखते हैं:
अरे हमारी माँ कई बहने हैं, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भारत.......सब अपुन की माँ की बहने है, तो क्या है कि अपनी एक माँ को छोड बाकी अपुन की मौसी लगेंगी। तो अभी जा रहा हूँ....मौसीयाने बम फोडने। तूम आते हो तो चलो।


घूमने का आपको जरको भी शौक हो और मोटरसाइकिल चलाने में मजा आता हो तो आप मुनीश के साथ जरूर घूमने निकलिये। देखिये क्या शानदार फ़ोटू सटायें है भैया मुनीश।

सोनालिका बिजली आवाहन करती हैं:
ओ चंचला कभी हमारी गली में भी आ, हर चेहरा खिल उठेगा, हर कोना रौशन होगा, तुम्‍हारे आंचल की हवा में कुछ पल सो सकूंगा, हमारे बच्‍चे भी सो सकेंगे जो तुम्‍हारे न होने के गम को और भी भयानक बना देते हैं। ठहरो और देखो तुम्‍हारे आने से मेरे घर में खुशी कैसे मचलती है। सुकून पसरता है। हे चंचला मैं तुम्‍हारी स्‍तुति करता हूं, तुम्‍हारे बढे़ हुए दामों को भी अदा करता हूं लेकिन तुम हो कि मेहरबान नहीं होती हूं। आओं कि घर का पंखा और कूलर तुम्‍हारी राह जोह रहा है। आओ कि बल्‍ब जलने को बेकरार है।


शारदा अरोराजी लिखती हैं:

दुनिया के मेले यूँ गए हमको तन्हाँ छोड़ कर
भीड़ के इस रेले में , जैसे कोई अपना न था

तन्हाई ले है आई ये हमें किस मोड़ पर
खुली आँखों की इस नीँद में , अब कोई सपना न था


मनोज मिश्र अपनी पसंदीदा रचना पढ़वाते हैं:
खूबसूरत से इरादों की बात करता है
वो पतझडों में गुलाबों की बात करता है

एक ऐसे दौर में जब नींद बहुत मुश्किल है
अजीब शख्स है ख्वाबों की बात करता है


फ़ांट्स स्वर्ग में जाने के लिये कल्पतरु के नीचे खड़े हो जाइये और मांग लीजिये अपना मनपसंद फ़ांट।

निरीक्षण के दौरान दो-तिहाई से ज़्यादा न्यायिक कर्मचारी नदारद मिले परिणाम स्वरूप द्विवेदीजी को ताऊ पहेली में विजेता घोषित कर दिया गया। अब झेलें सवाल-जबाब। हम तो बधाई कह कर कट लेते हैं।

समीरजी कहते हैं
पहली मंजिल की खिड़की पर बैठा बैकयार्ड में बगीचा देख रहा हूँ. मौसम बहुत सुहाना लग रहा है.
ये हाल जब पहली मंजिल से देखने के हैं तो उड़नतश्तरी से क्या जलवे भरे नजारे दिखते होंगे।

समीरलालजी ने यह पोस्ट दुखी मन से उभरे भाव बटोरकर लिखी है। नीरज रोहिल्ला की समझाइस है:
क्यों एक टिप्पणी से ही हमारा आपा खो जाता है और फ़िर हम जवाबी टिप्पणी लिखकर उसे द्वन्द युद्ध के लिये आमंत्रित कर लेते हैं। चिट्ठे से इतना मोह ठीक नहीं, साईबर जगत में टहल रहे इलेक्ट्रानों से इतनी नजदीकी का भ्रम पालें तो अपनी रिस्क पर :-) खैर, जो इसको अपनी प्रतिष्ठा का सामान बनाकर आईटी के औजार तरकशों में सजाये बैठे हैं, उनको इस एक तरफ़ी लडाई में जीत के लिये पहले से बधाई।





एक लाईना



  1. हमहूँ नामी हो गइलीं : बड़ी बदनामी है

  2. अनामी मित्र का स्वागत और कुछ खिचडी पोस्ट !!! : दही,पापड़ अचार किधर हैं?

  3. किस बात का गुस्सा? कहीं कोई भय तो नहीं? : गुस्से और भय के लिये छूट है वे किसी भी बात पर लग लें

  4. समीर लाल जी , शराब और गधा .....:एक पोस्ट पर एक साथ दिखे

  5. उनके लिए जो शादी शुदा हैं या शादी करने जा रहे हैं. :एक आखिरी मौका

  6. प्रति व्यक्ति गढ्ढे:में भारत का स्थान टाप पर



मेरी पसंद


प्रीतिबड़्थ्वाल
हे सूरज महाराज......
गर्मी को बरसाओ ना यूं ,
पत्थर सा सिकवाओ ना यूं ,
दबे पांव आने दो बदरा,
पानी-पानी को तरसाओ ना यूं ।


ना मुसकाते रहो यूं अकेले,
खङी धूप में, बिन सहेले,
तुमको होगी कसम चांदनी की,
दिन में तारे, दिखलाओ ना यूं ,
दबे पाव आने दो बदरा,
पानी-पानी को तरसाओ ना यूं ।



तुमभी अगन में तपे हो,
कई बरसों के प्यासे रहे हो,
थोङा रुकलो, तो आराम कर लो,
तुमभी खुद को सुखाया करो यूं ,
दबे पांव आने दो बदरा,
पानी-पानी को तरसाओ ना यूं ।

प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

और अंत में


फ़िलहाल इतना ही। एक लाईना और जोड़ने का मन है लेकिन समय हो गया सो पोस्ट कर रहे हैं। अगर आपने कल और परसों की चर्चा न देखी हो तो देख लीजिये। मजा आयेगा। लिंक हम दिये दे रहे हैं:

कल की चर्चा: चुटकुला चर्चा
परसों की चर्चा: क्यूँ हमारी संगीत प्रेमी जनता महरूम है एक उत्कृष्ट संगीत चैनल से ?

फ़ीड के बारे में ये जानकारी भी काम की है:

टीप : कुछ पाठकों की फ़ीड संबंधी शिकायत है कि उन्हें चिट्ठाचर्चा की फ़ीड सही नहीं मिल रही. फ़ीडबर्नर की फ़ीड में कुछ समस्या है. पाठकों से आग्रह है कि वे अपनी कड़ी सही कर लें और डिफ़ॉल्ट ब्लॉगर की फ़ीड सब्सक्राइब करें. पता है –

http://chitthacharcha.blogspot.com/feeds/posts/default?alt=rss

बाजू पट्टी में दिए गए फ़ीड की कड़ी में भी सुधार कर दिया गया है.
-- कड़ियाँ - साभार चिट्ठाजगत.इन

बकिया चकाचक। हफ़्ता शानदार शुरू हो। बढि़या शुरू मतलब अधिया खत्तम। मस्त रहें बादल आ ही रहे हैं भिगोने को। मन मयूर को लगा दें नृत्य- ड्यूटी पर।


आज की तस्वीर


आज की तस्वीरें मल्हार से


जयपुर




जयपुर




जयपुर

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रविवार, जून 28, 2009

चुटकुला चर्चा

पिछले दिनों गगन शर्मा के धीर गंभीर चिट्ठे अलग सा में चुटकुले छपने पर बवाल मच गया था. पर, किसी भी लोकप्रिय पत्र-पत्रिका को उठाकर देख लें - उसका सर्वाधिक लोकप्रिय स्तंभ चुटकुले का ही होता है. रीडर्स डाइजेस्ट के कुछ नियमित स्तंभ तो जीवन के विविध क्षेत्रों के चुटकुला-नुमा प्रसंगों पर समर्पित हैं. ये स्तंभ वर्षों से चले आ रहे हैं और पाठकों में खासे लोकप्रिय हैं, इनमें से सर्वाधिक लोकप्रिय स्तंभों में से एक का नाम है - लाफ़ इज़ द बेस्ट मेडिसिन.

 

हिन्दी चिट्ठाजगत भी चुटकुलों से भरा पड़ा है. आइए, ऐसे चिट्ठों/पोस्टों की पड़ताल करें और थोड़ा हँसें.

 

 

रजनीश मंगला यदा कदा बढ़िया चुटकुला सुनाते हैं. उनके ताज़ातरीन में से एक है -

 

एक जर्मन पुलिसकर्मी एक व्यक्ति सेः तुमने देखा कि वह व्यक्ति एक बूढ़ी औरत को पीट रहा है। तुमने जाकर मदद क्यों नहीं की?
व्यक्तिः मुझे लगा वो अकेला काफ़ी है।

हाल ही में बाल सुब्रमण्यम बच्चों के लिए चुटकुले लेकर आए. एक चुटकुला यहीं पढ़ें बाकी उनके ब्लॉग पर -

एक भिखारी दूसरे से:- यार तुम्हारा यह नया स्टील का भिक्षापात्र तो बहुत सुंदर है। कितने में लिया?

दूसरा भिखारी:- खरीदा नहीं दोस्त, घर में जो नया टीवी आया है, उसके साथ यह मुफ्त में मिला है।

 

महेन्द्र मिश्र ने भी कुछ समय पहले चुटकुले सुनाए थे. एक मजेदार चुटकुला था -

नाटककार - मेरे नाटक के बारे में आपका क्या ख्याल है ?
आलोचक - मै एक सलाह देना चाहता हूँ .
नाटककार - वो क्या ?
आलोचक - नाटक के अंत में विलेन को पिस्तौल से शूट करने की बजाय जहर देकर मारा जाए फायर की आवाज से दर्शको की आँख खुल सकती है.

 

 

हँसगुल्ले तो पूरा का पूरा चुटकुलों पर केंद्रित ब्लॉग है. एक चुटकुला -

 

नेपाली को चिराग मिला.
जिन्न ने उससे ३ इच्छा पूछी.
नेपाली : १. एक बड़ा बंगला.
२. उसमे एक खूब दौलतमंद आदमी.
और ३. उसका गोरखा हमको बनाओ.

 

हिन्दी जोक्स एंड लव एसएमएस में हिन्दी चुटकुलों का संग्रह है. हालांकि साइट बहुत दिनों से अपडेट नहीं हुई है. एक चुटकुला -

 

एक गाँव में एक मास्टर जी बच्चो को महाभारत का अद्ध्याय पढ़ा रहे थे,विषय था कृष्ण जनम.
मास्टर जी : तो बच्चो,कंस ने आकाशवाणी सुना की,उसकी मौत वशुदेव और देवकी के आठवें संतान से होगी . इसीलिए कंस देवकी और वशुदेव को जेल में डाल दिया, और एक एक कर के उनके सब संतानों को मारता गया..पहले को जहर दे के मारा.फिर दूसरा जनम लिया ..दुसरे को मारा.फिर तीसरे ने जनम लिया .....

तब तक कक्षा के एक बच्चा कालू खडा हुआ और बोला - मास्टर साहब हमे एक बात की शंका हैं..हम इस इतिहास से सहमत नही हैं.
मास्टर जी : बेटा कालू ,जब पूरी दुनिया को महाभारत पर कोई शंका या असहमति नही हैं तो तुम्हे क्या है?
कालू : मास्टर साहब,अगर कंस ये जानता था की उसकी मृत्यु वासुदेव और देवकी के संतान से होगी तो,उसने देवकी और वासुदेव को जेल के एक ही कटघरे में क्यों रखा???

सवाल तो वाजिब है. इसका उत्तर है किसी के पास? चलिए, बेहतर होगा कि धार्मिक मामले में न उलझें और आगे कोई धांसू चुटकुला पढ़ें.

फनी जोक्स पर पढ़ें ऐसे और बेहद फनी चुटकुले -

 

संता ( पेट्रॉल पंप पर ) : अरे भाई , जरा एक रुपए का पेट्रॉल डाल दो।
सेल्समैन : भाई , इतना पेट्रॉल डलवाकर जाना कहां है ?
संता : अरे यार , कहीं नहीं जाना हम तो ऐसे ही पैसे उड़ाते रहते हैं।

 

एक और फनी चुटकुला -

 

पहली लड़की - मैंने उससे अपनी सगाई तोड़ दी है मै उससे नफ़रत करती हूँ और मै उससे प्यार नही करती हूँ .
दूसरी लड़की - पर तुमने सगाई की अंगूठी अभी तक पहिन रखी है ऐसा क्यो ?
पहली लड़की - ओह मै इस अंगूठी को अब भी प्यार करती हूँ

 

अगर आपको चुटकुले में आनंद आया हो तो ऐसे और भी फनी चुटकुले पढ़ने के लिए .यहाँ चटका लगाएं.

 

कुछ समय पहले संजय डुडानी ने संता-बंता के मस्त चुटकुले छापे थे. एक पेश है -

संता (बंता से)- बंता मैं तुम्हारे एटीएम का पासवर्ड जान गया हूं।

बंता (संता से)- अच्छा, जरा बताना क्या है मेरा पासवर्ड?

संता- चार स्टार है..

बंता- नहीं, मेरा पासवर्ड तो 2321 है।

 

पंडित डी. के. शर्मा वत्स कुछ उधार के चुटकुले लाए थे-

                       सस्ता समाधान
एक आदमी मनोचिकित्सक के पास गया । बोला -''डॉक्टर साहब मैं बहुत परेशान हूं। जब भी मैं बिस्तर पर लेटता हूं, मुझे लगता है कि बिस्तर के नीचे कोई है। जब मैं बिस्तर के नीचे देखने जाता हूं तो लगता है कि बिस्तर के ऊपर कोई है। नीचे, ऊपर, नीचे, ऊपर यही करता रहता हूं। सो नहीं पाता । कृपा कर मेरा इलाज कीजिये नहीं तो मैं पागल हो जाऊंगा।''
डॉक्टर ने कहा - ''तुम्हारा इलाज लगभग दो साल तक चलेगा। तुम्हें सप्ताह में तीन बार आना पड़ेगा। अगर तुमने मेरा इलाज मेरे बताये अनुसार लिया तो तुम बिलकुल ठीक हो जाओगे।''
मरीज - ''पर डॉक्टर साहब, आपकी फीस कितनी होगी ?''
डॉक्टर - ''सौ रूपये प्रति मुलाकात''
गरीब आदमी था। फिर आने को कहकर चला गया।
लगभग छ: महीने बाद वही आदमी डॉक्टर को सड़क पर घूमते हुये मिला ।
''
क्यों भाई, तुम फिर अपना इलाज कराने क्यों नहीं आये ?'' मनोचिकित्सक ने पूछा।
''
सौ रूपये प्रति मुलाकात में इलाज करवाऊं ? मेरे पड़ोसी ने मेरा इलाज सिर्फ बीस रूपये में कर दिया'' आदमी ने जवाब दिया।
''
अच्छा! वो कैसे ?''
''
दरअसल वह एक बढ़ई है। उसने मेरे पलंग के चारों पाए सिर्फ पांच रूपये पाए के हिसाब से काट दिये।''

 

नए साल पर सुरेश चन्द्र गुप्त ने चुटकुले सुनाए थे, और क्या सुनाए थे. एक बार फिर हँस लें -

फ़िर धो दो

मित्र की पत्नी ने घर बजट में बचत करने के लिए अपनी एक ड्रेस को ड्राई-क्लीन न करवा कर घर में ही धो लिया. पति को प्रभावित  करने के लिए उन्होंने यह बात उन्हें बताई और कहा देखो मैंने ५० रुपए बचा लिए. पति अखबार पढने में व्यस्त थे. उन्होंने कहा, 'एक बार फ़िर धो लो, ५० रुपए और बच जायेंगे'.

 

संजय शर्मा ने अपने तीन पोस्टिया ब्लॉग में एक में कुछ सुने-सुनाए, मगर मजेदार चुटकुले सुनाए हैं -

मैजिस्ट्रेट ने पूछा : ' क्या तुम अपनी नेकचलनी का सबूत दे सकते हो ?' अभियुक्त बोला : ' आप मेरे बारे में थानेदार जी से पूछ सकते हैं। ' थानेदार ने कहा : ' जी मैं तो इसे जानता तक नहीं। ' अभियुक्त के चेहरे पर मुस्कान फैल गई वह बोला , ' हुजूर , मैं इलाके में 15 साल से रह रहा हूं। पुलिस के पास क्षेत्र के हर अपराधी का रेकॉर्ड होता है , और थानेदार जी मुझे जानते तक नहीं। '

कर्जैन बाजार में डॉ. मंडल ने देखिए कैसे मजेदार  चुटकुले छापे हैं -

पत्नी (पति से)- रात को आप शराब पीकर गटर में गिर गए थे।
पति (पत्नी से)- क्या बताऊं, सब गलत संगत का असर है, हम 4 दोस्त....1 बोतल, और वो तीनों कम्बख्त पीते नही।

राजेन्द्र दवे का ये चुटकुला मजेदार है -

लड़की को सामने से आता देखकर लड़का सिटी बजता हे
तमतमाकर लड़की ने कहा - चपल निकालू क्या।
लड़का- मेरा दिल कोई मन्दिर नही हे
आप तो चपल पहेनकर भी आ सकती हे.|

 

जरा ये रोमांटिक किस्म का चुटकुला पढ़ें -

 

संता: डार्लिंग आज बरसात हो रही है मौसम बहुत अच्छा है,
कोई ऐसी रोमांटिक बात कहो की मेरे पैर जमीन पर न रहे,
पत्नी: डार्लिंग फांसी लगा लो

हँसी आई? और ज्यादा हँसने के लिए ए साइंटिफ़िक रीसर्च ऑन जोक्स पर जाएँ.

 

इधर तो चुटकुलों की वजह से गुदगुदी ही गुदगुदी मच रही है -

 

एक परीक्षा में प्रश्न था, चैलेंज कैसे किया जाता है?
छात्र ने पूरा पेज खाली छोड़ दिया और नीचे लिखा, दम है तो पास करके दिखाओ।

 

मनोज शर्मा के ब्लॉग का उद्देश्य ही पाठकों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाना है. तो चुटकुले छापने से बढ़िया और क्या हो सकता है -

बंता अपने बेटे के साथ मछली पकड़ने के लिए नदी में गया। बोट में बैठे-बैठे दो घंटे हो गए पर उसके कांटे में एक भी मछली नहीं आई।
उसका बेटा ऊब चुका था, वह इधर-उधर की बातें सोचने लगा। उसके दिमाग में तमाम तरह के सवाल उठने लगे। हर एक सवाल वह बंता से पूछने लगा।
उसने पूछा, "पापा यह बोट कैसे तैर रहा है?"
बंता ने जवाब दिया, "बेटा अभी नहीं"
फिर बेटे ने पूछा, "पापा आकाश नीला क्यों होता है?"
बंता ने जवाब दिया, "बेटा अभी नहीं।"
फिर उसने पूछा, "पापा मछ्ली पानी में कैसे सांस लेती है?"
बंता ने कहा, "बेटा अभी नहीं।"
बंता का जवाब सुनकर बेटे ने सोचा कि उसने अपने पापा को शायद नाराज कर दिया है।
उसने बड़ी मासूमियत से कहा, "पापा क्या आपको मेरा सवाल पूछना बुरा लगता है?"
बंता ने फौरन जवाब दिया, "अरे नहीं बेटा, अगर तुम सवाल नहीं पूछोगे तो कभी कुछ नहीं सीख पाओगे।"

बहुत हँस लिए. क्षणिक विराम लेते हैं. प्रश्न है - चुटकुला क्या कभी तर्कसंगत होता है? उत्तर जानने के लिए पढ़ें - चुटकुला कभी भी तर्क संगत नहीं होता...

"...एक छोटे से दफ्तर में मालिक अपने कर्मचारियों को कुछ पुराने चुटकुले सुना रहा था, जो वह पहले कई बार सुना चुका था। और सब हँस रहे थे- सभी को हँसना पड़ता है! वे सभी इनसे ऊब चुके थे, पर मालिक तो मालिक है, और जब मालिक चुटकुला कहे तो तुम्हें हँसना तो पड़ता ही है- यह काम का हिस्सा है। सिर्फ एक टायपिस्ट नहीं हँस रही थी, वह गंभीर बैठी थी। मालिक ने पूछा, 'तुम्हारी क्या समस्या है? तुम हँस क्यों नहीं रही हो?'

वह बोली, 'मैं इस महीने काम छोड़ रही हूँ- हँसने का कोई मतलब नहीं है!'..."

ब्रेक के बाद चलिए फिर हँसते हैं. नीलमणि नीरज कहते हैं कि हँसाने के लिए चोरी के चुटकुले भी पोस्ट करेगा!¡! -

१०) डॉक्‍टर- क्‍या आप डिलीवरी के टाइम बच्‍चे के पिता को अपने पास देखना चाहेंगी?
औरत- नहीं उन्‍हें मेरे पति पसंद नहीं करते।

 

विजय वडनेरे ने बहुत पहले एक शाश्वत सत्य सा चुटकुला कुछ यूं पोस्ट किया था -

पति ने अखबार की एक खबर पढ कर सुनाई - कि औरतें, पुरुषों के मुकाबले एक दिन में दुगने शब्दों का प्रयोग करती हैं"

पत्नी ने कहा - वो इसलिये कि पुरुषों को सुनाने के लिये औरतों को अपनी हर बात दुहरानी पड़ती है।

पति - "...क्या??..."

चुटकुलों की बात चली है तो आप विश्व के सबसे पुराने चुटकुलों के बारे में जानना नहीं चाहेंगे? एक बहुत पुराना चुटकुला पढ़ें -

 

सबसे पुराना ब्रिटिश चुटकुला 10वीं सदी का है, जो ऐंग्लो-सेक्सन सभ्यता का भद्‍दा चेहरा भी ‍दिखाता है। इसमें कहा गया है कि 'वह क्या है जो कि एक पुरुष की जाँघ पर लटकता रहता है और ऐसे छेद में जाना चाहता है, जिसमें यह अकसर ही जाता रहता है, इसका उत्तर है : चाबी।'

माय फन फैमिली में रोमिल अरोरा ने ये सदाबहार चुटकुला पोस्ट किया -

 

एक बार मुल्ला नसरूद्दीन अपने घर की छत की मरम्मत कर रहे थे तभी एक भिखारी आया और मुल्ला नसरूद्दीन को आवाज दी. मुल्ला नसरूद्दीन ने पूछा, "क्या है, क्यों चिल्ला रहे हो?" ज़रा नीचे आओ तब बताता हूँ, भिखारी बोला. बडी मुश्किल से काम छोड कर मुल्ला नसरूद्दीन नीचे आये और फिर बोले, "अब कहो"! कुछ पैस मिलेंगे हुज़ूर भिखारी बोला! मुल्ला नसरूद्दीन ने भिखारी को ऊपर से नीचे तक देखा और कहा ऊपर आ जाओ! भिखारी बहुत खुश हुआ और मुल्ला नसरूद्दीन के साथ-साथ छत पर चला गया! ऊपर पहुँचने के बाद मुल्ला नसरूद्दीन बोले, "नहीं हैं, रास्ता नापो".

फन की बस्ती में राहुल प्रताप सिंह ने कुछ चुटकुले पोस्ट किए हैं -

 

एक बार एक सरदार जी ने माचिस खरीदी ! पहले पहल तो उन्होंने पूरीमाचिस को काफी देर तक घूराऔर
फ़िर उसमे से एक तीली निकालीऔर उसे जलाया ! तीली जलने के तुंरत बाद बुझ गई !
दूसरी जलाई वो भी बुझ गई , तीसरी भी , ! सरदार जी ने परेशान होकर चौथी जलाई , वो कुछ देर तक जली !
सरदार जी ने उसे तुंरत बुझाकर अपनी माचिस में रख ली और कहा चलो ये आगे काम देगी !

ठिठोली वैसे तो पूरी तरह चुटकुलों को समर्पित ब्लॉग है, परंतु यहाँ छपे चुटकुलों की संख्या बहुत कम है. एक मजेदार चुटकुला पढ़ें -

लालू प्रसाद का जापान विस्तार




एक बार लालू प्रसाद यादव बिहार में व्यापार विस्तार के सिलसिले में एक जापानी प्रतिनिधि मंडल को सम्बोधित कर रहे थे ! जापानी प्रतिनिधि मंडल बिहार के प्रगति से बहुत ही प्रभावित हुए और कहा बिहार बहुत ही अच्छा राज्य है ! आप हमें ३ महीने दीजिये हम बिहार को जापान बना देंगे! लालू बहुत ही आश्चर्यचकित हुआ और कहा आप जापानी लोग बहुत ही अयोग्य है! हमें बस ३ दिन दीजिये हम जापान को बिहार बना देंगे.......

कुछ समय पहले अनिल ने भी एक बढ़िया चुटकुला छापा था -

एक लड़का लड़की देखने गया।

जब दोनों अकेले हुए तो लड़की डरते हुए बोली - भैया आप कितने भाई-बहन हो ?

लड़का तुरंत बोला - अभी तक तो तीन थे लेकिन अब चार हो गए हैं।

रोजाना में रामगोपाल जाट नियमित अनियमित चुटकुले छापते रहते हैं. पुराने - नए जमाने की तुलना करने वाला चुटकुला पढ़ें -

 

1980 के दशक में लड़की- माँ मैं जीन्स पहनूंगी...मां- नहीं बेटी, लोग क्या कहेंगे?2007 के दशक में लड़की- मां मैं मिनी स्कर्ट पहनूंगी...मां- पहन ले बेटी... कुछ तो पहन ले!!!...

शायरी-नुमा चुटकुले या चुटकुले-नुमा शायरी की धूम एसएमएस संदेशों में बहुत है. गुजराती चिट्ठाकार मालजी की ताज़ा पोस्ट में ऐसे ही संदेशों का संकलन है. एक संदेश पढ़ें -

 

1) तेरे प्यार में पागल हो गया पीटर ...
.
.
वाह! वाह!
..
.
तेरे प्यार में पागल हो गया पीटर ...
अब हीरो होंडा स्प्लेंडर, 80 किमी प्रति लीटर .. !!

 

2005 में मानसी ने ये चुटकुला छापा था -

संता सिंह जी पंजाब में एक बच्चों के एक स्कूल में टीचर हैं। थोडे दिन पहले की बात है। स्कूल में इन्स्पेक्शन था। इन्स्पेक्टर संता सिंह जी की कक्षा के सामने से गुज़रे। संता सिंह जी बच्चों को अंग्रेज़ी पढा रहे थे--"बच्चों, बोलो गधा" और बच्चे दोहरा रहे थे "गधाआआआ", संता सिंह जी ने कहा,"गधे के पीछे गधा" और बच्चे बोले, "गधे के पीछे गधाआआआ", "उसके पीछे मैं" ..."उसके पीछे मैं~~~", "मेरे पीछे सारा देश"..."मेरे पीछे सारा देश"। ये सिलसिला चलता रहा थोडी देर तक और इन्स्पेक्टर से रहा न गया। उन्होने जा कर शिकायत कर दी स्कूल के प्रधानाचार्य से, "आपके विद्यालय में ये कैसे शिक्षक हैं, अंग्रेज़ी की कक्षा में ये क्या पढा रहे हैं, हमें सफ़ाई चाहिये वरना संता सिंह जी को बरखास्त कर दिया जायेगा।"

तो संता सिंह जी को बुलाया गया और सफ़ाई मींगी गयी कि वो क्या पढा रहे थे। संता सिंह जी ने बडी ही सादगी से जवाब दिया "मैं बच्चों को assassination की spelling सिखा रहा था।" (ass ass I nation)

 

इंडिया कॉमेडी में सुनील नियमित तौर पर चुटकुले छापते हैं. एक ताजा पोस्ट -

जिम और मेरी दोनों मेंटल हॉस्पीटलमें पेशंट थे. एक दिन जब वे हॉस्पीटलके स्विमींग पुलके पाससे गुजर रहे थे, तब जिमने यकायक स्विमींग पुलमें छलांग लगा दी. स्विमींग पुल बहुत गहरा होनेसे वह डूबकर स्विमींग पुलके तलमें चला गया. मेरीने यह सब देखा और उसने तुरंत उसे बचानेके लिए स्विमींग पुलमें छलांग लगाई. वह तैरते हूए स्विमींग पुलके तलतक गई और उसने जिमको पकडकर उपर लाया और पुलके बाहर निकाला.

जब मेडीकल ऑफीसरको मेरीके इस करामातके बारेंमें पता चला उन्होने तुरंत मेरीको हॉस्पीटलसे डिस्चार्ज देनेकी ऑर्डर दि. क्योंकी वह अगर इतने होशारीसे काम लेकर उसे पाणीसे बाहर निकालकर बचा सकती है तो वह अब दिमागी तौरपर ठिक हो गई ऐसा मान लेना चाहिए.

जब वह मेडिकल ऑफीसर मेरीसे मिलनेके लिए गया तब उसने मेरीसे कहा, '' मेरी मेरे पास तुम्हारे लिए एक अच्छी खबर है और एक बुरी खबर है ... अच्छी खबर यह है की तुम्हारी वह जिमको बचानेकी हरकत देखकर हमने तुम्हे हॉस्पीटलसे डिस्चार्ज देनेका फैसला लिया है ... और बुरी खबर यह है की तुमने जिसे बचाया उस जिमने खुदके गलेमें फंदा लटकाकर खुदखुशी की है ....''

मेरीने जवाब दिया. ' नही गलेको फंदा उसने नही लगाया ... दरअसल मैनेही उसे सुखानेके लिए टांग दिया था. ''

और, अंत में -

मुर्गी अंडा देती है......................
मुर्गी अंडा देती है

अंडा तो सफ़ेद होता है

सफ़ेद तो दूध भी होता है

लेकिन दूध तो भैंस देती है

लेकिन भेष तो काली होती है

कला तो बंगाली होता है

बंगाली तो पान ख़ाता है

पान तो लाल होता है

लाल तो गुलाब होता है

गुलाब मैं तो काँटे होते है

काँटे तो मछली मैं भी होते है

लेकिन मछली तो अच्छी होती है

अच्छा तो आदमी भी होता है

लेकिन आदमी तो लंबा होता है

लंबा तो ये स्क्रैप भी है

लेकिन मुझे उससे क्या

मुझे तो तुम्हारा दिमाग़ खाना था

चुटकुले सुनाकर खा लिया

 

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शनिवार, जून 27, 2009

क्यूँ हमारी संगीत प्रेमी जनता महरूम है एक उत्कृष्ट संगीत चैनल से ?

टीवी पर संगीत का कोई उत्कृष्ट चैनल क्यूँ नहीं आता जिस पर सारी संगीत विधाओं को समेटने और सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रसारित करने की काबिलियत हो ? रेडिओ वाले ऍसा क्यूँ ऐसा सोचते हैं कि हिट गानों की फेरहिस्त को दिन में दस बार बजा कर वो आम श्रोताओं के दिल में बस जाएँगे।

दरअसल फिल्म संगीत (वो भी नए) के आलावा संगीत की किसी भी अन्य विधा को रुचिकर ढंग से आम जनता तक पहुँचाने की कोशिश निजी स्तर का कोई रेडिओ और टीवी चैनल कर ही नहीं रहा है और ना ही भविष्य में ऍसी कोई योजना आ रही है। ये भारत की संगीतप्रेमी जनता के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। रेडिओ तो फ्री है पर केबल टीवी के लिए तो हम सभी इन चैनलों के लिए मासिक रूप से किराया दे रहे हैं पर ये चैनल हमारी आज की पीढ़ी को हमारी विविधतापूर्ण सांगीतिक विरासत तक पहुँचने और उसका आनंद उठाने से ही वंचित कर दे रहे हैं।

ये सिर्फ एक व्यवसायिक मामला है ऐसा भी नहीं लगता। अगर समाचार चैनलों में NDTV व्यवसायिक मजबूरियों के बावजूद भी अपना एक अलग स्थान बना सकता है तो फिर इसी तरह की पहचान बनाने में हमारे संगीत के टीवी चैनल और निजी एफ एम चैनल इतने पीछे क्यूँ हैं? ये एक ऐसा प्रश्न है जो मुझे वर्षों से कचोट रहा है। हाल ही में चंदन दास पर श्रृंखला करते समय उनको भी इसी विचार को प्रतिध्वनित करते पाया तो लगा कि ये बात चिट्ठा चर्चा के पाठकों के सामने भी रखनी चाहिए। आप सब इस बारे में क्या सोचते हैं इससे अवगत जरूर कराइएगा।

तो इस बार के चिट्ठा चर्चा की शुरुआत करते हैं साहित्य शिल्पी पर अजय यादव द्वारा कैफ़ी आज़मी पर लिखे गए लेख से। इस लेख में अजय ने क़ैफी आज़मी से जुड़ी कुछ बातों के साथ उनकी एक बेहतरीन नज़्म और उनके लिखे कुछ गीत भी पेश किए हैं। अजय लिखते हैं

१० मई, २००२ में उनकी मृत्यु के बाद उनकी बेटी शबाना आज़मी (यहाँ मुझे शबाना जी से जुड़ी एक बात याद आ गई. शबाना का जब जन्म हुआ, उस समय क़ैफ़ी साहब ज़ेल में थे और कम्युनिस्ट पार्टी नहीं चाहती थी कि ऐसी हालत में शौकत किसी बच्चे को जन्म दें. पार्टी की ओर से बाकायदा शौक़त को इस वाबत आदेश भी मिला था मगर ये उनकी ज़िद ही थी कि शबाना का जन्म हुआ और दुनिया को अदाकारी का एक अनमोल नगीना मिला.) ने अपने पति ज़ावेद अख्तर के साथ मिलकर श्रीमती शौक़त क़ैफ़ी के संस्मरणों 'यादों की रहगुज़र' पर आधारित एक नाटक 'क़ैफ़ी और मैं' का मंचन सन २००६ में देश व विदेश के कई स्थानों पर किया.
और इस बेहतरीन नज़्म की ये पंक्तियाँ देखें

एक दो भी नहीं छब्बीस दिये
एक इक करके जलाये मैंने
इक दिया नाम का खुशहाली के
उस के जलते ही यह मालूम हुआ
कितनी बदहाली है
पेट खाली है मिरा, ज़ेब मेरी खाली है
........................................................
दूर से बीवी ने झल्ला के कहा
तेल महँगा भी है, मिलता भी नहीं
क्यों दिये इतने जला रक्खे हैं
अपने घर में झरोखा न मुन्डेर
ताक़ सपनों के सजा रक्खे हैं
आया गुस्से का इक ऐसा झोंका
बुझ गये सारे दिये-

हाँ मगर एक दिया, नाम है जिसका उम्मीद
झिलमिलाता ही चला जाता है


भई वाह दिल में उतर गई ये नज़्म । नज़्म पूरी पढ़ने के लिए और गीतों को सुने यहाँ पर

हरकोना वाले रवींद्र व्यास कबाड़खाना पर मिलवा रहे हैं एक नए गायक पुष्कर लेले से, जहाँ उनकी बातचीत का विषय आज का भारतीय संगीत है। स्लमडॉग मिलयनर के संगीत के बारे में ईमानदारी से अपनी राय देते हुए पुष्कर लेले कहते हैं

स्लमडॉग मिलिनियेर का संगीत रिदम बेस्ड है। उसमें रिदम ज्यादा है, मेलड़ी कम है। इस फिल्म के लिए उन्हें ऑस्कर मिला लेकिन इसका संगीत मुझे इतना पसंद नहीं। ऑस्कर के अपने अलग मापदंड होते हैं। मुझे उनका पहले का संगीत स्लमडॉग से कई गुना बेहतर लगता है। जब से रहमान को इंटरनेशनल एक्सपोजर मिला है, उनका संगीत मेलडी से रिदम की तरफ झुका है।
ए आर रहमान के संगीत के बारे में आम संगीतप्रेमी भी यही राय रखता है। रवींद्र जी अगर आप इस पोस्ट में लेले द्वारा गाया हुआ कोई भी टुकड़ा सुनवा देते तो इस कलाकार की प्रतिभा हम तक और अच्छी तरह पहुँच पाती।

और जब आज के संगीत की बात चली है तो फिर क्यूँ ना कुछ नए एलबमों की बात की जाए। सजीव सारथी आवाज़ पर कैलाश खेर के एक नए एलबम चंदन का भीगा भीगा सा गीत सुनवा रहे हैं। सजीव लिखते हैं

दो सालों में बहुत कुछ बदल गया. कैलाश आज एक ब्रांड है हिन्दुस्तानी सूफी संगीत में, और अब वो विवाहित भी हो चुके हैं तो जाहिर है जिंदगी के बदलते आयामों के साथ साथ संगीत का रंग भी बदलेगा. एल्बम में जितने भी नए गाने हैं उनमें सूफी अंदाज़ कुछ नर्म पड़ा है, लगता है जैसे अब कैलाश नुसरत साहब के प्रभाव से हटकर अपनी खुद की ज़मीन तलाश रहे हैं ।
अब मानसून तो समय पर आया नहीं क्यूँ न हम और आप अपनेआप को कैलाश खेर की स्वरलहरियों से भिंगा लें..

तीखी तीखी सी नुकीली सी बूँदें,
बहके बहके से बादल उनिन्दें.
गीत गाती हवा में,
गुनगुनाती घटा में,
भीग गया मेरा मन...
चमके चमके ये झरनों के धारे,
तन पे मलमल सी पड़ती फुहारें,
पेड़ हैं मनचले से,
पत्ते हैं चुलबुले से,
भीग गया मेरा मन....


आज की बातें तो खूब हुई अब कुछ अतीत की तह भी तो टटोलें जनाब ! खेती बाड़ी वाले अशोक पांडे जी वाद्य यंत्र के इतिहास को ३५००० वर्ष पीछे ले गए हैं। उनकी संकलित ख़बर के अनुसार

जर्मनी में खोजकर्ताओं ने लगभग 35 हज़ार साल पुरानी बांसुरी खोज निकाली है और कहा जा रहा है कि यह दुनिया का अब तक प्राप्‍त प्राचीनतम संगीत-यंत्र है। प्रस्‍तर उपकरणों से गिद्ध की हड्डी को तराश कर बनायी गयी इस बांसुरी को दक्षिणी जर्मनी में होल फेल्स की गुफ़ाओं से निकाला गया है।
चलिए वापस आते हैं ३५००० साल पहले से करीब ४५ साल पहले के बेमिसाल प्रेम और बेवफाई से ओतप्रोत, फिल्म भीगी रात के गीत पर जिसके संगीतकार थे प्रतिभावान रौशन। इस फिल्म में था एक प्यारा सा नग्मा दिल जो ना कह सका वही राज ए दिल कहने की रात आई.. जिसे आवाज़ दी थी रफ़ी और लता जी ने दो अलग अंदाजों में
इन गीतों को सुनकर मेरे मन में तो ये खयालात उठे...

गीतकार साहिर लुधियानवी ने प्रेमिका की बेवफाई टूटे नायक के दिल में उठते मनोभावों को गीत के अलग अंतरों में व्यक्त किया हैं। नायक की दिल की पीड़ा को कभी तंज़, कभी उपहास तो कभी गहरी निराशा के स्वरों में गूँजती है और इस गूँज को मोहम्मद रफ़ी अपनी आवाज़ में इस तरह उतारते हैं कि गीत खत्म होने तक नायक का दर्द आपका हो जाता है। रफ़ी साहब का गाया गीत एक ऊंचा टेम्पो लिए हुए था वहीं मीना कुमारी पर फिल्माया ये गीत उस शांत नदी की धारा की तरह है जिसके हर सिरे से सिर्फ और सिर्फ रूमानियत का प्रवाह होता है। लता इस गीत में अपनी मीठी आवाज़ से प्रेम में आसक्त नायिका के कथ्यों में मिसरी घोलती नज़र आती हैं।
शायद आपको भी ये गीत रूमानियत से भर दें। सुन कर देखिए और बताइए।

और चलते चलते इन्हें भी एक बार सुनना ना भूलें

और जैसा कि आप सब को विदित है मशहूर पॉप गायक और स्टेज शो पर अपने मशीनी नृत्य से अचंभित करने वाले माइकल जैक्सन का गुरुवार देर रात दिल का दौरा पड़ने के कारण मात्र ५१ वर्ष की आयु में निधन हो गया। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।

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गुरुवार, जून 25, 2009

तानसेन को मिस करता देश और बोरवेल अंकल का 'साछात्कार'

हमारे देश का जनरल नालेज उद्योग बहुत बड़ा नहीं है. वैसे तो बाकी उद्योग भी क्या उखाड़ ले रहे हैं लेकिन वह एक अलग बात है. इसलिए उसपर चर्चा न करके केवल जनरल नालेज उद्योग पर ही टिके रहें तो ठीक रहेगा. अगर आप यह कहेंगे कि जनरल नालेज उद्योग बहुत बड़ा नहीं है इससे ब्लॉग-जगत का क्या लेना-देना तो मेरा सुझाव यह है कि ऐसा तो मत ही कहिये.

आखिर देश के सिकुड़े और स्टैगनेंट जनरल नालेज उद्योग को विस्तार देने का काम अपना ब्लॉग जगत ही तो कर रहा है. पहेली, कुहेली, सहेली, हथेली वगैरह बूझने का काम जितना बढ़िया अपने ब्लॉग-जगत में होता है उतना बढ़िया और कहीं नहीं हो रहा...:-) (जो निशान मिस कर जाएँ उनके लिए शब्द लिख देता हूँ, स्माईली). इलेक्ट्रॉनिक मीडिया देश के जनरल नालेज उद्योग का हाल-चाल और उसमें हो रही प्रगति का हिसाब-किताब पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी के मौसम में करता है. ऐसे में हम कैसे आशा करें कि जनरल नालेज उद्योग स्टैगनेंट नहीं रहेगा?

लेकिन अब चिंता की बात नहीं है. अब हिंदी ब्लॉग जगत इस उद्योग को मंदी के दौर से निकाल कर कहीं न कहीं पहुंचायेगा ही. (ये लीजिये, एक और स्माईली).

आज पूरे ब्लॉग जगत के सामने सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न पेश किया राज कुमार ग्वालानी जी ने. प्रश्न है, महात्मा गाँधी की माँ का क्या नाम है?

उनके ब्लॉग पर आने से पहले यह प्रश्न उनके अखबार के सम्पादक जी की पहल पर उनके शहर के प्रोफेसरगण से पूछा गया था. और नतीजा जो हुआ उसके बारे में खुद उन्ही से सुनिए;

"छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के जिस समाचार पत्र दैनिक हरिभूमि में हम काम करते हैं, कुछ समय पहले उसके संपादक की पहल पर राजधानी के कॉलेजों के प्रोफेसरों के साथ शिक्षा विभाग से जुड़े लोगों के अलावा और कई विभागों के अफसरों से एक सवाल किया गया था कि महात्मा गांधी की मां का नाम क्या है? अफसोस 99 प्रतिशत लोगों को यह मालूम ही नहीं है कि महात्मा गांधी की मां का नाम क्या है। एक प्रोफेसर ने काफी संकोच के साथ उनका नाम बताया था जो कि सही था।"

एक प्रोफेसर साहब ही बता पाए. वो भी संकोच के साथ. जैसे कह रहे हों; "उत्तर के साथ संकोच फ्री..फ्री..फ्री.."

भाई जब जवाब मालूम ही है तो इसमें संकोच कैसा? जवाब दे डालिए. लेकिन यह बात तो हम कलकत्ते में, सॉरी कोलकाता में बैठे-बैठे कह रहे हैं. हो सकता है उन प्रोफेसर साहेब के हेड ऑफ़ द डिपार्टमेंट सही जवाब न दे पाएं हों. हो सकता है कालेज के प्रिंसिपल साहेब सही जवाब न दे पाए हों. ऐसे में प्रोफेसर साहेब का संकोच करना स्वाभाविक है.

लेकिन यहाँ मामला केवल कालेज के हेड ऑफ़ द डिपार्टमेंट और प्रिंसिपल साहेब तक ही सीमित नहीं है. आखिर और भी विभागों के लोगों से भी तो पूछ-ताछ हुई. हो सकता है पूछ-ताछ के रेंज में कोई दरोगा जी आ गए हों जिन्हें सवाल का जवाब न मालूम हो. ऐसे में प्रोफेसर साहेब अगर संकोच के साथ जवाब न दें तो कहीं दरोगा जी उन्हें 'देख लेने वालीं आँखें' न तरेर बैठें.

खैर, इस सवाल का जवाब देने के लिए तमाम टिप्पणीदाता तैयार थे. कुछ ने जवाब दे दिया. कुछ ने इशारों में जवाब दिया. कुछ ने ऐसे प्रश्न गढे, जिनमें जवाब समाहित था. अनूप जी ने भी ऐसा ही कुछ किया. उन्होंने सुझाव देते हुए लिखा;

"मुन्नाभाई एमबीबीएस से पूछिये वो अपनी पुतली नचाते हुये फ़ट से जबाब दे देगा।"

मतलब यह कि गाँधी जी तक जाने वाला हर रास्ता अब मुन्ना भाई से होकर ही गुजरेगा.

राजकुमार जी की पोस्ट जितनी बड़ी है उससे बड़ी तो उसपर चर्चा हो गई. आप गुस्सा मत करियेगा. आज स्टॉक मार्केट का मंथली सेटलमेंट है न. इसलिए ध्यान बीच-बीच में उधर चला जा रहा है. प्रोफेशन चर्चा के आड़े आ जा रहा है और हम पता नहीं क्या-क्या लिखते चले गए.

हिंद-युग्म पर अशोक गौतम जी का व्यंग पढिये. शीर्षक है; "रिटायरमेंट, कुत्ता और मोर्निंग वाक."

अशोक जी के व्यंग का एक अंश पढिये. वे लिखते हैं;

"अब कुत्ता और मैं अरली इन द मार्निंग घूमने निकल जाते हैं। घर की किच-किच से भी बचा रहता हूं। स्वास्थ्य लाभ इस उम्र में मुझे तो क्या होगा, पर चलो कुत्ते को अगर हो रहा है तो ये भी क्या कम है।"

रिटायरमेंट के बाद किन-किन चीजों के प्रति मोह होता है? या नहीं होता है?

एक तरफ तो कुत्ते को स्वास्थलाभ होने से हर्षित होने वाले ये सज्जन हैं और दूसरी तरफ इन सज्जन के पुलिसिया पड़ोसी जी हैं. वे क्या सोचते और कहते हैं, वो भी पढिये;

"सरकारी नौकरी में भी अगर मौज के लाले पड़ें तो लानत है ऐसी सरकारी नौकरी को। रिश्वत के बिना इस देश में किसी का गुजारा हुआ है क्या? चोर-उचक्के आज तक पकड़ में आए हैं क्या! बदनामी से बचने के लिए शरीफ ही पकड़ने पड़ते हैं। अब एक और आदेश कि हम मानवता का पाठ पढ़ें। मानव हों तो मानवता का पाठ पढ़ें। हम तो साले अभी आदमी भी नहीं हो पाए। ये उम्र है अपनी क्या पढ़ने की?"

बढ़िया पोस्ट है. ज़रूर पढें.

क्या कहा? मैंने पूरा नहीं छापा तो कैसे पढेंगे? वो देखिये...अरे वो ऊपर. अरे जहाँ इस लेख का शीर्षक लिखा हुआ है. उसपर क्लिकियाईये, सोझा लेख पर पहुँच जायेंगे. डायरेक्ट.

२३ मई के अखबार में सूचना थी कि मानसून के बादल पश्चिम बंगाल के ऊपर मंडरा रहे हैं. एक महिना हो गया. बादल कब मंडराए और गायब हो गए पता ही नहीं चला. उधर मध्य प्रदेश में भी यही हाल है. दिल्ली में पॉवर वाले लोग रहते हैं लेकिन वे बेचारे भी अभी तक मानसून नहीं ला सके.

लगभग पूरे देश की अवस्था एक सी है. लगता है जैसे पूरा देश रेलवे के वेटिंग रूम में कनवर्ट हो चुका है. ऊपर निहारते, ताकते सब यही पूछ रहे हैं; "कब आओगे? कब आओगे? बताते क्यों नहीं कब आओगे?"

देश तानसेन को बहुत मिस कर रहा है. सुना है राग मेघ-मल्हार गाते थे तो बरसात हो जाती थी. अच्छा चलिए माना कि तानसेन नहीं हैं. लेकिन क्या राग मेघ-मल्हार भी नहीं है? वो तो है ही. लेकिन लगता है सारे गाने वाले विदेश में कंसर्ट वगैरह दे रहे हैं. शास्त्रीय संगीत और गायन तो आजकल उधर ही सुना जाता है.

शायद ऐसा ही है. शास्त्रीय गायक सब विदेशों में हैं. इसीलिए कल ही टीवी पर देखा कि इंदौर के युवा हाथों में गिटार लिए पॉप म्यूजिक के गाने गा रहे थे. "अब के सावन ऐसे बरसे, बह जाए वो मेरी चुनर से" टाइप गाने. उससे भी कुछ नहीं हुआ तो अब जाकर कवि ने मैदान संभाला है.

जी हाँ, आज विवेक सिंह जी ने मानसून को शिकायत भेजते हुए कविता लिखी है. कविता का शीर्षक है; "मेरे प्यारे मानसून".

विवेक लिखते हैं;

पलक पाँवड़े बिछा रखे थे, इन आँखों में नींद न थी ।
आते आते रुक जाओगे, ऐसी तो उम्मीद न थी ॥

कवि को अधिकार है कि वह कुछ भी बिछा सकता है. किसी को बैठाने के लिए जहाँ बाकी के लोग बिस्तर, खटिया और चटाई वगैरह बिछाने की सोचते हैं, वहीँ कवि पलक-पाँवड़े बिछाकर काम चला लेता है. लेकिन एक बात मुझे भी कहनी है.

विवेक की कविता की पहली लाइन में कौन सा अलंकार है, इसपर तो साहित्य के ज्ञाता प्रकाश डालेंगे लेकिन स्टॉक मार्केट में काम करने वाला मैं तो यही न पूछूंगा कि जब "पलक-पाँवड़े बंद करने की बजाय बिछा दोगे तो नींद कैसे आएगी? ये बिछाने के बाद नींद न आने की शिकायत क्यों?"...( डिस्क्लेमर: स्माईली लगा हुआ है.)

खैर, विवेक आगे लिखते हैं;

"यूँ तो पानी मुझमें भी है, यह भी देन तुम्हारी है ।
तुम इतना तो मानो जनता, मेरी नहीं हमारी है ॥
छोड़ा साथ अचानक तुमने, पहले से ताकीद न थी ।
आते-आते रुक जाओगे ऐसी तो उम्मीद न थी ॥"

मुझे पूरा विश्वास है कि कवि का अनुरोध और शिकायत, मानसून दोनों सुनेगा और आ जाएगा. शंका एक ही है, (आज तक पूरा-पूरा माने हंड्रेड परसेंट विश्वास किसी बात पर नहीं हुआ) और वह ये कि तानसेन के गाने से बरसात आती थी. मानसून नहीं. ऐसे में विवेक की कविता सुनकर मानसून आ सकता है लेकिन क्या साथ में बरसात भी आएगी?

खैर, विवेक ने कविता लिख दी है. अब तो जो होगा देखा जाएगा. (फुरसतिया शुकुल से उधार लिया गया वाक्य)

ट्वेंटी-ट्वेंटी विश्व कप में भारतीय टीम हार गई. क्रिकेट प्रेमी हलकान हुए. कोई नई बात नहीं है. बेचारे हर दो-चार महीने में हलकान हो लेते हैं. लेकिन क्रिकेट विश्व कप में भारत के प्रदर्शन के बारे में अगर राग दरबारी के पात्र चर्चा करेंगे तो वह कैसी होगी?

इसका एक नज़ारा मिला कृष्ण मोहन मिश्र के लेख में. राग दरबारी के भक्तगण इस लेख को ज़रूर पढें. बहुत लाजवाब लेख है. एक अंश देखिये..सॉरी पढिये;

"प्रिंसिपल साहब को शनीचर ठंडई गिलास में न देकर लोटे में पिलाया करता है । दो लोटा ठंडई पीकर प्रिंसिपल साहब वैसे ही काबू में नहीं थे । गुस्से, जोश और भंग के नशे में वो अधिकतर अपनी मादरे ज़बान अवधी का ही प्रयोग करते थे । बोले ”काहे नहीं रूप्पन बाबू, इन अंगरेज ससुरन के बुद्धि तो गांधी महात्मा गुल्ली-डंडा खिलाये खिलाये के भ्रष्ट कइ दिये रहिन । अब इ सारे का खेलहीं किरकेट-उरकेट । बांड़ी बिस्तुइया बाघन से नजारा मारे ।”

इस लेख को पढ़कर न जाने कितने तृप्त हो गए. इस बात की पुष्टि समीर भाई की टिप्पणी से होती है. उन्होंने लिखा;

"गजब सन्नाट लेखन. आनन्द आ गया. बहुत बेहतरीन!!"

आजतक का रिकार्ड है. समीर भाई ने जिस लेखन को सन्नाट बता दिया है, वो लेख ब्लॉग सिनेमाघर में सप्ताह के सप्ताह चलता रहता है. इसी बात पर लीजिये ये एक और स्माईली.

आप यह लेख ज़रूर पढें. मज़ा न आया तो अगले वृहस्पतिवार को होने वाली मेरी चर्चा में टिप्पणी मत कीजियेगा.

विनीत कुमार जी ने 'संवादधर्मी टेलीविजन के जनक' एस पी सिंह की याद में होने वाली गोष्ठी की जानकारी दी है. दिल्ली में रहने वाले ब्लागर्स के लिए सूचना है.

हमारी शिकायत रहती है कि देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप नहीं हो रहा. सरकार इस बात पर अड़ी है कि वह तो इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप कर रही है. कितना डेवलपमेंट हो रहा है इसबात का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले तीन-चार साल में बोरवेल में गिरकर फंसने वाले बच्चों की संख्या में गजब का इजाफा हुआ है.

सरकार की इस बात पर ध्यान देते हुए आज सैयद फैज़ हसनैन ने आज "बोरेवेल अंकल का साछात्कार" छापा है. बोरेवेल अंकल ने एक से बढ़कर एक जवाब दिए हैं. सवाल भी एक से बढ़कर एक ही हैं.

आप यह पोस्ट ज़रूर पढें. मज़ा आएगा.

ब्लॉग-जगत की चर्चा उत्तर प्रदेश के गजरौला टाईम्स में हो रही है. उसके बावजूद हम यही कहते बरामद होते हैं कि हिंदी ब्लागिंग अपने शैशवकाल में ही है. हमें तो गर्व करना चाहिए कि प्रिंट मीडिया में चर्चा हो रही है. हिंदी ब्लागिंग को और क्या चाहिए? (यहाँ भी स्माईली लगाने की ज़रुरत है क्या? शायद नहीं. क्योंकि यह कोई मज़ाक की बात नहीं है.)

आज के लिए बस इतना ही. अगले वृहस्पतिवार को फिर आता हूँ.

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बुधवार, जून 24, 2009

बुनाई कढाई परनिंदा के माध्यम हैं


आदित्य
पाकिस्तान क्रिकेट का टी-२० वाला विश्वकप जीत गया। पिछले साल भी जीतते-जीतते ही हारा था। कहें कि पिछले साल की फ़िसली हुई जीत को उठाने में इत्ता समय निकल गया। हरमिंदर सिंह लिखते हैं:

भारत से पिछले ट्वेंटी20 विश्व कप में मिली शिकस्त ने पाकिस्तानियों का दिल तोड़ दिया था। इसके अलावा वहां का माहौल क्रिकेट के लिए बिगड़ता जा रहा था क्योंकि पाकिस्तान में हवाओं का रुख हमेशा खतरनाक रहा है। खौफ की आंधियां कब चल पड़ें, खून के छींटे कब गिर जाएं, कोई नहीं जानता। सियासी हलचलों ने पाकिस्तान को अजीब तरह का मुल्क बना दिया है। आतंकवाद और आतंकवादियों से जूझता मुल्क जहां की सड़कें कब छींटो से लाल हो जाएं, यह भी कोई जानता नहीं। कब लाशें बिखर जाएं और मंजर खौफनाक हो जाए, नहीं मालूम।


कुदरतनामा में मोर के बारे में जानकारी देते हुये बालसुब्रमण्यम बताते हैं:
पशु-पक्षियों में मादा की अपेक्षा नर बहुधा अधिक सुंदर होते हैं। मोर के साथ भी यही बात है। आकर्षक रंग, लंबी पूंछ, माथे पर राजमुकुट सी बड़ी कलगी आदि सारी व्यवस्थाएं नरों तक सीमित हैं। मोरनी में सुंदरता के अभाव का एक जबरदस्त प्राकृतिक कारण है। खूबसूरती और आकर्षण के अभाव में वह आसानी से नहीं दिखती है। इस तरह अंडा सेते समय वह दुश्मन की नजर से बची रहती है।


यादों की खूंटी पर टंगा पजामा !!! यादों का पिटारा है रंजनाजी। वे लिखती हैं:
  • दो सप्ताह के अथक परिश्रम के बाद मुझसे किसी तरह हल्का फुल्का हाथ पैर तो हिलवा लिए गुरूजी ने पर जैसे ही आँखों तथा गर्दन की मुद्राओं की बारी आई ,उनके झटके देख मेरी ऐसी हंसी छूटती कि उन्हें दुहराने के हाल में ही मैं नहीं बचती थी.. गुरूजी बेचारे माथा पीटकर रह जाते थे...

  • माँ जितना ही अधिक मुझमे स्त्रियोचित गुण देखना चाहती थी,मुझे उससे उतनी ही वितृष्णा होती थी.पता नहीं कैसे मेरे दिमाग में यह बात घर कर गयी कि बुनाई कढाई कला नहीं बल्कि परनिंदा के माध्यम हैं

  • अब हम भाई बहन चल निकले लंगोट अभियान में..माताजी के बक्से से उनके एक पेटीकोट का कपडा हमने उड़ा लिया

  • फटाफट कपडे को काटा गया और सिलकर आधे घंटे के अन्दर खूबसूरत लंगोट तैयार कर लिया गया...मेरे जीवन की यह सबसे बड़ी सफलता थी..

  • जो भी हो... वह पजामा आज भे हमारी यादों की खूंटी पर वैसे ही लटका पड़ा है,जिसे देख हम भाई बहन आज भी उतना ही हंसा करते हैं.



  • आपको समसामयिक कार्टून देखने हैं तो मनोज शर्मा की निगाह से देखिये।

    एक लाईना




    1. सौ दिन
      जाने वो कैसा चोर था, दुपट्टा चुरा लिया :शायद पिको करा के ही वापस करेगा

    2. कुछ यूं हुआ:परिंदों का झुण्ड राइफ़ल की नली पर बैठा मुआ

    3. जींस-टाप, फ़ादर्स-डे और टिप्पणी-चिंतन:
      जो मांगोगे वही मिलेगा

    4. ब्लॉग्गिंग के खतरे: भाग ५ :वर्ना भाग ६ दौड़ा लेगा

    5. इंतज़ार एक ठण्ड है : मुलाकात का हीटर जलाओ

    6. यादों की खूंटी पर टंगा पजामा !!! :आज तलक फ़ड़फ़ड़ा रहा है नाड़े समेत
    7. हिन्दी ब्लॉग जगत की भटकती आत्माएं ! : अरविन्द मिश्र के ब्लाग पर कब्जे की फ़िराक में हैं

    8. कौन हैं ये अज्ञात टिप्पणीकार!!:अरे बताओ शास्त्रीजी पूछ रहे हैं यार!!

    9. हिन्दी ब्लाग जगत: जैसे कोई बड़ा खजाना हाथ लग गया

    10. बिल्ली ने रास्ता काटा, रूके रहे: 4800 रूपये जुर्माना : बिल्ली से वसूलने का क्या उपाय है?


    11. कैबिनेट

    12. बेटे के पास कैदी की तरह रहती है एक मां... :इसके बावजूद वे उफ तक नहीं करती

    13. जंगल में नाचा मोर : ब्लाग में मच गया शोर

    14. खिल कर गमले की मिट्टियो में: मौसम को यूँ बेकाबू किया न करो

    15. दुपट्टा सँभाल के :विवेक सिंह चर्चा करने आ गये

    16. हिन्दी से गायब हो सकता है 'ष' : कट ,कापी, पेस्ट करके रख लो

    17. नो कमेन्ट प्लीज़ :नीचता की पराकाष्‍ठा है यह

    18. वैज्ञानिक चेतना के ब्लॉगर्स सलाह दें :बाबाओं के किस्से,पोल खोल के किस्से सुनायें

    19. लड़कियों को कराते और लड़कों को : तमीज

    20. भूत पिशाच निकट नहीं आवे : ब्लागर का जब नाम सुनावैं

    21. आदित्य डिसीज़न आऊट!!! : चल भाग चलें पवेलियन की ओर

    22. सपनो की है दुनिया मेरी : मेरी आँखों से देखो जरा


    और अंत में

  • ब्लाग जगत में चल रही ड्रेस कोड की बहसों को देखते हुये सरकार ने एलान कर दिया इस तरह की कोई पाबंदी नहीं लगेगी। विश्वविद्यालय में छात्र-छात्रायें अपने मन-माफ़िक वस्त्र धारण करें।

  • आज रवीश कुमार ने कामिक वर्ल्ड का जिक्र किया है।

  • ज्ञानजी की पोस्ट का जिक्र हम जानबूझकर नहीं कर रहे हैं। करेंगे तो रचनाजी कहेंगी कि मुझको इनके अलावा और कोई दिखता नहीं।

  • विवेक सिंह का दुबारा चर्चारत होना हमारे लिये खुशी और सुकून की बात है। मीनाक्षीजी आज भी व्यस्त और नेट से दूर थीं इसलिये हमको चर्चा करनी पड़ी। जैसी बन पड़ी, करके पोस्ट कर रहे हैं और मना रहे हैं कि भगवान किसी भी चर्चाकार को नेट से दूर न करें।

  • फ़िलहाल इतना ही। आप मस्त रहें। आज वुद्ध है, मन से शुद्ध रहें। बकिया जो होगा देखा जायेगा।
    ऊपर की फ़ोटॊ आदित्य की है।


    आज की तस्वीर



    मोर
    बालसुब्रमण्यम जी के ब्लाग से

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    मंगलवार, जून 23, 2009

    दुपट्टा सँभाल के

    नमस्कार ! मंगलवाली चिट्ठाचर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है .

    आज चहुँओर से दु:खद खबरें सुनने को मिल रही हैं . सुबह जब से ब्लॉग्स पढ़ रहा हूँ, जिया बेचैन हुआ जाए है . पता चला है कि शिवकुमार मिश्र जी के घर से
    दुपट्टा चोरी होगया है . हालाँकि पुलिस से लेकर इतिहासकार तक से सम्पर्क साधा गया है पर चोर भी दुपट्टा विशेषज्ञ साबित हुआ है .

    उधर अरविन्द मिश्रा जी भी दु:ख की खबर दे रहे हैं .

    आज फिर यहाँ के चोलापुर क्षेत्र में एक बच्चे की सर्पदंश से अकाल मौत हो गयी !
    सुल्तानीपुर (चोलापुर ) निवासी दस वर्षीय प्रदीप शनिवार की शाम बाग़ में खेल रहा था
    -सर्प दंश का शिकार हुआ ,मंडलीय अस्पताल में भर्ती कराये जाने के बावजूद नही बच सका ! जैसा कि जिला प्रशासन ने वादा कर रखा है कि इस तरह की मौतों की जिम्मेदारी तय की जायेगी -देखिये क्या होता है !
    पर अनजाने में ही उन्होनें एक ऐसे युवक की प्रतिभा को सामने ला दिया है जो १०० मीटर की फ़र्राटा रेस को पाँच सेकण्ड से भी कम समय में पूरा कर सकता था . पर अफ़सोस उसे उचित मंच नहीं मिला

    . युवक ने कहा कि तुंरत बच्चे को लेकर ब्लाक पर पहुँचो और वह वहां सायकिल से खुद पहुँच रहा है ! तब आवागमन के साधन उतने अच्छे नहीं थे ! पगडंडियों के सहारे युवक ने डेढ़ मील का रास्ता उस दिन २ मिनट में पूरा कर लिया जिसे पहले वह ५-१० मिनट में पूरा करता था !

    उड़नतशतरी पर भी मातम पसरा हुआ है . लोगों को इमोशनल किया जा रहा है .


    पता चला कि दफ्तर की महिला सहकर्मी का पति गुजर गया. बहुत अफसोस हुआ. गये उसकी डेस्क तक. खाली उदास डेस्क देखकर मन खराब सा हो गया. यहीं तो वो चहकती हुई हमेशा बैठे रहती थी. यादों का भी खूब है, तुरन्त चली आती हैं जाने क्या क्या साथ पोटली में लादे. उसकी खनखनाती हँसी ही लगी गुँजने कानों में बेवक्त. आसपास की डेस्कों पर उसकी अन्य करीबी सहकर्मिणियाँ अब भी पूरे जोश खरोश के साथ सजी बजी बैठी थी. न जाने क्या खुसुर पुसुर कर रहीं थी. लड़कियों की बात सुनना हमारे यहाँ बुरा लगाते हैं, इसलिए बिना सुने चले आये अपनी जगह पर. हालांकि मन तो बहुत था कि देखें, क्या बात कर रही हैं?
    इस पर कुश कहते हैं कि अनूप जी डण्डा लेकर आते ही होंगे . अनूप जी आये या नहीं ये बहस का मुद्दा नहीं .
    डॉ. अनुराग के दिल का हाल भी अच्छ नहीं . वहाँ भी मातम है . शोक है .

    ..मंत्रो के उच्चारण के बीच तेरहवी की रस्म जारी है ...जोशी जी धोती पहनकर पंडित जी के साथ बैठे है...ऊपर कंधे पे सफ़ेद चादर .....पीछे सफ़ेद शामियाने पे उनके पिता की तस्वीर लटकी है ....एक ओर खाने का इंतजाम है ..कोई साहब लगातार दौड़ भाग कर रहे है.....सभी इंतजामात देखते..नंगे पैर सफ़ेद कुरते पजामे में .हाथ में काला मोबाइल ..उन्हें देख डायरेक्टर साहब कुछ बुदबुदाये है ...जिसका कुछ अपरिहार्य कारणों से मूल अनुवाद नहीं दे सकता .लिप मूवमेन्ट से अलबत्ता आप आईडिया लगा सकते है.....
    ईश्वर जाने वालों को शान्ति दे . आइए मातम से निकलें . ज्ञान जी निकालेंगे हमें मातम से . अपने श्वसुर जी के बारे में बताते हैं :

    असल में एक व्यक्ति के पर्यावरण को योगदान को इससे आंका जाना चाहिये कि उसने अपने जीवन में कितने स्टोमैटा कोशिकाओं को पनपाया। बढ़ती कार्बन डाइ आक्साइड के जमाने में पेड़ पौधों की पत्तियों के पृष्ठ भाग में पाये जाने वाली यह कोशिकायें बहुत महत्वपूर्ण हैं। और पण्डित शिवानन्द दुबे अपने आने वाली पीढ़ियों के लिये भी पुण्य दे गये हैं।
    वे नहीं हैं। उनके गये एक दशक से ऊपर हो गया। पर ये वृक्ष उनके हरे भरे हस्ताक्षर हैं!
    क्या वे पर्यावरणवादी थे? हां, अपनी तरह के!
    पर्यावरण की बात चली तो एक और पाण्डेय यानी अशोक जी का लेख विचारणीय है . उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग की गम्भीरता को उजागर करने का प्रयास किया है . और आशा है जो लोग भी इसे पढेंगे वे प्रभावित हुए बिना न रह सकेंगे .

    जैसा कि नाम से ही स्‍पष्‍ट है ग्‍लोबल वार्मिंग या भूमंडलीय उष्‍मीकरण धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी को कहते हैं, जिसके फलस्‍वरूप जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। ऐसा धरती के वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों का घनत्‍व बढ़ने, ओजोन परत में छेद होने और वन व वृक्षों की कटाई की वजह से हो रहा है।
    भारत में तो जलवायु परिवर्तन की विभीषिका शुरू भी हो गयी है और मुझे इस बात
    में तनिक भी संदेह नहीं कि इसकी सबसे अधिक पीड़ा हम भारतीय ही भोगने जा रहे हैं। एक अरब से अधिक की आबादी वाले जिस देश में अधिकांश लोगों के लिए रोटी, कपड़ा और मकान आज भी समस्‍या है, आग उगलती धरती के स्‍वाभाविक शिकार वही लोग होंगे। हमारी दृढ़ मान्‍यता है कि प्रकृति अपना न्‍याय जरूरी करती है। भारतवासियों को बगानों, वृक्षों व ताल-तलैयों को नष्‍ट करने की कीमत धरती की आग में जलकर चुकानी होगी। मानसून में विलंब होने भर से पेयजल और सिंचाई के लिए यहां किस तरह हाहाकार मच गया है, यह गौर करने की बात है।
    खबर मिली है कि :

    पाकिस्तानी फौजों ने पकड़े गए तालिबानों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करने की ठान ली है। इन तालिबानों को कश्मीर घाटी का रास्ता पाकिस्तान पहले ही दिखा चुका है और अब एक बड़े तालिबानी कमांडर के हवाले से कहा गया है कि भारत तालिबान की आर्थिक मदद कर रहा है।

    सुरेश चिपलूणकर आज आतंकवाद पर उबल रहे हैं और व्यवस्था पर बरस रहे हैं . कॉपी नहीं हो पा रहा है कृपया वहीं जाकर पढ़ें .

    मोहल्ले में पर आज टॉफ़ियाँ बाँटी जा रही हैं . हमारी सलाह है कि आप जरूर जाकर ले लें . अलबत्ता जो लोग मोहल्ले में नहीं जाते उनके लिए टॉफ़ी वितरण की व्यवस्था मोहल्ले से बाहर भी की गई है .
    आप चाहें तो नीरज जाट को सौवीं पोस्ट की बधाई दे सकते हैं . अब ब्लॉगिंग करने में कोई खतरे वाली बात नहीं क्योंकि अभिषेक ओझा की श्रंखला ब्लॉगिंग के खतरे अब नहीं रही ! बेधड़क ब्लॉगिंग करिए अब . चाहें तो टिप्पणी भी कर सकते हैं कोई जबरदस्ती नहीं है ! क्योंकि हम डॉन थोड़े ही हैं जो जबरदस्ती करें !
    ये डॉन का किस्सा भी कॉपी की सुविधा बन्द होने के कारण यहाँ प्रस्तुत न हो सका कृपया वहीं जाकर पढ़ लें .
    लगता है ये कॉपी सुविधा हम जैसे सीधे सच्चे लोगों को परेशान करने के लिए ही बन्द करते हैं लोग . चोर तो अपना काम किसी तरह निकाल ही लेते हैं .
    माउस परेशान कर रहा है . आज इतना ही !

    चलते-चलते :
    घुम-घूमकर जाट ने, लिख दी सौवीं पोस्ट .
    अब इसके सिर चढ़ गया, दो सौवीं का घोस्ट .
    दो सौवीं का घोस्ट, जाट अब कित जाएगा .
    देखें कब तक डबल सेन्च्युरी कर पायेगा .
    विवेक सिंह यों कहें, जाट दिल्ली में घूमै .
    मेट्रो में नित रहै, ब्लॉग लिख लिखकै झूमै .

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    सोमवार, जून 22, 2009

    पिताओं के दिन भी बहुरे


    सायना
    कल पितृ दिवस पर था। पिताओं के दिन भी बहुरे। ढेर पोस्टें पिता लोगों के उप्पर लिख दी गयीं। आदित्य ने तो अपने पिता से गाना भी गवा लिया- तुझे सूरज कहूं या चन्दा। हिन्दयुग्म ने इस मौके पर कविता-आयोजन किया और कई कवियों की कवितायें पोस्ट कीं। मुकेश कुमार तिवारी पिता को याद करते हुये कहते हैं:
    वो,
    शख्स जो मुझे बात बात पर
    डाँटता था
    या मेरी शैतानियों से तंग आकर
    कभी मारता भी था
    वो,
    कभी अच्छे मूड़ में हो तो
    घुमानए भी ले जाता था
    यदि तनख्वाह के बाद घर लौटा है
    तो कुछ भी मांग लो ना नही कहता था

    संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी लिखते हैं:
    पिता को कितना था रूलाया?
    पिता बनकर समझ आया।

    अम्बरीश श्रीवस्तव पिता को याद करते हुये कहते हैं:
    घंटों पापा मुझे खिलाते
    मुझको अपनी गोद उठाते
    मेरा सारा काम निबटाते
    लोरी तक वो मुझे सुनाते

    सजीवन मयंक अपने बाबूजी को याद करते हुये बताते हैं:
    बाबूजी ने दिया सहारा तब तो मैं चलना सीखा ।
    अगर कभी मैं गिरा उठाने झट से आये बाबूजी ।।
    कम पैसों में घर का खर्चा अम्मा कैसे ढोती है ।
    तीस बरस हो गए अभी तक समझ न पाये बाबूजी ।।


    काजल कार्टून
    आकांक्षा पितृ दिवस के बारे में जानकारी देती हुई लिखती हैं:
    माना जाता है कि फादर्स डे सर्वप्रथम 19 जून 1910 को वाशिंगटन में मनाया गया। इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है- सोनेरा डोड की। सोनेरा डोड जब नन्हीं सी थी, तभी उनकी माँ का देहांत हो गया। पिता विलियम स्मार्ट ने सोनेरो के जीवन में माँ की कमी नहीं महसूस होने दी और उसे माँ का भी प्यार दिया। एक दिन यूँ ही सोनेरा के दिल में ख्याल आया कि आखिर एक दिन पिता के नाम क्यों नहीं हो सकता? ....इस तरह 19 जून 1910 को पहली बार फादर्स डे मनाया गया।
    अरविन्द मिश्र ने अपने पिताजी को याद करते हुये उनकी ही कविता पोस्ट की।

    युनुस ने पिता पर केन्द्रित कुछ कवितायें पोस्ट की हैं। बोधिसत्व अपने पिता को याद करते हुये लिखते हैं:
    पिता थोड़े दिन और जीना चाहते थे
    वे हर मिलने वाले से कहते
    बहुत नहीं दो साल तीन साल और मिल जाता बस!

    वे जिंदगी को ऐसे मांगते थे जैसे मिल सकती हो
    किराने की दुकान पर।

    धनंजय मंडल ने भी अपनी कविता के द्वारा पिताको याद किया। ज्ञानजी ने इस मौके पर श्वसुर पण्डित शिवानन्द दुबे को याद किया और लिखा :
    मेरे श्वसुर जी ने पौधे लगाये थे लगभग १५ वर्ष पहले। वे अब वृक्ष बन गये हैं। इस बार जब मैने देखा तो लगा कि वे धरती को स्वच्छ बनाने में अपना योगदान कर गये थे।
    कुछ दिन पहले नीरज रोहिल्ला ने अपने पिताजी के बारे में लिखा:
    कुछ आदतें कभी नहीं सुधरती। उन्हे कभी दफ़्तर के लिये लेट और समय से पहले घर आते नहीं देखा। अक्सर लेट ही घर आते देखा है। एक दिन बता रहे थे, बहुत से लोगों ने VRS (Voluntary Retirement Scheme) ले लिया है और इसके बदले भर्ती बिल्कुल नहीं हुयी हैं। इस पर भी जो लोग काम करते थे, उन्होने ही VRS लिया है और बाकी कम काम पर ऐश करने वाले अभी भी लगे हुये हैं, इससे सन्तुलन बिगड गया है।


    फ़ादर्स डे अवसर पर नारी ब्लॉग के सभी सदस्यों की और से सभी पिताओं को प्रणाम निवेदित किया गया।

    कल के ही दिन सायना नेहवाल(फ़ोटो ऊपर बायें) ने इंडोनेशिया ओपन सुपर सीरीज बैडमिंटन खिताब जीता! वे सुपर सीरीज जीतने वाली पहली भारतीय बनीं! कुमार सुधीर ने लिखते हैं:
    सायना नेहवाल अपने पिता और वैज्ञानिक डॉ. हरवीर सिंह के काफी क्लोज्ड हैं और उनकी यह उपलब्धि खास दिन पर आई. आज फादर्स डे है और इससे बेहतर तोहफा किसी पिता के लिए और क्या हो सकता है. सायना की उपलब्धि से गौरवांन्वित महसूस कर रहे उनके पिता हरवीर ने इसे देश के लिए विशेष क्षण करार दिया और कहा कि उन्हें अपनी बेटी पर गर्व है. हरवीर जी आप ही को क्यों, पूरे देश को सायना की इस उपलब्धि पर गर्व है!


    प्रमोदजी काफ़ी दिन बाद फ़िर सक्रिय हुये। घर में पड़े-पड़े चट चुके व्यक्ति की व्यथा-कथा बयान करते हुये लिखते हैं वे:
    जनवैया भाई लोगों से सुनते हैं बीजिंग में घर की किल्‍लत है टोकियो में आदमी घर में नहीं रहता, आदमी में घर का निवास है, मगर सच पूछिये तो मेरे लिए सब परिलोक की कथायें हैं. बीजिंग और टोकियो में अंड़सहट होगी मगर आदमी आदमी की तरह देह फैला सके की सहुलत भी ज़रूर होगी.. मैं तो पिछले चार दिनों से फंसा हुआ हूं और चाह रहा हूं घर का एक ऐसा हिस्‍सा आये जिसपर लात फेंक सकूं, लेकिन हक़ीक़त यह है, लात के रास्‍ते दूसरी चीज़ें आ जा रही हैं, घर पर फेंक सकूं ऐसा हिस्‍सा लात की रेंज में नहीं आ रहा!

    सात खसमों को खाकर हज को चली की तरह हरामख़ोर के पीछे पक रहा हूं, खौलते तेल में पका सकूं ऐसी मेरी किस्‍मत नहीं सज रही.


    कनाडा में हुई एक गमी के किस्से सुना रहे हैं समीरजी! आप भी सुनिये और दो देशों की निधनोपरान्त क्रियाविधियों की तुलना कीजिये और संगीतापुरी की तरह पूछिये:
    पढकर सोंचने को मजबूर हो गयी .. क्‍या सचमुच भारत और कनाडा के लोगों के व्‍यवहार में इतना अंतर है .. या आप बढा चढाकर पेश कर रहे हैं ?



    अभिषेक तिवारीकार्टून

    सिद्धार्थत्रिपाठी के.एम.कीथ के हवाले से व्यवहार और सत्यनिष्ठा दिग्दर्शक सिद्धान्त बताते हैं:
  • लोगों को मदद की जरूरत होती तो है लेकिन यदि आप मदद करने जाय तो वे आपके प्रति बुरा बर्ताव कर सकते हैं। फिर भी आप मदद करते रहें।

  • यदि आप किसी की भलाई करने जाते हैं तो लोग इसमें आपकी स्वार्थपरता का आरोप लगा सकते हैं। फिर भी आप भलाई करते रहें।

  • आप आज जो नेक काम कर रहे हैं वह कल भुला दिया जाएगा। फिर भी आप नेकी करते रहें।

  • यदि आप सफलता अर्जित करते हैं तो आपको नकली दोस्त और असली दुश्मन मिलते रहेंगे। फिर भी सफलता प्राप्त करते रहें।

  • ईमानदारी और स्पष्टवादिता आपको संकट में डाल देती है। फिर भी आप ईमानदार और स्पष्टवादी बने रहें।

  • आप यदि दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ अर्पित कर दें तो भी आपको घोर निराशा हाथ लग सकती है। फिर भी अपना सर्वश्रेष्ठ अर्पित करते रहें।


  • जीतेन्द्र चौधरी बचपन की खुराफ़ातों में एक बार फ़िर से डूब गये हैं:
    ये शौंक भी अजीब था। कंचे खरीदने और जीतने का जुनून इस कदर सवार था कि समय का पता ही नही चलता था। कंचे भी अलग अलग साइजों मे आते थे, टिइयां, सफेदा, डम्पोला और ना जाने क्या क्या देसी नाम रखे गए थे। अक्सर कोई एक कंचा लकी कंचा हुआ करता था। लेकिन अजीब बात ये थी कि ये लकी कंचा रोज बदल जाता था। गर्मिया शुरु होते ही इस शौंक को पर लग जाते। हम अपनी झोले जैसी निक्कर, बहती नाक के साथ कंचे खेलने निकल पड़ते। कभी कभी तो हम बहुत कन्फ़्यूज हो जाया करते थे, खिसकती निक्कर सम्भालें की बहती नाक। अक्सर जीत नाक की होती थी, निक्कर का क्या है खिसकती है तो खिसकती रहे। इस खेल मे लड़ाई बहुत होती थी, क्योंकि अक्सर लोग बेईमानी पर उतर आते थे। हाथापाई तो बहुत कॉमन बात हुआ करती थी। हमने इस शौंक के द्वारा अपना जुकाम सभी साथी खिलाड़ियों को ट्रांसफर किया था।


    एक लाईना



      काजल कार्टून
    1. क्या होगा ब्लॉग लिखकर ? : जो होगा देखा जायेगा

    2. बचपन के खुराफ़ाती शौक:अब फ़िर शुरू हो गये

    3. अश्लीलता पर सरकारी फंदा : इस पोस्ट के बाद हट जायेगा

    4. मन गीला नहीं होता :अपना ड्रायर सिस्टम झकास है

    5. ये कैसे डाक्टर हैं भाई? :अब हम का बताई?

    6. एक रुपये की ही तो बात है...:इत्ते में महीने का खाना हो जायेगा

    7. इस तरह तो एक - दो माह में सभी ब्लॉग बंद हो जायेंगे:फ़िर से खुल जायेंगे

    8. कोई जीते ना जीते.. पाकिस्तान नहीं जीतना चाहिए ! :लेकिन अब तो जीत गया पाकिस्तान

    9. नाच रहे हैं देखो मोर --: बादल छाये हैं घनघोर

    10. संसार का सबसे ऊंचा जीव जिराफ :बालसुब्रमण्यम की पोस्ट में बरामद

    11. उस खत को पढ़ लेने के बाद : डायरी में रख लिया गया


    मेरी पसन्द


    आंखों में फिर तिर आये वे यादों की पुस्तक के पन्ने
    बुदकी फ़िसली सरकंडे की कलमों से बनती थी अक्षर
    प से होता पत्र, जिसे था लिखना चाहा मैने तुमको
    जीवन की तख्ती पर जिसके शब्द रह गये किन्तु बिखर कर

    शायद कल इक किरण हाथ में आकर मेरे कलम बन सके
    सपना है ये, और तुम्हें मैं वह अनलिखा पत्र लिख डालूँ

    फिर उभरे स्मॄति के पाटल पर धुंधले रेखाचित्र अचानक
    सौगंधों के धागे कि्तने जुड़ते जुड़ते थे बिखराये
    पूजा की थाली का दीपक था रह गया बिना ज्योति के
    और मंत्र वे जो अधरों तक आये लेकिन गूँज न पाये

    शायद पथ में उड़ी धूल में लिपटा हो कोई सन्देसा
    सपना है ये, और बुझा मैं दीपक फिर वह आज जला लूँ

    राकेश खण्डेलवाल

    और अंत में


    कोई मेहनती अनामी ब्लागर अपना पसीना बहा रहा है द्विवेदीजी द्वारा अरुण अरोरा को दी गयी सलाह के अंश तमाम ब्लागों में टिपिया के। अनामी ब्लागर अपना नाम Dinesh लिखता है और यह अंश टीपता है:
    आप का यह आलेख व्यंग्य भी नहीं है, आलोचना है, जो तथ्य परक नहीं। यह साईबर कैफ़े समुदाय के प्रति अपमानकारक भी है। मैं अपने व्यक्तिगत जीवन में बहुत लोगों को परेशान होते देख चुका हूँ। प्रभाष जोशी पिछले साल तक कोटा पेशियों पर आते रहे, करीब दस साल तक। पर वे व्यवसायिक पत्रकार हैं। उन्हें आय की या खर्चे की कोई परेशानी नहीं हुई। मामला आपसी राजीनामे से निपटा। मुझे लगा कि आप यह लक्जरी नहीं भुगत सकते।
    अधिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ।

    इस बात का जिक्र भारतीय नागरिक ने अपने ब्लाग में विस्तार से किया है।

    अब इस तरह की बचपने वाली हरकतों के लिये उस अनाम ब्लागर को क्या कहा जाये। आप ही बतायें।

    फ़िलहाल इत्ता ही। आपका हफ़्ता मंगलमय शुरू हो। शानदार गुजरे। मस्त-टिचन्न!

    आज की तस्वीर



    मोर

    रजियाजी की पोस्ट से साभार

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