गुरुवार, फ़रवरी 28, 2008

सात हिन्दुस्तानियों के ताज़े चिट्ठे

आवारा जानवर तेरे नाम अपनी कोमल कृतियाँ रचित कर रहे हैं, उम्मीद है और भी आएँगी, और गुंटकल, आन्ध्र प्रदेश से युग मानस वाले जय शंकर बाबु बता रहे हैं दक्षिण भारत में हिन्दी के फैलाव के बारे में।

राजकपूर ने बरसों पहले कहा था कि वह आवारा हैं, अब मिहिर कह रहे हैं कि मिथ्या, मिथ्या है और इसी लिए उसे देखना भी चाहिए। मनीष ओझा जी ने भी शुरुआत कर दी है, और अक्षय दीक्षित जी ने - नाम पसन्द आया - दो दो क्ष - तारामण्डलों को बारे में जानकारी दी है। देशराज सीर्सवाल नियामक का अर्थ बता रहे हैं, और रामनिरंजन गोयनका जी ठाकरे जी से सवाल पूछ रहे हैं

इन सात चिट्ठों में से सातों के सातों मैंने आज के पहले नहीं देखे थे।

यानी मुझे मिले 0/7।

आपको कितने मिले?

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बुधवार, फ़रवरी 27, 2008

कुछ चर्चीले चिट्ठों की चर्चीली चिट्ठियाँ

ठेले पे हिमालय ने कोसा भगवान बनाने वाले इंसान को, और ठेलों की चर्चा और जगह भी हो रही है, कचुमर रायते की भी। तनुश्री जी इ की मात्रा उल्टी लगा रही हैं पर मैनेजमेंट के फ़ंडे हिन्दिया जी दे रहे हैं, और मिस्टर मिस्टीरियस शिव पुराण बाँच रहे हैं। और अभी मेरे बॉस ने बुला लिया, फिर बात करते हैं!

आ गया वापस, गताङ्क से आगे -

खुला चिट्ठा पता नहीं कब से खुला है, पर अभी तक गाली गलौज शुरू क्यों नहीं हुई, समझ नहीं आया। न सही, जीवन प्रभात ही सही। थोड़े अश्रु बहाएँ, और फिर कुछ क़ानून बाँचने मावलङ्कर हॉल पहुँचें, और विट्ठल प्रसाद जी की सत्यकथा पढ़ें, जिसमें, यीशु जी का अहम किरदार है। और कैसे भूलें मीडिया कॉलेज वालों को, आखिर कोमल कवियों के बाद सबसे बड़े लिखाड़ तो वही हैं न, भले ही सबसे लोकप्रिय न हों, न न नाराज़ न होना!

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मंगलवार, फ़रवरी 26, 2008

लगता है रोशनी पर सर्विस टैक्स लग गया है

कल की चर्चा में केवल सच ने बार-बार टिपिया के चित्र का लिंक ठीक ही करवा लिया। अभी भी उनका सच-हठ बना हुआ है कि नाम के नीचे बेजी का लिंक देते अच्छा रहता शायद!हम यही कहते हैं कि वे देख लेते तो और अच्छा लगता काहे से नीचे जहां डा.बेजी लिखा है वहां उस पोस्ट का लिंक दिया है जिससे कविता ली गयी है।

ब्लागमास्टर की जायज शिकायत दूर कर दी गयी और उनकी पोस्ट का लिंक दे दिया गया है।

काकेश का आरोप है और वह सही भी है कि पहली बात तो यह कि हमारा और चिट्ठा चर्चा का 36 का आंकड़ा है. जब हम रोज लिखते हैं तो आप चर्चा नहीं करते जिस दिन हम पोस्ट नहीं लिखते या लिख पाते उस दिन चर्चा हो जाती है. तो कोशिश इस 36 के आंकड़े को 63 उलटने की कर लेते हैं पहले।

काकेश आजकल नियमित ब्लागर होने की प्रयास कर रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने ही ब्लागजगत को प्रख्यात व्यंग्य उपन्यास खोया पानी से परिचित कराया। आजकल देशी पण्डित पर हिंदी ब्लाग का परिचय देने का काम कर रहे हैं। जैसा कि हर नियमित ब्लागर के साथ होता है वैसा उनके साथ भी है कि वे जितना अच्छा लिखते हैं ,टिप्पणियां उससे अच्छी करते हैं। संजीत के ब्लाग पर उनकी ये टिप्पणी पढ़तव्य है-
अनतर्मुखी तो हम भी हैं जी पर हमारी रचनाऎं तो नहीं बोलती...उनको बुलवाने का उपाय बताइये जी.

इसी टिप्पणी-कड़ी का ही एक नायाब छल्ला है उनकी ये पोस्ट। अब क्या जिक्र करें आप भी तो कुछ पढि़ये- लिंकानुगमन करके।

काकेश के बाद अब बालकिशनजी की शिकायत पर गौर किया जाये। हमें पता ही नहीं चला कि बालकिशन जी जवानी दीवानी जिन्दाबाद कर चुके हैं और कहते हैं-
सहसा ही रहस्य से परदा उठने लगा वही उर्जा मैं अपने आप मे भी महसूस करने लगा. लगा की सारी दुनिया को मुट्ठी मे बंद कर सकता हूँ. हौसला इस कदर बढ़ा हुआ लगता था की उस घड़ी दुनिया मे मेरे लिए कुछ भी असंभव नहीं है. ये उर्जा, ये हौसला प्रकृति का एक नायब तोहफा है युवाओं को, जवानों को और उनकी जवानी को.
वैसे जब जवानी का जिक्र आता है तो मुझे परसाई जी का लेख पहिला सफ़ेद बाल याद आता है जिसमें उन्होंने लिखा है-
यौवन नवीन भाव, नवीन विचार ग्रहण करने की तत्परता का नाम है; यौवन साहस, उत्साह, निर्भयता और खतरे-भरी जिन्दगी का नाम हैं,; यौवन लीक से बच निकलने की इच्छा का नाम है। और सबसे ऊपर, बेहिचक बेवकूफ़ी करने का नाम यौवन है।


इस यौवन तराजू पर आप भी अपनी जवानी का बैलेंस निकाल लें। :)

आदि चिट्ठाकार आलोक ने कल फोनिया के राय जाहिर की चिट्ठाचर्चा में नये चिट्ठाकारों का परिचय दिया जाये। उनकी बात तो वो भी नहीं टाल सकते फिर हम कौन खेत की मूली हैं। सो जल्द ही चिट्ठाचर्चा में नये चिट्ठाकारों का नियमित परिचय देने का प्रयास किया जायेगा।्कब,कैसे,किस तरह यह आलोक तय करके आदेश जारी करेंगे। वे भी चर्चा-दल में शामिल हो रहे हैं।

तीन दिन पहले ज्ञानदत्तजी ने ब्लागिंग वर्षगांठ मनायी। उनको हमारी भरपूर बधाई! नियमित लेखन से वे तमाम लोगों के लिये जरूरी ब्लागर ब्लागर बन गये। लगता नहीं कि उन्होंने एक साल पहले ही उनका ब्लाग पाटी-पूजन हुआ था। आज अपनी पोस्ट में ब्लागिंग के चलते अपने में आये बदलावों का रेखांकन करते हुये लिखा-

मेरी विभिन्न वर्गों और विचार धाराओं के प्रति असहिष्णुता में कमी आयी है। इसी प्रकार आलोचना को कम से कम हवा दे कर झेलने का गुर भी सीखने का अभ्यास मैने किया है। मैने अपनी सोच में पानी नहीं मिलाया। पर दूसरों की सोच को फ्रॉड और खोखला मानने का दम्भ उत्तरोत्तर कम होता गया है। बहुत नये मित्र बने हैं जो मेरी भाषागत अक्षमताओं के बावजूद मेरे लेखन को प्रोत्साहित करते रहे हैं। उनका स्नेह तो अमूल्य निधि है।


अब कुछ हड़बड़िया एक-लाइना!
भास्‍कर में आखों की किरकिरी : आंख पानी से धो लो ठीक से भाष्करजी।

दुर्योधन की डायरी -पेज ३३५० : में शिवकुमार महाभारत तक भागते चले गये।

दीन दयाल बिरद सम्भारी :
काम पड़ा अब थोड़ा भारी।

ये उत्तर प्रदेश है हुजूर, यहां फोड़ी जाती हैं आंखें :आइये एक बार सेवा का मौका दीजिये जनाब!

करात कालम् उर्फ राहु कालम् :पर पुराणिक ग्रह की वक्र दृष्टि है।

एक क्रिकेट खिलाड़ी का दर्द...: बड़े काम की चीज है।

ये वो शहर है जो :हर रोज उजड जाता है!

महिमा अवतारों की : बता रहे हैं शब्दवीर अजित वडनेरकर!

भारतीय संसद का अमेरिकी बजट सत्र :का औचित्य क्या है?

चलो अब हमने भी ग़रारे कर लिए, अब हम भी गायक हो ही गए!: तनिक सौंफ़, मुलेठी भी दबा लें मुंह में।

तेरे बिना वो बात नही... : लेकिन मजबूरी में निभाना पड़ रहा है।

डिस्टलरी की बदबू मे डूबता रायपुर शहर:इसका कुछ इलाज करना पड़ेगा, नाक में रुमाल दबा के।

टूटे हुए चाँद को: सादे काग़ज़ में लपेटा मैंने। आपको कौनो तकलीफ़ तो नहीं है न!
कहां से कहां ... तक: बस एक नौकरी से दूसरी तक!

दिन के उजाले कम क्यों हो गये हैं : लगता है रोशनी पर सर्विस टैक्स लग गया है।

मेरी पसंद


पंख अब हम कहाँ फैलायें
आसमां क्यों सिकुड़ सा गया है
सूरज तो रोज ही उगता है
दिन के उजाले कम क्यों हो गये हैं।

आँखों में है धूल और पसीना
मंजिल धुँधली नजर आ रही है
अभी तो दिन ढला ही नहीं
साये क्यों लंबे हो गये हैं।

अंधेरों की अब आदत पड़ सी गई है
ऑखें चुंधियाती हैं शीतल चांदनी में
बियाबां की डरावनी शक्लें हैं
चेहरे ही गुम क्यों हो गये हैं।

जमीं पे पाया औ यहीं है खोया
क्यों ढूढते हैं हम अब आसमां में
हम वही हैं कारवां भी वही है
पर आदमी अब कम क्यों हो गये हैं।

मथुरा कालोनी से

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सोमवार, फ़रवरी 25, 2008

महीने भर की कोशिश

बहुत दिनों से सोच रहा था चिट्ठों की चर्चा की जाये


उड़नतश्तरी चली रेल में, इसकी कथा सुनाई जाये


कक्षामें से पंकज जी की कौन रहा अनुपस्थित दो दिन


कंचन पारुल के लेखन पर कुछ तो टिप्पणियां की जाये





फ़ुरसतिया, आलोक पुराणिक, जीतू भाई रवि रतलामी


शानू और मुसाफ़िर, बेजी, बासूती की नई कहानी


प्रत्यक्षा के तीखे तेवर, महावीरजी नये रूप में


क्या क्या गज़लें लेकर आये आज यहां नीरज गोस्वामी





देखूँ मीनाक्षी ने अपना कलम आज है कहां चलाई


क्या क्या लेकर आज टोकरे में, आये हैं पंकज भाई

और महक ने क्या महकाया ज्ञानदत्तजी क्या कहते हैं

ईस्वामी जी किस दुनिया में उड़ा रहे हैं दूध-मलाई



रंजू और सुजाता, पूनम, ममता, नोट्पैड, दीपकजी
क्या कतरन काकेश सजाये, और शास्त्रीजी क्या बोले
यूनुस भाई आज सुनाने को क्या लेकर आये, देखें
और अनिल रघुराज कौन सी गुत्थी आज यहाँ आ खोले

लेकिन घड़ी हाथ से मेरे कलम छुड़ा कर ले भागी है
जितना पढ़ कर लिखना चाहा,उतना संभव हो न पाया
नये वर्ष में और लिखूंगा, वादा खुद से किया हुआ था
दो महीने के बाद जरा सा काम आज देखो निपटाया

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रविवार, फ़रवरी 24, 2008

ब्लागिंग ने चोर पकड़वाया



ये बगल वाला फोटो ब्लागखबरिया में छपा है। जयपुर के अखबार में। सुधाकर सोनीजी ने बनाया है। चौचक है न!
तुलसीदास जी कह गये हैं-
पर उपदेश कुशल बहुतेरे। जे आचरहिं ते नर न घनेरे॥

गोस्वामीजी जो बात बहुत पहले कह गये वह आज भी चरितार्थ होती है। दो दिन पहले एक बार फ़िर हुई। पाण्डेयजी पोस्ट तो लिखते हैं पारिवारिक कलह से बचने के उपाय बताने के लिये लेकिन पोस्ट खतम करते-करते आलोक पुराणिक को अनूप शुक्ल के खिलाफ़ भड़काने लगते हैं। जिस बात पर उनको मिट्टी डालनी चाहिये उसको वे चमका के सामने पेश करते हैं। वो तो कहिये आलोक पुराणिक को फ़रवरी के महीने में बजट कथा बांचने के लिये जजमान घेरे रहते हैं और अनूप शुक्ल समझदार हैं वर्ना तो न जाने क्या गजब होता। ज्ञानीजन महाभारत करवा देते।

इसीलिये अजय झा कहते हैं आप लोग कुछ ज्यादा ही आलोचनात्मक हो गए हैं। एक दूसरे की जबरदस्त खीन्चाई कर रहे हैं।

इस सबसे अलग मुम्बई में बोधिसत्व ने विनय पूर्वक विनय पत्रिका का साल पूरा किया और साथियों की शुभकामनायें हथिया लीं। लेकिन वे यह अभी तक न पता कर पाये कि उन्होंने साल भर क्या उखाड़ा!


१. कोलम्बस और कृष्ण:कविता में 'क' वर्ण की आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार की छ्टा दर्शनीय है।

२.आस्कॅर, हिन्दी और बॉलीवुड : में अपना योगदान देते रहें।

३.चूहे में छुपी है मसलपावर ... : और आप खोजते हैं सलमान खान की बाहों में! कैसे मिलेगी!

४. राज न हो फिर भी कोष : बजट आया नहीं पर उड़े हैं होश!

५.ये डाक्टर .. .. ..ये कैसे डाक्टर ? :जो टीसते हृदय से आभार दे रहे हैं!

६.अकेलापन : हंसता है!

७.वह बारिश की छीटें :मिल जायें तो पकड़ के पीटें!(न जाने क्या-क्या याद दिलाती हैं।)

८. आज का मैनेजमेंट फ़ंडा: सेवा क्षेत्र देता रहेगा सोने का अंडा!

९. जीवन है चलता रहता है !!!:बार-बार कह रहे हैं तो मानना ही पड़ेगा!

१०.पुष्पित :हो गया! अब संवरना होगा!

११.सुनिये रघुवीर सहाय की कविता , किताब पढकर रोना :रोने के लिये किताब पढ़ने की क्या जरूरत है जी! ब्लाग पढ़ लीजिये।

१२.मेरे बारे में कोई राय ना कायम करना :जो करेगा, पछतायेगा! यहां कुछ नहीं पायेगा।

१३.लोकलुभावन बजट, यानि गई भैस पानी में....! :अब तो आराम से नहा-धो के निकलेगी।

१४. खुशरो बाग:मुफ़्त में देखिये।

१५.मैली हो गयी नर्मदा :अब बताओ कौन सा डिटरजेंट इसे साफ़ करेगा!

१६. मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग:चलो अच्छा दूसरी वाली ही दे दो!

मेरी पसन्द





लम्हों को
नियम से बँध
कुछ इस तरह
खुलना होगा

पँखुडियों की
अदा सा
रंग में डूब कर
खिलना होगा

अधखुली
बात को
धीरे से
महकना होगा

जीवन के
केन्द्र के
आसपास
जुटना होगा

आलोक को
आलिंगन में
बाँधने के लिये
उठना होगा

नमी की
दो बूँद
सँभालने के लिये
रुकना होगा

बिखरने से पहले
हौले से
लम्हों को ....लम्हों का हाथ
पकड़ना होगा

जिन्दगी
तुझको तो
सुमन सा ही
संवरना होगा......

डा. बेजी

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शुक्रवार, फ़रवरी 22, 2008

वैसे आप कहाँ के हैं?





१.चालाकी और पश्चाताप :एक सौ रूपये का चूना लगा कर नौ दो ग्यारह हो गये।

२. स्त्री :कबीलों की लड़ाई में सबसे क़ीमती सामान।

३. तुम सँध्याके रँगोँ मेँ आतीँ, हे सुँदरी, साँध्य रानी ..:तो क्या गजब का मैचिंग कम्बीनेशन होता!

४.तरक्की का यही है खेल :पढें फारसी बेचें तेल!

५. हर तरफ़ संत्रास अब मैं क्या करूं आशा ?: ऐसी भी क्या निराशा अभी आगे है बहुत तमाशा!

६.ईश्वर आज अवकाश पर है :बड़ी खराब आदत पड़ गई है ईश्वर की , जब देखो छुट्टी पर बैठ जाता है!

७. बहस करना है तो फोरम में आईये: बहस के लिये कौन फ़ोरम चाहिये, जहां खड़े हैं वहीं से शुरू हो जाइये! यही लेटेस्ट फ़ैशन है जी!

८.ये लोकतंत्र है बाबू :यहां पर कुछ भी हो सकता है।

९. हद में रहें सुप्रीम कोर्ट के जज: ख़ुद सुप्रीम कोर्ट ने कहा!: माननीय सुप्रीम कोर्ट कुछ भी कह सकती है भाई!

१०.भारतीयों अंग्रेजी सीखो : वर्ना हिंदी में ही बतियाते , टापते रह जाओगे!

११. एक एक कर सब बिक गए!: पर हमारे लिये कौनो बोलियै नहीं लगा!

१२.सहारनपुर पुलिस- तोंद या पोस्ट : बस 'टू इन वन' समझिये!

१३.हंसिये अगर हंस सकते है.... बिना बात के : हंसी तो हमेशा बेबात ही होती है।

१४.पनीर टमाटर ओर नुडल्स सलाद : बनाकर बहुत जल्द खिलाने वाली हैं रंजूजी!

१५.एक अलग पहचान ! : की क्या जरूरत है यार!

१६. शराब छोड़ना चाहता हूं .....: लेकिन डरता हूं कि बेवफ़ा कहलाऊंगा!

१७.शाम की उनफ़ती सांसें... : रात के आगोश में गुम हो गईं!

१८.चोखेर बाली का एजेंडा क्या है? :बूझो तो जाने!

१९. जीवन का यह सच भी देखा: ये दिन भी देखने बदे थे कि सच देखना पड़ा!

२०.लोग सच बोलने से क्यों डरते है : क्योंकि झूठ बोलने का मजा ही कुछ और है।

२१.नकली उमाशंकर सिंह से सावधान! :क्योंकि सावधानी हटी दुर्घटना घटी!

२२. ब्लॉगवाणी, इस बहस को आगे बढ़ाओ!:ताकि हल्ला-गुल्ला हो और दिल लगा रहे।

२३. वैसे आप कहाँ के हैं?:कहते हुये डर लगता है!

२४.अपने प्यार को एक नाम दो :क्या पता कल हिट हो जाये लैला-मजनू की तरह!

२५.बाप नहीं सिर्फ उसकी दौलत चाहिये ! : जो दौलत देगा वही सच्चा बाप होगा!

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शनिवार, फ़रवरी 16, 2008

बादल है या किसी का चेहरा

यूं ये रोज ही होता होगा पर आज तो मुझ जैसे कवित्त सवैया छंद के अखंड रिपु को कुछ कविताई दिख गई ब्लॉगवाणी के एक पृष्ठ पर। नोश फ़रमाईयेः

भैया के पीछू दो-दो भाई
बड़े प्यारे होते हैं दारू पीने वाले....

नया ब्लू-टूथ आई.डी. कार्ड वाकई में नया है
गा* मार लो पत्रकारिता की

राजनीति का गंदा चेहरा
फूल देखूं जिधर खिलें

प्रिय भडासियो
ब्रॉकली कैसे बनायें

उधार की जिंदगी
बीबी तो इन्तजार करेगी ही...

इसे अपने ब्लॉग पर शब्दों को फेंट कर एक ठौ कविताई पोस्ट बनती थी ;)

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