शनिवार, सितंबर 30, 2006

फिर से मुहब्बत का आगाज़ कीजिये

जब पूरा देश डूबा है नवरात्र,दुर्गा-पूजा और दशहरा के धमाल में और हमारे साथी खो रहे हैं मेले-ठेले में अकेले-दुकेले तब हमारे पास यह जिम्मा है कि आपको सुनायें नवीनतम हाल-चाल चिठ्ठों की दुनिया का। दोपहर हो चुकी है भारत में और दुनिया के दूसरे हिस्से में रात सरक गयी होगी आधी से ज्यादा ऐसे में लगभग सारे पाठक बिस्तर से सबसे कम दूरी पर होंगे। कुछ सो गये होंगे, कुछ सोने की तैयारी में होंगे कुछ जगने की लाचारी में, कुछ नींदे होंगे कुछ उनींदे। लेकिन हम जाग रहे हैं और दुपहरिया चाय की चुस्की लेते हुये चिठ्ठा-चुस्की के लिये कमर कसके जुट गये हैं।

हमारे रोजनामचा नरेश अतुल से कल चिठ्ठाचर्चा लिखने में देर हुयी सो बेचारे हायकू में हाथ आजमाये। हायकू हमें और समीरलाल को तो पसंद आने ही थे काहे से कि हम लोग तो एक ही बैंड के आदमी हैं लेकिन रत्नाजी को ये हायकू अपनी पोस्ट से ज्यादा भाये। पर क्या बतायें कि कविवर गिरिराज जोशी अपना हायकू मीटर(५-७-५) लेकर हर हायकू की गरदन नापने लगे और तमाम हायकू को उसी तरह बदलकर नया कर दिये जैसे मुख्यमंत्री लोग नये-नये आने पर जिलों के नाम बद्ल कर पुराने या नये कर देते हैं। उनकी मात्रा की बात तो सही है लेकिन हायकू विद्वान कहते हैं कि किसी और कविता की तरह हायकू में भी मूल प्रवाह मूल तत्व है उस लिहाज से अतुल का प्रथम हायकू प्रयास लगे रहो अतुल भाई टाइप का है। अतुल को अन्दाजा भी नहीं होगा कि जहां वे छिद्रान्वेषियों का आवाहन करेंगे वैसे ही विनय अपना मोर्चा संभाल लेंगे। वैसे व्याकरण में कुछ फिसलन जानबूझकर होती है और कुछ अनजाने में जैसे यहीं पर टिप्पणी में विनय ने अतुल की जगह राजीव लिखा!

लगता है कि बेंगानी परिवार हिंदी में सबसे ज्यादा चिठ्ठे लिखने वाला परिवार बनने का कीर्तिमान अपने ही पास रखना चाहता है। अभी अपने ब्लाग पर मिली टिप्पणियों से उत्कर्ष का खुशी से नाचना बंद नहीं हुआ था कि खुशी अपना चिठ्ठा लेकर हाजिर हैं। यह खुशी की बात है कि उनके ब्लाग का नाम भी खुशी की बात ही है। खुशी को नियमित लेखन के लिये शुभकामनायें।

खुशी की बात के साथ-साथ बधाई की भी कुछ बात। हिमानी भार्गव के बारे में हमने लिखा था अपनी एक पोस्ट में जब वे अपने जीजा अनूप भार्गव के साथ लखनऊ में मिलीं थीं। अपनी बच्ची प्रियम के नाम पर उन्होंने अपना ब्लाग शुरू किया और बच्ची के दांत निकलने की ऐतिहसिक घटना का विवरण बताया:-

यही वो पहला दाँत है जो बाकी दाँतो के साथ न जाने कितनी टाफियाँ और चोकलेटस काटेगा.यही वो पहला दाँत है जो बाकी दाँतो के साथ न जाने कितने आलू के चिप्स के पैकिटस खोलेगा यही वो पहला दाँत है जो बाकी दाँतो के साथ कभी सर्दी मे या कभी बुखार मे किटकिटायेगा यह पहला दाँत,छोटा सा दाँत ,इस बात का सूचक है,कि ज़िन्दगी फिर से शुरू हो रही है,बचपन फिर से दिल पर दस्तक दे रहा है,यह वह पहला दाँत है जो बाकी दाँतो के साथ उस धागे को काटेगा जिससे प्रियम अपने पापा की कमीज़ पर बटन टाँकेगी।

मूलत: कविमना हिमानी ने इसके पहले अपनी पोस्ट में लिखा:-

तुम्हारे बालो मे उंगलियां मेरी
भटक गयी हैं रास्ते
हाथ पकड़ के मेरा
इन्हें ढूंढ लाइये.

भूल जाइयॆ शिकवे गिले
दरकिनार कीजिये
फिर से मुहब्बत का
आगाज़ कीजिये.

अब आप पूछेंगे कि इसमें बधाई की क्या बात यहां तो स्वागत की बात है। लेकिन नहीं भाई बात तो असल में बधाई की ही है। कारण यह कि आज ही हिमानी का जन्मदिन है। हमारी तरफ़ से ब्लाग लेखन प्रारम्भ करने और जन्मदिन की हिमानी भार्गव को बधाई। आशा है कि
वे नियमित लेखन करती रहेंगी और अपने जीजा अनूप भार्गव की तरह नहीं करेंगी जो अपनी भारत यात्रा,हिंदी प्रसार सम्मान,गुड़गांव-बफैलो कवि सम्मेलन के उकसावे के बावजूद उनके बारे में कुछ न लिखकर पुरानी की गयी
जगलबंदियों को दोहरा रहे हैं। ऐसी भी क्या व्यस्तता महाराज!

2 अक्टूबर आने वाला है और देश में हर जगह गांधीगिरी की तैयारी चल रही है। ऐसे में राकेश खंडेलवाल अपनी पुरानी यादों में खो हये हैं। ये यादें चरखे, तकुआ, पूनी के बारे में हैं और बात कही गयी है मालिन,ग्वालिन,धोबिन,महरी की:-


एक एक कर सहसा सब ही
संध्या के आँगन में आये
किया अजनबी जिन्हें समय ने
आज पुन: परिचित हो आये
वर्तमान ढल गया शून्य में
खुली सुनहरी पलक याद की
फिर से लगी महकने खुशबू
पूरनमासी कथा पाठ की
शीशे पर छिटकी किरणों की
चकाचौंध ने जिन्हें भुलाया
आज अचानक एकाकीपन, में
वह याद बहुत हो आया.


आजकल मीडिया की महिमा न्यारी है। वह मतलबी यार किसके,काम निकाला खिसके वाले अंदाज़ में हरकते करता है। यह मानना है बालेंदु शर्मा का। डरावनी पिक्च्ररों में से एक के बहाने कुछ सवाल खड़े कर दिये आशीष गुप्ता ने अपनी कतरनों मैं।

मनीष अपने इंटरव्यू की दूसरी किस्त लेकर हाजिर हैं तो रविरतलामी अपना 'पच्चीस साल'पुराना गज़ल का स्टाकलेकर आ गये हैं:-

कर उनसे कोई बात जिगर थाम के
उनका जल्वा ए हुस्न देख जिगर थाम के

मर ही गए उनपे क्या बताएँ कैसे
डाली थी नजर उनपे जिगर थाम के

इतना तो है कि बहकेंगे हम नहीं
पी है मय हमने तो जिगर थाम के

पता नहीं महफ़िल में बहक गए कैसे
पी थी मय हमने तो जिगर थाम के

मेरी आवाज लौट आती है तेरे दर से
चिल्लाता हूँ बार-बार जिगर थाम के

वो दिन भी दूर नहीं जब तू आएगी
इंतजार है कयामत का जिगर थाम के

रवि ये इश्क है जरा फिर से सोच ले
चलना है इस राह पे जिगर थाम के


रविरतलामी के इस गज़ल के प्यारे तेवर देखकर एक शेर याद आता है:-

जवानी ढल चुकी,खलिस-ए-मोहब्बत आज भी लेकिन,
वहीं महसूस होती है,जहां महसूस होती थी।

बिहारी बाबू बता रहे हैं आजकल के रावणों के बीच पुराने रावण का रोना
:-
देखो जरा इन्हें, हमने तो वरदान में सोने की लंका पाई थी, लेकिन इनमें से बेसी रक्तपान के बाद बनी महलें हैं। ईमानदारी से कमाकर तो कोइयो बस अपना पेट ही भर सकता है, अट्टालिकाएं खड़ी नहीं कर सकता। क्या हमारी लंका से ज्यादा अनाचार नहीं है यहां? अगर ये सदाचारी होते, फिर तो दिल्ली झोपडि़यों की बस्ती होती। ये हमसे खुशकिस्मत हैं कि इन्हें मारने वाला कोई राम नहीं मिल रहा है। वरना इनकी दशा भी हमारी तरह ही होती।


ऐसे में रावण का रोना सुनकर कोई ताज्जुब नहीं कि कोई हीरो आये और पूरे देश को ठीक करने के वैसे तरीके अपनाये जैसे लगान और रंग दे बसन्ती में बताये गये हैं। बिना व्यवस्था में बदलाव लाये देश सुधार की बात करना खामख्याली है यह बात परसाईजी ने अपने लेखों उखड़े खम्भे और सदाचार का ताबीज में कही है। लगान और रंग दे बसन्ती की कथा की अतार्किता को कथा के ही माध्यम से परख रहे हैं लखनवी अतुल श्रीवास्तव।

इन सबके अलावा और भी बहुत कुछ है कल की पोस्टों में। इनमें डा.टंडन की दवायें हैं, कैलाश मोहनकर के माध्यम से पेश की गयी गज़लें हैं और है क्षितिज की बर्लिन की ट्रेन कंपनी कापोस्ट्रर और इसके अलावा सबसे खास है फुरसतिया का पुस्तक चर्चा का प्रस्ताव। न देखा तो देखिये और अपने सुझाव दीजिये।

फिलहाल इतना ही।बाकी की कहानी कल व्यंजल नरेश- रवि रतलामीं से।

आज की टिप्पणी


अपराधी को सज़ा देने का एक कारण यह भी है कि वह दोबारा फ़िर से वैसा काम न करे. यादाश्त खोने के बावजूद अगर उसका व्यक्तित्व नहीं बदला और वह दोबारा से वैसा ही अपराध कर सकता है.
मैं यह मानता हूँ कि कुछ लोग ऐसे होते हैं कि दूसरों की जान के लिए खतरा होते हैं, मेरे विचार तक उन्हे लम्बे समय तक जेल में ही रहना चाहिए पर मुझे मृत्युदँड का विचार अच्छा नहीं लगता.

सुनील दीपक

आज की फोटो


आज की फोटो क्षितिज के ब्लाग से


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शुक्रवार, सितंबर 29, 2006

जरूरत है छिद्रान्वेषियों की!

व्याकरण ज्योति की मशाल अब आलोक से विनय ने थाम ली है
अपनी बात कहूँ तो अगर अँगरेज़ी के किसी चिट्ठे में मुझे इस क़दर वर्तनी अशुद्धियाँ मिलें तो मैं एक पैरे से आगे न बढ़ूँ और उस चिट्ठे पर लौटूँ तक नहीं. अक्सर कई हिंदी चिट्ठों के साथ भी ऐसा करने की इच्छा होती है, और कुछ के साथ किया भी है, पर कुछ मजबूरी में और कुछ लत की वजह से चलता रहता है.


यह एक सार्थक कदम की शुरूआत है। यहाँ एक प्रसंग का उल्लेख करना सार्थक होगा। ब्लागिंग के शुरूआती दिनो में इस नाचीज को अपनी किस्सेबाजी के दस्तावेज "लाईफ इन ए एचओवी लेन" पर एक टिप्पणी मिली "अगर अरोरा और नरूला ऐसी हिंदी लिखेंगे तो शर्मा, पाँडे और द्विवेदी वगैरह का क्या होगा?" ऐसी टिप्पणियों पर फूल कर कुप्पा होना स्वाभाविक है। पर गलतियाँ हमसे भी होती है। लाईफ इन ए एचओवी लेन को सैकड़ो ने पढ़ा होगा पर एक गलती की ओर ध्यान दिलाया श्री राजीव टँडन ने। गलती यह कि शीर्षक "लाईफ इन एन एचओवी लेन" होना चाहिये। राजीव जी ने यह जोड़ना न भूला कि भई गलती सुधर सके तो सुधार लो पर इसे परछिद्रान्वेषण न समझ लेना। मैं यह बताते हुये गर्व महसूस करता हूँ कि श्री राजीव मेरे अध्यापक रहे हैं कंप्यूटर साइंस में । उनकी हिंदी पढ़कर लगता है कि अभी भी बहुत कुछ सीखना शेष है और ऐसे "छिद्रान्वेषण" को तो मैं अपना अहोभाग्य समझता हूँ और अपेक्षा करता हूँ कि साथी चिठ्ठाकार ऐसी "छिद्रान्वेषी" टिप्पणीयों को सकारात्मक भाव से ग्रहण करेंगे।

आजतक अब तक हत्यारा था अब अहसानफरामोश भी बन गया, जानिये बालेंदु शर्मा से। बालेंदु का खबर देने वालो की खबर लेने का अँदाज काबिले तारीफ है। कभी हिंदी ब्लागजगत में श्रेणीआधारित सामूहिक ब्लाग की चर्चा हुई थी, पर साहित्य के अलावा ज्यादा वैविध्य नही दिखता था। इक्का दु्क्का लेख दिख जाते थे विज्ञान , वाणिज्य पर । लेकिन अब पत्रकारिता पर बालेंदु और तकनीकी पर उनमु्क्त एवं रवि जैसे लेखको के नियमित लिखने से हिंदी चिठ्ठाकारिता के इँद्रधनुष के रंगो में बढ़त्तोरी होते दिखना हर्षदायक है।

पालतू चूहा
दिल फेंक आशिक
बदलो दिल

इस्त्री लाया
कनऊ चपरासी
सत्यानास

काली बिल्ली
काट गयी रास्ता
हे भगवान!

लाल ड्रैगन
कराये है वोटिंग
रत्ना हैरां



अब यह क्या है? रत्ना जी से समझिये

कुँडली नरेश जी से सुनिये कवि सम्मेलन का सीधा प्रसारण

लेक ऎरी की तीर पर, भई कविजन की भीड़
रचना अब कोई और लिखे, तबहिं पढ़ें समीर.


लगता है कविता रस का मीठी नदियाँ अब उत्तर भारत से खिसक कर अमेरिका के उत्तरी सिरे पर बहने लगी हैं। यकीन नही होता! कुँडली नरेश जी के साथ साथ डा. लक्ष्मी गुप्ता के कविता रस की बौछार से तो यही लगता है।

या कलजुग माँ मोहन का माखन ना भायो रे।
पीज़ा हट में पीज़ा खावैं गोपिन का खिलायो रे।।


पँकज भईया के पिटने के दिन आ गये हैं। अब गरबे में घरवाली को लेजाकर भीड़ में गुमा देंगे और बाहरवालियो के सँग नैनमटक्का करने की फिराक में रहने वालो का अँजाम क्या होगा, आप ही बताइये।

चलते चलते कछुवा, खरगोश और ओपेन सोर्स पढ़ना न भूलियेगा।

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गुरुवार, सितंबर 28, 2006

जहां नामालूम तरीके से नहीं आता है वसंतोत्सव

नारद ने गारद किया, सब चिट्ठों का कारोबार
ठहरे से सबके ब्लाग हैं, है बोझिल सन्नाटे की मार
है बोझिल सन्नाटे की मार कि सबने लिखना छो़ड़ दिया
लिखना छूटा,पढ़ना भूला,तारीफौ से नाता तोड़ लिया
कह 'फुरसतिया' सुनो अब कष्ट मिटेंगे जल्दी शायद,
चिट्ठाचर्चा का तुत्फ उठाऒ, आयेंगे जल्दी खबरी नारद।


यह जलेबी हमने समीरलाल के बचे मसाले से बना ली काहे से कुछ लोगों को उनका यह आइटम बहुत पसंद आता है। पसंद आये तो उडनतस्तरी को वाह-वाह कर दीजियेगा और अगर न पसंद आये तो इसपर विस्तार से एक पोस्ट लिखियेगा ताकि जब कल अतुल चिट्ठाचर्चा लिखें तो उसके बारे में लिख सकें।

उत्कर्ष
उत्कर्ष


हां तो हम कह ये रहे थे कि उत्कर्ष ने अपनी दूसरी पोस्ट लिखी और अपना परिचय भी दिया। रविरतलामी को बच्चा जहां दिखा वहीं उसको अपना पाठक बनाने के लिये तुरंत बच्चे के लिये मर्फी के नियम लगा दिये अपनी ब्लाग पोस्ट पर। बताऒ भला कहीं ऐसा होता है कि नया-नया बच्चा आया ब्लाग लिखने के लिये और आप उसके लिये नियम दिखाने लगे। चलिये अच्छा देख ही लिये जायें क्या हैं नन्हें मुन्नों के लिए मरफ़ी के नियम:-

एक अभिभावक जितना जोर से चिल्लाकर, जितना ज्यादा देर तक और बारंबार समझाने की कोशिश करेगा किसी बच्चे के द्वारा उसे समझे व अपनाए जाने की संभावना उतनी ही कम होगी.
• किसी भोजन को बनने में जितना ज्यादा ऊर्जा, सामग्री व समय लगता है, किसी बच्चे के द्वारा उसे खाए जाने की संभावना उतनी ही कम होती है.


अब नीरज दीवान को भी क्या सूझी कि ब्लागरों के लिये भी मर्फी के नियम पूछने लगा। अरे भाई जो नियम फुरसतिया बता चुके हैं वो आप मर्फी से काहे पूछते हैं । ये लीजिये जमकर पढ़िये बकौल रवि रतलामी झन्नाटदार ब्लाग,ब्लागर,ब्लागिंग के फुरसतिया के नियम।

हीतेंन्द्र के बहुत मेहनत करके कथासम्राट प्रेमचंद की कहानियां आपके लिये पोस्ट की हैं। ये कालजयी कहानियां हैं- बड़े घर की बेटी, दुर्गा का मंदिर,पंच परमेश्वर, शंखनाद और नागपूजा। उधर उन्मुक्त जी हरिवंशराय बच्चन की आत्मकथा से वो अंश आपके लिये पेश कर रहे हैं जिसमें बच्चन जी ने जब इंदिरा गांधीजी से मित्रता का जिक्र किया है।

आप यहां पढते-पढते थक गये होंगे। अगर ऐसा है तो डा.प्रभात टंडन की होम्योपैथिक दवायें लें जोकि आपकी तकलीफ का शर्तिया इलाज हैं। अगर आपको दवा से आराम न मिले तो चिंता न करें,इलाज और भी हैं । आप ऐसा करें कि गिरिराज जोशी की ख्वाबों की रानी से मिल लीजिये। रानी का हुलिया और हरकतें कुछ यूं हैं:-

वो बला सी खूबसूरत, ख्वाबों की रानी है
थोड़ी नटखट, थोड़ी मासूम, थोड़ी सी सयानी है।
'सुमन' सा चेहरा, खुशबु सा बदन उसका
मोहब्बत की मूरत वो थोड़ी सी दिवानी है।
आँखे नशीली, होंठ रसीले और खाक करता हुश्न
नाजुक सा बदन उसका उफ् क्या मदमस्त जवानी है।
चाहत की अंगड़ाई लेती फिर पलटकर मुस्कुराती है
बाहों में है जन्नत उसके वो नजरों से शर्माती है।


इसका असर होगा क्योंकि पंकज को सोने की इच्छा हुई है तो आपको भी नींद आना चाहिये और एक बार नींद मार लिये तो फिर क्या ,सब चकाचक है। जब नींद खुले तो कुछ काम निपटाइये और विवादों की बरसी मनाइये। अरे अकेले नहीं भाई साथ में बिहारी बाबू हैं जो ये विवाद लेकर आये हैं

अल्लेव हम उधर विवाद में फंस गये इधर राजगौरव के साथ लफड़ा हुई गवा और उनको जो है सो क्या हुआ कि:-

सीली हवा छू गयी, सीला बदन छिल गया.. नीली नदी के परे, पीला सा चांद खिल गया..


इधर इनका बदन छिल गया और उधर शुऐब मौज लेते हैं:-

क्या आप भी किसी के इश्क मे फंसे हुए हैं? आपके लेख से यही लगता है वैसे याहां UAE मे वर्षा कभी नही होती मगर अचानक कभी कभी एक दिन चंद बूंदे टपक जाती हैं

राज गौरव बोले -इश्क का तो पता नहीं लेकिन बुखार में फंस गया हूं ।

अवधिया जी ने पुराने जमाने की मशहूर अभिनेत्री पद्मिनी निधन की जानकारी दी । पद्मिनीजी को हमारी भी श्रद्धांजली।

अफलातून देसाई ने परिचर्चा में हुई हिंदी चर्चा को अपने ब्लाग में पोस्ट किया । इसके अलावा अफलातून जी ने एक और काम शुरू किया जो कि अगर मीडिया वाले अंदाज में कहा जाये कि खासतौर पर चिट्ठाचर्चा में प्रकाशित खबर के कारण किया। हमने चिट्ठाचर्चा में अनुरोध किया था कि अफलातून जी बनारस और खासकर बी.एच.य. के बारे में लिखें। उन्होंने हमारे अनुरोध पर बना
यही है वह जगह
लिखना शुरू किया। शुरुआती पोस्ट में बीएचयू पर कवि राजेंद्र राजन की लिखी कविता है :-
यही है वह जगह
जहां नामालूम तरीके से नहीं आता है वसंतोत्सव
हमउमर के तरह आता है
आंखों में आंखे मिलाते हुए
मगर चला जाता है चुपचाप
जैसे बाज़ार से गुज़र जाता है बेरोजगार
एक दुकानदार की तरह
मुस्कराता रह जाता है
फूलों लदा सिंहद्वार
इस बार वसंत आए तो जरा रोकना उसे
मुझे उसे सौंपने हैं
लाल फीते का बढता कारोबार
नीले फीते का नशा
काले फीते का अम्बार
कुछ लोगों के सुभीते के लिए
डाली गई दरार
दरार में फंसी हमारी जीत - हार
किताबों की अनिश्चितकालीन बन्दियां
कलेजे पर कवायद करतीं भारी बूटों की आवाजें
भविष्य के फटे हुए पन्ने


अगली पोस्ट में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के बारे में जानकारी है:-

यादगार और ऐतिहासिक स्थापना दिवस तो पहला ही रहा होगा.विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना मालवीय ने अंग्रेज अधिकारियों के अलावा गांधीजी ,चंद्रशेखर रमण जैसे महानुभावों को भी बुलाया था.

गांधी जी का वक्तव्य हिन्दी में हुआ .मालवीयजी को दान देने वाले कई राजे -महाराजे आभूषणों से लदे विराजमान थे .गांधी ने उन पर बेबाक टिप्पणी की .उस भाषण को सुन कर विनोबा ने कहा कि ‘इस आदमी के विचारों में हिमालय की शान्ति और बन्गाल की क्रान्ति का समन्वय है’.लोहिया ने भी उस भाषण का आगे चल कर अपनी किताब में जिक्र किया.

गांधी एक वर्ष पूर्व ही दक्षिण अफ़्रीका से लौटे थे और भारत की जमीन पर पहला सत्याग्रह एक वर्ष बाद चंपारन में होना था.’मालवीयजी महाराज’ (गांधीजी उन्हें यह कहते थे) की दूरदृष्टि थी की भविष्य के नेता को पहचान कर उन्हें बुलाया.


आशा है आगे अफलातूनजी के सौजन्य से रोचक जानकारियां मिलेंगीं बनारस और बीएचयू के बारे में ।

शरद के आगमन के पहले प्रेमलता जी बताती हैं ग्रीष्म के बारे में फिर शरद के बारे में:-
नदियाँ ग्रीष्म में महिला मजदूर की भाँति थकी सी लगती हैं तो वर्षा में प्रलय का स्वरुप लगतीं हैं पर शरद में फिरोज़ी परिधान पहने स्नेह छलकाती माँ के समान प्रतीत होती हैं।

शरद-ऋतु कोमलता और सुन्दरता अर्थात माधुर्य-गुण की परिचायक है। प्रकृति की शांत और मोहक छवियाँ अन्तःस्थल की सूक्ष्मपरत तक प्रभावित करती हैं। कहते हैं शरद-चाँदनी में ही राधा-कृष्ण और ब्रज गोपियों ने महारास (जिसे भक्ति,प्रेम और सौन्दर्य की सर्वव्यापकता की अभिव्यक्ति माना गया है) किया था।

आज अपने देश की साम्राज्ञी लताजी का जन्मदिन है उनको हमारी तरफ से जन्मदिन की शुभकामनायें।

आज की टिप्पणी:-


१.वुधवार की चिट्ठाचर्चा की जिम्मेदारी समीरलालजी कि है, यह बराबर याद रहता हैं क्योंकि शुरूआत में ही गर्मागरम जलेबी (कुण्डली शब्द का स्वादिष्ट विकल्प) खाने को मिल जाती हैं.समिक्षा की आपकी इस्टाइल के हम कायल हैं.

संजय बेंगाणी


समीरजी,
आप ही से प्रेरणा लेकर आप सब 'चिट्ठा- चर्चा'लिखने वाले लेखकों के लिये ये पन्क्तियाँ लिखी हैं-
-"रात को चिट्ठा लिखकर के, सुबह यहाँ वो आये,
ये चर्चा देखे बिना उससे रहा न जाए,
अपनी चर्चा देखकर मंद-मंद मुस्काए,
पढकर फिर चलता बने,
टीप्पणी से कतराए!!
आप सब का धन्यवाद,सुरूचिपूर्ण प्रस्तुति के लिये..

रचनाबजाज

आज की फोटो

:-

आज की फोटॊ एक बार फिर सुनील दीपक की छायाचित्रकार पोस्ट से


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बुधवार, सितंबर 27, 2006

तुम मेरे साथ रहो...

थोडे से मिल पाये हैं, फिर से चिठ्ठे आज
गली गली मे घूमते, हम तो थे दिन रात.
हम तो थे दिन रात कि बिल्कुल सो न पाये
जहां जहां भी पहुँचे, वहां इतिहास ही पाये.
कहे समीर कि नारद जब से साथ हैं छोडे
पढने के लिये चिठ्ठे भी, रह गये हैं थोडे.

--समीर लाल 'समीर'

सुबह सुबह ही सागर भाई ने एक दुखद समाचार दिया.

'मीरा बाई के भजन के नाम से लिखने वाली चिट्ठाकार और मेरी पत्नी श्रीमती निर्मला सागर की बुवा की १६ वर्षीय पुत्री निशा का आज सुबह सूरत में प्रात: १०.०० बजे निधन हो गया।
समस्त चिठ्ठा परिवार की ओर से हम परम पिता परमेश्वर से मृत आत्मा की शान्ति हेतु तथा सब परिजनों को इस दुखद घडी को सहने की शक्ति प्रदान करने के लिये प्रार्थना करते हैं .

आगे बढे तो नितिन बगला अपनी इन्द्र धनुषी खानपान की व्यथा कथा लिये पूरी रसोई बिगराये बैठे थे और एक से एक व्यंजनो की याद मे आंसू बहा रहे थे:

'और हाँ, कुछ चीजें जिनकी खूब याद आती है..गरमागरम पोहा-जलेबी, दाल-बाटी, सादा रोटी-सब्जी '
आधा दर्जन से भी दो अधिक ज्यादा लोग उन्हे ढाढस बंधाते नजर आये.

अब खाने की बात चली, तो लक्ष्मी जी भी पालक के बिछोह मे टेसू बहाते नजर आये:

धोने से नहीं धुलता है,
उबालने से नहीं उबलता है,
अजर अमर यह बैक्टीरिया
हमें बीमार करता है।
पालक प्रेमियों पर आफ़त आई है।


खैर हम तो खुश हैं, इसी बहाने पालक से बचे, नही तो हरी सब्जी की दुहाई देकर बनाने मे सबसे सरल आईटम हफ्ते मे दो बार तो टिकाया ही जा रहा था हमारे घर पर.

उधर उन्मुक्त जी अपने वही शिगुफाई अंदाज मे आवाज लगाते दिखे:

The week मनोरमा ग्रुप के द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी की पत्रिका है। इसके सबसे नये अंक (सितम्बर २५ – अक्टूबर १) के अंक में ब्लौगिंग के ऊपर लेख blogger's park निकला है। इसमें इस बात की चर्चा है कि हिन्दुस्तान में अंग्रेजी में चिट्ठे लिखने वाले कैसे पैसा कमा रहें हैं। क्या हिन्दी चिट्ठेकारों के भी दिन फिरेंगे।

अब अभी तो फिरे नही हैं, जब फिर जायें तो आप तो हईये हैं बताने के लिये, तब हम भी लाईन मे लग जायेंगे. तब तक जैसा चल रहा है वैसे ही हांके हुये हैं.

रास्ते मे ही जीतू भाई जुगाड लिंक मे एक ठो जुगाड लिये खडे थे, बिल्कुल सरकारी हिसाब किताब सा, एक जुगाड बताने के लिये एक पूरा पन्ना निपटा दिये. उससे ज्यादा तो उसे यहां कवर करने को लिखना पड रहा है. खैर, छोडा जाता है क्योंकि जुगाड है बेहतरीन.

शैलेष भारतवासी पता नही क्या क्या नाप रहे थे, आप खुद ही देखें:

सागर की सीमा
आकाश की ऊँचाई
और पाताल की गहराई
भी नापी जा सकती है


सुनील दीपक जी सबके सामने बडी गहरी बात करते हुये मिले:

बहुत साल पहले अभिनेत्री नीना गुप्ता ने अपने बिन ब्याही माँ होने की बात को खुले आम स्वीकार किया था. केवल किसी एक के कहने से, सब के सामने खुल कर आने से समाज नहीं बदलता, पर शायद उससे बहुत से लोग जो उस स्थिति में छुप कर रह रहे हैं, उन्हें थोड़ा सहारा मिल जाता है कि वह अकेले नहीं.

अनुभूति कलश पर डा.रमा द्विवेदी गीत गा रही हैं:

तुम मेरे साथ रहो घर में उजाला बनकर,
यूं मुझे दर्द न दो दिल का अंधेरा बनकर.


मन की बात पर शरद ऋतु का आन्न्द और हर्षोल्लास मिला:

सच में शरद उल्लास का समय है। त्योहारों और उत्सवों की रौनक़ मन -हंस को भू-सरोवर में प्रकृति के सुंदर दृश्य रुपी मोती चुगवाती है।

जन्म दिन मनाने का एक और नजरिया देखने को मिला क्षितिज कुलश्रेष्ठ से:

काश २४ या २५ साल की उम्र के बाद ये बढ़ना रुक जाए तो कितना अच्छा हो। उससे पहले मैं जल्दी बड़ा होना चाहता था। अब २७ के साथ लगता है कि ३० कितना करीब है।

राज वाकई एक अकेला इस शहर मे लगने लगे हैं, और बारीश के चक्कर मे पडे हैं और लगे गाना सुनाने.

गरम चाय के साथ लुत्फ उठाया गया पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ की किताब पर बातचीत करते हुये:

"क्या राष्ट्रपति को ऎसे राष्ट्रीय रहस्यों का खुलासा करने का अधिकार है जो कानूनन 30 वर्षों तक बाहर नहीं लाए जा सकते? जाहिर है, उनकी बातें एकपक्षीय होंगी और जिन बातों के बारे में उन्होंने लिखा है वे पुख्ता सबूत तथा दस्तावेजों के अभाव में विवाद को जन्म देंगीं।"

और यात्रा की अंत मे हितेन्द्र ने तिरछी नजरिया से कुछ जानी मानी हिन्दी कवितायें सुनाई.


आज की टिप्पणी:
रवि रतलामी--> छुटपुट पर:

दरअसल, मैंने जो कुछ भी नया प्रयोग अपने चिट्ठे में पैसे कमाने हेतु - बड़े ही एग्रेसिव अंदाज में विज्ञापनों को चिपकाने का किया है जिससे कई चिट्ठाकार बंधु इत्तेफ़ाक नहीं रखते, अमित अग्रवाल की साइट से प्रेरणा लेकर तथा उसमें दिए गए युक्तियों के आधार पर ही किया है.
हाँ, सामग्री की बात है, तो वह धीरे से आएगी. और यह भी तय है कि आपकी सामग्री अगर ठीक नहीं होगी तो पाठक बेवकूफ़ नहीं है जो आपको पढ़ने के लिए दोबारा आएगा.
मेरी कोशिश जारी है….

संजय बैगाणी इसी को आगे बढाते हैं:

पैसा कमाने के लिए पहले इस क्षेत्र को थोड़ा विकसित भी करना होगा. बीजो की बुवाई करो, सिंचाई करो फिर काटो वाला सिद्धांत यहाँ भी लागु होता हैं.

आज का चित्र:

पुनः सुनील दीपक, छाया चित्रकार की डायरी से:


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मंगलवार, सितंबर 26, 2006

विराजमान हैं मंच पर, सब दिग्ग्ज पीठाधीश

मार्टीना हिगिंसा
 मार्टीना हिगिंस

कल कुछ ऐसा हो गया कि हमारे रवि रतलामी जी के साथ वो हो गया जिसे कहते हैं अन्याय। बेचारे दिन भर घर पुतवाये और रात में लिखने बैठे चिट्ठाचर्चा। बहरहाल मेहनती आदमी होंने के नाते उन्होंने आंखे मुंदने तक लिखा और जब सो गये तो उनके नेट जीवन की तपस्या के प्रभाव से लेख अपने आप प्रकाशित हो गया। जो हुआ उसे गजल में अगर कहना हो तो ऐसे कहा जा सकता है क्या!-

कल रात एक अनहोनी बात हो गई
मैं तो जागता रहा खुद रात सो गई ।


इसमे मैं की जगह रात और रात की जगह मैं पढ लें तो मामला समझ में आ जायेगा काहे से कि कविता बनेगी:-


कल रात एक अनहोनी बात हो गई
मैं तो सो गया रहा खुद रात जाग गई ।


वैसे य्ह बता दें कि यह लाइन अनूप भार्गव ने लिखी है जो आजकल परेशान हैं जिसे देखो वही उनको सेलेब्रिटी बना डालता है। वो तो कहो शरीफ आदमी हैं जो बनाया जाता है बेचारे चुपचाप बन जाते हैं वर्ना कोई और हो तो बुरा मान जाये। अनूप भार्गव के गुड़्गांव प्रवास के किस्से,उनकी कवितागीरी के बारे में विस्तार से बताया प्रत्यक्षाजी ने अपने लेख धूप जनवरी की ,फूल दिसम्बर के में। वैसे लेख का शीर्षक पढ़कर अमर ट्रक साहित्य बरबस याद आ जाता है- बत्तीस के फूल चौंसठ की माला,बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला।


इधर गुड़्गांव में जब कवि सम्मेलन हुये तो बफैलो में काहे न हों! हुआ और जमकर हुआ.हमारे समीरलाल ने भी वहां जमकर शिरकत की और बाकी दिग्गज कवियों की तरह मामला गोपनीय नहीं रखा बल्कि पूरा खुलकर बताया.अपने कवितापाठ की बानगी देते हुये समीरलाल ने बताया:-

विराजमान हैं मंच पर, सब दिग्ग्ज पीठाधीश
हमउ तिलक लगाई लिये, अपनी खड़िया पीस.
अपनी खड़िया पीस कि बिल्कुल चंदन सी लागे
हंसों की इस बस्ती मे, बगुला भी बाग लगावे.
कहे समीर कि भईया, ये तो बहुत बडा सम्मान
इतनी ऊँची पैठ पर, आज हम भी विराजमान.


और विस्तार से जानने के लिये उड़नतस्तरी पर सवारी करिये.

शादी अगर एक बबाल है तो जो आदमी जानते-बूझते हुये शादी से बचने की कोशिश करेगा उसे और बबाल घेरेंगे यह शाश्व्त सत्य आशीष के ऊपर भी लागू होता है। जो आजकल एक नहीं तीन बबालों में फंसे हैं और रायसुमारी कर रहे हैं। जनता की राय क्या है आप खुद ही देख लीजिये। लेकिन कुंवारों के दुख भी एक नहीं होते तभी तो प्रेमेंन्द्र को समझ में नहीं आता कि वो सानिया सनसनी को समर्थन दें या हिंगिस को। इन दो क्न्यायों ने उनके घर में बंटवारा करवा दिया,तालियों की दीवार उठवा दी:-

आज मेरे समाने एक और असमजंस था एक तरफ सानिया तो दूसरी तरफ स्विस मिस हिगिंस किसका सर्मथन करू ? एक तरफ भारत की सानिया तो दूसरी तरफ हिगिंस जिसका मैने हर पल 1997 से सर्मथन करता चला आया। अत: मैने हिगिंस का सर्मथन करना उचित समझा क्‍योकि जिसका मैने हर पल सर्मथन किया है उसका साथ मै नही छोड सकता। मेरे घर मे दो गुट बन गये थे एक तरफ भइया सानिया को भारत की होने के कारण उसके शाटों पर ताली बजा रहे थे तो दूसरी तरफ़ मै हिगिंस के शाटों पर मै परन्‍तु ताली मैने ही सर्वाधिक बजाई और फाईनल तक बजाता रहा।


सिनेमा जगत में जहां सुनील दीपक की नजर आमिर खान की हरकतों पर थीं वहीं नीरज दीवान की नजरें ऐश्व्रर्या राय परटिकीथीं। इस सबसे अलग शुऐब देख रहे थे पाकिस्तान के अंधेरे को जहां सभी पाकिस्तानियों ने अंधेरे की वजह से मुशर्रफ को लम्बी लम्बी गालियाँ देते हुए पहला रोज़ा पकडा। और जिया कुरैशी छतीसगढ़ में चली ताजा हवा की जानकारी दे रहे हैं।


बालेंदु शर्मा जी की नजर है उस विज्ञापन पर जिसमें कहा गया है कि देखिए नीतिश कुमार की सरकार ने राज्य को नंबर वन बना दिया है।

संजय संथारा पर छिड़ी बहस को आगे बढ़ाते हुये मृत्यु के तरीकों/मार्गों की जानकारी दे रहे हैं लेकिन पंकज इस सबसे बेखबर नवरात्रि के मौके पर युवा वर्ग में मौज-मजे की कहानी बता रहे हैं । मौज-मस्ती और निरोध की बढती बिक्री की बात से लगता है कि कल को मौज-मस्ती की मात्रा परिभाषित करने के लिये कंडोम इंडेक्स या गर्भपात इंडेक्स न बन जाय।


खास खबर:- दुनिया में तमाम बातें पहली बार होती हैं। पहली हिंदी ब्लागजीन निकलती
है, पहला समूह ब्लाग बनता है, पहला ब्लागनाद होता है तो भला पहला बाल-ब्लाग काहे नहीं हो सकता? हां हो सकता है । यह पहला बाल-ब्लाग शुरू किया है संजय बेंगानी के सुपुत्र उत्कर्ष बेंगानी ने जो नौ के हो चुके हैं और अभी पांचवी में आये हैं। अपनी दुनिया की बिना किसी लाग-लपेट के जानकारी देते हुये वे बताते हैं:-

इसी साल मै पांचवी मै आया हुँ। उसके चार-पाँच दिन बाद एक लडकी आई । मुझे लगा कि वह मेरी दोस्त बन सकती है। पर कुछ दिन बाद वह मुझे अच्छी नही लगी क्योंकि वह गाली बहुत देती है।


अब आप समझ सकते हैं कि उत्कर्ष से दोस्ती करने की शर्तें क्या हो सकती हैं। अपनी दुनिया की शुरुआत करने के लिये उत्कर्ष को शुभकामनायें और जारी रखने के शुभाशीष।

आज की टिप्पणी
१.उत्कर्ष…….???
नाम सुना हुआ लगता है, शायद एक बार पंकज या संजय भाई के चिट्ठे पर कहीं पढ़ा था, कहीं छोटे संजय तो नहीं?
अगर आप उत्कर्ष बेंगानी ही हो तो कहना पड़ेगा कि पूत के पाँव पालने में ही दिखने लगे हैं।
કાં પછી એમ પણ કહી શકાય કે ” મોર ના ઈંડા ચિતરવા ના પડે”

सागर चंद नाहर

२.मुझे भी अजीब-सा लगा. आमिर ख़ान के इस कृत्य पर मुझे हैरानगी है. बाज़ार ने हमारी वैचारिक स्वतंत्रता को जकड़ लिया है. अब लगता है कि ब्रांड बड़ा है विचार नहीं. झूठ क्या है सच क्या है ये तो तभी तय होगा जब भारत सरकार शीतलपेय के लिए मानक तय कर दे. रिश्वतखोरों ने इसे लागू करने में बहुत देर कर दी है. मुझे इंतज़ार है कि कोई इन पर लगाम लगाए. वरना तब तक क़ानून कुछ नहीं कर सकेगा और आम जनता को इन दैत्याकार कंपनियों की मनमानियां झेलनी ही पड़ेगी.

नीरज दीवान

३.झेल रहे हैं बैठ कर, तुकबंदी हम श्रीमान
मकसद पूरा कर लिये, आप बहुत महान.
आप बहुत महान,जो भी कुछ करना चाहो
सफल रहोगे हरदम,चाहे कितना झिलवाओ.
कहे समीर कविराय, तेरे गजब रहे हैं खेल
जो भी तू लिख देगा, सारे ब्लागर लेंगे झेल.

समीरलाल

आज की फोटो:-

आज की फोटो समीरलाल जी के ब्लाग से कवि हैं श्रोता हैं कौन हैं ये आप पहचानने का प्रयास करें.

कवि सम्म्लेन के कवि-श्रोता
कवि सम्म्लेन के कवि-श्रोता

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खुद ही तकदीर बनानी होगी...

खुद ही तकदीर बनानी होगी

खुद ही तकदीर बनानी होगी. सच है. अपनी तकदीर तो हमें खुद ही बनानी होगी. आप अपनी तकदीर नहीं बनाएंगे तो और कौन बनाएगा? शायद ईश्वर भी नहीं. अनुभूति कलश में रमा द्विवेदी लिखती हैं -

खुद ही तुम्हें अपनी,
तस्वीर बनानी होगी।
खुद ही तुम्हें अपनी,
तकदीर बनानी होगी॥

न रहना इस भ्रम में,
कोई साथ देगा तुम्हें।
साथ तो देगा नहीं,
हरदम मात देगा तुम्हें॥

भारतीय सिनेमा में शंकर जयकिशन के बारे में कुछ चर्चा की जा रही है. हिन्दू जागरण पर बुश पर बढ़ते दबाव के बारे में विस्तृत चर्चा की गई है. उन्मुक्त वंदेमातरम के इतिहास पर शोध करने लगे हैं. उनका ताजा आलेख वंदेमातरम् और कानूनी मुद्दों के बारे में है, और शोध परक है.

भावनाएँ में इस दफ़ा बम युक्त भावनाएँ हैं -

मरते सपने, मरते अपने और मरती किलकारी है ।
नये समय की नयी समस्या विपदा यह अति भारी है ।

फ़ुरसतिया की कलम पुरानी डायरी के पन्नों को पलटते हुए चली . उन्हें मलाल है कि महज दो साल की ब्लॉग गिरी से ही जब उन्हें महाब्लॉगर की पदवी मिल गई तो पंद्रह साल पुरानी लिखी रचनाओं में आखिर क्या कमी रह गई थी?

चाह गयी चिंता मिटी,मनुआ बेपरवाह,
जिनको कछू न चाहिये सोई शाहंशाह।

आगे वे बढ़िया सूफ़ियाना गोठियाते हैं -

चाहत को बरकरार रखने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है।

सचमुच. चिट्ठा चर्चा लिखने की चाहत को बरकरार रखने में भी बहुत मेहनत करनी पड़ती है. अगर आप चाहते हैं कि आप भी चिट्ठा चर्चा लिख सकते हैं तो आपका इस मंडली में स्वागत है. सार्वजनिक एक टिप्पणी दे मारिए, या फिर सार्वजनिक कहने में शरमाते हैं तो फिर ईमेलवा दे मारिए मुझे या अनूप को या इस दल में जुड़े किसी को भी. वैसे, अगर यह खयाल आता है कि आपका खुद का या किसी का खास चिट्ठा यहाँ चर्चा में आने से रह गया तो फिर आपके लिए यह एक सही मौका है उस चिट्ठे को न्याय दिलाने का. आप भी लिखिए चिट्ठा चर्चा. स्वागत है आपका.

बहरहाल, आगे चर्चा करते हैं. संजय बेंगाणी (सही उच्चारण लिखा है न?) ने तरकश में जैन धर्म के एक अति विचित्र रस्म के बारे में लिखा है. संथारा - एक तरह की इच्छा मृत्यु है जिसमें धर्म का सहारा लेकर व्यक्ति अन्न जल त्याग कर मृत्यु का वरण करता है. मृत्यु अकाट्य है. परंतु इसे वरण करना? चलिए, संजय यही तो चाहते हैं - आप इस विषय पर अपने-अपने तर्क और विचार रखें.
संथारे तथा आत्महत्या में अंतर:

"आत्महत्या करने के पीछे मन में द्वेष का भाव होता हैं या फिर घोर निराशा। ऐसा हो सकता हैं अवसर मिलने पर व्यक्ति आत्महत्या का इरादा त्याग दे तथा अपने कृत्य पर पछतावा भी हो। जबकि संथारे में तत्काल मृत्यु नहीं होती यानी सोचने समझने तथा अपने उठाए कदम पर पुनर्विचार करने का पर्याप्त समय होता है। संथारे में जीवन से निराशा तथा किसी भी प्रकार के द्वेष का कोई स्थान नहीं होता। इसलिए इसे आत्महत्या से अलग माना जाना चाहिए। संथारा की तुलना सति प्रथा से करना भी गलत हैं, संथारा लेना हिन्दू धर्म के समाधि ले कर मृत्यु को प्राप्त होने जैसा है। शिवाजी महाराज के गुरूजी ने तथा रामदेव पीर ने समाधि ली थी। सीताजी ने भी समाधि ली थी।

मेरा निजि मत हैं की धर्म में दखल न मानते हुए इस विषय पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए। अगर हम चाहते हैं की सभी का जीवन सुखद हो तो हमें सभी के लिए सुखद मृत्यु की कामना भी करनी चाहिए।


(मेरी परदादीजी ने भी संथारा लिया था, मेरे पिताजी की मौसीजी ने भी संथारा लिया था. और जो विमलादेवी चर्चा में हैं वे भी मेरी दूर की रिश्तेदार हैं.)"

वहीं तरकश में संजय नवरात्रि पर्व के बारे में बताते हैं - खासकर गुजरातियों के बारे में -

"हालाकि अब शहरों मे गरबो का व्यवसायीकरण हो गया है। आयोजक बङे पैमाने पर पार्टीप्लोट तथा क्लबों में गरबो का आयोजन करते है, इनमें हिस्सा लेने के लिए महंगी टिकीटे खरीदनी पड़ती हैं पर जिस प्रोफेशनल तरीके से आयोजन होता हैं, पैसे वसूल हो जाते हैं। यह बात और हैं की इनमे परंपरागत गरबो का मुल स्वरूप ही गायब सा हो गया है। फिर भी शुरूआत दुर्गा की आरती से ही होती है बाद में गरबे शुरु होते है जिसका स्थान जल्दी ही डांडीया ले लेते है. नवरात्रि एक ऐसा त्योंहार है जिसमे युवावर्ग सबसे ज्यादा उत्साह के साथ हिस्सा लेता है. न रोक न टोक, बस पुरी रात नाचो गाओ।. ऐसे मे प्रेमी पंखीओ को उड़ने के लिए मुक्त आकाश मिल जाता है। गुजराती समाज में खुलापन है इस लिये नैतिकतावादीयों की चिल्लापो नही सुनायी देती। आपको आश्चर्य होगा देर रात तक अकेली लङकीयां बेखोफ सड़को पर घूमती नजर आयेगी पर छेड़छाड़ जैसी कोई घटना नही होती।"

इस चर्चे का चित्र - सुनील के कैमरे से - इल्हा का किला

मित्रों, इस चिट्ठा चर्चा को रात्रि 12.59 पर लिखा जा रहा है जबकि निद्रा देवी पलकों पर आसन जमाने को तत्पर है. रेडियो पर मोर गिरधारी नजरिया गीत बज रहा है - भोजपुरी गीत. और आगे मुझे समझ नहीं आ रहा है. इसीलिए व्यंज़ल का डोज़ अगले हफ़्ते. और, अगर चर्चे में आपके चिट्ठे छूट गए हों तो माफ़ी चाहता हूँ, और उम्मीद करता हूँ कि अगले चिट्ठाचर्चाकार उन्हें अवश्य शामिल करेंगे. वैसे, आपके लिए भी निमंत्रण तो मैं पहले ही दे चुका हूँ :)

इस दफ़ा की टिप्पणी - संजय (क्या बात है संजय, तीन दफ़ा अवतरित हो गए?) को ईर्ष्या हो रही है -

सुनील के चिट्ठे छायाचित्रकार पर -

आपके भाग्य से ईर्ष्या होने लगी हैं, आप सारा जहाँ घूम सके हैं और ऐसे अद्भुत नजारे कैमरे में कैद कर सके हैं.

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रविवार, सितंबर 24, 2006

ये क्या जगह है दोस्तों...

पितर पक्ष समाप्त हुये.नवरात्र की शुरूआत हुयी.रमजान की शुरुआत के साथ रोजे भी शुरू.यह अपने देश का सबसे ज्यादा त्योहारों वाला समय है.एक तरफ गुजरात,दिल्ली,मुंबई और बाकी हिस्सों में डांडिया की धूम है तो दूसरी तरफ़ बंगाल में दुर्गा पूजा की तैयारियां शुरू हो गयीं. रामलीला के मंच भी चहल-पहल में डूबने लगे हैं.रावण के पुतले बनने लगे .कवि सम्मेलन और मुशायरों के दिन आये.ये दिन कवियों और शायरों की सहालग के दिन है. ऐसे ही एक मुशायरे में प्रख्यात शायर राहत इन्दौरी पढ़ रहे थे:-
सभी का खून शामिल है यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदोस्तान थोड़ी है.


जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय अपने आप में खास है.इसके विभिन्न पहलुऒं के बारे में जानकारी दे रहे हैं अरविंद दास:-
विश्वविद्यालय सही मायनों में अखिल भारतीय स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है। केरल से लेकर कश्मीर तक और उत्तर-पूर्व राज्यों से लेकर मध्य भारत के कोने-कोने से यहाँ छात्र शुरूआती दिनों से आते रहे हैं। यह आवासीय परिसर छात्र – छात्राओं को एक-दूसरे को नजदीक से जानने का अवसर देता है। जो कुछ भी भ्रांतियाँ या पूर्वग्रह अन्य जाति या धर्म के प्रति रहते हैं, धीरे-धीरे खत्म होने लगते हैं। अरबी भाषा और साहित्य में शोधरत अताउर रहमान कहते हैं:‘मदरसा से पढ़ने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया में जब मैंने दाखिला लिया, वहाँ अपनों के बीच ही सिमटा रहा। यहाँ आकर पहली बार दुनिया को दूसरों की नजर से देखा।’


पूरा लेख जे एन यू के विविध पहलुऒं के बारे में बताता है. आशा है कि आगे की पोस्टों में अरविंद जी वहां के छात्र नेताऒं की मन:स्थिति और सोच के बारे में बतायेंगे तथा यह भी कि बिहार में मारे गये जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष चंद्रशेखर को लोग वहां किस तरह याद करते हैं.

अफलातून देसाई जी से भी गुजारिश है कि कुछ बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के बारे में बताते रहें.फिलहाल तो अफलातूनजी परिचर्चा में हो रही हिंदी पर बहस की बातें आपको बता रहे हैं.हिंदी के बारे में अपने विचार जनता जनार्दन को बताते हुये आशीष गुप्ता कहते हैं:-
मैं भाषा के स्वतः विकास का समर्थक हूँ। अगर किसी समय हिन्दी की बजाय अन्य भाषा प्रचलित हो जाती है तो जबरजस्ती हिन्दी पढ़ाने का ना मैं शौकीन हूँ ना यह कारगर तरीका है। भाषा विचारों का माध्यम है और कुछ नही (कम से कम सामान्य लोगों के लिये तो)। मेरे महाविद्यालय में एक समूह संस्कृत भाषा के विस्तार में कटिबद्ध था और गावों में स्थानीय तमिल की जगह संस्कृत का उपयोग प्रचलित करने के प्रयास करता था। मुझे उनके प्रयास समय और साधनो की व्यर्थतता ही लगे। भारतीय भाषायें मूलतः संस्कृत की संतति हैं। कौन माँ चाहेगी कि उसकी कीर्ती के लिये उसकी संतान का हनन किया जाये?


ये आशीष जी के विचार हैं लेकिन लोग बताते हैं कि मामला हिंदी बनाम अंग्रेजी का नहीं है वरन अंग्रेजी बनाम भारतीय भाषाऒं का है. अंग्रेजी यहां लदी हुयी है इसलिये नहीं कि अंग्रेजी का यहां स्वत: विकास हुआ यह साजिशन है जो अभी भी काम-धाम की भाषा यह बनी हुयी है.

बालेंदु शर्मा बता रहे हैं समाचार पत्रों की भेड़चाल के किस्से जो अंग्रेजी मिश्रित हिंदी प्रयोग करनें जुटे पड़े हैं:-
नवभारत में तो इस तरह के प्रयोग कम हो गए हैं लेकिन दूसरे अखबारों ने (जो बड़े अखबारों का अंधानुकरण करने में कोई कसर नहीं छोड़ते), इसे अपना लिया है। इनमें से कुछ तो अपने लेखों और खबरों में इतनी अंग्रेजी (कहीं देवनागरी लिपि में तो कहीं रोमन में भी) का प्रयोग कर रहे हैं कि लगता है भाषा के भ्रष्ट होने की यही गति जारी रही तो कुछ साल में ये अखबार देवनागरी लिपि में छपे अंग्रेजी अखबार बन कर न रह जाएं।


रमजान का महीना शुरू हुआ और शारजाह दुल्हन की तरह सज गया लेकिन शुऐब उसका मकसद भी बताते हैं:-

हर वर्ष दुबई मे शॉपिंग फेसटिवल मनाया जाता है और शारजाह मे रमज़ान का फेसटिवल मनाने की रिवायत है मानो मुखतलिफ फेसटिवलों को इस देश के सात राष्ट्रों ने आपस मे बांट रखा है। कोई भी फेसटिवल हो मकसद एक ही है पैसा कमाना और दबा कर कमाना।


ये मौसम ही कुछ ऐसा है कि मच्छर तक मस्त हैं और आपस में गपिया रहे हैं जिसको सुनकर बता रही हैं शिल्पा अग्रवाल:-

एक नुकीली मूँछ वाले सुडौल मच्छर का स्वर हमार कानों से टकराया- ” हम जिन शर्मा जी के यहां आज कल डेरा जमाये हुए हैं, उनके केबल आपरेटर ने उन्हें अपनी सेवाएँ देना बंद कर दिया है| अब बिना अबतक और सीन्यूज़ की खबरों के हमारा जी वहाँ नहीं लगता है| अब सोच रहे हैं कि मुनिसिपल कार्पोरेशन के बाजू वाली गली के गुप्ताजी के यहाँ पलायन कर लिया जाए| वहाँ की सङक पर काफी पानी रहता है, इससे मुझे बहुत आराम होगा|अरे भैया, तुम्ही बताओ कि कल के विशेष बुलेटिन में क्या मसाला था|”


इधर भारत क्रिकेट में हारा नहीं कि सवाल उठने लगे कि जब यही हाल होना है तो बेचारे गांगुली क्या बुरे हैं. आप इस बात पर सोचें तब तक लफ्जों के जादूगर साहिर लुधियानवी के बारे में भी जान लें और यह भी कि आर.एस.एस. क्या बला है.

सुनील दीपक के मछेरे का चित्र देखकर याद आती है कविता:-
एक बार और जाल फेंक रे मछेरे
जाने किस मछ्ली में बंधन की चाह हो.


रवि रतलामी से जानिये वोट बैंक का चक्कर और सुनते रहिये चुटकुले.इसके बाद आइये बताते हैं कि विवाह के लिये इंटरव्यू कैसे होता है.पहले जानिये उसकी अहमियत मनीष के से:-
अब इस इंटरव्यू को सिविल सर्विस की प्रतियोगिता परीक्षा से कम तो नही पर समकक्ष जरूर आँकना चाहिए । देखिये ना कितनी समानता है वहाँ पूरी परीक्षा तीन चरणों में होती है तो यहाँ साक्षात्कार ही तीन चरणों में होता है (पहले वर के पिता और उनके करीबी, फिर अगले चरण में घर की महिलायें और और अंतिम चरण में दूल्हे राजा खुद) अब इस परीक्षा के परिणाम की जिंदगी की दशा और दिशा संवारने में कितनी अहमियत है ये तो हम सभी जानते हैं।


आगे मनीष का संकल्प है:-
अरेन्जड मैरिज के लिये ये सारे प्रकरण जरूरी हैं, इस बात से मुझे इनकार नहीं । पर ये सारा काम एक सहज वातावरण में हो तो कितना अच्छा हो । पर सहजता आए तो कैसे खासकर तब जब पलड़ा हमेशा वर पक्ष का ही भारी रहता हो। कम से कम इन अनुभवों से मैंने यही निश्चय किया था कि अपनी शादी के समय इन बातों का ध्यान रखूँगा ।


अपने आगे के अनुभव वे आगे बतायेंगे. लेकिन इधर फुरसतिया अपने पुराने हाट-बाजार के अनुभव सुनाने लगे:-

चल पड़े बेचारे वह मंदिर पैदल,
साथ उनके था पैदलों का एक दल।
पगडण्डी पर चलने की आदत नहीं थी
पर संभलकर चलने की फुर्सत कहां थी।।

कर गये जल्दी संभल न पाये एक पल,
ढाल पर फिसलकर तोड़ लिये चप्पल।
चप्पल उठाने में चश्मा गिराये,
फिर उस चश्में से कभी न देख पाये।।



आज की टिप्पणी:-


अपने मक़सद में सफल रहे आप
हम सच में झिल गये माई-बाप ।

निधि


आज की फोटो:-


आज की फोटो बालेंदु शर्मा के वाह मीडियाब्लाग से

हिंदी अखबार की हिंदी
हिंदी अखबार की हिंदी

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शनिवार, सितंबर 23, 2006

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं

आज के चिट्ठाचर्चा की शुरुआत बधाई और शुभकामनाऒं से करें तो कैसा रहेगा! लेकिन पहले सबेरे का माहौल तो देख लीजिये. ये आज की फोटो (नीचे देखें)इल्हा दो मोज़ाम्बीक के सबेरे की है जिसे सुनील दीपक ने खासतौर से उनके लिये खीची है जो सप्ताहांत होने के कारण सबेरे-सबेरे बिस्तरायमान होंगे.

हां तो अब बात बधाई की.पंकज बेंगानी ने अपने ब्लाग सफर का साल पूरा किया और कल जुकाम से लड़ते हुये सबकी बधाइयां बटोरी.चिट्ठाचर्चा की तरफ़ से पंकज बेंगानी उर्फ मास्साब को सालगिरह पर बधाई. वैसे बधाई के हकदार देबाशीष भी हैं जिनके ब्लाग नुक्ताचीनी को ब्लागस्ट्रीट ने आज का खास ब्लाग बताया.

कुछ रोजमर्रा की छोटी-छोटी लगने वाली घटनायें जिंदगी में बड़े असर डालती हैं.संजय बता रहे हैं अपने बचपन की एक घटनाजिसने उनकी सोच में बदलाव की भूमिका तैयार की और वे आस्तिकता से नास्तिकता की तरफ बढ़े.

मनीष अपने गांव के बरगद के किस्से बयान कर रहे हैं जो कि बूढ़ा हो गया है लेकिन हरकतें देखिये:-
मुलुल-मुलुल ताकता रहता है गाँव की तरफ
गाँव की सारी जवान घसहिनें
तपती दोपहर में जब
इसकी छाँव मे सुस्ताती हैं
आपस में हँसी-ठिठोली करती हैं
दम साधे उनकी बातें सुनता है
बड़ा रसिया है

रवि रतलामी को बहाना मिला अपनी सारी कमियां प्रदूषण के मत्थे मढ़कर खुश होने की .आप खुदै पढो़ खबर. उधर रचनाकार में समस्यापूर्ति के लिये आयी हुये तरही शेर भी पढ़िये.

बुश और मुश आतंकवाद के नाम पर आपस में हुश-हुश करके खुश हो रहे हैं.इससे अगर आप ऊब रहे हों तो थोड़ा मन बदलने के लिये कविता सागर में डूबकर दुष्यन्त कुमार की गजल सुन लीजिये:-
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

राजेश जानकारी दे रहे है एक नयी साइट के बारे में जिसका नाम है जोहो. .राजदीप सरदेसाई सनसनी प्रिय हैं यह जानकारी मीडिया युग से मिलती है. सरदेसाई को पत्र अंगरेजी में लिखा गया है तकि वे पढ़ सकें और हो सके तो समझ सकें.
उधर थाईलैंड में हुये तख्तापलट पर भारत सरकार की कूटनीतिक चुप्पी की पड़ताल हो रही है इंडियागेट पर.

अवधियाजी संगीत के असाधारण ताल के बारे में जानकारियां देते हुये कुछ गानों के ताल कैसे बनाये गये इसकी जानकारी देते हैं:-

सबसे अधिक विभिन्न प्रकार के विचित्र तालों का प्रयोग करने वाले संगीतकार हैं आर.डी. बर्मन| उदाहरण के लिये तनिक गौर से सुनकर देखियेगा फिल्म पड़ोसन का गाना एक चतुर नार करके श्रिंगार..... को, ताल सुनकर झूम उठेंगे आप पर उसमें एक प्रकार की विचित्रता का भी अनुभव होगा| पंचम दा ने पश्चिम के वाद्ययंत्रों को इस्तेमाल करके भारतीय संगीत की रचना करने का बड़ा ही मधुर और सफल प्रयोग किया है|


उनमुक्त आज जानकारी दे रहे हैं अमेरिका में पेटेंट और कंप्यूटर प्रोग्राम के बारे में.उधर प्रभाकर गोपाल पुरिया दिशाशूल के बारे में कहावतों की जानकारी दे रहे हैं.अगर सब कहावतों पर अमल करें तो निकलना मुश्किल हो जाये.

शिल्पा अग्रवाल अपनी मां की याद संजोते हुये याद करती हैं:-
खिङकी के पीछे ,टकटकी लगाए,
मेरा इन्तजार करती है जो|

सुई में धागा डालने के लिये,
हर बार मेरी मनुहार करती है जो|

तवे से उतरे हुए ,गरम फुल्कों में,
जाने कितना स्वाद भर देती है जो|

मुझे परदेस भेज ,अब याद करके,
कभी-कभी पलकें भिगा लेती है जो|

अगर आप गूगल के लिये हिंदी में काम करना चाहते हैं तो देर न करें रविरतलामी के द्वारा बताई हुयी साइट में अपने आप को रजिस्टर करा दें अंतिम तारीख है २५ सितम्बर.रजिस्ट्रेशन की बात तो ठीक है लेकिन ये कैसी प्रतियोगिता है जो ३१ सितंबर को होगी.ये कोई गूगल सितंबर है क्या जो ३१ को भी रहेगा.

खास खबर:-विश्वत सूत्रों से पता चला है कि आज पूना में ब्लागर मीट का आयोजन किया गया है.शिरकत करेंगे देबाशीष,शशिसिंह और स्रजन शिल्पी.जगह सी-डेक अतिथि ग्रह और समय सबेरे ९-१२ का है.उधर टोरंटो से तीन घंटे की दूरी पर स्थित बफ़ैलो(क्या नाम है) में आयोजित कवि सम्मेलन में हिंदी के धुरंधर ब्लागर अपने जौहर दिखायेंगे जिनमें शामिल होंगे राकेश खंडेलवाल,अनूप भार्गव और उड़नतस्तरी वाले समीर लाल. पूना की ब्लागर मीट और टोरंटो के कवि सम्मेलन की शानदार सफलता की मंगलकामनायें

आज की टिप्पणी


१.भारत लोकतांत्रिक देश हैं और शासन करने के लिए चुनाव जितना पड़ता हैं, इसलिए वोट महत्वपुर्ण हो जाते हैं. परतुं वोटो के लिए राष्ट्रहित की अनहद अनदेखी खतरनाक होगी. या तो देश फिर से विभाजीत होगा या फिर कोई हिटलर पैदा होगा.
संजय बेंगानी
२.waah waah....janma divas ki shubhkaamanaye. Vaise tou be-sir-pair ki baate ki apne mujhse..ab sir-pair ki baat suniye :

wishes tumhe pankaj bhai,
wishes karo meri sweekaar,
jaise poora ek kiya,
sukhad shatak tum karna paar.

:) Aur haa apki photoshop ki classes me kaafee seekha uske naate main apne hisse ke RiN se aapko mukt karti hoo :)

निधि

आज की फोटो



सबेरा हो गया
 सबेरा हो गया

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शुक्रवार, सितंबर 22, 2006

समझ कर चाँद जिसको आसमाँ ने दिल मे रखा है

जरा इस समीकरण को समझा जाये
समीकरण १: जो ज्यादा खर्च करे वह दिल वाला
समीकरण २: बेदिल दिल्ली
समीकरण ३: दिल्ली वाले सबसे खर्चीले

अब निष्कर्ष निकालिये कि बेदिल दिल्ली के बाशिंदे दिलवाले हुये कि नही?
देश के दूसरे शहरों के मुकाबले यहां के लोग ज्यादा खर्चीले हैं. यां यूं कहें कि यहां के लोग शॉपिंग के साथ-साथ दूसरी चीजों पर दिल खोल कर खर्च करते हैं. पिछले कुछ सालों के मुकाबले लोगों की आय में भी कुछ इजाफा हुआ


ताऊ जीतू चौधरी का दिल कोई पाकिस्तानी सरहद पार ले गई, अब ताऊ को सब सरहद पार सब कुछ हरा दिक्खे है। अभी तो संगीतज्ञ चोक्खे दिखते हैं। आगे आगे देखो क्या दिखेगा!
कहते है संगीत सरहदे नही जानता, सीमाए नही मानता। अच्छा संगीत भाषाओं के बन्धनों को भी नही मानता। एकदम सही है यह। यदि ऐसा ना होता तो हम अंग्रेजी, अरबी,स्पैनिश और ना जाने किस किस भाषा के संगीत को पसन्द ना करते होते। लेकिन जनाब, हमारी सीमा पार पाकिस्तान मे तो संगीत प्रतिभाओं का खजाना है।


यह गाना सुना है?
समझ कर चाँद जिसको आसमाँ ने दिल मे रखा है
मेरे महबूब की टूटी हुई चूड़ी का टुकड़ा है

नही तो रोशनी के घेरे मे जायें, याद आ जायेगा

चूड़ियों के इन्द्रधनुषी रंगो से सजा कल्पनालोक, उनकी मधुर खनक, चूड़ी वाले की टेर पर चूड़ी खरीदने घर से बाहर की ओर दौड़ती स्त्रियां, छोटी बच्चियों जैसे उत्साह के साथ रंग पसंद करती और तरह-तरह की चूड़ियों की तुलना करती स्त्रियां - ये सारे चित्र इस कविता के साथ मानो सजीव हो जाते हैं और कानों में गूँज उठते हैं मोलभाव में लगे उत्साहित मधुर स्वर. भारत के शहरों, गाँवों और आस-पड़ोस में यह दृश्य आम है. एक दृश्य, जिसकी कल्पना मात्र से ही मन भाव-विभोर हो उठता है. कितना अद्भुत है न, चूड़ी जैसी साधारण वस्तु कैसी प्रसन्नता का कारण बनती है!


वाशिंगटन मे कोई कितना अकेला है?


रचना जी को किसी ने भ्रामक सूचना दी है कि उनका चिठ्ठा नारद जी कविता के खाते में डाल देंगे। अजी वही कविता जिसका फातिहा स्वामी पढ़ चुके हैं और जिससे जीतू चिढ़ते हैं । इन अफवाहो से घबरा कर रचना जी गयी योग की शरण मे पर रंगो ने पीछा न छोड़ा। टिप्णीकार फिर भी हौसला बढ़ाने में लगे हैं।

घर और मकान में परिभाषायी दुविधा की झमेले में नोस्टालजिया रहे समीर जी ने नेताओं को धो डाला।


आज की टिप्पणी
है अमेरीका तो आपको भी अमरीकी होना होगा
दो पल हंसने के लिए दो पल रोना होगा
काहे बात मन पे लगाके लालाजी और दुःख हो
मकान हो तो वही सही.. बस अब ठुक लो


पँकज

आज का चित्रः



छायाचित्रकार के सौजन्य से

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गुरुवार, सितंबर 21, 2006

माइक्रोसॉफ़्ट के नये फ़ॉनेटिक इनपुट औज़ार

नारद के लिये टकटकी लगाये साथी लोग ने लिखना स्थगित करके इंतजार शुरू कर दिया है कि नारद जी आयें तो लिखा जाय.यह कुछ ऐसे ही को फोटोग्राफर आये तब काम किया जाये तकि सनद रहे.ऐसे आपाधापी में नियमित है तो केवल चिट्ठाचर्चा जिसको लिखने के लिये ब्लाग-दर-ब्लाग टहलना पड़ता है क्योंकि साथी लोग लिख के लिंक चिट्ठाचर्चा में देने में संकोच करते हैं.बहरहाल.

सिनेमा के बारे में तमाम लोग तमाम जानकारी रखते हैं.आपको भी होगी .आपकी कुछ पसंदीदा फिल्में भी होंगी .विनय की भी हैं.विनय अपनी १०० पसंदीदा फिल्मों के बारे उनके निर्देशक के नाम के जानकारी देते हैं.अब यह जानकारी हम आपको दे दें कि विनय नियमित रूप से देसीपंडित में हिंदी की अच्छी पोस्ट की जानकारी देते हैं.

सिनेमा की बात चली तो अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र के बारे में भी जानिये.इन महानायकों के शुरुआती दिनों के बारे में जानकारी दे रहे हैं जी.के.अवधिया.

बात सनीमा से शुरू हुयी तो मीडिया गिरी भी जरूरी है.बालेंदु शर्मा यूनीवार्ता खबर एजेंसी के गलत हिंदी अनुवाद के बारे में जानकारी दे रहे हैं जिसके चलतेदुनिया भर के सारे टेलीविजन चैनेल दूरदर्शन हो गये.

इंडिया गेट बड़ा गेट है.आज इंडिया गेट से दो लेख निकले.पहले में बात की गयी है आतंकवाद पर सरकार की स्थिति के बारे में और दूसरे में सरकार के कार्यकलापों को शान्ति वार्ता और आतंकवाद के सहअस्तित्व के बनाये रखने जैसा प्रयास बता रहे हैं.इंडिया गेट की पूरी पोस्ट चाहे दस शब्द की हो या द्स हजार शब्द की लेकिन वाक्य एक ही रहता है.यह होती है शब्द की एकता की भावना.रहना एक ही वाक्य में है.

इसी क्रम में भारत-पाकस शान्ति वार्ता का जायजा लेते हुये अमिताभ त्रिपाठी का मानना है:-

भारत को पाकिस्तान के सम्बन्ध में अल्पकालिक नीतियों का परित्याग कर दीर्घगामी नीति का अनुपालन करते हुये पाकिस्तान के लोकतान्त्रीकरण का प्रयास करना चाहिये और इसके लिये पाकिस्तान की लोकतन्त्र समर्थक शक्तियों को नैतिक, सामरिक और आर्थिक हर प्रकार की सहायता देने का प्रयास करना चाहिये, अन्यथा महाशक्तियों के दबाव में पाकिस्तान को छूट देते हुये हम पाकिस्तान के इस्लामी साम्राज्यवादी एजेण्डे से घिर जायेंगे.


रिश्तों के रसायन में डूबा हुआ है आज का दिल्ली ब्लाग जिसमें तैरते हुये दिल्ली के ही मनीष फरमाते हैं:-
सही कहा आपने ! रिश्तों को बनाने से ज्यादा कठिन उन्हें निभाना है खासकर तब जब पीछे का परिदृश्य मीठे ख्वाबों से बदल दौड़ती भागती जिम्मेवारियों वाली जिंदगी में तब्दील हो जाए ।


लगभग दो साल पहले पहले रची कविता में शैलेश प्रेम में डूबे हुये अपनी कथा बता रहे हैं:-

बस इतना जान लो
नहीं रहा कुछ भी मेरा
छोड़ दिया है सबकुछ
लम्हों के आसरे।
शायद सिमट गया है
सम्पूर्ण अस्तित्व तुम्हारे में ही
बढ़ गया है श्वासों का त्वरण
घटने लगी है दर्शन की गहराई।
देखने लगा हूँ सपने
करने लगा हूँ प्रयत्न
कि कर सकूँ साकार।
हटा दिया है प्रत्येक आवरण
खोल दी है दिल की किताब
सालों की मैल थी उनपर
फेरने लगा हूँ उँगलियाँ।

वंदेमातरम में चाचा लालबुझक्कड़ ने कल पूछे हुये सवाल का जवाब विस्तार से बताया:-
कलरिप्पयट् के तीन स्वरूप हैं- दक्षिण भारतीय, उत्तर भारतीय और मध्य भारतीय. लगभग सात वर्ष की छोटी उम्र से ही इच्छुक विद्यार्थी को गुरुकुल में प्रशिक्षित करना शुरू कर देते हैं. यथावत विधि-विधान के साथ शिष्य गुरु से दीक्षा लेता है. इस प्रशिक्षण के चार मुख्य अंग हैं- मीतरी, कोलतरी, अनकतरी, और वेरमकई. इनके साथ मर्म तथा मालिश का ज्ञान भी दिया जाता है. मर्म के ज्ञाता अपने शत्रुओं के मर्म के स्पर्श मात्र से उनके प्राण ले सकते हैं अत: यह कला धैर्यवान तथा समझदार लोगों को ही सिखाई जाती है.


रवि रतलामी माइक्रोसॉफ़्ट का नये, भारतीय-बहुभाषी फ़ॉनेटिक इनपुट औज़ार के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं.यह संस्थापना में सरल है,प्रयोग में आसान है,इसमें इनस्क्रिप्ट भी उपलब्ध है,और इस औजार के जरिए हिन्दी और अंग्रेज़ी के अलावा बारह अन्य भारतीय भाषाओं में काम किया जा सकता है.इसकी बड़ी खासियत यह है कि इसमें एक से दूसरी भाषा में आसानी से परिवर्तन किया जा सकता है.

खास कड़ी:-इसमें देखिये चिट्ठाचर्चा की पहली पोस्ट .क्या इरादे थे और किन परिस्थितियों में यह निकलना शुरू हुआ.उन दिनों यह मासिक था.चिट्ठाचर्चा में लिखने के दौरान एक ब्लाग के बारे में जानकारी मिली थी जिसमें एक वेश्या अपने ग्राहकों से संबंध और व्यवहार की नियमित जानकारी देती थी . एक ब्लाग , पोस्ट सीक्रेट ,में हर रविवार को लोगों अपने मन के रहस्य प्रकाशित होते हैं. उनमें ज्यादातर तो यौनजीवन से संबंधित रहस्य रहते हैं लेकिन अन्य पहलुऒं के भी मजेदार उदघाटन भी रहते हैं. आप भी देखें और मन करे तो अपना भी मन खोलें. मन की बात पर ही पहली पोस्ट में कवि महेश सक्सेना की यह कविता फिर से देखिये:-
पुन: तपेगी वात
झरेंगे पीले-पीले पात
सहेंगे मौसम के आघात

बता दो पात-पात
पर लिखे गये
संबंधों का क्या होगा

धूप छांव में लिखे गये
अनुबंधों का क्या होगा.



आज की टिप्पणी


१.अपने मनमोहन सिहंजी अमेरिका से प्रभावित भद्र पुरूष हैं, जबकी मुशरर्फ से निपटने के लिए वाजपायी जैसे कुटनितीज्ञ चाहिए.अच्छा हो कोई कुटिल विदेशमंत्री की नियुक्ति कर दी जाए.
संजय बेंगानी

आज की फोटो



आज की फोटो सुनील दीपक के फोटो ब्लागछायाचित्रकार से से .

 मछुआरे

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बुधवार, सितंबर 20, 2006

तुम्हारे नाम वाली इक गज़ल...

पिछली शुक्रवारी चिठ्ठा चर्चा के दौरान भाई अतुल अरोरा हमारी इतनी तारीफ कर गये कि हम तो शर्मा से गये.
समीर बाबू के अँदाजे बयाँ से मुझे लग रहा है कि फुरसतिया जी और सुनील दीपक जी के के बाद यह तीसरे सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लागर बन चुके हैं।

इसी शर्मा शर्मी मे एक कुंडळी रच डाली:

हमरी तारीफ कर गये, अतुल बहुतई गंभीर
शरमाये से बैठे है हम, मन मे पकती खीर
मन मे पकती खीर अब का का लिख डालें
यूँ चलता रहे बखान, अब कौन से डोरे डालें.
कहे समीर कि चलो अब गा देते हैं ठुमरी
शायद यूँ चलती रहे फिर तारीफ भी हमरी.


अभी ठुमरी की तैयारी चल ही रही थी कि फ़ुरसतिया जी आ गये डंडा हिलाते: कल बुधवार है, याद है ना कल तुम्हारी ड्यूटी है. अरे हम कैसे भूलेंगे और भूल भी जाये तो ये भूलने ना देंगे, तो भाई रवि रतलामी का आदेश और फ़ुरसतिया जी कि उकसाहट पर कुंडळी से शुरुवात करते हैं:

पलक झपकते आ गया देखो फिर बुधवार
हम भी कलम उठाई के, लिखने को तैयार
लिखने को तैयार नया सा कुछ तो दिखेगा
चिठ्ठों पर लिखा चिठ्ठा भी बहुत खिलेगा
कहे समीर यहां तो बस दिखती एक झलक
चिठठों को पढ़ते हुये, झपकती नही पलक.


अब चिठ्ठा प्रविष्ठियां खोजने निकले तो बहुत कम सी दिखीं. सारे दावे, कि हम तो अपने लिये लिखते हैं, कोई पढ़े न पढ़े, खोखले से होते साबित हुये. नारद की बीमारी से लोगों की आवाजाही तो तय है, बहुत कम है. टिप्प्णियों का बाज़ार मंदा चल रहा है, तो इसके चलते लेखों की आवक भी रुक गई है.

जो थोडे बहुत मिले, उसी से संतोष किया.

हमेशा की तरह, यात्रा के पूर्व, कविता सागर मे गोता लगा कर हरिवंशराय बच्चन जी की रचना पढ़ी:

कहते हैं, तारे गाते हैं ।

सन्नाटा वसुधा पर छाया,
नभ में हमने कान लगाया,
फिर भी अगणित कंठों का यह राग नहीं हम सुन पाते हैं ।
कहते हैं, तारे गाते हैं ।.....



फिर आगे बढ़े तो क्षितिज कुलश्रेष्ठ - एक और नजरिया लिये मिले और सुनाने लगे बर्लिन मे चुनाव पर अपने विचार और जैसा की हम सब भारतियों के साथ होता है, उनके साथ भी हुआ. हर बात के साथ कि अगर यह भारत मे होता:

पर कल रात के नतीजों ने यह दिखा दिया कि जनता सिर्फ नेता का काम देखती है, बाकी चीजों से उसे कोई लेना देना नहीं है। यदि भारत की जनता भी सिर्फ नेता का काम देखे, उसकी जाति, धर्म, या और कोई चीज नहीं तो भारत में भी निठल्ले नेताओं का सफाया हो जाए।

अरे भईया, कभी उल्टा करके देखो कि जो भारत मे हो जाता है और खबर तक नही बनता, वो यहां हो जाता तो क्या होता.

उन्मुक्त जी हिन्दी ब्लागरों के लिये एक बला का खुलासा करते हुये टहलते मिले : आर एस एस फीड क्या बला है.

तब तक हमारी नज़र पड़ी राकेश खंडेलवाल जी पर, हम तो पेड़ के पीछे छुप गये, न जाने किसके लिये आंख बंद कर गा रहे हैं, मगर गजब का और बहुत लय मे.. "तुम्हारे नाम वाली इक गज़ल" ....गीत चुरा लेने को जी चाहता है:

अंधेरे की तराई में चमकते चांद की किरणें
तुम्हारे नाम का दीपक जला कर साथ लाई हैं
बहारों की गली में चल रही अल्हड़ हवाओं ने
तुम्हारे नाम वाली इक गज़ल फिर गुनगुनाई है


अनूप शुक्ला उर्फ़ फ़ुरसतिया जी बेहद फरमाईशुदा लेख लेकर हाजिर हुये ...अथ लखनऊ भेंटवार्ता कथा और हम संतुष्टी को प्राप्त हुये:

अपनी इस भेंटवार्ता का जिक्र करते हुये बताते है:

जब प्रदेश की राजधानी में गन्ना शोध संस्थान के सभागार में अनूप भार्गव सम्मानित हो रहे थे ,इनाम पा रहे थे ऐन उसी समय नाम महात्म्य के कारण और सितंबरी सुयोग वश कानपुर में अपनी फॆक्ट्री के सभागार में अनूप शुक्ल भी पैसे और उपहार बटोर रहे थे। कुल जमा सात सौ रुपये और पानी की दुइ लीटरिया बोतल मिली। कुल चार इनामों में से ३००/-मिले लेखन प्रतियोगिता में पहला स्थान पाने के लिये,२००/- मिले भाषण प्रतियोगिता में स्थान पाने के लिये और पूरे दो सौ मिले लेख भारत एक मीटिंग प्रधान देश है और कविता आओ बैठें कुछ देर पास के लिये जो हमारी निर्माणी की पत्रिका स्रवन्ती में छपी थी।

और हम समझे कि भाई लखनऊ गये है, खैर यह बात स्विकार भी कर ली गयी उनके द्वारा कि कैसे जब वो द्वय माला पहन रहे थे, उस वक्त हमें टोपी पहनाई गई और चिठ्ठा चर्चा लिखवा कर ही माने. अनूप जी के बारे मे आगे बताते हैं:

लेकिन इनको जानने वाले कहते हैं कि वे कवि,प्रचारक,आयोजक,इंजीनियर,पति,पिता से बढ़कर एक बहुत अच्छे इंसान हैं। यह बात इतने लोगों ने कही है कि इसे सच मानने के सिवा हमारे पास कोई चारा नहीं है।

थोडे शिकायती लहजे मे अपना झटका देते हुये फ़ुरसतिया जी:

प्रत्यक्षाजी ने दो दिन लगातार अनूप भार्गव और हिमानी भार्गव के साथ,( बसीर बद्र,कुंवर बेचैन आदि के भी साथ ) कवितागिरी लेकिन उसका कोई विवरण नहीं दिया। उधर पूना में देबाशीष मे न रमण कौल से मुलाकात का जिक्र किया और सृजन शिल्पी तो खैर आज कल वहीं हैं ।

उधर नारद पर टेस्टिंग जोर शोर से चालू है, लगता है जल्द ही पूरे नये रंग रुप मे सज संवर कर जल्द ही आयेगा. तब तक इंतजार मे ही सही, विरह गीत लिखते रहें.

पुनश्चः भाई नितिन बागला भी पुस्तक समीक्षा द अफ़गान करते पकडे गये हैं और कह रहे है:

तो जैसा के नाम से ही जाहिर है, मशहूर ब्रिटिश लेखक फ्रेड्रिक फ़ोरसिथ (Frederick Forsyth) का नवीनतम उपन्यास ‘द अफ़गान‘ (The Afghan) अफ़गानिस्तान की ही पृष्ठभूमि पर आधारित है…उपन्यास की कहानी कुछ इस तरह से है ।

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मंगलवार, सितंबर 19, 2006

नीरज निर्मल घास पर...

नीरज निर्मल घास पर प
 नीरज निर्मल घास पर..



हिंदी दिवस के अवसर पर पूरे देश में पुस्तक मेले लग रहे हैं.ऐसे ही एक मेले में खुलकर मिले नीरज दीवान से जगदीश भाटिया और बोलते पाये गये:-

निर्मल हृदय नीरज निर्मल घास पर पड़ीं किताबों की तरह खुलते चले गये। बातों बातों में दो घंटे और कैसे गुजर गये पता ही नहीं चला। इस प्रकार दो ब्लागरों की पुस्तकों के साथ भेंट समाप्त हुई।


अब यह नीरज दीवान के पल्ले है कि वे जगदीश जी का खुलासा करें.

मनीष ने तो बहाने से कविता सुना दी अब यह आप पर है कि आप वाह-वाह करें या आह-आह.वैसे मौका बदला लेने का भी है.आप भी टिका दीजिये एकाध कविता.लेकिन पहले मनीष की कविता तो झेल लीजिये:-

पर तुम ही कहो ये भी कोई बात है?
स्वप्न देखा है जिसने नहीं
कल्पना की उड़ान पर जो ना उड़ा
दूसरों का दर्द समझेगा क्या भला ?
जिसके मन-मस्तिष्क से मर गई संवेदना !

सो निर्भय हो के तुम ऊँचे उड़ो
सपनों की चाँदनी को तुम चखो
पर लौटना तो ,पाँव धरातल पर हो खड़े
है करना अब हम सबको यही जतन
जीवन में कैसे हो इनका संतुलन



गपशप सुनिये जिसमे बातें वही हैं जो होती हैं.शीर्षक है- फ़ुस्स हो गए बड़बोले बहल.

सुनील दीपक बता रहे हैं इरशाद मनजी जो कि ,लेस्बियन (समलैंगिक) है, कुछ भी उल्टा पल्टा कहती रहती है, विदेशियों की एजेंट है, केवल नाम की मुसलमान है", जैसी बातें कहीं जाती हैं उसके बारे में. जान से मारने की कई धमकियाँ मिल चुकी हैं उसे और केनेडा में उनके घर की खिड़कियाँ गोली से न टूटने वाली (बुलैटप्रूफ) बनी हैं के इस्लामी आतंकवादियों के बारे में विचार. इरशाद का सवाल है:-

अगर उन्हें मुसलमानों के मारे जाने का इतना ही गुस्सा है तो दुनिया के इतने देशों में जो मुसलमान शासन दूसरे मुसलमानों को मार रहे हैं उनके विरुद्ध क्यों नहीं आतंकवाद करते? सूडान में इस्लामी शासन के नीचे अरबी मुसलमान लड़ाकू काली चमड़ी वाले मुसलमानों को लूट रहे हैं, भूखा मार रहे हैं, उनकी औरतों का ब्लात्कार कर रहे हैं, उन पर बम बरसा रहे हैं तो क्यों नहीं बाकी के मुसलमान इसके विरुद्ध बोल रहे हैं? जो पाकिस्तान में सुन्नी मुसलमान, शिया मुसलमानों को मारते हैं तो क्यों नहीं बोलते? मुसलमान दुनिया में कितनी जगह गृहयुद्ध हो रहे हैं उसकी बात क्यों नहीं करते?

मुंबई बम ब्लास्ट में मारे गये लोगों केलिये संवेदना प्रकट करते हुये साधना कंवर लिखती हैं हायकू:-
दर्दनाक था
सदमें का असर
मिटा ही नहीं।


फिल्मी दुनिया में संगीत के सफर की जानकारी दे रहे हैं जी के अवधिया.

डा. रमा द्विवेदी अपने कविता अपना कोई नहीं है में अपने भाव व्यक्त करती हैं:-

सूना है मन का अंगना ,अपना नहीं कोई है,
हर सांस डगमगाती सी बेसुध हुई हुई है।

गिरती है पर्वतों से ,सरपट वो दौडती है,
प्रिय से मिलन को देखो पागल हुई हुई है।


वंदेमातरम में लालबुझक्कड़ जी ने जो पूछा है उसके जवाब भी आ चुके हैं.आप भी कुछ बूझिये न!
रमेशचन्द्र श्रीवास्तव की गजलें पढिए रचनाकार में.एक गजल में कहा गया है:-

दूर मंजिल नहीं, हौसला चाहिए
अब रुकावट है क्या देखना चाहिए

हम हवा की तरह हैं, ठहरते नहीं
पर्वतों में भी एक रास्ता चाहिए

देश ही में जिएँ देश पर ही मिटें
जिन्दगी में हमें और क्या चाहिए


चित्र क्या-क्या सोचने के लिये मजबूर करते हैं यह आप देखिये सुनील दीपक के फोटो ब्लाग में.

रवि रतलामी जी के वचन और कर्म में हालीवुड और झुमरी तलैया का अंतर दीखता है.एक तरफ़ तो वे परिचर्चा में कहते हैं कि ब्लाग पर कुछ विज्ञापन तो पोस्ट से ज्यादा खूबसूरत दिखते हैं(ऐसा लिखते समय उनके मन में अपने ब्लाग की भी /ही छवि होगी ) .दूसरी तरफ़ वे ब्लॉगर के चिट्ठे विज्ञापन मुक्त कैसे पढ जैसी पोस्ट लिखते हैं.मतलब एक तरफ तो महाराज खूबसूरती को पहचानेंगे और दूसरी तरफ उससे दूर रहने के तरीके बतायेंगे. बलिहारी है.

अनूप भार्गव को हिंदी दिवस पर उनके विदेश में हिंदी प्रचार-प्रसार के लिये किये जा रहे प्रयासों के लिये सम्मानित किया गया.इसका संक्षिप्त विवरण प्रत्यक्षा जी को जमा नहीं सो वे लिखती हैं:-

वाह ! अनूप जी को एक बार फिर ढेर सारी बधाई और शुभकामनायें कि आगे और भी सम्मान उन्हें मिलते रहें ।फुरसतिया जी इतना छोटा लेख ? नहीं चलेगा । हम तो विस्तार से अनूप द्वय की मुलाकाती कहानी पढना चाह्ते हैं ।


उन्मुक्त जी उनके समर्थन में ख़ड़े हो गये जबकि अनूप भार्गव पूछ रहे हैं नारद में सहायता कैसे करें:-
अनूप भाई:
आज ही भारत से लौटा हूँ ।
बधाई और शुभकामनाओंके लिये धन्यवाद ।
नारद को पुनर्जीवित करनें के लिये बतायें, “कहाँ , कैसे और क्या करना है ?” मेरा योगदान तो रहेगा ही लेकिन भारत में कुछ मित्रों से बातचीत हुई थी , शायद कोई बेहतर विकल्प सुझा सकूँ !!!! बतायें कि आवश्यकताएं क्या हैं ?


स्वामी जी तथा जीतेंद्र से अनुरोध है कि वे अनूप भार्गव जी से सम्पर्क कर लें.

कल की चर्चा जारी रखेंगे हमारे समीरलाल जी जिनके पास उड़न तस्तरी भी है और कुंडलिया भी सुनायेंगे

आज की टिप्पणी


Etna lallantop hindi bhi net per padhne milega,Kabhie soche hi nahi they.MAzboori hai ki hindi font mein nahi likh sakte parntoo, aabahr zaroor vyakt karna chaheinge.
एतना लल्लनटाप हिंदी भी नेट पर पढने को मिलेगा ,कभी सोचे ही नहीं थे. मजबूरी है कि हिंदी फांट में लिख नहीं सकते परन्तु आभार जरूर व्यक्त करना चाहिये.
अनजान


आज की फोटो



आज की फोटो फुरसतिया से .इसमें अनूप भार्गव को उ.प्र. के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव सम्मानित कर रहे हैं.

 अनूपभार्गव-मुलायम सिंह यादव

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सोमवार, सितंबर 18, 2006

समाज सेवा के बहाने व्यावसायिकता?


उन्मुक्त की प्रविष्टि नई नहीं है, परंतु उन्होंने अपने सारे चिट्ठों को एक स्थल पर पढ़ने के लिए संजोया है, वहां पर वह नई बात बता रहे हैं कि इस पेज पर नयी प्रविष्टियां कैसे देखें.

"यह बहुत आसान है। आप अपने ब्राउज़र के edit मेन्यू में जायें और Find में नयी तारीख - उदाहरण के लिए 17 sep लिख दें। फिर Find Next करते जाएँ. बस आप उस तारीख की प्रविष्टियों पर पहुंचते जायेंगे। आप को पूरे पेज पर सारे चिट्ठों को देखने की जरूरत नहीं है. "


यह चिट्ठा-चर्चा प्रविष्टि इस युक्ति के सहयोग से ही लिखी गई है.

नितिन बागला ब्लॉस्ट्रीट के सूचनार्थ उसकी कड़ी चिपकाते हैं, परंतु शायद उन्हें यह कार्य चिट्ठा प्रविष्टि में नहीं, बल्कि बाजू-पट्टी में करना चाहिए. ई-छत्तीसगढ़ में - जिया कुरैशी बताते हैं कि साप्ताहिक आउटलुक ने छत्तीसगढ़ के प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को हिंदी के दस शीर्षस्थ रचनाकारों में से एक चुना है। श्री शुक्ल के अलावा कृष्णा सोबती, कमलेश्वर, केदारनाथ सिंह, कुवंर नारायण, श्रीलाल शुक्ल, असगर वजाहत, मंगलेश डबराल, उदय प्रकाश और विष्णु नागर को भी शामिल किया है। आउटलुक ने उनकी रचना ‘पेड़ पर कमरा' भी प्रकाशित किया है. रा. च. मिश्र अपने हिन्दी ब्लॉग पर सचिन का शतक वीडियो दिखा रहे हैं. सचिन को एक और शतक बनाते देखना किसे अच्छा नहीं लगेगा? शायद सौरव को. डी एल एफ़ कप मे वेस्ट इंडीज के विरुद्ध सचिन के नाबाद १४१ की एक झलक (यू ट्यूब पर ६१ सेकेंड) तो वाकई दर्शनीय है.


काव्य कला - के लक्ष्मी ना गुप्त को छाते का आविष्कार के बारे में बताने का खयाल उस वक्त आया जब तीन दिन से लगातार बारिश ने उन्हें परेशान किया. वैसे, मेरी भी स्वीकारोक्ति है कि मुझे भी छाते के आविष्कार के बारे में पता ही नहीं था और कभी मैंने भी कोशिश नहीं की थी जानने की. मेरा खयाल है कि छाते के आविष्कार के बारे में जानने न जानने से छाते के द्वारा भारी बारिश में भीगने की कोशिश और भीग नहीं पाने में असफल होने में कोई सम्बन्ध नहीं है. मगर, फिर भी, आविष्कार की कहानी रोचक है.

"आज तीन दिन से बारिस हो रही है। छाता लगा कर सबेरे ८ बजे की क्लास पढ़ाने जा रहा था तो सोचने लगा कि क्या आजकल के नवजवान हिन्दीब्लागरों को यह पता है कि छाते का आविष्कार किसने किया था। मैंने अनुमान लगाया कि शायद नहीं। मैं समाजसेवा का ऐसा सुनहरा मौका हाथ से नहीं निकलने देना चाहता था इसलिये यह प्रविष्टि पेश कर रहा हूँ। यह तो अन्दाज़ा लगा ही लिया होगा कि विश्व की अधिकांश बेहतरीन चीज़ों की तरह यह आविष्कार भारत में ही हुआ होगा। हाँ जी, हमारे पुराणों के अनुसार यह बिलकुल सत्य है।"


उन्मुक्त अपने दूसरे चिट्ठे पर - मुझे पता नहीं कि वे कितने चिट्ठे लिखते हैं - क्या उन्मुक्त को खुद पता भी है कि वे कितने चिट्ठे लिखते हैं? तो, उन्मुक्त अपने दूसरे चिट्ठे - या शायद तीसरे चिट्ठे पर - मां तुझे सलाम यानी कि - वंदेमातरम का इतिहास बता रहे हैं -

"आधुनिक युग में बंगला साहित्य का उत्थान उन्नीसवीं सदी के मध्य से शुरु हुआ। इसमें राजा राम मोहन राय, ईशवर चन्द्र विद्यासागर, परिचन्द्र मित्रा, माईकल मदसूदन दत्त, बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय, रवीन्द्र नाथ टेगोर ने अग्रणी भूमिका निभायी। इसके पहले बंगाल के साहित्यकार बंगला की जगह संस्कृत या अंग्रेजी में लिखना पसन्द करते थे। बंगला साहित्य में जनमानस तक पैंठ बनाने वालों मे शायद बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय पहले साहित्यकार थे..."



हमेशा की तरह सुनील - स्वच्छ और निर्मल शब्दों में ‘दिल्ली का दिल' बता रहे हैं जो अस्वच्छ और दूषित सा है -

"बचपन में घर में दूसरे शहरों से मेहमान आते तो कहते, "बाप से बाप, यहाँ दिल्ली में रहना क्या आसान है!"

लखनऊ अधिक सभ्य है, हैदराबाद में लोग कितनी इज़्ज़त से बात करते हैं, बम्बई में यातायात किस तरह नियमों का पालन करते हुए चलता है जैसी बहुत सी बातें सुनने को मिलतीं, यह बतलाने के लिए कि उनके मुकाबले दिल्ली वाले सभ्यताविहीन थे, उनके बात करने में लड़ाकापन था, उनके यातायात में कोई नियम न पालन करने का ही नियम था.

"दिल्ली के लोग या तो पंजाब से आये शरणार्थी हैं जिनका सब कुछ पाकिस्तान में रह गया और सब कुछ खोने के बाद जिन्होंने जीने के लिए लड़ लड़ कर अपने जीने की जगह बनाई है, उनसे सभ्यता की आकाँक्षा रखना बेकार है. दूसरे दिल्ली के रहने वाले देश भर से आये बाबू लोग हैं जो सरकारी दफ्तरों में काम करते हैं, उन्हें दिल्ली अपना शहर ही नहीं लगता, उनके घर तो अन्य प्रदेशों में हैं जहाँ से वे आये हैं, उन्हें इसलिए दिल्ली की कुछ परवाह नहीं है....""


प्रभाकरगोपालपुरिया ने इस दफ़ा ‘ब्राह्मण' को अपने व्यंग्यात्मक कविता का शिकार बनाया है और क्या खूब बनाया है. बानगी देखिए -

"देख ! इसे अब मत छूना,मैं ब्राह्मण हूँ.
आओ बैठो पैर दबाओ,थोड़ा ठंडा तेल लगाओ,
करो धीरे-धीरे मालिश,दूँगा तूझे ढेर आशीष,
पर तुम मुझको छूना नहीं,अपवित्र हो जाऊँगा.
ब्राह्मण हूँ...."


भारतीय सिनेमा में - जी.के. अवधिया सुभाष घई के नए प्रयोग के बारे में चर्चा कर रहे हैं. यहाँ वे जैकी श्राफ के भाई-पने को बताना नहीं भूले. रीतेश गुप्ता की भावनाएँ कल आनंद में थी, आज उनकी कविता परवान चढ़ रही है .

"एक उभरते कवि ने एक कविता गढ़ी ।
बदले मैं उसे एक प्रतिक्रिया कुछ यूं मिली ।
कृपया अपनी कविता का स्तर उठाइये ।
और साथ-साथ उसका वजन भी बड़ाइये ।
सम्मान पूर्वक कवि ने उत्तर दिया ।
श्रीमान आपने स्थिति को बिलकुल सही पढ़ा है ।
किन्तु यह कवि कुछ दिनों से ही कविता से जुड़ा है ।"


लखनवी ‘अतुल श्रीवास्तव' एक नए अंदाज की हृदय स्पर्शी कहानी सुना रहे हैं -

"अब भला नीरज कैसे चुप रहता? उसने भी अपने दिल की बात खोल दी, "अबे आमिर तो लड़की लगता है. मैं तो सलमान या संजय दत्त बनूँगा. बॉडी देखी है अपुन के भाई की? दाँयी बगल में श श शाहरुख और बायीं बगल में आमिर को दबा कर उनका भरता बना दे." अब तक तो सूखी घास में आग पूरी तरह से लग चुकी थी - मैं ह्रितिक, मैं अभिषेक और बीच बीच में मैं सचिन और मैं द्रविड़ की आवाजें भी आयीं.

पाँडे जी ने बच्चों से मिलने का अपना विचार फटे हुये कच्छे की तरह त्याग दिया और निराशा में मुंडी हिलाते हुये वापस पलट लिये. अभी कुछ ही कदम आगे बढ़े थे कि शोर शराबे और चिल्ल-पों के बीच में से एक मिमियाती हुई सी आवाज सुनायी दी, "मैं बड़ा होकर अशोक बनूंगा." खीज खाये हुये पाँडे जी ने झुँझलाते हुये पूछा, "अब ये अशोक ससुरा कौन है? पहले तो इसका नाम कभी नहीं सुना." एक बार फिर से मिमियाती हुई आवाज सुनाई दी, ................"

कहानी का क्लाइमेक्स तो, वास्तव में मजेदार है - हृदय में गुदगुदी मचाने वाला है. क्लाइमेक्स के लिए चिट्ठा पढ़ें

रविरतलामी गूगल के ‘समाज सुधार में व्यावसायिकता' को हिन्दी चिट्ठाकारिता से जोड़कर देखने की कोशिश कर रहे हैं तो मन की बात में नियम संयम की बातें हो रही हैं. जरा देखें क्या बातें हो रही हैं?

"सारी सृष्टि को इतना छेड़ते हो।
सब कुछ कर दिया है बेलगाम,
जैसे प्रकृति हो तुम्हारी ग़ुलाम।
पर तुम्हारा यह अहं ठीक नहीं,
नयों के लिए कोई सीख नहीं।
मत रखो नियमों को ताक पर,
मत काटो बैठे हो जिस शाख पर।
वरना स्वयं तो अंगभंग हो जाओगे,"

और, अरे! यहाँ तो टिप्पणी में रुपए, डॉलर और यूरो की बातें हो रही हैं!

रजनीश मंगला की टिप्पणी है...

भाया, आपकी ये कविता मैंने अपनी छोटी सी साप्ताहिक मुफ़्त बँटने वाली पत्रिका बसेरा के ग्याहरवें अँक में डाली है। उम्मीद है कि आपको कोई आपत्ती नहीं होगी। साथ में एक और प्रयोग भी करने जा रहा हूँ। अब से लेकर हर सप्ताह चुनी गईं ब्लाग प्रविष्टियों के लिए मैं छोटे से उपहार के रूप में एक एक यूरो (लगभग 55 - 58 रुपए) देना चाहता हूँ। अगर आप ये उपहार कबूल करते हैं तो कृपया मुझे भारत में अपने किसी बैंक खाते का विवरण rajneesh_mangla@yahoo.com पर भेजें। धन्यवाद

और, इस टिप्पणी पर व्यावसायिकता की ओर भाग रहे रविरतलामी को जरा सी व्यावसायिकता क्या दिखाई दी दौड़ पड़े अपनी टिप्पणी जड़ने -

7:59 AM

रविरतलामी की टिप्पणी है...

वाह भाई रजनीश . कभी मेरे ब्लॉग भी छाप देना . मुझे भी यूरो कोई खराब नहीं लगते हैं :)

5:08 PM

और, नियम संयम के साथ चिट्ठे की प्रकृति से मेल खाता प्रकृति का यह चित्र तो दर्शनीय है ही
नियम संयम का चित्र

**-**

अंत में, फ़रमाइशी व्यंज़ल. चहुँ ओर व्यावसायिकता के चर्चे हैं, परिचर्चाएँ हैं. चलिए आज इसी को चुनते हैं.

हमने जरा सी बात की व्यावसायिकता की
उन्होंने दुकानें सज़ा लीं व्यावसायिकता की

मुँह मोड़ लिए हैं ‘लंगोटिया यारों' ने यारों
जुर्म है
क्या बातें करना व्यावसायिकता की

मत करो शिकवा अपने काम में वज़न की
डालकर देखो जरा वज़न व्यावसायिकता की

लोग असफल हो गए, शायद उन्हें नहीं पता
मुहब्बत में भी जरूरी है व्यावसायिकता की

रवि भी चल पड़ा है अब दीवानों के रास्ते
हयात में देखे संभावना व्यावसायिकता की

**-**

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रविवार, सितंबर 17, 2006

चवन्नी भर सरक गया इतवार

सबेरे से बांचते रहे अखबार
चवन्नी भर सरक गया इतवार
अब कितनी देर करोगे यार
चलो चिट्ठाचर्चा करो तैयार.


आज इतवार का मौज मजे का दिन.पूरे भारत में जहां भी छेनी-हथौड़े चलती है,जहां भी पहिया घूमता है वहां आज भगवान विश्वकर्मा की पूजा हो रही है.उत्पादन संस्थानों में सजावट है,मौज-मजे हैं.पुरानी मशीनें धुल-पुंछ कर सावन सुंदरी सी सजी खड़ी हैं.पुरानी मशींने नई मशीनों को देखकर अपने दिन याद कर रही हैं.

उधर नेट पर जीतेंद्र चौधरी में बैठे नाना पाटेकर के अब तक छ्प्पन वाले अंदाज में नारद का चंदा गिनते हुये अब तक ६०० डालर गिन चुके हैं.कल की पोस्ट में
फुरसतिया की जन्मदिन के बहाने खिंचाई करके वे बडे़ खुश हैं कि अब तक के सारे हिसाब बराबर कर लिये. जन्मदिन पर अनूप शुक्ला के बारे में लिखते हुये जीतू नेलिखा:-
शुकुल भाई चिकाई करने मे बहुत आत्मनिर्भर और स्वावलम्बी है, कभी भी किसी की चिकाई करने मे विदेशी सहायता पर निर्भर नही रहते। अकेले अपने बलबूते पर चिकाई लेते है। सार्वजनिक रुप से भरपूर चिकाई लेते है और व्यक्तिगत रुप से मेल मुलाकात कर आते है। जैसे भारत और पाकिस्तान के हुक्मरान, सार्वजनिक रुप से बयानबाजी (चिकाई) करते है, मिलने पर हैंहैं करते हुए पाए जाते है। अगला बन्दा इनका ब्लॉग (दो तीन बार पढकर) सोचता है कि इसने चिकाईबाजी तो की है, लेकिन कुछ उखाड़ने की सोचे इस बीच शुकुल गूगलटाक पर चहकते हुए, पब्लिक रिलेशन करते हुए नजर आते है।बन्दा अभी कुछ कहे, उससे पहले ही ये कहते है, अरे वो हम सिर्फ़ मौज ले रहे थे। वो लेख तुम्हारे लिए थोड़े ही था, वो तो पब्लिक के लिए था। बन्दा लुटा पिटा, ठगा सा रहा जाता है। इसे बोलते जबरी मारे और रोने भी ना दे।

जीतेंदर की इस बहादुरी को साथी ब्लागर सराहते हुये क्या कहते हैं आप खुद देखिये.इसके अलावा फुरसतिया से कल की रवि रतलामी और ई-स्वामी से हुई बातचीत पढ़ी हो तो पढ़ लीजिए.
रवि रतलामी के ही सौजन्य से पढ़िये स्वयं प्रकाश की हृदयस्पर्शी कहानी : बलि.


वीर रस के प्रसिद्ध कवि ब्रजेंद्र अवस्थी की एक कविता की पंक्तियां हैं:-


सब तो इतिहास देखते हैं,निर्दिष्ट पथों पर चलते हैं,
पर कम मिलते हैं जो अपने पथ पर इतिहास बदलते हैं.


ऐसे ही लीक छोड़कर अपनी रास्ता खुद तय करने वाले अपनी मेहनत से रास्ता बनाने वाले उद्यमी शरतबाबू की कहानी विस्तार से बताई है आशीष ने:-

उस साहसी युवक का नाम सरतबाबू है, जिनकी प्रेरणाश्रोत है, उनकी अपनी मां। वो मां जिन्होने उसे और उसके भाई बहनो को पढाने के लिये झुग्गी झोपडीयो मे ईडली बेची थी। उस युवक का सपना उस वक्त सच हुआ था जब एन आर नारायणमुर्थी ने परंपरागत विधी से सरतबाबू के इस उद्योग का दिप जलाकर उदघाटन किया था।

यह पोस्ट आज की खास पोस्ट है और आशीष इसके लिये बधाई के पात्र हैं.
संगीता मनराल अपने सपने के बारे में बात करते हुये लिखती हैं:-
जिन चिटीयों को
पैरों तले
दबा दिया था
मैंने
कभी अनजाने में
वो अक्सर
मुझे मेरे
सपनों मे आकर
काटतीं ह


मोहम्मद रफ़ी ने किशोर कुमार के लिये गाना गाया इसके बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं अवधियाजी.

राजेश आज आनंदमग्न हैं:-
आनंद सिर्फ़ इन्द्रियों के सुख में ही नहीं है ।
और आनंद कोई जीवन की शर्त नहीं है ।
पर इसके बिना जीवन का अर्थ नहीं है



अमिताभ त्रिपाठी पोप १६ के द्वारा दिये विवादास्पद बयान की जानकारी दी गयी है.पोप बयान बाजी करते हुये कहते हैं:-

किसी जनसंख्या को कायम रखने के लिये आवश्यक है कि महिलाओं का सन्तान धारण करने का औसत 2.1 हो परन्तु पूरे यूरोपीय संघ में दर एक तिहाई 1.5 प्रति महिला है और वह भी गिर रही है . एक अध्ययन के अनुसार यदि जनसंख्या का यही रूझान कायम रहे और आप्रवास पर रोक लगा दी जाये तो 2075 तक आज की 375 मिलियन की जनसंख्या घटकर 275 मिलियन हो हो जायेगी. यहाँ तक कि अपने कारोबार के लिये यूरोप को प्रतिवर्ष 1.6 करोड़ आप्रवासियों की आवश्यकता है. इसी प्रकार वर्तमान कर्मचारी और सेवानिवृत्त लोगों के औसत को कायम रखने के लिये आश्चर्यजनक 13.5 करोड़ आप्रवासियों की प्रतिवर्ष आवश्यकता है.इसी रिक्त स्थान में इस्लाम और मुसलमान को प्रवेश मिल रहा है. जहाँ ईसाइयत अपनी गति खो रही है वहीं इस्लाम सशक्त, दृढ़ और महत्वाकांक्षी है. जहाँ यूरोपवासी बड़ी आयु मे भी कम बच्चे पैदा करते हैं वहीं मुसलमान युवावस्था में ही बड़ी मात्रा में सन्तानों को जन्म देते हैं.यूरोपियन संघ का 5% या लगभग 2 करोड़ लोग मुसलमान हैं. यदि यही रूझान जारी रहा तो 2020 तक यह संख्या 10% पहुँच जायेगी.जैसा कि दिखाई पड़ रहा है कि गैर मुसलमान नयी इस्लामी व्यवस्था की ओर प्रवृत्त हुये तो यह महाद्वीप मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र बन जायेगा. इन तथ्यों की पृष्ठभूमि में यह स्पष्ट हो जाता है कि इस्लाम के सम्बन्ध में पोप का बयान कोई भावात्मक या आवेशपूर्ण उक्ति नहीं है वरन् यूरोप और ईसाई समाज की असुरक्षा की भावना की अभिव्यक्ति है. पोप बेनेडिक्ट के दृष्टिकोण से स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में इस्लाम और ईसाइयत के मध्य आरोप-प्रत्यारोपों का दौर चलेगा और उसका परिणाम आने वाले वर्षों
में विश्व स्तर पर नये राजनीतिक और सांस्कृतिक ध्रुवीकरण के तौर पर देखने को मिल सकता है.


जैसा के होता है आज के अखबारों में खबर है कि पोप ने अपने बयान का गलत मतलब लगाये जाने की बात कहते हुये खेद व्यक्त कर दिया.बात खत्म.
प्रतिभा वर्मा सोचती हैं:-

सोचती हुँ कि गर वो पराया है तो अपना क्या है,
शाम से चाँद तो साथ है मेरे ,
फिर आज आसमान में निकला क्या है ?


आगे वे अपनी योजना बताती हैं:-

तेरा प्यार हम इस तरह निभायेंगे,
तुम रोज खफा होना,हम रोज मनायेगें
पर मान जाना मनाने से तुम,
वरना ये भीगी पलके ले कर कहाँ जायेंगे हम ?



सूचना:- कल का चिट्ठाचर्चा हमारे साथीरवि रतलामी लिखेंगे -चिट्ठा आपको पसंद आयेगा क्योंकि वह संभवत: व्यंजलमय होगा.

आज की टिप्पणी


1.ऐसे लोगों का जीवन-वृतांत स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल होना चाहिए। आज की चमकीली दुनिया में गरीबी और संघर्ष से घबराए बच्चे उत्साह और मनोबल बढ़ा सकते हैं। इतना प्रेरणादायी परिचय पढ़वाने हेतु साधुवाद।
प्रेमलता
2.ऐसा लगा फुरसतियाजी ने फुरसतियाजी के लिए लिखा हैं. महिला चिट्ठाकार के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने की तथा हिट-कांउटर वाली बाते पढ़ कर उस रस की प्राप्ति हुई जिसकी उम्मिद में यहाँ आया था.
फुरसतियाजी को जन्मदिवस की बहुत-बहुत बधाई.

संजय बेंगाणी

आज की फोटो:-


आज की फोटो रवि रतलामी की रचनाकार की पोस्ट से:-
कला
> दो सहेलियां

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शनिवार, सितंबर 16, 2006

कचरे का सार्थक उपयोग

जगदीश भाटिया माया और राम की गठबंधन सरकार पिछले तीन दिन से चल रही हैं यह हमें भी पता चल गया.इससे अलग नितिन कहते हैं कि सरकार तो बस पैसे की चलती है:-
कहते हैं गर्मी भी बडी होती है पैसे में..अच्छे अच्छों को पिघला देता है, एक दम मक्खन के माफ़िक…यकिन नही आता..किसी सरकारी विभाग में चले जाइये..आपको पैसे की गर्मी, और नोट का वजन दोनो पता चल जायेंगे,कोई फ़ाइल नही सरकती , जब तक नोट की गर्मी अफ़सर के हलक के नीचे नही उतरती..धारावाहिक आफ़िस-आफ़िस तो सबने देखा ही होगा

सुनील गावस्कर के हस्ताक्षर देखिये हिंदी ब्लागर्स के लिये शुभकामनाओं से सहित बजरिये राजेश.उधर बेंगाणी भाई की खरीददारी की व्यथा कथा देखी जाये और यह भी अंत कैसे मुस्कान से हुआ:-

अब बारी थी भुगतान करने की. कम्पयूटर ने बार-कोड पढ़-पढ़ कर आंकड़ों को दर्ज किया फिर कटर-कटर की आवाज़ करता बिल निकला. श्रीमतिजी ने इसका भुगतान किया. तब तक हम पास पड़ी कुर्सी पर ठेर हो चुके थे. श्रीमतिजी पास आकर बोली,”बिल देखो, 7 के भाव थे 15 से बिल बनाया हैं.”
”अब तुम्हें मोर्चा संभालना हैं तो सम्भालो, नहीं तो घर चलो. मुझ से तो अब खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा.”
”यह बेईमानी हैं, मैं देखती हूँ.”
मैं उन्हे काउंटर दर काउंटर बहस करते देखता रहा. फिर जीत की मुस्कान लिए लौटी तो हमने भी मुस्कुराकर स्वागत किया और घर की ओर निकल लिए.

सागर चंद नाहर आपके सुझाव के लिये परेशान हैं तो तरुण की चिन्ता क्रिकेट की अनिश्चितता को लेकर है.हिंदी के नक्कारखाने में बिहारी बाबू अपनी तूती बजा रहे हैं.इस पर प्रेमलताजी अपने मन की बात कह रही हैं:-
पर तुम्हारा यह अहं ठीक नहीं,
नयों के लिए कोई सीख नहीं।
मत रखो नियमों को ताक पर,
मत काटो बैठे हो जिस शाख पर।
वरना स्वयं तो अंगभंग हो जाओगे,
साथ में औरों को भी विकलांग कर जाओगे।

अतुल अब लिखना कम करके मजेदार फोटो दिखाने में लग गये हैं.
कचरे के सार्थक उपयोग के बारे में विस्तार से जानिये बमार्फ़त वंदे मातरम:-
अच्छी खबर ये है कि इस समस्या का समाधान हमारे देश की एक महिला वैज्ञानिक ने ढूंढ निकाला है. नागपुर, महाराष्ट्र के एक इंजीनियरिंग महाविद्यालय की प्राध्यापिका श्रीमती अलका झाडगांवकर ने एक ऐसी प्रणाली की खोज की है जिससे प्लास्टिक को ईंधन मे परिवर्तित किया जा सकता है. वैसे तो प्लास्टिक का निर्माण पेट्रोलियम मतलब खनिज तेल से ही होता है लेकिन उसे फिर से खनिज तेल में परिवर्तित करना बडा़ ही मुश्किल और महंगा काम होता है. लेकिन यह नयी प्रक्रिया दुनियाँ की सबसे पहली प्रक्रिया है जिसमें किसी भी प्रकार की प्लास्टिक बिना किसी साफ़ सफ़ाई के सुरक्षित ढंग से इस्तेमाल की जा सकती है और वह भी व्यावसायिक रुप से! प्रो. झाडगांवकर के अनुसार, औसतन ९.५० रु. की लागत से १ किलोग्राम प्लास्टिक से ०.६ लिटर पेट्रोल, ०.३ लिटर डीज़ल व ०.१ लिटर दूसरे प्रकार के तेल का निर्माण किया जा सकता है जिसकी कीमत लगभग ३१.६५ रु. है.

वाह मीडिया में आज देखिये नायिका को और हो सके तो पहचान भी लीजिये.अफलातून देसाई समाजवादी विचारधारा के हैं.अक्सर अपने विचार बताते रहते हैं.कभी गांधी वांग्मय के हिंदी अनुवाद को लेकर दुबले होते रहते हैं तो कभी नारद के बारे में अपनी
समझ जाहिर करते हैं.नेता विरोधी पार्टी के अन्दाज में मुट्ठी तनी रहनी चाहिये मामला कौनो होय.आज वे बता रहे हैं हिंदी राजभाषा के बारे में गांधीजी के विचार:-
इस विदेशी भाषा के माध्यम ने बच्चों के दिमाग को शिथिल कर दिया है . उनके स्नायुओं पर अनावश्यक जोर डाला है , उन्हें रट्टू और नकलची बना दिया है तथा मौलिक कार्यों और विचारों के लिए सर्वथा अयोग्य बना दिया है . इसकी वजह से वे अपनी शिक्षा का सार अपने परिवार के लोगों तथा आम जनता तक पहुंचाने में असमर्थ हो गये हैं . विदेशी माध्यम ने हमारे बालकों को अपने ही घर में पूरा विदेशी बना दिया है . यह वर्तमान शिक्षा -प्रणाली का सब से करुण पहलू है . विदेशी माध्यम ने हमारी देशी भाषाओं की प्रगति और विकास को रोक दिया है . अगर मेरे हाथों में तानाशाही सत्ता हो , तो मैं आज से ही विदेशी माध्यम के जरिये हमारे लडके और लडकियों की शिक्षा बंद कर दूं और सारे शिक्षकों और प्रोफ़ेसरों से यह यह माध्यम तुरन्त बदलवा दूं या उन्हें बर्ख़ास्त करा दूं . मैं पाठ्य पुस्तकों की तैयारी का इन्तजार नहीं करूंगा . वे तो माध्यम के परिवर्तन के पीछे - पीछे चली आयेंगी . यह एक ऐसी बुराई है , जिसका तुरन्त इलाज होना चाहिये


इसी क्रम में संविधान और हिंदी भाषा के बारे में जानकारी दे रहे हैं स्रजन शिल्पी.
मीडिया के छिछ्लेपन पर नजर दौडा़ते हुये मीडिया युग में सवाल उठता है:-
सवाल ये भी है कि क्या इन प्रेम कहानियों के अतिरिक्त समाज में कहीं भी कुछ और नहीं घट रहा है, जिस पर बात करना मीडिया की जिम्मेदारी होती है। और जिसे मीडिया बिल्कुल अनदेखी कर रहा है।
आखिर ये मीडिया है या खाला बी और बुलाका बुआ की दोपहर को होने वाली गपशप, जिसमें वो सारे मोहल्ले की खबर रखती और बताती है, जिनका बदला हुआ स्वरूप है आज की किटी पार्टीज।

अमित की थीम नई है और माशाअल्लाह काबिलेतारीफ़ भी लेकिन रोना वही पुराना कि समझ में नहीं आता क्या लिखें.

हिंदी दिवस पर अपने लेख में विचार व्यक्त करते हुये विनय लिखते हैं:-

अब ये बात बिल्कुल अलहदा है कि राजभाषा बनकर हिंदी को फ़ायदे कम नुकसान ज़्यादा हुए. सरकारी हिंदी बन गई औपचारिक, रूखी और अनुवाद की भाषा. और वह भी बस खानापूर्ति को, बल्कि कई बार उतनी भी नहीं. न तो यह सही मायनों में राजभाषा बन सकी न सरकारी काजभाषा.

इसके कारण कई रहे होंगे और मैं उनमें नहीं जाना चाहता, पर हिंदी समेत भारतीय भाषाओं के विकास को सरकारी मशीनरी ने अवरुद्ध भले ही किया हो, गति तो नहीं दी. अगर हिंदी फिर भी जनभाषा है, विश्व में तीसरी-चौथी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली ज़ुबान है, दिनों-दिन नये शब्द ग्रहण करती जीवंत बोली है, तो यह सरकारी मशीनरी के प्रयासों के बावजूद है, उनके कारण नहीं.

पर मनाने दीजिये सरकार को राजभाषा का एक दिन. आखिर यह आधिकारिक मामला है. इस बहाने साल में एक दिन तो समीक्षा करें कि आधिकारिक तौर पर इस दिशा में क्या काम हो रहा है. बस इसे हिंदी दिवस कहा जाना थोड़ा खटकता है. वैसे ही जैसे अगर आप स्वतंत्रता दिवस को भारत दिवस कहने लग जाएँ.



बधाई:- आज हिंदी ब्लागर फुरसतिया उर्फ अनूप शुक्ल का जन्मदिन है. फुरसतिया अक्सर दूसरों की खिंचाई करते पाये जाते हैं.लेकिन इस बार बारी इनकी खिंचाई की है.एक दिन पहले से ही लोगों ने इनकी मोमबत्ती फूंक दी.रविरतलामी और ईस्वामी ने कुछ सवाल-जवाब हैं.इसी मौके पर पढ़ें अनूप शुक्ला का अभिव्यक्ति में हिंदी दिवस के अवसर पर लिखा लेख.

आज की टिप्पणी:-


1.बिल्कुल सही बात कही है विनय जी. अंत में सरकार क्या कहती है या करती है, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ेगा. डँडे या कानून के ज़ोर से भाषाएँ नहीं फ़लती फ़ूलती, अगर उनमें जनता को अपनी अभिव्यक्ति न मिले. उससे अधिक प्रभाव पड़ा है शायद मुम्बई के फ़िल्म जगत की भाषा होना का!

सुनील दीपक
2.अरे भाई, इनको तो टी आर पी बढानी है, तो मसाला खबरें लाते नही, निर्मित भी करते हैं, आप चाहे जिस नाम से पुकारें, "तो हम इन न्यूज चैनलों को की जगह घर चौबारा क्यों नहीं कहते?"
ये तो वही ला रहे हैं, जो बिक रहा है.

उड़न तस्तरी

आज की फोटो:-


आज की फोटो अतुल की पोस्ट से:-
मजेदार तस्वीर
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