शुक्रवार, अक्तूबर 31, 2008

बिलाग लिख लिख यूपी-बिहार बदलिहैं

राज ठाकरे अगर कोई बेनाम टिप्‍पणी होती तो अब तक अनगिन हिन्‍दी चिट्ठाकार बांकुरों ने उसे कब का डिलीट कर मारा होता पर अफसोस राज ठाकरे एक टिप्‍पणी नहीं, वे हैं-इतिहास की पैदाइश। महाराष्‍ट्र का ही इतिहास नहीं वरन बिहार का भी इतिहास। इतिहास बार बार बताता है कि भविष्‍य की चिंता न करने वाले लतियाए जाते हैं, हरिवंशजी याद दिला रहे हैं कि ये ट्रेन फूंकने का नहीं जागने और कर दिखाने का अवसर है-

अपना नुकसान कर हम अपनी कायरता का परिचय दे रहे हैं। अपनी पौरुषहीनता दिखा रहे हैं। अगर सचमुच हम दुखी, आहत और अपमानित हैं, तो दुख, पीड़ा और अपमान को एक अद-भुत सृजनात्मक ऊर्जा में बदल सकते हैं। चुनौतियों को स्वीकार करने की पौरुष दृष्टि ही इतिहास बनाती है। इस घटना से सबक लेकर हम हिंदीभाषी भविष्य का इतिहास बना सकते हैं।

पर अधिकांश ब्‍लॉग बांकुरे इसे अधिकार और आजादी की बाइनरी में ही देखने के लिए अभिशप्‍त हैं तभी तो कमलेश मदान को राहुल राज भगत सिंह जान पड़ रह हैं, तिसपर मुबई बायकॉट का नारा भी। 'ऐब' इन्‍कन्‍वेंटिए महोदय को ये बेचारे राज ठाकरे की मजबूरी जान पड़ती है। न‍ीतीश इस क्षेत्रवाद की आग को पहचान रहे हैं। वैसे ब्‍लॉगरों के 'प्रिय' किरदार राज ठाकरे ही रहे हैं- मिथिलेश को वे भस्‍मासुर नजर आ रहे हैं। वहीं राहुल राज के पीछे मूल कारण के रूप में भी ठाकरे को पहचाना जा रहा है। हैरानी की बात है कि कोई लालू, मायावती, मुलायम जैसों को नहीं पहचान रहा है जिसने हमें दर बदर बेइज्‍जत होने वाला बनने पर विवश कर दिया है-

सारे प्रकरण में लालू ने ही पाया है. इसके आगे नितीश और पासवान तो पिछलग्गू की तरह खड़े दिखते हैं. जो लोग बिहार की जड़े खोद कर खागये आप उनके पीछे चलने को कैसे कहते हैं? जिस तरह राज ठाकरे और बाल ठाकरे समाज की विकृतिया हैं, लालू भी इन सबसे अधिक विकृति है.

ब्‍लॉग से क्षेत्रवाद खत्‍म करने पर उतारू इस बात पर भी हैरान हैं कि भैया ये मेधा पाटकर काहे चुप हैं, मराठी मानूस काहे हमारी लड़ाई नही लड़तीं। अमिताभ बच्‍चन जरूर विवेकपूर्ण बने रहने की कोशिश कर रहे हैं।

कुछ लूगों (लोगों) का ये मानना है की अब क्यूंकि मै हिन्दी मे लिख रहा हूँ इसलिए वे अब इस ब्लॉग से सम्बन्ध तोड़ना चाहते हैं I

मैंने उन्हें लिखा की जो भी मै अंग्रेज़ी मे लिख रहा हूँ वो ही हिन्दी मे भी लिख रहा हूँ I हम सब को अपनी मात्रि भाषा से मुह नहीं मोड़ लेना चहिये I अंग्रेज़ी मे लिखी बात यदि मै हिन्दी मे भी कहना चाहूँ तो मै उसे कहूँगा , और इसी तरह हिन्दी मे लिखी बात अगर मै अंग्रजी मे कहना चाहूँ तो मै उसे अवश्य कहूँगा I

हमें सब भाषा ओं पे गर्व है , उनकी सोच समझ और उनके विश्वास पे भी I हम उनका आदर करते हैं I

इसकी सूचना हिन्‍दी जगत को दे रहे हैं विजय ठाकुर।

इस क्षेत्रवाद को खत्‍म करने या बढ़ाने के अलावा भी हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत बहुत कुछ करने में व्‍यस्‍त है। मसलन पासवर्ड याद रखना। सबसे आसान है पहले प्‍यार को पासवर्ड बना लेना

.. पहले जिस अधूरे प्यार की जगह किसी किताब में, किसी नोवेल में या फिर क्लास नोट्स के आखिरी पन्नों पर होती थी (दिल के किसी कोने में होने के अलावा) उसको एक नई जगह मिल गई है... और कमाल की सुरक्षित जगह है... पासवर्ड !

दिक्‍कत बस ये ही है कि पासवर्ड चाहिए सैकड़ों और पहला प्‍यार तो एकाध ही हो सकता है बहुत हुआ दो चार- ऊधौ मन न भए दस बीस :)

पासवर्ड, क्षेत्रवाद छोडि़ए आनंद लीजिए -अनिल रस घोल रहे हैं देसी मिठाइयों का। ये सब न भी करना चाहें तब भी कोई बात नहीं, कुछ न करना क्‍या कम बड़ा काम है?

 

मेरे लिए
कोई सोम-मंगल-बुध नहीं होता
मेरे लिए
महीने की पहली तारीख हो
या आखिरी
क्यों फर्क नहीं पड़ता
मेरी रात कई टुकड़ों में होती है
दोपहर-शाम
नींद जब भी आ जाती है
मेरे लिए
सपने, दुख देते हैं

पर आप न ही मानते हों और कुछ न कुछ करने पर अड़े हों तो रविजी का साथ दें वे छत्‍तीसगढ़ी आपरेटिंग सिस्‍टम बनाने पर तुले हैं। वैसे आप भैंस की पूंछ पर हो रही ब्‍लॉगर मीट का हाल भी पढ़ सकते हैं। तो करने को बहुत कुछ है ब्‍लॉग में। और परेशान न हों...असम में भी बम फट गए हैं अब कई दिन उस पर स्‍यापा करेंगे तब तक फिर कुछ हो जाएगा।

हम ठहरे ब्‍लॉग के समाजिक सरोकारों से शून्‍य जन, हमारी पसंद की पोस्‍ट आज है, अनिल यादव का हिचकीय सपना-

..............सारा डर, सारी उत्तेजना को आदतन भींच कर, मैं खुद को बस गिर जाने देता हूं। मैं चीखता नहीं क्योंकि हर दिन ढेरों अचरजों पर तटस्थ रहने का आदती हो चला हूं। बस एक आंधी जैसी सीटी गले और कान के पास बज रही है जिसे सिर्फ मैं सुन सकता हूं। एक खामोश लंबी यात्रा शुरू होती है...हरा, काई में लिपटा अंधेरा भागा जा रहा है....नीले आसमान की कौंध....पंख फैलाए निश्चिंत गोल चक्कर घूमती एक चील की झलक....भागता अंधेरा। प्रतीक्षा....प्रतीक्षा....प्रतीक्षा.....वह झटका और मैं वापस उछाल दिया जाऊंगा फिर निश्चित ही जमीन की तरफ लौटने की यात्रा शुरू होगी।ghar toot gaya hai

चलते चलते एक नजर कुछ नए ब्‍लॉगों पर-

राही मासूम रजा का साहित्‍य - अरे वाह शुक्रिया

प्रकाश सिंह का अर्श   जुल्‍म ए मोहब्‍बत की सजा

पत्रकार राजेश रंजन का यदा कदा

शोधार्थी शालिनी दुबे के जिंदगी के अनुभव

मास्‍साब मनोज मिश्रा का मा पलायनम

अनिल सौमित्र की तीखी लगने वाली लाल मिर्ची

स्‍वप्‍न मेरे- दिगम्‍बर नासवा के।

प्रशान्त दुबे का आत्‍मदर्पण

इन पत्रकार  का कलम क्रांति

मीना अग्रवाल का टमाटर (वाह क्‍या नाम है, ब्‍लॉग का- रसीला और महँगा)

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गुरुवार, अक्तूबर 30, 2008

इंकब्लागिंग की बात ही कुछ और है !

 दीपावली

ज्ञानी लोग हमेशा आपके लिये परेशानी के कारण बनते रहेंगे। अब बताओ दीपावली के बाद ज्ञानजी को यह बताने की क्या जरूरत थी कि जो दीपावली के दिन सूरन (जिमीकन्द) नहीं खाता वह अगले जन्म में छछूंदर पैदा होता है! ये भी कोई बात हुयी भला! ये कैसी सफ़लता की अचूक नीति हुई जी।

ज्ञानजी की इस सफ़लता की अचूक नीति के जवाब में मानसी ने अपने ब्लाग पर मधुर-मधुर रजनीगन्धा गीत के साथ यह भी लिखा है-बाज़ी जीत जाने की आदत क़ातिलाना होती है।

आज समीरलाल को चर्चा करनी थी। उसके लिये उनको समय नहीं मिलता है। कैसे मिले? वो कन्याओं का बायोग्राफ़िया लिखने में मशगूल हैं।

प्रश्न पूछना भी एक कला है।मग्गा बाबाबताते हैं कि ईश्वर का ध्यान करते समय सिगरेट नहीं पी सकते लेकिन सिगरेट पीते समय ईश्वर का ध्यान कर सकते हैं। ये हुआ उस्ताद आचरण!

इस जुयें में दांव पर स्वयं हम हैं इस लेख में पढ़िये कि आज की अर्थव्यवस्था में कैसे हमारी कीमत तय होती है।

तकनीकी चीजें तो उसी दिन पुरानी हो जाती हैं जिस दिन खरीदी जाती हैं। यह सच जो नहीं स्वीकारता है वह रविरतलामीजी की गति को प्राप्त होता है और कहता है:नई, लेटेस्ट तकनॉलाज़ी : क्या खाक!

लेकिन तकनीक हमेशा नये-नये रूप में अवतरित होती रहती है। देखिये अमित ने अपने मोबाइल से इंकब्लागिंग का नमूना पेश किया है। है न मजेदार। जानदार च शानदार! वैसे सच पूछा जाये तो इंकब्लागिंग की बात ही कुछ और है !

एक लाइना



  • ये अत्याचारी लड़कियाँ.. :बार-बार लिपिस्टिक लगाती हैं।


  • सफलता की अचूक नीति : क़ातिलाना होती है।


  • नई, लेटेस्ट तकनॉलाज़ी : क्या खाक! :और क्या सोच के लाये थे?


  • रजनीगंधा फ़ूल तुम्हारे : हमारे हैं तो तुम क्यों रखे हो जी!


  • बाटला खुर्द से देहली खुर्द तक. :सब टुकड़ों में मामला है


  • निर्देश: यह पोस्ट पढ़ते समय अपना मोबाइल स्विच ऑफ़ कर दें ! : वर्ना ब्लागर का फोन आ जायेगा कैसी लगी? टिपियाओ न प्लीज!


  • हिंदुत्व...संस्कृति...कमेंट या बहसबाजी:हम कुछ न कहेंगे


  • फ़िलहाल इत्ता ही। बाकी फ़िर समय मिलने पर। ओके। मस्त रहें। ज्यादा परेशान न हों। व्यस्त रहें, मस्त रहें।

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    मंगलवार, अक्तूबर 28, 2008

    जो दीप उम्र भर जलते हैं वो दीवाली के मोहताज नहीं होते

     दीपावली
    आप सभी को एकबार फ़िर दीपावली की मंगलकामनायें। सब तरफ़ दीपावली के चर्चे हैं। खर्चे ही खर्चे हैं। बधाइयां है। शुभकामनायें हैं।

    द्विवेदीजी के ब्लाग लेखन का एक साल पूरा हुआ। एक साल के बच्चे ने अपने उद्गार प्रकट किये।:
    आज मैं पूरे एक साल का होने जा रहा हूँ। आज सुबह ठीक 7.43 बजे। हाँ पिछली 28 अक्टूबर को इसी वक्त मेरा जन्म हुआ था। वे वकील तो थे ही पर वकील होने के पहले से ही साहित्य में खुरचटी की आदत पड़ चुकी थी जो अभी तक गई नहीं। सो मौका मिलते ही हिन्दी ब्लागरी टटोलने लगे। वहाँ बिलकुल "एक्सीडेण्ट हो गया" की तर्ज पर फुरसतिया सुकुल से टकरा गए। फिर क्या था? कहने लगे एक ब्लाग पैदा करो। वे इधर न्याय-प्रणाली से जूझे पड़े थे। प्रणाली थी, लेकिन न्याय वैसे ही गायब था जैसे गंजे के सिर से बाल। तो इस एक्सीडेण्ट की बदौलत मैं पैदा हुआ।
    पैदा होने के बाद के जो लफ़ड़े होते हैं वे भी हुये इस ब्लाग-बच्चे के साथ। द्विवेदीजी को सालगिरह पर बधाई!

    घुघुतीबासूती जी पिछले दो माह से अपने पति के स्वास्थ्य के चलते व्यस्त थीं। घुघूतजी की बाईपास सर्जरी होनी थी। अब जब घुघूतजी पर्याप्त स्वस्थ हो गये हैं तब घुघूतीजी ने उनका स्वास्थ्य समाचार बताया। अपने इस लेख के माध्यम से घुघूती जी ने उन सभी लोगों के प्रति आभार भी व्यक्त किया जिन्होंने इस कठिन समय में सहयोगी की भूमिका निभाई:
    इन कठिन दिनों में हमें कुछ लोगों का बहुत सहयोग मिला । भर्ती करने से पहले ही चार बोतल खून का प्रबन्ध करने को कहा गया था । बिटिया ने जिस संस्थान से पी एच डी की थी वहाँ के छात्र छात्राएँ आकर खून दे गए । उम्र में कई वर्ष बड़े दादा हर समय सहायता को तत्पर रहते थे, जबकि उनका स्वास्थ्य भी कोई बहुत अच्छा नहीं चल रहा था । मेरे पति की कम्पनी के एक व्यक्ति दिल्ली में एक छोटा सा औफिस चलाते हैं । वे व कम्पनी भी सदा सहायता देते रहे । उन्हीं के द्वारा हम एक एजेंसी से कार किराये पर लेते थे। उसका ड्राइवर घर के सदस्य की तरह हर समय सहायता को तत्पर रहता था। जब खून देने की बात आई तब भी देने को तैयार था ।


    इसी पोस्ट पर आये कमेंट के बहाने पता चला कि अपने ताऊ भी बाईपास्ड हैं। वे लिखते हैं:
    घुघुत जी को जिन परेशानियों से गुजरना पडा वैसी स्थितियों में मरीज की तो अपनी पीडा होती ही है ! पर परिजन जिस भय और आशंका में जीते हैं वो कोई भुक्त भोगी ही जान सकता है ! मैं स्वयं इस रोग का १९८८ से मरीज रहा हूँ और दिल्ली एस्कोर्ट होस्पीटल में मेरी एंजियोग्राफी उस समय हुई थी !


    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने अपने एक मित्र की दुविधा का जिक्र किया है। इसमें एक शिक्षा मित्र के रूप में एक लड़की के चयन और उससे जुड़ी सामाजिक समस्याओं का जिक्र है। लड़की का पिता लड़की के चुने जाने के आसन्न संकट देखता है। अधिकारी समस्या के सामाजिक पहलू को भी देखता है।

    इस लेख में कई लोगों के विचार हैं। बात नारी बनाम पुरुष की तरह भी मुड़ गयी है। संबंधित अधिकारी स्कन्द गुप्त का कहना है कि
    It's very easy to say to have selected the lady for those who cannot imagine the plight of her poor father. The father has to live in his society not in that of Roshanji. Would the socity have left him unscathed had he postponed her 'gauna'? We should remember that the father is not against his daughter working,(it was he who got her educated) but he is bogged in his circumstances. It must not be forgotten that the incident has emotional aspects apart from economic.

    ज्ञानदत्तजी, द्विवेदीजी के साथ मेरा मत भी है कि ऐसी स्थिति में अधिकारी को अपना काम नियम के अनुसार करना चाहिये।

    इस तरह के निर्णयों के दूरगामी परिणाम होते हैं। अगर नियमानुसार लड़की की नियुक्ति , भले ही वह कुछ ही दिन वहां रहकर काम करे , होनी चाहिये तो इसको दुविधा का सवाल नहीं बनाना चाहिये।

    हमारे एक अधिकारी अक्सर कहा करते हैं- अगर आपको सामाजिकता, उदारता निभानी है तो अपने व्यक्तिगत पैसे/खर्चे से दिखाइये। सरकारी अधिकारों का दुरुपयोग करके नहीं।

    रचना सिंह जी ने इसे स्वाभाविक तौर पर इसे नर बनाम नारी का मुद्दा बनाया। जबकि यह बात नर-नारी की उतनी नहीं है जितनी कि उस जिस व्यक्ति को जो अधिकार मिलना चाहिये उसको मिलने न मिलने की है।

    राज्य सरकार के अधिकारियों/कर्मचारियों का स्थानीय लोगों से मिलना-जुलना, उठना-बैठना भी होता है। यह मिलन-जुलन स्वाभाविक रूप से उनके निर्णय पर प्रभाव/दबाब डालता है। ऐसी स्थिति में अक्सर लोगों के लिये अप्रिय निर्णय लेना कठिन होता है। लेकिन स्पष्ठ नियम की अनदेखी करके लोकप्रिय निर्णय लेने का सहज लोभ आपके लिये आगे परेशानी का कारण बनता है। लोग आपके पास दबाब बनाते हुये आयेंगे कि साहब, आपने उस केस में तो ऐसा किया था।

    मेरी अपनी नजर में नियमानुसार अगर लड़की का चयन होना चाहिये तो अधिकारी को वही करना चाहना। आप अपने विचार इस मुद्दे पर यहां प्रकट कर सकते हैं।

    सागर एक फ़िर छप गये तो समीर सम्प्रदाय में दीक्षा ले लिये। बता रहे हैं:
    एक दो बार तो पोस्ट लिख कर चालीस पचास टिप्प्णीयाँ बटोर ली थी। :) इतनी लम्बी राम कहानी सुनवाने का मतलब आप समझ ही गये होंगे, भई अब एक बार और शर्माने को क्यों मजबूर कर रहे हैं… भई एक बार फिर हिन्दी मिलाप के दीपावली विशेषांक में नाचीज ने एक हजार रुपयों का पहला इनाम जीता है। यानि गुलाबजामुन की मिठास ने हमें…(?)पहले ही यह कहानी पढ़ा कर आपको बोर कर चुके हैं अब स्कैन कॉपी लगा कर लेख को फुरसतिया बना कर आपको बोर नहीं करेंगे.. :)


    अनुजा ने ब्लाग लेखन में महिलाओं की भागीदारी की बात बताई:
    ब्लॉग-लेखन में एक बात मैंने बेहद शिद्दत के साथ महसूस की है कि यहां महिलाओं को भी अपनी मन की बात कहने की पूरी आजादी मिली हुई है, जो उन्हें अक्सर अख़बारों या पत्र-पत्रिकाओं में नहीं मिल पाती। यहां जितनी भी महिलाएं अपना ब्लॉग लिख रही हैं, उन सभी के पास अपने-अपने अनुभव और अभिव्यक्तियां हैं। कोई महिला कविता के माध्यम से खुद को अभिव्यक्त कर रही है। कोई लेख या संस्मरण लिखकर। तमाम महिलाओं की अभिव्यक्तियों को पढ़कर मुझे सबसे ज्यादा गर्व इस बात पर होता है कि महिलाएं बंद कोठरियों से निकल बाहर उजाले में आकर अपनी बंद जुबानों को साहस के साथ खोल रही हैं। यहां उन पर किसी भी प्रकार का पुरुष-वर्चस्व हावी नहीं है।


    संपादक वर्चस्व को पुरुष वर्चस्व अनुजा ने शायद इस लिये लिखा कि ज्यादातर जगह संपदान की कमान पुरुष संपादक संभाले हैं। ड़ेढ़ टांग के सम्पादक से अनुजा खासी नाराज सी दिखती हैं।

    ज्ञानजी की आज की पोस्ट भाभी जी ने लिखी है-जय, जय। महालक्ष्मी जय, जय। यहां एक बार फ़िर से खुलासा हुआ कि वे अपनी सारी पोस्टें उनसे जंचवा कर ही पोस्ट करते हैं। जंचवायें न तो न जाने क्या गड़बड़ करें!

    दीपावली पर पारुलजी ने पंडित भीमसेन जोशी का गाया भजन सुमति सीताराम पोस्ट किया तो मीत ने ठुमकि चलत रामचन्द्र बाजत पैजनया। सुनवाया!

    एक लाइना


     दीपावली

    1. चाँद और दीपक : दोनों एक ही पार्टी के हैं।


    2. भूत पिशाच नोट दिलवावै :आलोक पुराणिक जब नाम सुनावैं


    3. विवेक चौधरी जी से संवाद जो अब निजी नहीं रहेगा... :बल्कि भड़ास बन जायेगा


    4. बतकहियों में लोकतंत्र : जम रहा है


    5. होश में आओ राज : वर्ना होश उड़ा देंगे!


    6. कैसे मनाये दिवाली ? :शिवमंगल सिंह’सुमन’ की कविता पढ़कर


    7. चलो ,ज्योती पर्व मनाएं !: चलना कहां हैं? यहीं मनाओ यार


    8. दीपावली की शुभकामनाएं :एक चिंतन : दीवाली में तो चिंतन छोड़ो भाई!


    9. राहुल की मुठभेड़ या हत्या : चुनाव आप करें!


    10. उल्लुओं का ठाठ :हमेशा रहता है बन जाओ


    11. एक वो भी दिवाली थी एक ये भी दिवाली है.:आम आदमी हमेशा ’ये’ ,’वो’ में ही मारा जाता है


    12. “रोशनी” से जुडी कुछ रोचक बातें :एक बार पढ़ तो लें


    13. फ़ोन किस को करूं मैं बुलाऊं किसको:जिसका लग जाये उसको करो बुलाओ उसको


    14. ऐसा क्यों होता है? :क्योंकि इससे अलग नहीं होता


    15. भुगतान: तो करना ही पड़ता है जी


    16. हज़ारों ख़्वाहिशें हैं :रोज गिन के हिसाब रखना पड़ता है


    17. आइए दीपावली पर भारत को कंजरवेटिव बनाने का संकल्प लेते हैं: केवल दीपावली के दिन ही क्यॊं? बाकी दिन क्यों नहीं?


    18. तो लोकनायक हैं कायस्थों के नेता ....:ये बात तो उनको भी न पता होगी


    19. मनुस्मृतिः गाली का उत्तर गाली से नहीं देना चाहिए :रागदरबारी:गाली का जबाब जूता है


    20. दीपावली की सभी दोस्तो और दुश्मनों को बधाई :शुभकामनायें भी मिली-जुली सरकार में शामिल हो गयीं!


    21. दिवाली पर बाजार हुआ दीवाना : निकल रहा दिवाला:सबके ऐसे ही हाल हैं लाला!


    22. एक साल के बच्चे की चिट्ठी :बच्चा बहुत पढ़ गया


    23. इस पगलाई व्यवस्था में किसी का बचना मुश्किल है!: व्यवस्था पागल है लेकिन है तो सही



    24. शुभ दीपावली - बहुत बधाई और एक प्रश्न
      :जो कि उल्लू से जुड़ा है


    25. गोली का जवाब गोली से : अत: सिद्ध हुआ कि न्यूटन का तीसरा नियम सत्य है


    26. यादों के सहारे :भविष्य का अंकुर फ़ूटेगा


    27. रात को कोई रोया था !! : सारा तकिया भिगा दिया


    28. क्षमा याचना सहित ताऊ रामपुरिया :को दीवाली मुबारक


    29. आतंकवाद नहीं, सिर्फ मुद्दे से निजात की कोशिश : मुद्दा निपट जाये फ़िर आतंकवाद को भी देख लेंगे


    30. आप क्या सोचते है , "राहुल - राज " का कत्ल हुआ है य़ा एनकांउटर : क्या सोचे दोनो में राज मरा ही होगा


    31. आवाज़ क्लियर है?: एकदम क्लियर है जी


    32. अनूप शुक्ल का प्रश्न! : शास्त्री जी ने लपक लिया


    33. कैसे रुकेगी चोरी????: डकैती को बढ़ावा देकर


    34. ...अगर बेटियों से है प्यार! :तो उनको अपनों से दूर रखें


    35. क्या हुआ...तुम्हरी जिंदगी को... :कुछ लेते क्यों नहीं?


    36. आर्थिक मंदी का दौर :अभी तो आया है काहे भगाने पर तुले हो


    37. कौन कहता है बुढ़ापे में इश्क का सिलसिला नहीं होता :आम तब तक मजा नहीं देता जब तक पिलपिला नहीं होता


    38. गुस्सा थूकिये पाटिल साहब :गुस्से में कुछ ज्यादा ही हसीन दिख रहे हैं।


    39. आखिर कौन देगा इन सवालों का जवाब?:सवाल का जबाब आजकल सवाल से ही देने फ़ैशन है जी


    40. क्यों कभी जवान नहीं हुए भगवान कार्तिकेय ? :सब जुयें की लत के कारण है


    41. वेब पत्रकारों की यूनियन! : जिंदाबाद,जिंदाबाद


    42. सुनो, बाजार कह रहा है, दीपावली आ गई है : कहती है दीवाला निकाल के जायेगी


    43. पता नहीं उन की दीवाली कैसी होगी? : बूझो तो जानें


    44. तीन तय चीजें :तय हैं - मृत्यु, टेक्स और अगर आपका ब्लॉग सफल हो गया तो लोगों की ईर्ष्या!



    45. एक बार मुस्कुरा दो
      :देखें तुमने ब्रश किया कि नहीं


    46. जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना : उजाला धरा पर कहीं दिख न जाये


    47. हम बनें वो दीप जिससे... :जगमगाए जग ये सारा


    48. अब अप्पन लोग भी चाँद पर!: हाथ फ़ेरेंगे


    49. गणित में उत्तर-प्रदेश के बच्चे पिछड़े, छठवां स्थान:अरे स्थान तो है ये कम है?


    50. रविश कुमार मीडिल क्लास के नही लगते ? : उनका क्लास ही अलग है जी


    51. हमे अश्को से ग़म को धोना नही आता : धोबी को सौंप दें यह काम भाई


    मेरी पसंद


     दीपावली
    जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
    अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।


    नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल,
    उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले,
    लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
    निशा की गली में तिमिर राह भूले,


    खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग,
    ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए
    जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
    अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

    सृजन है अधूरा अगर विश्‍व भर में,
    कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
    मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
    कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,

    चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही,
    भले ही दिवाली यहाँ रोज आए
    जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
    अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

    मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,
    नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
    उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के,
    नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा,

    कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अब,
    स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
    जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
    अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
    गोपाल दास 'नीरज'

    और अंत में


  • एक बार फ़िर से आप सभी को दीपावली की मंगलकामनायें। आज अधिकतर लोगों की पोस्टें और टिप्पणियां भी दीपावली की शुभकामनाओं से भरी-पड़ी हैं। पता लगा किसी ने लिखा -राज की मौत हत्या है या इनकाऊंटर। उस पर टिप्पणी है- दीपावली मुबारक। कोई पोस्ट लिखेगा- आज मरने का इरादा है- अगला टिपियायेगा-(मरो तो) दीपावली मंगलमय हो।
    हेस्ट एंड कट-पेस्ट जो न कराये।


  • विवेक सिंह की शुभ दीवाली लेउ मनाय और इसके पहले लिखना भी बाजार की तरह लुढकायमान है तथा इतवार को कविताजी की चर्चा-पोस्ट करने लगते हैं तुमसे प्यार : रविवार्ता पर हौसला आफ़जाई करती हुई टिप्पणियां आईं। हम उनके लिये शुक्रिया कह देते हैं।


  • टिप्पणियों के जबाब प्रतिटिप्पणियों के रूप में देना कुछ समय ज्यादा मांगता है। इसके अलावा जिसने चर्चा की उसके अलावा कोई दूसरा प्रतिटिप्पणी करे ये भी अटपटा लगता है। अत: मुझे लगता है कि जिस पोस्ट पर टिप्पणी हो उस पर ही प्रतिटिप्पणी होती रहे तो अच्छा है। इस काम को चर्चा करने वाला अंजाम दे सकता है। पिछली चर्चायें देखते रहें शायद आपके सवालों के जबाब दिये जा चुके हों।


  • तरुण ने कहा है कि वे अब नये साल में ही चर्चा करेंगे। तरुण ने चर्चा व्यापार को गम्भीर आयाम दिया। उनकी पिछली चर्चा बहुत मन लगाकर की गयी चर्चा थी। अक्सर यह भी होता है कि नयी चर्चा होने पर पुरानी चर्चा का पता नहीं लगता और पाठक शानदार (सही है न!) लेखन से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में मेरे दो सुझाव हैं:
    १. चर्चाकार पिछली चर्चा का लिंक पोस्ट के अंत में या शुरू में दे दे।
    २. चिट्ठाचर्चा में यह सुविधा हो कि पिछली पोस्ट का लिंक दिखता रहे।

    दूसरे पर देबाशीष काम शुरू कर चुके हैं। जल्द ही वे टेम्पलेट में बदलाव करेंगे।


  • चलते-चलते हमारी पसंदीदा लाइने बांच लीजिये:

    जो बीच भंवर में इठलाया करते हैं वो बांधा करते तट पर नाव नहीं,
    संघर्षों के पथ के राही सुख का जिनके घर रहा पड़ाव नहीं,
    जो सुमन बीहड़ों में ,वन में, खिलते हैं वो माली के मोहताज नहीं होते
    जो दीप उम्र भर जलते हैं वो दीवाली के मोहताज नहीं होते॥


  • कल की चर्चा के लिये कुश आयेंगे। इसके बाद समीरलाल। फ़िर मसिजीवी और उसके बाद कौन आयेगा यह निठल्ले बतायेंगे। फ़िलहाल इत्ता ही। आपको दीपावली फ़िर से मुबारक!

    पिछली पांच चर्चा के लिंक:

    1. शुभ दीवाली लेउ मनाय

    2. लिखना भी बाजार की तरह लुढकायमान है

    3. करने लगते हैं तुमसे प्यार : रविवार्ता

    4. आज की चर्चा ताऊ के साथ

    5. चलो बस हो चुकी चर्चा ना तुम खाली ना हम खाली

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    सोमवार, अक्तूबर 27, 2008

    शुभ दीवाली लेउ मनाय

    सुमिरन करके टिप्पणीश्वर कौ करके वीर निठल्ला याद ।
    चर्चा होगी अब आल्हा में कोई नहीं वाद प्रतिवाद ॥
    सबतें पहले अनूप शुक्ला की सब मिलकें लेउ किलास ।
    लिखें वीररस प्रेम पचीसी इनका रहा सफल पिरयास ॥
    अब तय करें सफर शब्दों का छोटे की बारी है आज ।
    सता रहे हो क्यों छोटे को वडनेरकरजी क्या है राज ?
    चिटठाजगत बधाई ले ले चिट्ठे हो गये पाँच हज़ार
    पर लिखने का रेट गिरा यूँ जैसे गिरत रहा बाज़ार
    देश कनाडा बैठे बैठे समीर जी करते हैं शोध ।
    छोटी पोस्ट मार कर देखें कब पाठक को आए क्रोध ॥
    कितनी संख्या टिप्पणियों की कित्ता रहे पोस्ट आकार ।
    चेतावनी चार लाइन की टिप्पणियों की है बौछार ॥
    इस वार्निंग का मतलब समझें पोस्ट माइक्रो अर्थ विशेष
    शेयर में अब कुछ न मिलेगा टिप्पणियों में करें निवेश ॥
    जोनाथन लिविंगस्टन बकरी ज्ञानदत्त करते गुणगान ।
    बहस यहाँ चलती रह्ती है अब आगे कर लो प्रस्थान ॥
    दीवाली की बधाइयों की ब्लॉग जगत पर आई बाढ ।
    जाकी रही भावना जैसी वह वैसी ही लेना काढ ॥
    एक ओर कुन्नू सिंह बाँटें यहाँ अल्पना जी भी साथ ।
    मानोरिया जी भी देते हैं इनसे भी लें हाथों हाथ ॥
    स्वाति जी से भी तो लेलो यहाँ खडीं लेकर तैयार ।
    जाकिर हुसैन आगे आकर कहते हैं शुभ हो त्यौहार ॥
    यहाँ बधाई नए साल की मिलती दीवाली के साथ ।
    दर्पण वाले बाँट रहे हैं आज बधाई दिल के साथ ॥
    ऊपर जितनी मिली बधाई उससे भी है बढिया माल ।
    दिनेशराय द्विवेदी जी की होम डिलीवरी इस साल ॥
    आप बधाई में खोए हो ताऊ करते अत्याचार ।
    गणेश जी से पूछ रहे यों बता पिताजी कहाँ फरार ॥
    अमाँ तरुण से भी तो ले लें दीपावली मुबारकबाद ।
    बोनस मिले अगर हर महीने बने अमावस्या का चाँद
    आज हुई छोटी दीवाली भज ले नारायण का नाम
    जोश में होश न गुम हो जाए करो सुरक्षित हो शुभकाम ॥
    दीपावली मनाते हों जो कोई सज्जन पहली बार ।
    भला मनाएं कैसे इसको यहाँ बाँच लें बस इक बार ॥
    यहाँ मिठाई भिजवाता हूँ है पसंद तो माँगें और ।
    लखटकिया अब अधिक न होंगें आखिर है मंदी का दौर ॥
    वाहन बेचें रसीद ले लें मिली आज यह उचित सलाह ।
    हरिशंकर परसाई जी की शुभदीवाली वाह जी वाह ॥
    बाल उद्यान रंजना जी की सुन्दर कविता ले तैयार ।
    बच्चों की सामग्री यहाँ पर प्रचुर मात्रा में भरमार ॥
    दीवाली गणितीय रंगोली लेकर आये हैं अभिषेक ।
    सुन्दर है मैं नहीं फेंकता खुद ही जाकर आओ देख ॥
    सुन्दर कविता आशा जी की नहीं मारता हूँ मैं जोक ।
    क्या क्या आस्ती क्या जास्ती सुनिए कहते हैं आलोक
    आज शास्त्री जी पूछे हैं खुल कर दे दें अपनी राय
    अवसर निकले तो मत कहना हमको नहीं बताया हाय ॥
    सोच रहे हैं आप अगर जो अपनी साइट बनाई जाय ।
    रतन सिंह शेखावत जी ने रख दी सब सामग्री लाय ॥
    शुभकामना बहुत लेलीं अब मित्रो सुन लो कान लगाय ।
    दीपावली हमारी भी है चुप्प कमीशन दो सरकाय ॥

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    लिखना भी बाजार की तरह लुढकायमान है

     सती

    दीपावली के मौके पर लोगों का लिखना-पढ़ना ,टिपियाना-विपियाना कम हो गया।

    सब बाजार और सेंसेक्स की तरह लुढ़कायमान हैं। लेकिन हम चर्चा तो करेंगे। न करेंगे तो चर्चा होगी। आफ़त है न! करो तो चर्चा , न करो तो चर्चा।

    अनुपम मिश्र जल संचयन संरक्षण के क्षेत्र के जाने-माने व्यक्ति हैं। उन्होंने हिन्दू-मुसलमान वाकये पर भी कुछ विचार व्यक्त हुये हुये होंगे। दो साल पहले कही उनकी किसी बात को लेकर एक जिद्दी धुन बज रही है। अनुपम मिश्र के समर्थन और विरोध में कुछ न कहते हुये यह लगता है कि एक पर्यावरणविद क्या जीवन के हर क्षेत्र में संपूर्ण होगा? हिन्दू-मुसलमान और दूसरी सांप्रदायिक समस्याओं पर उनके कुछ सही-गलत विचार होंगे उनको बिना पूरी बात सामने रखे उनके काम को सड़ांध युक्त बताना कैसे ठीक है?

    एक कविता जो इस बात से कहीं ताल्लुक नहीं रखती कैलाश बाजपेयी जी की याद आ रही है:

    दर्पण पर शाम की धूप पड़ रही है
    घिर कर उतरती शाम से बेखबर
    जिद्दी थकी एक चिड़िया
    अब भी लड़ रही है अपने प्रतिबिम्ब से।
    तुम जो कांच और छाया से जन्मे दर्द को समझते हो
    तो तरस नहीं खाना
    न तिरस्कार करना
    बस जुड़े रहना
    इस चिड़िया की जूझन की के दृश्य से।


    जिद्दी थकी चिड़िया के बरअक्स एक बकरी है जो वहां जाती है जहां दूसरी बकरियां नहीं जातीं। ज्ञानबकरी के बहाने ज्ञानजी कहते हैं:
    इतनी नार्मल-नार्मल सी पोस्ट पर भी अगर फुरसतिया टीजियाने वाली टिप्पणी कर जायें, तो मैं शरीफ कर क्या सकता हूं!

    अब आफ़त है। कुछ कहो तो आफ़त, न कहो तो आफ़त। ज्ञानजी झाम फ़ैला देते हैं। न छेड़ो तो परेशान रहते हैं, छेड़ो तो कहते हैं देखो शरीफ़ को छेड़ रहे हैं ये। लोग शरीफ़ कहलाने के लिये बकरी-शरणागत हो जाते हैं।

    शरीफ़ों की बातचीत में ही समीरलाल अपना खुलासा खुद करते हैं-
    समय का टंटा, पता नहीं क्यूँ, मेरे पास कभी नहीं रहता. ऑफिस भी जाना होता है जो लगभग दिन के १२ घंटॆ ले लेता है-याने सुबह ६ से शाम ६-घर से ६०-७० किमी की दूरी. फिर घर पर भी यहाँ नौकर तो होते नहीं तो गृहकार्यों में हाथ बटाना होता है (यह मैं पत्नी की तरफ से मॉडरेट होकर कह रहा हूँ वरना हाथ बटाना कि जगह करना लिखता) :))

    फिर कुछ पढ़ना, कुछ हल्का फुल्का लिखना, टेक्नोलॉजी पर लेखन- बाकी सामाजिक दायित्व,,और इन सबके टॉप पर टिपियाना भी तो होता है. :)

    यह सब हो जाता है लेकिन अपनी बारी आने पर चिट्ठाचर्चा नहीं हो पाती। सिर्फ़ छुटकी पोस्ट हो जाती है।

    आलोक पुराणिक आज ज्ञान बांटने पर तुले हैं:
    1- सत्य सिर्फ सत्य ही नहीं, रोचक भी होना चाहिए।
    2- सूखे चरित्र की बात करने के वाले के पास, सिर्फ चरित्र बचता है। इंटरेस्टिंग सत्य बताने वाले के पास कई अभिनेत्रियां होती हैं और सत्य अवार्ड भी।
    3- अफेयर जास्ती, तो लक्ष्मी आस्ती।


    सुनील दीपक कम लिखते हैं लेकिन जब लिखते हैं मन से लिखते हैं। अपने पिछले लेख में उन्होंने किताबें पढ़ने वाली औरतों के बारे में लिखा। आखिरी में वे कहते हैं:
    दुनिया के देशों में अगर देखा जाये कि सरकारें स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए देश की आय का कितना प्रतिशत लगाती है तो भारत सबसे पीछे दिखता है, बहुत सारे अफ्रीकी देशों से भी पीछे. जब तक यह नहीं बदलेगा, भारत सच में विकसित देश नहीं बन पायेगा.


    सुनील जी के इस लेख का जिक्र किन्हीं विजेन्द्र सिंह चौहान ने भी किया है।

    समांतर कोश और द पेंगुइन इंग्लिश-हिंदी/हिंदी-इंग्लिश थिसारस ऐंड डिक्शनरी के रचयिता अरविंद कुमार उन चंद लोगों में हैं जो मानते हैं कि ब्लागिंग की संभावनायें अपार हैं। उनका आत्मकथ्य पढ़ने पर पता चलता है कि बचपन की घटनायें आगे आने वाले समय में किये जाने वाले बड़े कामों की नींव डालती हैं। यह आलेख लम्बा है लेकिन पठनीय च संग्रहणीय है।

    दीपावली के मौके पर अभिषेक कुछ गणितीय रंगोली पेश करते हैं। मनविन्दर का सवाल है- आखिर क्यों धमकाया किरण को लखनऊ पुलिस ने ?????

    ताऊ को उनके दोस्तों ने पीने की लत लगा दी तो उसके लिये पैसा पाने के लिये वे गणेश जी के कान ऐंठने लगे:
    अब ताऊ जैसे ही मन्दिर में आया और सामने गणेश जी को देखा तो उसका माथा ठनक गया ! और सोचण लाग गया की यो शिव जी कित चल्या गया ? और थोड़ी देर तो देखता और सोचता रहा ! फ़िर गणेश जी के कान उमेठता हुआ बोला - क्यो रे छोरे ? घणी देर हो गी सै तेरे बापू का इंतजार करते करते मन्नै , सीधी तरिया बता - तेरा बापू कित गया सै ? उसतैं मन्नै पव्वै के पिस्से चाहिए ! वो नही सै तो इब तू निकाल ! मैं इब और ज्यादा इन्तजार नही कर सकदा ! मेरा टेम हो लिया सै खीन्चण का !


    प्रमोदजी अस्थिरता पैदा करने वाली ताकतों का खुलासा करते हुये कहते हैं:
    आज सुबह से दस-बारह खोजी रपटों को बांचने के बाद अदबदाकर मन कर रहा है कि कहीं खुले में बीस लोगों के बीच जाकर खड़े हों और जोर-जोर से कहना शुरू करें कि इस देश में अस्थिरता पैदा करनेवाली सबसे बड़ी ताक़त कोई है तो वह इस देश की सरकार है. मगर, देखिये, ऐसी सीधी बात कहने में भी बुद्धि आड़े आ रही है!


    अजित बडनेरकर शब्द सरताज हैं। जिन शब्दों को आप बचपन से बोलते-बरतते चले आ रहे हैं उनके बारे में जब वे बताते हैं तो पता चलता है- अरे अच्छा इसका मतलब यह होता है। हमें तो पता ही न था। आज वे छोटे पर मेहरबान हैं:
    छोटा शब्द संस्कृत के क्षुद्रकः का रूप है जो क्षुद्र शब्द से बना। इसमे सूक्ष्मता, तुच्छता, निम्नता, हलकेपन आदि भाव हैं। इन्ही का अर्थविस्तार होता है ग़रीब, कृपण, कंजूस, कमीना, नीच, दुष्ट आदि के रूप में। अवधी-भोजपुरी में क्षुद्र को छुद्र भी कहा जाता है। दरअसल यह बना है संस्कृत धातु क्षुद् से जिसमें दबाने, कुचलने , रगड़ने , पीसने आदि के भाव हैं। जाहिर है ये सभी क्रियाएं क्षीण, हीन और सूक्ष्म ही बना रही हैं। छोटा बनने का सफर कुछ यूं रहा होगा – क्षुद्रकः > छुद्दकअ > छोटआ > छोटा।


    नीलिमा खबर देती हैं-चिट्ठाजगत में हुए 5000 चिट्ठे! इनमे सक्रिय कितने हैं यह भी एक रोचक आंकड़ा होगा।

    लावण्याजी को देखिये ,देखते रह जायेंगे। लेकिन ये केवल डा.अनुराग के लिये क्यों लावण्याजी?

    गोरखपांडे का एक बेहतरीन समूह गीत जिसके बारे में विमल वर्माजी कहते हैं-महेश्वर जी की आवाज़ सुनकर आंखे नम हो गई...महेश्वर जी के साथ बीते वो दिन आंखो के सामने घूम आ गये...अच्छी प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत शुक्रिया

    एक लाइना



    1. किताबें पढ़ने वाली औरतें : पहले भी थीं!


    2. आखिर क्यों धमकाया किरण को लखनऊ पुलिस ने ?????: ताकि पुलिस का हड़काने का अभ्यास हो सके


    3. दिवाली पर गणितीय रंगोली !: क्या समझ में आ जायेगी?


    4. जोनाथन लिविंगस्टन बकरी : चढ़ गई है ज्ञानखंड़हर पर


    5. छुटकू की खुर्दबीन और खुदाई : क्या चीज है भाई!


    6. अस्थिरता पैदा करनेवाली ताक़तें.. : बहुत मेहनत करती हैं भाई!


    7. अरे छोरे, सीधी तरिया बता - तेरा बापू कित गया सै ? :सुबह से पोस्ट लिखी है अभी तक आकर टिपियाया नहीं


    8. चिट्ठाजगत में हुए 5000 चिट्ठे: उड़ी बाबा


    9. क्या आपका मन नहीं करता 'ठां' करके गले मिलने का ? :करता है लेकिन कोई ठां पार्टनर नहीं मिलता


    10. वकीलों के दुर्दशा अब देखने लायक नहीं: कोई दर्शनीय दु्र्दशा दिखाइये फ़िर तो


    11. औरतों की कवितायें : औरतों की हैं,औरतों के बारे में हैं, औरतों के लिए हैं। मर्द पड़ेंगे तो समझ लें!


    12. आप का क्या कहना है? : यही कि हमने सारथी को संरक्षण दिया?


    13. इस महिलाओं से कुछ सीखना होगा : सीख लो कुछ करना तो है नहीं!


    14. हुआ तिमिर का देश निकाला दीपक जलने से :तिमिर दीपक तले शरण लिये बैठा है चपक के


    15. जरा सोचिये, आपका २० रुपया क्या कर सकता है? : वो आपके लिये दस के दो नोट ला सकता है!


    16. अफेयर जास्ती, लक्ष्मी आस्ती: मजनू बन, पैसा कमा


    17. सबसे छोटा होने के कई फा़यदे हैं!!: हर जगह छुटकू डिस्काउंट मिलता है।


    18. सावधान !! यहॉं जेबरा क्रौसिंग नहीं होता !! : क्रासिंग होता तो विश्राम करते


    19. सड़ांध मार रहे हैं तालाब : बदबू ब्लाग तक फ़ैली है


    20. अंतिम इच्छा का आखिरी साल: सब कुछ डिस्काउंट पर


    21. और रेहड़ घाटी में उतर चुके हैं : और छटपटा रहे हैं!


    22. लुच्चों ने मेरी मुल्क की चढ्ढी उतार ली : मंहगी वाली वी.आई.पी. की थी


    23. अपने सच्चे प्यार से शादी मत कर बैठना! : वर्ना फ़िर कभी प्यार न मिलेगा


    24. ब्लॉगर तू उतावला क्यूँ है? :लिखने के लिये इत्ता बावला क्युं है

    मेरी पसन्द



    चित्रकारों, राजनीतिज्ञों, दार्शनिकों की
    दुनिया के बाहर
    मालिकों की दुनिया के बाहर
    पिताओं की दुनिया के बाहर
    औरतें बहुत से काम करती हैं

    वे बच्चे को बैल जैसा बलिष्ठ
    नौजवान बना देती हैं
    आटे को रोटी में
    कपड़े को पोशाक में
    और धागे को कपड़े में बदल देती हैं।

    वे खंडहरों को
    घरों में बदल देती हैं
    और घरों को कुंए में
    वे काले चूल्हे मिट्टी से चमका देती हैं
    और तमाम चीज़ें संवार देती हैं

    वे बोलती हैं
    और कई अंधविश्वासों को जन्म देती हैं
    कथाएं लोकगीत रचती हैं

    बाहर की दुनिया के आदमी को देखते ही
    औरतें ख़ामोश हो जाती हैं।
    शुभा -नारी ब्लाग से साभार

    और अंत में



    कुछ कहना नहीं है सिवाय दीवाली मुबारक के। हमें पता है कि सब बहुत बिजी हैं। किसी के पास कोई काम नहीं है सिवाय बिजी रहने के।

    आप इत्ता पढ़ लो। तब तक हम और आगे का हाल बताते हैं।

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    रविवार, अक्तूबर 26, 2008

    करने लगते हैं तुमसे प्यार : रविवार्ता

    आज धनतेरस है, आज से विधिवत् दीपोत्सव आरम्भ हुआ आप सभी को यह दीपावली अनंतमंगलफलदायी हो, सब के जीवन के सारे अंधेरे मेट दे।

    वेद में यों तो मानवजीवन के उत्थान से सम्बन्धित अनेक मंत्र है किंतु एक ऐसा मंत्र है जो बहुप्रचलित व अपने शाब्दिक अर्थ में अत्यन्त बोधगम्य है -



    "असतो मा सद् गमय

    तमसो मा ज्योतिर्गमय

    मृत्योर्मा अमृतम् गमय"



    अर्थात् मनुष्य जीवन की यात्रा की दिशा इतने सरल तरीके से बता दी गई है कि इस प्रकाश के मार्ग का पथिक बनने का यत्न हमें पल-पल करना है। असत्य से सत्य की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर व मृत्यु से अमरत्व की ओर की यह यात्रा हमें पल पल करनी चाहिए। यह यात्रा भले ही असत्य पर सत्य की विजय, अन्धकार पर प्रकाश की जय और मृत्यु को अमरत्व के लिए के जाने वाली साधना द्वारा होती हो, परन्तु होती अवश्य है। दीपावली ऐसे ही उजाले बिखेरे।

    कभी सोचती हूँ
    कि वह व्यक्ति क्या कहना चाहता होगा जिसने काली स्याही ( स्याही तो स्याह ही होती है ) को रोशनाई नाम दिया । स्याह जब कलम के नोक पर लगकर लोकमंगल के लिए काम आता है तो वह रोशनाई (उज्ज्वल) हो जाता है और कालिमा से उज्ज्वलता की ओर जाने का एक मार्ग है कि उसे कलम पर आँज दिया जाए। आप कहेंगे नेट के युग में कहाँ मैं कलम और स्याही की बातें करने बैठ गई ।
    वस्तुत: बात यहाँ कलम व स्याही की नहीं है, ये तो दो उपादान भर हैं, बात है अपने भीतर बैठे और जमे उस कलुष को एक सर्जनात्मक अभिव्यक्ति देने की जहाँ वह लेखक व पाठक दोनों को निर्मल कर देता है, मालिन्य के विरेचन की। पर यह विरेचन कैसा हो इसके लिए भारतीय काव्यशास्त्र ही नहीं पाश्चात्य काव्यशास्त्र में भी बहुत विवेचना मिलती है और सारे मन्थन के बाद उसी साहित्य को उत्तम साहित्य माना गया है जो लोकमंगल की साधना क माध्यम बनता है; जैसे वाल्मीकी का श्राप और पीड़ा (गालियों के रूप में नहीं अपितु रामायण के रूप में फूटा। तभी वह वाल्मीकि की आदि कवि के रूप में अमरता का माध्यम बना। बस इसी कसौटी पर हम भी दीपावली के इस पावन अवसर पर अपने अपने को कस लें कि क्या हमारा लिखा एक एक शब्द हमारी मालिन्यता को धोता है --- "औरन को सीतल करे आपहु सीतल होय" ,
    यदि ऐसा न होने के कारण के रूप में कोई भी, कैसे भी तर्क हमें देने पड़ते हैं तो समझ लेना चाहिए कि ऐस लिख लिख कर कोई भी कभी भी अपनी स्याही को रोशनाई नहीं कर रहा है, अपने अन्धेरे को मेटने के लिए उजाले की किरण नहीं धर रहा है; अन्धेरा उगल कर और अन्धेरा ही बढ़ा रहा है - अपने लिए भी अन्यों के लिए भी। काश! सब के अन्धेरे इस दीपावली पर परास्त हों व उजाले को विजयश्री मिले - इस दीपावली यह वरदान मिले।






    वस्तुत: रात में ९ से १२.४० तक हिन्दीभारत का पहला वार्षिक अधिवेशन एक चर्चागोष्ठी के रूप में ऒनलाईन सम्पन्न हुआ यह इसके प्रथम वर्ष की पूर्णता का उत्सव मात्र ही नहीं अपितु एक ध्येय की सिद्धि का पहला चरण धरने की निश्चयात्मकता का आयोजन था, जो अत्यन्त सफलता से सम्पन्न हुआ । मेरे लिए यह दुरूह था कि उसके पश्चात् ब्लॊगजगत् को उचित समय दे कर यह रविवार्ता आप तक पहुँचा पाती, किन्तु ..
    रात्रि ३ बजे आरम्भ किए इस चिट्ठाचर्चा के कार्यक्रम को किसी भी तरह हर हाल में अपने निश्चित दिन पर आप तक पहुँचाने की जिद्द ने सोने नहीं दिया। वैसे आप सभी के लिए दीपावली की शुभकामना देने का अवसर भी तो चूक जाता, यदि यह आज ही नहीं हो पाता। अत: साथियो! इस बार अधिक न चाहते हुए भी चर्चा में मेरे कुछ पढ़ा न होने का भाव अवश्य आपके मन में आएगा, आ सकता है।




    मुझ पर अपने इस क्रोध को शान्त करने के लिए आप इसका सहारा लें।
    गिरे हुए को उठाने या उसके उठने की प्रतीक्षा न करें तो क्या करें?
    करना क्या है, कानून के दायरे से नहीं बच सकते
    हिंदुस्तान टाइम्स को ललकारा तोमर जी
    आईन्स्टीन की हिन्दी वर्तनी
    पलायनवाद की प्रवृत्ति और उसके सन्दर्भ
    सुखी रहना है तो - आप भी करें - पत्नी प्रसंगम
    लुप्तप्राय - सारथी ही रथ छोड़ कर ?


    बधाई की प्रतीक्षा में

    यथार्थ है


    सतर्क रहें क्योंकि

    जो उन्नीस सौ चौहत्तर में और जो
    उन्नीस सौ नवासी में

    करते थे तुमसे प्यार
    उगते हुए पौधे की तरह देते थे पानी
    जो थोड़ी-सी जगह छोड़ कर खड़े होते थे
    कि तुम्हें मिले प्रकाश

    वे भी एक दिन इसलिए दूर जा सकते
    हैं कि अब

    तुम्हारे होने की परछाईं
    उनकी जगह तक पहुँचती है


    तुम्हारे पक्ष में सिर्फ यही उम्मीद हो सकती है
    कि कुछ लोग
    तुम्हारे खुरदरेपन की वज़ह से भी
    करने लगते हैं
    तुम्हें प्यार


    जीवन में उस रंगीन चिडिया की तरफ देखो
    जो किसी एक का मन मोहती है
    और ठीक उसी वक्त एक दूसरा उसे देखता है
    अपने शिकार की तरह।

    (कुमार अम्बुज)


    इस बार के लिए अभी इतना ही। जिनकी चर्चा चाहते हुए भी नहीं कर पाई हूँ वे क्षमा करें। इस ३ घन्टे से चली आ रही चर्चा का समापन आपकी रुष्टता से तो कदापि नहीं करना था... परन्तु कुछ बात ऐसी है कि सूर्योदय के समय ही सही थोड़ी नींद ले लेनी चाहिए क्या पता उठकर देखूँ तो त्यौहार पर भी अधूरी रविवार्ता के लिए शुभकामनाएँ मिलने से रह जाएँ।



    सभी को पुन: धनतेरस, यम चतुर्दशी ( महाराष्ट्र में इस दिन सूर्योदय से पूर्व सभी को नहा-धो लेना पड़ता है) , दीपावली व भाईदूज की अशेष मंगल कामनाएँ ।


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    शनिवार, अक्तूबर 25, 2008

    आज की चर्चा ताऊ के साथ

    टीवी पर आकर समीर जी फूले नहीं समाते ।
    पाठक भी पढ पोस्ट अधूरी टिप्पणियाँ बरसाते ॥

    सिर्फ़ बमों से नहीं मरे कुछ मेट्रो ने भी मारे ।
    व्यंग्य वाण क्यों सहें अकेले गृहमन्त्री बेचारे ॥

    सुख दुख के दो रंग आज रंजना सिंह दिखलाएं ।
    नयन नीर हर्षित मन दोनों ही अच्छी कविताएं ॥

    पुसादकर जी समझ न पाए भेद न्यूज चैनल का ।
    टीवी पर भी पढा जा रहा सिर्फ सामना कल का ॥

    हिन्दू भाई जरा ध्यान दें लेख पढें यह पूरा ।
    आज तरुण ने अनूप शुक्ला को शंका से घूरा ॥

    बच्चों की कविता पढिए जो दिल में जोश जगाती ।
    मन मे मेरे प्यार जगाती दुनिया खूब है भाती ॥

    करते फिरें जुगाड वित्त का मारकेट के मारे ।
    निवेशकों को दीख रहे है अब दिन में भी तारे ॥

    जिमीकंद की पकौडियाँ जो कोई चाहे खाना ।
    स्वयं बनाकर खाएं लेकिन सीखें यहाँ बनाना ॥

    बीस रुपये का एक पटाखा धीरू सिंह चलाएं ।
    बाजूबंद भी खुल खुल जाए इतनी तेज हवाएँ ॥

    आज समय थोडा कम है हम बंद करें यह फाइल ।
    आप पढें यह ताऊ जी का इंट्रेस्टिंग प्रोफाइल ॥

    ताऊ रामपुरिया का प्रोफाइल :

    ताऊ अपने बारे में :
    अब अपने बारे में क्या कहूँ ? मूल रुप से हरियाणा का रहने वाला हूँ ! लेखन मेरा पेशा नही है ! थोडा बहुत गाँव की भाषा में सोच लेता हूँ , कुछ पुरानी और वर्त्तमान घटनाओं को अपने आतंरिक सोच की भाषा हरयाणवी में लिखने की कोशीश करता हूँ ! वैसे जिंदगी को हल्के फुल्के अंदाज मे लेने वालों से अच्छी पटती है गम तो यो ही बहुत हैं हंसो और हंसाओं , यही अपना ध्येय वाक्य है हमारे यहाँ एक पान की दूकान पर तख्ती टंगी है , जिसे हम रोज देखते हैं ! उस पर लिखा है : कृपया यहाँ ज्ञान ना बांटे , यहाँ सभी ज्ञानी हैं ! बस इसे पढ़ कर हमें अपनी औकात याद आ जाती है ! और हम अपने पायजामे में ही रहते हैं ! एवं किसी को भी हमारा अमूल्य ज्ञान प्रदान नही करते हैं ! ब्लागिंग का मेरा उद्देश्य चंद उन जिंदा दिल लोगों से संवाद का एक तरीका है जिनकी याद मात्र से रोम रोम खुशी से भर जाता है ! और ऐसे लोगो की उपस्थिति मुझे ऐसी लगती है जैसे ईश्वर ही मेरे पास चल कर आ गया हो ! आप यहाँ आए , मेरे बारे में जानकारी ली ! इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ !

    ताऊ के शौक :
    अपना प्रथम शौक है शरीफो और नेक लोगो को बिगाडना ! क्योंकी हम खुद पैदाइशी बिगडे हुये हैं और हमारे मास्साब और वालदेन भी हमको सुधारते सुधारते खुद सुधर चुके हैं ! और अब हमारे सुधरने की कोई उम्मीद नही बची है ! इस लिये अपनी जात बिरादरी मे बढोतरी के लिये इसको अपना मुख्य शौक बना लिया है ! और अगर आप इस गलत फहमी मे हो कि शरीफ बनने मे कुछ फायदा है तो आपको बडी गलत सलत सलाह दी गई है ! अपनी गलती सुधारे और अगर कुछ अडचन आ रही हो तो हमारी सलाह ले सकते हैं ! दुसरा शौक है-- जिन्दगी को हलके फुलके लेना आजादी पूर्व के डाक टिकट संग्रह का पुराना शौक अपने जीवन के आस पास की घटनाओं का चित्रण करना और मजे में रहना ! अपने जैसा कोई मिल गया तो ठीक नही तो अकेले रहने में भी मस्ती रहती है ! फोकट टेंसन लेने में विश्वास नही है !


    पसंदीदा फिल्में :
    अपनी जिंदगी की मूवी ही पसंद नही आयी तो दुसरे की क्या आयेगी ? अगर पसंद ही बताना जरुरी हो तो अब तक की पसंद मेरी अपनी गुजरी जिंदगी की मूवी ही है ! इसमे एक सफल फिल्म के सारे दृश्यों को मैने देखा है ! इससे बडी फिल्म कोइ बना भी नही सकता ! क्योंकी ये फिल्म सीधी उपर वाले की निर्देशित की हुयी है ! आपको देखना हो तो बंदे को याद कर लेना ! इस फिल्म को देखने के लिये एक सॉफ्टवेयर और DVD-PLAYER की जरुरत लगती है ! आपके पास हो तो ठीक है वर्ना आपके आग्रह पर हम यह निशुल्क उबलब्ध करवा देंगे ! इस फिल्म मे कोइ भी सीन रिपीट नही होता बल्कि एकता कपूर स्टाईल मे चलती ही रहती है ! अब भला इसके सामने ढाई घंटे की फिल्म क्या लगेगी ?

    पसंदीदा संगीत :
    सब तरह का पसंद है सरसरी तौर पर सूफी संगीत और हरयानवी लोक संगीत खास पसंद है पर कभी कभी ना जाने क्या हो जाता है कि एक पता पेड से गिरने मे जो सरसराहट सुनाई देती है उसमे भी अपार संगीत सुनाई दे जाता है !


    पसंदीदा किताबें :

    कोष्ठक में : १. आपने अगर यह प्रोफाइल पढने से पहले ताऊ जी की अनुमति नहीं ली है तो हर्ज़े खर्चे के जिम्मेदार स्वयं होंगे . चिट्ठा चर्चा का इसमें कोई दायित्व न होगा .
    . कृपया अपने-अपने सार्वजनिक प्रोफाइल को सुधार लें । चिट्ठा चर्चा का छापा कभी भी किसी भी प्रोफाइल पर पड सकता है ।

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    चलो बस हो चुकी चर्चा ना तुम खाली ना हम खाली

    मीडिया चतुर तो है ही वो गिरगिट की तरह रंग बदलना भी जानता है, पिछली खबरों पर दर्शकों और पाठकों की पसंद नापसंद की विवेचना करके वो जान गया है कि टी आर पी किस खबर से बढ़ेगी वरना चंद दहशत पसंद दहशतगर्दों के कारनामों की जगह हजारों लाखों अमन भाई-चारा पसंद लोगों की कहानी पढ़ने को मिलती। खैर थोड़ा सा टर्न लेते हैं और सी एन एन कि इस खबर पर भी नजरें ईनायत करते हैं जिसे आज (यानि अमेरिकी शुक्रवार) मैं पढ़ रहा था। इतने बड़े भारत में घट रही घटनाओं में से सी एन एन को यही खबर मिली थी - Brothers share wife to secure family land, यही नही ये खबर फ्रंट पेज पर रखी गयी थी। इस बात के सही-गलत की बात यहाँ नही करूँगा लेकिन इसमें छुपे मसाले ने सीएनएन के फ्रंट पेज में जगह बनाकर रखी थी। वो जानते थे कि इसे दबाकर पढ़ा जायेगा लेकिन इस खबर पर मिली टिप्पणियों पर मैं यहि कहूँगा - "जॉनी, जिनके घर शीशे के होते हैं वो दूसरों के घर पर पत्थर नही फेका करते", पत्थरों की बारिश में एक ईंट का टुकड़ा हम भी मार आये हैं। खबर और टिप्पणियाँ पढ़ लीजिये डायलॉग का मतलब समझ जायेंगे।

    अब कुछ चर्चा करते हैं, प्रभाष मीडिया और तथाकथित बुद्धिजिवियों के लिये अपना मत कुछ यूँ व्यक्त करते हैं -
    बुद्धिजीवियों का एक बड़ा तबका कह रहा था कि आतंकवाद को इस्लाम से जोड़कर न देखा जाए। आतंकवादियों को कोई मजहब नहीं होता है। वैसे यहां तक तो मैं भी मीडिया और बुद्धिजीवियों की राय से सहमत हूं। लेकिन ये सारे तर्क और विवेकपूर्ण बातें धरी रह गईं जब मालेगांव और साबरकांठा विस्फोट में हिंदू आरोपी बनाए गए। कल तक चीख-चीखकर संयमी और विवेकी बनने की नसीहत देने वाले लोग अब अपना उपदेश ही भूल गए हैं।
    वहीं दूसरी तरफ मुट्ठी खोलकर राजकिशोर अपनी बात कुछ इस तरह से रखते हैं -
    लेकिन मुट्ट्ठी भर लोग भी कितना अधिक नुकसान कर सकते हैं, यह बाबरी मस्जिद के विध्वंस से, ईसाइयों के साथ हाल में हुए सलूक से और मुसलमान आतंकवादियों की तैयारियों से भली भांति समझा जा सकता है। सच यही है कि किसी भी देश-काल में कोई भी पूरा का पूरा समुदाय खराब नहीं हो जाता। मुट्ठी भर लोग ही दुष्टता करते हैं, जिसका परिणाम पूरे समाज को भुगतना पड़ना है। हिटलर के जर्मनी में भी ऐसे लोगों की संख्या कम न थी जो उसके जुल्मो-सितम के खिलाफ थे।
    कभी कभी मुझे तो लगता है, शायद किसी को अक्सर ऐसा लगता हो, सियासत पसंद वोट के लिये और मीडिया टीआरपी के लिये इस धर्म के नाम की गोटी ना खेल रहा हो।

    आजकल एक नया ट्रेंड चल पड़ा है कोई किसी का भी कहीं छाप देता है, सरपंच में सुरेश का लिखा मिला, उनका कहना है -
    समस्या को बढ़ाने, उसे च्यूइंगम की तरह चबाने और फ़िर वक्त निकल जाने पर थूक देने में मीडिया का कोई सानी नहीं है। सबसे पहले आते हैं इस बात पर कि "राज ठाकरे ने यह बात क्यों कही?" इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि जबसे (अर्थात गत बीस वर्षों से) दूसरे प्रदेशों के लोग मुम्बई में आने लगे और वहाँ की जनसंख्या बेकाबू होने लगी तभी से महानगर की सारी मूलभूत जरूरतें (सड़क, पानी, बिजली आदि) प्रभावित होने लगीं, जमीन के भाव अनाप-शनाप बढ़े जिस पर धनपतियों ने कब्जा कर लिया। यह समस्या तो नागरिक प्रशासन की असफ़लता थी, लेकिन जब मराठी लोगों की नौकरी पर आ पड़ी (आमतौर पर मराठी व्यक्ति शांतिप्रिय और नौकरीपेशा ही होता है) तब उसकी नींद खुली। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
    मीडिया के लिये कही बात से इत्तेफाक लेकिन इसके लिये उन्हें कहीं से भी दोषी नही ठहराया जा सकता जो उत्तर प्रदेश, बिहार या उत्तराखंड से आ रहे हैं। अगर देश में डेवलपमेंट के नाम पर सारा विकास एक ही शहर में होगा तो जाहिर है लोग उसी शहर की तरफ भागेंगे। अभी भी वक्त है कि बजाय बाल की खाल निकालने के मीडिया सकारात्मक भूमिका निभाते हुए इस बात पर बहस करे या करवाये कि सेंट्रलाईज डेवलपमेंट को डिसेंट्रलाईज किया जाय। वरना ये जो हो रहा है ये तो सिर्फ ट्रेलर है पिक्चर तो अभी बाकि है मेरे दोस्त।

    वर्तिका नंदा बेल्जियम का अपना सफर कुछ यूँ बयाँ करती हैं -
    यात्रा जोड़ती है और अंदर बनी गांठें खोलती है। पराए मुल्क में अपने देस की भाषा भीनी लगती है और बेहद स्वादिष्ट लगती है अपने घर की वही दाल भी जिसे घर में रोज खाते हुए उसकी अहमियत समझ में ही नहीं आती।
    बलविन्दर देसी इंजीनियरों का जुगाड़ बताते हुए लिखते हैं -
    नई युक्ति शुध्द यांत्रिक नियमों पर आधारित है। इसमें टायलेट पाइप के नीचे एक प्लेट फिट कर उसके नीचे एक निश्चित भार लटका दिया जाता है। खड़ी स्थिति में यह प्लेट टायलेट पाइप को खुलने नहीं देती है मगर 40 किमी से अधिक की रफ्तार में हवा के विपरीत दबाव से यह प्लेट सरक जाती है और टायलेट पाइप खुल जाता है।
    लेकिन हमारे मन में सशंय बना हुआ है (रेलवे की बात है ज्ञानजी को शायद कुछ मालूम हो), अगर कोई टॉयलेट में बैठा हल्का हो रहा हो और कोई स्टेशन आ जाये, ट्रेन रूक जायेगी और पाईप बंद हो जायेगा तब क्या होगा? या कई बार ट्रेन को कई कारणों से धीमे धीमे चलना पड़ जाता है, ऐसे हालातों में अगर ट्रेन की स्पीड ४० से नीचे बनी रही तो वो टॉयलेट पाईप खुलेंगे ही नही, फिर क्या?

    सनराईज, राज एक रक्तबीज अनेक कहते हुए लिखते हैं -
    महाराष्ट्र में तो उत्तर भारतीयों को निशाना बनाकर उन्हे वहां से खदेड़ा गया...लेकिन बिहार में किसे निशाना बनाया जा रहा है ? राज ठाकरे को ज़मानत मिलने के बाद से बिहार में शुरू हुई हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है।वहां पर खुद को छात्र कहने वाले गुण्डे सड़कों पर उतर आए हैं और खुलेआम प्रशासन की नाक के नीचे तांडव कर रहे हैं। उन्होने कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया...काफी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया...ये छात्र शायद अपनी इस करनी पर अपनी पीठ ठोंक रहे हों...पर मैं तो एक बात दावे के साथ कह सकता हूं कि ये जितना भी नुकसानहुआ है वो बिहार का ही हुआ है...महाराष्ट्र का नहीं।
    ये मैं कभी नही समझ पाया कि हम भारतीय हर बात पर तोड़ फोड़ पर क्यों उतारू हो जाते हैं, ये सारे लोग कालिदास क्यों बन जाते हैं, जिस शहर में रह रहे होते हैं उसी में तोड़-फोड़-आगजनी-लूटपाट। (कोई और दास था तो सही करें प्लीज)

    मोनिका अधूरी जिंदगी को कुछ यूँ परिभाषित करती हैं -
    फिर भी मुझे तुम्हारा आज भी इंतजार हैं कभी तुम आओगे और मुझे माँ कहोंगे. मेरी अधूरी जिंदगी पूरी करोगे और मेरे जीवन का एक दाग हमेशा को मिटा दोंगे.
    मुझे कुछ कमेंट नही करना चाहिये क्योंकि मैं खुद ये बात नही समझ सकता लेकिन इसको इस नजर से क्यों देखा जाता है - अधूरी जिंदगी या दाग?

    रविन्द्र व्यास पेंटिंग के साथ पीले हाथ की बात करते हुए लिखते हैं -
    उसने सोचा उसके हाथ पीले देखकर लोग सवाल करेंगे। उसने सोचा पानी से हाथ धो ले तो यह रंग छूट जाएगा। लेकिन उसने देखा पानी में रगड़-रगड़कर हाथ धोने के बाद भी पीला रंग छूट नहीं रहा। फिर उसने साबुन लगाकर हाथ धोए। वहां अब भी पीला चमक रहा था। उसने कपड़े के साबुन से हाथ धोए। वहां पीला रंग ही दमक रहा था। उसने सोचा कैरोसिन ट्राई किया जाए। फिर सोचा मि्टटी। लेकिन उसके हाथ हमेशा के लिए पीले हो चुके थे


    लिव-इन रिलेशनशिप की बात अभी थमी नही है शायद, इमरोज से इसी विषय पर हुई चर्चा के बाद शायदा लिखती हैं -
    जिस का़नून की हम बात कर रहे हैं अगर वह बनता भी है तो उससे इतनी मदद होगी कि पुरुष, स्त्री को छोड़कर भागने से पहले एक बार सोचेगा ज़रूर, और अगर चला भी गया तो कम से कम पीछे छूट गई औरत उस सामाजिक प्रताड़ना से बच जाएगी जिससे वह अब गुज़रती है।
    अब ये अलग बात है कि जिसे भागना होगा उसके लिये क्या शादी क्या लिव-इन। जहाँ तक प्रताड़ना की बात है तो लोग शादीशुदा औरत के पति के भाग जाने पर उसे नही छोड़ते तो ये तो लिव-इन होगा। दरअसल सारा मुद्दा आदमी की सोच का है, जरूरत है उसे बदलने की। अगर वो बदल जाये तो शायद इसकी नौबत ही ना आये लेकिन ध्यान रहे मैंने शायद कहा है।

    दीपक कुमार का कहना है कि आखिर क्यों सब ब्यूटीफुल और हैंडसम की चाहत करते हैं? आप में से किसी को पता हो तो बताओ

    प्रत्यक्षा का कहना है बाजूबंद खुल खुल जाये, और हमारा कहना है कि कल की पोस्ट खत्म ही नही हो रहीं हम बोर बोर हुए जायें।

    लगता है चिट्ठाकारों को माइक्रो का पता नही, अब अनिल पोस्ट लिखते हैं और बताते हैं माइक्रो, नौ दो ग्यारह वाले आलोक को अगर ऐसी माइक्रो पोस्ट का पता चल जाये तो वो तो अपने बाल पक्का नोच लेंगे। अनिल जी ने जो पोस्ट माइक्रो कहके लिखी है आलोक उस पोस्ट को बगैर माइक्रो कहे यूँ लिखते - समझ नही आता न्यूज़ देख रहा हूं या सामना पढ रहा हूं। पीरियड, अब आप समझते रहें।

    स्वप्नदर्शी कितनी व्यस्त हैं ये इसी से पता चलता है क्योंकि उन्होंने फिल्म की समीक्षा और व्हाइट टाईगर दोनों को एक ही पोस्ट में समेट लिया।

    नीतिश राज पूछते हैं, मुसलमान की शादी में जाने को आतुर क्यों हो? क्यों? समीरजी झट से जवाब देते हैं, ये लो भई-टीवी पर भी आ लिए इसलिये आतुर हैं

    वीनस केसरी मानव के कल्याण की बात कर रहे हैं, आप खुद जाकर पढ़ लीजिये क्योंकि उन्होंने सेंपल उठाने के लिये ताला लगा रखा है, इसी वजह से उनको मिली टिप्पणियों में भी ये सेंपल का टोटा देखने में नजर आया।

    घुघुती बासूती लिखती हैं -
    विचित्र है प्रकृति का खेल
    विसंगति तो देखो
    बैसाखियाँ चल पड़ती हैं
    पाँव जड़ हो जाते हैं ।
    अरूण पहाड़ के लिये कहते हैं -
    पानी में कांपते अपने अक्स को देखकर भी
    कितना शांत निश्चल है पहाड़
    एक और तरूण आ गये हैं और आवाज लगा कर कह रहे हैं -
    मैंने कब कहा
    मुझे तुम प्यार करो ।

    मैंने कब कहा
    मेरा ध्यान रखो ।

    मैंने कब कहा
    मुझे दुलारा करो ।

    बस
    मुझे पेट में न मारा करो ।
    अब जब उस तरूण की सुना दी तो इस तरूण ने किसी का क्या बिगाड़ा है -
    आदमी को चाहिये दो वक्त की रोटी और पीने को पानी
    मीडिया को चाहिये टीआरपी बढ़ाने को सनसनी और ऊटपटाँग कहानी।

    आदमी को चाहिये एक अदद नौकरी और रहने को छत
    सेना के जवान को चाहिये घर से आया एक प्यारा सा खत।
    बेजी को हमारे कंट्रोल पैनल का पाठक बन जाना चाहिये, खासकर वक्त निकाल कर ब्लोगर टेंपलेट वाले लेख क्योंकि वहाँ सब कुछ बिखरा बिखरा पड़ा है, इतनी अच्छी लाईने साईड बार में जा छुपी थीं -
    हम एक दूसरे के
    कितने आदी हो चुके हैं
    तुम्हारा अचानक से आ जाना भी
    सामान्य सा लगता है
    घर में हर दीवार पर
    सोफे पर, फर्श पर
    तुम मिल जाते हो
    जैसे खुद को थोड़ा बहुत
    उतार कर जाते हो
    रंजना ने इस बार दो रंग बिखेरे हैं, उसमें से एक रंग को थोड़ा सा चुटकी में भरकर यहाँ बिखेर देते हैं -

    नख शिख पूर्ण अलंकृत करके,
    रच सोलह श्रृंगार सजाऊँ.

    सावन हो या जेठ दुपहरी,
    झूम के नाचूं झूम के गाऊं.

    इन्द्र धनुष के रंग चुराकर,
    एक मनोहर चित्र बनाऊं.

    पथिक राह में कोई भी हो,
    सबको अपने ह्रदय लगाऊँ.
    योगेन्द्र मुदगिल को लगता है इंसान की जान खतरे में है और वो इतने घबराये कि उन्होंने इस मुनादी का सेंपल पर्चा उठाने पर भी पहरा बैठा दिया लिहाजा आप चाहें वहाँ जाकर पढ़ सकते हैं।

    एक महत्वपूर्ण सूचनाः लगता है कवि-कवियत्रियों की कवितायें पढ़ पढ़ कर या किसी कबिईईईईईता से चोरी-चोरी चुपके-चुपके मिलकर फुरसतिया के ऊपर कवि होने का खतरा मंडरा रहा है। इसलिये समस्त कवि-कवियत्रियों को सूचित किया जाता है कि अपनी लिखी कबितततताओं के खैर-मकदम के लिये कुछ दिनों लिखना बंद रखें। सूचना समाप्त हुई।

    आज के लिये इतना काफी, आप सभी लोगों को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें। अब हर कोई तो अनुप शुकुल हो नही सकता इसलिये वक्त की कमी के कारण अगले कुछ सप्ताहंतों तक हम चर्चा से दूर रहेंगे और जो थोड़ा वक्त किश्तों में मिलेगा उसे स्वार्थवश अपने ब्लोगस के लिये रखेंगे। दिसम्बर में इंटरनेट से दूर होकर भारत में छुट्टियों का आनंद लिया जायेगा। इसलिये आज ही आप सभी को नववर्ष की शुभकामनायें भी दिये जाते हैं, आने वाला वर्ष मंगलमय और सुख शांति वाला हो। चर्चा में अब अगले साल मुलाकात होगी तब तक के लिये - चलो बस हो चुकी चर्चा ना तुम खाली ना हम खाली।

    शुभ-दिपावली हैप्पी न्यू ईयर

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    शुक्रवार, अक्तूबर 24, 2008

    अमिताभ का अ कितना खूबसूरत है

    होनी तो थी प्रात:कालीन चर्चा पर हो रही है सांध्‍यकालीन। सो भी संक्षिप्‍त। कुल मिलाकर एक ही केंद्रीय पोस्‍ट पर। पोस्‍ट हल्‍की-फुल्‍की नहीं, बिग बी की पोस्‍ट।

     

    कल रविजी ने सूचना दी कि अमिताभ अंतत: हिन्‍दी ब्‍लॉगर बन गए हैं। उन्‍होंने ये पोस्‍ट डाली थी।

    amitabh

    वाकई प्रसन्‍नता कि बात थी कि अमिताभ बच्‍चन हिन्‍दी ब्‍लॉगर हो गए भले ही इंक ब्‍लॉगिंग से। पर आशीष को ये नहीं जमा।

    उनका कहना था-

    दरअसल रवि जी ने अमिताभ की जिस पोस्ट का जिक्र किया है, वैसी ही एक पोस्ट अमिताभ बच्चन ने इस साल 3 जुलाई को थी। इस पोस्ट को पढ़कर बिग बी के हिन्दी प्रेम पर मुझे काफी खुशी हुई थी और इसे मैंने अपने ब्लॉग नेटशाला पर कुछ इस तरह पेश किया था।

    बात सही ही थी। अमिताभ पहले ही इंक ब्‍लॉगिंग में हाथ आजमा चुके थे-

    amitabh hindi1

    किंतु इस सब का असर खूब हुआ खुद अमिताभ पर भी। आज का दिन आते न आते अमिताभ बिना किंतु परंतु के हिन्‍दी ब्‍लॉगर बन गए इस पोस्‍ट के साथ

    तो अब जितने सज्जन व्यक्ति निराश थे कि मैं हिंदी मे क्यूँ नहीं लिख रहा , आशा करता हूँ थोड़े से अब वो शांत होंगे I खुशी इस बात कि सब से ज्यादा है कि बाबूजी के लिखे शब्द सही रूप मे आप सभी के सामने प्रस्तुत कर सकूँ गा I आज एक छोटी शुरुआत कर रहा हूँ , आगे और अवसर मिलेगा जब मै विस्तार से लिखने का प्रयत्न करूँगा I आशा करता हूँ कि मेरी यह पहली कोशिश आप सभी को भाएगी I

    अरे भाएगी क्‍यों नहीं। जरूर भाएगी। भा रही है। पर हम ठहरे मास्‍टर हमें तो जिस बात से सबसे ज्‍यादा खुशी हुई वह है अमिताभ का अ। ये जो अ 'अ' आप देख रहे हैं वह नहीं वरन वह जो आप अमिताभ की इंक ब्‍लॉगिंग में उनके हस्‍तलेख का अ है। कितना खूबसूरत

    image  अ है। आजकल तो दिखना भी बंद हो गया है इस आकृति में लिखा हुआ। नहीं... तो आज की चर्चा अमिताभ के इस अ के नाम जो शायद खुद हरिवंश राय बच्‍चन ने अपने हाथ से सिखाया होगा।

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    बुधवार, अक्तूबर 22, 2008

    ब्लोगी कोलोनी का एक नज़ारा.. मेरी छत से..

    अक्टुबर माह का एक दिवस
    समय बहुत ही अच्छा
    स्थान ब्लॉगी कॉलोनी, चिट्ठा नगर

    पिछले छ् महीने से इसी कॉलोनी में रह रहा हू... हालाँकि मकान लिए हुए तो काफ़ी टाइम हो गया.. पर रहना करीब छ् महीने पहले ही शुरू किया.. कॉर्नर वाला मकान होने से एक बात अच्छी है काफ़ी कुछ नज़र आ जाता है.. कल शाम कुछ देर घर की छत से जब देखा तो पूरी ब्लोगी कोलोनी के कुछ नज़ारे दिख गये.. सोचा उनकी चर्चा कर लू आपके साथ...

    सामने वाले मिश्रा जी के घर कल दिन भर मेहमानों का आवागमन रहा.. जुते चप्पलो की लाइन दरवाजे के बाहर दिन भर लगी रही.. शाम को उनके घर से बड़ी 'फ़ुर्सत' में निकले एक मेहमान से पता चला की मिश्रा जी ने आज टिप्पणीकारो और ब्लॉगरो हेतु एक भोज का आयोजन किया था.. परंतु खुद् परेशान हो गये सोच कर की दोनो में से किसके पाँव लगू...
    और कहते हुए पाए गए की अभी अभी चिट्ठा चर्चा में हीएक मसला -मत विमत ऐसा भी आया कि कुछ मित्र केवल अपने ही लिखे पर आत्ममुग्ध हो टिप्पणियों कीअपेक्षा करते हैं -दूसरों की पढने की इच्छा ही नही करते -मानों वे सर्व ज्ञान संपृक्त हो चुके हों -मैं भी ऐसे कई लोगों को जानता हूँ ।


    उनसे दो मकान छोड़ के जो नीली पुताई वाला मकान है.. हा वही जिसके बाहर एक भैंस बँधी रहती है.. उस मकान पे कल पुलिस का छापा पड़ा.. सुना है वहा किसी ने ठगी का कोई नया धंधा शुरू किया..
    ताऊ को तलब करण का नोटिस निकलवा दिया ! और ताऊ के घर ख़बर करवा दी पंचो ने की, शनिवार को पंचायत बैठेगी !


    गली के खंबो से अक्सर कुछ लड़के लट्टू चुरा लेते थे.. उन्ही से परेशान होकर पीछे वाली गली के रेलवे क्वॉर्टर में रहने वाले एक अंकल ने अपनी परेशानी कुछ यू रखी...
    हजार दो हजार रुपये के केबल के तांबे की चोरी का खामियाजा देश १००० गुणा भुगतता है। और इस पूर्वांचल क्षेत्र में इस तरह की छोटी चोरी को न कोई सामाजिक कलंक माना जाता है, न कोई जन जागरण है उसके खिलाफ।


    कल फिर से प्राथमिक विद्यालय में लड़कियो को भेजने की अच्छी बात सीखने वाली संगीता जी ने चित्रो के माध्यम से कोलोनी को जागरूक किया की भ्रूण हत्या नही करनी चहिये...

    कोने वाली बिल्डिंग के दूसरे माले पर रहने वाली अनुजा जी गली में साइकल पर बिताए हुए अपने पुराने दिनों को याद करते हुए चिंतित दिखी क्योंकि गली में आज कोई साइकल नही चला रहा था.. आई मीन चला रही थी...

    कल सुबह सुबह ही आदित्य के पापा घर पे खीर ले आए और बोले आदित्य की मम्मी ने सूजी की खीर बनाई है आपको ज़रूर खानी पड़ेगी.. सच कहु तो बहुत स्वादिष्ट खीर थी.. आप भी खाईए

    मेरे बगल में रहने वाले नीरज भाई अक्सर काम के सिलसिले में बाहर ही रहते है.. आज सुबह उनसे मिलना हुआ, देश को लेकर चिंतित लग रहे थे..
    पूरा देश एक बड़ी सी मैस है। देश टेबल पर पड़ा है। खाने वालों की लम्बी कतार है। सब देश खाना चाहते हैं। जीभें लपलपा रही है। देश मुर्गे की तरह फड़फड़ा रहा है। खाने वाले ज्यादा है, देश छोटा। हर किसी को उसका हिस्सा चाहिए। समस्या संगीन है। मगर लोग होशियार। उच्च दर्ज़े के न्यायाधीश। वो किसी को भूखा मरने नहीं देंगे। जानते हैं सब एक साथ देश पर टूट पड़े तो अराजकता फैलेगी।


    बगल वाले डा. साहब बहुत परेशान दिखे... घर के बाहर क्रेन खड़ी थी .. पूछने पर पता चला कल चाँद पीकर उनके आँगन में गिर गया..
    रात भर तारो की बेवफ़ाई पर बड़बड़ाया है
    तुम उठाकर इसको आसमान मे टांग देना ...

    चाँद कल पी कर गिर पड़ा था आँगन मे


    कुछ देर बाद हमारे बराबर के मकान वाले ब्लॉगर साहब चाय लेकर आ गये.. एक चाय हमे हाथ में देते हुए बोले.. क्या देख रहे हो.. हमने कहा बस यूही देख रहा हू छ् महीने में कितने करीब से देखा है कॉलोनी को.. वो बोले ज़्यादा करीब भी मत जाना.. ज़्यादा करीब जाने से चेहरे के दाग नज़र आ जाते है..

    मैं समझा नही.. तो मैने उनसे कुछ सवाल जवाब कर लिए...

    प्र: आप ब्लॉगी कॉलोनी के बारे में क्या सोचते है ?
    ऊ: आरी को काटने के लिए सूत की तलवार

    प्र: यहा आए दिन होने वाले पंगो से आपको दुख नही होता?
    ऊ: होता तो है फिर भी सबको जीना है !!

    प्र: और जो लोग कहते है की यहा कुछ भी सार्थक नही होता?
    ऊ: लोगों का काम है कहना

    प्र: आप इन सब के बीच कैसा महसूस करते है?
    ऊ: कुछ दर्द , कुछ हँसी

    प्र: जो दूसरो की प्रशंसा नही करते, उनसे क्या कहेंगे आप?
    ऊ: आओ पीछे लौट चलें...

    प्र: अगर यहा इतनी समस्याए है तो कोई कुछ कहता क्यो नही?
    ऊ: यह चुप्पियों का शहर है

    फिर जब चुप्पियो का ही शहर है तो मैं क्यो बोल रहा हू.. मैं भी चुप हो जाता हू.. गला फाड़ने से क्या होगा.. हो सकता है कोई ये कहे की मुझे थोड़ी देर और खड़ा रहकर बाकी के घर भी देखने थे.. या फिर मेरे पड़ोसी से और सवाल करने थे.. उनकी बात मानता हू.. मगर कुछ लोगो ने तो सारे सवाल भी नही सुने होंगे... ना ही उन्हे पता होगा मैने कौन कौन से घर के बारे में लिखा है..

    खैर मुझे उनसे क्या.. जिन्होने सब पढ़ा है उनसे बस यही कहूँगा.. मेरी भी कुछ सीमाए है.. मेरी छत से जितना दूर तक देख सकता था देखा.. इस से ज़्यादा उस वक़्त नही देख सकता था.. रौशनी कम थी .. अगर किसी का घर छूट गया हो तो वादा करता हू अगली बार शिकायत का मौका नही दूँगा..

    मौसम थोड़ा खराब है... अभी छत से उतरता हू... फिर मिलूँगा

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    मंगलवार, अक्तूबर 21, 2008

    प्रेरक एक कहानी !

    पाण्डेय जी का चिट्ठा लाया प्रेरक एक कहानी ।
    विकलांगता मात करने की है जितेन्द्र ने ठानी ॥

    कल डॉक्टर अनुराग फँस गए थे अजीब उलझन में ।
    कहाँ उठाकर रखें अचानक चाँद गिरा आँगन में

    सीमा जी की यह सौगात पढें प्रेमी कविता के ।
    मार्मिक हैं संवाद यहाँ कुछ पुत्री और पिता के ॥

    आज छिडी है बहस आप भी अपना मत दे आएं ।
    यहाँ टिप्पणीकार बडा या ब्लॉगर जल्द बताएं ॥

    दो कलमों का भेद ये कैसा विवेक सिंह चकराए ।
    रंजू की विश्राम माँगती कुश की चलती जाए ॥

    बीस रुपए में शायर बनना हो तो यहाँ पधारें ।
    क क किरण बहादुर बाला की भी बहादुरी स्वीकारें ॥

    पागल नहीं देशद्रोही हैं राज ठाकरे जानें ।
    कहती हैं फिरदौस स्वयं पढ लें मेरी क्यों मानें ॥

    बचपन और बडे होने के बीच हुआ क्या ऐसा ।
    पढें चेतना कविता प्रेमी नहीं लगेगा पैसा ॥

    ब्लॉगिंग के आजमाए नुस्खे ब्लॉगर अवश्य पढना ।
    नुस्खे सीख सीखकर ही ब्लॉगिंग में आगे बढना ..

    टाइमखोटीकार कहें यों टैम नहीं शिव भाई
    इनको भी टाइम का टोटा कैसी मुश्किल आई ॥

    समय नहीं जब कहे निठल्ला तो क्या तुम मानोगे ?
    बोलो बच्चो ! झूठ सत्य फिर कैसे पहचानोगे ?

    नॉर्मलत्व की ओर चले आलोक पुराणिक भाया ।
    जेब कटाकर घर आ बैठे हाथ कुछ नहीं आया ॥

    हिन्दी ब्लॉगिंग में आयी है कविता ये आसामी
    कोई बात नहीं जो इसमें हो थोडी सी खामी ॥

    चलता फिरता ए टी एम देख कर खुश हो जाओ ।
    बैंक नहीं जाना पैसे अब घर बैठे ही पाओ ॥

    बाहर फैले पतझड तो बेखबर कभी मत होना ।
    हरियाली खबरें पहुँचाता रोज़ हरा यह कोना ॥

    शिवकुमार मिश्रा जी ने दुहरी सेन्च्युरी लगाई ।
    अविश्वास है कुछ लोगों की टिप्पणियाँ ये आयीं

    ज्ञानदत्त पाण्डेय जी ने भी माँगा आधा हिस्सा ।
    कौए और गिलहरी का भी था ऐसा ही किस्सा ॥

    भारत का इस्लामीकरण: होरही इसमें तेजी ।
    कुछ ब्लॉगर को चिंता है ये टिप्पणियाँ भी भेजीं ॥

    श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की यह संक्षिप्त जानकारी है ।
    बाल उद्यान बधाई हो यह कार्य सदाचारी है ॥

    यह शब्दों का सफर अजित वडनेरकर खडे हुए हैं ।
    कातिबे तकदीर बता दे कुछ यूँ जिद पर अडे हुए हैं ॥

    सरकार देर से क्यों जागी ये पूछें सचिन आपसे ।
    टेस्ट मोहाली में जीते हम धोनी के प्रताप से

    पढें पुलिस पर लेख भ्रान्ति अब दूर करें यदि हो तो ।
    सदा नहीं दे सकते हम हर दोष पुलिस बल को तो ॥

    फुरसतिया के दीवाने के को पत्थर से ना मारें
    एक बार फिर हम तुम आओ जय टिप्पणी पुकारें ॥

    जिसने पहले टिप्पणियाँ की धन्यवाद उन सबका ।

    जो न कर सके पहले उनके लिए दूसरा मौका ॥

    लोकतन्त्र में राय आपकी ही मायने रखती है ।

    बिन ग्राहक के दुकानदार की बोलो क्या हस्ती है ॥

    अत: भाइयो बुरा भला जैसा भी हो टिपियाएं ।

    हिन्दी के विकास को चिट्ठा चर्चा से आशाएं

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