बुधवार, दिसंबर 31, 2008

साल 2008 की चिटठा चर्चा..

गुज़रे साल की चिट्ठा चर्चा...

लिखने से पहले ही हाथ काँप रहे है.. अगर कुछ छूट गया तो क्या होगा?? समझ ही नही आ रहा की क्या किया जाए कैसे किया जाए.. एक पूरे साल को समेटना बहुत मुश्किल है... मैं कई नाम और शामिल करना चाहता था.. पर समय की कमी की वजह से नही कर पाया..इतना समय तो मिला नही की सभी पोस्ट देखी जाए और उनके बारे में लिखा जाए इसलिए कुछ चुनिंदा बातो पर ही लिख रहा हु आशा है आप सभी का सहयोग मिलेगा..

साल 2008 मेरे लिए ब्लॉगिंग के लिहाज से तो महत्वपूर्ण रहा ही.. क्योंकि हिन्दी ब्लॉगजगत में मैने इसी साल आगमन किया था..


और लगभग हमारे साथ साथ ही डा.अनुराग और पल्लवी त्रिवेदी ने भी ब्लॉग जगत की पावन धारा पर आगमन किया..


इस साल में ब्लॉगरो से परिचय के माध्यम मिले.. एक तो अजीत जी का शब्दो का सफ़र.. जिसमे ब्लॉगरो ने अपने जीवन के अनछुए पलों से बाकी ब्लॉगर साथियो से मिलवाया.. इस कड़ी में..

अनिताकुमार,विमल वर्मा,लावण्या शाह,काकेश,मीनाक्षी,शिवकुमार मिश्र,अफ़लातून,बेजी,अरुण अरोरा,हर्षवर्धन,प्रभाकर पाण्डेय,अभिषेक ओझा,रंजना भाटिया जी से मिल चुके है हम.. और पल्लवी जी से अभी मुलाकात चल रही है...


बकलमखुद शुरू होने के दो ही महीने बाद एक और ब्लॉग से लोगो का परिचय हुआ... कॉफी विद कुश.. इस ब्लॉग को पहले ही दिन से सभी साथियो का भरपूर स्नेह और प्रोत्साहन मिला.. और इसका पहला सीजन बहुत लोकप्रिय हुआ.. इसमे आप लोग मिले...

पल्लवी जी, अनुराग जी, पारुल जी, समीर जी, रंजना जी,अरुण जी,लावण्या जी, नीरज जी, अनोनिमस जी,शिव कुमार मिश्रा जी,




और आप सभी को जानकार खुशी होगी.. की नये साल में कॉफी विद कुश का सीजन 2 शुरू होनेजा रहा है... और वो भी एक नए फ्लेवर और कई सरप्राइजस के साथ..




इस वर्ष ब्लॉगिंग में कई महिलाए जुड़ी.. और महिलाओ के मंच के रूप में चोखेर बाली नामक ब्लॉग भी सामने आया.. चोखेर बाली की एंट्री बड़ी धमाकेदार रही.. आते ही चर्चित समाचार पत्रों जैसे अमर उजाला.. दैनिक भास्कर आदि में अपनी पहचान बना ली..और 29 पोस्ट के बाद तीसवी पोस्ट में श्रीमती बेजी ने एक पोस्ट में चोखेर बाली का एजेंडा स्पष्ट किया..

यह मंच शब्द की ताकत के लिये नहीं है। बात की प्रासंगिकता के लिये है। ऐसी बात जो कि कोई ऐसे सच को बतला सके जिसकी रौशनी में हम स्वयं को, अपने रवैयेको ....अपने समाज को बेहतरी के लिये बदल सके। हर बार बात की प्रासंगिकता तोल कर बोलना कठिन है। कई बार जिज्ञासा, आतुरता हमें व्यर्थ बातों पर ध्यान बाँटने पर विवश करती है। पर मंच तो तभी सफल हो सकता है जब बात को बात से काटें या जोड़े...संयत रह कर....तभी सार्थक बहस हो सकती है।


आगे उन्होंने लिखा..

सवाल कई हैं जिनपर ध्यान जाना चाहिये.....

• स्त्री के जन्म से पहले उसकी हत्या
-क्यों,इसके लिये क्या कर सकते हैं, क्या बदल सकते हैं
• बेटी और बेटे के बीच में पक्षेपात
क्यों,कैसे बदलें
• स्त्री के रूढ़िबद्ध व्यक्तित्व की छवि
क्यों विकसित हुई,कैसे बाहर निकालें इस छवि से
• समाज में क्या बदलाव लायें की एक माँ बच्चे के शिशुकाल में भी समाज को अर्थपूर्ण योगदान दे सकें
• प्रतिभाशाली लड़कियों के रास्तों में से बाधायें घटाने में समाज में क्या बदलें
• सरकार की कौन सी नीतियों पर पुनर्विचार करें कि माता पिता को लड़की से भी वही सुरक्षा का अहसास हो।
• पश्चिम सभ्यता को देख समझ परख कर किस तरह ध्यान रखें की जिन परेशानियों ने उन्हे आ घेरा है....हमें नहीं घेरे।


चोखेर बाली के सदस्य अथवा पाठकगण भी इस बात का आंकलन कर सकते है की इस वर्ष उन्होने अपने एजेंडे के अनुरूप कार्य किया अथवा नही..


चोखेर बाली के उदय के दो ही महीने बाद एक और मंच मिला.. नारी, और शुरुआती पोस्टो में उन नारियो के बारे में लिखा था जिन्होने घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित की.. बाद में इस पर और भी कई विचारणीय विषयो पर लेख लिखे गये..

चोखेर बाली
और नारी दोनो ही ब्लॉग काफ़ी बार विवादो में रहे.. लोगो ने काफ़ी उंगलिया भी उठाई पर दोनों ही ब्लॉग निर्बाध रूप से आगे बढ़ते रहे..

नारी ब्लॉग समर्पित तो केवल नारी विषयो के लिए ही है परंतु इन विषयो से इतर भी अपने सार्वजनिक कर्तव्य से संबंधित पोस्ट भी इस ब्लॉग पर लिखी गयी..


अब चलते है साल के मध्य में...


साल के मध्य में कुछ चर्चित ब्लॉगर आए जिनमे से विवेक सिंह,राधिका बुधकर जी और जितेंद्र भगत बहुत सराहे गये

साल के मध्य में कई परिवर्तन हुए.. ब्लॉगवानी पर पाठको की सुविधा को ध्यान में रखते हुए.. ब्लॉगवानी को नया और उन्नत रूप दिया गया.. जिसे लोगो ने खुले दिल से स्वीकार किया...

इसी साल के मध्य में ई-स्वामी ने अपनी साईट 'हिंदिनी' को भी उन्नत किया.. हालाँकि इस चक्कर में फ़ुरसतिया जी की पोस्ट सारे संकलकों से गायब हो गयी..

यही वो समय था जब 'कविता कोष' ने दस हज़ार पन्नो का आँकड़ा पार किया..

अब साल की कुछ और बाते


इसी साल हमारी मुलाक़ात हुई अनुराधा से

अनुराधा कैंसर विजेता के नाम से जानी जाती हैं। वे कैंसर से लड़ीं और जीती भी। अपने अनुभवों पर किताब भी लिखी। शीर्षक है- "इंद्रधनुष के पीछे-पीछे"। किताब में कैंसर से जूझने के किस्से हैं, उस समय की मन:स्थिति का वर्णन है और उससे बचने के तरीके बताने का प्रयास है।


मेरे लिए साल का मध्य समय इस लिए भी अच्छा रहा क्योंकि इसी समय मैने अपनी पहली चर्चा की थी.. जिसे आप सभी ने अपना स्नेह दिया...



संजय जी ने बताया किस प्रकार हिन्दी दिवस मनाया जाना चाहिए

हिंदी दिवस मनाने के कुछ सरल सुझाव
  • अपने मोबाइल की भाषा सेटिंग हिन्दी कर लें, भाषा आपकी मुठी में होगी. मन को भी अच्छालगेगा.
  • टीवी संचालन की भाषा हिन्दी कर लें, घर का वातावरण कुछ हिन्दीमय लगेगा.
  • डीस-टीवी है तो उसकी भाषा भी हिन्दी कर लें, टाटा स्काय यह सेवा देता है. बच्चे भी कार्टूनचैनल खोजते खोजते हिन्दी पढ़ना सीख जाएंगे.
  • एक दिन के लिए सबसे हिन्दी में ही बतीयाएं, चाहे चपरासी हो या प्रबन्धक, घबराएं नहीं राजठाकरे कौन-सा आपके आस-पास है.
  • आदत नहीं है, फिर भी कोशिश करें की बैंक के काम हिन्दी में निपटाए जाएं, बैंक वाले भीसमझ जाएंगे आखिर उनके यहाँ भी हिन्दी सप्ताह चल रहा होगा.
  • भेजी जाने वाली डाक पर हिन्दी में पता लिखें, अगर हीनभावना पनप रही है तो लिफाफे परहैप्पी हिन्दी डे लिख दें, गर्व महसूस होने लगेगा.
  • अगर आप बॉस है तो कर्मचारियों को हिन्दी में ही लताड़ें, यह मुश्किल जरूर है मगर असम्भवनहीं.





इसी साल ख़बर आई की ब्लोगिंग ने एक चोर पकड़वाया



ताऊ का आगमन भी इसी साल हुआ.. और आते है वे हर उम्र के ब्लॉगर के चहेते बन गये.. ताऊ कौन है कहा रहते है उनका नाम क्या है जैसे सवालो को नज़र अंदाज करते हुए लोगो ने उन्हे खुले दिल से लिया..

साल के अंत में ताऊ सबको एक पहेली दे गये.. की ताऊ कौन है?

इस साल ब्लॉग जगत में एक पहेली और रही की घोस्ट बसटर कौन है? हालाँकि डा. अमर कुमार अपनी पोस्ट में बार बार पांडे जी की तरफ इशारा करते रहे..

और पहेलियो के मामले में राज भाटिया साहब बाजी मार ले गये.. इस साल सबसे अधिक पहेलिया राज भाटिया जी के ब्लॉग पर मिली... और सर्वाधिक चुटकुले महेंद्र मिश्रा जी के ब्लॉग पर रहे..

इसी साल हमारे बीच की ब्लॉगर रंजना भाटिया जी की किताब प्रकाशित हुई.. साया

चिटठा चर्चा पर चर्चाकारो में नये नाम जुड़े... और कुछ पुराने चर्चाकार भी लौट आए..

दिल्ली में इस साल ब्लॉग लिखती महिलाओ का स्नेह मिलन हुआ.. जिसमे कई ब्लॉगर महिलाओ ने शिरकत की..

ये साल तकनीकी रूप से ब्लॉगरो को सक्षम कर गया... आशीष जी, अंकित ई-गुरु राजीव और कुन्नू ने अपने ब्लॉग पर कई तकनीकी जानकारिया दी.. हमारे तरुण जी भी पीछे नही रहे... और उचित रूप से ब्लॉगर साथियो को तकनीकी जानकारिया दी..

समीर जी इस साल भी दोनो हाथो से टिप्पणिया लुटाते रहे.. चिट्ठा चर्चा के साथ साथ अरविंद जी चिट्ठाकारो की भी चर्चा ले आए...

इस साल ब्लॉग पर कार्टून्स का जलवा भी बिखरा.. डूबे जी, कीर्तिश जी, अभिषेक जी, हाडा जी, काजल कुमार जी ने रंग बिरंगे कार्टून्स से ब्लॉग जगत को रंग दिया..

इसी साल छोटू आदित्य ने ब्लॉग जगत् में एंट्री ली.. जिसे ब्लॉगर.कॉम के ओफिशियल ब्लॉग पर सबसे छोटे ब्लॉगर का खिताब मिला.. हालाँकि उनके लिए ब्लॉगिंग उनके पापा करते है..


वो जो नही होना था...


घोस्ट बसटर और रक्षंदा विवाद.. जिसमे रक्षंदा की पहचान को लेकर सवाल किए गये थे..

बाद में किन्ही पारिवारिक कारणो से रक्षंदा ब्लॉगिंग में नियमित नही रही ..हम आशा करते है की नये साल में वे फिर से हमारे बीच हो..

अरविंद मिश्रा जी के ब्लॉग पर नारी सौंदर्य वाली श्रंखला पर हुआ विवाद

डा अमर कुमार जी का ई स्वामी जी के बीच बच्चन साहब के कबीले को लेकर हुआ विवाद... और शिव कुमार मिश्रा जी के साथ हुआ विवाद जिसमे कुछ राते और दो चार पोस्ट उनके ब्लॉग के नाम की तरह बिना वजह खर्च हो गयी..


अन्तिम बात

चिट्ठा चर्चा पर चंद्र मौलेश्वर जी की टिप्पणी को लेकर कई ब्लॉगरो ने अपने विचार रखे है.. रचना जी की शिकायत है की अन्य "सुधि ब्लॉगरगण इस विषय पर बात नही कर रहे है.."

उनका कहना सही है या ग़लत? ये प्रश्न हम उन लोगो पर छोड़ देते है.. जो इस विषय को जानते हुए टिप्पणी करने से बच रहे है..

मैं चंद्रमौलेश्वर जी को एक ज़िम्मेदार ब्लॉगर के रूप में देखता हू.. मैने अब तक उनकी जितनी टिप्पणिया देखी है वे भाषा की दृष्टि में बेहद संतुलित और उर्जात्मक होती थी.. उपरोक्त टिप्पणी के लिए भी उनके अपने दृष्टिकोण हो सकते है.. हो सकता है की उन्होने किसी और बात को ध्यान में रखते हुए ये कमेंट किया हो.. परंतु कही ना कही बात कहने में थोड़ी सी चूक हुई है..

यदि इसके लिए क्षमा माँग ली जाए तो मुझे नही लगता की किसी को कोई हानि होगी.. बल्कि उनका चरित्र और उभरकर सामने आएगा.. ये कोई राय अथवा मेरा फ़ैसला नही है.. मैने वही लिखा है जो मेरी नज़र में ठीक है.. वे ऐसा करे या नही इसके लिए वे बाध्य नही है.. वे चाहे तो अपना स्पष्टीकरण भी दे सकते है.. की ऐसा क्यो लिखा गया..

आशा है साल के अंत में इन सभी विवादो को अंत सुखद होगा.. इसी मंगलकामना के साथ.. आज की चर्चा यही समाप्त

नववर्ष आपके लिए मंगलमय हो!

Post Comment

Post Comment

मंगलवार, दिसंबर 30, 2008

ननरी और वणक्कम्

नया साल
वर्तमान वर्ष की अंतिम मंगल-चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है !

नया साल आने को है . हर किसी को आने वाले साल से यही आशाएं हैं कि यह उनके जीवन में नए उजाले लेकर आएगा . पर जिनके जीवन में कभी उजाला नहीं आया उनका क्या ? आज हमारे मास्साब मसिजीवी जी ने अपने लेख में इन्हीं की समस्या पर विचार किया है . लेकर आए हैं "ज्‍योतिहीन राह के स्‍पर्शक" . कहते हैं :
"मैं अक्‍सर सोचता हूँ कि किसी नेत्रहीन के लिए शहर कैसा होता है ? वह शहर को छू सकता है, सूंघ सकता है स्‍वाद ले सकता है सुन सकता है लेकिन देख नहीं सकता। जबकि हम देख सकने वालों ने शहर को बनाया बसाया ही इस तरह है कि ये केवल देखने के ही लिए है। अपने खुद के अनुभवों पर विचार करें 98 प्रतिशत अनुभव व स्‍मृति केवल दृश्‍यात्‍मक होती हैं। "


इसी लेखपर वर्षा जी की एक झकझोर देने वाली टिप्पणी है :
"मुझे तो पता नहीं था ये पट्टियां स्पर्श के लिए बनाई जाती हैं। एक विदेशी, न देख सकनेवाली लड़की का लेख पढ़ा था कुछ दिन पहले, कहती है अगर मुझे सिर्फ तीन दिन के लिए देखने की शक्ति मिल जाए तो मैं क्या-क्या देखना पसंद करुंगी...सड़कें, लाइब्रेरी और भी बहुत कुछ था उसमें। आगे कहती है मान कर चलो कि हर दिन को आखिरी दिन मान कर चलो कि तुम देख सकते हो, जी भरकर देखो, आखिरी दिन मान कर चलो कि तुम सुन सकते हो..सब सुनने की कोशिश करो.....इसे पढ़कर वो याद आ गई . "



प्राइमरी वाले मास्साब चाहते हैं कि कक्षा में लोकतंत्र होना आवश्यक है . इसके लिए लगे हाथ कुछ सुझाव भी दे डाले हैं :


समय सारिणी बनाते समय बच्चों की भी भागीदारी हो।

कक्षा में प्रतिदिन अलग-अलग बच्चों को जिम्मेदारी बाटनी चाहिए कि वे श्यामपट्ट साफ करके उस पर दिनांकएवं विषय लिखें।

प्रतिदिन विषय-चयन एवं पाठ-चयन में भी बच्चों की इच्छा का ध्यान रखना चाहिए।

विद्यालय प्रांगण में सफाई की दृष्टि से, कक्षा में छोटे-छोटे समूह बनाएं जो मध्यावकाश में कक्षा एवं प्रांगण कीसफाई करें। कचरे व कागज को इकट्ठा करके फेकें। यह समूह बालक और बालिकाओं के मिले-जुले होने चाहिए।

सप्ताहवार या मासिक मॉनीटर बनाना एवं बदलना चाहिए। जिससे प्रत्येक बच्चे को मौका मिले। बालक औरबालिकाओं कोबारी-बारी मॉनीटर बनाएं।
यदि हो सके तो विद्यालय में लोकतान्त्रिक व्यवस्था का सञ्चालन भी किया जा सकता है । इससे बच्चे जिम्मेदार और जागरूक बनते हैं।


सुझाव देने की बात चली है तो बता दें कि ज्ञानदत्त जी ने कहा है : हैप्योनैर निवेशक बनें आप !

इस पर नीरज की टिप्पणी गौर करने लायक है :

"पांडे जी नमस्कार,अभी तक मैं भी शेयर मार्केट के प्रति असमंजस में ही था. क्योंकि किसी ने एक बार बताया था कि शेयर मार्केट में अपनी अक्ल से ही निवेश करना चाहिए. अब जब अगले में अभी तक अक्ल ही नहीं है तो वो निवेश कैसे करेगा. अब देखता हूँ ये पुस्तक कुछ हेल्प कर दे. धन्यवाद."

दर

असल ज्ञान जी ने एक किताब के बारे में बताया है जिसको पढते ही आप शायद वारेन बफेट के बराबर खडे नजर आएं .

आप वारेन बफेट के बराबर होने की इच्छा करें तो ठीक . पर क्या वारेन बफेट भी आपके बराबर होना चाहेंगे . चौंकिए मत .ऐसा हो सकता है. जैसे तथाकथित हिट हो रहे गाली प्रकरण में ऐसा सुना गया है कि देवियों को अब गाली देने में भी देवताओं की बराबरी चाहिए .

एक बाबा थे . उनकी आदत थी कि वे पैसे को हाथ नहीं लगाते थे . हाँ उनका चेला यह काम सँभालता था .हम तो फुरसतिया के ग्यारह सूत्री ऐजेण्डे से बँधे हैं तो हम भी इस गाली प्रकरण से समीर जी की तरह साधु साधु करके निकल लिए . पर आपके लिए इससे सम्बन्धित लेखों को सूचीबद्ध कर दिया है . आखिर सूचना का अधिकार है , आपने दावा कर दिया तो हमको फुरसतिया भी न बचा पाएंगे :



वैसे हमारे मित्र कुश इन झंझटों से दूर बता रहे हैं कि लडकियों को क्या सीखना चाहिए . लडकियों को आत्मरक्षा कैसे करनी है देखिए :

"उनमे से एक उठा.. उसने चाकू निकाला.. और लड़की के सामने खड़ा हो गया.. लड़की ने अपनी आँखे बंद की और ज़ोर से चिल्लाते हुए छलाँग लगाई.. लड़के की बाइक पर एक पाँव लगाते हुए दूसरे पाँव से लड़के के मुँह पर वार किया.. लड़का तैयार नही था.. उसके हाथ से चाकू छूट कर गिर गया.. लड़की ने चाकू हाथ में लिया और लड़के के सीने पर पाँव रखकर खड़ी हो गयी.."

आप सोच रहे होंगे कि यह भी क्या गाली-गलौज , लडाई झगडे की बात किए जा रहा है . अभी तक युद्ध की कोई बात नहीं की . तो गौतम राजरिशी को पढिए . तलवार निकाले बैठे हैं . उनके ब्लॉग पर कॉपी करने की सुविधा होती तो हम आपको यहीं दिखा देते पर मजबूर हैं .

झा जी को वर्तमान तनाव के माहौल में भी कुछ सकारात्मक दिखा है . कहते हैं :

"आज विश्व सभ्यता जिस जगह पर पहुँच चुकी है उसमें तो अब निर्णय का वक्त आ ही चुका है कि आप निर्माण चाहते हैं या विनाश, और ये भी तय है कि जिसका पलडा भारी होगा, आगे वही शक्ति विश्व संचालक शक्ति होगी। इन सारे घटनाक्रमों में एक बात तो बहुत ही अच्छी और सकारात्मक है कि आतंक और विध्वंस के पक्षधर चाहे ही कोशिशें कर लें मगर एक आम आदमी को अपने पक्ष में अपनी सोच के साथ वे निश्चित ही नहीं मिला पायेंगे। और यही इंसानियत की जीत होगी। अगले युग के लिए शुभकामनायें...... "

एक युद्ध अंधविश्वास से भी चल रहा है . इसकी योद्धा हैं लवली कुमारी . देखिए कुछ अंधविश्वास साँपों के बारे में :

१-नाग या नागिनी के आँख में इस जोड़े में से किसी एक को मारने पर मारने वाले की तस्वीर बन जाती है !

२-साँप रूप बदल सकते हैं

३-साँप हर हाल में बदला लेते हैं ।

४-पुराने सापों को दाढी मूछे निकल आती हैं

५-सापों के सिर में मणि होती है -सर्प मणि !



देखा साँपों से मत डरिए . डरना है तो अनाम टिप्पणी करने से डरो वरना द्विवेदी जी पकडवा देंगे . कहते हैं :

"यदि आप ने कोई ऐसी टिप्पणी कर दी है जो किसी के लिए अपमान कारक है और किसी व्यक्ति की ख्याति को हानि पहुँचाता है तो वह भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के अंतर्गत; यदि कोई ऐसे कथन को प्रकाशित करता है तो वह धारा 501 के अंतर्गत और ऐसे मुद्रित या उत्कीर्ण कथन को बेचता है तो वह धारा 502 के अंतर्गत दो वर्ष तक की कैद से दंडनीय अपराध करता है। इस के साथ ही साथ दुष्कृत्य विधि (Law of Torts) के अंतर्गत उस के लिए मुआवजा भी मांगा जा सकता है।"


वैसे कभी कभी बिना गलती के भी मुआवजा देना पडता है . मसलन :

"आप किसी दिन अपनी छोटी चचेरी बहन के साथ बस में बैठे कहीं जा रहे हो। और आपके आगे वाली सीट पर एक सुन्दर मार्डन लड़की बेठी हो एक बड़ा सा जूड़ा बनाए हुए। और वह पलट पलट के बार बार आपको देखे। और आपकी समझ में ना आए कि बात क्या हैं? फिर अचानक वह लड़की उठे और इंगलिश में उल्टा सीधा कहने लगे। और बस में बैठी सारी सवारी की आँखे आपको देखने लगे।
तो..................................................................................................................................................।
काफी कुछ सुनने के बाद पता चले कि आपकी छोटी बहन उसके जूड़े को बार बार छेड़ रही थी और वो लड़की समझ रही थी कि आप उसके जूड़े को छेड़ रहे थे। "


विचलित हुए ? पर छौक्कर जी के साथ ऐसी ऐसी कई बातें हुईं हैं .

ज्ञान जी ने कहा है कि आजकल की पीढी जल्दी ऊब जाती है . आप हिंसा से ऊब गए हों तो अहिंसा की बात करें . हाँ ठीक समझे अहिंसा मतलब गांधी जी . अभिषेक कहते हैं :

"अब जैसी की परम्परा है आने वाले वर्ष पर ख़ुद से नए वादे करने की तो अपने कुछ शुभचिंतकों के आग्रह को स्वीकार करते हुए आप सभी ब्लौगर्स से भी वादा करता हूँ एक नया ब्लॉग 'गांधीजी' पर शुरू करने का। आशा है नव वर्ष में भी सभी ब्लौगर्स का सहयोग व प्रोत्साहन मिलता रहेगा।
सभी ब्लौगर्स को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
"

अगर आपकी ज्ञान पिपासा शांत नहीं हुई तो कुछ ज्ञान बाँटू ब्लॉग हाज़िर हैं :




कुछ ज्ञान बाँटू लोग पाठकों में भी होंगे वे बेझिझक अपना ज्ञान यथायोग्य यहाँ उडेल दें :


कोई लाख मना करे पर कवि लोग कविता लिखने से बाज नहीं आएंगे .वैसे कविताएं अच्छी बन पडी हैं पढ लीजिए :



अब छाप देते हैं . आप सुबह पढ लेना . हमें सुबह ड्यूटी जाना है .

चलते-चलते :

नया साल

नया साल हो मंगलमय , सब खुशियाँ लेकर आए .

ईश्वर की हो दयादृष्टि , सब बिगडी बात बनाए ..

नए साल के स्वागत में सब मिलकर कहें वेलकम .

अब हम अगले साल मिलेंगे , ननरी और वणक्कम् ..

Post Comment

Post Comment

सोमवार, दिसंबर 29, 2008

मलिका, गुलाम और मुल्क ...यानी मालामाल

ठंड की एक शाम

जैसा कि आमतौर पर बह्स-प्रधान बातचीत का होता है वैसे ही गाली-गलौज वाली बात का हुआ। लोग बात के केंद्रीय भाव तक नहीं पहुंचे और बकौल सिद्धार्थ गाली-गलौज के बहाने दोगलापन के रूप में सामने आया।

जाड़े के मौसम में तमाम चीजें उलट-पुलट हो रही हैं। ज्ञानजी निवेश की बात कह रहे हैं, सांता थाने में हैं और इस सब से बेखबर ताऊ कविता गढ़ रहे हैं। ताऊ जी कविता में बुढ़िया को बर्फ़ के नीचे दबाकर आभार सीमा गुप्ता जी को दे रहे हैं। मतलब कल को कोई कुछ कहे तो कह देंगे ये सब सीमाजी के इशारे पर हुआ। देखिये भला:
सारा दिन भीड उस
कुदरत निर्मित प्रतिमा को
देखने आती रही
तभी मैने किसी को कहते सुना
कल की बर्फ़ीली रात
बुढिया सर छुपाने की
जगह मांगती फ़िर रही थी !

जाड़े में ठिठुरने से अच्छा है कि अरविन्द पाण्डेय की कविता पढ़ी जाये:
ये कुरबतें ये दूरियां तो दिल की जानिब हैं
दिल है करीब तो करीब , दूर है तो दूर ,

दिल में तेरे जो बात मेरी याद से उठे
तू समझना मैंने करीब होके कुछ कहा


आपको गजल और छंद की जानकारी चाहिये तो प्राण शर्माजी का लेख देखिये और अगर मलिका, गुलाम और मुल्क ...यानी मालामाल होने वाला रास्ता पकड़ना है तो अजित जी के पास जाना होगा जो बताते हैं:
मलिका, गुलाम और मुल्क ...यानी मालामाल
मुल्क, मलिका और मलिक इस सिलसिले की सबसे की सबसे दिलचस्प कड़ी है मुल्क। सेमेटिक मूल का यह शब्द आज दुनियाभर में देश या कन्ट्री के रूप में मशहूर है। माल, मालिक जैसे शब्दों से आगे मुल्क शब्द की अर्थवत्ता में सार्वभौम साम्राज्य का भाव समा गया। मुल्क का मालिक राजा होता है इसीलिए मालिक का एक अन्य राजा भी होता है। मालिक का ही दूसरा रूप मलिक भी है जो प्रायः रसूखदार लोगो की उपाधि भी रही है। रानी के लिए मलिका शब्द भी प्रचलित है। मलिका-सुल्तान, मलिका-आलिया जैसे शब्द इतिहास की किताबों में खूब पढ़े जाते रहे हैं।


लेकिन आपको जीवन सार वर्षा के ब्लाग पर ही मिलेगा
वो गुलिस्तां ही क्या जो
काँटों से बैर रखता हो
वो कमल कैसा जो
कीचड में न खिलता हो
वो दीपक क्या जो
ख़ुद को जलाकर न जले



एक लाईना



  1. सावधान ! अनाम टिप्पणीकार, सावधान! :तुम पर निगाह रखी जा रही है।

  2. विंडोज xp का नया बिहारी संस्करण :ये तो बिहार के लिये अपमानजनक है

  3. रात और दिया :मिर्जा कि खान?

  4. यह ख्याल है या जिक्र भर तेरा :ये बात साफ़ हो जानी चाहिये पहले

  5. ब्लाग जगत में दो वर्ष पूरे होने पर-संपादकीय : लिख ही डाला

  6. नये साल के स्वागत में.... : कितने तो इंतजाम कर डाले

  7. पहेलियाँ बुझना हमे आया नही:कोई बात नहीं, सुलगने दो पहेलियों को

  8. क्‍या इजरायली सरकार आतंकवादी नहीं है? :यह अंदर की बात है जी

  9. ब्लॉग पढने के फायदे :पढ़ने पर फ़िर चर्चा नहीं झेलनी पड़ती

  10. कान्हा ये माखन नहीं है! : ये मेकअप है

  11. हिन्दी ब्लॉग लेखन : साहित्य की सीमाओं से परे सर्जित साहित्य :को कोई साहित्य मानता है जी!


  12. बापी दास का क्रिसमस वर्णन : बचा के रखो, अगले साल बांचना


  13. आपके गुरुजन दुष्ट प्रवृत्ति के होंगे ! :न जी ,हमारे तो गुरुजन सब बहुत अच्छे थे

  14. यदि परमाणु हमला करे पाकिस्तान तो आप कितना हैं तैयार? चर्चा करें!!! : वो हमला करेगा तो हम चर्चा के लिये तैयार हो जायेंगे।

  15. लक पांवडे बिछाये रहता हूँ सुबह शाम : और दोपहर का क्या रूटीन है मिसिर जी, समेट लेते हैं क्या?


  16. आइए, एक जेहाद जेहादियों के खिलाफ भी करें : अरे छोड़िये जी, ऊ सब लोग फ़तवा जारी कर देता है, अल्टीमेटम दे देता है


  17. हे 2009, मेरी 2008 की बुराइयों को भूल जाना, अच्छाइयों को ही आगे बढ़ाना......उर्फ आइए खुद के दिल में झांकें :क्या बात है बांके!!


  18. एक कतरा ख्वाहिश... :गरम चाय लेकर आ..


  19. हेप्योनैर निवेशक बनें आप! :वाह जी! निवेश के लिये हम ही मिले हैं?


  20. गाली के बहाने दोगलापन...। :बोले तो एक ठो पंथ, कई ठो काज


  21. सांता इन थाना :गायेंगे नये साल का गाना


  22. अंधेरे में कोहरा : मतलब करेला वो भी नीमचढ़ा


  23. दिन तो बिखरा उफ़नते हुए दूध सा : गैस बंद करो भाई सब दूध गिर जायेगा


  24. 'काँच की बरनी और दो कप चाय' : अपने दोस्त के साथ हमेशा रखो भाय



और अंत में



अब इत्ता सब लिखने के बाद पोस्ट करने के अलावा और कुछ बचता नहीं है जी। साल का आखिरी हफ़्ता है। मजे में बीते यही कामना है।

कल आपकी मुलाकात होगी विवेक सिंह से। तब तक आप मस्त रहें, व्यस्त रहें। न कुछ हो कुछ लिख ही डालें। चाहे यहां या कहीं और।

ऊपर का चित्र अंतर्मन से और नीचे वाला अजितजी के ब्लाग से साभार।

Post Comment

Post Comment

रविवार, दिसंबर 28, 2008

कट, कॉपी, पेस्ट भी ठस्से की कला है....

माधुरी दीक्षित अपने बेटे के साथ

आज फ़िर इतवार आ लिया। इस साल का अखिरी है। अब जो आयेगा इतवार वो नये साल में होगा। होन दो की फ़र्क पैंदा है जी। अभी जो है उसमे मजा लो। आगे की फ़िर देखी जायेगी।

कल बहुत दिन बाद जब ब्लाग देखे तो संयोग से पहला ब्लाग लूजशंटिग रहा। इसमें दीप्ति ने दिल्ली में जगह-जगह बोली जाने वाली भाषा का ’द’ हटाकर नमूना पेश किया और निष्कर्ष निकाला:
आप कोई भी भाषा बोलते हो, लोग तैयार है उसकी बहन चो.... के लिए
टिप्पणियों में अंशुमाली ने गालियों के प्रति भावनात्मक न होने और उनको इंज्वाय करने की सलाह दी प्रशान्त प्रियदर्शी तो इसीलिये उत्तरभारत नहीं आते क्योंकि यहां गालियां बहुत दी जाती हैं। पता नहीं कैसे तमिलनाडु वाले गाली देने में इत्ते पिछड़े कैसे हो गये।

सुजाता को पहले से ही भनक थी कि कोई पितृसत्ता का पैरोकार दीप्ति की पोस्ट पर एतराज करने वाला है। सुधारक जी ने उनके विश्वास की रक्षा की और इस बात पर बेटियाँ जब इस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल करने लगें तो ? सवाल करके अपनी चिंता जाहिर की। इसके बाद सुजाता ने फ़िर अपनी बात रखी और सवाल उठाया-
आफ्टर ऑल क्या भाषा और व्यवहार की सारी तमीज़ का ठेका स्त्रियों ,बेटियों ने लिया हुआ है?

मेरे मन में काफ़ी दिन से यह उत्सुकता रही है कि गालियों का उद्बभव और विकास कैसे हुआ होगा और अधिकांश गालियां स्त्रियों को लक्ष्य करके ही क्यों गढ़ी गयी हैं। अगर हिंदी थिसारस के अनुसार देखा जाये तो गाली का मतलब होता है कोसना। अब अगर विचार करें तो पायेंगे कि दुनिया में कौन ऐसा मनुष्य होगा जो कभी न कभी कोसने की आदत का शिकार न हुआ हो? इस लिहाज से देखा जाये तो गालियां हमेश से थीं, हैं और रहेंगी। और जहां तक स्त्री पात्रों को केंद्र में रखकर गाली देने के चलन की बात है तो मेरी समझ में ये है:

मेरे विचार में पुरुष प्रधान समाज में मां-बहन आदि स्त्री पात्रों का उल्लेख करके गालियां दी जाती हैं। क्योंकि मां-बहन आदि आदरणीय माने जाते हैं लिहाजा जिसको आप गाली देना चाहते हैं उसकी मां-बहन आदि स्त्री पात्रों का उल्लेख करके आप उसको आशानी से मानसिक कष्ट पहुंचा सकते हैं। स्त्री प्रधान समाज में गालियों का स्वरूप निश्चित तौर पर भिन्न होगा।


उधर स्वप्नदर्शी ने मौका देखकर ब्यूटीमिथ के बहाने एक बेहतरीन पोस्ट चढ़ा दी।

लेकिन गाली-गलौज छोड़िये अब कानून की भाषा की बात करी जाये। दिनेश राय द्विवेदी जी विचार करते हैं कि हिन्दी सर्वोच्च न्यायालय की भाषा क्यों नहीं? उनका मत है कि
हिन्दी को न्यायालयों के कामकाज की भाषा बनाने में और भी अनेक बाधाएँ हैं। सबसे पहली जो बाधा है वह देश के सभी कानूनों के हिन्दी अनुवाद का सुलभ होना है। यह वह पहली सीढ़ी है, जहाँ से हम इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। अभी तक सभी भारतीय कानूनों का हिन्दी अनुवाद उपलब्ध नहीं है। यह उपलब्ध होना चाहिए और कम से कम अन्तर्जाल पर इन का उपलब्ध होना आवश्यक है।
बाकी बाधाऒं से मुलाकात आप द्विवेदीजी के ब्लाग पर कर लें तो अच्छा रहेगा।

यादें बड़ी जालिम चीज होती हैं अब देखिये सुशील को बस स्टैंड वाली लड़की याद आती है तो डा.अनुराग को चौबीस साल की गोरी-चिट्टी याद आती है-
२४ साल उम्र होगी उसकी बस......कितनी सुंदर है गोरी चिट्टी .....कोई कह सकता है एच .आई .वी है उसे...शादी को एक साल हुआ है ओर प्रेग्नेंट भी है...... पति से मिला है....पर बच्चा फ़िर भी चाहती है...अबोर्शन को तैयार नही है ..काउंसिलिंग के लिए आयी थी... अभी कुछ symtom तो नही है ....उसके पति को मालूम था तो शादी क्यों की.....
और शास्त्री जी को कुल मिलाकर एक अध्यापिका मिलीं जिसे दुष्ट कहा जा सकता है। इसी झटके में वरुण जायसवाल उठा देते हैं सवाल- स्त्री और पुरुष में सर्वेश्रेष्ठ रचना कौन सी है?
ताई कोणार्क के सामने
आजकल पहेलियां खूब बुझाई जा रही हैं। ताऊ शनिवार को कोणार्क ले आये और साथ में ताई की फोटो भी। वैसे इस बीच हमने ताऊ की और पोस्टों के जलवे भी देखे। ताऊ ने लोगों को ठग्गू के लड्डू भी खिलवा दिये। ताऊ चर्चा भी हो गयी। मिसिरजी ने चिट्ठाकार चर्चा के अंतर्गत अपने प्यारे ताऊ की खूबियों के बारे में बताया। मेरी समझ में चिट्ठाकार चर्चा जब तुलनात्मक होती है तो ध्यान इधर-उधर होने की हमेशा गुंजाइश रहती है। ताऊ ,ताऊ हैं , समीरलाल समीरलाल हैं। दोनों की आपस में तुलना करना दोनॊं के साथ ज्यादती जैसा करना है। वैसे ताऊ मुझे इसलिये अच्छे और महान लगते हैं कि उनमें कम से कम वे अवगुण नहीं हैं जिनसे मैं और अब तो विवेक सिंह भी छुटकारा पाने की सोचते ही रहते हैं। हमारे ११ सूत्रीय एजेन्डा में से एजेन्डा संख्या तीन से लेकर ग्यारह को ताऊ पहले ही हासिल कर चुके हैं। ये हैं:
3-किसी का दिल दुखाने वाली पोस्ट न लिखना।
4- बड़े-बुजुर्गों (ज्ञानजी, समीरलाल,शास्त्रीजी आदि-इत्यादि) से अतिशय मौज लेने से परहेज करना।
5- नारी ब्लागरों की पोस्टों को खिलन्दड़े अन्दाज से देखने से परहेज करना।
6- नये ब्लागरों का केवल उत्साह बढ़ाना, उनसे मौज लेने से परहेज करना।
7-किसी आरोप का मुंह तोड़ जबाब देने से बचना।
8- अपने आपको ब्लाग जगत का अनुभवी/तीसमारखां ब्लागर बताने वाली पोस्टें लिखने से परहेज करना।
9- अपने लेखन से लोगों को चमत्कृत कर देने की मासूम भावना से मुक्ति का
प्रयास ।
10- तमाम नई-नई चीजें सीखना और उन पर अमल करना।
11- जिम्मेदारी के साथ अपने तमाम कर्तव्य निबाहना।

इसीलिये ज्ञानजी और ज्ञानदर्पण वाले भी ताऊ के गुण गाते हैं।


वैसे ताऊ की जानकारी के लिये बता दें कि हम भी कोणार्क होकर आ चुके हैं तब जब हम स्कूल में पढ़ते थे।

लावण्या जी TLC बोले तो टेन्डर लविंग केयर के बारे में जानकारी देती हैं और मनमोहनी फ़ोटॊ भी देती हैं।

अनुपम अग्रवालजी को न जाने किसने कुछ दे दिया उसे वे धोखे के रूप में देखते हैं:
धोखा देते हैं वो इरादों को ,
झूठी क़समें वो अगर -खाते हैं ...
रोशन करते हैं वो चिरागों को ,
रातों को जब भी नज़र -आते हैं


राज भाटिया जी अपने बेटे अंकुश भाटिया के जन्मदिन की सूचना देते हैं और बताते हैं:
यह २८ दिसम्बर १९९१ को जर्मनी मे पेदा हुये है, अभी यहां ११ वी कलास मै पढते है, बहुत नट खट है दो दिन पहले ही इन्होने अपना कार का लाईसेन्स बनबाया है,लाईसेंस के पेसे इन्होने हर शुक्रवार दो घन्टे अखबार बेच कर कमाये,ओर करीब एक साल तक अखबार बेची, अब इन्हे पेसो की जरुरत नही क्योकि अब पढाई बहुत करनी पडती है इस लिये इस महीने से अखवार से छुट्टी, इन के सपने बहुत सुंदर है, ओर यह हिन्दी, पंजाबी, अग्रेजी, इटालियन , लेटिन ओर जर्मन खुब बोलते है, हिन्दी थोडी बहुत पढ भी लेते है,
हमारी तरफ़ से अंकुश को जन्मदिन की मुबारकबाद!

पीयूष मेहता के माध्यम से आप भी गोपाल शर्माजी को उनके जन्मदिन की बधाई दे दीजिये।

एक लाइना



  • धोखा देते हैं वो इरादों को : बे फ़ालतू में पूरा कर देते हैं सब वायदों को


  • चित्र पहेली : बुझो तो जानें: न बूझ पाओ तो और भी जानें


  • आज 28 दिसम्बर है जी :हां पता है जी, कल 29 दिसम्बर होगा जी!


  • पहेलियाँ बुझना हमे आया नही:अच्छा है वर्ना परेशानी हो जाती। आजकल जिसे देखो बुझवा रहा है!


  • ब्यूटी-मिथ के बहाने :एक बेहतरीन पोस्ट

  • और अंत में


    एक सचमुच का गिरहत्‍थ..

    इस बीच दो दिन बाहर रहे। जबलपुर में समीरलाल के बेटे के विवाह समारोह में शामिल होने गये। मजेदार अनुभव रहे। वहां समीरलाल के अलावा स्थानीय साथी चिट्ठाकारों बबालजी, महेन्द्र मिश्र, तिवारी जी और जबलपुरिया चौपाल से मुलाकात हुयी। बबालजी से लम्बी बातें हुयीं। बाहर से आने मे मेरे अलावा रचना बजाजजी अपने परिवार के साथ आयीं थीं।


    तमाम लोग आते-आते रहे गये। किसी की ट्रेन छूट गयी तो किसी का प्लेन। मैं २५ को पहुंचा था। २४ की रात को ब्लागरों ने ,सुना है , खूब जलवे दिखाये और अपनी रचनायें सुनाई। समीरलाल का गाने का मन नहीं हुआ। उनका कहना था अगर फ़ुरसतिया होते हूटिंग के लिये तो सुनाते भी। अब यहां वाहवाही माहौल में क्या गला बजायें।

    शादी शानदार निपटी। हम यह कहते हुये वापस आये- जैसे उनके दिन बहुरे वैसे सबके बहुरें।
    बहकी मन की उड़ान


    जबलपुर में ही शिवकुमारमिश्र जी की विस्तृत चर्चा देखी, मसिजीवी की चर्चा कल कानपुर आकर देखी। मसिजीवी घणे तकनीकी हो लिये हैं। अबकी बार टेबल भी बना डाली। कल आलोक का दिन था। शाम तक आर्यपुत्र की चर्चा न दिखी तो हमने उनको फ़ोनियाया। पता चला कि हिमाचल प्रदेश में हिलस्टेशनिया रहे थे। लेकिन फ़िर चर्चारत ऐसे हुये कि तकनीकी चर्चा कर डाली।

    प्रमोदजी का बहुत दिन से कोई पाडकास्ट नहीं आया। आजकल उनका मन स्केचिंग में रम रहा सा लगता है। सचमुच का गृह्स्थ और दूसरे की मन की उड़ान देखने के लिये उनकी पोस्ट देखिये न!

    फ़िलहाल इत्ता ही। एकलाइना शायद फ़िर ठेले जायें। अभी तो सुबह सरक रही है हाथ से और संकलक नखरा करे जा रहे हैं।

    आपका इतवार चकाचक बीते इस कामना के साथ हम गो, वेन्ट गान होते हैं। आप मौज करें।
    सूचनार्थ टंकित ये पोस्ट सुबह साढ़े दस बजे लिखी गयी। नेट के नखरे के कारण अभी एकबजकर दस मिनट पर पोस्ट हो पायी है।

    ऊपर वाली फोटो लावण्याजी के ब्लाग से है। इसमें माधुरी दीक्षित अपने बेटे के साथ हैं। नीचे की फोटॊ काजल कुमार के ब्लाग से है। जिसका शीर्षक है- कार्टून: कट, कॉपी, पेस्ट भी ठस्से की कला है.... । माधुरी और काजल के बीच प्रमोदजी के स्केच हैं।
    कट, कॉपी, पेस्ट भी ठस्से की कला है

    Post Comment

    Post Comment

    शनिवार, दिसंबर 27, 2008

    आज की 111 लेखों की तकनीकी चर्चा


    शाम के १९:४८ बज गए। फ़ुरसतिया जी सोच रहे थे कि पिछली बार तो इस आर्य पुत्र से लिखवा के खुद को धर्म संकट में डलवा दिया था, आज तो इसने अब तक कुछ लिखा ही नहीं। क्या करूँ, लिखने को कहूँ कि न कहूँ? यही सब सोचते हुए अपना चबेना चबा रहे थे।




    और इधर यह उधेड़बुन थी कि आखिर आज क्या पकाया जाए, हर बार तो खिचड़ी दे के टरकाया नहीं जा सकता है।
    तो सोचा क्यों न तकनीकी चर्चा कर डालें? इसी बहाने दशमलव, और द्विलव की भिड़ंत भी हो जाएगी।



    1 सवा सौ रुपए की किताब छापी है रश्मि बंसल ने।


    10 फ़ोन पर एक नए गपोड़ी को बिठाया जा रहा है, कैसा है गपोड़ी पता चलेगा कुछ समय में।


    11 चिट्ठे पर छपाई करने का नायाब तरीका भी जान लो।


    100 विंडोज़ ऍक्स पी मई २००९ तक उपलब्ध रहेगा। भई अपने लिए तो दस रुपल्ली में और भी लंबे समय तक रहेगा।


    101 फ़ायर्फ़ाक्स में चीज़ें चिपकाने के लिए चाहिएँ तो यहाँ से उठा लें। कूलिरिस, क्लीकी, श्लीकी, फ़्लीकी आदि इत्यादि।


    110 माइक्रोसॉफ़्ट विद वन खोज में कुछ खेला चल रहा है


    111 फ़ेस्बुक, ऑर्कुट हिंदीमय हो गए। खुश हों या दुःखी, कि अपने माल हम खुद न बना पाए?




    इस प्रकार 111 चिट्ठों की चर्चा संपन्न हुई।




    इस दोयम दर्ज़े की चर्चा पढ़ कर फ़ुरसतिया जी ने सोचा, कि यह आर्यपुत्र है या दोयम पुत्र? पर वह इस बात पर निश्चिंत हो गए थे कि आर्य कहीं बाहर से नहीं आए थे, बल्कि भारत की ही उपज थे। ऐसे लोग बाहर के हो ही नहीं सकते।




    10 आवश्यक संदर्भ
    1 विभिन्न अंक प्रणाली

    10 फ़ुरसतिया का आह्वान

    Post Comment

    Post Comment

    शुक्रवार, दिसंबर 26, 2008

    इस चर्चा को खुद पढें दस लोगों को पढ़ने के लिए भी कहें...नहीं तो...

    ये कोई शोध परिणाम नहीं सीधा साधा अवलोकन है कि कल, बोले तो सांता ताऊ के क्रिसमस वाले दिन चिट्ठे लिखे तो गए लेकिन पढ़े नहीं गए, मतलब कम पढ़े गए। ब्‍लॉगवाणी के ज्‍यादा पढ़े गए कॉलम को देखें तो  विष्‍णु बैरागी की पोस्‍ट निर्लज्‍ज भी और सीनाजोर भी (सीनाजोर तो निर्लज्‍ज ही होगा न, माया को देखो)  सबसे ऊपर है पर कुल मिलाकर केवल 38 बार पढ़ी गई है।

    ScreenHunter_01 Dec. 26 09.51

     

      ऐसे में टिप्‍पणियॉं भी मात्रा व गुणात्‍मकता दोनों में कम हो जाती हैं। वैसे अब तो टिप्‍पणीकार भी  पाकिस्‍तान की तरह ऑंखें तरेरने लगे हैं।  देखिए न वेदरत्‍न शुक्‍ल पूछते हैं कि इतनी लंबी टिप्‍पणी मुफ्त में की जाए कि नहीं ?   दमदार ब्‍लॉगर दीप्ति चेन एसएमएस की प्रवृत्ति पर बमकती हुई धमकाती हैं कि इस पोस्‍ट को खुद भी पढें और दस लोगों को पढ़ने के लिए भी कहें... नही तो... इस तरह वे बताती हैं कि कैसे लोगों की भय वृत्ति पर  पलती इन चेनों से अंधविश्‍वास बढ़ता है। हमें तो बहुत काम की चीज मिली हेडि़ग सो अपना ली। अब अगर किसी साई वाईं को कुछ बुरा करना होगा तो हमें बख्‍श देगा आखिर हमने उनकी धमकी में कुछ तो ले ही लिया :) । ब्‍लॉग लिखती स्‍ित्रयों की चर्चा एक अखबार में हुई जिसकी सूचना नारी ब्‍लॉग पर आई है।  एक सूची भी है - पूर्णिमा , घुघूती , अनीता , सुजाता , नीलिमा , पारुल , बेजी , प्रत्यक्षा , अनुजा , अनुराधा , मीना , सुनीता , वर्षा , पल्लवी , मनविंदर , लावण्या , ममता , शायदा , फिरदोस , अनुजा , रेखा , मीनाक्षी ...

    एक टिप्‍पणी कहती है-

    मनीषा जी ,
    गुट में शामिल हुए बगैर नाम जोडने का ख्वाब पाले बैठी हैं । गुटबंदी करें या जी हुज़ूरी , फ़िर देखिए ...। वैसे सभी महिला ब्लागरों को चर्चित होने की शुभकामनाएं

     

    हमें इस आरोप ने खुशी दी, इसलिए नहीं कि इसमें कोई सच्‍चाई है वरन ये खुशी है 'गुटबाजी' की फील्‍ड में पुरुषों ने जो एकाधिकार जमाया हुआ था उसके धराशाही होने की खुशी।  

     

    दूसरी ओर छापे में ब्‍लॉग चर्चा की एक और सूचना पर ही सवाल उठाते हुए प्रशान्‍त टिप्‍पणी करते हैं-

    ओह, लगता है फिर से हिंदी ब्लौगिंग का वह दौर लौट रहा है जब कुछ चंद लोगों का ब्लौग चर्चा किसी अखबार में होगा और उस पर सभी ब्लौगिये इतराते फिरेंगे.. कुछ महिने पहले ही यह दौर आकर गया था, फिर से.. मगर कभी क्या किसी ने सोचा है कि जिस अखबार में जिस किसी ब्लौग के बारे में लिखा जाता है वो उस पत्रकार कि पसंद भर ही होता है..

    बात कही  तो हमें गई है इसलिए ब्‍लॉग न्‍याय कहता है कि हमें नाराज होना चाहिए पर हमें बात में दम लगता है।

    आज का चित्र हिन्‍द-युग्‍म से देखें लिखें चेपें

    ScreenHunter_02 Dec. 26 10.30

    ये तो हुई चर्चा अब पेश है आमने-सामने

    आमने

    सामने

    फुरसतिया का ऐजेण्डा : गुंडे चढ़ गए हाथी पर
    मायावती, मुलायम को हर मामले में पीछे छोड़ देना चाहती हैं, नंगई में भी ठग लिया यूपी को
    सुनिए हरिवंश राय बच्चन की बाल कविता 'रेल' सुनना है तो इसे सुनें..फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की गलियों के आवारा कुत्ते
    कार्टून : जन्मदिन के अवसर पर ..मायावती के निर्लज्ज भी, सीनाजोर भी
    आज एक साथी को मंदी ने लील लिया कौन करेगा माया जी उसकी भरपाई?
    फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है द लास्ट टैम्प्टेशन ऑफ़ क्राइस्ट
    बड़ा दिन' पर बाँसुरी लंबी खामोशी है, तोडोगे तुम
    संता क्लाज़ की हकीकत या तो रौनक बाज़ारों में या सत्ता के गलियारों में
    जरदारी के नाम बेनजीर का एक खत The Trap Remains, Sir !
    ताऊ के सैम और बीनू फ़िरंगी उस्तादों के उस्ताद
    बहिन और जीजा जी को उन के भाई ने घर से निकाल दिया, क्या करें? अभियुक्त के लिए वकील क्यों जरूरी है?
    ये हैं निर्मला देवी आंतरिक और बाहरी हमलावरों से हम कितने सुरक्षित?
    शहीदों के खून पर अंतुले की सियासत पाकिस्तान ने फ़िर तरेरी आखें
    मदद के लिए गुहार ... मदद करें, लेकिन जरा सोच समझ कर बिना किसी असावधानी और लापरवाही के
    तो फिर ताऊ को छुट्टी कैसे मिली बुझो तो जाने ??
    सुनो...सुनो...सुनो... इरफ़ान भाई के चंद गंदे गाने! भारत की एकता का गीत

    Post Comment

    Post Comment

    गुरुवार, दिसंबर 25, 2008

    या तो रौनक बाज़ारों में या सत्ता के गलियारों में

    पाकिस्तान के नेता बता रहे हैं कि पाकिस्तान एक शान्ति-प्रिय देश है. हम उनकी बात से सहमति प्रकट करते हैं. वे सही कह रहे हैं. भारत में फ़ैली शान्ति से उन्हें बहुत लगाव है. शायद इसी लगाव के चलते वे भारत की शान्ति में खलल डालने का शुभकार्य करते रहते हैं.

    मुंबई में आतंकवादी हमला नहीं होता तो हमें तो पता ही नहीं चलता कि पाकिस्तान की सरकार ने अपने देश के हर नागरिक का डाटाबेस तैयार कर रखा है. बताईये, पकिस्तान ने अपने हर नागरिक का डाटाबेस तैयार कर रखा है और एक हमारा देश है जो अपने नागरिकों का डाटाबेस तो छोड़िए बेस तक तैयार नहीं कर पाया. लानत है.

    आज अपनी पोस्ट में दिनेश राय द्विवेदी जी ने पकिस्तान में हर नागरिक के डाटाबेस होने को एक गंभीर बात बताया है. द्विवेदी जी अपनी पोस्ट में लिखते हैं;


    "कसाब का पाकिस्तान के डाटा बेस में नहीं होने का बयान देना अपने आप में बहुत ही
    गंभीर बात है. इस का अर्थ यह है कि पाकिस्तान अपने प्रत्येक नागरिक का विवरण अपने
    डाटाबेस में रखता है."

    लेकिन पकड़े गए आतंकवादी कसाब का नाम डाटाबेस में नहीं मिलने के बारे में द्विवेदी जी सही सवाल उठाते हैं. डाटाबेस में कसाब का नाम नहीं मिलने के क्या कारण हो सकते हैं? इसके बारे में वे लिखते हैं;

    "पुख्ता डाटाबेस में कसाब का विवरण नहीं होना यह इंगित करता है कि विवरण को साजिश की रचना करने के दौरान ही डाटाबेस से हटा दिया गया है या फिर साजिश को अंजाम दिए जाने के उपरांत. यह पाकिस्तान के प्रशासन में आतंकवादियो की पहुँच को प्रदर्शित करता है."

    पकिस्तान से जब आतंकवादियों के ख़िलाफ़ कार्यवाई करने को कहा जाता है तो उसके नेता कहते हैं; " वैसे तो पकिस्तान एक शान्ति-प्रिय देश है लेकिन अगर हमपर युद्ध थोपा गया तो हम अपनी बूँद के आखिरी कतरे तक पकिस्तान की हिफाज़त करेंगे."

    द्विवेदी जी के अनुसार ऐसा नेताओं द्बारा ऐसा कहा जाना कहना शायद पकिस्तान के हित में है. अपनी पोस्ट में द्विवेदी जी लिखते हैं;

    "फौज, आईएसआई और आतंकवादी की मंशा के विपरीत कोई भी निर्णय कर पाना पाकिस्तान की चुनी हुई सरकार के विरुद्ध आत्महत्या करना जैसा है. यदि अंतर्राष्ट्रीय दबाव के आगे पाकिस्तान को आतंकवादियों के विरुद्ध कार्यवाही करनी ही पड़ती है तो पाकिस्तान एक गृहयुद्ध के दरवाजे पर खड़ा हो जाएगा."

    इन परिस्थितियों के चलते ही पकिस्तान भारत से युद्ध करके शान्ति स्थापित करने की कवायद में लीन है. द्विवेदी जी लिखते हैं;


    "भारतीय कूटनीति की सफलता इसी बात पर निर्भर करती है कि किसी भी प्रकार के युद्ध
    में कूद पड़ने के पहले पाकिस्तान अपने गृहयुद्ध में उलझ जाए."

    पकिस्तान तो उलझा ही है. उसे तो अब सुलझने की ज़रूरत है. वैसे मेरा मानना है कि जब सुलझने की कोई राह नहीं दिखाई देती तो इंसान और उलझने की कोशिश करता है. पकिस्तान भी शायद इसी रास्ते पर जा रहा है. आख़िर उलझनें बढ़ा लेने से इंसान के शहीदत्व प्राप्ति के चांसेज बढ़ जाते हैं.

    द्विवेदी जी की पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए विवेक सिंह जी ने द्विवेदी जी से अपनी सहमति जताई. उन्होंने लिखा;

    "सही कहा आपने पाकिस्तान का गृहयुद्ध ही हमारे लिए सबसे अच्छा होगा."

    इस पोस्ट पर ताऊ जी ने भी द्विवेदी जी की सलाह को ठीक बताया. उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा;

    "उप्युक्त सलाह है !"

    वैसे जहाँ द्विवेदी जी भारत और पकिस्तान के बीच युद्ध न छिड़ने को भारत के लिए शुभ मानते हैं वहीँ नीतीश राज जी का मानना है कि;

    कब तक डरपोक बने रहेंगे हम? हर दिन मरने से बेहतर है कि एक बार ही मर जाएँ.

    नीतीश जी का कहना है;


    "भारत एक तरफ़ डर-डर कर ये बात कह रहा है कि भारत के सारे विकल्प खुले हुए हैं.
    भारत के विदेश मंत्री और पीएम ने कहा कि हम तो आतंकवाद को ख़त्म करने की बात कर रहे हैं. पाकिस्तान जितनी जल्दी हो अपनी जमीन से आतंकवाद को पनाह देना बंद करे......पर दूसरी तरफ़ पकिस्तान डंके की चोट पर कार्यवाई करने से मना कर रहा है....."

    "पकिस्तान के आर्मी चीफ परवेज कयानी ने तो यहाँ तक साफ़ कह दिया कि;
    'पाकिस्तान की आर्मी पूरी तरह तैयार है. और यदि भारत कोई भी कदम उठाता है तो भारत के हर कदम का जवाब एक मिनट के अन्दर दिया जायेगा.'

    नीतीश जी ने भारतीय नेताओं के वक्तव्यों के बारे में लिखा;

    "भारत अब तक बहुत संयम का परिचय दे चुका है लेकिन हमारे संयमपन को हमारी कायरता न समझा जाय, हम बार-बार ये बात कह चुके हैं लेकिन हमने कभी भी ये दिखाया नहीं है."

    अपनी पोस्ट में नीतीश जी सरकार को समर्थन देने की बात करते हैं. वे लिखते हैं;


    "हमारा साथ हमारी सरकार के साथ है, हम एक जुबान में कहते हैं कि अब कहने का नहीं
    करने का वक्त आ गया है."

    नीतीश जी की इस करने का आह्वान करने वाली पोस्ट पर भी ताऊ जी ने टिप्पणी की. उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा;

    "आप बिल्कुल सही कह रहे हैं! अनर्गल प्रलाप नहीं बल्कि कार्यान्वित करो!"

    ताऊ जी ने नीतीश जी को क्रिशमस की बधाई भी दी. उन्होंने लिखा;

    "क्रिशमस की घणी राम राम!"

    द्विवेदी जी की पोस्ट जो पकिस्तान के साथ भारत के युद्ध में न फंसने की सलाह देते हुए है और नीतीश जी की पोस्ट जो युद्ध करने की सलाह देते हुए है, ताऊ जी ने दोनों से अपनी सहमति जताई.

    ताऊ जी की टिप्पणी पढ़कर शिव कुमार मिश्र सोचते रहे कि क्या ताऊ जी पहले अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अफसरों को पहले डिप्लोमेसी पढ़ाते थे?

    हो सकता है. वैसे भी ताऊ जी कौन हैं, इस बात पर अनुमान लगाने का कार्यक्रम अभी तक थमा नहीं है.

    ताऊ जी ने नीतीश जी को क्रिसमस की बधाई जिन शब्दों में दी, उससे इस बात का भरोसा मिला कि भारत से सर्वधर्म समभाव कभी ख़त्म नहीं होगा.

    आख़िर 'क्रिसमस की घणी राम राम' जैसे बधाई संदेश आपको भारत देश छोड़कर और कहाँ मिलेगा?

    ताऊ की बात चली तो आपको बता दूँ कि अरविन्द मिश्रा जी ने अपने अथ श्री चिट्ठाकार कथा में ताऊ जी के बारे में लिखा.

    अरविन्द जी की पोस्ट से जानकारी मिली कि किस चिट्ठाकार के बारे में कथा सुनानी है, इसका फ़ैसला वे 'ख़ास दोस्तों' से सलाह मशविरा करने के बाद ही करते हैं. इस सलाह-मशविरा का रिजल्ट ये हुआ कि ताऊ जी को इनिशीयल एडवांटेज मिल गई.

    अपनी पोस्ट के शुरुआत में अरविन्द जी लिखते हैं;


    "मैंने बहुत सोचा विचारा -ख़ास दोस्तों से सलाह मशविरा किया और तय पाया कि क्यों न
    अपने ताऊ को ही इनीशियल एडवांटेज (कांसेप्ट सौजन्य :ज्ञानदत्त जी ) दे दी जाय ."

    मिश्रा जी ने बताया कि ताऊ जी तो चिट्ठाजगत में छा चुके हैं. उन्होंने चिट्ठाकारों को आगाह करते हुए लिखा;


    "ताऊ तो छा चुका चिट्ठजगत में ! और अगर अब भी कोई इस शख्सियत को हलके फुल्के ले रहा है तो उसे सावधान हो जाने की जरूरत है ."

    खुदा गवाह है, हमने कभी ताऊ जी को 'हलके फुल्के' नहीं लिया.

    मिश्रा जी बताते हैं कि ताऊ जी दोस्तों के दोस्त हैं. इस बात को साबित करने के लिए उन्होंने लिखा;

    "अपने साईब्लाग चिट्ठे पर जब मैं नारी सौन्दर्य का अवगाहन कर रहा था और आभासी
    जगत की आभासी जूतियाँ चप्पलें खा रहा था तब वे ताऊ ही थे जो एक लौह ढाल बन आ गए मेरे फेवर में ! ताऊ की मेरी दोस्ती तभी की है और अब तो बहुत प्रगाढ़ हो चुकी है
    -बस दांत काटी रस्म रह गयी है...."

    इसीलिए कहा गया है कि 'अ दोस्त इन नीड इज अ दोस्त इन्डीड.' आशा करता हूँ कि कोई ये न कहेगा कि 'अ दोस्त इन नीद...' माने जो दोस्त हमेशा नीद में रहे और आपकी न सुने..... :-)

    मेरा भी मानना है कि ताऊ जी हैं ही ऐसे, कि वे सबके प्रिय बन गए हैं.

    अपनी लिखी गई बातों को अरविन्द जी भरमाने वाली भी बताते हैं. वे शायद चाहते थे कि ऐसा डिस्क्लेमर देकर वे चिट्ठाकारों को भ्रम से उबारेंगे. लेकिन उनके इस डिस्क्लेमर से हमारा भरमाना तो बढ़ गया. अरविन्द जी ने लिखा;

    "पर मित्रों इन चिकनी चुपडी बातों में मत आना -इनमे बहुत सी बातें आप को भरमाने
    वाली हैं -आप ख़ुद समझें कि ताऊ किस फेनामेनन का नाम है ! क्योंकि अब यह किसी भी चिट्ठाकार के वश की बात नहीं कि वह ताऊ को सिम्पली इग्नोर कर सके .ताऊ आ चुके हैं और छा चुके हैं ! "

    ताऊ जी के बारे में इतना कुछ पढ़ने के बाद भी डॉक्टर अमर कुमार को लगा कि उनके लिए ताऊ अभी भी रहस्य ही हैं. उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा;


    "ज़िन्दादिल ताऊ मेरे लिये एक रहस्य हैं !"

    ताऊ जी के बारे अनुमान लगाने के कार्यक्रम को आगे बढाते हुए विवेक सिंह जी ने अपनी टिप्पणी में लिखा;

    "हो सकता है समीर जी ताऊ हों :)"

    आज मसिजीवी जी ने समय से लड़ती घंटा घर की सुइयों के पक्ष में लिखा है. वे लिखते हैं;


    "किसी बुजुर्ग से बात करें या तीस चालीस साल पुराने किसी शहरी उपन्‍यास को पढ़ें,
    आपको घंटाघर का जिक्र अवश्‍य मिलेगा. घंटाघर लगभग हर शहर का महत्‍वपूर्ण निशान
    (लैंडमार्क) हुआ करता था."

    वे आगे लिखते हैं;


    "घडि़यॉं कम घरों में होती थीं तथा कलाई घड़ी एक महँगी चीज थी. पूरा शहर घंटाघर से
    अपनी घड़ी को मिलाया करता था."

    उनका मानना है कि देसी-विदेशी घड़ियों की क्रांति इतनी अधिक हुई कि कलाई घडियां छा गईं. वे लिखते हैं;


    "फिर देसी विदेशी घड़‍ियों की क्रांति हुई, इतना अधिक कि अब हमारे शहर में तो घड़ी
    किलो के हिसाब से मिलती हैं. ऐसे में कम से कम समय देखने के उपकरण के लिहाज से
    घंटाघर का कोई महत्‍व नहीं ही रह जाएगा."

    उन्होंने बताया कि विदेशों में घंटाघरों को सहेजने पर बल दिया जाता है.

    विदेशों की बात ठीक है. वैसे मेरा मानना है कि अपने भारत में घंटाघर देखकर शहर का बड़ा बिल्डर सोचता होगा कि शहरी विकास मंत्री को पता लिया जाय तो यहाँ एक चार मंजिला इमारत खादी की जा सकती है.

    मसिजीवी जी आगे लिखते हैं;

    "विदेशों में तो इनकी कलात्‍मकता के ही कारण इन्‍हें सहेजने पर बल रहता है. हमारे
    शहर के घंटाघरों की बात करें तो टाउनहाल, फतेहपुरी, हरिनगर, मूलचंद, एसआरसीसी आदि
    कई महत्‍वपूर्ण घंटाघर देखे हैं दिल्‍ली में."

    उनकी इस पोस्ट को पढ़कर युनूस जी को उनके शहर के घंटाघर की याद आ गई. उनकी टिप्पणी से प्रतीत हुआ कि मुम्बई में घंटाघर की कमी उन्हें बहुत खलती है. उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा;

    "हमें अपने शहर का घंटाघर याद आ गया । उफ जबलपुर. हाय मुंबई."

    आज विवेक सिंह जी ने बताया कि उन्हें जब से ब्लागिंग का शौक चढा है वे घर से बाहर फुरसत के समय अपने मोबाइल पर पुराने ब्लाग्स पढ़ते रहते हैं. उनका ये काम शायद ऊब से बचने के सबसे अच्छे तरीकों में से एक है.

    पुराने ब्लाग्स पढ़ते हुए उन्हें फुरसतिया जी का अजेंडा पढ़ने को मिला. अजेंडा पढ़कर विवेक जी की अंतरात्मा ने उन्हें धिक्कारा. इस धिक्कार के बारे में वे लिखते हैं;


    "जब से हमने यह पोस्ट पढी है. तब से हमारी अंतरात्मा हमें धिक्कार रही है कि तुम तो
    इनमें से कितने पाप कर चुके हो , और करने का विचार मन में पाले हो. विशेष रूप से
    सात नम्बर का."

    आप सोच रहे होंगे कि सात नंबर अजेंडा में फुरसतिया जी ने क्या लिखा है. तो बांचिये. उन्होंने लिखा है;

    "किसी आरोप का मुंह तोड़ जबाब देने से बचना."

    इस अजेंडे को पढ़कर विवेक जी माफी-मोड़ में आ गए. उन्होंने इस मोड़ में रहेत हुए लिखा;

    "इस आत्म-ग्लानि को दूर करने का एक ही उपाय नज़र आता है कि हम प्रायश्चित कर
    लें. हम गढे मुर्दों को न उखाडते हुए उन सभी लोगों से सार्वजनिक रूप से माफी चाहते
    हैं जो कभी हमारे व्यवहार से आहत हुए हों..."

    वैसे मेरा मानना है कि विवेक इतने प्यारे इंसान हैं कि उनके व्यवहार से शायद ही कोई आहत महसूस करे.

    उनकी इस पोस्ट पर मुसाफिर जाट ने अपनी टिप्पणी में लिखा;

    "अरे भाई विवेक, क्या यार माफ़ी शाफी मांग रहे हो, जो हो गया सो हो गया. आगे से
    ध्यान रखना."

    अब एक खुशखबरी. आज आदित्य ने बताया कि जिस दिन का उसे बहुत दिनों से इंतजार था वो दिन कल आ गया. मतलब ये कि आदित्य के नीचे वाले जबड़े में कल एक दांत दिखाई दिया.
    आदित्य बता रहा है;


    "बहुत दिनों से जिसका इंतजार था आखिर कल वो दिन आ ही गया..अब आप कहोगे, आदि बात तो बता क्या हो गया और किसका इंतजार था? तो सुनो मेरे भी दांत आने शुरु हो गये हैं... कल ही नीचे के जबडे़ से एक दांत झाकंता हुआ प्रकट हुआ!"

    आदित्य ने ये भी राज खोला कि उसके पापा ने उस व्यक्ति को सौ रूपये इनाम में देने का वादा किया था जो सबसे पहले उसके दांत देखेगा. केवल सौ रूपये के इनाम घोषणा की पोल खोलते हुए उसने बताया;

    "पता है पापा ने इनाम की घोषणा की थी, जो मेरे दांत आने की खबर देगा उसे 100/- रु
    का इनाम मिलेगा.. केव्ल 100/- रु का इनाम? हां क्योंकि पापा को पता था कि वो तो जीत
    नहीं पायेंगें.. खैर वो इनाम तो कल मम्मी को मिल गया.. अब आप कहेगें की मैं दांत का
    करुगां क्या? तो आप ही देख लो.. मैने बिस्किट खाना शुरु भी कर दिया है.. हां खुद ही
    खा लेता हूँ अब तो.. दांतो का ये ही तो फा़यदा है!"

    अपनी टिप्पणियों में सबने आदित्य को दांतप्राप्ति पर बधाई दी. विवेक ने अपनी टिप्पणी में दांतों के फायदे बताते हुए लिखा;

    "दाँत आने की बधाई .भाई दाँत निकलते समय अक्सर बच्चों को दस्त लगते देखा है . बचके रहना . दूसरी बात यह कि दाँत आने का सबसे बडा फायदा तो यह है कि अब तुम किसी को भी काट खा सकते हो . मसलन पापा का ध्यान हटे तुम्हारी तरफ से तो तुरंत काटकर अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा दो :)"

    अब पढिये कुछ कवितायें और गजल.

    जोशी कविराय जी अपनी गजल में कहते हैं;

    या तो रौनक बाज़ारों में ।
    या सत्ता के गलियारों में ।

    चेहरे होते जाते पीले
    पर सुर्खी है अख़बारों में


    प्रकाश बादल जी की नज़्म पढिये. वे लिखते हैं;

    "जैसे सौदाई को बेवजह सुकूं मिलता है
    मैं भटकता था बियाबान में साये की तर
    हअपनी नाकामी-ए-ख्वासहिश पे पशेमां होकर
    फर्ज़ के गांव में जज़्बात का मकां होकर"


    अबयज खान लिखते हैं;

    जब कभी तन्हाई घेर लेती है
    घर याद आता है, आंख भर आती है
    दोस्त बचपन के बहुत याद आते हैं
    तकिये में मुंह छिपाकर फिर ख़ूब रोते हैं


    अभी के लिए बस इतना ही...एक लाईना लिखते हैं....एक बड़े ब्रेक के बाद.

    Post Comment

    Post Comment

    बुधवार, दिसंबर 24, 2008

    बिंदी के तो हिलने का इंतजार और बोरियत

    सुबह-सबेरे जब चर्चा के वास्ते बैठे तो सबसे पहले जो पोस्ट दिखी उसमें कुछ ऊब-चूभ की बातें की गयीं थीं। वर्तमान पीढ़ी और ऊब में ज्ञानी लेखक ने ये बताया ही नहीं कि वर्तमान पीढ़ी में किस उमर तक के लोग शामिल हैं? ज्ञानियों के साथ यही लफ़ड़ा होता है कि वे अपने पत्ते पूरे कभी नहीं खोलते। जो हो गया उसी के लिये कह देंगे कि देखो हमने पहले ही यह कहा- लांग,लांग बैक। अब जब इसमें उमर का कुछ हिसाबै-किताब नहीं तो कैसे समझा जाये कि किसकी ऊब की बात चल रही है?
    ज्ञानदत्त पाण्डेय

    वैसे अगर देश के हिसाब से देखा जाये जहां साठ साल लोग भी युवा नेता कहलाते हैं तो वे लोग भी आज की पीढ़ी में शामिल हो जायेंगे जिनको ’इनीशियल एडवांटेज’ नहीं मिला। अरे हां भाई हम शास्त्रीजी की बात कर रहे हैं जिनको बुद्धि तो खूब मिली लेकिन प्रारम्भिक लाभ नहीं मिला। अब कोई त यह भी कह रहा था कि बुद्धि दे दी भगवान ने तो और क्या ’इनीशियल एडवांटेज’ चाहिये,क्या वो बेचारा अपना घर लुटा दे। उसको सबको देखना है जी।

    बहरहाल ज्ञानजी लिखते हैं-
    वर्तमान पीढ़ी शायद जिस चीज से सबसे ज्यादा भयभीत है वह परमाणु बम, कैंसर या एड्स नहीं, ऊब है। जीवन में शोर, तेजी, सनसनी, मौज-मस्ती, हंगामा, उत्तेजना, हिंसा और थ्रिल चाहिये। आज ऊब कोई सह नहीं सकता।

    पंकज उपाध्याय
    इस बात से निशांक आदरपूर्वक असहमत हैं। और पंकज उपाध्याय तो बाकयदा एक ठो कविता भी लिख चुके हैं पहिले ही। इस कविता से पता चलता है कि आज की पीढ़ी कित्ती धैर्यवान है:
    उसकी बिंदी के तो हिलने का
    मैं इंतज़ार करता था, की कब वो
    हल्का सा हिले और मैं बोलूँ
    की "रुको! बिंदी ठीक करने दो"।


    अब बताओ जिस पीढ़ी के नायक नायिका के बिंदी हिलने का इंतजार करते रह सकते हैं ताकि उसे ठीक कर सकें उस पर ऊबने और बोर होने का आरोप कैसे लगाया जा सकता है। वैसे विवेक सिंह देखिये क्या कहते हैं:

    विवेक सिंह
    दिन भर कोई काम न करना
    आप ऊबने से मत डरना
    काम करो तो करना धीमे
    होता है बस सृजन इसीमें
    सृजन तेज ना हो पाएगा
    सारा कार्य व्यर्थ जाएगा
    ऊब ऊब कर महान बनना
    होकर बोर गर्व से तनना
    अरे आज की पीढी जागो
    आप ऊबने से मत भागो

    ताऊ

    कुछ लोग होते हैं जो दूसरे के दुख में मौज लेते हैं। एक तरफ़ ताऊ को मुर्गा बनाया गया और दूसरी तरफ़ अमित को मजा आ रहा है। मुर्गा से दुबारा ताऊ बनने पर लोगों ने ताऊ के मुंह में माईक घुसा के पूछा कि जब मुर्गा बने थे तो कैसा लग रहा था? क्या आप दुबारा मुर्गा बनना चाहेंगे? इसका श्रेय किसको देगें?

    ताऊ ने पुरूष पत्रकारों की तरफ़ गुस्से से और महिला पत्रकारों की तरफ़ प्यार से देखते हुये जबाब दिये। भगवान किसी को मुर्गा न बनाये। हमें तो जब मुर्गा बने थे तो यही सोच रहे थे कि हम तो इधर मुर्गा बनें हैं उधर हमारे कमेंट कौन माडरेट करेगा? सोच तो यह भी रहे थे किसके ब्लाग पर टिपियाये नहीं जिसने साजिश करके मुझे मुर्गा बनवा दिया।

    इसके बाद ताऊ ने नीरजजी के किस्से सुनाने शुरू कर दिये। ये बात तो नीरजजी और ताऊ दोनों पर लागू होती है:

    नीरजजी
    इतने बदनाम न हुए हम तो इस जमाने मे,
    तुमको सदियां लग जायेंगी मुझे भुलाने में
    न पीने का सलीका न पिलाने आ शऊर,
    ऐसे ही लोग चले आये हैं मयखाने में

    ये जो फ़ोटॊ लगी है बेकल उत्साही जी की और नीरजजी की उसको देखकर ध्यान आया कि कानपुर में हुये एक मुशायरे में बेकल उत्साहीजी को अध्यक्ष बनाया गया। नीरज जी कानपुर की तमाम यादें सुनाते हुये कविता पर कविता सुनाते चले जा रहे थे। इस पर बेकलजी किसी तुनुकमिजाज ब्लागर की तरह मंच से उठकर चले गये- बोले सुन लीजिये आप लोग जी भरकर अपने नीरज को।

    शिवकुमार मिश्र

    मुर्गे की बात से बताते चले कि कोई-कोई मुर्गा यह गलतफ़ैमिली पाल लेता है कि वो बोलेगा नहीं त सबेरा बोले त मार्निंगै नहीं होगा। ऐसे ही एक ठो मुर्गा निंदक जी हैं। ऊ कहते हैं 'हमरे बिरोध का वजह से से भारत में लोकतंत्र जिन्दा है.. अब ई अलग बात है कि हर बार उनसे बिरोध का सही समय तय करने में गड़बड़ी हो जाता है। उनको अपना ज्योतिषी बदल लेना चाहिये।

    हमारी गजल की राह दिन ब दिन कठिनतर होती जा रही है। पनघट से भी कठिन। अब बताओ भैया अब कोई ये लिखेगा बहर- फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन त हम कुछ बूझ पायेंगे। लेकिन लिखा है मानसी ने और उसके ऊपर गजल भी कह डाली। अब जब डाल दी तो पढ़ भी लिए हम और जो बहुत अच्छा सा लगा वो आपको भी पढ़वाते हैं:
    मानसी
    तुमको दिल से भुला दिया हमने
    कर के ये भी दिखा दिया हमने

    काश तुमको कभी लगा होता
    इश्क़ का क्या सिला दिया हमने

    अब बताओ भैया आपको ई बात समझ में आती है कि कोई अपने प्रिय को भुला के दिखा दे। लेकिन अब किसको क्या कहा जाये?
    सुरेश चिपलूनकरजी जब एकदम गरजते हुये से लिखते हैं- अमेरिका का मुँह तकती, गद्दारों से भरी पड़ी, पिलपिली महाशक्ति तो मेरे मन में (अरे मानस पटल समझ लो यार) उनकी पोस्ट के भाव के धुरउलट एक सीन सा उभरता है। अमेरिका चांद है और ये क्षेत्रीय महाशक्ति एक चकोर और गाना बज रहा है -चांद को क्या मालूम उसे चाहता है कोई चकोर। चकोर जब लिख रहा था तो यह भी लगा इसे कोई ब्लागर ऐसे भी लिख सकते हैं- चांद को किया मालुम की उस्से चहाता है कोई चौकोर।

    टोबा टेकसिंह मंटो की बेहतरीन कहानियों में मानी जाता है। इसे पढिये सुबोध के ब्लाग पर।

    और अंत में


    जैसा कि बताया कि सुबह जब उठे तो नेट गायब था। सो जो काफ़ी देर तक कुछ लिख ही न पाये। जो अभी हड़बड़ी में लिख पाये सो पेश कर दिया।

    आगे अभी कोई ठिकाना नहीं कि फ़िर एक बार ठेल दिया जाये कुछ।

    वैसे भी आज की चर्चा का दिन कुश का है। सो यह चर्चा कुश की तरफ़ से है। :)

    कल की चर्चा शिवकुमार मिश्र करेंगे। परसों मास्टर साहब मसिजीवी। इसके बाद शनिवार को हमारे आदि चिट्ठाकार आलोक कुमार। इसके बाद इतवार को फ़िर मिलेंगे आपको अनूप कुमार। लेकिन अभी क्या पता इसके पहिले ही मुलाकात हो जाये। ये वाला शेर तो आप बांच ही चुके होंगे न!

    उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
    न जाने जिंदगी की किस गली में शाम हो जाये।


    लेकिन यार अभी त सुबह ही हुई है। अभी से शाम के लिये क्या रोना? आप मस्त रहिये, व्यस्त भी। खुश रहने से कोई रोके त बताइयेगा। हम देखेंगे।

    चिट्ठाजगत ने चिट्ठे सम्बंधित कार्टून ब्लाग शुरू किया है। शुरुआत डॉ अनुराग की शंका, फ़ुरसतिया का समाधान से करके आज ज्ञान जी की बेचैनी, विष्णु बैरागी जी का जवाब पेश किया है। यह कार्टून कल की ज्ञानजी की पोस्ट पर आधारित है। कार्टून देखा जाये:
    चिट्ठे सम्बंधित कार्टून

    Post Comment

    Post Comment

    मंगलवार, दिसंबर 23, 2008

    आप बिलागिंग क्यों करते हैं ?


    अगर आपको पता चले कि साहित्य का अगला नोबेल पुरस्कार आपके बगल वाले ब्लॉगर को मिलने वाला है तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी ? आप शायद तुरंत कोई प्रतिक्रिया देने की स्थिति में न रहें क्योंकि आप तो शॉक्ड रह जाएंगे ना । लेकिन जब आपको होश आएगा तो क्या कहेंगे ? हम जानते हैं . आप प्रकट में तो यही कहेंगे कि चलिए अच्छा हुआ हमारे ब्लॉगजगत के किसी आदमी को नोबेल पुरस्कार मिला है । गर्व की बात है । और कदाचित उस ब्लॉगर को बधाई देने दौड पडें . लेकिन मन में यही सोचेंगे कि इसको यह पुरस्कार मिल कैसे गया ? देखने में तो लल्लू लगता है । और मैं सबसे बडा ब्लॉगर होने का दम भरता हूँ । अब रिश्तेदारों को क्या मुँह दिखाऊँगा । ऑफिस में कैसे व्यंग्यों का सामना करूँगा । इसने तो बुरा फँसा दिया । कुछ तो शायद निराशा में ऐसे कदम उठाने पर आमादा हो जाएं जिनका जिक्र हम एक सभ्य चर्चाकार होने के नाते यहाँ नहीं कर सकते ।

    जी नहीं हमने कोई मजाक नहीं किया । ये कोई छोटे मोटे ब्लॉगर नहीं स्वयं रवि जी कहते हैं . आप रवि रतलामी से खुद ही निपट लें । कहते हैं :


    " अगले वर्ष का साहित्य का नोबल पुरस्कार मेरे नाम पर होगा। अखबारों के शीर्षकों पर निगाहें जमाए रहिए और मुझे बधाई संदेश देने / स्वागत-अभिनंदन समारोहों-जलसों में निमंत्रित करने की तैयारियों में जुट जाइए। आमीन! "


    देखा ! हमने कोई सनसनी तो नहीं फैलाई । पर अदालत नाम के ब्लॉग पर सनसनी फैलाने के लिए ब्लॉग को बन्द करने से सम्बन्धित शीर्षक दिया गया है । अंदर जाकर पता चलता है कि :


    " आदरणीय द्विवेदी जी, 'अदालत' की कार्यवाही जारी रखेंगे। "


    ीक है ! जारी रखिए हमने बन्द करने को तो नहीं बोला था । आप बन्द करें या जारी रखें पर हमारा ध्यान चर्चा पर ही केन्द्रित रहेगा । आज धरती पर कोई भी हमें चर्चा के केन्द्र से नहीं हटा सकता । अच्छा सोचिए कोई पूछे कि धरती का केन्द्र कहाँ है तो बता पाएंगे आप ? दिमाग पर ज्यादा जोर न दें हमारे ताऊ ने पहले से ही बता दिया है :


    " आपसी बहस चल ही रही थी कि अपना ताऊ हाथ में लट्ठ लिए आता दिखाई दिया चूँकि गांव में लोग ताऊ को ज्यादा ही ज्ञानी समझते थे और समझे भी क्यों नही, ताऊ के तर्कों के आगे अच्छों अच्छों की बोलती बंद हो जाती है | सो ताऊ के चौपाल पर पहुचते ही लोगों ने प्रश्न किया कि ताऊ धरती का बीच कहाँ है | ताऊ ठहरा हाजिर जबाब सो अपना लट्ठ वहीं रेत में गाड कर बोला " ये रहा धरती का बीच" किसी को कोई शक हो तो नाप कर देख लो |"


    वैसे ताऊ कुछ भी कर सकते हैं । अब देखिए फुरसतिया ने कहा है कि बोरियत जो न कराए . तो ताऊ जब टल्ल लिखते लिखते बोर हुए तो कविता लिखने का मन किया . और जब खुद न लिख सके तो आउट सोर्सिंग का सहारा लिया . वह तो सीमा गुप्ता जी ने सस्ते में लिख दी । वरना हमसे लिखवाते तो पता नहीं कितनी टिप्पणियों के बदले लिखते ।

    वैसे बोरियत से बचने का एक उपाय हमारे हाथ लग गया है । जब भी बोरियत हो अलग सा ब्लॉग पर चले जाइए । आज ये इंसानों की आस्था और श्वानों की धुलाई पर बोले हैं । नमूना देखें :


    " पर जब श्वान पुत्र बार-बार जिद करने लगा तो मजबूर हो कर मां को कहना पड़ा कि बेटा ये हमारी बात नहीं सुनेंगें। पुत्र चकित हो बोला कि जब ये इंसान के बच्चे को ठीक कर सकते हैं तो मुझे क्यों नहीं।हार कर मां को कहना पड़ा, बेटा तुम्हारे पिता जी ने इसे इतनी बार धोया है कि अब तो मुझे यहाँ रहते हुए भी डर लगता है । "


    हँसी मजाक छोडकर अब थोडा सीरियस हो जाएं । क्योंकि अब बात हाथ उठाने से बढते बढते अब तीसरे विश्व-युद्ध तक आ पहुँची है । घबराइए मत विश्व युद्ध आरम्भ नहीं हुआ है । लेकिन आरम्भ होने पर घबराए तो क्या घबराए ।फिर आप में और आम ब्लॉगर में अंतर ही क्या रह जाएगा . पहले ही घबराना ठीक है । ज्ञानदत्त जी के ब्लॉग पर ऐसी पोस्ट देखकर कुछ लोग तलवारें ले लेकर कूद पडे . कुछ कविताएं गाने लगे . हडबडाहट में अपनी नहीं बनी तो रामधारी सिंह 'दिनकर' की उठा लाए । देखिए अभिनव जी की टिप्पणी , हो सकता है आपको भी जोश आ जाए ।


    " समर निंद्य है धर्मराज, पर, कहो, शान्ति वह क्या है,

    जो अनीति पर स्थित होकर भी बनी हुई सरला है?

    सुख-समृद्धि क विपुल कोष संचित कर कल, बल, छल से,

    किसी क्षुधित क ग्रास छीन, धन लूट किसी निर्बल से।

    सब समेट, प्रहरी बिठला कर कहती कुछ मत बोलो,

    शान्ति-सुधा बह रही, न इसमें गरल क्रान्ति का घोलो।

    हिलो-डुलो मत, हृदय-रक्त अपना मुझको पीने दो,

    अचल रहे साम्रज्य शान्ति का, जियो और जीने दो।

    सच है, सत्ता सिमट-सिमट जिनके हाथों में आयी,

    शान्तिभक्त वे साधु पुरुष क्यों चाहें कभी लड़ाई?

    सुख का सम्यक्-रूप विभाजन जहाँ नीति से, नय

    सेसंभव नहीं; अशान्ति दबी हो जहाँ खड्ग के भय से,

    जहाँ पालते हों अनीति-पद्धति को सत्ताधारी,

    जहाँ सुत्रधर हों समाज के अन्यायी, अविचारी;

    नीतियुक्त प्रस्ताव सन्धि के जहाँ न आदर पायें;

    जहाँ सत्य कहनेवालों के सीस उतारे जायें;

    जहाँ खड्ग-बल एकमात्र आधार बने शासन का;

    दबे क्रोध से भभक रहा हो हृदय जहाँ जन-जन का;

    सहते-सहते अनय जहाँ मर रहा मनुज का मन हो;

    समझ कापुरुष अपने को धिक्कार रहा जन-जन हो;

    अहंकार के साथ घृणा का जहाँ द्वन्द्व हो जारी;

    ऊपर शान्ति, तलातल में हो छिटक रही चिनगारी;

    आगामी विस्फोट काल के मुख पर दमक रहा हो;

    इंगित में अंगार विवश भावों के चमक रहा हो;

    पढ कर भी संकेत सजग हों किन्तु, न सत्ताधारी;

    दुर्मति और अनल में दें आहुतियाँ बारी-बारी;

    कभी नये शोषण से, कभी उपेक्षा, कभी दमन से,

    अपमानों से कभी, कभी शर-वेधक व्यंग्य-वचन से।

    दबे हुए आवेग वहाँ यदि उबल किसी दिन फूटें,

    संयम छोड़, काल बन मानव अन्यायी पर टूटें;

    कहो, कौन दायी होगा उस दारुण जगद्दहन का,

    अंहकार य घृणा? कौन दोषी होगा उस रण का? "


    जब तीसरे विश्व-युद्ध की बात चली तो मुझे याद आया कि किसी विद्वान ने कहा था ," तीसरा विश्व-युद्ध किन हथियारों से लडा जाएगा , यह तो मैं नहीं जानता . किंतु चौथा विश्व-युद्ध लाठी और डण्डों से लडा जाएगा " अब ये मत पूछने लग जाना कि यह किसने कहा था . इतनी अंग्रेजी हमें नहीं आती . हमें इनीशियल एडवाण्टेज जो नहीं मिला था .

    कोई भला आदमी नहीं चाहता होगा कि विश्व-युद्ध हो । पर फिर भी पंकज अवधिया जैसे योद्धा तो अपना दुश्मन ढूँढ ही लेंगे । देखिए कैसे अंध विश्वास से लड रहे हैं :


    " मैने सियार सिंगी बेचने वालो को बहुत बार पकडा है। छत्तीसगढ मे जंगली इलाको से लोग अक्सर ऐसी तांत्रिक महत्व की चीजे ले आते है और किस्से गढकर जितने दाम मिल जाये उसी मे मोल-भाव करके बेच देते है। शहर के पढे-लिखे लोग उनके शिकार होते है। गाँव के लोग तो झट से असलियत जान जाते है। बडी गाडियो को निशाना बनाया जाता है। धन लाभ की बात जैसे ही कही जाती है शहर के पढे-लिखो को पता नही क्या हो जाता है। शार्ट-कट के चक्कर मे वे पैसे गँवा देते है। "


    लवली कुमारी भी अंधविश्वास से अपने तरीके से लड रही हैं । वे साँपों के बारे में आज कुछ भ्रांतियाँ दूर करेंगी । चलिए उनकी क्लास में :


    " कुछ भ्रातियाँ साँपों के बारे

    भ्रम : - सांप बीन की आवाज पर नाचतें हैं।

    सत्य :- नही ,

    सांप के बाहरी कान नही होते।इसलिए वे हवा में उत्पन्न कोई भी आवाज नही सुन सकते हैं।वे अपने आंतरिक कानो से धरती के कंपन से पैदा हुई आवाज को सुनते हैं।बीन की धुन पर हिलने डुलने से ऐसा लगता है की सांप नाच रहा है ॥लेकिन वह बीन के लंम्बे सिरे से चोट खाने के भय से उसपर कड़ी नजर रखता है और उसके गति के विपरीत जाकर बचने की कोशिस करता है।इससे हमें यह भ्रम हो जाता है की सांप बीन की धुन पर नाच रहा है। "


    भी पिछले दिनों कुछ ब्लोगरों ने खुलासा किया था कि उन्होंने स्कूल में खूब पिटाई खाई थी । पर उस समय प्राइमरी के मास्टर जैसे मास्साब नहीं रहे होंगे जो इसके विरुद्ध रहे हों । इनके विचार हैं :


    " भय-दण्ड में गहरा अन्तर्सबंध है। भय आमतौर पर किसी अनिष्ट की संभावना को सहजतापूर्वक कह सुन नहीं सकता। इसकी वजह से बच्चे की सीखने की गति भी प्रभावित होती है। जिस तरह भय के उपस्थित होने पर बड़े भी असहाय हो जाते हैं उसी तरह बच्चे भय के सम्मुख असहाय हो जाते हैं और इस समय सीखने में एक तरह से असमर्थ होजाते हैं। बिना समझे बात स्वीकार कर लेने में आमतौर पर बच्चे दबाव हटते ही शिक्षक की बातों की अवहेलना शुरू कर देते हैं। "


    ैसे शिक्षक सिर्फ स्कूल या कालेज में ही नहीं मिलते । आपको अपने आसपास भी बहुत मिल जाएंगे । ऐसे शिक्षक किसी निश्चित पाठ्यक्रम के अनुसार नहीं चलते । अब देखिए नीरज बता तो रहे थे घुमक्कडी के टिप्स और देने लगे गर्लफ्रैण्ड की परिभाषा , कहते हैं :


    " दोस्तों में लड़कियां भी हो सकती हैं। अगर आप कहीं टूर पर जा रहे हैं, हर सदस्य, चाहे वो लड़का हो या लड़की, अपना खर्च ख़ुद उठाता हो, किसी दूसरे के भरोसे ना हो, तो मैं इस मण्डली को "दोस्त" कहूँगा। लेकिन अगर कोई लड़का किसी लड़की पर इम्प्रेशन ज़माने के लिए उसका भी खर्च उठाता हो, उसकी हाँ में हाँ मिलाता हो, किसी दूसरे की परवाह ना करता हो, तो मैं उस लड़की को उस लड़के की "गर्लफ्रेंड" कहता हूँ। "


    शिक्षकों की बात चली है तो थोडी गणित की बात हो जाए । क्या आपने कभी सबसे बडी अभाज्य संख्या पर विचार किया है . नहीं न ? चलिए ले चलते हैं नटवर सिंह राठौड़ के पास । बताते हैं :


    " कैलिफ़ोर्निया के गणितज्ञों ने एक ऐसी अभाज्य संख्या की खोज की हैजिसमें 13 लाख अंक हैं।अभाज्य संख्याएँ अपने अलावा केवल एक से ही विभाजित होती हैं।कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी के दल (यूसीएलए) ने लॉस एंजेलेस में ये नया नंबर 75 कंप्यूटरों को जोड़कर और अपनी अप्रयुक्त शक्ति को काम में लाकर हासिल किया।ऐसा करके उन्होंने उस ज़बर्दस्त गणना को संपादित किया जो कि इस नए नंबर को हासिल करने और सत्यापित करने के लिए आवश्यक थी। "


    अपने को इन बातों पर भरोसा नहीं होता । जब गिनतियाँ अनंत हैं तो भला कोई अभाज्य संख्या सबसे बडी कैसे हो सकती है ?

    कविता प्रेमियों का स्वागत आज नीरज गोस्वामी हाथ में फूल लेकर कर रहे हैं । पास जाने पर इनके ठीक बराबर में स्मार्ट इण्डिय खडे हैं । पूछते हैं : क्या मतलब -कविता ? यहाँ तक पहुँच गए तो बहुत सारी कविताओं के लिंक मिलेंगे .

    शायद सोच रहें हों कि हम आपको ज्ञान देने की कोशिश कर रहे हैं । ज्ञान देने वाले हम अकेले नहीं हैं । देखिए कितने लोग ज्ञान बाँटने पर उतारू हैं :



    2) राज भाटिया : पहले तोल फ़िर बोल





    7) सुरेश चन्द्र गुप्ता : जनता एक हो सकती है पर नेता नहीं



    जाहिर है हर जगह हर तरह के लोग मिलते हैं तो आपकी तरफ भी कुछ ज्ञान बाँटने वाले लोग होंगे । वे सब अपना ज्ञान यथायोग्य यहाँ उडेल सकते हैं । कोई कुछ नहीं बोलेगा हमने कह दिया है . यहाँ ज्ञान की डिमाण्ड है :


    1) पवन कुमार अरविन्द : कहाँ से आया इतना धन ?

    2) आदित्य : ये छडी किसलिए ?

    3) विकास सैनी : "खुशवंत को ठेस लगी?"






    9) प्रशांत मलिक : कैसे लिखूँ मैं


    जूताकाण्ड हुए वैसे तो काफी समय हो गया पर इसका नशा ब्लॉगरों के सिर से उतरता नहीं दिखता । जो ब्लॉग जगत में छाया हो उससे हम कैसे बच सकते हैं ? तो आइये देखते हैं कुछ जूतात्मक पोस्ट्स :











    अब ब्लॉगिंग के अस्तित्व पर एक सवाल ! बताइए किसने पूछा होगा ? हाँ सही समझे रचना जी ने ही पूछा है :

    "आप ब्लोगिंग क्यूँ करते हैं ? कोई मकसद , कोई जरुरत या केवल और केवल शुद्ध टाइम पास ?"

    हालाँकि कुछ लोगों ने इसका जवाब भी दिया है . पर इतने लल्लू हम नहीं कि आप को वो जवाब यहाँ बता दें :)


    चलते- चलते:


    बिलागिंग
    आप बिलागिंग क्यों करते हो ?
    अमाँ बता दो क्यों डरते हो ?

    करते केवल टाइम पास ?

    या फिर कोई मकसद खास ?

    हासिल इससे क्या होता है ?

    सिर्फ समय जाया होता है .

    क्या बोले शांती मिलती है ?

    निर्गुण या हिलती डुलती है ?

    अच्छा अब में समझ गया हूँ ?

    तुम क्या सोचे अभी नया हूँ ?

    भाई अपना घर मत तोडो !

    शांती से तुम मिलना छोडो !

    काँटों में विचरण करते हो !

    अमाँ बता दो क्यों डरते हो ?

    अब आज्ञा दीजिए अगले मंगल फिर मुलाकात होगी . आपका दिन तो मंगलमय है ही . आज मंगलवार जो है .



    Post Comment

    Post Comment

    Google Analytics Alternative