रविवार, अगस्त 31, 2008

बेट्टा, ब्लागिंग छोड़ो ,मौज से रहो

लैपटाप या कुर्सी

आज इतवार है। चर्चा करने में टाल-मटोल कर रहा है मुआ मन। ई-स्वामी ने लगता है मेरी मन:स्थिति भांप कर ही ये लेख लिखा है। स्वामीजी बताते हैं कि भारतीय लोग आमतौर पर कामटालू होते हैं:
अधिकतर भारतीय न्यूनाधिक रूप से इस समस्या के शिकार हैं, कुछ जानते हैं और इसके पाश से मुक्त होना चाहते हैं और दूसरों के लिये तो जैसा की कहा, यह जीवनशैली ही है. स्वयं उसे अपनी इस जीवनशैली से मुक्त होने में बहुत ज़ोर और मेहनत लगी.

<- बगल की फोटो में देखिये लैपटाप का कैसे उपयोग किया जा सकता है।
नेस्बी के लिये अपनी पहली पोस्ट लिखते हुये पल्लवी त्रिवेदी ने अपने काम से जुड़े कुछ अनुभव बताये। पुलिस की नौकरी में होने के बावजूद उनकी संवेदनशीलता और ईमानदारी ने पाठकों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया। श्रीमानव्यंगेश्वर कथा सुनाकर पल्लवी ने बताया कि कैसे समाज की विसंगतियां एक व्यंग्यकार के लिये बेहद जरूरी हैं।

प्रत्यक्षाजी आजकल यात्रा वृत्तान्त बता लिख रही हैं। औरत हैट और तैमूर में वे पत्तियों में कोई इमेज देखती हैं, लैंडस्केप देखती हैं, ठंडे फर्श पर पट लेटे गाल सटाये आँखें मून्दे मैं सिल्वियो को सुनती हैं, भरोसा करना चाहती हैं पता नहीं किस पर ? शायद खुद पर!

प्रत्यक्षाजी की खास मांग पर बेताल शिखर से ली फाक की कहानी "जादूगरनी का शाप" पेश होती है।

अमृताप्रीतम के जन्मदिन के खास मौके पर उनकी याद में ब्लाग शुरू करके उनको जन्मदिन की मुबारकबाद दी गयी।

जीतेंद्र चौधरी काफ़ी दिन बाद सक्रिय हुये। मछली पकड़ने वालोंझेलाये और अपने सिन्धी ब्लाग पर भी पोस्ट ठेल दिये।

एक हिन्दुस्तानी ने भगवान का अर्थ बताया -पति यानी शौहर! द्विवेदीजी ने सही अर्थ बताया। सुधीजनो ने द्विवेदीजी को साधु-साधु कहा और हिन्दुस्तानी को धत-धत!

अभय तिवारी वाल-ई में हॉलीवुडीय कचड़ा के बारे में मजेदार जानकारी देते हैं। वे फ़िल्म के माध्यम से बताते हैं:
एक्सिऑम पर मनुष्य हैं जो पृथ्वी के नष्ट हो जाने के बाद से हज़ारों साल से किसी ऐसे ग्रह की तलाश में हैं जिस पर रहा जा सके। इस यात्रा का उनकी बोन डेन्सिटी पर इतना अधिक दुष्प्रभाव पड़ा है कि वे खड़े तक नहीं हो सकते और अपने सभी कामों के लिए रोबोट पर निर्भर हैं। अमरीकी जीवन(और धीरे-धीरे शेष दुनिया) जिस बीमारी की चपेट में फूलता जा रहा है उस मैक्डॉनाल्ड संस्कृति की एक भयावह तस्वीर दिखती है यहाँ.. जो मशीनीकरण और बाज़ारीकरण की एक अच्छी टीप है।


मुकेश खन्ना की जबानी आप आगे की कहानी सुनिये।:
लेकिन भीष्म पितामह की आत्मा से अगर मुझे किसीने मिलाया तो वे पँडित नरेन्द्र शर्मा ही थे !उनके पास मैँ जितनी बार बैठा, कुछ ज्ञान अर्जित करके ही उठा ।


द्विवेदीजी की पोस्टों के शीर्षक जित्ते लम्बे होते हैं उत्ते में हमारे आदि चिट्ठाकार आलोक कुछ पोस्टें लिखते हैं/थे। द्विवेदीजी की आज की पोस्ट का शीर्षक है- 'तीसरा खंबा' का अभियान रंग लाया............... न्यायिक सुधार बनेंगे आगामी चुनावों का केन्द्रीय मुद्दा

फ़ुरसतिया ने खराब लिखने के फ़ायदे बताने की कोशिश की तो इस पर डा.अरविन्द मिश्र का कहना था:
आपके आज तक के लेखन का सबसे घटिया /खराब आलेख ..अब आप चुक रहे हैं शुक्ल जी !सच काहा आपने जो शीर्ष पर पहुंचे हुए होते हैं उन्हें दुश्चिंताएं घेरे रहती हैं -लुढ़क जानें की …..घबराएं नहीं मैं अब टीपता रहूंगा आप को जमींदोज होने से बचाने के लिए —त्रिशंकु तो बनही रहेंगे हमारे टिप्पणी बल से …..अब आपण तेज संभालो आपही -दूसरों को टिप्पणी बल देने का समय अब खत्म हुआ आपका -अपनी गद्दी बचाईये !
अनूप शुक्ल अपनी गद्दी की चिंता करते इसके पहले ही उनको अपने समर्थन में खड़े ब्लागर हर्षित गुप्ता दिख गये। जो कहते हैं:
Actually, मैं ये सोच नहीं सकता था कि कोई इतने मजेदार तरीके से ख़राब लिखने के फायदे यानी benefits of writing bad, बता सकता है। ऊपर से इस subject पे एक blog भी बना सकता है।
अनूप शुक्ल खुश हो गये। लेकिन खुशी के गुब्बारे में जी.विश्वनाथजी ने पिन चुभा दिया और ब्लाग न लिखने के २१ फ़ायदे गिना दिये। मतलब बुजुर्गाना सलाह दी कि बेट्टा, ब्लागिंग छोड़ो ,मौज से रहो।

ऊह आह आई

आलोक पुराणिक कहते हैं- कमीशन वाले ’पे’ की चिंता नहीं करते और ’पे’ वालों को कमीशन मिलता नहीं। छ्ठा वेतन आयोग उनके सामने एक्सरे करवाने आया तो उन्होंने नतीजे निकाल दिये:
संभव है कि आने वाले कुछ सालों में वेतन आयोग की प्रासंगिकता ही खत्म हो जाये। सरकार में रोजगार इतने कम हो जायें, कि वेतन आयोग का रोल ही बहुत कम हो जाये। वेतन आयोग से बाहर के असंगठित श्रमिकों के मसले इतने बड़े और इतने उलझे हैं कि वह एकाध आयोग के नहीं, कई आयोगों के दायरे में समायेंगे। पर उनकी चिंता करने की जरुरत आम तौर पर समझी नहीं जाती, क्योंकि वे सब के सब भारत के बंगलादेश या युगांडा में रहते हैं।

एक लाइना


  • आखिर मैं एक इंसान हूं : भ्रम की दवा हकीम लुकमान के पास भी नहीं होती

  • :यार क्या मस्त टांगे हैंउन टांगों की चप्पलें दिख ही नहीं रहीं

  • इन मुई गोलियों का कोई मजहब नही होता : इसीलिये इनमें आपस में कोई दंगा नहीं होता

  • दस्तक :फ़िर किसी तूफ़ान की

  • मुझे क्या मिलेगा: चंद हसीन टिप्पणियां

  • ख्बाब ख्बाब था, उसका क्या है : हां जो ’था’ अब उसका’है’ क्या होगा?

  • समय जिसे न बांध सके : उसे हम क्या बांधे? जाने दो यार!

  • प्रधानमंत्री जी, “राष्ट्रीय शर्म” और भी हैं… हिन्दी ब्लॉगरों से सुनिये: और टिपियाइये कैसी रही राष्ट्रीय शर्म!

  • जूनून-ए-इश्क: सच्चा है तो फिर हारा नहीं करता

  • सरकार की शह पर गुंडागर्दी को सहन नहीं किया जाएगा- : गुंडागर्दी हम अपने बल बूते करेंगे किसी की शह पर नहीं

  • blogvani मे दोष:ब्लोगवाडी जीन्दा बाद

  • सिक्का: कहीं ढ़ला, कहीं चला ये मुआ है बड़ा मनचला

  • हमरी अटरिया पर आजा रे सांवरिया ! : देखा-देखी तनिक हुई जाए

  • डूबता सूरज लखनऊ शताब्दी से : उगते के लिये गोमती पकड़ें?

  • टाल-मटोल का मनोविज्ञान: मैं ऐसा क्यूं हूं.. मैं ऐसा क्यूं हूं?: आगे लिखने की बात टाल दी

  • खराब लिखने के फ़ायदे :अनगिनत हैं बस आप खराब लिखना शुरू कर ही दीजिये

  • औरत हैट और तैमूर : सब मिलेगा इस पोस्ट में जी

  • और तुम्हारी याद इस तरह जैसे के धूप का टुकडा . :पसरकर रोशन कर दे इस पोस्ट को

  • लैपटॉप का सदुपयोग कैसे करें उसकी ऐसी-तैसी करके

  • और पकड़ो मछली! अब झेलो जीतेंद्र चौधरी की पोस्ट

  • सिक्स पे कमीशन और बाबु की व्यथा : रिश्वत की दरों का कोई जिक्र नहीं हुआ


  • मेरी पसंद


    वह फुटबॉल का खिलाड़ी है
    गेंद को किक मारता है हर रोज़
    एक रोज़

    उसने किक मारकर प्‍यार को ऊपर आसमान में पहुंचा दिया
    वह वहीं रह गया
    चूंकि वह कभी नीचे नहीं आया
    लोगों को लगा यह सूरज है
    या चांद या फिर कोई नया सितारा

    मेरे भीतर एक गेंद है
    जो कभी नीचे नहीं आती
    लटकी रहती है आसमान के बीचोबीच
    आप देख सकते हैं उसे लपट बनते हुए
    प्‍यार या सितारा बनते हुए

    काजुको शिराइशी गीत चतुर्वेदी के सौजन्य से

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    शुक्रवार, अगस्त 29, 2008

    आड़ हमारी ले कर लडते किसकी आजादी को

    आजकल आइपाडी (iPody) संस्कृति खूब फलफूल रही है, उनके लिये जिनकी समझ ना आये मैं बता दूँ कि इस संस्कृति से infected लोग कान में सफेद रंग का तार घुसाये सारे काम करते हैं। यहाँ अमेरिका में इसका अच्छा खासा प्रभाव दिखता है, बस में, ट्रैन में, पैदल चलते हुए, किताब पढ़ते हुए, लिफ्ट में चढ़ते-उतरते हुए, मजाल है जो तार कान से बाहर आ जाये। आज हमने सोचा कि ऐसे तार तो हमारे पास भी रखे हुए हैं तो क्यों ना आज चिट्ठा चर्चा भी इसी संस्कृति के वशीभूत होकर करी जाय। चर्चा हम कर रहे हैं प्रेम पुजारी के गीत सुनते हुए इसके बारे में आप झरोखा में पढ़ सकते हैं।

    पहले थोड़ा बात कर लेते हैं नोट वोट की, इसकी ही ध्वनि चहुँ और सुनायी दे रही है, ब्लोगवाणी के लिये वोट की आवाज यहाँ यहाँ से आ रही है - ब्लागवाणी को वोट कीजिये, यहाँ से आ रही है हिन्‍दी को हिन्‍दी-प्रेम की बैसाखियों से आजाद करने के लिए ब्‍लॉगवाणी को वोट दें, यहाँ से आ रही है मतगणना नहीं जनगणना में भाग लेना न भूलें, और यहाँ से भी आ रही है BlogVani जिंदाबाद और ये रही पाडभारती की अपील पॉडभारती टाटा नेन हॉटेस्ट स्टार्टअप पुरस्कार के लिये नामांकित। दोनों साईट हिंदी को बढ़ावा देने के लिये सराहनीय कार्य कर रही हैं इसलिये आप दोनों को ही वोट दीजियेगा।

    उत्तरांचल के शहर पिथौरागढ़ के पास एक छोटा कस्बा है वड्डा जहाँ आर्मी वाले पाये जाते हैं क्योंकि ये छावनी है, जिन लोगों को अभी तक नही पता उन्हें बता दे कि देश की राजधानी दिल्ली में भी एक जगह है अड्डा जहाँ क्या पता आपको नीतिश राज मिल जायें।

    आपने जनरल नॉलेज तो पढ़ा ही होगा, अगर नही तो क्या प्राचीन कालीन चैनल दूरदर्शन में जनरल नॉलेज बांचते सिदार्थ बासु को जरूर देखा होगा। अगर ये भी नही देखा तो एक अंतिम मौका है ये जानने का कि सामान्य ज्ञान के विषय में कैसे कैसे असामान्य सवाल पूछे जाते हैं

    ये ना थी हमारी किस्मत कि लाल की लाली का दीदार होता, हमें ये पहले पता होता तो अभिषेक के साथ लंच हम बृहस्पतिवार की जगह शुक्रवार को करते। खैर, अभिषेक बगैर लाली के भी हमें तुम से मिलकर बहुत अच्छा लगा।

    आजकल पानी की भी अजब माया है कोई पानी में प्यासा बैठा हैं तो कहीं गजल पानी में भीग रही है। जो इन दोनों से बच गये वो पसीने से ही भीगने की कोशिश कर रहे हैं।

    शब्दों के ऊपर स्टिंग ओपरेशन करने के लिये मशहूर अजित जी इस बार कैमरे के पीछे पड़ गये हैं, वो इस स्टिंग आपरेशन के बारे में बताते हुए लिखते हैं -
    बहरहाल कैमरे का जन्म कमरे से हुआ। पुराने ज़माने के कैमरे किसी कोठरी से कम नहीं होते थे और उनके नामकरण के पीछे यही वजह थी।

    इस पर हमारी जेहन पर यही उठता है कि कमर क्या कमरा की टांग तोड़ने से बना है या इसकी कोई और वजह है।

    कवि की जाति भी कमाल की होती है, कुछ भी कल्पना कर लेती है अब देखिये राकेश जी का कहना है मन पागल कुछ आज न बोले, वहीं सीमा पहले दिल को बस्ती बता रही हैं फिर खुद ही कह रही हैं कि बड़ी उजाड़ है, आम आदमी हंसाने को कहता है ये कह रही हैं कभी आ कर रुला जाते, अगर आप जालिम किस्म के हैं तो जाईये जरा उन्हें रूला आईये। ये दूसरे अजब कवि हैं कुमुद अधिकारी, जो पहले कहते हैं कविता वैसी कुछ खास चीज नहीं है, फिर लिखते हैं ये -
    यादों में किसी दिन
    सागर में बड़ी सुनामी आई
    बहुत सी बस्तियाँ, गुंबद, निर्माण और लोगों को बहा ले गई
    लोगों के बनाए प्रेम-स्मारक
    प्रेम घोलकर पी जा रही कॉफी व कॉफी-शॉप
    दिल में तान बजाते वॉयलिन
    और एक बार की जिंदगी में गुजारे हुए प्रेम के पल
    ऐसे बह गए जैसे सपने बहते हैं
    वह प्रेम, वॉयलिन का दिल और धुन
    कोई नहीं देख पाया, नहीं सुन पाया
    देखा और सुना तो सिर्फ़ कवि ने
    और छाती से लगाकर लिखा
    धरती की सुनामी, सागर और प्रेम के साथ
    किताबों के अक्षर के साथ जागकर चेतना में घूमती रही
    कविता वैसी कुछ बड़ी
    चीज नहीं है।

    निठल्लों को कोई काम-धाम तो होता नही फिर भी ना जाने कैसे उन्हें भगवान मिल जाते हैं, निठल्ले ने पूरी रामायण बांच दी उसके बाद भी अनिल रघुराज को शक है और पूछ रहे हैं - कल जो कह गए वो भगवान थे क्या? आप बतायें इस बारे में क्या ख्याल हैं आपका? अरे मैं भगवान के बारे में नही बल्कि ख्याल के बारे में आपका ख्याल पूछ रहा हूँ, थोड़ा सा हिंट ये रहा - ख्याल दो प्रकार के होते हैं।

    हमें तो पहले से ही पता है अब द्विवेदी जी ने भी मोहर लगा दी है कि ये अधकचरा ज्ञान है।

    पिछले साढ़े चार साल से हम और ये चिट्ठे लिख ही नही रहे हैं बल्कि एक दूसरे के ब्लोग में टिपिया भी रहे हैं और अब साढ़े चार साल बाद फुरसतिया नींद से जागे। देखिये मिनट मिनट में पोस्ट ठेलने वालों को ये बता रहे हैं ऐसे लिखा जाता है ब्लाग, चलिये देर आये दुरस्त आये।
    गुरू ये तो बड़ा धांसू लिख मारा। दुनिया पलट जायेगी इसे पढ़कर। होश उड़ जायेंगे जमाने के इसे देखकर। लेकिन जब दुबार बांचते हैं तो खुद के होश उड़ जाते हैं।

    "कह नहीं सकती" पढ़ने के बाद हम भी होश उड़ने के जुमले से इत्तेफाक रखते हैं।

    बच्चे बड़े मासूम होते हैं, कभी कभी इसी मासूमियत में ऐसे सवाल कर देते हैं कि अच्छे अच्छों को जवाब देते नही बनता, आप बतायें अगर कोई पूछे आड़ हमारी ले कर लडते किसकी आजादी को अंकल?
    आड हमारी ले कर लडते
    किसकी आजादी को अंकल?
    और लडाई कैसी है यह
    दो बिल्ली की म्याउं-म्याउं
    बंदर उछल उछल कहता है
    किस टुकडे को पहले खाउं?

    बडे बहादुर हो तुम अंकल
    बच्चो के पीछे छिप छिप कर
    बडी बडी बातें करते हो

    कल ही एक शर्ट लेकर आया समझ नही आ रहा अब इसका क्या करूँ प्रभात रंजन मोहल्ले में गुहार लगाकर सबको कह रहे हैं उठो कि इस दुनिया का सारा कपड़ा फिर से बुनना होगा -
    मुझे आदमी का सड़क पार करना
    हमेशा अच्छा लगता है
    क्योंकि इस तरह
    एक उम्मीद - सी होती है
    कि दुनिया जो इस तरफ है
    शायद उससे कुछ बेहतर हो
    सड़क के उस तरफ।

    समाचारपत्र की कतरन बनाने का जुगाड़ बता रहे हैं अमित, सैलेरी बढ़ाने का उपाय बता रहे हैं कीर्तिश
    झरोखा

    प्रेम पुजारी, १९७० में आयी थी ये फिल्म जिसमें अभिनय किया था देवानंद, वहीदा रेहमान, शत्रुघन सिंहा और सचिन ने, संगीत से सजाया था एस डी बर्मन ने। इस फिल्म के गीत और संगीत दोनों ही काफी मधुर थे यही नही फिल्म की कहानी भी आजकल की कई फिल्मों के सामने २० ही थी। अगर अभी तक आपने ये फिल्म नही देखी तो एक बार जरूर देखियेगा, स्टोरी के लिये नही तो संगीत के लिये ही सही।

    इस फिल्म के गीतः
  • फूलों के रंग से, दिल की कलम से

  • रंगीला रे

  • शोखियों में घोला जाय फूलों का शवाब

  • दूँगी तैनो रेशमी रूमाल

  • यारों निलाम करो सुस्ती

  • ताकत वतन की हम से है

  • प्रेम के पुजारी हम हैं


  • एक दूजे के लिये:
    1. कोई तो बताये ये है माज़रा क्या? ये सारे लोग ईसाई और मुसलमान क्यों बनते हैं?

    2. यमराज बोले अरे प्रहलाद तू जल और मेरे साथ चल, प्रहलाद बोले जाने दो ना (जरा ध्यान रहे बोलकर कह रहे हैं लिखकर नही)

    3. आपकी जात क्या है pandey जी?, अच्छा जात छोड़िये ये बतायें बारिश में भीगना याद है? या ये भी भूल गए

    4. सींच रही हूँ अब तक फिर भी फूलों की घाटी का अस्तिव संकट में

    5. रहने को घर नही क्योंकि पानी में घिरे हुए हैं लोग

    6. बीजेपी प्रवक्ता ने इंदौर में छलकाए जाम वो बेचारा क्या जाने इससे मस्त व्यंजन है परनिंदा रस

    7. वो मुसाफिर किधर गया होगा जो ढूँढ रहा था बस इश्‍क़... मुहब्‍बत... अपनापन

    8. पंगेबाज ने "अथ श्री दुम कथा" की छेड़ी तान जैसे ही उन्हें पता चला कुत्ते ने बचाई नवजात की जान

    9. बंद को तो बीसवीं सदी में ही छोड़ आना चाहिए था, बात तो सही है लेकिन नही छोड़ पाये तो क्या इस सदी में छोड़ पायेंगे। सोचिये खाली बोर दोपहर मे यही सोचिये, और हमको दीजिये ईजाजत, अगले शनिवार फिर भेंट होगी।

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    गुरुवार, अगस्त 28, 2008

    माता पार्वती ने ख़ुद ही जलाई कुटिया शंकरजी फ़ायर ब्रिगेड को फ़ोन मिला रहे हैं

    पापा आई लव यू

    कल बड़ा लफ़ड़ा होते-होते बचा। हुआ ये अनिल रघुराज कुछ बुराई भलाई कर रहे थे सेकुलरिज्म की। कहने लगे:
    कहा जाता है कि ठहरे हुए को चलाने के लिए तो हर कोई उंगली करता है, लेकिन जो चलते हुए को उंगली करे, समझ लीजिए वो कनपुरिया है।
    हम तो कुछ नहीं बोले लेकिन तमाम कनपुरिया बमक गये बोले अनिल रघुराज का काम लगा दें का? हम बोले- रहन दो यार ब्लागर डिस्काउन्ट दे दिया जाये। बोले, नहीं! कुछ तो काम लगाना ही पड़ेगा इनका वर्ना ई तो कुच्छौ कहि के चले जायेंगे, अगली पोस्ट लिखेंगे। हम बोले- जाय द रजा, पान घुलावा

    कनपुरिये तो चूंकि समझदार होते हैं, मान गये लेकिन तमाम लोग अभी तक फ़िरंट हैं। सुरेश चिपलूनकर कहते भये:
    खुद की गिरेबान में झाँकने की बजाय, “सेकुलरिज़्म” का बाना ओढ़े हुए ये “देशद्रोही” हर घटना के लिये RSS को जिम्मेदार ठहराकर मुक्त होना चाहते हैं।
    आगे मामला और क्या हो सकता है देखिये जी:
    जल्द ही वह दिन आयेगा जब “सेकुलर” शब्द सुनते ही व्यक्ति चप्पल उतारने को झुकेगा…


    डा.अमर कुमार इत्ता झुल्ला गये अरविन्द मिश्र की टिप्पणी छुट्टी से कि टिप्पणियै बन्द कर दिहिन। लेकिन लोग न जाने कैसे टिपिया गये। उधर साध्वीजी ने बताया कि दो चिट्ठाकार की टिप्पणी हड़ताल से क्या अंतर पड़ जाने वाला है, सब वैसा ही चलता रहेगा!

    अजित को न जाने क्या हुआ कानून का डंडा फ़टकारने लगे। इस पर गिरीश बिल्लौरे सवाल उठाने लगे:
    पापा आई लव यू
    पापा आई लव यू
    नागफनी जिनके आँगन में
    उनके घर तक जाए कौन ?
    घर जिनके जले मकडी के
    रेशम उनसे लाए कौन !


    मनीषा कहती हैं:
    पापा आई लव यू
    एक कतरन सूरज की
    हम मुट्ठी में छुपाये हैं।
    फिर जब भी चाँद रात में
    बादल से छाये हैं।


    प्रीति बडथ्वाल कहती हैं:
    ये हवाऐँ छेङती है,
    क्यों मुझे कुछ इसतरहां
    सिमटा हुआ आँचल मेरा,
    मचल उठता है बादलों में।


    अब बताओ प्रीति जी हवाओं से छेड़े जाने की शिकायत कर रही हैं और उधर कनाडा से समीरलाल कह रहे है- वाह! बहुत सुन्दर। बताइये भला ये भी कोई बात हुई। अभी कोई और प्राणी ऐसी हिमाकत करता तो द्विवेदीजी उसका हिसाब कर देते। लेकिन ये तो भाई ’टिप्पणी सम्राट’ कहलाते हैं। जो मन आये टिपियायें कोई बोलने-रोकने-टोंकने वाला नहीं है। समरथ को नहीं दोष ब्लागर भाई!

    संजय बेंगाणी लोगों के दुबले होने के पागलपन के बारे में लिखते हैं:
    मॉडलों को छोड़ ही दें, उनको रोल-मॉडल के रूप में देखने वाली महिलाएं जीरो फिगर (यह अमरीकी कपड़ो का नाप है. वैसे 5फूट 4 इंच या उससे लम्बी नारी के लिए 31.5-23-32 का प्रमाण जीरो फिगर माना जाता है.) पाने के जुनून में अपने आप पर अत्याचार कर रही है. औसत से कम वजन होते हुए भी वजन को और कम करते रखने की सनक यानी एनोरेक्सिया स्वास्थय सम्बन्धी खतरे पैदा कर रहा है. खून की कमी, सर दर्द, चिड़चिड़ापन, थकान जैसी शिकायतें छरहरी काया के साथ पैदा हो रहे है. शरीर को कंगाल बना देनी की वृति अब सरकारों को भी चिंता में डाल रही है.

    संस्मरण: महाभारत के भीष्म -मुकेश खन्ना के

    बेहतरीन पोस्ट: पापा आई लव यू !

    बधाई: किरण देवी सराफ ट्रस्ट के सहयोग से कवि कुलवंत सिंह की काव्य पुस्तकों "चिरंतन" एवं "हवा नूँ गीत" (पूर्व काव्य संग्रह निकुंज का गुजराती अनुवाद - श्री स्पर्श देसाई द्वारा) का विमोचन समारोह कीर्तन केंद्र सभागृह, विले पार्ले, मुंबई में २१ अगस्त, २००८ को संपन्न हुआ। हमारी बधाई!
    बस पूछो मत

    आज का कार्टून बामुलाहिजा से
    राजेन्द्र राजन अफ़लातून की के पसंदीदा कवि हैं। हम लोगों के भी। आज उनकी दो कवितायें पोस्ट हुयीं। तीसरा आदमी और बहस में अपराजेय। केदारनाथ सिंह की कविता मातृभाषा पर दो मजेदार कमेंट दिखे।

    अफ़लातून उवाच:केदारनाथजी जैसे वरिष्ट कवि को १९६७ में मातृभाषा नहीं दिखी । कम्युनिस्ट पार्टियों को तब
    भाषा का सवाल समझ में नहीं आ रहा था। एस.यू.सी जैसे समूह तो ऐलानिया अंग्रेजी के हक़ में थे।
    प्रत्यक्षा उवाच:ओ मेरी भाषा … ये पंक्तियाँ हमेशा चमत्कृत करती हैं । अपनी एक कहानी में मैंने इन पंक्तियों को उद्धरित किया था और केदारनाथ जी के उस कहानी पर फोन ने उस कहानी की सार्थकता बढ़ा दी थी। इन्हें पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है ।

    आप भी कुछ कहना चाहते हैं क्या!

    वोट दें

    पाडभारती और ब्लागवाणी को वोट दें और आत्मिक खुशी हासिल करें। विवरण इधर देख लें।

    एक लाइना



    वोट और सत्ता के चक्रव्यूह में फँसी हिंदी: कह रही है क्या मम्मी!! कहां फंसा दी??

    हलवा-प्रेमी राजा : टिप्पणी खा रहा है।

    चिट्ठाचर्चा आज शाम : करके ही मानोगे? एक दिन तो चैन लेने दो यार!

    तुम्हारे बिना :कैसे इत्ता उदास हो सकते थे?

    रिश्ते और 24 कविताएँ : पढो़गे? सोच लो ?

    कोई गीत नहीं बन पाया : तो हम का करें? मना किया था ब्लागिंग मती करिये।

    विधवा अपने नौकर के साथ विवाह करना चाहती है, आप की क्या राय है? :नौकर बेचारे से भी पूछ लें। बिना शादी के थाने ले आई, शादी के बाद क्या होगा?

    जब नेपाल डुब रहा था तो प्रचण्ड चीन की बांसुरी बजा रहे थे: उसी को सुनते हुये लिखी गयी ये पोस्ट!

    जापानी तरीका फोटो खींचने का : जैसे निपट-निपटा के उठे हैं। अनुसंधान का नतीजा बताओ जी।

    जिस रोज मुझे भगवान मिले: हमने उनसे शिकायत की- आपने हमारे ब्लाग पर कमेंट क्यों नहीं किया। जाइये हम आपसे बात नहीं करते।

    नाजुक सी नादानी : डा.चन्द्र कुमार जैन की जबानी।


    नयी पीढ़ी नहीं जानती फैंटम और मैन्ड्रेक को : जान जायेगी यार, ये फ़ैंटम और मैन्डैक अभी-अभी तो आये हैं ब्लागिंग में।

    पहली बार अच्छा लगा कोई पीली बत्ती वाला: और बत्ती हरी हो गई।


    टीम इंडिया ने रच दिया इतिहास :अब बिगडेंगे इनके दिमाग के भूगोल।

    पैगाम तुम्हें मैं भेजूंगी : लेकिन कहीं आ न धमकना।

    जहां पेंग्युन भी उड़ सकती हैं: ऐसा है उन्मुक्त ब्लाग!

    लौट आती है इधर को भी नजर क्‍या कीजै : करना क्या है देखना है, झेलना है।

    दागी पुलिसकर्मियों की बहाली से इंकार किया उच्चतम न्यायालय ने : कहा होगा-ठीक से दाग के लाओ।

    इश्क में कहीं के न रहे : बहुत बुरा हुआ,’बाई द वे’ इश्क के पहले कहीं के थे क्या?

    माता पार्वती ने ख़ुद ही जलाई कुटिया : शंकरजी फ़ायर ब्रिगेड को फ़ोन मिला रहे हैं!

    बिहार में प्रलय...लेकिन क्या है उपाय?: फ़गत ब्लाग लिखने के सिवाय!

    शब्दों के फ़ूल कभी नहीं मरझाये : इसमें किलो भर टैग लगे हैं भाय!

    अब नन भी दिखाएगी अपनी सुंदरता:बाद में ’कन्फ़ेश’ हो होगा ही रूटीन वे में।

    विशेष जानकारी नवनिर्मित ब्लाग पर मिलेगी।

    मौसमी बुखारी बयारों के बीच हाईकू..: को दबोच के पोस्ट पर चेंप दिहिन ठाकुर परमोद कुमार सिंह गांगुली। टें बोल गया होगा अब तक।

    नहीं पता था कि ईसाई इतने फटेहाल भी होते हैं : ये हाल हैं एक हिंदुस्तानी के। उसको ये भी नहीं पता कि ईसाई कैसे होते/बनते हैं अपने यहां।

    मेरी पसन्द


    जैसे चींटियां लौटती हैं
    बिलों में
    कठफोड़वा लौटता है
    काठ के पास
    वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
    लाल आसमान में डैने पसारे हुए
    हवाई अड्डे की ओर|

    ओ मेरी भाषा
    मैं लौटता हूं तुम में
    जब चुप रहते-रहते
    अकड़ जाती है मेरी जीभ
    दुखने लगती है

    मेरी आत्मा ।

    केदारनाथ सिंह

    और अंत में


    हम सबेरे कह तो दिये कि शाम को चर्चा करेंगे। लेकिन शाम को आसन संभालते-संभालते बज गये नौ। हमने कहा चर्चा किया जाये? लैपटाप बोला- हौ! हम कहा -हाऊ इस योर नेट? लैपटाप बोला- वेल सेट। हम बोले -यार कल करे? सुबह सबेरे। तब तक कहौ समीरलालजी भी अपनी किस कथा के आगे कुछ मिस कथा ले आयें। शिवकुमार मिसिर हो सकता हैहलवा के साथ पूड़ी भी ले आयें। लेकिन लैपटाप बोला- सोचि लेव आप! सबेरे कहा था शाम को करेंगे। शाम को कहोगे सुबह तो लोग कहेंगे कि ब्लागर है कि नेता। या कि प्रियंकर? जो साल भर से नियमित लिखने का वायदा कर रहे हैं और (नियमित )नहीं ही लिख नहीं रहे हैं। इस लिये हे ब्लागरों श्रेष्ट अपने वचन का निर्वाह करो और लिखो। मत सोचो कि दिनेशराय द्विवेदी सबेरे पेट गुड़गुड़ाते हुये क्या कहेंगे कि चर्चा मन लगा के करनी चाहिये। यह सोचो कि अगर चर्चा सबेरे डा.अमर कुमार को न दिखी तो उनके पेट के क्या हाल होंगे। इसलिये हे ब्लागरों में ब्लागर, चर्चाकारों में परम चिरकुट लेटो बिस्तर और तकिया पेट के नीचे दबाकर मुस्कराते हुये चर्चा करना शुरू कर। इससे बचने का कोई उपाय नहीं है।

    हम अपने लैपटाप का कहना मान के अपने दिये वचन का निर्वाह करके चर्चा को रात 1155 पर ठेल दिये। एक सबेरे की नहीं की तो दिन में तीन करनी पड़ीं। इसे कहते हैं- सब पापों की सजा यहीं मिल जाती हैं।

    इति श्री चर्चा पुराण समाप्त:

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    पाडभारती और ब्लागवाणी को वोट दें

    पाडभारती और ब्लागवाणी को वोट दें


    हां तो जी हम कह रहे थे कि चर्चा आज शाम को करेंगें लेकिन पहले काम की बात।
    देबाशीष और शशिसिंह के जिद्दी प्रयासों के चलतें पाडभारती की शुरुआत पिछले साल हुई। शुरुआती अंक में देबाशीष ने कमेंट्रियाया था:
    शशिसिंह
    देबाशीष
    हिन्दी चिट्ठाकारी ने अप्रेल 2007 में चार साल पूरे किये हैं। ये फासला कोई खास तो नहीं पर कई लोग इसी बिना पर पितृपुरुष और पितामह कहलाये जाने लगे हैं और अखबारों में छपने लगे हैं। पॉडभारती के लिये चिट्ठाकारी के इस छोटे सफर का अवलोकन कर रहे हैं लोकप्रिय चिट्ठाकार अनूप शुक्ला।
    इस पर अपनी आवाज सुनकर हम पुन: खुश हो गये। और भी बहुत कुछ है वहां। पहले अंक में रवि श्रीवास्तव की आवाज है, संजय बेंगाणी हैं, रवीश कुमार हैं जो मोहल्ला विवाद पर अपनी राय जाहिर कर रहे थे। आप भी पाडभारती के अंक सुनेंगे तो अच्छा लगेगा। बाकी अंक भी सुने और सराहे जाने योग्य हैं।

    पॉडभारती को प्रतिष्ठित टाटा नेन हॉटेस्ट स्टार्टअप पुरस्कार के लिये नामांकित किया गया है। नेशनल एन्टरप्रेनरशिप फाउंडेशन व टाटा समूह द्वारा सहआयोजित यह नई भारतीय कंपनियों के लिये एकमात्र सामुदायिक पुरस्कार है। तो आप पाडभारती को वोट दीजिये समझ लीजिये अपने को वोट दे रहे हैं क्योंकि एक बार सुनने के बाद हिंदी ब्लागिंग से जुड़े हर व्यक्ति को पाडभारती अपनी लगेगी।

    पॉडभारती को वोट देने के लिये आप इस जालपते पर जा सकते हैं या एसएमएस भी कर सकते हैं। एसएमएस करने हेतु संदेश की जगह HOT<space>36 लिखें तथा इसे 56767 पर भेज दें।

    ब्लागवाणी को वोट दें


    आप इसी तरह अपने संकलक ब्लागवाणी को भी वोट दीजिये न! दोनों को एकसाथ वोट देने पर कोई पाबंदी नहीं है। ब्लागवाणी को वोट देने के लिये यह लिंक है। SMS से वोटिंग करने के लिये संदेश की जगह HOT<space>22 लिखें तथा इसे 56767 पर भेज दें।

    ब्लागवाणी से संबंधित जानकारी कुश के टिप्पणी-सौजन्य से मिली। उनका आभार!

    काम की बात के बाद अब चिट्ठाचर्चा की बात। अब करते हैं। तब तक आप वोट दे के आइये पाडभारती को। चिंता न करें हम कहीं जा नहीं रहे हैं जी।

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    चिट्ठाचर्चा आज शाम

    नेट ने नखरा खुब किया, खुल के दिया न आज,
    फ़िर बत्ती भी गुल भयी, हुई कोढ़ में खाज!


    आगे की कहानी आप शाम को सुनियेगा। अपना बहुत धांसू कुछ लिखें हों तो उसका लिंक नीचे दे दें टिप्पणी में। उसका हिसाब-किताब शाम को किया जायेगा। अभी हम दफ़्तर मोड में जा रहे हैं। ब्लाग मोड में शाम को मिलेंगे।

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    बुधवार, अगस्त 27, 2008

    इस बार की चिटठा चर्चा कुश की कलम से..

    नमस्कार,
    मैं कुश आपका प्रिय न्यूज़ रीडर स्वागत करता हू आपका चिट्ठा चर्चा में .. मेरी पिछली चर्चा को आप सभी ने सराहा उसके लिए आप सभी को हार्दिक आभार व्यक्त करता हू..

    आइए अब चलते है ताज़ा समाचारो की तरफ

    पिछले दिनो हमने आपको बताया था की किस प्रकार एक ब्लॉगर ने टिप्पणियो के अभाव में दम तोड़ा.. लेकिन इस बार हुआ एक चमत्कार.. कल शाम पंगेबाज जी के अंतिम संस्कार के उपलक्ष में एक कवि सम्मेलन का हर्षोल्लास से आयोजन किया गया.. इस अवसर पर कुछ सिर्फ़ अपनी नज़रो में महान ब्लॉगरो ने कविता पाठ किया.. लेकिन कुछ कवियो का नंबर आने से पहले ही महान आत्मा पंगेबाज की लाश में जान आ गयी.. और वे उठ बैठे.. कलकता निवासी शिव कुमार मिश्रा द्वारा इस पूरे घटनाक्रम की विस्तृत जानकारी देखिए यहा पर..

    इन दिनो टिप्पणी नही मिलने से जहाँ कुछ ब्लॉगर परेशान दिखे.. वही कुछ उत्साहित टिप्पणीकार एक टेस्टिंग पोस्ट पर भी टीपियाते हुए पाए गये..

    हमारे जयपुर के संवाददाता ने बताया की ब्लॉग जगत का एक लोक प्रिय किरदार 'सुदामा' अब अभिषेक जी के कार्टून में भी देखा गया.. खबर मिलने तक महॉल में अफ़रा तफ़री रही.. लोग दूर दूर से कार्टून में सुदामा को देखने आते रहे..उस कार्टून की पहली तस्वीर आप देख सकते है सिर्फ़ हमारे चैनल पर..




    जयपुर से ही मिली एक और खबर के अनुसार वहा की एक ब्लॉगर आइ फोन की वाट लगती हुई पाई गयी.. सूत्रो से पता चला है की आइ फोन के इंडिया में ना चलने की वजह से उनके मालिको ने अब एप्पल का ठेला लगाने की सोची है..

    हमारे अस्सी साल के एक युवा ब्लॉगर को पुलिस ने धर दबोचा, बताया जाता है की वे बिना लाइसेंस के प्रेम कविता करते पाए गये.. हालाँकि पुलिस ने उन्हे दोबारा ये हिमाकत ना करने की वॉर्निंग देकर छोड़ दिया है..

    अभी अभी मिली एक ताज़ा जानकारी के अनुसार अजीत जी अपने साथ 'जाफरन' को लेकर शब्दो के सफ़र पर चल रहे थे.. लेकिन बीच में टोल टॅक्स नही चुकाने की वजह से उनकी गाड़ी को सीज कर लिया गया है..

    वही टिप्पणी ना मिलने से परेशान दो ब्लॉगरो ने टिप्पणी नही करने का फ़ैसला लिया है और वे एक साप्ताह का टिप्पणी अवकाश लेकर होलू लू लू चले गये है.. जाने से पहले हमारे संवाददाता ने जब उनसे पूछा की आप क्यो जा रहे है तो उनका कहना था की हम टिप्पणिया करते है पर हमे कोई नही करता.. हालाँकि सी बी आई जाँच के रिपोर्ट में उनकी टिप्पणिया कई नज़र नही आई है..

    क्या उन ब्लॉगरो की टिप्पणिया आपको मिलती है? इस का जवाब हमे भेजिए एस एम एस के द्वारा.. आप अपने मोबाइल फोन पे हा या ना लिख कर हमे भेजे इस नंबर पर.. नाइन एट टू नाइन ज़ीरो.. रजनी गंधा डबल ज़ीरो.. और यदि आपके फोन में बेलेन्स नही है तो कोई बात नही आप अनूप जी के मोबाइल नंबर पर मिस कॉल भी दे सकते है.. वो आपको पलट कर कॉल कर लेंगे..


    आइए अब चलते है मौसम की जानकारी की तरफ..

    कल दोपहर बिना सर पैर की टिप्पणियो की आँधिया चलती रही..

    बहुत दिनो बाद आसमान सॉफ रहा बाल किशन जी और समीर जी दोनो की ही टिप्पणिया नज़र नही आई..

    विशेषज्ञों का अनुमान है की ये तूफान से पहले की शांति भी हो सकती है..



    आइए अब चलते है बाज़ार की खबरो की तरफ..

    टिप्पणियो का सूचकांक कल शाम 11217.50 तक रहा.. समीर जी के शहर में ना होने की वजह से इसमे 3 फीसदी गिरावट आई है..

    महँगाई की वजह से घर का बजट भी हुआ बंटाधर.. लोग अपनी टिप्पणियो में भी शब्द कम करते दिखे..


    आइए अब चलते है सवाल जवाब की ओर.. जब हमने किए सवाल तो पोस्ट शीर्षक कैसे बने उनके जवाब आइए देखते है..

    प्र : आख़िरी बार सबसे महँगी किताब कब और कौनसी खरीदी थी?
    ऊ : शामिख फराज की लघुकथा : दस रुपए

    प्र : टिप्पणियो के बारे में आपका क्या ख्याल है?
    ऊ : आइ एम लविंग इट

    प्र : ओलंपिक में कौनसा खेल शामिल करना चाहिए?
    ऊ : खेल अंगुली करने का...

    प्र : ताऊ कुछ दिनो से नज़र क्यो नही आ रहे?
    ऊ : ताऊ ने पढा एक भूत का ब्लॉग

    प्र : बताइए कैसा लगा आपको मथुरा का पेड़ा?
    ऊ : धत्त ! ये तो बालूशाही है

    प्र : हिमेश रेशमिया के नये एलबम का नाम क्या है?
    ऊ : ध्रुपद एक समृध्द गायन शैली

    प्र : राहुल उपाध्याय जी की पोस्ट कैसी थी इस बार?
    ऊ : बहुत घटिया, बड़ी अधपकी सी

    प्र: ब्लॉग पर अनाम टिप्पणिया कौन करता है?
    ऊ : मैं

    चलते चलते अहमद फ़राज़ साहब को चिट्ठा चर्चा की और से हार्दिक श्रद्धांजलि.. पढ़िए कुछ पोस्ट जिनमे उनके बारे में लिखा गया है..

    अहमद फ़राज़ (1931 - 2008) : इक शायर अलहदा सा जिसकी कलम अमानत थी आम लोगों की...
    श्रद्धांजलि: अब न वो मैं हूँ न तू है न वो माजी है 'फ़राज़'
    अलविदा!! अहमद फ़राज़

    इसी के साथ आज की चर्चा यही समाप्त होती है.. सभी ब्लॉगर मित्रो से क्षमा याचना सहित,

    फिर मिलेंगे तब तक के लिए नमस्कार!

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    मंगलवार, अगस्त 26, 2008

    संयोग आपकी पोस्ट दिख जाये ऐन चर्चा करते समय

    एहसास

    सुरेशचिपलूनकर ने अपनी बात कही अनिल रघुराज की पोस्ट पर- नरेन्द्र मोदी नाम का “पेट दर्द” और ब्लॉग में “टैग” का बहाना… स्वभाविक रूप से बात जुतियाने वगैरह की भी हुयी। लेकिन जूतों की बात बहुत पुराने अंदाज में वही मखमली और सीधे वाले अंदाज में हुई। सुरेश ने बात रागदरबारी के छोटे पहलवान वाले अन्दाज में की लेकिन रागदरबारी की जूतम पैजार वाली उपमायें नदारद हैं। अनिल रघुराज ने बताया कि उनकी पत्नी गुजरात की हैं। अब संजय बेंगाणी का फ़र्ज बनता है कि अनिल रघुराज की पोस्टें अदब से पढ़ें और नियमित टिपियायें।

    दिनेश द्विवेदी जी की एक पोस्ट के जबाब में पति-पत्नी और परिवार की पोस्ट आयी है। निष्कर्ष निकालने के लिये करमचंद जासूस का दिमाग चाहिये। मेरा तो मानना है अवांछनीय टिप्पणियों से बचने के लिये टिप्पणी माडरेशन लगायें। वर्ना तो यही होगा कि लोग जो मन आयेगा टिपियायेंगे आप उसका रोना रोयेंगे। गाना गायेंगे। लोग अगली पेशकश का इंतजार करेंगे।

    शिवकुमार मिश्र की कुश के साथ मुलाकात मैंने कल ही पढ़ी। कुश की प्रस्तुति हमेशा की तरह जानदार रही। शिवकुमार के जबाब पढ़कर मैं पुलकित व किलकित हो गया। विस्मित , चकित भी हुआ लेकिन ऊ कहेंगे नहीं लेकिन अगर हैट धारण करते होते तो कलैहैं शिवकुमार को आफ़ कर देते।



    फितरत ज़माने की , जो ना बदली तो क्या बदला!
    ज़मीं बदली ज़हॉं बदला,ना हम बदले तो क्या बदला!


    ये पंचलाइन है बिरादर जीतेंन्द्र भगत की। लेकिन काम सब वही किये जो होते हैं-जिन्दगी के लगभग 20 साल हॉस्टल में बिताने के बाद जैसे उम्रकैद से छूटा और बाहर निकलते ही सबसे पहले शादी की। बता रे बिरादर तू बदला क्या? जो येतारलौकिक संचार माध्यम से पर्व मनाने की बात कर रहा है!

    झेलते बहुत दिन से आ रहे होंगे लेकिन काम कैसे करता है लोकतंत्र येदेखिये प्रमोदजी के ब्लाग पर।

    पारुल की ये पोस्ट अधूरी है जब तक ये उसे ध्वनिकास्ट नहीं करतीं।

    डाक्टर टंडन काम की जानकारी दे रहे हैं- होम्योपैथिक साफ़्टवेएर- "होम्पैथ-९ " का हिन्दी संस्करण

    पठनीय लेख: क्या इतना बुरा हूँ मैं माँ?

    मौजै मौज है जी मग्गा बाबा के यहां: शनिदेव के ख़िलाफ़ नारदमुनी का षडयंत्र

    नये ब्लागर


    साठ साल के मंसूरली हासमी साठ किलो के हैं। नये ब्लागर हैं। देखिये उनके जलवे। टिपियाइये।

    अलोका बिहार में सामाजिक जागरूकता, प्रजातंत्र , कला और शोध पर लिखती हैं। हौसला बढ़ाइये।


    एक लाइना



    क्यों नहीं लिखते एक ऐसी नज़्म.. : ध्यान से उतर गया माफ़ करें! अभी लिख के लाते हैं।

    तोलमोल के बोल-छटांक भर की कविताएं : आजकल छटांक का बांट कहां मिलता है जी ?

    जीना सीख लिया है मेरी बेटी ने : अब हम भी उससे सीख लेंगे।

    "मोहल्ला" के अविनाश (नए ब्लागर्स के पालनहार): पालन करवाने के लिये अविनाश के मन के अनुसार चलना जरूरी।

    ईश्वर ही ईश्वर को जला रहा है: लोहा ही लोहे को काटता है जी।

    स्टिंग आपरेशन और न्याय-व्यवस्था - एक री-ठेल पोस्ट : टिप्पणी जो न करवाये।

    नंगे पिता-पुत्र को हिरासत में लेना भारी पड़ा :नंगई की बात ही कुछ और है यार!

    जिसकी रही प्रतीक्षा, केवल आई नहीं वही : ये साजिशन है या रंजिशन जांच जारी है।

    कैनिडियन पंडित-विदेशी ब्राह्मण!!! : और एक किस!

    जागता शहर....मीडिया की ताजा अंगड़ाई: अब बिस्तर छोड़ भी दो भाई!

    पति के लिए, अपनी पत्नी को, कुछ परिस्थितियों में पीटना तर्कसंगत : सर्वे कराओ मन चाहे परिणाम पाओ!

    क्या तू मनुष्य है! : या कोई अनाम ब्लागर!

    एक कमाण्डो से बातचीत : ब्लागिंग जो न कराये!

    ध्यान रखने योग्य कुछ सरल सूत्र :रोना-धोना X बेवफाई X पारिवारिक षडयंत्र X बदले की आग = आपकी मम्मी का फेवरेट सीरियल

    ख़ालीपन को निराश करने के कुछ निजी टोटके: ये खालीपन किस दुकान में मिलेगा जी?

    कि हमारे मन जगें ... : मुंह धो लें, ब्रश कर लें, चाय तैयार है!

    कलंदर का कमाल : आऒ इधर भी चौपट करो हाल!

    आगे भगवान मालिक है... : बहुत काम है भगवान के पास, सबका मालिक बनना पड़ता है।

    ल्युनिग का लात खाया लोकतंत्र.. : देखिये फ़िर तलियाइये। लोकतंत्र को या ल्यूनिक को। अजदक का इसमें कोई दोष नहीं है।

    भिड़ गए नवाज़ और ज़रदारी: पाकिस्तान के साथ यही मुसीबत है- अफ़वाहें अक्सर सच हो जाती हैं।

    संयोग : आपकी नयी पोस्ट दिख जाये ऐन चर्चा करते समय।

    इस बार के नाटक का टॉपिक क्या हो... : नाटक शुरू करो, टापिक में क्या रखा है!

    मैं तुम्हारा आख़िरी ख़त : इसे फ़ाड़कर फ़ेकना मत!

    फ़िल्में, बचपन और छोटू उस्ताद : रविरतलामी आप और हम!

    तसव्वुरात की परछाइयां उभरती है . : रंजू भाटिया के ब्लाग पर!

    मैंने किसी की माँ की... किसी की पत्नी की... नहीं की है। : तो अब कर लो यार! किसकी हिम्मत जो रोके!

    क्या इसे धर्मनिरपेक्षता की मिसाल मान सकते हैं? इसके लिये तो हाईपावर कमेटी बैठानी पड़ेगी।

    अकेली लड़की खुली तिजोरी की तरह होती है: एटीएम का जमाना है कार्ड डालो पैसा निकालो!

    लकड़ी का रावण नहीं रबड़ का गुड्डा :न आर्मी, न अमरीका, न अवाम, साथ छोड़ गए तमाम।


    कुछ ऐसे ही बिखरा हुआ सा : समेट के ब्लाग पर पोस्ट कर दिया।

    कब छोड़ेगे मूर्खता और अन्धविश्वास का साथ: कब्बी नई! साथ जियेंगे साथ मरेंगे।

    मेरी पसन्द


    भय बिन होय न प्रीत
    के भय्या भय बिन होये न प्रीत,
    हमका कौन्हों दे बताये
    प्रीत के कैसन रीत ई भय्या
    कि भय बिन होये न प्रीत?

    लैइके लाठी सरि पै बैठो
    धमकावो- दुत्कारौ-पीटौ
    दाँत पीसि कै खूब असीसौ
    नेह लगाय के गल्ती किन्हौ
    पुनि पुनि दुहिरावौ के भय्या,
    प्रीत के ऐसन रीत है भय्या
    भय बिन होय न प्रीत--

    हमका तुमसे प्रेम अकिंचन
    राधा कीनहिन स्याम से जैसन
    इधर-उधर ना आउर निहारौ
    अब तुम अहिका कर्ज उतारौ
    गाँठ बान्धि कै धयि लयो आज,
    प्रीत के ऐसन रीत है भय्या
    भय बिन होये न प्रीत--

    हिरनिन ऐसन तुम्हरे नैन
    कोयल जैसन तुम्हरे बैन
    बतियाओ तो फूल झरैं
    मुस्काओ तो कंवल खिलैं
    ई सब हमरि भयि जागीर
    सोवत जागत धरिहौ ध्यान,
    प्रीत के ऐसन रीत है भय्या
    भय बिन होये न प्रीत …

    पारुल

    अपनी बात


    कल की चर्चा पर ज्ञानजी बोलते भये: मैं पुन: यह कह दूं कि आपकी ब्लॉगूर्जा (ब्लॉग ऊर्जा) से इम्प्रेस्ड हूं - अत्यधिक।

    डा.अमर ने तुरंत संशोधन किया:
    आप शीघ्र स्वस्थ हों....
    परमपिता ब्लागजगत को ऎसी बेमन की चिट्ठाचर्चा सहने की शक्ति प्रदान करे


    दोनों महानुभावों का मतलब यही है कि ठीक है मेहनत बहुत कर रहे हो लेकिन कायदे की बात नहीं करते। डा.अमर कुमार के झन्नाटेदार कमेंट ब्लाग जगत की निधि हैं। पढ़कर मजा आ जाता है।

    चर्चा में किसी को छोड़ने या लेने का मेरा कोई मन्तव्य नहीं होता। जो दिख गया उसे शामिल कर लिया। गुट-फ़ुट का कोई हिसाब नहीं लेकिन जिनसे परिचय है और जिनके बारे में मैं लगता है कि वे मेरे लिखे का बुरा नहीं मानेगे उनकी पोस्ट शामिल करने का प्रयास करता हूं।

    चर्चा करने में कोई गलतफ़हमी नहीं। अपनी खुशी के लिये करता हूं:

    बचपन में पढ़ा था:

    न वा अरे मैत्रेयी पुत्रस्य कामाय पुत्रम प्रियम भवति
    आत्मनस्तु वै कामाय सर्वम प्रियम भवति।

    अरे मैत्रेयी पुत्र की कामना के लिये पुत्र प्रिय नहीं होता। अपनी ही कामना के लिये सब कुछ प्रिय होता। -याज्ञवल्य

    इति श्री चर्चा पुरा आजस्य अध्याय समाप्त:

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    सोमवार, अगस्त 25, 2008

    उजाला निठल्लों के कब्जे में।

    डायरी


    राधिका ने अपनी हौसला आफ़जाई के लिये शुक्रिया अदा किया। आप क्या कहते हैं? -शुभकामनायें हैं!

    दिनेशजी ने अपनी पोस्ट का सैकड़ा पूरा किया।कहते हैं:
    सो न जाना कि मेरी बात अभी बाक़ी है
    अस्ल बातों की शुरुआत अभी बाक़ी है


    बेजी की बातों की थाह लीजिये| विनय प्रजापति सही ही कहते हैं:बेजी जो भाव प्रदर्शित करना चाहती है, उसमें हमेशा सफल रहती हैं, यही उनकी कविता है!

    पडो़सी नाकामयाब है। ऐसा कहना है अभय तिवारी का। वे बताते हैं बजरियेमैक्स बेबर:
    जो राज्य बलप्रयोग के वैध इस्तेमाल पर इजारेदारी क़ायम रख सकता है वो राज्य एक सफल राज्य है अन्यथा असफल।


    अमित की मजेदार जानकारी भरी पोस्ट देखना न भूलें। कितने समझदार होते हैं पत्रकार!

    निवेदिता रविरतलामी जी की भांजी हैं। उनकी आशीष के साथ शादी में ब्लागिंग का रोल रहा। उन्होंने अपना ब्लाग शुरू किया है। लघु कथा के माध्यम से उन्होंने लड़कियों का दर्द बताया है। देखिये।:
    "मम्मी लेकिन भैया इंजीनियरिंग करेगा तो मै क्यो नही ?"
    "वो लड़्का है , तु लड़की है। तु इंजीनियरिंग करेगी तो तेरे लिये लड़्का भी तो इंजिनियर ढुंढना पड़ेग।इतना पैसा नही है हमारे पास। अब रोना धोना छोड़ ! भैया अभी क्रिकेट खेल आने वाला होगा। उसके लिये चाय बना। "


    ये जरूर सुने: नज़ीर की रचना--कन्‍हैया का बालपन

    ऊपर का चित्र: महमूद दरवेश की डायरी से

    एक लाइना



    देश और शरीर में बड़ा फरक है: जे भली बताई भैया तुमने। हमें तो पता ही नही था।

    कितना नहीं लजाइये,खाली थेथरई में गाल बजाइये।: थेथरई क्या होती है? जानने के लिये इधर आइये!

    बापू कथा में मेरी कथा : घुसा तो दी लेकिन मेहनत बहुत पड़ गयी।

    उजाला : निठल्लों के कब्जे में।

    मैं तब भी आगे बढूंगा : सही है, पीछे होने वाले काम में बरक्कत नहीं है जी!

    चाहा था एक शक्स को:लेकिन वो ब्लागर निकला।

    बाज़ार में करता हूँ अभिनय का होमवर्क : जियो रजा! लगे रहो, किये रहो।

    सात राज्यों की सैर और अलास्का क्रूझ: चलिये फ़टाफ़ट चलिये। जहाज तैयार है।

    प्रेम गली अति सांकरी : एक-एक करके घुसें। हड़बड़ायें नहीं सबको मौका मिलेगा।

    प्‍यार में पसरता बाजार ...; एक दिन बबाल करेगा, हम बता रहे हैं।

    ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन: अभी तक बचपना करता है जी!

    कंट्रेक्ट के वैध-अवैध उद्देश्य और प्रतिफल : सब सामने आ जायेगे जी।

    मेरी पसंद


    सभी लोग बराबर हैं
    सभी लोग स्वतंत्र हैं
    सभी लोग हैं न्याय के हक़दार
    सभी लोग इस धरती के हिस्सेदार हैं
    बाक़ी लोग अपने घर जाएँ

    सभी लोगों को आज़ादी है
    दिन में, रात में आगे बढने की
    ऐश में रहने की
    तैश में आने की
    सभी लोग रहते हैं सभी जगह
    सभी लोग, सभी लोगों की मदद करते हैं
    सभी लोगों को मिलता है सभी कुछ
    सभी लोग अपने-अपने घरों में सुखी हैं
    बाक़ी लोग दुखी हैं तो क्या सभी लोग मर जाएँ

    ये देश सभी लोगों के लिये है
    ये दुनिया सभी लोगों के लिये है
    हम क्या करें अगर बाक़ी लोग हैं सभी लोगों से ज़्यादा
    बाक़ी लोग अपने घर जाएँ.
    संजय चतुर्वेदी

    पोस्टिंग विवरण



    समीरलाल को कोसते हुये सबेरे सवा सात बजे शुरु हुये। इसलिये कि उनको एक दिन चर्चा तो करनी चाहिये। उन लोगों पर भी झुल्लाये जिनके ब्लाग से शीर्षक कापी नहीं हो सकता और हमें देख-देख के टाइप करना पड़ता है। चाय अम्मा ने बना दी। हालांकि हमने कहा -लाओ हम बना लेते हैं। अम्मा बोलीं -चलो भागो। लेकिन दुबारा पी तो खुद गर्म करके। चर्चा की शुरुआत मेरी पसन्द से की। इसके बाद ऊपर का मसाला लिखा। एक लाइना लिखा। फ़ोटो सबसे आखिर में लगाई! पाण्डेय जी की पोस्ट में मौज लेने का कोई स्कोप नहीं दिखा। अफ़सोस। रीता भाभी की संवेदनशील पोस्ट थी भाई। आलोक पुराणिक को एबीसीडी तक नहीं आती जानकर ताज्जुब हुआ और खुशी भी कि हमको तो आती है। पत्नी को फ़ोन करने की सोची लेकिन सोचा आराम से करेंगे। सोचा था कि आठ बजे पोस्ट करके नहाने जायेंगे लेकिन सवा आठ बजे गये। तमाम पोस्ट छूट गयीं लेकिन क्या करें जी! छूटे हुये लोगों को गुस्साने का मौका तो मिला! अब भागते हैं। मौज करें। ज्यादा परेशान हों तो टिपिया दें।

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    रविवार, अगस्त 24, 2008

    नंगे नवाब किले पर घर!

    जन्माष्टमी

    इतवार की खुशनुमा सुबह है। चाय की चुस्की के बीच हम आपसे रूबरू हो रहे हैं। जन्माष्टमी है आज। शुरुआत पारुल के सौजन्य से पंडित जसराज के भजन सुनते हुये करिये। इसके बाद आप पूरी झांकी बालकिशन के ब्लाग पर देख सकते हैं। सभी कृष्ण भक्त बालगोपालों, गोप-गोपियों को जन्माष्टमीं मुबारक।

    निठल्ले तरुण ने कल शनिवार को चर्चा की। अब वे शनिवार को नियमित चर्चा करेंगे। कुश का दिन अभी तय नहीं हुआ है। बाकी चर्चाकार भी अपना चर्चा करने का दिन तय करें भाई! लोग हमी को झेलते-झेलते झींकने लगेंगे।

    कल अनिल रघुराज ने पोस्ट पर टैग लगाने की बात पर सवाल उठाया-कि कुछ ब्लॉगर छटांक भर की पोस्ट पर किलो भर के टैग लगा देते हैं। दीपक भारतदीप ने इस पर अपनी पूंछ फ़टकार दी।

    कुछ साथियों ने टैग और लेबेल के बारे में जानकारी चाही है। देबाशीष ने आज से तीन साल पहले टैगिंग के बारे में निरंतर के लिये लेख लिखा था। क्या आप टैगिंग करते हैं? आप इसे पढ़ेंगे तो टैंगिंग के बारे में काम भर की जानकारी मिल जायेगी। लेबेल के बारे में भी परिचर्चा हुयी थी।

    ज्ञानजी कोलकता से प्रियंकर की संगति करके लौटे हैं। कवि हो गये हैं। कविता ठेलने भी लगे। ये होता है संगति का असर| काजल की कोठरी में कैसो हू सयानो जाये! एक लीक काजल की लागिहै पै लागिहै! ज्ञानजी लिखते हैं:
    कितने सारे लोग कविता ठेलते हैं।
    ब्लॉग के सफे पर सरका देते हैं
    असम्बद्ध पंक्तियां।
    मेरा भी मन होता है;
    जमा दूं पंक्तियां - वैसे ही
    जैसे जमाती हैं मेरी पत्नी दही।


    आलोक पुराणिक आज काम की बात करते हैं:
    व्यक्तिगत हितों के लिए काम करना हो, तो भारतीय श्रेष्ठ काम करते हैं, पर सामूहिक, राष्ट्रीय हित में काम करने का भारतीय रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं है।
    पुराने रिकार्ड बदलें, इस समय तो सिवाय इस शुभेच्छा के कुछ नहीं किया जा सकता है।


    सामूहिक रूप में राष्ट्रीय हित में काम करने और सफ़ल होने का हम लोगों का रिकार्ड चौपट रहा है। हमें नंदलाल पाठक की कविता याद आती है:
    आपत्ति फ़ूल को है माला में गुथने में,
    भारत मां तेरा वंदन कैसे होगा?
    सम्मिलित स्वरों में हमें नहीं आता गाना,
    बिखरे स्वर में ध्वज का वंदन कैसे होगा?


    आपमें से बहुतों ने इंद्रजाल कामिक्स पढें होंने और खूब पढ़े होंगे। अब इसे फ़िर से पढ़ने का मन हो देखिये यहां।

    आभा ने दो दिन पहले कविता लिखी थी। उनकी साध देखिये:
    तुम रहो मेरी आँखो में
    मेरी छोटी-छोटी असुंदर आँखों में...
    मेरी धुँधली मटमैली आँखों में रहो...
    ऐसी है मेरी पुरातन इच्छा.
    अजर अमर इच्छा।


    मगरमच्छ


    दो माह पहले मैं जब डा.प्रभात टण्डन से मिला था तो उन्होंने बताया था कि वे एक पत्र का अनुवाद पोस्ट करेंगे। होम्योपैथिक डाक्टर की गति सेआज कर पाये। बधाई ! किया तो सही।

    लक्ष्मी नारायण गुप्त जी हमारे सबसे बुजुर्ग ब्लागर हैं शायद। अमेरिका में गणित पढ़ाते हैं। पहले वे नियमित लिखते थे। आज काफ़ी दिन बाद कविता लिखे। :
    आज उनसे मिलन की घड़ी आगई
    नज़र झुकने लगी आँख शरमा गई
    मन में शंसय के बादल उमड़ने लगे
    मेरे सुख चैन को वो फिर हरने लगे

    लक्ष्मीजी हमारे शहर के हैं, हमारे स्कूल बी.एन.एस.डी. इंटर कालेज में ही पढ़े हैं। इस लिहाज वे हर तरह से हमारे काबिल बुजुर्ग हैं। जिन लोगों को इस बात पर ताज्जुब है कि हम ज्ञानजी जैसे बुजुर्ग से कैसे मौज ले लेते हैं वे देखें कि हम उनसे भी ज्यादा बुजुर्ग लक्ष्मी भैया से भी मौज ले चुके हैं। उनका प्रेम आख्यान लिख चुके हैं। कल इसे देखा तो मौज आ गयी। आपको भी शायद आये। देखिये नमूना
    बातन बातन बतझड़ हुइगै औ बातन मां बाढ़ि गय रार
    बहुतै बातैं तुम मारत हो कहिके आज दिखाओ प्यार।

    उचकि के बैठे लैपटाप पर बत्ती सारी लिहिन बुझाय,
    मैसेंजर पर ‘बिजी’ लगाया,आंखिन ऐनक लीन लगाय।

    इनकी बातैं इनपै छ्वाड़व अब कमरौ का सुनौ हवाल,
    कोना-कोना चहकन लागा,सबके हाल भये बेहाल।

    सर-सर,सर-सर पंखा चलता परदा फहर-फहर फहराय,
    चदरा गुंथिगे चदरन के संग,तकिया तकियन का लिहिन दबाय।

    चुरमुर, चुरमुर खटिया ब्वालै मच्छर ब्लागरन अस भन्नाय
    दिव्य कहानी दिव्य प्रेम की जो कोई सुनै इसे तर जाय ।

    आंक मूंद कै कान बंद कइ द्‌याखब सारा कारोबार
    जहां पसीना गिरिहै इनका तंह दै देब रक्त की धार।

    सुनिकै भनभन मच्छरजी की चूहन के भी लगि गय आग
    तुरतै चुहियन का बुलवाइन अउर कबड्डी ख्यालन लाग।


    ऊपर का कार्टून अभिषेक की पोस्ट से।

    उनके कुंजी पटल से:



    1." आग लगे, धुंआ लगे, तेरी ठठरी बंधे....मुझे सीट दे, नहीं तो पैसे वापस कर दे मेरे" :पल्लवी

    2.कुछ ब्लॉगर छटांक भर की पोस्ट पर किलो भर के टैग लगा देते हैं।: अनिल रघुराज

    3.'पन्द्रह दुनी तीस तियां पैंतालिस चौका साठ पांचे पचहत्तर छक्का नब्बे सात पिचोत्तर आठे बिस्सा नौ पैन्तिसा झमक-झमक्का डेढ़ सौ !': अभिषेक ओझा

    4.तीन दिनों का सम्मेलन और मानदेय सिर्फ हजार रुपल्ली! ऐसे कहीं हिन्दी बचेगी! राजकिशोर

    5.एक शब्द के सहारे अगर तुम पूरा जीवन आंनदमय होकर निकाल सकते हो तो वह शब्द प्यार है । लियो बाबूटा


    आगे बढ़ने से पहले:

    आप बस्तर की यात्रा कर लें। गाइड हैं। संजीत। साथ में बेजी का खाली जगह भरोअभियान भी देख लें:

    कुछ जगह
    खाली रहती है

    उनका खाली रहना ही...
    उनका अधूरापन ....
    और
    .....
    उनके भरे होने का सबूत भी..


    और देखिये जीतेंन्द्र कौन जुगाड़ में लगे हैं आजकल। अपने भावी बच्चे का नक्शा देख रहे हैं। देखिये शायद आपका भी मन करे।

    अब एक लाइना


    दूसरे का धर्म दुख देने वाला होता है : इसलिये अपने दुख का खुद जुगाड़ करो।

    घमंड : को लिफ़्ट करा दे।

    पन्द्रह पंचे पचहत्तर, छक्का नब्बे... ! : आगे का पहाड़ा भी याद करके सुनाओ।

    कुछ कचोटते प्रश्न…??? : ससुरे ब्लाग पर कब्जा कर लिये।

    कितना आसान है कविता लिखना? : उसी को बांचने में आदमी के दिमाग का दही बन जाता है।

    महिला होने के फायदे : नुकसान कौन गिनायेगा?

    तेरी खुशबू में बसी ई-मेल्स: बदबू मारने लगी है। मेल फ़्रेशनर भेजो।

    देशभक्ति के खोखले नारे लगाने से नहीं मिलते पदक : इसके लिये पोस्ट लिखनी पड़ती है।

    कुछ तो है ही : जिसने ये पोस्ट लिखवा ली।

    इश्क की मुंडेर पर पहुंचे स्विटजरलैंड: जाना पड़ा भाई! यहां मुडेर पर कागा बोल रहा था।

    अपना ख्याल रखियेगा : आप के और आपके अपनों के स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएँ!

    लूट सको तो लूट :क्या लूटें, हम भी तो आपके भाई-बंधु हैं।

    महिलाएँ कतई देवियाँ नहीं, वे तो अभी बराबर का हक मांग रही हैं: निकाल केदे दीजिये उनका हक जहां रखा हो!

    मीडिया की भूमिका तय हो : करो भाई हमारे पास टाइम नहीं है।

    कैलाश पर कुटिया का निर्माण : नंगे नवाब किले पर घर!

    एक गोद सूनी कर भरी गई दूसरी गोद : बहुत झाम है।

    एक बार फ़िर दुविधा : लेकिन हो गया लिखना।

    अंत में लोग ही चुनेंगे रंग: हरेक का अपना अलग होगा।

    ...यही दुनिया है तो फिर ऐसी दुनिया क्यों है! : बदल के दूसरी ले आवैं भैया?

    हम आपके साथ हैं : भगाओगे तो नहीं न!

    भारत मां के यह मुस्लिम बच्चे आज अपनी उस सोच पर सचमुच शर्मिन्दा हूँ !

    हत्या की राजनीति-लघु कथा : दीर्घ कथा में एक्शन होगा।

    कानून का डंडा सिर्फ़ क्या सिर्फ़ गरीबों पर बरसाने के लिये है? : हां भाई, बहुमत का ख्याल तो रखना होगा!

    आप कैसा इस्‍लाम या मुसलमान देखना चाहते हैं : जैसा उपलब्ध हो दिखा दो भाई!

    अतिथि देवता होता है: उसकी धांस के पूजा करो।

    मतलबी दुनिया की बातो में क्या रखा है :जब दिल नहीं मिलते, तो मुलाकातों में क्या रखा है।


    कान्हा, चीन ते आए ओ! : एकाध मेडल चुराई लाते मक्खन की तरह।

    दोस्ती फूलों की बरसात नहीं है भाई : जो छत से टपकती रहे।

    जन्माष्टमी पर जुआ! महिलाएं भी पीछे नहीं : काहे को रहें जी?

    और रेडियो में पिघल गए छ साल के अतीत : और पोस्ट की शक्ल अख्तियार कर ली।

    विक्सित भाषा के बिना विक्सित राष्ट्र? हा हा हा : हे हे हे,हू हू हू, बू हू हू हू ओ माई गाड! डैम इट!!

    आगे बढ़ने से पहले:
    आप बस्तर की यात्रा कर लें। गाइड हैं। संजीत। साथ में बेजी का खाली जगह भरो अभियान भी देख लें।

    मेरी पसंद


    मन को एक कागज पर उतारना
    जैसे झील में नहा लेना
    और फिर से तरोताजा हो जाना
    मन की सारी बातें उसमें रल जाना
    फिर उसे रोज रोज देखना
    और उसमें से अपने को खोजना
    यह सिलसिला चलता रहता है
    ऐसे ही
    एक दिन झील को बुदबुदाते सुना
    ´चलते चलते थक गई हूं
    देखने गयी थी उस पौधे को
    जिसका कद तो ज्यादा नहीं था
    टहनियां भी कम थी
    कोई फूल भी नहीं था
    जैसे किसी ने उसे सींचा ही न हो
    फिर देखा उसकी जड़ों को
    देख के दंग रह गई
    जड़ें थी कि जमीन के सीने पर लिपटी हुई थी
    दूर तक फैली हुई थी
    बिलकुल ताजा और तंदरूस्त
    बरसों से जी रही थी एक कहानी को`
    झील का बुदबुदाना सुन मैं हंस दी
    सोचा तुम भी देखते
    जमीन के सीने पर लिपटी जड़ें
    जो दूर तक फैल चुकी हैं
    तंदरूस्त हैं ताजा हैं
    पर जमीन में दबी हैं।

    मनविन्दर

    पोस्टिग विवरण


    शुरुआत की: सुबह सात पन्द्रह पर।
    पोस्ट की: साढे नौ बजे।
    चाय पी:दो बार।
    डांट खायी: सीधी- एक बार, इशारे से पांच बार।
    बच्चे को पढ़ने को कहा: तीन बार। बैठा एक्को बार नहीं। इरादे का पक्का है जी।
    अपराध बोध:
    टाइम बेस्ट करने का: कत्तई नहीं।
    बोर करने का: काहे को हो जी।
    मजा आया: आया लेकिन लिया नहीं आपके लिये छोड़ दिया।
    इस दौरान तीन मित्रों से बतियाते भी रहे। क्या बतियाये? ऊ सब सीक्रेट है यार। हम न बतायेंगे।

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    शनिवार, अगस्त 23, 2008

    ये बिखरे बिखरे चिट्ठे खत्म ही नही होते

    जी हाँ, मैं हिन्दी चिट्ठों की बात कर रहा हूँ अगर आप मेरी बात से इत्तेफाक नही रखते या आपको लगता है कि मुट्ठी भर चिट्ठों के लिये ऐसा क्यूँ कह रहा हूँ तो सिर्फ एक बार ये करके देखिये। अरे मैंने खुल के अभी भी नही बताया, ये से मेरा मतलब है चिट्ठा चर्चा। एक बार करने में ही शायद आप भी कहने लगेंगे -बिखरे बिखरे चिट्ठे ये खत्म क्यूँ नही होते।

    चलिये आज की ये चर्चा भी ऐसे ही बिखरे बिखरे अंदाज में करें यानि इन चिट्ठों की कड़ियाँ कुछ ऐसे बिखेरें कि इनके बीच कुछ लिंक ही ना बन पाये। सबसे पहले जरा इस दृश्य में नजर डालते हैं -

    जरा सोचिये आप घर में आराम से बैठे हों और आम खाने के शौकीन आप को फेरी वाले की आवाज सुनायी दे "आम ले लो", क्या करेंगे आप? जाहिर है झटके से उठेंगे और दौड़ पड़ेंगे आम लेने लेकिन जब देखेंगे कि ठेली पर आम हैं ही नही, टमाटर ही टमाटर हैं तो क्या हाल होगा आपका? ऐसा ही कुछ हमारे साथ हुआ जब हमने टाईटिल पढ़ा - खबरदार…यदि नरेन्द्र मोदी का नाम लिया तो… जाकर देखा तो चिपलूनकर ने ठेली पर कुछ और ही सजाया है।

    मेरी समझ से हमारी चर्चा टोली के नये नये सदस्य हिंदी के पहले ऐसे ब्लोगर हैं जो घूस देकर टिप्पणी लेते हैं, ये बता दूँ घूस का मतलब सिर्फ पैसा नही होता। कुछ लोग एक प्याला चाय पीकर ही काम कर देते हैं। अब ये सिद्ध करने जा रहे हैं कि जैंटलमेन भी घूस लेते हैं, किस तारीख को लेंगे वो आप यहाँ जाकर देख सकते है।

    अब थोड़ा वफादारी पर बात करते हैं, अगर आप कुछ सोचने लगे हैं तो बता दूँ - वफादारी कोई मुफ्त में नहीं मिलती जो लोगे, अगर शक हो रहा है तो ये पढ़िये -
    सेठ ने मजदूर से कहा
    'तुम्हें अच्छा मेहनताना दूंगा
    अगर वफादारी से काम करोगे'
    मजदूर ने कहा
    'काम का तो पैसा मै लूंगा ही
    पर वफादारी का अलग से क्या दोगे
    वह कोई मुफ्त की नहीं है जो लोगे

    वफादारी के साथ साथ आपको काम की महत्ता भी पता चल गयी होगी।

    अब वक्त हैं एक मजेदार खबर सुनाने का, और वो खबर है - गुजरा हाथी सुई की छेद से

    कपड़े पर लगा दाग तो आप धो सकते हैं लेकिन इस्लाम पर आतंकवाद का दाग ये कैसे धोया जा सकता है कोई बता सकता है क्या? देखिये तो प्रेम शुक्ल क्या कह रहे है-
    "भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश का मुसलमान राजनीतिक सीमा से उपर उठकर अहले इस्लाम के बैनर तले एक नजर आता है. दूसरी ओर हिन्दू समाज जाति, भाषा, प्रांत और क्षेत्रवाद की जटिल सीमाओं से अपने आप को कभी मुक्त ही नहीं कर पाया"


    शायद ये सभ्यता का असर है जो कपड़े छोड़कर कहीं और दाग लगाये जा रही है, हो भी क्यों ना आखिर सभ्यता के साथ अजीब नाता है बर्बरता का
    मनुष्य ने संदेह किया मनुष्य पर
    उसे बदल डाला एक जंतु में
    विश्वास की एक नदी जाती थी मनुष्यता के समुद्र तक
    उसी में घोलते रहे अपना अविश्वास
    अब गंगा की तरह इसे भी साफ़ करना मुश्किल
    कब तक बचे रहेंगे हम इस जल से करते हुए तर्पण


    जैंटलमेन से मिलने पर जो मानसिक हलचल होगी क्या आप बता सकते हैं कि वो असीम प्रसन्नता की वजह से होगी या गहन विषाद की वजह से -
    हम लोगों ने परस्पर एक दूसरे की सज्जनता पर ठेलने की कोशिश की जरूर पर कमजोर सी कोशिश। असल में एक दूसरे से हम पहले ही इतना प्रभावित इण्टरेक्शन कर चुके थे, कि परस्पर प्रशंसा ज्यादा री-इट्रेट करने की आवश्यकता नहीं थी। वैसे भी हमें कोई भद्रत्व की सनद एक दूसरे को बांटनी न थी। वर्चुअल जगत की पहचान को आमने सामने सीमेण्ट करना था। वह सब बहुत आसान था। कोई मत भेद नहीं, कोई फांस नहीं, कोई द्वेष नही। मिलते समय बीअर-हग (भालू का आलिंगन) था। कुछ क्षणों के लिये हमने गाल से गाल सटा कर एक दूसरे को महसूस किया।


    प्रीती बङथ्वाल उसे ढूँढ रही जो उनका नाम लिखा करता था, हमने उनका नाम इस चर्चा में जरूर लिया है लेकिन साफ कर दें वो खुशनसीब हम नही। प्रीती का कहना है -
    वो आईना,
    जो मेरी ख़ामोशियों को पढ़ता था,
    अपने हाथों पे जो,
    मेरा नाम लिखा करता था,
    जाने कहां गई ,वो,
    लकीरें मेरे हाथों से,
    जिन लकीरों को,
    वो हर शाम पढ़ा करता था।

    वहीं दूसरी ओर अपराजिता को शिकायत है कि अब खत नही आता। किस्मत का भी खेल देखिये साहेबान इनको खत नही आ रहा और शिवजी के साथ लोगों का खत आदान प्रदान का सिलसिला सा चल पड़ा है, यकीन नही आये तो शिवजी की चिट्ठी का जबाब पढ़िये, इसमें एक जगह लिखा है -
    जो जैसा दिखता है वैसा होता नहीं। जैसा होता है वैसा दिखता नहीं। हर आदमी हैंडपम्प हो गया है- दो हाथ जमीन के ऊपर, सत्तर हाथ नीचे।

    आदमी को हैंडपम्प कहे जाने से शायद आप सोच रहे होंगे कि कहाँ खो गई जिन्दगी, अब ये तो राधिका ही बता सकती हैं जिनका कहना है -
    एक समय था जब इस धरती पर इन्सान रहा करता था,वह अपनों से मिलता,उनके सुख दुःख बाटता,उनकी खुशियों में झूमता,गमो में रोता,वह निसर्ग से बाते करता,उसके पास खुदके लिए थोड़ा वक़्त होता,जब वह ख़ुद से बाते करता,अपने शौक पुरे करता,वह गुनगुनाता,गाता,नाचता,चित्रकारी करता,कभी कोई कविता रचता,अपनों के साथ बैठकर खाना खाता। कभी वह इन्सान इस धरती पर रहता था।

    ट्रैन पर चढ़ते इन लोगों को देख कर आप लोगों का तो पता नही लेकिन मुझे जरूर लग रहा है कठिन है डगर इस पनघट की, संजय का मानना भी यही है तभी तो वो कहते हैं -
    मजहब के चश्में से देखने वाले न भूले की हिन्दुओं के सबसे बड़े धार्मिक नेता शंकराचार्य को ही जेल हुई थी

    वहीं पनघट की चिंता से दूर अभिषेक का मानना है कि आने वाले वक्त में लंगोट ज्यादा बिकेंगे क्योंकि कुश्ती मे पदक जो मिला है वह‍ीं तरूश्री का कहना है कि हैलमेट बिकने की संभावना भी उतनी ही प्रबल है क्योंकि मुकेबाजी में पदक मिला है।

    खमा घणी बता रहे हैं कि कैसे किसी की बिपाशा से मिलने की आशा चीन में निराशा में बदली लेकिन फिर भी हम नीतीश की कही बात से ज्यादा इत्तेफाक रखते हैं जिनका कहना है विजेंदर तुम जीत गये हो

    और अगर आप एकता कपूर के धारावाहिक के अंतिम एपिसोड कब होगा इसका रोना रोते हैं तो बालेन्दू की भी सुन लें जो बता रहे हैं कि पाकिस्तान के धारावाहिक का अंतिम एपीसोड भी अभी बाकी है

    अंधेरे में रौशनी की किरण टप्पू का गर्ल्स स्कूल, आप भी जा कर देखें

    अनिल बता रहे हैं लोग और उनके नेता कैसे हों -
    किसी भी व्यक्ति को उसकी राष्ट्रीयता से नहीं बल्कि उसकी काबिलियत और नीयत के हिसाब से पहचानें।

    सुभाष कांडपाल, प्रसून लतांत की लिखी एक अच्छी बात बता रहे हैं -
    उत्तराखंड की लड़कियों ने शादी के लिए आए दूल्हों के जूते चुरा कर उनसे नेग लेने के रिवाज को तिलांजलि दे दी है. वे अब दूल्हों के जूते नहीं चुराती बल्कि उनसे अपने मैत यानी मायके में पौधे लगवाती हैं. इस नई रस्म ने वन संरक्षण के साथ साथ सामाजिक समरसता और एकता की एक ऐसी परंपरा को गति दे दी है, जिसकी चर्चा देश भर में हो रही है।


    पीडी मिला रहे हैं समीर लाल के कवि गुरू से, देखिये -
    एक डाल से तू है लटका,
    दूजे पे मैं बैठ गया..
    तू चमगादड़ मैं हूं उल्लू,
    गायें कोई गीत नया..

    घाट-घाट का पानी पीकर,
    ऐसा हुआ खराब गला।
    जियो हजारों साल कहा पर,
    जियो शाम तक ही निकला

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    गुरुवार, अगस्त 21, 2008

    यार तुम पोस्ट लिखो, आत्महत्या लोग अपने आप कर लेंगे

    परसों कुश की चर्चा के बाद से चिट्ठाचर्चा के पाठक दोगुने हो गये। अब उनसे लोगों की आशायें हैं कि वे नियमित अपने जलवे दिखायें। पंगेबाज खांसी से हलकान हैं। ज्ञानजी कलकतिया लफ़ड़े की जांच करने के लिये घटनास्थल के लिये रवाना हो गये हैं। शिवकुमार मिश्र ने पत्र पुराण आगे बढ़ाते हुये अनूप भैया को जबाबी खत लिखा है। अब देखना है वो क्या जबाब देते हैं।

    प्रमोद सिंहजी वैसे ही पटकनी खाये पड़े थे मुम्बई में लेकिन बारिश में घुटना भी तुड़वा बैठे। आह से उपजा होगा गान की तर्ज पर ये दर्द निकला उनका।

    चवन्नी चैप पर आजकल सिने अभिनेताओं के इंटरव्यू आ रहे हैं। आज बिपासा से मिलिये। कहती हैं- जो काम मिले, उसे मन से करो: अब जिसके पास काम ही न हो वो क्या करे? आयोडेक्स मले, काम पे चले?

    अनिल रघुराज ने अनंतमूर्ति का लेख अनुदित करके पेश किया पठनीय लेख।

    वसूली एजेंटवसूली एजेंट

    गुलाबी शहर जयपुर के बासिन्दे अभिषेक नित-नये कार्टून पेश करते हैं। आज उनकी निगाह में वसूली एजेंन्ट आ गये। आप भी बनियेगा?

    दीपक भारतदीप समझाते हैं हिट की परवाह की तो ब्लाग पर लिखना कठिन होगा:
    अंतर्जाल पर बेहतर साहित्य लिखने वालों का भविष्य उज्जवल है पर उसके लिये उनको धैर्य धारण करना होगा। इन फोरमों पर अपने ब्लाग अवश्य पंजीकृत करवायें पर हिट के लिये आम पाठक की दृष्टि से ही लिखने का विचार करें। ब्लाग लेखकों से संपर्क रखना आवश्यक है क्योंकि इनमें कई लोग तकनीकी रूप से बहुत कुछ सीख गये हैं और उनके ब्लाग पढ़ते रहना चाहिए।

    लेकिन लोगों की समझ में कहां आता है जी?

    समीरलाल जी आज मास्टरी पर उतारू होकर अंदर की बात बताने लगे।

    रक्षंदा ने अपनी बात साफ़ करते हुये कहा-
    हम एक देश यानी एक घर में रहते हैं, अगर हम ही एक दूसरे को नही जानेंगे और समझेंगे तो क्या कोई दूसरा देश आकर हमें समझेगा?

    लेकिन--खुशी हो, गम हो या गुस्सा...कभी एकतरफा नही होता, एक तरफा हो तो इंसान थक जाता है और फिर उसे कहीं ना कहीं अपने नज़र अंदाज़ किए जाने का अहसास ज़रूर होता है

    नही....आप बुरा बड़ी जल्दी मान जाते हैं, लेकिन सच्चाई को स्वीकार नही करते, अरे , हम करीब आना चाहते हैं, आप को अपने करीब लाना चाहते हैं लेकिन आप आने तो दें..हम जितना करीब आयेंगे,दूरिया उतनी ही मिटेंगी,ये त्यौहार दूरियां मिटाते हैं, एक दूसरे के करीब लाते हैं, और जब हम एक हैं तो एक होने से डरते क्यों हैं?


    चलिये इस खूबसूरत बात पर एकजुट होकर एक लाइना पढ़ते हैं:

    एक लाइना


    जापानियों की प्रगति का राज : देशप्रेम!

    ऐड्डी, हैरी और सिड भी टूंगते रह जाएंगे! : इन चोंचलों के समुद्र में।

    बुढ़ापा और मैं : अक्सर बातें करते हैं।

    बीती रात रस्किन बॉण्ड मेरे सपने में आए : बाइट दी और कहा हमारे बारे में भी ब्लागिंग करो जी!

    पब्लिक की मांग पर -रात की हसीना: पब्लिक की मांग बड़े काम की चीज है!

    श्रम संस्कृति का अपमान है बिहरी को भिखारी कहना : सत्यवचन!

    कुछ करिये इससे अच्छा मौका न मिलेगा: हम करेंगे तो फ़िर ऊ लोग का करेंगे।

    मेघा छाए आधी रात:बैरन बन गई निंदिया !

    एक चिट्ठी अनूप भइया के नाम : लेकिन टिपिया सब दूसरे लोग रहे हैं।

    जाने कितने मीत होंगे...! : सच में, गिनना और हिसाब रखना आफ़त है।

    ओलंपिक में एक खास दिन : बीत गया कल।

    दोराहे पर पाकिस्तान.. : चौराहे तक भी जायेगा।

    एक अकेला व्यक्ति पहाड़ तोड़ सकता है ? : हां अगर हौसला हो!

    पतझड़ के बाद का दुख : झेलोगे?

    महाकवि निराला की कविता : चर्खा चला : खेती बाड़ी होने लगी।

    कुछ नया करना तो चाह रही थी लेकिन .... : लेकिन हो न सका।

    रायपुर से धमतरी जाने वाला ट्रक उड़ने को तैयार है : यात्रीगण कृपया अपना स्थान ग्रहण करें।

    कौन सी दवा ले रहे हैं...इस का ध्यान तो रखना ही होगा !!: वर्ना और दवायें लेनी पड़ेंगी।

    जाने होगा क्या?
    : जो होगा देखा जायेगा।

    समयचक्र के उड़ जाने का मुझे काफी दुःख है ?: हम भी दुखी हैं जी।

    हिट की परवाह की तो ब्लाग पर लिखना कठिन होगा-संपादकीय :फ़िट बात!

    तपत कुरु भ‍इ तपत कुरु बोल रे मिट्ठु तपत कुरु।

    मेरी डायरी के पुराने पन्ने : यादों को ताजा करते हैं।

    मेरे कन्ने माइंड रीडर है.: इसका अचार डालने की तरकीब खोज रहा हूं।

    हरे हरे घाव हरे!..: मलहम-पट्टी से इश्क करें।

    पत्रकार सुदामा, शिष्य सुदामा : माने डबल रोल चोचला।

    यह मीडिया क्‍या वही चाहता है, जो पुलिस चाहती है? : बताते काहे नहीं जी!

    आज का आदमी केवल पॉवर से चलता है: पावरकट है, आदमी सो गया।

    तुम हो जाओ ग्लोबल, अपन तो ‘कूपमंडूक’ ही भले: यहीं मजे में हैं हम!

    साहित्य अकादमी मे बे-कार जाने का अंजाम:अर्से बाद एक पोस्ट!

    पार्टनर आपकी बीट क्या है : और उसे करते कैसे हैं?

    आत्‍महत्‍या करूं मैं क्‍या : यार तुम पोस्ट लिखो, आत्महत्या लोग अपने आप कर लेंगे।

    अंदर की बात : आखिर बाहर आ ही गयी।

    डायमेंडस आर अ गर्ल्स बेस्ट फ्रेंड {?} :सच में? हाऊ स्वीट!

    मेरी पसन्द



    देश में सब कुछ कमल के लिए हो रहा है
    पहले तो लोग समझते रहे
    यह एक अच्छी योजना है
    क्योंकि कमल एक लड़के का नाम है जो अभी बेरोज़गार है
    उसे नौकरी मिल जाएगी

    फिर पता चला
    कि कमल कोई लड़का नहीं है
    देश में चारों तरफ कमल की ही चर्चा है
    पहले तो लोग समझते रहे कमल एक सिनेमा टाकीज़ है
    जिसकी दीवार अचानक गिर गई रात के शो में
    और सैकड़ों लोग दबकर मर गए
    फिर पता चला चला कि कमल नाम की कोई टाकीज़ नहीं

    देश में आजकल सभी स्कूलों में
    कमल के बारे में सवाल पूछे जा रहे हैं
    पहले तो बच्चे समझते रहे कि कमल एक राष्ट्रीय फूल है
    तालाब में कीचड़ में खिलता है
    लेकिन बाद में पता चला कि कमल फूल का नाम भी नहीं है
    तो फिर कमल क्या है?
    जिसके लिए रात-दिन इतना प्रचार किया जा रहा है
    कि जहां जहां झोपिड़यां थी शहर में
    वहां कभी घास थी
    और घास का ऐतिहासिक महत्व है
    इसलिए सभी झोपिड़यों को तोड़कर
    घास पैदा की जाएगी

    मंहगाई के बोझ तले दबे लोगो
    सावधान रहना
    कमल एक विचार है
    जो आज़ादी के बाद तेज़ी से फैल रहा है
    पहले यह कभी दीपक था
    जिसके तले अंधेरा जगजाहिर है !

    विमल कुमार
    सौजन्य: शिरीष कुमार मौर्य

    आज की तस्वीर


    सफ़र से
    और चोखेरबाली से।
    सफ़रसफ़र



    चोखेरबाली सेचोखेरबाली से

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    बुधवार, अगस्त 20, 2008

    यार ये भाषा तुम अपने ब्लौग के लिये ही बचा कर रखा करो.

    चिट्ठाचर्चा में कुश भी जुड़ गये हैं। कल उन्होंने धांसू च फ़ांसू शुरुआत की। पंगेबाज भी जल्दी ही जलवा बिखेरने के लिये सज-धज रहे हैं। पुराने चर्चाकार भी आने के लिये मन बनायें। समीरलालजी से खासतौर से कहना है कि वे आलस्य का परित्याग करें। ब्लागजगत के बापू आशाराम बन के चिट्ठाचर्चा रोज करने का खाली-मूली उपदेश देने की बजाय कुछ नियमित मेहनत करने की सोंचे। मेहनत से जी चुराना अच्छी बात नहीं है जी।

    मुशर्रफ़मुशर्रफ़
    मियां मुशर्रफ़ शायद अपनी ज्यादा फ़जाहत न कराना चाह रहे हों इसलिये उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया। इस पर कार्टूनियाते हुये अभिषेक ने लिखा: मुशर्रफ़! कैसे फ़ौजी हो?बिना लड़े ही हथियार डाल दिये। (देखें बगल का कार्टून)

    ज्ञानजी बीमार थे इस लिये ब्लागिंग से दूर थे लेकिन भाभीजी उनके बारे में बेहतर जानती हैं। उन्होंने समझाया- ब्लागिंग से दूर हैं इसलिये तबियत नासाज है। मनचाही सलाह मिलते ही ज्ञानजी रागदरबारी गाने लगे:-
    गालियां इमोशंस को बेहतर अभिव्यक्त करती हैं। गालियां बुद्धि की नहीं रक्त की भाषा बोलती हैं। बुद्धि का आटा ज्यादा गूंथने से अगर अवसाद हो रहा हो तो कुछ गालियां सीख लेनी चाहियें - यह सलाह आपको नहीं, अपने आप को दे रहा हूं। यद्यपि मैं जानता हूं कि शायद ही अमल करूं, अपने टैबूज़ (taboo - वर्जना) के चलते!


    ज्ञानजी को गालियों के सामाजिक महत्व पर और चिन्तन करना चाहिये। अस्वस्थता में चिन्तन अच्छी दवा साबित होती है।

    रक्षंदा शबेबरात की जानकारी देते हुये बताती हैं :

    शब-ऐ-बारात बहुत ही ख़ास दिन है. जो परसों मनाया गया.
    ये इमाम-ऐ-ज़माना (12th इमाम) हजरत मेहदी आखिर-उज़-जमां अलाहिस्सलाम की पैदाइश का मुबारक दिन है. जो निहाइत ख़ुशी का दिन है.
    इस मौके को दीवाली की तरह मनाते हैं. वैसे ही घरों को मोम बत्तियों से सजाया जाता है. पटाखे आतश बाज़िओं से माहौल चरागाँ सा हो जाता है. कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं. जिन में तीन चार तरह के हलवे, जैसे चने कि दाल का हलवा, सूजी का हलवा, मैदे और मूंग दाल का हलवा, पूरी पराठे, चिकन पुलाव खीर बनायीं जाती है. फिर नज़र दिया जाता है.


    जो दुआ पढी जाती है इस दिन उसका मतलब होता है:
    ऐ इमाम-ऐ-ज़माना मेरे मुल्क के लोगों को हर आफत और मुसीबत से दूर रखियेगा. इस मुल्क में सुकून और खुशियाँ हों, तरक्की के साथ साथ मेरे देश के लोगों को बे राह रवी और बुराइयों से दूर रखियेगा(आमीन)




    पल्लवी एक बेहतरीन गजल पेश करती हैं:
    बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
    जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह

    पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
    खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह


    रश्मि प्रभा का कहना है:
    कॉफी और मौसम तो बस बहाना है-
    साथ बैठने का,
    रिश्तों की खोई गर्मी को लौटाने का.........
    बादल तो फिर चले जायेंगे,
    बिजलियों की कड़क,
    बारिश की फुहारें थम जाएँगी,
    मुमकिन है कॉफी ठंडी हो जाए!
    पर अगर हाथ थाम लो
    तो जीवन की राहें आसान हो जाएँ
    और कॉफी की खुशबू साथ हो जाए....


    मानसी आजकल फ़ुरसत में हैं। तभी वे लड्ड बांट रही हैं, सजी-धजी सुन्दर शाम को देखकर गुनगुना रही हैं, और कुछ नहीं मिल रहा है तो भटकाव का शिकार हो रही हैं:
    कई परत गहराई से उठ कर
    छलावे के ही पास भटकी
    संसार छोड़ संसार पा लेने
    किसी अनजाने अधर अटकी
    खुशी अपनी सीमा आँकने
    मचल पड़ी


    मननीय पोस्ट
    : 2012 में प्रलय होना असंभव

    विचारणीय पोस्ट: अँग्रेज भगवान

    सुन्दर सलाह: अपने ब्लॉग को और बेहतर बनायें

    बधाई: कबाड़खाना की पांच सौवीं पोस्ट पर।

    अब कुछ एक लाइना


    एक चिट्ठी शिवजी के नाम : फ़ोकट का टाइम वेस्ट!

    इश्क -मुश्क आग का दरिया ओर छापामार सेना ... : का संयुक्त हमला डा.अनुराग पर।

    त्राहि माम गुरुदेव समीर जी मैं आयन्दा ब्लागरी नही करूंगा !

    कैसे-कैसे नर्क...? ...पुराण चर्चा : पढ़ के अपना नर्क अपने आप चुनिये।

    3भाई~ 3गीत : बच गये कौरव चले गये। वे होते तो १०० भाई ~ गीत होता।

    ये रहे अहमदाबाद विस्फ़ोटों के गद्दार: पहचान में नहीं आ रहे! इससे ज्यादा आसानी से हम अनाम ब्लागर पहचान लेते हैं।

    हे भगवान! तुम पर लानत है:तुमने अपना ब्लाग तक नहीं बनाया!

    महान पंगेबाज की अंतिम यात्रा : पहला रिहर्सल शुरु!


    है राम के वजूद पे हिन्दुस्तां को नाज़ : वाह भई मियां हिन्दुस्तान ये तो बड़ा नेक जज्बा है। बनाये रखो।

    बस उस से कुछ ज़्यादा "इंसान" होता: फ़िर तो ऐश कटती गुरू।

    अब सवाल नहीं केवल जबाब चाहिये।

    मुसलमानों को घर क्यों नहीं मिलता? आरोप चेप देना आसान होता है।

    बादल ले रहे अंगड़ाई : जरा धीरे से मेरे भाई!

    ये कोई ब्लौगर मीट नहीं, बस यारों की महफ़िल थी : अच्छा तो क्या महफ़िल में रतजगा भी हुआ था?


    शबाना जी, तेरा मेरा दर्द ना जाने कोई : आइये हम एक-दूजे का दर्द पढें , आगे बढें।

    सहजता,कहीं मोल मिलती है क्या?: मिले तो हमारे लिये भी तौला लेना भैया किलो-दो किलो।


    भगवान्" का शाब्दिक अर्थ क्या है?: बताओ अगर कोई भगवान का आदमी मौजूद हो तो।

    भविष्यद्रष्टा : एक चिरकुट सी परचून की दुकान पर।

    सस्ते में टपकाना :हो आलोक पुराणिक से सम्पर्क करिये। उचित दाम, बाजिब काम- मोबाइल नं:98100-18799

    2012 में प्रलय होना असंभव : इसलिये मस्त रहें तथा चैनलों व अखबारों की प्रलय भरी बेवकूफियों का आनंद लें।

    ज़रूरी है नापजोख और मापतौल... : इंचीटेप और बांट बेचने वालों के पेट पालने के लिये।

    "महान पंगेबाज की अंतिम यात्रा " सुदामा की डायरी से : ई ससुर रोज अंतिम यात्रा करता है।

    क्षणिकायें: अच्छा!! दिखाओ!

    औरत होने की सज़ा क्या है ?:देखिये, आपके सामने कच्चा माल ही हाज़िर है!


    तू जिस रोज उसे समझ जाएगा।: बहुत पछतायेगा, सर सजदे में झुक जायेगा।

    क्या शामें भी उदास होती हैं? :यार ये भाषा तुम अपने ब्लौग के लिये ही बचा कर रखा करो..

    क्षमा : मांगकर शर्मिन्दा न करें , लिखती रहें।

    बढती हुई यौनिक गंदगी! : से बचने के लिये शास्त्रीजी से परामर्श लें।

    कैलाश पर निर्माण पूर्णता की और !: अपने लिये जगह बुक करायें, पहले आयें-पहले पायें।

    पत्रकारों की फौज करेगी मौज : फ़ौज ज्वाइन करिये।

    छत पर खेले : अरे वाह, अले लेले।

    टापलैस बाइक परेड को मिली हरी झंडी : टापलेस लेकिन हेलमेट लगा के।

    ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत होती है..:एक कातिल हसीना की तरह|

    देवताओं का नगर--रॉक गार्डन:घूमिये रंजना के साथ|

    मेरी पसन्द


    नष्ट कुछ भी नहीं होता,
    धूल का एक कण भी नहीं,
    जल की एक बूंद भी नहीं
    बस सब बदल लेते हैं रूप

    उम्र की भारी चट्टान के नीचे
    प्रेम बचा रहता है थोड़ा सा पानी बनकर
    और अनुभव के खारे समंदर में
    घृणा बची रहती है राख की तरह

    गुस्सा तरह-तरह के चेहरे ओढ़ता है,
    बात-बात पर चला आता है,
    दुख अतल में छुपा रहता है,
    बहुत छेड़ने से नहीं,
    हल्के से छू लेने से बाहर आता है,

    याद बादल बनकर आती है
    जिसमें तैरता है बीते हुए समय का इंद्रधनुष
    डर अंधेरा बनकर आता है
    जिसमें टहलती हैं हमारी गोपन इच्छाओं की छायाएं

    कभी-कभी सुख भी चला आता है
    अचरज के कपड़े पहन कर
    कि सबकुछ के बावजूद अजब-अनूठी है ज़िंदगी
    क्योंकि नष्ट कुछ भी नहीं होता
    धूल भी नहीं, जल भी नहीं,
    जीवन भी नहीं
    मृत्यु के बावजूद

    प्रियदर्शन

    आज की तस्वीरें:


    फ़ूलफ़ूल

    पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
    खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह

    शाम आई धीरे से...शाम आई धीरे से...
    सजधज सुंदर संध्या आई,और गुनगुना उठा समां से

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