
मुझे ताज्जुब है कि हिन्दी ब्लागमंडल में इस घटना पर अब तक कोई चर्चा नही हुई है (या शायद मेरी नजर नही पडी)। गुजारिश करूंगा की अगर आपको ये गलत लगता है तो इसके विरोध में अपने ब्लाग पर एक पोस्ट जरूर लिखें।
इस बारे में लिखी गयी पोस्टों के लिंक देशी पण्डित में मौजूद हैं!
इस मसले पर एक अलग बात बताते हुये पोस्ट लिखी गयी है:
बरखा दत्त एक बार फिर से निशाने पर हैं। मामला मुंबई के आंतकी हमलों के बाद का है। नीदरलैंड के एक महाशय मि. कुंते ने एनडीटीवी और बरखा पर सवाल उठाया दिया था कि इन मीडियावालों की वजह से कई जाने गईं। बात यहां भी खत्म नहीं हुई। मि.कुंते ने बरखा दत्त के लिए बकायदा गालियों का इस्तेमाल भी किया। फिर क्या था। पहुंच गया मि. कुंते को नोटिस। मसला अब शुरु होता है। सप्तरंग ब्लॉग पर जब कल इसी संबंध में पढ़ने को मिला तो यह जानकर थोड़ी तकलीफ हुई कि यदि कोई आपको गाली दे तो क्या आप उसकी आरती उतारेंगे या फिर कोई कड़ा कदम उठाएंगे। मैं मि. कुंते को नहीं जानता हूं लेकिन उनकी भाषा से उन्हें कम से कम सभ्य तो नहीं कहा जा सकता है। आप जब बरखा के लिए गालियों का प्रयोग कर सकते हैं तो फिर आपको क्या समझा जाए?
चिट्ठाकार चर्चा में आज अरविन्द मिश्रजी ने सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी के बारे में लिखते हुये लिखा है:
सिद्धार्थ जी अभी तक पूरी तरह युवा हैं -इस बारे में मेरी नेक सलाह है कि कोई उन्हें इस बारे में तो कतई न आजमाए और सिद्धार्थ जी किसी को भी अभी इस कच्ची युवावस्था में तो कदापि आजमाने को मौका ना ही दें ! अनुभव बताता है कि ज्यादातर इमोशनल लफडे इसी उम्र में परवान चढ़ जाते हैं और जिंदगी भर सालते रहते हैं .डर तो इसी बात का है कि सिद्धार्थ भाई कुछ ज्यादा ही डैन्जर जोन में हैं -उम्र का अल्हड़पन , गजटेड सरकारी नौकरी -साफ्ट टार्गेट तो वे वल्लाह हैं हीं ! खुदा बचाए ! लेकिन मानना होगा अपनी तल्ख़ लेखनी से वे इस मामले में अनजान रहकर भी लोगों को पास फटकने का मौका न देकर एक तरह से अपनी लक्ष्मण रेखा बनाए हुए हैं ! (यहाँ लिखना कम समझना ज्यादा ! )
यह बेहतरीन लेख शुरू होते ही खत्म सा हो गया। लेख पढ़कर यह भी पता चलता है कि जब व्यक्ति दूसरे के बारे में कुछ कह रहा होता है तो बहुत कुछ अपने बारे में भी कह रहा होता है!
टेलीविजन चैनलों में आजकल हंसी के कार्यक्रम इत्ते हैं कि देखकर रोना आता है। ज्यादातर हंसाने के लिये में द्विअर्थी संवाद
का सहारा लिया जाता है। अनिल पुसदकर ऐसे ही एक कार्यक्रम के बारे में लिखते हैं:
चैनल बदलते-बदलते बच्चों के एक कार्यक्रम पर मैं रूक गया।सोचा देखूं देश की भावी पीढी क्या कर रही है।एक बच्चा स्टेज पर दो लोगो की टेलिफ़ोन पर बातचीत सुना रहा था।गलत नंबर लगने के कारण वो कार के विज्ञापन दाता और बेटे के लिये बहु तलाश रहे सज्जन के बीच हूई बातों को बता रहा था।बाते क्या थी द्विअर्थी अश्लिल संवाद थे । वो बच्चा द्विअर्थी संवादो के मामले मे दादा कोंड़के को मात दे रहा था और लोग तालिया बज़ा रहे थे।मज़े की बात देखिये मनोज बाजपेई सरीखे कलाकार ने उस पूरे नंबर दे दिए।
अनुराग अन्वेषी अपनी मां के बारे में लिखते हुये उनकी जिजीविषा की कहानी सी कहते हैं :
11 नवंबर को जब मां एम्स में ऑपरेशन थिएटर के सामने बैठी थी, एक डॉक्टर ने मां की ओर इशारा करते हुए दूसरे से कहा 'इनका ऑपरेशन डेंजरस है।' इस बात को मां ने सुन लिया। घर आकर उसने हमसे इस संदर्भ में पूछा। हमसब ने बात को हंस कर उड़ा दिया। मैंने मां से कहा कि तुमने गलत सुना होगा, डॉक्टर कह रहा होगा कि यह महिला बहुत डेंजरस है।
विनीत उत्पल का सवाल है:
कि जब स्लम बस्तियां शहरीकरण के चेहरे पर भद्दा दाग है तो इनके पुनर्वास के लिए सरकार, स्वयंसेवी संस्थााओं के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां क्या कर रही हैं? यदि धारावी पर बनाई गई फिल्म के जरिए लोगों को लगता है कि इससे भारत की छवि विश्व पटल पर खराब होगी या हो रही है तो इसके निराकरण के क्या उपाय हैं?
तरूण का सवाल है: क्या ये नैतिक है? - सात बच्चे सोचे थे लेकिन वो आठ थे!
अब जब इत्ते सवाल उठेंगे तो क्या ताऊ सवाल न करेंगे? ताऊ के सवालों के घेरे में आज विवेक हैं जिनका अपराध यह था कि उन्होंने ताऊ पहेली प्रतियोगिता में पहला स्थान पाया था। सवाल -जबाब आप देखिये:
सवाल : आपकी रचनाओं मे एक व्यंग और मस्ती दिखाई देती है. इसके पीछे कोई विशेष कारण?
उत्तर - . हमारी रचनाओं में आपको व्यंग्य/मस्ती दिखाई देती है यह जानकर अतिप्रसन्नता हुई . दरअसल हम लिखना तो ज्ञानदत्त जी से भी अच्छा चाहते हैं पर यही सब लिख जाता है . कुछ और शायद हमें आता नहीं . अब इसे लोग व्यंग्य/मस्ती समझें तो हमारा सौभाग्य है .
सवाल : आप लोगो की अक्सर बहुत मौज लेते पाये जाते हैं?
उत्तर -. हमने मौज नाप तोलकर कभी नहीं ली . अगर किसी से ज्यादा ले ली हो तो वह हमसे वापस लेने के लिए स्वतंत्र है . क्योंकि लोग हमसे मौज नहीं लेते इसलिए हमने सोचा इनके पास पहले से ही हमसे ज्यादा मौज हैं . इसलिए हम उनसे ले लेते हैं .
अनामदास सरस्वती पूजा के बहाने पुराने दिनों को याद करते हैं:
रिक्शा भाड़ा भी आ जाता, जैसे मूर्ति आई थी, सरसती मइया किरपा से सब हो जाता था. रिक्शे पर माँ शारदा को लेकर गंदले तालाब की ओर चलते बच्चों की टोली सबसे आगे होती क्योंकि जल्दी घर लौटने का दबाव होता. माता सरसती की कृपा से पूरी तरह वंचित बड़े भाइयों की अबीर उड़ाती टोली, बैंजो-ताशा की सरगम पर थिरकती मंडली, माता सरस्वती की कृपा से दो दिन के आनंद का रसपान करते कॉलेज-विमुख छात्रों का दल 'जब छाए मेरा जादू कोई बच न पाए' और 'हरि ओम हरि' की धुन पर पूरे शहर के चक्कर लगाता.
आलोक पुराणिक चोरों में एकता स्थापित कर रहे हैं:
डीडीए-मुरी कब्जाकारकों की एसोसियेशन बना दी जाये, आपस में विचार विमर्श होता रहेगा। एक दूसरे से दिल मिलेंगे। युद्ध रुकवाने के लिए एक दूसरे के काम आयेंगे। डीडीए वाले उधर वालों से कहेंगे-ओय लड़ाई ना होने दियो, मुरी में हमने भी कब्जायी है 5000 कैनाल जमीन। पाकिस्तान वाले हांक लगायेंगे, बिरादर ये डीडीए का ड्रा कैंसल ना होने देना, एक हजार फर्जी एप्लीकेशनें हमारी भी हैं।
परस्पर सहयोग करने से परस्पर प्यार बढ़ता है जी।
पुण्य प्रसून बाजपेयी का कहना है- 'जो अपराधी नहीं होंगे मारे जाएंगे'
मेरी पसन्द

फिर भी गाहे-बगाहे जब
वो कहती थी फूल
मैं कह देता गंध.
वो कहती थी स्पर्श
मैं कह देता था देह
वो कहती थी जीवन
मैं कहता था उम्र
उसकी नदी को मैंने कहा पानी
उसने कहा हवा तो मैंने कहा ज़रूरत
उसने कहा दुनिया तो मैंने कहा चश्मा
और मुझे छोड़कर चली गई कविता
प्रेम शुक्ल
और अंत में
आज की चर्चा का नियमित दिन कविता जी का है। लेकिन अपनी जीजी (बड़ी ननद) के कैंसर की लम्बी बीमारी के कारण निधन हो जाने के कारण वे इस मन:स्थिति में नहीं हैं कि कुछ लिख सकें।
उनके परिवार के प्रति संवेदना जाहिर करते हुये मैं कामना करता हूं कि ईश्वर उनको इस अपार दुख को सहने की शक्ति प्रदान करे।
फ़िलहाल इतना ही। आपके सप्ताह की शुरुआत शुभ हो।