हिंदी ब्लाग जगत का अब दिन पर दिन प्रसार हो रहा है। गत रविवार को एन.डी. टी.वी. पर हिंदी ब्लागिंग के बारे में बातचीत हुयी। उसमें सुनील दीपक के ब्लाग का भी जिक्र हुआ। कल देखा कि याहू पर भी हिंदी ब्लाग शुरू हो गये। अभी यहां ब्लाग की सूची देसी पंडित से बनती है। देसी पंडित पर काफ़ी दिन से विनय लिखते आये थे। अब फिर से विनय जी से गुजारिश है कि वे कुछ समय 'देसी पंडित' के किये दिया करें ताकि हिंदी के ब्लाग याहू की साइट के माध्यम से लोगों तक पहुंच सकें। इस बीच चिट्ठाकार साथी लेखन की दुनिया में पैठ बना रहे हैं। भुवनेश शर्मा का ब्लागिंग से संबंधित एक लेख दैनिक भाष्कर में छपा :) भुवनेश भाई से गुजारिश है कि वो लेख स्कैन करके हमें भी दिखायें।
इन्हीं सम्भावनाऒं के दौर से गुजरते आज के चिट्ठों के बारे में चर्चा प्रस्तुत है। समीरलाल जी से कल कुछ चिट्ठे छूट गये थे काम ज्यादा और समय कम होने के कारण! आज प्रयास करता हूं कि उल्लेखनीय पोस्टों का जिक्र कर सकूं।
आज की शुरुआत कविता से काहे से! दुबई से बेजी अपने भ्रम का बयान करती हैं:-
एक शंख …
लहरों की आवाज़…
थोड़ा नमक….
थोड़ा पानी…..
यूँ ही इतरा रही…
यह सोच…
अंजली में समन्दर है….!
दिवानी !!
मीडियायुग में भविष्य की तकनीकी प्रगति का विवरण देते हुये यह आशंका भी जाहिर की गयी कि यह प्रगति हमें आलसी बना देगी:-
पर जो एक चीज आपको निहायत ही आलसी बनाएगी, वो भी तकनीक ही होगी। आप मोबाइल के एक मैसेज से शापिंग कर सकेंगे। घर बैठें सारे बिल जमा कर सकेंगे। टीवी पर कुछ भी देख सकेंगें। रेडियो से मनचाहा गाना गवा सकेंगे। लैपटाप से घर बैठे काम कर सकेंगे। पामटाप से मीटिंग में मौजूद रहेंगे। और सफर के दौरान वीडियों कांनफ्रेसिंग से कही भी मौजूद रह सकेंगे।
इस तकनीकी प्रगति के बरक्स रचनाजी ने कुछ सामाजिक कल्पनायें की हैं। इनमें कुछ धनात्मक कल्पनायें की हैं जो मन को गुदगुदाती हैं, मजेदार भी हैं लेकिन एक कल्पना चौंकाती भी है, स्तब्ध भी करती है:-
आज राज्य के अन्तिम किसान की मौत के साथ ही महाराष्ट्र देश का पहला ‘किसान रहित’ राज्य घोषित हुआ..राज्य में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला सन २००६ से चला आ रहा था.जिस तरह के संवेदनहीन समय से हम गुजर रहे हैं उसमें क्या ऐसा भी होगा!
इस बीच सागरजी को कुछ तकनीकी समस्या आई जिसका निदान उनके दोस्तों ने किया और वे अहा आनन्दम वाले मूड में आ गये क्योंकि उनको खुशी मिली इतनी कि मन में न समाये। आखिर क्यों न हो-एक तरफ़ प्रेमेन्द्र ने उन्हे किताबें भेजीं दूसरी तरफ़ तरकश के साथियों ने भेजा प्रमाणपत्र और किताबें अलग से!
सुनील दीपक जी आंकड़ों की बाजीगरी के बारे में बताते हुये सलाह देते हैं:-
अगर आप को अंतर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय स्तर पर देशों के बीच और एक ही देश में विभिन्न सामाजिक गुटों के बीच अमीरी-गरीबी, स्वास्थ्य-बीमारी, आदि विषयों पर आकँड़ों को समझना है तो स्वीडन के एक वैज्ञानिक हँस रोसलिंग के बनाये अंतर्जाल पृष्ठ गेपमाईंडर को अवश्य देखिये. कठिन और जटिल आँकड़ों को बहुत सरल और मनोरंजक ढंग से समझाया है कि बच्चे को भी समझ आ जाये.
देबाशीष ने जानकारी देते हुये बताया:-
बुनो कहानी की तर्ज पर मशहूर प्रकाशक पेंग्विन ने इसी उपन्यास लिखने की भावना से एक विकीनोवल का विचार प्रस्तुत किया है, अ मिलियन पैंग्विंस में जिसमें विकी के द्वारा उपन्यास लिखें जायेंगे।
हिंदी के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुये संजय बेंगाणी ने लिखा:-
हिन्दी आम बोल-चाल की भाषा के रूप में अपने आपको उपयोगी सिद्ध किया है, अब अन्य क्षेत्रो में भी इसका उपयोग बढ़े ऐसा हम चाहेंगे. मगर यह तर्क देना की विज्ञान या प्रशासन की भाषा भी वही हिन्दी हो जो आम बोल-चाल की हिन्दी है, गलत होगा.
उनकी इस बात पर लोगों मजेदार प्रतिक्रियायें की। अनाम दास ने तो अनुरोध भी किया कि वर्तनी की त्रुटियां कम से कम की जायें।
राजीव जी से अनुपमा चौहान को गज़ल लिखने की प्रेरणा मिली तो उन्होंने अपनी पहली गज़ल अपने गुरू को ही अर्पित कर दी:-
यूँ तो तनहा हम अक्सर ही चला करते थे
पतझड में भी कुछ फूल खिला करते थे..
दामन से मेरे कारवां कितने ही गुज़रते रहे
दिल की रेत में निशां पर न मिला करते थे..
गजल कुछ लोगों को इतनी अच्छी लगी कि वे इसे उनकी पहली गजल मानने को तैयार ही नहीं हैं। अभी तक सिलसिले में अनुपमाजी ने कुछ भी नहीं कहा है।
इसी बीच मीडियायुग का सवाल है कि क्या मनमोहन सिंह जी अमेरिका द्वारा मनोनीत प्रधानमंत्री हैं। मनीषा अमेरिका के बच्चों में इंटरनेट के कारण बढ़ती अश्लीलता का जायजा लेती हैं। गुरनाम सिंह सोढी ने अभी कुछ ही दिन हुये लिखना शुरू किया और वे दनादन लिख रहे हैं। अपनी एक कविता में वे कहते हैं:-
दिल तुम्हारा है मै ये जान भी दे दूँ तुम पर
बस मेरा साथ ज़रा दिल से निभा कर तो देखो
मौत यकीनन है मगर तुम से वादा है मेरा
लौट आऊँगा तुम एक बार बुला कर तो देखो
इसके अलावा तकनीकी जुगाड़ों में डाक्टर साहब की मटरगस्ती है, श्रीश पंडित की पाठशाला है और जीतेंद्र के जुगाड़ हैं।
अब अगर आप यह सब देख चुके हों तो पढ़िये अतुल श्रीवास्तव लखनवी की बेहतरीन व्यंग्य रचना 'टिस्क'। इस रचना को देखकर यह लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब हिंदी अखबारों और पत्रिकाऒं के लोग सामग्री के लिये ब्लाग टटोला करेंगे!
अफलातूनजी वाल मार्ट का लिंग-भेद देख-दिखा रहे हैं। इसके साथ ही प्रख्यात समाजवादी चिंतक स्व. किशन पटनायक का लेख पढ़वा रहे हैं। इस लेख में पटनायक जी ने प्रत्यक्ष-परोक्ष पराधीनता का जिक्र करते हुये बताया:-
पश्चिमी साम्राज्यवाद पहले आर्थिक संप्रभुता को छीनने की कोशिश करता है । अठारहवीं सदी में हम यही पाते हैं । पलासी युद्ध (१७५७) के बाद बंगाल के नवाब मीरजाफ़र ने ईस्ट इंडिया कंपनी को राजस्व वसूलने और जुर्माना लगाने के अधिकार समर्पित कर दिये।राजस्व वसूलना और जुर्माना लगाना सरकार का काम है । सरकारी कामों के निजीकरण की यह पहली मिसाल है । आज हम उदारीकरण नीति के तहत जब जब विद्युत विभाग , बीमा व्यवसाय ,खदानों , रेल , दूरसंचार आदि का निजीकरण करने जा रहे हैं तो उसकी असलियत यह है कि जिन कामों को सरकार करती थी उन कामों को अब विदेशी कंपनियाँ करेंगी । हमारी आर्थिक संप्रभुता का हस्तांतरण हो रहा है ।
आगे अफलातून जी किशन पटनायक के और लेख पढ़वायेंगे। उनसे अनुरोध है कि मौका निकालकर पटनायक जी का लेख -विकल्पहीन नहीं है दुनिया भी पढ़वायें। स्वर्णज्योति जी मूलत कर्नाटक से हैं और गत २५ वर्षों से पांडीचेरी में रह रही हैं और हिंदी उनका पहला प्यार है। मुझे अच्छी तरह से याद है जब तरकश के चुनाव चल रहे थे तो गिरिराज जोशी, पंकज बेंगाणी और सागर चंद नाहर के जीटाक पर स्वर्णज्योति को प्रोत्साहन देने का संदेश लगा रहता था। स्वर्णज्योति ने आज की राजनीति पर व्यंग्य करते हुये लिखा है:-
कैसी है ये राजनीति कैसा है ये राष्ट्र
कुछ बने हैं गांधारी कुछ हैं धॄतराष्ट्र
राकेश खंडेलवाल साथियों के बीच गीत सम्राट के रूप में जाने जाते हैं। अपने बिम्ब-विधान और कल्पना की उड़ान के चलते इनका हर गीत बस चुपचाप पढ़-सुनकर गुनगुनाने के लिये होता है। वाह-बहुत अच्छा लिखा की ब्लागीय माया से ऊपर की चीज! कल वे चिट्ठाचर्चा मन से कर नहीं पाये क्योंकि परसों अमेरिका में इनके घर के पास इतनी बर्फ गिरी के सारी पानी की पाइप लाइनें फट गयीं और इंटरनेट कनेक्शन भी बाधित रहा। ऐसे में इनकी अपने से गुफ्तगू भी हुयी इस अंतरंग वार्ता के दौरान इनके दिल ने राकेश जी से कहा:-
गीत वीत कविता वविता तुम बहुत कर चुके. बहुत लिख चुके हो प्यार व्यार, याद, आंसू, मिलन, श्रंगार, रूप, मौसम वौसम पर. जानते हो लेखन में क्रान्ति आ रही है. अब नये विषय तलाशो. देखो चोटी के चिट्ठाकार भी अब चोटी ( बालों वाली )
की बात लेकर चिट्ठा लिखते हैं. तुम अब कुछ हट कर लिखो. "
और राकेशजी ने कहना तुरंत माना तथा लिखा:-
वो नाजुक सी शै, जैसे लैला की उंगली
हुई जिसपे कुर्बान मजनू की पसली
लुटा जिसपे महुआ, लुटी जिसपे देहली
हरी लखनवी ककड़ियां वे कहाँ हैं
वो शहतूत जिनसे शहद था टपकता
वो बैंगन बनाते थे जिसका कि भरता
कहाँ फ़ालसे जिनसे शरबत निकलता
कहाँ हैं कहाँ हैं कहाँ हैं कहाँ हैं
रात को जीतेन्द्र भड़भड़ाते हुये नेट पर आये और अपनी दो पोस्ट की लिंक थमाकर शुभरात्रि बोल गये। एक में तो इन्होंने याहू के हिंदी पोर्टल के बारे में बताया है और लोगों को सलाह देते हुये कहा है:-
अब याहू महाराज हिन्दी ब्लॉग की खबर दें वो भी अधूरी, तो सारे चिट्ठाकारों मे खलबली मचना स्वाभाविक ही थी। अब चैट पर जो मिलता, इन अधूरे चिट्ठों का रोना रोता, तो जनाब सबने हमारे कन्धे पर बन्दूक रखी और हमने फायर कर दिया गया। हमने उनके फीडबैक फोरम पर लिख मारा, उम्मीद तो कम ही थी कि इतनी जल्दी जवाब आएगा, इसलिए हमने शुकुल को देसी पंडित पर चर्चा के लिए घेर ही लिया था, जिसके लिए वो तैयार भी हो गए थे। अब शुकुल साप्ताहिक चर्चा देसी पंडित पर करेंगे( इसलिए सभी लोगों से निवेदन है कि शुकुल से बना कर रखे)। इधर याहू वाले अच्छे लोग निकले, उन्होने ना केवल जवाब दिया, बल्कि देरी से जवाब देने के लिए माफी भी मांगी और नारद के फीड शामिल करने का वादा भी कर दिया। आज ही वहाँ से जवाब आया है नारद को शामिल करते है, शीघ्रातिशीघ्र । अब देखते है कि इनका शीघ्रातिशीघ्र कितनी जल्दी आता है। नारद से फीड आने के बाद, मेरा विश्वास है कई लोगों का यह होमपेज बन जाएगा।
अपनी दूसरी पोस्ट में उन्होंने अडोस मे मायका, पड़ोस मे ससुराल कथा का पाठ किया है:-
तो जनाब ये बात है राजस्थान के बारन जिले का एक गाँव कवई की। यह गाँव जयपुर से लगभग 325 किलोमीटर दूर है। ये पूरा का पूरा गाँव ही जीजा-सालों से भरा हुआ है। क्यों? क्योंकि भाई इस गाँव के लोग अपने बेटे बेटियों की शादी गाँव के बाहर करते ही नही। गाँव के 90 फीसदी से ज्यादा लोगों की शादी गाँव के अन्दर ही हुई है। ये लोग हँसी खुशी एक साथ रह रहे है, बिना किसी लड़ाई झगड़े के।
बाद में जीतेंद्र यह भी योजना बता रहे थे कि जो ब्लागर उनको ज्यादा परेशान करेगा उसको वे जुगाड़ करके इस जीजा-साले वाले गांव भेज देंगे।
फुरसतिया में आज पढ़िये रवि रतलामी की फरमाइश पर ऒ. हेनरी की प्रसिद्ध कहानी पुलिस और प्रार्थना!
अब जब चर्चा की शुरुआत कविता से की तो उसको विराम भी कविता से ही देना जायज होगा। कवि लोग इसे पोयटिक जस्टिस कहते हैं और हम कहते हैं पोस्ट संतुलन! यह भी संयोग है कि दोनों की रचयिता महिला डाक्टर हैं! यह कविता डाक्टर भावना कंवर के दिल के दरमियां में है। अभी तक नारद पर आयी नहीं लेकिन कविता पर टिप्पणी विराजमान है। जीतेन्दर के कठिन दिन बहुत दूर नहीं हैं। साथी महिला चिट्ठाकारों की रचनायें नारदजी इतनी देर-देर में लायेंगे तो लोग कैसे तारीफ़ करेंगे ये तो समझा करो! कल मानसी की पोस्ट भी पूरे दो दिन बाद लोग पढ़ पाये। क्या हाल बना रखा है नारद का!
डा.भावना ने सच्चाई को बयान करते हुये चंद शेर लिखे हैं। शेर तीन हैं तीन विसम संख्या होती है लिहाजा हम शुभ-अशुभ का विचार करते हुये उनकेदो बेहतरीन शेर आपको पढ़वाते हैं:-
था मैंने दिल की क्यारी को, लगाया चाव से लेकिन
मगर गुज़रा वहाँ से जो, उसी ने बो दिये काँटे।
ये माना फूल में है नूर भी, खुशबू भी है उसमें
मगर सच ये भी है कि फूल के ही संग हैं काँटे।
यह चर्चा हमने कल रात के नारद का मुंह देखकर की। आज सभी सबेरे नारद दिख नहीं रहे हैं। सो अगर किसी की पोस्ट न दिखे तो चिंता न करें , नारद को बुरा-भला कहें और चिट्ठा चर्चा देखते रहें। क्योंकि हम लोगों का कौनो भरोसा नहीं हम कल की तारीख की सारी बची हुयी पोस्टों की फिर चर्चा कर सकते हैं!:)
बहरहाल, आज की चर्चा यहीं तक। कल की चर्चा करेंगे हमारे युवा और होनहार साथी गिरिराज जोशी। परसों की चर्चा देबाशीष करेंगे। और जो साथी चिट्ठाचर्चा में रुचि रखते हैं वे हमें लिखें ताकि उनको चर्चा के लिये निमंत्रण भेजने की व्यवस्था की जा सके।
आज की टिप्पणी:
1.विज्ञान और तकनिकी क्षेत्र मे भी हिन्दी का प्रयोग कठीन नही है। जरूरत है हिन्दी को सम्मान से देखने की। यदि आपका शब्दभंडार कम है तो इसमे हिन्दी का दोष नही है।
“लौहपथगामीनी” या “श्वेतधुम्रपानदंडिका” जैसे शब्दो का प्रयोग करनेवाले लोग हिन्दी का मजाक बनाते है। ये हिन्दी नही है।
संज्ञा का अनुवाद नही होता है, रेल ,सीगरेट जैसे शब्दो को हमे हिन्दी मे स्वीकार करना होगा ठिक उसी तरह जैसे अंग्रेजी ने “चपाती”, “लूट” या “चप्पल″ जैसे शब्दो को स्वीकार किया है। लेकिन जिन शब्दो के हिन्दी शब्द उपलब्ध है उनकी जगह अंग्रेजी शब्दो का प्रयोग खलता है।
हिन्दूस्तान टाइम्स जैसे समाचार पत्र जब प्रधानमंत्री को पी एम लिखते है तब दूःख होता है।
आशीष
2.आपने एक ख़ास बात पर रौशनी डाली है। यहां दुबई मे देखा जाए तो सबसे ज़्यादा बोल चाल वाली भाषा हिन्दी ही है - बाज़ारों मे दफ्तरों मे, होटलों मे —— मत्लब कि यहां जीने के लिए हिन्दी बोल चाल बहुत ज़रूरी है मानो जिसे हिन्दी बोलना नहीं आता उसे यहां खाना नहीं मिलता।
हिन्दी बोलने और लिखने के लिए मैं शब्दकोष का ही सहारा लेता हूं, अगर शब्दकोष ना मिलता तो शायद आज इतनी टूटी फूटी हिन्दी लिखना भी नहीं जानता। हां भारत मे देखा जाए तो लोग टूटी फ़ूटी अंग्रेज़ी बोलने को भी शान समझते हैं और हिन्दी? अगर कोई हिन्दी बोले तो ऐसे देखते हैं जैसे वो बेचारा पुराने ज़माने का आदमी है। हिन्दी भाषा भारत की शान है - यकीन करें ये हिन्दी भाषा जापान, यूरोप, अमेरिका मे बहुत ज़्यादा बोली और समझी जाती है।
आपकी हिन्दी से मुहब्बत की मैं क़दर करता हूं मगर हिन्दी पर रोना ताजुब है क्योंकि वो अपनी जगह परवान चढ रही है। आपने जो अपनी आंखों से देखा और मेहसूस किया वो भी ठीक है मगर सोचना ठीक नहीं कि आज हिन्दी भाषा का हाल बुरा है - सोचना तो ये है कि आप हिन्दी को परवान चढाने के लिए क्या कर सकते हैं?
शुऐब
छुट्टी वाले दिनो मे(जब उस दिन का चिठ्ठाकार चर्चा के लिये उपलब्ध ना हो) मै चिठ्ठा चर्चा कर सकता हूं।
जवाब देंहटाएंफरवरी माह मेरे लिए व्यस्तत्तम होता है. मैं मध्यान्हचर्चा नही कर पा रहा हूँ, पर कोशिश करता हूँ, कि कर सकू. चिट्ठे भी बढ़ रहे है, ऐसे में दो-दो चर्चाएं आवश्यक होती जा रही है.
जवाब देंहटाएंमैं वर्तनी की भूले सुधारने की कोशिश कर रहा हूँ, आशा है आप सबको शिकायत का मौका नहीं दूंगा.
अच्छी कवरेज है चाचु.
जवाब देंहटाएंछद्म नाम से टिप्पणी करना मुझे अच्छा नहीं लगता, अच्छा हो लोग एनोनिमस, अनाम आदि नामों का प्रयोग ना कर खुद का वास्तविक नाम लिखें। वैसे मैं उपदेश देने वाला कोई नहीं हुँ, यह भी ठीक है। :)
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमेरे से नारद जी तो उदास रहते ही है और अब आप भी है कैसे काम चलेगा। मेरे चिठठों की चर्चा आपको करनी ही पडेगी ( न करे तो यह आपकी मर्जी ) :-)
जवाब देंहटाएंआपने हमारे चिठ्ठे की चर्चा की शुक्रिया । समीर जी से पूछने का मन था....मेरा नंबर कब आयेगा । पर वह भी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं (बाल)। फिर टिप्पणी कर के सिफारिश करवाने से रवी जी ने रोक दिया । "मेरे चिठ्ठे की चर्चा क्यूँ नहीं होती ।" चिठ्ठा कैसा है यह तो व्यक्ति विशेष की पसंद पर निर्भर है । क्या ऐसा हो सकता है की जो चिठ्ठे चर्चा करने योग्य हों उनकी चर्चा की जाये । बाकी दिनभर के चिठ्टों की एक सूची कम से कम साथ हो।
जवाब देंहटाएंआशीषजी द्वारा चर्चा का बेहद इन्तेज़ार रहेगा।
जवाब देंहटाएं" अब शुकुल साप्ताहिक चर्चा देसी पंडित पर करेंगे( इसलिए सभी लोगों से निवेदन है कि शुकुल से बना कर रखे)।" -चिट्ठाचर्चा से विदा कैसे हो सकते हैं?वहाँ भी करें,यहाँ न छोड़ें !
बेहतरीन चर्चा...
जवाब देंहटाएंआशीषजी को जल्द निमंत्रण भिजवाया जाये, उनके द्वारा की जाने वाली प्रथम चर्चा का इन्तेज़ार रहेगा।
पता चल रहा क्यों लगता है चर्चा चिट्ठों से बेहतर है
जवाब देंहटाएंक्योंकि आपका इस्टाईल यह ढूँढ़ खोजता नव-तेवर है
हाँ यह नहीं जरूरी देवें विस्तॄत ज़िक्र सभी चिट्ठों को
कोई पाये सुर्खी, कोई लाता एक सूचना भर है.
आप किन्तु सम्मान दे रहे सब चिट्ठों को एक बराबर
बेजी की रचनायें उत्तम, सुन्दर लिखती भावना कुंअर
किन्तु लिखा करता है कोई, जब केवल लिखने की खातिर
तब उस चिट्ठे की बाबत, दो शब्द लिखा जाना है दूभर
भई हमें भी इंतजार है आशिष जी के शब्दों का यानि उनकी चिट्ठा चर्चा का।
जवाब देंहटाएंअरे बेजी जी, हम तो आपकी ही कविता पढ़ने लग गये थे, इसी से चर्चा बीच में रोककर भाग गये और आप ही छूट गईं. आगे से पहले चर्चा करुँगा और बाद में पढ़ूँगा. :)
जवाब देंहटाएंवैसे आज की चर्चा रही जोरदार. बहुत खुब. आशीष, क्या आपकी बुधवार को छुट्टी रहती है, तो मैं अपना स्पाट दिये देता हूँ. :)
समीरजी,आप अपना स्थान नहीं दे सकते।
जवाब देंहटाएंअनुप भाई,
जवाब देंहटाएंआपके मेहनत की मैं दाद देता हूँ…हर एक चिट्ठे को बहुत सलीके से एकत्र किया और परोसा…बधाई!