शुक्रवार, नवंबर 10, 2006

मध्यान्हचर्चा दिनाकं 10-11-2006

आज कोफी में वो वाला स्वाद नहीं आ रहा था. फिर भी इनकी आदत है, टी-ब्रेक में कोफी की चुस्कियों के साथ मध्यान्हचर्चा सुनना. ये आधुनिक धृतराष्ट्र है. संजय लेपटोप पर लगे हुए थे, कुछ परेशान से भी थे.
धृतराष्ट्र : संजय हमारे चर्चाकक्ष में ही भिड़ंत हो गई थी, इसलिए आज कोफि में वो स्वाद न रहा.
संजय : टेंशन-फ्री रहें महाराज, सब सेट हो गया है, पर आज हमारे नेट कनेक्शन में कुछ पंगा लग रहा है. नारदजी कोई नई सुचना नहीं ले कर आ रहे तथा उनका सहयोगी हिंदीब्लोगस भी कहीं अंतरध्यान हो गया है. महाराज क्या करूं?
धृतराष्ट्र : पहले तो अपनी भाषा ठीक करो. पंगा-दंगा पता नहीं क्या क्या... गाँधीगीरी का भूत उतार कर चिट्ठागीरी करो. जितना दिखता है उतना कह सुनाओ.
संजय : कुछ धुंधला धुंधला सा दिख रहा है, उधर पंकजभाई का दिमाग भी कुछ अगड़म-बगड़म हो रहा है. छः बजे का सिक्सर मार रहे है, मुकूट पहन कर जाना भाई.
धृतराष्ट्र : आज हर जगह गड़बड़ हो रही है, और भी कहीं ऐसा दिख रहा हैं क्या?
संजय : हाँ महाराज, महारथी रविजी ब्लोगर की सुपर गड़बड़ियों के लिए महामाफी मांग रहे हैं. योद्धा हैं, माफी स्वयं मांग रहे है, पर घायल ब्लोगर को कर रहे हैं.
धृतराष्ट्र : अब कोफि का स्वाद कुछ जम रहा है, तुम क्यों नहीं पीते, चाय के पीछे पड़े रहते हो. खैर भटको मत आगे देखो कौन हैं रणभूमि में.
संजय : महाराज, ये छायाचित्रकार हैं, जो कह ना सके उसे छवियाँ दिखा कर कह डालते हैं. यह छवि देखिये. ‘हिज़ मास्टरस वोइस’ वाला कुत्ता याद है? अरे वही एच एम वी वाला, उसका पोता भी इस छवि में है.
धृतराष्ट्र : संजय मध्यान्हचर्चा की सिमाओं का सम्मान करते हुए आगे बड़ो.
संजय सकपका गए.
संजय : जी महाराज. आगे समीरदेवजी त्रिवेणी विद्या सिखा रहें है. और दस्तक दे रहे हैं सागरभाई रूठे अतुलजी के द्वार पर. महाराज आज सोचा था तबीयत फिर से खराब कर लूं पर रहा नहीं गया इसलिए काम पर आ गया अब आज के लिए इतना ही.

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2 टिप्‍पणियां:

  1. धुंधलके में भी काफी दूर तक देख लेते हैं, जो कि अभी तक नारद पर भी नहीं दिख रहा. :)

    अब काफी का आनन्द लें.

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  2. डायलाग बड़े धांसू मारे जाते हैं दोपहर को.

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