रविवार, नवंबर 05, 2006

चिट्ठा चर्चा: शनिवार ४ नवम्बर, २००६

ओम श्री मंगलाय नम:
अब आप १००८ श्री जीतेन्द्राय स्वामी से शनिवार के चिट्ठों की विवेचना सुनिए।

प्रात:काल उठते ही पता चला की नारदजी का स्वास्थ्य अभी भी ठीक नही, अत: दूसरे नारद भक्त प्रतीक की साइट को देखा गया। भक्त प्रतीक, दिनांक के अनुसार चिट्ठे देने की सुविधा भी प्रदान करो। कुछ दिन पहले प्रतीक ने चैट पर पूछा था कि नारद जी अब तो आप वापस आ गए है हम अपनी साइट (hindiblogs.com) बन्द कर दें क्या, हमने कहा कि नही भई, काहे बन्द करो, तुम्हारी साइट भी अच्छी है, नारद का अलग स्थान है। देखा प्रतीक, आज तुम्हारी साइट का इस्तेमाल हुआ कि नही? अभी भक्त प्रतीक के स्थल का अवलोकन कर रहे थे, तो पता चला कि नारद जी बीमार होने के बावजूद ड्यूटी पर आ गए है। जय हो नारद महाराज। लेकिन अभी झटके लगने बाकी थे, देखा तो कोई हमारे हिस्से की चर्चा पहले की निबटा चुका था, लेकिन हम तो दिहाड़ी वाले रोजगार पर है, श्रमिक है। कोई हमारे हिस्से का काम करे तो करे, हम क्यों अपनी दिहाड़ी खराब करें, शुकुल जी, हमारा चैक समय पर भिजवा देना।

पहला चिट्ठा अफ्रीका के यूगान्डा से था, जिसमे डा.भावना कुंवर के काव्य चर्चा की दैनिक जागरण मे तारीफ हुई थी। भई हम तो चाहेंगे कि सर्वत्र हिन्दी चर्चा हो, ताकि आप जैसी विभूतियों से लोग प्रभावित होकर इन्टरनैट पर हिन्दी लेखन मे रुचि लें, ताकि हिन्दी का प्रचार प्रसार हो।

उधर आशीष गुप्ता अमरीका से मौत का नाटक खेलने लगे, कहने लगे:
जीने के लिये कभी-कभी हमें मौत को भी अपनाना पड़ता है। ये बात इंसानो के लिये प्रत्यक्ष रूप से सही भले ही ना हो, कई जानवरों के लिये जीवन का हिस्सा है। विज्ञान पत्रिका "साइंस न्यूज़" में छपे एक लेख के अनुसार कई प्रजातियाँ भक्षण से बचने के लिये हिंसक जीव के समीप आते ही मौत की चादर औढ़ कर मृत होने का नाटक करने लगतीं हैं।
बकिया उनके ब्लॉग पर पधारें।

लेकिन तुषार जोशी को नाटक करने के लिए कभी ना कहिए। हमेशा आशावादी बनिए, यही इनकी कविता का मूलमंत्र है।
काम नहीं बना मत कहिये
कहिये "आज" नही बन पाया।
चुने नही गए तो कहिये
उनको "आज" नही मैं भाया।


मुकेश बंसल जी बहुत पीड़ादायक अनुभव हुआ, मुकेश भाई अपने बच्चे के लिए पूर्वी दिल्ली मे हिन्दी माध्यम का विद्यालय ढूंढ रहे थे, लेकिन इन्हे सभी अंग्रेजी माध्यम वाले ही मिले, कहते है:

अपने घर के नजदीक वसुन्धरा एन्कलेव इलाके के सब विद्यालयों में घूमा, पर मुझे एक भी हिन्दी माध्यम विद्यालय नहीं मिला। सभी अंग्रेजी माध्यम में ही शिक्षा दे रहे हैं। नोएडा में प्रयास किया तो सैक्टर 12 में विद्या भारती द्वारा संचालित एक हिन्दी माध्यम विद्यालय मिला, लेकिन उसकी बस वसुन्धरा एन्कलेव में नहीं आती। मेरी पत्नी, जिसे दिल्ली में मेरी अनुपस्थिति में 2 महीने बिताने हैं, को हर रोज विष्णु को छोड़ने जाना बहुत असुविधाजनक हो जाता। इसलिए मन मार कर विष्णु को घर के नजदीक वसुन्धरा एन्कलेव में ही एक अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में दाखिला करवा दिया।


भाई संजय बेंगानी एक अलग ही पीड़ा से गुजर रहे है, शहरों के बदल बदल कर बदले गए नाम को लेकर, ये कहते है:
बात है शहरों के नाम बदले जाने की. बैंगलोर का नाम बंगालूरू क्या किया लोगो ने नाक भौं सिकोड़ने शुरु कर दिए. बात जहाँ तक इसके पिछे पैसे तथा श्रम खर्च होने की है, उतना तर्क सौ फीसदी सही है. देश में बहुत सारे ऐसे काम नहीं होते जो होने चाहिए, जबकि ऐसे अनउपयोगी कार्यो में उर्जा खर्च की जाती है.
दूसरा पक्ष शहरों को उनकी अपनी पुरानी पहचान दिलवाया जाना है, यह भावनात्मक मामला है, जो अपनी जगह कुछ हद तक सही भी है.

अब संजय भाई, नाम बदलने से कोई शहर की तकदीर थोड़े ही संवर जाती है, जरुरी है, शहर मे सुख सुविधाएं बढाना, शहर को रहने लायक बनाना। नाम बदलने से किसी को काहे की तकलीफ, हर महीने बदलो, लेकिन शहर का विकास तो करो पहले। प्राथमिकता विकास होना चाहिए, ना कि नामकरण।

बड़ी खुशी की बात है कि इसी परिवार की खुशी बेंगानी फिर से ब्लॉगिंग के लिए लौट आयी, पूछती है:
क्या आप लोगो ने नया रियालिटी शो “बीग बोस” देखा? कल ही शुरु है सोनी पर. इस धारावाहिक मै तेरह सेलिब्रिटी एक साथ एक घर मे तीन महिने तक रहेगे. घर से बाहर जा नही सकते. उन्हे सारी सुविधाएँ उसी घर मे दी गई है, सिवाय मनोरंजन की वस्तुओ को छोड के जैसे टी.वी., किताबे, आदि. यानी आप अपने मनोरंजन के लिए कुछ नही कर सकते. और तो और उन्हे सारा काम खुद ही करना है जैसे खाना बनाना, कपडे धोना वगैरह.


भई खुशी सबसे पहले कि शो का नाम "बिग बॉस" बोस नही, बीग बोस (सुभाष चन्द्र बोस) तो कब के टहल गए। बाकी शो का कांसेप्ट झकास है, लेकिन अच्छी सैलिब्रिटी का जुगाड़ ना कर पाना, शायद शो को ले डूबेगा।

सवाल तो राजेश भी पूछते है कि दुनिया के सबसे अमीर भारतीय क्रिकेट बोर्ड BCCI की कोई वैबसाइट क्यों नही है?
प्रभाकर एक भोजपुरिया लोककथा सुना रहे है कि लक्ष्मी और सरस्वती मे कौन बड़ा, कहानी अच्छी है, आप स्वयं पढिए।

उन्मुक्त राशियों पर विस्तार से चर्चा कर रहे है, आप स्वयं देखिए।

लक्ष्मी गुप्ता जी की फुलझड़ियाँ देखना मत भूलना। पूनम मिश्रा जी जीवन के फलसफे लिख रही है, इस बार का शीर्षक है क्षितिज, जरुर देखिएगा।

जया झा जी जीवन की आपाधापी मे लिख रही है कि था मैने तुम्हे रुलाया
आज की टिप्पणी
पुरा जीवन चक्र जीने के लिए संधर्ष के सिद्धांत पर टिका हैं.
अच्छी जानकारी.

संजय बेंगानी द्वारा "मौत का नाटक" लेख पर

आज का फोटो :एक्को नही मिला।

पिछले साल इसी सप्ताह : भूले बिसरे चिट्ठे
कहकंशा, लम्हो के कतरे

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3 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया है लेकिन फोटू कहीं से भी खोजकर लानी चाहिये. आगे ख्याल रखना नहीं तो हो सकता है टिप्पणी-चेक बांउस कर जाये.

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  2. जितुभाई छमा (क्षमा) करें, आपका काम इस अस्थाई मजदूर ने निपटाने की कोशिष की थी. कर्मचारी अपना काम नहीं करते यहाँ दुसरे का भी निपटा दिया. घोर कलजुग (कलयुग) आ गया है भाई.

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  3. ताऊ हमरे राम नाम सत को भूल गए का? :)

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