गजानन माधव मुक्तिबोध |
कल हिंदी के प्रसिद्ध कवि, आलोचक मुक्तिबोध की पुण्यतिथि थी। इस मौके पर कई लोगों के अपने-अपने हिसाब से मुक्तिबोध को याद किया। मुक्तिबोध पर लिखे परसाई के संस्मरण उल्लेखनीय हैं। परसाई जी ने जबसे लिखना शुरू किया तबसे ही मुक्तिबोध के उनसे संबंध रहे। ताजिन्दगी संबंध रहने तथा विचारों के नितन्तर आदान-प्रदान के बावजूद दोनों ने एक दूसरे के बारे में बहुत कम लिखा। मुक्तिबोध की मृत्यु के बाद परसाई जी ने उनके बारे में दो संस्मरण लिखे। इस संस्मरणों से मुक्तिबोध की सोच,मन:स्थिति का पता चलता है । परसाईजी ने मुक्तिबोध के तनावों का जिक्र करते हुये लिखा है-
"मुक्तिबोध भयंकर तनाव में जीते थे। आर्थिक कष्ट उन्हें असीम थे। उन जैसे रचनाकार का तनाव साधारण से बहुत अधिक होगा भी। वे सन्त्रास में जीते थे। आजकल सन्त्रास का दावा बहुत किया जा रहा है। मगर मुक्तिबोध का एक-चौथाई तनाव भी कोई झेलता ,तो उनसे आधी उम्र में मर जाता।"
मुक्तिबोध के निधन के बाद उनपर लिखते हुये परसाई जी ने लिखा:
"बीमारी से लड़कर मुक्तिबोध निश्चित जीत गये थे। बीमारी ने उन्हें मार दिया ,पर तोड़ नहीं सकी। मुक्तिबोध का फौलादी व्यक्तित्व अंत तक वैसा ही रहा। जैसे जिंदगी में किसी से लाभ के लिये समझौता नहीं किया,वैसे मृत्यु से भी कोई समझौता करने को वे तैयार नहीं थे।
वे मरे। हारे नहीं। मरना कोई हार नहीं होती।"
मरना कोई हार नहीं होती शीर्षक संस्मरण में परसाई जी लिखते हैं :
"मुक्तिबोध की किसी भी भावना में औपचारिकता नहीं- न स्नेह में ,न घृणा में ,न क्रोध में। जिसे पसंद नहीं करते थे,उसकी तरफ घंटे भर बिना बोले आँखे फाड़े देखते रहते थे। वह घबडा़ जाता था।"
मुक्तिबोध आर्थिक से जूझ रहे थे। उनके कुछ मित्रों ने उनके लिए चन्दे की अपील छपवाई। इस पर उनकी प्रतिक्रिया के बारे में परसाई जी लिखते हैं :
चिट्ठी पढ़कर मुक्तिबोध बहुत उत्तेजित हो गये। झटके से तकिये पर थोड़े उठ गये और बोले ,”यह क्या है? दया के लिये अपील निकलेगी! अब,भीख माँगी जायेगी मेरे लिये! चन्दा होगा! नहीं-मैं कहता हूँ-यह नहीं होगा।मैं अभी मरा थोड़े हीहूँ। मित्रों की सहायता ले लूँगा-लेकिन मेरे लिये चन्दे की अपील! नहीं । यह नहीं होगा!”
" पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है" मुक्तिबोध जी का सबसे चर्चित वाक्य रहा। उनकी कविता 'अँधेरे में ' का यह अंश सबसे ज़्यादा दोहराया जाने वाला अंश रहा :
ओ मेरे आदर्शवादी मन,
ओ मेरे सिद्धान्तवादी मन,
अब तक क्या किया?
जीवन क्या जिया!!
उदरम्भरि बन अनात्म बन गये,
भूतों की शादी में क़नात-से तन गये,
किसी व्यभिचारी के बन गये बिस्तर,
बताओ तो किस-किसके लिए तुम दौड़ गये,
करुणा के दृश्यों से हाय! मुँह मोड़ गये,
बन गये पत्थर,
बहुत-बहुत ज़्यादा लिया,
दिया बहुत-बहुत कम,
मर गया देश, अरे जीवित रह गये तुम!!
मुक्तिबोध के निधन और उनके अंतिम संस्कार पर मनोहर श्याम जोशी ने एक रपट लिखी थी , जो शायद ‘दिनमान’ में प्रकाशित हुई थी। प्रभात रंजन ने वरिष्ठ कवि राजेंद्र उपाध्याय के सौजन्य से प्राप्त इस रपट को अपने ब्लॉग जानकी पुल में साझा किया। मनोहर श्याम जोशी ने अपनी रपट में मुक्तिबोध के बारे में लिखा :
"औंधी लटकी हुई बोतलें, उभरी हुई नसों में गुदी हुई सुइयाँ, गले में किए हुए छेद में अटकी हुई ऑक्सीजन की नलियाँ, इंजेक्शन और इंजेक्शन। भारत के अन्यतम डॉक्टर कोई ढाई महीने से रोगी की रक्तचाप थामे हुए थे। उस संज्ञशून्य देह और मौत के बुलावे के बीच, किसी तरह, किसी भी तरह एक आड़ बनाये हुए थे। ग्यारह सितंबर को शाम को छह बजे से उस आड़ में दरारें पड़ने लगीं, रक्तचाप गिरता गया, उल्टी साँस चलने लगी। रात नौ बजकर दस मिनट पर साँस का लड़खड़ाता साज ख़ामोश हो गया। गजानन माधव मुक्तिबोध का कठिन जीवन-संघर्ष समाप्त हो गया। नौ बजे कृष्णा सोबती ने कुछ फूल भिजवाए थे, उन्हें क्या मालूम था उनसे ही पहली पुष्पांजलि दी जायेगी’ उस व्यक्ति को जिसे मिला तो सब कुछ, मगर देर से। प्रकाशन-मूल्यांकन, स्नेह-सम्मान, सहायता-सहयोग – सब कुछ देर से"
कनक तिवारी जी ने मुक्तिबोध को याद करते हुए लिखा :
"आज गजानन माधव मुक्तिबोध का स्मृति दिवस है। मेरे लिए अजीब संयोग है दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव में मुक्तिबोध और पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जब पढ़ाते थे ।तब मैं भी इस कॉलेज में अध्यापक नियुक्त हो गया था। अब शायद जीवित लोगों में मैं अकेला बचा हूं जो मुक्तिबोध के सहकर्मी के रूप में उनकी याद करता हूं। बाकी सब अध्यापकों के बारे में तो केवल दुखी होकर भारी मन से याद करना ज़रूरी हो गया है।"
कनक तिवारी ने उस जगह की फ़ोटो भी साझा की जहाँ बैठकर उन्होंने मुक्तिबोध से उनकी कविता 'अंधेरे में ' का एकल पाठ मुक्तिबोध से सुना था।
जगदीश्वर चतुर्वेदी जी ने मुक्तिबोध की पुण्यतिथि के मौके पर कई लेख लिखे। धर्मनिरपेक्ष नजरिया था मुक्तिबोध का लेख में वे मुक्तिबोध के धर्मनिरपेक्ष नजरिये के बारे में बताते हैं। बूढ़ों के मनोरंजक झगड़े में मुक्तिबोध लिखते हैं :
"बूढ़ों की लड़ाई बहुत मनोरंजक होती है। दिल्ली की साहित्यिक मंडली में इन लोगों का क्या कहना !मुश्किल यह है कि दोनों एक-दूसरे की इतनी जानकारी रखते हैं कि जब गालियाँ देने पर उतर आते हैं तब इस बात का ख्याल भूल जाते हैं कि मैं मैथिलीशरण गुप्त हूँ मुझे इतना नीचा नहीं उतरना चाहिए! दूसरा बूढ़ा उन्हें चिढ़ाने के लिए उनके नाम की व्याख्या इस प्रकार करता है -‘ मैं-थैली-शरण-गुप्त’।"
इंटरनेट युग में मुक्तिबोध के मायने लेख में जगदीश्वर जी लिखते हैं :
"मानवीय सहानुभूति के कारण ही हम एक-दूसरे के करीब आते हैं। हम चाहे जितना दूर रहें कितना ही कम बातें करें मन भरा रहता है क्योंकि हमारे मानवीय सहानुभूति से भरे संबंध हैं। लेकिन आज के दौर में मुश्किल यह है हमारे पास संचार की तकनीक है लेकिन मानवीय सहानुभूति नहीं है। तकनीक से संपर्क रहता है ,दूरियॉं कम नहीं होतीं। बल्कि तकनीक दूरियॉं बढ़ा देती है। दूरियों को कम करने के लिए हमें अपने व्यवहार में प्रेम और मानवीय सहानुभूति का समावेश करना होगा। प्रेम और मानवीय सहानुभूति के कारण ही जिन्दगी के प्रति आस्था,विश्वास और प्रेम बढ़ता है। "
प्रेम को कैसे व्यक्त करें ? लेख में मुक्तिबोध के प्रेम संस्मरण साझा करते हुए जगदीश्वर जी लिखते हैं :
"काश हमारे मुक्तिबोध के आलोचक और भक्त कविगण उनके इस तरह के पारदर्शी प्रेमाख्यान के वर्णन से कुछ सीख पाते और साफगोई के साथ अपने बारे में लिख पाते तो मुक्तिबोध की परंपरा का ज़्यादा सार्थक ढ़ंग से विकास होता।"
दो साल पहले चंदन पांडेय ने मुक्तिबोध के जन्मदिन पर यह उनके मिजाज का परिचय देते हुए कविता साझा की थी :
और भी तमाम लोगों ने मुक्तिबोध को अपने-अपने हिसाब से याद किया। मैंने जो पोस्ट पढ़ीं उनका जिक्र यहाँ किया।
एक आम नेपाली |
हाल में नेपाल में हुए छात्रों के क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में लोगों ने अपने-अपने सोच के अनुसार विचार व्यक्त किए। सोशल मीडिया पर कई लोगों नेपाल की घटना को अपने देश के खुफिया तंत्र की विफलता के रूप में व्यक्त किया। पत्रकार श्रवण गर्ग ने अपनी बातचीत में अपने देश के ख़ुफ़िया तंत्र पर तंज कसते हुए कहा :
'ख़ुफ़िया विभाग विपक्षी नेताओं की जासूसी में व्यस्त रहती है । इस बीच नेपाल में सत्ता परिवर्तन हो जाता है, हमको पता ही नहीं चलता। हमारी सरकार यूक्रेन, गाजा में युद्ध रुकवाने में लगे है इधर नेपाल में सत्ता परिवर्तन हो जाता है।"
वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल जी ने अपने लेख में हंगामा है क्यों बरपा! में नेपाल में हुए युवा आंदोलन के कारणों की पड़ताल करते हुए बताया कि जनता को विश्वास में लिए बिना सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने से युवाओं का संचित गुस्सा फूट पड़ा।
नेपाल की घटना पर अपनी राय रखते हुए अनूप शुक्ल ने लिखा :
"नेपाल के आम आदमी की छवि एक मेहनती, ईमानदार और कर्मठ इंसान की होती है। अनेक कहानियाँ नेपालियों के इन गुणों को दर्शाते हुए लिखी गई हैं। ऐसे समाज के सत्ता पदों पर बैठे लोग भ्रष्टाचार में इस कदर डूब जायें कि उनकी जनता उनको दौड़ा-दौड़ा कर पीटे इससे पता चलता है कि सत्ता का चरित्र कैसा होता है।"
भारतीय लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों के बातचीत का यही तरीका बचा है। |
उधर जब नेपाल में हिंसक क्रांतिकारी आंदोलन हो रहा था तब कल अपने देश में कश्मीर में श्रीनगर में जम्मू कश्मीर के कई बार मुख्यमंत्री रहे फ़ारुख़ अब्दुल्ला से मिलने गए आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह को उनसे मिलने नहीं दिया गया। फ़ारूख़ अब्दुल्ला के बंद घर के गेट के बाहर कुर्सी पर खड़े होकर संजय सिंह ने गेट के दूसरी तरफ़ मौजूद फ़ारूख़ अब्दुल्ला से बातचीत की। इस खबर को साझा करते हुए कार्टूनिष्ट काजल कुमार ने लिखा :
"श्रीनगर में, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह को गेस्ट हाउस में, हाउस अरेस्ट कर दिया है, पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूख़ अब्दुल्ला से भी नहीं मिलने दिया जा रहा. और उधर लखनऊ में, उत्तर प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष, अजय राय को भी हाउस अरेस्ट किया हुआ है.. बाक़ी सब ठीक है. लोकतंत्र बढ़िया चल रहा है।"
उत्तर प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष, अजय राय को हाउस अरेस्ट करने के कारण के लिए काजल कुमार की पोस्ट में टिप्पणी पढ़िये।
श्रीनगर में सांसद संजय सिंह और जम्मू कश्मीर के भूतपूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूख़ अब्दुल्ला की बातचीत सुनने के लिए मयूर जानी का चैनल देखिए। देश के लोकतंत्र की चमकते हुए लोकतंत्र की तस्वीर देखिए और इस पर गर्व करिए।
किताब की लेखिका और पोस्ट की लेखिका आमने- सामने |
पिछले दिनों अरुंधती रॉय की नई किताब पर उनकी बीड़ी पीते हुए छपी फ़ोटो पर लोगों ने अपने-अपने हिसाब से विमर्श किया। लेकिन प्रियंका परमार ने जब अपने कालेज की छात्राओं से किताब पर छपी तस्वीर के बारे में पूछा तो उनमें से एक ने, जो अरुंधती रॉय को जानती नहीं थी, फोटो देखकर कहा -"यह तस्वीर उदास लगती है और तस्वीर वाली युवती स्मोकिंग की एडिक्ट लगती है।"
यह बात कहने वाली लड़की से हुई आगे की बातचीत के बारे में जानने के लिए उनकी पोस्ट पढ़िए।
आज के समय में बढ़ते वजन से परेशानी आम बात है। अपनी एक पोस्ट में पिछले पांच महीनों में अपना वजन 104 किलो से 90 किलो किलो। आप भी अपना वजन कम करने का तरीका जानना चाहते हैं तो ध्रुव गुप्त जी की पोस्ट पढ़िए।
आज के लिए इतना ही। बाकी फिर कभी। अगर आपको पसंद आई हो चर्चा तो अपनी राय/ सुझाव बताइए।
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