गुरुवार, दिसंबर 25, 2008

या तो रौनक बाज़ारों में या सत्ता के गलियारों में

पाकिस्तान के नेता बता रहे हैं कि पाकिस्तान एक शान्ति-प्रिय देश है. हम उनकी बात से सहमति प्रकट करते हैं. वे सही कह रहे हैं. भारत में फ़ैली शान्ति से उन्हें बहुत लगाव है. शायद इसी लगाव के चलते वे भारत की शान्ति में खलल डालने का शुभकार्य करते रहते हैं.

मुंबई में आतंकवादी हमला नहीं होता तो हमें तो पता ही नहीं चलता कि पाकिस्तान की सरकार ने अपने देश के हर नागरिक का डाटाबेस तैयार कर रखा है. बताईये, पकिस्तान ने अपने हर नागरिक का डाटाबेस तैयार कर रखा है और एक हमारा देश है जो अपने नागरिकों का डाटाबेस तो छोड़िए बेस तक तैयार नहीं कर पाया. लानत है.

आज अपनी पोस्ट में दिनेश राय द्विवेदी जी ने पकिस्तान में हर नागरिक के डाटाबेस होने को एक गंभीर बात बताया है. द्विवेदी जी अपनी पोस्ट में लिखते हैं;


"कसाब का पाकिस्तान के डाटा बेस में नहीं होने का बयान देना अपने आप में बहुत ही
गंभीर बात है. इस का अर्थ यह है कि पाकिस्तान अपने प्रत्येक नागरिक का विवरण अपने
डाटाबेस में रखता है."

लेकिन पकड़े गए आतंकवादी कसाब का नाम डाटाबेस में नहीं मिलने के बारे में द्विवेदी जी सही सवाल उठाते हैं. डाटाबेस में कसाब का नाम नहीं मिलने के क्या कारण हो सकते हैं? इसके बारे में वे लिखते हैं;

"पुख्ता डाटाबेस में कसाब का विवरण नहीं होना यह इंगित करता है कि विवरण को साजिश की रचना करने के दौरान ही डाटाबेस से हटा दिया गया है या फिर साजिश को अंजाम दिए जाने के उपरांत. यह पाकिस्तान के प्रशासन में आतंकवादियो की पहुँच को प्रदर्शित करता है."

पकिस्तान से जब आतंकवादियों के ख़िलाफ़ कार्यवाई करने को कहा जाता है तो उसके नेता कहते हैं; " वैसे तो पकिस्तान एक शान्ति-प्रिय देश है लेकिन अगर हमपर युद्ध थोपा गया तो हम अपनी बूँद के आखिरी कतरे तक पकिस्तान की हिफाज़त करेंगे."

द्विवेदी जी के अनुसार ऐसा नेताओं द्बारा ऐसा कहा जाना कहना शायद पकिस्तान के हित में है. अपनी पोस्ट में द्विवेदी जी लिखते हैं;

"फौज, आईएसआई और आतंकवादी की मंशा के विपरीत कोई भी निर्णय कर पाना पाकिस्तान की चुनी हुई सरकार के विरुद्ध आत्महत्या करना जैसा है. यदि अंतर्राष्ट्रीय दबाव के आगे पाकिस्तान को आतंकवादियों के विरुद्ध कार्यवाही करनी ही पड़ती है तो पाकिस्तान एक गृहयुद्ध के दरवाजे पर खड़ा हो जाएगा."

इन परिस्थितियों के चलते ही पकिस्तान भारत से युद्ध करके शान्ति स्थापित करने की कवायद में लीन है. द्विवेदी जी लिखते हैं;


"भारतीय कूटनीति की सफलता इसी बात पर निर्भर करती है कि किसी भी प्रकार के युद्ध
में कूद पड़ने के पहले पाकिस्तान अपने गृहयुद्ध में उलझ जाए."

पकिस्तान तो उलझा ही है. उसे तो अब सुलझने की ज़रूरत है. वैसे मेरा मानना है कि जब सुलझने की कोई राह नहीं दिखाई देती तो इंसान और उलझने की कोशिश करता है. पकिस्तान भी शायद इसी रास्ते पर जा रहा है. आख़िर उलझनें बढ़ा लेने से इंसान के शहीदत्व प्राप्ति के चांसेज बढ़ जाते हैं.

द्विवेदी जी की पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए विवेक सिंह जी ने द्विवेदी जी से अपनी सहमति जताई. उन्होंने लिखा;

"सही कहा आपने पाकिस्तान का गृहयुद्ध ही हमारे लिए सबसे अच्छा होगा."

इस पोस्ट पर ताऊ जी ने भी द्विवेदी जी की सलाह को ठीक बताया. उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"उप्युक्त सलाह है !"

वैसे जहाँ द्विवेदी जी भारत और पकिस्तान के बीच युद्ध न छिड़ने को भारत के लिए शुभ मानते हैं वहीँ नीतीश राज जी का मानना है कि;

कब तक डरपोक बने रहेंगे हम? हर दिन मरने से बेहतर है कि एक बार ही मर जाएँ.

नीतीश जी का कहना है;


"भारत एक तरफ़ डर-डर कर ये बात कह रहा है कि भारत के सारे विकल्प खुले हुए हैं.
भारत के विदेश मंत्री और पीएम ने कहा कि हम तो आतंकवाद को ख़त्म करने की बात कर रहे हैं. पाकिस्तान जितनी जल्दी हो अपनी जमीन से आतंकवाद को पनाह देना बंद करे......पर दूसरी तरफ़ पकिस्तान डंके की चोट पर कार्यवाई करने से मना कर रहा है....."

"पकिस्तान के आर्मी चीफ परवेज कयानी ने तो यहाँ तक साफ़ कह दिया कि;
'पाकिस्तान की आर्मी पूरी तरह तैयार है. और यदि भारत कोई भी कदम उठाता है तो भारत के हर कदम का जवाब एक मिनट के अन्दर दिया जायेगा.'

नीतीश जी ने भारतीय नेताओं के वक्तव्यों के बारे में लिखा;

"भारत अब तक बहुत संयम का परिचय दे चुका है लेकिन हमारे संयमपन को हमारी कायरता न समझा जाय, हम बार-बार ये बात कह चुके हैं लेकिन हमने कभी भी ये दिखाया नहीं है."

अपनी पोस्ट में नीतीश जी सरकार को समर्थन देने की बात करते हैं. वे लिखते हैं;


"हमारा साथ हमारी सरकार के साथ है, हम एक जुबान में कहते हैं कि अब कहने का नहीं
करने का वक्त आ गया है."

नीतीश जी की इस करने का आह्वान करने वाली पोस्ट पर भी ताऊ जी ने टिप्पणी की. उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"आप बिल्कुल सही कह रहे हैं! अनर्गल प्रलाप नहीं बल्कि कार्यान्वित करो!"

ताऊ जी ने नीतीश जी को क्रिशमस की बधाई भी दी. उन्होंने लिखा;

"क्रिशमस की घणी राम राम!"

द्विवेदी जी की पोस्ट जो पकिस्तान के साथ भारत के युद्ध में न फंसने की सलाह देते हुए है और नीतीश जी की पोस्ट जो युद्ध करने की सलाह देते हुए है, ताऊ जी ने दोनों से अपनी सहमति जताई.

ताऊ जी की टिप्पणी पढ़कर शिव कुमार मिश्र सोचते रहे कि क्या ताऊ जी पहले अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अफसरों को पहले डिप्लोमेसी पढ़ाते थे?

हो सकता है. वैसे भी ताऊ जी कौन हैं, इस बात पर अनुमान लगाने का कार्यक्रम अभी तक थमा नहीं है.

ताऊ जी ने नीतीश जी को क्रिसमस की बधाई जिन शब्दों में दी, उससे इस बात का भरोसा मिला कि भारत से सर्वधर्म समभाव कभी ख़त्म नहीं होगा.

आख़िर 'क्रिसमस की घणी राम राम' जैसे बधाई संदेश आपको भारत देश छोड़कर और कहाँ मिलेगा?

ताऊ की बात चली तो आपको बता दूँ कि अरविन्द मिश्रा जी ने अपने अथ श्री चिट्ठाकार कथा में ताऊ जी के बारे में लिखा.

अरविन्द जी की पोस्ट से जानकारी मिली कि किस चिट्ठाकार के बारे में कथा सुनानी है, इसका फ़ैसला वे 'ख़ास दोस्तों' से सलाह मशविरा करने के बाद ही करते हैं. इस सलाह-मशविरा का रिजल्ट ये हुआ कि ताऊ जी को इनिशीयल एडवांटेज मिल गई.

अपनी पोस्ट के शुरुआत में अरविन्द जी लिखते हैं;


"मैंने बहुत सोचा विचारा -ख़ास दोस्तों से सलाह मशविरा किया और तय पाया कि क्यों न
अपने ताऊ को ही इनीशियल एडवांटेज (कांसेप्ट सौजन्य :ज्ञानदत्त जी ) दे दी जाय ."

मिश्रा जी ने बताया कि ताऊ जी तो चिट्ठाजगत में छा चुके हैं. उन्होंने चिट्ठाकारों को आगाह करते हुए लिखा;


"ताऊ तो छा चुका चिट्ठजगत में ! और अगर अब भी कोई इस शख्सियत को हलके फुल्के ले रहा है तो उसे सावधान हो जाने की जरूरत है ."

खुदा गवाह है, हमने कभी ताऊ जी को 'हलके फुल्के' नहीं लिया.

मिश्रा जी बताते हैं कि ताऊ जी दोस्तों के दोस्त हैं. इस बात को साबित करने के लिए उन्होंने लिखा;

"अपने साईब्लाग चिट्ठे पर जब मैं नारी सौन्दर्य का अवगाहन कर रहा था और आभासी
जगत की आभासी जूतियाँ चप्पलें खा रहा था तब वे ताऊ ही थे जो एक लौह ढाल बन आ गए मेरे फेवर में ! ताऊ की मेरी दोस्ती तभी की है और अब तो बहुत प्रगाढ़ हो चुकी है
-बस दांत काटी रस्म रह गयी है...."

इसीलिए कहा गया है कि 'अ दोस्त इन नीड इज अ दोस्त इन्डीड.' आशा करता हूँ कि कोई ये न कहेगा कि 'अ दोस्त इन नीद...' माने जो दोस्त हमेशा नीद में रहे और आपकी न सुने..... :-)

मेरा भी मानना है कि ताऊ जी हैं ही ऐसे, कि वे सबके प्रिय बन गए हैं.

अपनी लिखी गई बातों को अरविन्द जी भरमाने वाली भी बताते हैं. वे शायद चाहते थे कि ऐसा डिस्क्लेमर देकर वे चिट्ठाकारों को भ्रम से उबारेंगे. लेकिन उनके इस डिस्क्लेमर से हमारा भरमाना तो बढ़ गया. अरविन्द जी ने लिखा;

"पर मित्रों इन चिकनी चुपडी बातों में मत आना -इनमे बहुत सी बातें आप को भरमाने
वाली हैं -आप ख़ुद समझें कि ताऊ किस फेनामेनन का नाम है ! क्योंकि अब यह किसी भी चिट्ठाकार के वश की बात नहीं कि वह ताऊ को सिम्पली इग्नोर कर सके .ताऊ आ चुके हैं और छा चुके हैं ! "

ताऊ जी के बारे में इतना कुछ पढ़ने के बाद भी डॉक्टर अमर कुमार को लगा कि उनके लिए ताऊ अभी भी रहस्य ही हैं. उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा;


"ज़िन्दादिल ताऊ मेरे लिये एक रहस्य हैं !"

ताऊ जी के बारे अनुमान लगाने के कार्यक्रम को आगे बढाते हुए विवेक सिंह जी ने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"हो सकता है समीर जी ताऊ हों :)"

आज मसिजीवी जी ने समय से लड़ती घंटा घर की सुइयों के पक्ष में लिखा है. वे लिखते हैं;


"किसी बुजुर्ग से बात करें या तीस चालीस साल पुराने किसी शहरी उपन्‍यास को पढ़ें,
आपको घंटाघर का जिक्र अवश्‍य मिलेगा. घंटाघर लगभग हर शहर का महत्‍वपूर्ण निशान
(लैंडमार्क) हुआ करता था."

वे आगे लिखते हैं;


"घडि़यॉं कम घरों में होती थीं तथा कलाई घड़ी एक महँगी चीज थी. पूरा शहर घंटाघर से
अपनी घड़ी को मिलाया करता था."

उनका मानना है कि देसी-विदेशी घड़ियों की क्रांति इतनी अधिक हुई कि कलाई घडियां छा गईं. वे लिखते हैं;


"फिर देसी विदेशी घड़‍ियों की क्रांति हुई, इतना अधिक कि अब हमारे शहर में तो घड़ी
किलो के हिसाब से मिलती हैं. ऐसे में कम से कम समय देखने के उपकरण के लिहाज से
घंटाघर का कोई महत्‍व नहीं ही रह जाएगा."

उन्होंने बताया कि विदेशों में घंटाघरों को सहेजने पर बल दिया जाता है.

विदेशों की बात ठीक है. वैसे मेरा मानना है कि अपने भारत में घंटाघर देखकर शहर का बड़ा बिल्डर सोचता होगा कि शहरी विकास मंत्री को पता लिया जाय तो यहाँ एक चार मंजिला इमारत खादी की जा सकती है.

मसिजीवी जी आगे लिखते हैं;

"विदेशों में तो इनकी कलात्‍मकता के ही कारण इन्‍हें सहेजने पर बल रहता है. हमारे
शहर के घंटाघरों की बात करें तो टाउनहाल, फतेहपुरी, हरिनगर, मूलचंद, एसआरसीसी आदि
कई महत्‍वपूर्ण घंटाघर देखे हैं दिल्‍ली में."

उनकी इस पोस्ट को पढ़कर युनूस जी को उनके शहर के घंटाघर की याद आ गई. उनकी टिप्पणी से प्रतीत हुआ कि मुम्बई में घंटाघर की कमी उन्हें बहुत खलती है. उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"हमें अपने शहर का घंटाघर याद आ गया । उफ जबलपुर. हाय मुंबई."

आज विवेक सिंह जी ने बताया कि उन्हें जब से ब्लागिंग का शौक चढा है वे घर से बाहर फुरसत के समय अपने मोबाइल पर पुराने ब्लाग्स पढ़ते रहते हैं. उनका ये काम शायद ऊब से बचने के सबसे अच्छे तरीकों में से एक है.

पुराने ब्लाग्स पढ़ते हुए उन्हें फुरसतिया जी का अजेंडा पढ़ने को मिला. अजेंडा पढ़कर विवेक जी की अंतरात्मा ने उन्हें धिक्कारा. इस धिक्कार के बारे में वे लिखते हैं;


"जब से हमने यह पोस्ट पढी है. तब से हमारी अंतरात्मा हमें धिक्कार रही है कि तुम तो
इनमें से कितने पाप कर चुके हो , और करने का विचार मन में पाले हो. विशेष रूप से
सात नम्बर का."

आप सोच रहे होंगे कि सात नंबर अजेंडा में फुरसतिया जी ने क्या लिखा है. तो बांचिये. उन्होंने लिखा है;

"किसी आरोप का मुंह तोड़ जबाब देने से बचना."

इस अजेंडे को पढ़कर विवेक जी माफी-मोड़ में आ गए. उन्होंने इस मोड़ में रहेत हुए लिखा;

"इस आत्म-ग्लानि को दूर करने का एक ही उपाय नज़र आता है कि हम प्रायश्चित कर
लें. हम गढे मुर्दों को न उखाडते हुए उन सभी लोगों से सार्वजनिक रूप से माफी चाहते
हैं जो कभी हमारे व्यवहार से आहत हुए हों..."

वैसे मेरा मानना है कि विवेक इतने प्यारे इंसान हैं कि उनके व्यवहार से शायद ही कोई आहत महसूस करे.

उनकी इस पोस्ट पर मुसाफिर जाट ने अपनी टिप्पणी में लिखा;

"अरे भाई विवेक, क्या यार माफ़ी शाफी मांग रहे हो, जो हो गया सो हो गया. आगे से
ध्यान रखना."

अब एक खुशखबरी. आज आदित्य ने बताया कि जिस दिन का उसे बहुत दिनों से इंतजार था वो दिन कल आ गया. मतलब ये कि आदित्य के नीचे वाले जबड़े में कल एक दांत दिखाई दिया.
आदित्य बता रहा है;


"बहुत दिनों से जिसका इंतजार था आखिर कल वो दिन आ ही गया..अब आप कहोगे, आदि बात तो बता क्या हो गया और किसका इंतजार था? तो सुनो मेरे भी दांत आने शुरु हो गये हैं... कल ही नीचे के जबडे़ से एक दांत झाकंता हुआ प्रकट हुआ!"

आदित्य ने ये भी राज खोला कि उसके पापा ने उस व्यक्ति को सौ रूपये इनाम में देने का वादा किया था जो सबसे पहले उसके दांत देखेगा. केवल सौ रूपये के इनाम घोषणा की पोल खोलते हुए उसने बताया;

"पता है पापा ने इनाम की घोषणा की थी, जो मेरे दांत आने की खबर देगा उसे 100/- रु
का इनाम मिलेगा.. केव्ल 100/- रु का इनाम? हां क्योंकि पापा को पता था कि वो तो जीत
नहीं पायेंगें.. खैर वो इनाम तो कल मम्मी को मिल गया.. अब आप कहेगें की मैं दांत का
करुगां क्या? तो आप ही देख लो.. मैने बिस्किट खाना शुरु भी कर दिया है.. हां खुद ही
खा लेता हूँ अब तो.. दांतो का ये ही तो फा़यदा है!"

अपनी टिप्पणियों में सबने आदित्य को दांतप्राप्ति पर बधाई दी. विवेक ने अपनी टिप्पणी में दांतों के फायदे बताते हुए लिखा;

"दाँत आने की बधाई .भाई दाँत निकलते समय अक्सर बच्चों को दस्त लगते देखा है . बचके रहना . दूसरी बात यह कि दाँत आने का सबसे बडा फायदा तो यह है कि अब तुम किसी को भी काट खा सकते हो . मसलन पापा का ध्यान हटे तुम्हारी तरफ से तो तुरंत काटकर अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा दो :)"

अब पढिये कुछ कवितायें और गजल.

जोशी कविराय जी अपनी गजल में कहते हैं;

या तो रौनक बाज़ारों में ।
या सत्ता के गलियारों में ।

चेहरे होते जाते पीले
पर सुर्खी है अख़बारों में


प्रकाश बादल जी की नज़्म पढिये. वे लिखते हैं;

"जैसे सौदाई को बेवजह सुकूं मिलता है
मैं भटकता था बियाबान में साये की तर
हअपनी नाकामी-ए-ख्वासहिश पे पशेमां होकर
फर्ज़ के गांव में जज़्बात का मकां होकर"


अबयज खान लिखते हैं;

जब कभी तन्हाई घेर लेती है
घर याद आता है, आंख भर आती है
दोस्त बचपन के बहुत याद आते हैं
तकिये में मुंह छिपाकर फिर ख़ूब रोते हैं


अभी के लिए बस इतना ही...एक लाईना लिखते हैं....एक बड़े ब्रेक के बाद.

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14 टिप्‍पणियां:

  1. अच्‍छी चर्चा


    वैसे क्‍या पाकिस्‍तान कुछ ज्‍यादा ही शांतिप्रिय देश नहीं है इतना ज्‍यादा कि सभी आतंकियों को मरने के लिए हमारे पास भेजता है

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  2. आज तो काफी माल लाद दिया . ज्ञानदत्त जी तो आज डिब्बे गिनते गिनते थक जाएंगे . हम तो चले ड्यूटी :)
    बाकी जो चन्द्रमौलेश्वर जी आकर कहेंगे उसी में हमारी सहमति है . आजकल वे फुल फॉर्म में खेल रहे हैं :)

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  3. धन्यवाद विवेकजी। लाद दिया न ज़िम्मेदारी...पर हां कहे देते है हम अपनी स्याही की आखिरी बूंद लगा देंगे- ज़रदारी की तरह:)
    ‘पाकिस्तान तो उल्झा है उसे सुलझाने की ज़रूरत है’- मिश्राजी ऐसे कह रहे हैं जैसे पाकिस्तान न हुआ, कोई प्रेमिका के ज़ुल्फों की लठ हो गई!
    > ताऊ जी का क्या, वो तो इधर भी सही उधर भी सही कहते हुए राम-राम बना कर चल देंगे:)हमने तो पहले ही विवेकजी से कह दिया है कि फुरसतिया की बातों को सीरियस्ली लेकर अपने आप को धिक्कारना छोड़ दें क्योंकि रेज़ोल्यूशन्स आर मेड टु ब्रेक और हम देख रहे हैं [और हमें देखना चाहिए-राजीवजी याद आ गए] कि फुर्सतियाजी ने अपने सारे रेज़ोल्युश्न ब्रेक करके ब्लागिंग में लगे हुए हैं।
    SO, KEEP GOING VIVEKJI:)

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  4. मिश्रा जी घणी जोरदार चर्चा यानि बारीक चर्चा ! इब डिप्लोमेसी वाली बात को आप तो समझते ही हैं !:)

    और हमारे यहां सबकी रामराम की जाती है ! जैसे दिवाली की रामराम , होली की राम राम ! सो यहां पुन: क्रिशमश कि भी रामराम !

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  5. शिव कुमार जी, आपके आदित्य की खुशखबरी सबसे बांटी, आपका आभार!!

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  6. बहुत ख़ूब

    ---
    http://prajapativinay.blogspot.com/

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  7. अरे हां. हम तो किश्मिश के साथ कविताजी की मैरेज अनिवर्सरी की सिलवर जुब्ली की शुभकामनाएं तो देना भूल ही गए थे। धन्य्बाद ताऊजी। राम-राम

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  8. अनूप शुक्ल को हृदयपरिवर्तक ऑफ द ईयर का अवार्ड दिया जाये।

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  9. अगर सम्भव हो तो कल की चर्चा में समीर जी को बधाई भी हम सबकी सम्मिलित और से दे दी जाए

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  10. सही बात है, रौनक या तो बाजारों में है या सत्ता के गलियारों में. आम आदमी की जिंदगी में तो अब रौनक रही नहीं.

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  11. कविता जी.. आप जहाँ कहीं भी हों,
    जमकर खुशियाँ मनायें..
    भरपूर सुख मिले, औ'
    हमसब लें बलायें


    शिवभाई, अब आपको क्या कहें .. ?
    सच में आपने आज चर्चा को तबियत से लादा है..
    मैं, एक छोटे से ब्रेक में यह टिप्पणी दे रहा हूँ !

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  12. अच्छी चर्चा...जोशी जी की गज़ल के बारे में बताने का बहुत-बहुत शुक्रिया

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  13. एक दिन देरी से पढ़ पाए चर्चा को। खूब तबीयत से लिखी गई है। आप की लेखनी का स्वाभाविक रंग अब चर्चा में आने लगा है।

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  14. शुक्रिया ..शिव जी .... सब बातों के लिए !

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