शनिवार, अगस्त 23, 2008

ये बिखरे बिखरे चिट्ठे खत्म ही नही होते

जी हाँ, मैं हिन्दी चिट्ठों की बात कर रहा हूँ अगर आप मेरी बात से इत्तेफाक नही रखते या आपको लगता है कि मुट्ठी भर चिट्ठों के लिये ऐसा क्यूँ कह रहा हूँ तो सिर्फ एक बार ये करके देखिये। अरे मैंने खुल के अभी भी नही बताया, ये से मेरा मतलब है चिट्ठा चर्चा। एक बार करने में ही शायद आप भी कहने लगेंगे -बिखरे बिखरे चिट्ठे ये खत्म क्यूँ नही होते।

चलिये आज की ये चर्चा भी ऐसे ही बिखरे बिखरे अंदाज में करें यानि इन चिट्ठों की कड़ियाँ कुछ ऐसे बिखेरें कि इनके बीच कुछ लिंक ही ना बन पाये। सबसे पहले जरा इस दृश्य में नजर डालते हैं -

जरा सोचिये आप घर में आराम से बैठे हों और आम खाने के शौकीन आप को फेरी वाले की आवाज सुनायी दे "आम ले लो", क्या करेंगे आप? जाहिर है झटके से उठेंगे और दौड़ पड़ेंगे आम लेने लेकिन जब देखेंगे कि ठेली पर आम हैं ही नही, टमाटर ही टमाटर हैं तो क्या हाल होगा आपका? ऐसा ही कुछ हमारे साथ हुआ जब हमने टाईटिल पढ़ा - खबरदार…यदि नरेन्द्र मोदी का नाम लिया तो… जाकर देखा तो चिपलूनकर ने ठेली पर कुछ और ही सजाया है।

मेरी समझ से हमारी चर्चा टोली के नये नये सदस्य हिंदी के पहले ऐसे ब्लोगर हैं जो घूस देकर टिप्पणी लेते हैं, ये बता दूँ घूस का मतलब सिर्फ पैसा नही होता। कुछ लोग एक प्याला चाय पीकर ही काम कर देते हैं। अब ये सिद्ध करने जा रहे हैं कि जैंटलमेन भी घूस लेते हैं, किस तारीख को लेंगे वो आप यहाँ जाकर देख सकते है।

अब थोड़ा वफादारी पर बात करते हैं, अगर आप कुछ सोचने लगे हैं तो बता दूँ - वफादारी कोई मुफ्त में नहीं मिलती जो लोगे, अगर शक हो रहा है तो ये पढ़िये -
सेठ ने मजदूर से कहा
'तुम्हें अच्छा मेहनताना दूंगा
अगर वफादारी से काम करोगे'
मजदूर ने कहा
'काम का तो पैसा मै लूंगा ही
पर वफादारी का अलग से क्या दोगे
वह कोई मुफ्त की नहीं है जो लोगे

वफादारी के साथ साथ आपको काम की महत्ता भी पता चल गयी होगी।

अब वक्त हैं एक मजेदार खबर सुनाने का, और वो खबर है - गुजरा हाथी सुई की छेद से

कपड़े पर लगा दाग तो आप धो सकते हैं लेकिन इस्लाम पर आतंकवाद का दाग ये कैसे धोया जा सकता है कोई बता सकता है क्या? देखिये तो प्रेम शुक्ल क्या कह रहे है-
"भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश का मुसलमान राजनीतिक सीमा से उपर उठकर अहले इस्लाम के बैनर तले एक नजर आता है. दूसरी ओर हिन्दू समाज जाति, भाषा, प्रांत और क्षेत्रवाद की जटिल सीमाओं से अपने आप को कभी मुक्त ही नहीं कर पाया"


शायद ये सभ्यता का असर है जो कपड़े छोड़कर कहीं और दाग लगाये जा रही है, हो भी क्यों ना आखिर सभ्यता के साथ अजीब नाता है बर्बरता का
मनुष्य ने संदेह किया मनुष्य पर
उसे बदल डाला एक जंतु में
विश्वास की एक नदी जाती थी मनुष्यता के समुद्र तक
उसी में घोलते रहे अपना अविश्वास
अब गंगा की तरह इसे भी साफ़ करना मुश्किल
कब तक बचे रहेंगे हम इस जल से करते हुए तर्पण


जैंटलमेन से मिलने पर जो मानसिक हलचल होगी क्या आप बता सकते हैं कि वो असीम प्रसन्नता की वजह से होगी या गहन विषाद की वजह से -
हम लोगों ने परस्पर एक दूसरे की सज्जनता पर ठेलने की कोशिश की जरूर पर कमजोर सी कोशिश। असल में एक दूसरे से हम पहले ही इतना प्रभावित इण्टरेक्शन कर चुके थे, कि परस्पर प्रशंसा ज्यादा री-इट्रेट करने की आवश्यकता नहीं थी। वैसे भी हमें कोई भद्रत्व की सनद एक दूसरे को बांटनी न थी। वर्चुअल जगत की पहचान को आमने सामने सीमेण्ट करना था। वह सब बहुत आसान था। कोई मत भेद नहीं, कोई फांस नहीं, कोई द्वेष नही। मिलते समय बीअर-हग (भालू का आलिंगन) था। कुछ क्षणों के लिये हमने गाल से गाल सटा कर एक दूसरे को महसूस किया।


प्रीती बङथ्वाल उसे ढूँढ रही जो उनका नाम लिखा करता था, हमने उनका नाम इस चर्चा में जरूर लिया है लेकिन साफ कर दें वो खुशनसीब हम नही। प्रीती का कहना है -
वो आईना,
जो मेरी ख़ामोशियों को पढ़ता था,
अपने हाथों पे जो,
मेरा नाम लिखा करता था,
जाने कहां गई ,वो,
लकीरें मेरे हाथों से,
जिन लकीरों को,
वो हर शाम पढ़ा करता था।

वहीं दूसरी ओर अपराजिता को शिकायत है कि अब खत नही आता। किस्मत का भी खेल देखिये साहेबान इनको खत नही आ रहा और शिवजी के साथ लोगों का खत आदान प्रदान का सिलसिला सा चल पड़ा है, यकीन नही आये तो शिवजी की चिट्ठी का जबाब पढ़िये, इसमें एक जगह लिखा है -
जो जैसा दिखता है वैसा होता नहीं। जैसा होता है वैसा दिखता नहीं। हर आदमी हैंडपम्प हो गया है- दो हाथ जमीन के ऊपर, सत्तर हाथ नीचे।

आदमी को हैंडपम्प कहे जाने से शायद आप सोच रहे होंगे कि कहाँ खो गई जिन्दगी, अब ये तो राधिका ही बता सकती हैं जिनका कहना है -
एक समय था जब इस धरती पर इन्सान रहा करता था,वह अपनों से मिलता,उनके सुख दुःख बाटता,उनकी खुशियों में झूमता,गमो में रोता,वह निसर्ग से बाते करता,उसके पास खुदके लिए थोड़ा वक़्त होता,जब वह ख़ुद से बाते करता,अपने शौक पुरे करता,वह गुनगुनाता,गाता,नाचता,चित्रकारी करता,कभी कोई कविता रचता,अपनों के साथ बैठकर खाना खाता। कभी वह इन्सान इस धरती पर रहता था।

ट्रैन पर चढ़ते इन लोगों को देख कर आप लोगों का तो पता नही लेकिन मुझे जरूर लग रहा है कठिन है डगर इस पनघट की, संजय का मानना भी यही है तभी तो वो कहते हैं -
मजहब के चश्में से देखने वाले न भूले की हिन्दुओं के सबसे बड़े धार्मिक नेता शंकराचार्य को ही जेल हुई थी

वहीं पनघट की चिंता से दूर अभिषेक का मानना है कि आने वाले वक्त में लंगोट ज्यादा बिकेंगे क्योंकि कुश्ती मे पदक जो मिला है वह‍ीं तरूश्री का कहना है कि हैलमेट बिकने की संभावना भी उतनी ही प्रबल है क्योंकि मुकेबाजी में पदक मिला है।

खमा घणी बता रहे हैं कि कैसे किसी की बिपाशा से मिलने की आशा चीन में निराशा में बदली लेकिन फिर भी हम नीतीश की कही बात से ज्यादा इत्तेफाक रखते हैं जिनका कहना है विजेंदर तुम जीत गये हो

और अगर आप एकता कपूर के धारावाहिक के अंतिम एपिसोड कब होगा इसका रोना रोते हैं तो बालेन्दू की भी सुन लें जो बता रहे हैं कि पाकिस्तान के धारावाहिक का अंतिम एपीसोड भी अभी बाकी है

अंधेरे में रौशनी की किरण टप्पू का गर्ल्स स्कूल, आप भी जा कर देखें

अनिल बता रहे हैं लोग और उनके नेता कैसे हों -
किसी भी व्यक्ति को उसकी राष्ट्रीयता से नहीं बल्कि उसकी काबिलियत और नीयत के हिसाब से पहचानें।

सुभाष कांडपाल, प्रसून लतांत की लिखी एक अच्छी बात बता रहे हैं -
उत्तराखंड की लड़कियों ने शादी के लिए आए दूल्हों के जूते चुरा कर उनसे नेग लेने के रिवाज को तिलांजलि दे दी है. वे अब दूल्हों के जूते नहीं चुराती बल्कि उनसे अपने मैत यानी मायके में पौधे लगवाती हैं. इस नई रस्म ने वन संरक्षण के साथ साथ सामाजिक समरसता और एकता की एक ऐसी परंपरा को गति दे दी है, जिसकी चर्चा देश भर में हो रही है।


पीडी मिला रहे हैं समीर लाल के कवि गुरू से, देखिये -
एक डाल से तू है लटका,
दूजे पे मैं बैठ गया..
तू चमगादड़ मैं हूं उल्लू,
गायें कोई गीत नया..

घाट-घाट का पानी पीकर,
ऐसा हुआ खराब गला।
जियो हजारों साल कहा पर,
जियो शाम तक ही निकला

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12 टिप्‍पणियां:

  1. हमारा तो यही कहना है कि बड़ा अच्छा लगा निठल्ली चर्चा देखकर। ऐसे ही नियमित करते रहिये जी। धांसू च फ़ांसू चर्चा।

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  2. आये हाये!!! आये और छाये!! बहुत खूब!! तरुण बाबू, अब यह क्रम न टूटे-आप, कुश और भाई फुरसतिया-दिन बांट लो और नियमित ऐसे ही आनन्द का प्रवाह बनाये रखो. बहुत अच्छा लगता है. शाबास-तीनों को!!! जारी रहो!!

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  3. .

    आनन्दम आनन्दम..
    अनोखा नज़ारा या कहें कि अनोखी मिसाल..

    इसको कहते हैं, ठेलने की स्प्रिट ! एक अकेला थक जायेगा...
    मिल कर हाथ बढ़ाना... साथी हाथ बढ़ाना
    वाह.. मैं तो इसी से मुदित हूँ
    प्रफ़ुल्लित च किलकित .. शायद अपनी ऊँगलियों की मालिश कर रहें हैं

    भईया.. ये उड़न तश्तरी भी कभी यहाँ उतरेगी कि ..
    आसमान से ही सबको शाबासी बाँटती रहेगी ?

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  4. लंगोट और हेलमेट। ये क्या कोई नए कार्टून नायक की यूनिफार्म है क्या?

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  5. वाकई बड़ी निठल्ली चर्चा रही.. इतनी बढ़िया प्रस्तुति है की हम निठल्ले बैठे चिंतन कर रहे है.. की इतना बढ़िया माल आप किस गोदाम से लाते है..

    बस यूही निठल्लागिरी करते रहिए.. और मुफ़्त की सलाहो से बचते रहिए :)

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  6. परम मनोहारी चर्चा है ! और मनोरम
    से भी मनोरम कमेन्ट हैं ! आनंद आ
    रहा है ! भक्तों को आनंद बाँटते रहिये !

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  7. आपने बहुत अच्छी तरह से छाना है. बहुत बढीया.

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  8. नरेन्द्र मोदी का नाम हमने "टीआरपी" बढ़ाने के लिये नहीं लिया था, बल्कि हमारा इशारा साफ़ था कि सिर्फ़ "नमो" ही देश को एक सशक्त नेतृत्व दे सकते हैं… आम का जिक्र किया था तो आम भी रखे थे, ये और बात है कि…

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  9. बहुत ही जबरदस्त छानबीन का नमूना है और आम वाली बात बिल्कुल ठीक...। सही बात लिखी है।

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  10. आप ने सही लिखा कि 'वो' आप नहीं है। मेरी कविता की चर्चा आपने की उसके लिए धन्यवाद।

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  11. बिखरी चर्चा में भी सौन्दर्य है। बाल बिखराये षोडसी के माफिक।

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