शुक्रवार, सितंबर 29, 2006

जरूरत है छिद्रान्वेषियों की!

व्याकरण ज्योति की मशाल अब आलोक से विनय ने थाम ली है
अपनी बात कहूँ तो अगर अँगरेज़ी के किसी चिट्ठे में मुझे इस क़दर वर्तनी अशुद्धियाँ मिलें तो मैं एक पैरे से आगे न बढ़ूँ और उस चिट्ठे पर लौटूँ तक नहीं. अक्सर कई हिंदी चिट्ठों के साथ भी ऐसा करने की इच्छा होती है, और कुछ के साथ किया भी है, पर कुछ मजबूरी में और कुछ लत की वजह से चलता रहता है.


यह एक सार्थक कदम की शुरूआत है। यहाँ एक प्रसंग का उल्लेख करना सार्थक होगा। ब्लागिंग के शुरूआती दिनो में इस नाचीज को अपनी किस्सेबाजी के दस्तावेज "लाईफ इन ए एचओवी लेन" पर एक टिप्पणी मिली "अगर अरोरा और नरूला ऐसी हिंदी लिखेंगे तो शर्मा, पाँडे और द्विवेदी वगैरह का क्या होगा?" ऐसी टिप्पणियों पर फूल कर कुप्पा होना स्वाभाविक है। पर गलतियाँ हमसे भी होती है। लाईफ इन ए एचओवी लेन को सैकड़ो ने पढ़ा होगा पर एक गलती की ओर ध्यान दिलाया श्री राजीव टँडन ने। गलती यह कि शीर्षक "लाईफ इन एन एचओवी लेन" होना चाहिये। राजीव जी ने यह जोड़ना न भूला कि भई गलती सुधर सके तो सुधार लो पर इसे परछिद्रान्वेषण न समझ लेना। मैं यह बताते हुये गर्व महसूस करता हूँ कि श्री राजीव मेरे अध्यापक रहे हैं कंप्यूटर साइंस में । उनकी हिंदी पढ़कर लगता है कि अभी भी बहुत कुछ सीखना शेष है और ऐसे "छिद्रान्वेषण" को तो मैं अपना अहोभाग्य समझता हूँ और अपेक्षा करता हूँ कि साथी चिठ्ठाकार ऐसी "छिद्रान्वेषी" टिप्पणीयों को सकारात्मक भाव से ग्रहण करेंगे।

आजतक अब तक हत्यारा था अब अहसानफरामोश भी बन गया, जानिये बालेंदु शर्मा से। बालेंदु का खबर देने वालो की खबर लेने का अँदाज काबिले तारीफ है। कभी हिंदी ब्लागजगत में श्रेणीआधारित सामूहिक ब्लाग की चर्चा हुई थी, पर साहित्य के अलावा ज्यादा वैविध्य नही दिखता था। इक्का दु्क्का लेख दिख जाते थे विज्ञान , वाणिज्य पर । लेकिन अब पत्रकारिता पर बालेंदु और तकनीकी पर उनमु्क्त एवं रवि जैसे लेखको के नियमित लिखने से हिंदी चिठ्ठाकारिता के इँद्रधनुष के रंगो में बढ़त्तोरी होते दिखना हर्षदायक है।

पालतू चूहा
दिल फेंक आशिक
बदलो दिल

इस्त्री लाया
कनऊ चपरासी
सत्यानास

काली बिल्ली
काट गयी रास्ता
हे भगवान!

लाल ड्रैगन
कराये है वोटिंग
रत्ना हैरां



अब यह क्या है? रत्ना जी से समझिये

कुँडली नरेश जी से सुनिये कवि सम्मेलन का सीधा प्रसारण

लेक ऎरी की तीर पर, भई कविजन की भीड़
रचना अब कोई और लिखे, तबहिं पढ़ें समीर.


लगता है कविता रस का मीठी नदियाँ अब उत्तर भारत से खिसक कर अमेरिका के उत्तरी सिरे पर बहने लगी हैं। यकीन नही होता! कुँडली नरेश जी के साथ साथ डा. लक्ष्मी गुप्ता के कविता रस की बौछार से तो यही लगता है।

या कलजुग माँ मोहन का माखन ना भायो रे।
पीज़ा हट में पीज़ा खावैं गोपिन का खिलायो रे।।


पँकज भईया के पिटने के दिन आ गये हैं। अब गरबे में घरवाली को लेजाकर भीड़ में गुमा देंगे और बाहरवालियो के सँग नैनमटक्का करने की फिराक में रहने वालो का अँजाम क्या होगा, आप ही बताइये।

चलते चलते कछुवा, खरगोश और ओपेन सोर्स पढ़ना न भूलियेगा।

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6 टिप्‍पणियां:

  1. अतुलजी क्षमा करें, आज मेरे खुरापाती दिमाग जाने क्यूँ चिट्ठा-चर्चा में गलतियाँ ढूंढने लगा और नतिजा देखिए -

    इस्त्री लाया (५ अक्षर होने चाहिए)
    कनऊ चपरासी
    सत्यानास (५ अक्षर होने चाहिए)


    सुधार के बाद -

    इस्तरी लाया
    कनऊ चपरासी
    हो सत्यानास

    ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

    काली बिल्ली (५ अक्षर होने चाहिए)
    काट गयी रास्ता (७ अक्षर होने चाहिए)
    हे भगवान!


    सुधार के बाद -

    काली सी बिल्ली
    काट गयी यूँ रास्ता
    हे भगवान!

    ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

    लाल ड्रैगन
    कराये है वोटिंग
    रत्ना हैरां (५ अक्षर होने चाहिए)


    सुधार के बाद -

    लाल ड्रैगन
    कराये है वोटिंग
    रत्नाजी हैरां
    ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

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  2. वाह भाई अतुल, हाईकु और क्षणिकायें तो अच्छी रच डाली. मजा आया पढकर.

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  3. क्या बात हैं अतुल भाई, कमाल लिखे हो.

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  4. यहीं से शुरू करता हूँ. :)

    टँडन - टंडन (पूछ लें उनसे)
    चिठ्ठाकार - चिट्ठाकार
    टिप्पणीयों - टिप्पणियों
    खबर देने वालो - खबर देने वालों
    अँदाज - अंदाज़
    लेखको - लेखकों
    इँद्रधनुष - इंद्रधनुष
    रंगो - रंगों
    बढ़त्तोरी - बढ़ोतरी
    कुँडली - कुंडली
    पँकज - पंकज
    लेजाकर - ले जाकर
    बाहरवालियो - बाहरवालियों
    सँग - संग
    रहने वालो - रहने वालों
    अँजाम - अंजाम
    में । - में। (विराम से पहले जगह नहीं)

    अंत में राजीव जी को दोहराना चाहूँगा- "भई गलती सुधर सके तो सुधार लो पर इसे परछिद्रान्वेषण न समझ लेना।" :)
    (संदर्भ - मीन-मेख अभियान)

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  5. भई हम भी इम्परैस हो गए। अपनी रचना से अधिक उसकी चर्चा पसंद आई।

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  6. और पहली टिप्पणी पर टिप्पणी
    अतुलजी क्षमा करें, आज मेरे खुरापाती दिमाग जाने क्यूँ चिट्ठा-चर्चा में गलतियाँ ढूंढने लगा और नतिजा देखिए -

    मेरे - मेरा
    खुरापाती - ख़ुराफ़ाती
    क्यूँ - क्यों
    नतिजा - नतीजा

    जवाब देंहटाएं

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