आज अनजाने में ही 
एक चिट्ठाचर्चा , हमारी चर्चाकारी से बेहतर, वैसे ही हो चुकी है जो कि हमारे मित्र 
जगदीश भाटिया ने अपने अनोखे और 
निराले अंदाज  में की है. हम तो उसे ही कट पेस्ट कर देते. परमिशन भी मांगे थे. मालूम भी है वो दे देंगे मगर भारत है, क्या करें. जब तक परमिशन आयेगी-दिन सरक जायेगा, बातें महत्ता खो देंगी. इस लिये बस लिंक दिये दे रहे हैं तो वहाँ तक की चर्चा 
इस लिंक  पर देखें. मजा आने की गारंटी, जगदीश भाई की तरफ से हमारी.
अब आगे बढ़ना ही जिन्दगी है तो हम भी बढ़ें. क्या आपको पता है कि ब्लॉगर पर आप अपने पोल और सर्वे करवा सकते हैं जैसा कि नारद करता है कि आप स्त्री हैं कि पुरुष. बिना इसका ध्यान रखे कि एक वर्ग और है. चुनाव तक लड़ने का अधिकार है मगर नारद पढ़ने का नहीं. खैर, उसे छोड़ें. हरि इच्छा के आगे क्या कहें. मगर ऐसे पोल आप कैसे कर सकते हैं बता रहे हैं 
अंकुर भाई . सीख गये और आसमान पर नजर दौडाई और रोज की तरह आज भी 
आज की शायरी  और 
सामान्य ज्ञान  प्राप्त किया. आज, आज के विचार की कमी खली, आदत जो पड़ गई है. वैसे, यह मात्र प्रस्ताव है कि अगर यह तीन दैनिक पोस्टों को एक कर दिया जाये और शीर्षक रहे-
आज का विचार, शायरी और सामान्य ज्ञान. तो एक ही क्लिक में काम चल जाये और नारद के संसाधनों का भी उपयोग सभी के द्वारा बराबरी से हो सके. यह मात्र आज का हमारा विचार है, बाकि जैसा आप उचित समझें.
अनिल जी की रचना 
विड्म्बना देखें-सव, एक सुन्दर रचना है. और भी दुर्लभ चीज देखना हो तो 
सागर भाई हेमंत दा का 
दुर्लभ गीत  सुना रहे हैं और 
अमित दुर्लभ चित्र  दिखा रहे हैं. चाहे कुछ देख दिखा लो, मगर कमलेश भाई का डिक्लेरेशन कि 
मैं भी इंसान हूँ देखना न भूलना. हमने न सिर्फ देखा बल्कि टिपियाया भी है. :) अब ध्यान रखते हैं.
अनिल रघुराज जी की लेखनी के तो हम व्यक्तिगत तौर पर कायल हैं और आज उस पर और मुहर लग गई जब उन्होंने क्यूबा के कास्त्रो के विचार हिन्दी में लिखे यह कहते हुये कि 
आत्मा जैसे होते हैं विचार . आज पहली बार पढ़ा और 
दिनेश पारते जी ने तो मानो लुट ही लिया-क्या रचना है!! हम तो पूछने वाले थे कि क्या भाई, आपने ही लिखी है?? गजब भाई गजब-
 आकांक्षा मानकर चले कि उन्होंने ही लिखी है तो उसका कुछ भाग यहाँ न दें तो पाप कहलायेगा, सच में:
हे कृष्ण मुझे उन्माद नहीं, उर में उपजा उत्थान चाहियेअब रास न आता रास मुझे, मुझको
गीता का ज्ञान चाहियेनिर्विकार निर्वाक रहे तुम, मानवनिहित् संशयों परकिंचित
प्रश्नचिन्ह हैं अब तक, अर्धसत्य आशयों परकब चाह रही है सुदर्शन की, कब माँगा है
कुरुक्षेत्र विजयमैने तो तुमसे माँगा, वरदान विजय का विषयों परमन कलुषित न हो,
विचलित न हो, ऐसा एक वरदान चाहियेमुझको गीता का ज्ञान चाहिये
.....पूरी रचना 
यहाँ पढ़ें  . वाह, बधाई, मित्र. उनकी पुरानी रचनायें भी पढ़ें.
लिखे तो 
राजीव रंजन जी भी 
चाँद  पर बेहतरीन क्षणिकायें हैं मगर कोशिश करके भी हम टिपिया नहीं पाये, पता नहीं क्या समस्या है.
रचनाकार ने बेहद नाजुक कहानी 
विजय शर्मा जी की 
सुहागन सुनाई, हम तो ऐसा खोये कि टिपियाना ही भूल गये, जो अभी देख पाये. माफ कर देना भाई, चर्चा के बाद कोशिश करते हैं.
राजेश पुरकैफ भाई से 
बारिश के मंजर की एक अलग तस्वीर देखें-हमने कह दिया है: 
किसी की मस्ती, किसी की उजड़ी बस्ती।
 चन्द्र भूषण जी ने कहा 
लट्ठलट्ठे का सूत कपास-शीर्षक देख कर पढ़ना शुरु किया और पहली लाईन देख कर बंद-आपका दिल करे तो पढ़ें . मेरी मंद बुद्धि है, गहराई समझ नहीं पाता. मगर अधिकतर 
चंद्र भूषण जी लिखा पसंद करता हूँ तो बता दिया.
सब चुप रह जायें तो भी मेरे भाई 
मसिजीवी न चुप रहेंगे, तो उनकी सुनो 
चिट्ठाजगत की गोपनियता पर  ....
अभी यही रुकते हैं, वादा है कि 
कल सुबह आगे की कवरेज दूंगा बिना नागा.....जरा, हड़बड़ी में भागना पड़ रहा है....कोई भी कुछ न सोचे मैं वापस आ रह हूँ...
क्षमा मित्रों.
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