शनिवार, जून 30, 2007

यह चिट्ठाचर्चा है अनदेखा न करें !!

शुक्रवार के सारे चिट्ठे यहाँ देखें अब तलक न देखे हो तो ।
चिट्ठाजगत को सरकते हुए लोग बाग परीक्षण पोस्ट डाल रहे है और हम देख रहे है कि देखें कि अनदेखा कर दें । खैर यह तो सिद्ध हुआ कि जहाँ किसी किसी पोस्ट को केवल 2-3 हिट्स पर संतोष करना पडता है वही परीक्षण पोस्ट उससे ज़्यादा कमाऊ पूत है । पंगेबाज़ इसे लेख हिट करने के तरीकों में शामिल करें । J
कौन बनेगा राष्ट्रपति पर हमरा धोबी भी राय देने लगा है । उसकी अतरात्मा की आवाज़ है कि अगला राष्ट्रपति गोविन्दा को बनाना चाहिये । विस्फोट पर बिल्लू जी को राष्ट्रपति बनाने की कवायद चल रही है । कौन बिल्लू ?

वही अमेरिकवाला. बिल किलिंटन, पहले अमेरिका भी तो कितना अच्छा चला चुका है. तबियत का मस्त है और यहां आता-जाता भी रहता है।

एक गुलाब दिखा रा.च. मिश्र जी ने जिसे कैमर मे कैद किया है । पर भैय्ये , गुलाब की लाली के पीछे इत्ती सारी तकनीक है कि सर चकरा गया ।


प्रस्तुत चित्र मे Center AF फ़ोकसिंग विधि का प्रयोग किया गया है, Background मे अधिक रोशनी होने के कारण Spot Metering और Auto Settings वांछित परिणाम देने की स्थिति मे नही थे इसलिये CCD की संवेदन शीलता बढ़ाकर (४०० ए एस ए या आइ एस ओ) Flash (Slow Sync Mode) के साथ संतोषजनक परिणाम
प्राप्त हुए।
उधर मसिजीवी लौंडपने से बाज नही आ रहे है और ‘मेट्रोटाइम रीडर ‘ खरीद अपने झोले के सुपुर्द कर दी है । झोले में गूगल और ट-टा प्रोफेसर का घालमेल वही देखिये जाकर ।
विडम्बना पर जे सी फिलिप लिख रहे है -

उनके घर से करोडों बरामद हुए,पर वे बेफिकर हैं.यह तो सिर्फ बचाजूठन था.
हमने भी बुध बाजर मे रिलायंस वालो की एक रेह्डी देखी थी ।इसलिए प्रतीक की चिंता सही नज़र आती है कि


कल को रिलायंस मोची के काम में भी सेंध लगा सकता है। पता चला कि जूते सीना और पॉलिश करना पचास हज़ार करोड़ रुपये का बाज़ार है।
अड्डा शब्द मे निहित नकारात्मक बोध के बावजूद वह प्रिय स्थल हो सकता है । पढें मनोज सिंह को रचनाकार में --


चिंता न करें। यह पढ़ने-लिखने का अड्डा है, जहां मुझे अकेले रहने में मजा आता है।

वैसे नारद भी हम चिट्ठाकारों का अड्डा ही तो है ।क्यों?
सुबह –सुबह आजकल की स्नान -लीला पर ऐतिहासिक विकासवाद की कथा बांच कर संजय जी आज सो रहे हैं ।

नहाना अब केवल नहाना ही नहीं रहा, एक विधिवत किया जाने वाला कर्मकाण्ड हो गया है. विश्वास नहीं होता होतो पढ़ जाइये.
दृश्य एक, सरोकार अलग अलग. कैसे हो जाते है पढिये टूटी हुई बिखरी हुई मे ।
रमा द्विवेदी से सीखिये प्रेम में लहलहाना --


प्रेम पाना चाहते गर गुनगुनाना सीख लो।


प्रेम में झूमो तुम ऐसे लहलहाना सीख लो॥


मन की बातें घुघुती जी की सुन्दर कविता में ।यह मन है क्या ? खैर जो भी है बडा बलवान है --



अपने अन्तः की तेरे मन से


कितनी बातें कर आता है ,


जा पास तेरे, तेरे मन की


कितनी बातें सुन आता है




आज दिन भर की पोस्टे पढ कर यदि थक चुके हो और सैटरडे नाइट मनाने लेट नाइट शो देखने का मन हो तो असलियत जान लीजिये प्रत्यक्षा जी से ।

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5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया चिट्ठा चर्चा रही । जब आपने हमारे मन की जान हमारी कविता को चर्चा में सम्मिलित किया तो चर्चा तो बढ़िया ही लगेगी ।
    बहुत दिनों के बाद आपका चिट्ठा पढ़ पाई । प्रायः मैं आपके चिट्ठे को खोल नहीं पाती । शायद गड़बड़ मेरी तरफ से हो ।
    घुघूती बासूती

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  2. अब आप ध्यान देकर हमे शामिल नही करेगी चिट्ठा चरचा मे तो हम काहे ध्यान देगे भाइ :)

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  3. गयादीन-घुरहू की राष्ट्रपति चर्चा को चुनने के लिए धन्यवाद. बात बिल्लू तक पहुंचनी चाहिए.

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  4. नहीं किया जी अनदेखा. बढ़िया चर्चा कैसे अनदेखा कर देते. :)

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  5. रोचक चर्चा, बधाइयाँ स्वीकारें।

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