जब बयार की बात चली हो तो सबसे अच्छी जो पवन सुहाती है वो गंगा (नदी) किनारे। गंगा की बात करी तो याद आता है छोरा गंगा किनारे वाला। लेकिन युनूस भाई को याद आ रहा है "गंगा रेती पे बंगला छबाय दियो रे"। अब चूँकि बात बंगले की है तो वहाँ काफी रेती (रेत) भी बिखरी हुई है।
गंगा-रेती में बंगला छबा मोरी राजा आवै लहर जमुने की ।गंगा किनारे बंगला होने का एक और फायदा है, अगर बंगले के बाहर बैठे बैठे कभी सूरज की गर्मी से बदन झुलसने लगे तो बजाय अंदर जाने के आप गंगा में डुबकी लगा सकते हैं। लेकिन शर्मा बंधु का जलते तन को ठंडक पहुँचाने का तरीका थोड़ा अलग है, तभी तो गा रहे हैं -
कोई अच्छा-सा खिड़की कटा मोरे राजा, आवै लहर जुमने की ।।
खिड़की कटाया, मोरे मन भाया
कोई छोटी-सी बगिया लगा मोरे राजा आवै महक फूलों की ।।
जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाये तरूवर की छाया,आवाज में फिलहाल तो खेल चल रहा है और खिलाड़ियों की चिंता यही है कि खेल अधूरा ना छूटे -
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, जब से शरण तेरी आया
जीत ही लेंगे बाजी हम तुम, खेल अधूरा छूटे ना
बहार डोल रही है और मतवाली कोयल बोल रही है, बोल रही है? नही, नही कोयल तो गाती है लेकिन ये कोयल की तो आवाज नही। अरे ये तो उस्ताद राशिद खान साहेब हैं जो राग बहार अलाप रहे हैं आगाज पर।
आजकल मेंहदी हसन साहेब बीमार चल रहे हैं, उनके स्वास्थ्य लाभ की कामना करते हुए संजय सुर-पेटी में सुना रहे हैं, मेंहदी हसन को - दिल में तेरी उल्फत का निंशा बाकी है।
गुलजार साहब की कलम के तो हम पहले से ही मुरीद थे, और आवाज के भी अब विमल जी भी गुलजार की आवाज से काफी प्रभावित हैं। अब गुलजार की बात चली है तो क्या आप बता सकते हैं कि उनका लिखे गीतों में शुरूआती दिनों का यानि पहले पहला का गीत कौन सा है? हम नही बतायेंगे खुद जाकर सुनिये और चड्डी पहनके खिले हुए फूल को भी देख कर आइये।
अच्छा अब जरा ये बांचिये -
'ख़ातिर' ये है बाज़ी-ए-दिलकिसका लिखा है बता सकते हैं? सुनने में कैसा लगेगा बूझ सकते हैं? हमें तो भला भला सा लगा पहली बार सुनकर, आप जरा देख कर आइये तो।
इसमें जीत से मात भली
रून झुन बाजे ललन पग पैजनियाँ ये कह रही हैं पारूल रामनवमी के अवसर पर लेकिन मुझे लगता है कि राम और श्याम में कोई फर्क है क्या कम से कम मेरे लिये तो नही इसलिये बजाय राम के कह रहे हैं - शाम ढले जमुना किनारे, किनारे आजा राधे आजा तूझे श्याम पुकारे।
प्रत्येक वाणी में महाकाव्य, नही महाकाव्य नही ठुमरी। इस बार की संगीत चर्चा ना देख कर आप में से कुछ लोग शायद ऐसा ही कुछ सोच रहे हों - का करूँ सजनी आए न बालम। बड़े गुलाम अली को सुनिये यही गाते हुए।
मैने चर्चा शुरू की थी गंगा यानि नदी की बात से, नदी यानि पानी। इसलिये सोच रहा हूँ आगाज जिस बात से किया इस चर्चा का अंजाम भी उसी बात के बारे में बात करके करें। मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा...जहाँ कोई गड्ढा होगा वहीं ठहरा हुआ होगा। क्या आप भी ऐसा ही सोच रहे हैं, तो गलत। दुष्यंत कुमार का कहना कुछ और है, सुनिये -
हमें दीजिये ईजाजत, आपका दिन हंसते गाते बीते और रात एकता कपूर का सीरियल देखते हुए, क्योंकि आपकी पसंद ने ही तो ये नौबत आने दी ना।
यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा
यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं
ख़ुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा
"जहाँ गीत बजने चाहिये थे वहाँ सन्नाटा बिखरा हुआ था। "
जवाब देंहटाएंकैसे मंज़र सामने आने लगे हैं
गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं :)
वाह!! क्या बात है..तरुण बाबू छाये हुए हैं आज!
जवाब देंहटाएंअच्छी रही चर्चा .
जवाब देंहटाएंपद्य चर्च के लिए धन्यवाद.
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जवाब देंहटाएंबाँकें तरूण, यूँ ही इस गली आया करो
सूने दिन को ग़ुलज़ार करने कोई आया तो सही..
सास-बहू पर एक छोटे कटाक्ष नें मन मोह लिया
यह तो ब्लागर पर भी लागू होता होगा, शायद ?
शायद इसलिये कि, आई एम नाट स्यौर बिकाज़
आई कुड नाट मेक आउट डियर ब्लागर्स टेस्ट, एज़ येट !
वाह!! क्या बात है..तरुण बाबू छाये हुए हैं आज!
जवाब देंहटाएंपद्य चर्च के लिए धन्यवाद.
अनूठी चिठ्ठाचर्चा।
जवाब देंहटाएंगंगा किनारे जमुना की लहर का मजा है इसमें।
बहुत शानदार चर्चा है जी.
जवाब देंहटाएंरामराम.