रिक्शे के डिजाइन और उसके माइक्रोफिनांस की स्कीम से मैं बहुत प्रभावित हुआ। रिक्शे के पीछे इस स्कीम के इलाहाबाद के क्रियान्वयनकर्ता – आर्थिक अनुसंधान केन्द्र का एक फोन नम्बर था। मैने घर आते आते उसपर मोबाइल से फोन भी लगाया। एक सज्जन श्री अखिलेन्द्र जी ने मुझे जानकारी दी कि इलाहाबाद में अब तक २७७ इस तरह के रिक्शे फिनान्स हो चुके हैं। अगले महीने वे लोग नये डिजाइन की मालवाहक ट्रॉली का भी माइक्रोफिनांस प्रारम्भ करने जा रहे हैं। रिक्शे के रु. ६५०x१८माह के लोन के बाद रिक्शावाला मुक्त हो जायेगा ऋण से। उसका दो साल का दुर्घटना बीमा भी इस स्कीम में मुफ्त निहित है।
उनकी पोस्ट पर आलोक पुराणिक कहते हैं:
माइक्रोफाइनेंस से बड़ी उम्मीदें हैं जी। इसने बता दिया कि गरीब ईमानदारी से छोटी रकम से बड़े धंधे खड़े कर देता है और अमीर अगर बेईमानी पर उतर आये, तो बड़े से बड़े संगठन का भी राम नाम सत्यम कर देता है। जमाये रहिये।
सच्ची की ब्लागिंग तो आप ही कर रहे हैं। दुनिया जहान पर जाने कहां कहां से आइटम निकाल लाते हैं।
आजकल जंगल लकड़ी के लिये कट रहे हैं और चट्टाने सीमेंट के लिये टूट रही हैं लेकिन खलील जिब्रान की बताई और लवली द्वारा सामने लाई गई प्यार की परिभाषा में ये दोनों मौजूद हैं:
जब प्यार तुम्हे पुकारे तुम उसके पीछे चल दो. चाहें उसके रास्ते घने जंगलों से दुर्गम और सीधी चट्टानों से दुरूह हों।हम अपनी मोटरसाइकिल में पेट्रोल भराये इंतजार कर रहे हैं न जाने किधर से पुकार आ जाये।
प्रवासी लोगों को एक सुविधा बड़ी बढ़िया है कि जब मन आया देश को याद कर लिया। भावुक हो लिये। कवि होने के नाते समीरलाल जी को ज्यादा भावुक होने का अधिकार है। वीआईपी भावुक। देश से निकलते ही तड़ से जड़ से कटने की पीड़ा में डूब गये। खुद तो डूबे ही अब तक छप्पन को डुबा चुके हैं।
ब्लाग जगत के सीनियर ब्लागर होने के नाते जीतेन्द्र चौधरी चार साल पहले ही जड़ से कट लिये थे और लिखे थे:
हम उस डाल के पन्क्षी है जो चाह कर भी वापस अपने ठिकाने पर नही पहुँच सकते या दूसरी तरह से कहे तो हम पेड़ से गिरे पत्ते की तरह है जिसे हवा अपने साथ उड़ाकर दूसरे चमन मे ले गयी है,हमे भले ही अच्छे फूलो की सुगन्ध मिली हो, या नये पंक्षियो का साथ, लेकिन है तो हम पेड़ से गिरे हुए पत्ते ही, जो वापस अपने पेड़ से नही जुड़ सकता।
नीरज रोहिल्ला पूछते हैं-क्या नाईकी (Nike) का ये विज्ञापन अश्लील है । आप देखिये और बताइये। इस सवाल के जबाब को देने के लिये समीरलाल ने अश्लीलता की परभाषा बताने आ अनुरोध किया है और मुनीश ने इसे TITALLlATING बताया है। इसी क्रम में सुनील दीपक जी की पोस्ट देखियेगा। इसमें उन्होंने स्पेन्सर ट्यूनिक की फ़ोटोग्राफ़ी का परिचय देते हुये लिखा था:
नग्नता और अश्लीलता के बीच अंतर की रेखा बारीक़ होती है। कलात्मक सौंदर्य को समर्पित आंखें इस फ़र्क को समझने में ज़रा भी वक़्त नहीं लगाती। दूसरी ओर नैतिकता और मध्ययुगीन मान्यताओं पर भरोसा रखने वाले इन्हें पचा नहीं पाते।
स्पेन्सर ट्य़ूनिक के काम के बारे में बताते हुये उन्होंने लिखा था:
स्पेन्सर ट्यूनिक की ख़ासियत है कि वे दुनियाभर की मशहूर इमारतों और सड़कों पर बड़े पैमाने पर पूरी तरह नग्न हुए जनसमूह की तस्वीरें खींचते हैं। समन्दर किनारे लहरों के आकार, ऊंचे पुलों पर तनी कमान की शक़्ल में बनी कतारें, ऊंची इमारतों की दीवार तो पिरामिड-सा आकार बनाए सैकड़ों नग्न लोग इस फ़ोटोग्राफ़र स्पेन्सर की कला का अहम हिस्सा हैं।
कविगणों के बारे में बहुत कुछ सुन रखा होगा आपने। तपन शर्मा एक और बात बता रहे हैं। उनके अनुसार ब्लागजगत के कवि अहंकारी होते जा रहे हैं। वे बताते हैं :
ब्लॉगजगत पर आजकल एक अजीब सा ट्रैंड दिखाई देने लगा है। कवि एक दूसरे में गलतियाँ निकालने में रहने लगे हैं। उदाहरण देखिये एक ये और एक यहाँ। कोई कहता है कि "मेरी कविता उससे अच्छी", तो कोई कहता है कि फ़लां व्यक्ति की कविता छपने लायक ही नहीं थी। कभी कोई दोष तो कभी कोई। जिस तरह हमारे देश में हर कोई क्रिकेटरों को क्रिकेट सिखाने में लगा रहता है, ठीक उसी तरह ब्लॉग की दुनिया में हर "कवि" दूसरे को सिखाने में लगा हुआ है। क्योंकि हर कोई कहता है कि उसने खूब साहित्य पढ़ा है, इसलिये वो ही ठीक है।
इसी क्रम में लेख राजकुमार ग्वालानी का लेखलेखन का धंधा-मत करो गंदा पठनीय और विचारणीय है।
सुजाता ने ब्रांट बहनों की कहानी की पहली किस्त पोस्ट की। अगली किस्त आती ही होगी।
नारी ब्लॉग की सदस्य फिरदौस जी अब अंतर्राष्ट्रीय न्यूज़ एंड व्यूज़ वेबसाइट की संपादक का कार्यभार संभाल रहीं हैं। आप उनको बधाई दे सकते हैं।
अल्पनाजी ने अपने सुपुत्र तरुण का १३ वां जन्मदिन मनाया। तरुण को आशीष और मंगलकामनायें। इस मौके पर अल्पनाजी ने यह गीत भी लिखा:
तुम कामयाब हो न सकोगे तब तलक,
जब तक तुम्हारी आँखों में न कोई आस हो,
तो उठा लो क़दम अपने ,एक साथ तुम,
उम्मीद की लौ ,अपनी आँखों में बाल लो,
फिर देखना सफलता कैसे क़दम चूमेगी,
होगी विजय पताका तुम्हारे ही हाथ में,
होगी विजय पताका तुम्हारे ही हाथ में,
ओ नौनिहाल देश के ,है जागना तुमको,
हो हर तरफ अमन ,है दुआ मांगनी तुमको
नवगीत के बारे में जानकारी देने के लिये नवगीत की पाठशाला खुली है। यहां आप नवगीत के बारे में जानिये और अपना नवगीत 30 अप्रैल तक लिखकर भेजिये। लीजिये आप एक नवगीत पढ़ भी लीजिये:
दुनिया बदली
मगर प्यार का रंग न बदला
अब भी
खिले फूल के अन्दर
खुशबू होती है
गहरी पीड़ा में अक्सर हाँ
आँखें रोती हैं
कविता बदली, पर
लय-छंद-प्रसंग नहीं बदला
पाकिस्तान की प्रख्यात गायिका इक़बाल बानो* का कल निधन हो गया। भारत में सन 1935 में जन्मी इक़बाल बानो* विवाह के बाद 1952 में पाकिस्तान चलीं गयीं। उनका निधन संगीत जगत के लिए यह एक अपूरणीय क्षति है। इक़बाल बानो* को हमारी श्रद्धांजलि।
कबाड़खाने पर आप इक़बाल बानो* जी की अवाज में गजल के कुछ शेर सुनिये।
*गलती से इकबाल बानॊ की जगह नूरबानो टाइप हो गया था। पाबलाजी के बताने पर संशोधन किया गया। पाबलाजी को शुक्रिया।
एक लाइना
- मैं अभागा!! जड़ से टूटा!!:कोई मुझे फ़ेवीकोल दिला दे
- उम्मीद देश की :व्योम के पार से
- अहंकारी होते ब्लॉगी कवि :बढ़ते जा रहे हैं
- किसी ने जब मुझसे पूछा "प्यार क्या है" बता सकोगी? : हम बोले कईसे बतायें सिलेबस से बाहर की चीजों के बारे में
- मेरे चिट्ठे का पता इतना अजीब क्यों है? : चिट्ठाकार से मैचिंग होगी
- खुशवंत सिंह की अतृप्त यौन फ़ड़फ़ड़ाहट : पर एक और बड़बड़ाहट
- आंखों की चमक और होंठों की मुस्कान पर पसरा जादू.: मिलकर साझा सरकार बनाने पर आमादा
- चुनावों के बीच एक बात कहनी है :किनारे आ के कहो, आचार संहिता लगी है
- घर में इक सत्संग हुआ है: ऊपर वाला दंग हुआ है
- इ कौन-सी डिमोक्रेसी है सरजी : इहां तो यही डिमोक्रेसी है स्टाक में
- इस देश की हालत कभी नहीं सुधरेगी :शुभ- शुभ बोलो जी
- क्या नाईकी (Nike) का ये विज्ञापन अश्लील है : व्हाट एन आइडिया सर जी! वाली जनता की राय लेनी पड़ेगी
- शेरू महाराज को गीदड सेक्रेटरी की तलाश :इच्छुक लोग बायोडाटा के साथ आवेदन करें
- चुराए हुए ज़ेवर छोड़ कर भागा चोर :बोला कोरियर से भेज देना
- पहाड़गंज में बेहोश शेरा:2010 से पहले होश ना आने का
ऊपर का कार्टन काजल कुमार की पोस्ट से साभार!
टिप्पणी/प्रतिटिप्पणी
पिछली चर्चा में कुछ टिप्पणियां थीं उनके बारे में अपने विचार कर रहे हैं|
रचनासिंह जी ने पूछा था:कल की चर्चा मे एक जानकारी और भी दी गयी थी
" "भारत के अन्य प्रसिद्ध चिट्ठाकारों की एक सम्यक सूची आप यहाँ देख सकते हैं।"
वो लिस्ट मात्र एक
एक ब्लॉग directory हैं
या उसका कोई आधार भी हैं ???? अगर आधार हैं तो कृपा कर स्रोत बताये!
रचनाजी, मेरी जानकारी के हिसाब से यह एक सूची मात्र है। इसका ब्लाग की प्रसिद्धि से कोई लेना-देना है। जिनके नाम वहां दिये हैं उनमें से कई लोगों ने बहुत दिनों से कोई पोस्ट नहीं लिखी।डा.अनुराग ने कहा:अनूप जी . ...बावजूद शानदार अग्र्रिगेटर के ....हमारे यहाँ एक पोस्ट की कुल उम्र २४ घंटे से ज्यादा नहीं रहती...इस कारण कुछ बेहतरीन पोस्ट कई बार पढने से वंचित रह जाती है ...उदारहण के लिए पूर्व के कई ब्लोगर के शायद ऐसे लेख होगे जो दिलचस्पी के पायदान पे आज भी अपनी उपस्थिति ठोक बजा रहे होंगे पर उन तक पहुंचे कैसे ?
तो फिर क्या किया जाये कुछ पोस्ट के संग्राह के लिए ?यक्ष प्रश्न है ?
डा.साहब पोस्ट संग्रह के जुगाड़ मौजूद हैं। कल ही तरुण ने एक पोस्ट लिखी है-अपनी मनपसंद पोस्ट और आलेख संजों के रखें डेलिशियस की मदद से । अपने तकनीकी वीरों की मदद से शायद हम लोग जल्द ही इसकी सहायता से चिट्ठाचर्चा में भी मनपसंद पोस्टों को संजो सकें।डा.अमरकुमार जी की तीसरी टिप्पणी है: गूगल गोंसाँई की दया से यहाँ टिप्पणियों में बढ़ोत्तरी होती रहे ..
आज पहली बार " क़ाफ़ी का कप " देखने गया ।
पाया कि उड़ी बाबा, अनूप जी जनता को मेरे लिये पहले से ही चेता चुके हैं
" चिट्ठाचर्चा के मामले में उनके रहते यह खतरा कम रह जाता है कि इसका नोटिस नहीं लिया जा रहा । वे हमेशा चर्चाकारों की क्लास लिया करते हैं ।"
क्या मैं ऎसा डैंज़र थिंग हूँ ? लोकतंत्र में अपोज़िशन का होना ज़रूरी होता है, शायद इसीलिये वह आगे यह भी फ़रमाते हुये पाये जाते हैं..
" डा.अमर कुमार की उपस्थिति ब्लाग जगत के लिये जरूरी उपस्थिति है ! "
अब मुझे रोने की मोहलत तो देयो,
धन्यवाद अनूप भाई, आपसे पार पाना मुश्किल है !
डा. साहब पहली बात तो यह कि हमसे पार पाने की बात काहे करते हैं। हम लोग अपने से पार पा ले वही बहुत। हम आपको रोने का कोई मौका नहीं देंगे। हम तो कहते हैं आप सदा खिलखिलाते रहें और हम ऊ वाला शेर दोहराते रहें (फ़िट बैठने न बैठने की चिंता से ऊपर उठकर)-
अपनी हंसी के साथ मेरा गम भी निबाह दो,
इतना हंसो कि आंख से आंसू छलक पड़ें।
बकिया काफ़ी के कप में हम यह भी कहे थे-रात को दो-तीन बजे के बीच पोस्ट लिखने वाले डा.अमर कुमार गजब के टिप्पणीकार हैं। कभी मुंह देखी टिप्पणी नहीं करते। सच को सच कहने का हमेशा प्रयास करते हैं । अब यह अलग बात है कि अक्सर यह पता लगाना मुश्किल हो जाता कि डा.अमर कुमार कह क्या रहे हैं। ऐसे में सच अबूझा रह जाता है।
आपकी टिप्पणियां में अक्सर सच के इतने पहलू होते हैं कि एक बार में यह पता लगाना कठिन हो जाता है कि सच क्या है!
अब आप जो लिखे उस दिनकाशी साधे नही सध रही, चलो कबीरा मगहर साधें
तो हम सोचते रहे कि क्या यह सच है कि मिसिरजी
सौदा सुलुफ कर लिया हो तो, चलकर अपनी गठरी बाँधें ।
जैसा " लिखने वाले श्री मिश्रा जी " अब हमारे बीच नहीं रहे !
नहीं रहे। बाद में आपने बताया कि केवल इस पोस्ट पर ध्यानाकर्षण की उपादेयता जाँचने के लिये ही किया गया था ।और.. यह देख भी लिया गया ! इसके लिये मैं भारतेन्दु जी को पहले ही ई-मेल कर चुका हूँ ! अब आप पोस्ट की उपादेयता जांचने के लिये मिसिर को मेल करके निपटा दिये! ई त कहिये कि मनोज मिश्र जी की नजर इस टिप्पणी पर नहीं पड़ी काहे से कि वे आजकल जौनपुर का इतिहास ए पार जौनपुर -ओपार जौनपुर लिखने में व्यस्त हैं नहीं तो वे आपको ब्लाग धारा तीन सौ प्लस समथिंग के अंतर्गत दौड़ा लिये होते।
बकिया आप विघ्नसंतोषी अपने लिये होंगे। हमारे लिये तो आप विघ्नविनाशक ,मंगलमय हैं और हमारी कामना है ऐसे ही बनें रहें।- यह विवरण मुझे कविताजी ने मेल से भेजा था। कविताजी ने इस पोस्ट पर यह टिप्पणी की थी:
भारत के झंडे को ब्ळोग के चरणों में अवस्थित देख कर दु:ख हुआ। इस विजेट को ब्लॊग के ऊपरी कोने में भी तो लगाया जा सकता है। या फिर हटा ही दें। यह सम्वैधानिक रूप से ध्वज - अपराध है।
इस पर विनय प्रजापतिजी ने यह कविताजी को जबाब भेजा था
respected mam,
Aap ke jnaan ke baare men maudgil saahab se kafii sun rakhaa hai. aapse yah ghalati kaise hui, mujhe baat samajh nahiin aayi. aap agar computer desktop ko deewar ki tarah dekhti hain to aapki baat sahi ho sakti hai lekin yadi aap ise is tarah samajhe ki layers ke upar layers hain jise computer bhashha mein z-index kahatein hai to bharat kaa flag sabase upar hai... aur ismein koI apmaan ke baat nahi. agar main apmaan ki baat karne lagoon to ek baat to main saabit hi kar doonga ki aap hazaron baar aise apmaan kar chuki hain aur poora desh aisa apamaan saal mein do baar to karta hi hai... kyon lakho flags 15 aug aur 26 jan ke baad naaliyon mein pare rahte hain aur aap unhein uthaakar kabhee use maan nahi detii hain.
thanks for writing comments, but I am going to delete it.
vinay prajapati
अब तकनीक की जानकारी मुझे नहीं है। तकनीक के जानकार बता सकते हैं इसे। लेकिन अगर पन्द्रह अगस्त और छब्बीस झण्डे जमीन नालियों में पड़े रहने के तर्क के आधार पर अपने को सही साबित करने का प्रयास तो अच्छी बात नहीं है।
और अंत में
नई पीढ़ी के पत्रकारों के मामलों में यह जोखिम नहीं है । वे लेखक या विचारक के रूप में नहीं , शुरु से ही पत्रकार के रूप में प्रशिक्षित हो रहे हैं । यहाँ विचारों को दबाने के लिए अधिक भत्ता देना नहीं पड़ता है - सिर्फ इस काम को आकर्षक बनाने के लिए खूबसूरत वेतन - भत्ते का प्रबन्ध रहता है । यह वेतन - भत्ता विशिष्टजनों के लायक है । इस वेतन-भत्ते के लायक होने के लिए प्रतिबद्धताविहीन बुद्धिजीवी होने का प्रशिक्षण उन्हें मिलता रहता है ।
बहुत बढिया जी. आज की चर्चा भी बडी विविध रंगों वाली है. आज टिपणी प्रति टिपणि घणी पसंद आई.
जवाब देंहटाएंरामराम.
खुशवंत सिंह की अतृप्त यौन फ़ड़फ़ड़ाहट : पर एक और बड़बड़ाहट
जवाब देंहटाएंये टिप्पणी अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंभाई हमारी बिरादरी के कुछ लोग और भी हैं,
जवाब देंहटाएं" जो कहीं किसी रोज बिलबिला पड़े थे " " आप ने ब्लाग पर मेरी प्रोफाइल देखी ही होगी । ब्लाग मेरा असली माध्यम नहीं। मनोरंजन का एक पड़ाव है । लिखे पर प्रतिक्रिया कौन नहीं चाहेगा । मगर प्रतिक्रिया वही, जिसे पढ़ कर लगे कि किसी सहृदय-सचेत और साहित्य-विवेक सम्पन्न पाठक ने टप्पणी की है । टिप्पणी-लेखक ने जो कहा है वह हमारे काम का हो सकता है। विचारणीय । मेरे लिखे पर आप की यह दूसरी प्रतिक्रिया है । पहले जैसी ही-‘‘वाह! बहुत अच्छा !!’’वाले अंदाज में ! क्या मतलब है इसका ? क्या कहना चाहती हैं आप ? "
रहा प्रश्न अपने तिरंगे का, तो कविता जी का ई-मेल मार्फ़त आपके इनबाक्स मुझ तक भी आया..
मैंने उनके टिप्पणी बक्से में सरे आम घुस कर उन्हें साफ़ साफ़
कहा.. भाई मेरे मुझे दस ज़ूते मार ले.. पर इसका कोड ठीक कर ले ।
मुट्ठी में तिरंगे का एक नुचा हुआ कोना पकड़े मैंनें अपने ज़वान की अकड़ी हुई मृत देह देखी है.. पर अपने समझते वह झँडा पकड़े पकड़े ही शहीद हुआ था !
पर, मैं इतना लाचार भी नहीं, कि यह हठधर्मिता स्वीकार कर लूँ,
शाम तक देखता हूँ, यह लिंक श्री निरमल जी को भी भेजा है..
आशा है, बात न बिगडे़गी !
टेक-प्रिव्यू लिखते हैं, और bottom को show top करने में असमर्थ हैं.. हुँह !
चर्चाकार के रूप में आप ने योग्य माना और सराहा..हमेशा कोशिश रहेगी कि इस विश्वास को बनाए रखूँ..
जवाब देंहटाएंगायिका नूरबानो को श्रद्धाजंलि ... उनकी याद में कबाडखाने मे उन्ही की गाई हुई गज़ल सुनी...
डा.अनुराग जी का कहना सही है कि पोस्ट का जीवन कुछ घंटो का है, बावजूत अग्ग्रिगेटर के ... हिंदी ब्लागरों की बढ़ती संख्या के हिसाब से यह समय और भी घटेगा, जैसा कि अंग्रेजी ब्लॉग्गिंग की दुनिया में है. ऐसे में चिट्ठाचर्चा का महत्व और भी बढ़ जाता है. मीनाक्षी जी के चिट्ठाचर्चा में शामिल होने की खबर अच्छी है..धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंमीनाक्षी जी को मेरी और नुक्कड़ समूह की ओर से भी बधाई।
जवाब देंहटाएंनूरबानो को हमारी श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कवरेज किया. काफी मेहनत की जा रही है, इस हेतु साधुवाद!!
बहुत बढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंकुछ वाक्य पढ़कर ही पता चल जाता है कि चर्चा फुरसतिया जी ने की है. आखिर, "कैमरा रिक्शे पर टूट पड़ा" केवल और केवल फुरसतिया जी ही लिख सकते हैं. एक लाइना तो औरउ गजब.
तरुण को जन्मदिन की हार्दिक शुभकानाएं.
तिरंगे वाली बात में मैं अमर जी का समर्थन करती हूँ.मीनाक्षी जी का स्वागत है चिठ्ठाचर्चा में...तरुण को जन्मदिन की हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंविस्तृत और बढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंतरुण को मिले आप के शुभाशीष और शुभकामनाओं हेतु बहुत बहुत धन्यवाद.
अंतरजाल के विघ्न के कारण कुछ दिन नहीं टिपिया सका। किसी ने नोटिस भी नहीं लिया होगा:) धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं"हम अपनी मोटरसाइकिल में पेट्रोल भराये इंतजार कर रहे हैं न जाने किधर से पुकार आ जाये। " एक वो ज़माना था कि प्रेमिका गाती थी-
मेरा दिल ये पुकारे आ जा.... तो प्रेमी बीन बजाता चला आता था और आज.....मोटर साइकिल ..पेट्रोल....कितना बदल गया है प्रेम का पैटर्न:):)
आपको बढ़िया चर्चा की और तरुण को जन्मदिन की बधाई :-)
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह चिठ्ठा चर्चा बढिया लगी - नूरबानो जी का सँगीत अमर रहेगा - उन्हेँ श्रध्धाँजलि
जवाब देंहटाएंतथा मीनाक्षी जी
अब कार्यभार सम्भालेँगीँ उसकी खुशी है -
- लावण्या
http://rachnadesign.googlepages.com/flag2
जवाब देंहटाएंI have given the code for our Flag on the above page
Please use it
गर्मी के मौसम में बड़ा शिलिर शिलिर कर रहा है हिन्दी ब्लॉग जगत।
जवाब देंहटाएंThank you Rachna,
जवाब देंहटाएंI have asuggestion to make, you could have used a smaller size image, instead. Readers can have it directly from my Image hosting site " http://img3.imageshack.us/img3/3702/indiacab8.gif " !
This seems to be a deliberate irritaing behaviour towards CharchaKars, challenging their right of might !
It is the comment, which I made 10 minutes ago
at "http://techprevue.blogspot.com/2009/04/blogging-and-password-hacking-part-i.html?disqus_reply=8574443#disqus-claim " for records though it is not a forum !BE IT PUBLIC !
BE IT KNOWN TO ALL.. "
People has gone mad over this issue, at LUCKNOW HIGHCOURT, special bench !
Mr. N. Tewari , Mr. Om, Mr. Shrivastav has asked permission to file a public litigation against, the owner and distributor of this NON-SENSE patriot !!
Who am I , to plead innocence and benefit of ignorance from Bloggers part ?
I myself has melt away the comfortable momments of my life for last 30 yrs, to fight against evils which are licking our honour. So, how can I come forward to defend anybody after my last night's humble submission.
I owe something to society and this unfortunate nation,
I shall take every care to re-pay it, before my death.. which incidentally occurs once only in anyone's life.
Love and Wishes with a sense of pity.
( Mr. Prajapati is free to verify the contact nos. of aforesaid persons, from me. )
I.P. 192.168.1.100
Physical address : 00-1B-FC-C4-DC-92
हमेशा की तरह एक सशक्त चर्चा देव...
जवाब देंहटाएंकुछ बातों से लगा कि कई बातें महज विवाद के लिये होती हैं...जैसे ये तिरंगा वाली बात ही
तिरंगे के नीचे खिसक आने की समस्या का आम कारण, कम रेज़ोल्यूशन वाला कम्प्यूटर मॉनीटर या/ और इंटरनेट एक्सप्लोरर का वर्सन 6 है।
जवाब देंहटाएंइलाज:> रेज़ोल्यूशन बढ़ा लें, 1024 कर लें/ इंटरनेट एक्सप्लोर 7 या 8beta स्थापित कर लें
कैसे जानें: एक्सप्लोरर में Help के अंतर्गत About क्लिक करें, वर्सन एक नज़र में दिखेगा। मॉनीटर में, खाली स्थान पर राईट क्लिक करें Properties के अंतर्गत Setting क्लिक करने पर Less More के पैमाने में देखें 800-600 होगा
और एक बात!
जवाब देंहटाएंअनूप जी ने तथा उनके बाद आने वाले अब तक के सभी टिप्पणीकर्तायों ने किसी नूरबानों के इंतकाल पर श्रद्धांजलि दी हई। जबकि बताई गई तारीख पर, निधन हुया है इकबाल बानो का!
मैं गलत हूँ? इसी पोस्ट में दी गयी कबाड़खाना की लिंक देख लें
पाबलाजी, टाइपिंग की गलती की तरफ़ ध्यान दिलाने के लिये शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंदेश के प्रति और उस देश के झंडे के प्रति सम्मान दिल में होना चाहिये, ब्लोग में ऊपर नीचे कहीं भी कितने झंडे लगा लो, अगर उसके लिये दिल में प्यार नही तो वो किसी तस्वीर के जैसा ही है।
जवाब देंहटाएंझंडे को सबसे ऊपर दिखाना उतना ही आसान है जितना Follow This Blog का लिंक ब्लोग में सबसे ऊपर दिखाना।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@ P.S.Pabla Jee
जवाब देंहटाएंवैसे सिरे से असमत होने की अनुमति चाहूँगा, पाबाला प्रा जी !
एह वासते असीं तुहाड्ड़े नू मेल कराँगा..
इत्थों लोड़ ई कुझ होर सी !
इक़बाल बानो दा मसला मैंनूँ वी पता सी,
तिरंगे सामने पराई मुलुक दे इह ख़बराँ की माने रखदें हण ?
चर्चा पढने के बाद ही आश्वस्त हो पाता हूं कि कुछ छूटा नही है।
जवाब देंहटाएंबरास्ते ई-मेल इनबाक्स vinayprajapati@msn.com
जवाब देंहटाएंto me
show details 12:29 PM (4 hours ago)
Reply
from vinayprajapati@msn.com
to c4blog@gmail.com
date Thu, Apr 23, 2009 at 12:29 PM
subject India Flag, It's postion and Your Misconception
mailed-by msn.com
hide details 12:29 PM (4 hours ago)
Reply
प्रिय अमर कुमार जी,
झण्डे की बात को पीछे छोड़ते हुए पहले तो मैं आपके सज्ञान में यह बात लाना आवश्यक समझता हूँ कि मुझे किसी की सहानुभूति या सहायता की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि मैं स्वयं इतना सक्षम हूँ कि अपनी सहायता स्वयं कर सकता हूँ। अब झण्डे की बात का पर उपजे प्रश्न का उत्तर यह है कि अगर आप को HTML code का ज्ञान है और आपको English भी आती है तो यह बात बहुत अच्छी है। लेकिन मैं इस बात पर ज़ोर देना चाहूँगा की भाषा चाहे जो भी हो उसका पूरा ज्ञान आवश्यक है। अगर आपने कविता जी को मेरा लिखा मेल पढ़ ही लिया है तो आपने यह भी पढ़ा होगा कि मैंने z-index position का भी ज़िक्र किया है। आपको कितनी डेस्कटाप स्तिथियों का पता है मुझे नहीं मालूम लेकिन आपको z-index पर अपनी जानकारी अवश्य बढ़ानी चाहिए। जहाँ तक देश प्रेम की बात है तो शायद आपको अपने पे गुमाँ है कि आपसे ज़्यादा देशभक्ति का जज़्बा किसी में भी नहीं है, शायद यह आपका overconfidence है।
अगर आप z-index पर अपना ज्ञान बढ़ा लेते हैं और फिर भी आपको कोई भी शंका रह जाती है तो मुझे पत्र अवश्य लिखें और हाँ मुझे आपकी तरह अपने ज्ञान का प्रचार करने की कोई अवश्यकता नहीं है कि मैं क्या हूँ और मुझे किस विषय में कितना ज्ञान है। यदि आपको मेरा कोई तकनीकि लेख पसंद आता है और आप टिप्पणी करते हैं तो अच्छी बात है लेकिन यदि आप को कुछ भी उपयोगी नहीं लगता है तो मुझे कोई समस्या नहीं है लेकिन बेवजह की बातों पर उलझना और अपना और मेरा समय नष्ट करना मुझे कतई पसंद नहीं है। आगे यदि आप कोई उचित प्रश्न करेंगे तभी उत्तर करूँगा अन्यथा नहीं। मुझे अपने ब्लॉग पर टिप्पणियों की कोई लालसा नहीं है कि मैं हर किसी को ख़ुश करता फिरूँ।
अब क्या मिसाल दूँ, मैं तुम्हारे ज़वाब की.. .. ..
बस यही कि
आदरणीय प्रजापति जी,
डाबर का च्यनप्राश बड़ा मुफ़ीद है,
इससे 51 साल के ज़वान को 30 साल का बूढ़ा नहीं दिखता
क्योंकि पाठे और साठे में कोई तुक ही नहीं बैठता
पर यदि बैठाने का प्रयास करें,
तो, असंभव भी नहीं है
काश, मैं नीचे कोने के लिये "display:scroll;position:fixed;bottom:5px; right:5px;" से हट कर display:scroll;position:fixed;top:5px;right:5px;" भी सोच सकता.. और जीवन में कुछ और भी अधिक मौलिक कर पाता .. काश !!
भाग्य पर किसका वश है ?
चिटठा चर्चा पर टिप्पणिया हावी होने लगी है.. अब तो टिप्पणियों में ही आनद आ जाता है.. मौलिक कोड देने वाले ब्लोग्स बहुत कम है.. लेकिन क्या करे जब सहजता से कोई कोड उपलब्ध हो जाता है तो इतनी मेहनत कोई क्यों करे.. पर किया कुछ भी तो नहीं जा सकता..
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए मुआफी .....तरुण जी को पहले ही शुक्रिया का एक बोरा भेज चूका हु ...पोस्टो के संग्रह के जुगाड़ के लिए ....अब जन्मदिन की बधाई का वर्चुअल केक भेज रहा हूँ.......असल की उनसे उम्मीद है....
जवाब देंहटाएं