बुधवार, अप्रैल 29, 2009

ब्लॉगजगत की हवेली के अनगिनत दरवाज़े

पहली बार अनायास ही हमारे द्वारा की गई चिट्ठाचर्चा आप सबके सामने आ गई या यूँ कहिए कि रविरतलामीजी का कहा टाल न सके और अनूप शुक्ल जी ने झट से मंच पर धकेल दिया... लेकिन मंच पर आकर कुछ पल दिल धड़का फिर आप सब के प्रोत्साहन ने सामान्य कर दिया

कभी कभी हमें ब्लॉग जगत हवेली लगती है जिसके हज़ारों चोर दरवाज़े भी हैं...उन्हें खोल कर अन्दर जा कर उनका रहस्य जानने के लालच को रोक नहीं पाते ... यह ऐसी हवेली है जिसमें हर रोज़ कुछ न कुछ नया निर्मित होता ही रहता है...नए नए ब्लॉग बनते रहते है...

पुराने का मोह बना रहता है तो नए का आकर्षण भी कम नहीं होता... वक्त जितना साथ दे उतना ही आनन्द ले लिया जाए. यह सोचकर जब भी मौका मिलता है किसी भी दरवाज़े को खोल कर अन्दर जा पहुँचते हैं....

हवेली में दाखिल होते ही पहला दरवाज़ा जो खुला वहाँ देखा कि हिमांशुजी टिप्पणीकार की विस्तार से विवेचना कर रहे हैं... हम चुपचाप बिना कुछ कहे ब्लॉगजगत की हवेली के अन्य कमरों में चक्कर लगाने निकल गए..... जी तो बहुत चाहता है कि कमरे में पसरी धूल मिट्टी को हटा दें, लेकिन हाथ से कुछ नाज़ुक सा छूट कर टूट न जाए , बस इसी डर से कुछ भी छूने की हिम्मत नहीं कर पाते....

अगले कमरे का दरवाज़ा खोला तो घुप अन्धेरा पाया.... कैसे कोई अन्धेरे में किसी पर वार कर सकता है बिना डरे..... किसी को भी गहरी चोट लग सकती है......ऐसे में चोट तो लगती है पर उसकी दवा भी कहीं न कहीं से मिल ही जाती है... कटु शब्दों में टिप्पणी देने वाले भी जानते हैं कि वे किसी को दुखी कर रहे हैं इसीलिए तो वे बेनाम रहते हैं...
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कटु वचन बहुत बुरे होते हैं और उनकी वजह से पूरा बदन जलने लगता है। जबकि मधुर वचन शीतल जल की तरह हैं और जब बोले जाते हैं तो ऐसा लगता है कि अमृत बरस रहा है।
कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार।
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।।

मन बोझिल होने लगा तो ‘ब्लॉगर पहचान पहेली’ सुलझाने के लिए अगले दरवाज़े को खोल दिया...अचानक काली बिल्ली म्याऊँ म्याऊँ करती दिखाई दी..... ध्यान से देखा तो हमारा माउस उसके माथे पर था... फिर तो माउस भाग भाग कर कभी पूँछ को छेड़े तो कभी उसके गले में पड़े पट्टे पर नाम के लॉकेट को हिलाए....बिल्ली की गुर्राहट सुनते ही वहाँ से खिसक लिए...
वहाँ से पहुँचे बाल उद्यान जहाँ योग मंजरी के साभार बहुत अच्छी कहानी को पढ़ने को मिली...

किसान ने ढिबरी को जलाकर पूछा -"बताईये इस ढिबरी में प्रमुख वस्तु क्या है?"
"प्रकाश" राजा का उत्तर था
"आख़िर यह प्रकाश आता कहाँ से है?", किसान ने फिर पूछा
"बत्ती के जलने से"
"क्या बत्ती अपने आप जलती है?"
" नही, उसका कारण तेल है"
" तेल कहाँ है?"
" ढिबरी के अन्दर"अबकी बार किसान मुस्कुराया
बोला- "राजा जी, आपके सवाल का जवाब मिल गया........!!!!!
क्या जवाब हो सकता है !!!!

ज्ञान जी कहते हैं कि भारतीय बाल कहानियां और भारतीय बाल कवितायें यहां का वैल्यू सिस्टम देते हैं बच्चों को। वे मछली का शिकार नहीं सिखाते। बल्कि बताते हैं – मछली जल की रानी हैऔर उधर उन्मुक्त जी मछली पकड़ने के सुन्दर काँटे की वीडियो दिखा रहे हैं... मछली जल की रानी है और उसे पकड़ने के लिए सुन्दर काँटा भी है.....

यह पढ़ कर नानी का कहा याद आ गया --- "जीव जीव का रक्षक है , जीव जीव का भक्षक है"...
शिवजी कहते हैं कि परीक्षा देना और लेना, दोनों बहुत महत्वपूर्ण काम है. परीक्षा के लेन-देन का यह कार्यक्रम तब से चला आ रहा है, जब देवता लोग मनुष्य को दूर बैठे देख पाते थे. ऊपर बैठे देवता मनुष्यों को देखते रहते और जब इच्छा होती परीक्षा ले डालते।
उधर द्विवेदी जी कहते हैं... देव और दानव किताबों में खूब मिलते हैं। लेकिन पृथ्वी पर उन के अस्तित्व का आज तक कोई प्रमाण नहीं है। निश्चित रूप से जिन लोगों का देव और दानवों के रूप में वर्णन किया गया है, वे भी इन्सान ही थे।

अगर यह सच है तो अपने वजूद को बचाने के लिए इंसान को कितनी मुश्किल होती होगी...क्योंकि कभी अन्दर के देव को बाहर लाने की कोशिश और कभी दानव से मुकाबला॥
मानव प्रकृति यही है...

अनूपजी द्वारा की गई चर्चा में आई इस टिप्पणी ने ध्यान खींचा ......... Arvind Mishra
कुछ और शंकाएँ दूर कर दें तो उपकार होगा -शिव भाई तो मौन ले लिए अब पूरी उम्मीद आपसे ही है ।क्या नर्गिस नाम का फूल अनाकर्षक होता है ? क्या आपने नर्गिस का फूल देखा है ? क्या हजारों साल में ऐसा भी होता है कभी कि यह सुन्दर /आकर्षक हो उठता है ? कोई लाख अपनी बेनूरी पर रोता रहे क्यों कोई दीदावर हो पैदा ? दीदावर तो किसी खास चाह को लेकर ही प्रगट होगा ? क्यों वह हजारो साल से किसी निस्तेज सी पडी चीज को देखने के लिए एक जन्म बर्बाद करेगा ? ये सारे प्रश्न इमानदारी से पूंछे गए हैं ! कोई मेरी मंशा /शेर को न समझ पाने की मूर्खता पर जरा भी शक न करे इस शेर ने अपने को ठीक से न समझा पाने के जद्दोजहद में मेरे जीवन के तीन दशक बर्बाद किये हैं ! अब आप मिल गए हैं तो समझ के ही छोडूंगा ! नरगिस की खूबसूरती और उसकी गज़ब की खुशबू से एक अजब सा नशा छा जाता है। मौसी के घर कुल्लू जब भी जाते तो नरगिस के फूलों का एक गुच्छा तो दिल्ली ज़रूर लेकर आते. हज़ारो साल से नरगिस अपनी बेनूरी पर क्यों रो रही है...इस शेर को सुनकर हमने भी यही सवाल किसी से पूछा था ॥ तो उन्होंने यह शेर सुना दिया.....

नरगिस तुझमें तीन गुण, रूप, रंग और बास
अवगुण तेरा एक है, भ्रमर न बैठे पास !!

हवेली के कुछ कमरों की नई सजावट देखी

चाँद पुखराज में 'वेव लैंथ'
निर्मल आनन्द के इस्लाम पर खरी खरी
ह्रदय गवाक्ष के परिन्दे घोंसला बना न सके
संवाद शीर्षकहीन (जैसे हो खाली कमरा )
यायावरी में माँ के ह्रदय का स्नेह वरण

सात समुन्दर पार बेचैन माँ 'जन्मदिन मुबारक हो मम्मी' सुनकर धन्य हो गई....माँ की ममतामयी साँसों की खुशबू यहाँ तक महसूस हुई.... माँ की ममता का यही रूप है....हमें भी एक बेटे से मिलने की खुशी और दूसरे से विछोह की तड़प हो रही है...

सफ़र की तैयारी करते करते आज की चर्चा हो पाई.... शाम तक हम अपना देश छोड़ दूर खाड़ी देश पहुँच चुके होगें....!

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27 टिप्‍पणियां:

  1. सुँदर चर्चा ..रँग महल के दस दरवाजे से खाँका तो नज़ारा खूबसुरत पाया आपकी बदौलत मीनाक्षी जी :)

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  2. जैसे तरह तरह के व्यंजन खाने का आनन्द वैसे ही अलग अलग लोगों की चिट्ठा चर्चा पढ़ने का मजा - एकदम अलग।

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  3. ये नर्गिस का फूल क्या हुआ जी का जंजाल हुआ जाता है -अब मीनाक्षी जी ने एक और तुरुप चला दिया -भाई बास होगी तो भला भौरा पास क्यों नहीं जायेगा ? आखिर इस कवि सत्य के मायने क्या हैं ? कहीं कुछ छूट सा तो नहीं रहा ? बहरहाल मैं अभिषेक ओझा जी का बहुत अनुगृहीत हूँ कि उन्होंने इसी मुद्दे पर कल मेरे प्रश्नों का उत्तर सिलसिलेवार दिया है -आप भी मुलाहिजा फरमाये ! और इत्तिफाक और गैर इत्तिफाक दोनों सूरतों पर अपने ख़याल जरूर टिपीयाएं -ताकि यह नरगिसी शोध निपट ही जाय अ़ब !


    1. क्या नर्गिस नाम का फूल अनाकर्षक होता है ?
    नहीं.

    2. क्या आपने नर्गिस का फूल देखा है ?
    हाँ (इन्टरनेट पर. आप भी देखिये: http://www.flowersofindia.net/catalog/slides/Nargis.html)

    3. क्या हजारों साल में ऐसा भी होता है कभी कि यह सुन्दर /आकर्षक हो उठता है ?

    ऐसा कुछ नहीं होता. वैसे अगर ऐसा हो जाय तो मैं अपना स्टेटमेंट वापस लेने को तैयार हूँ :-)

    4. कोई लाख अपनी बेनूरी पर रोता रहे क्यों कोई दीदावर हो पैदा ? दीदावर तो किसी खास चाह को लेकर ही प्रगट होगा ? क्यों वह हजारो साल से किसी निस्तेज सी पडी चीज को देखने के लिए एक जन्म बर्बाद करेगा ?

    चौथे सवाल के लिए के लिए शेर का मतलब:

    'हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है,
    बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा'

    शब्दार्थ: नर्गिस - आँख की तरह दिखने वाला एक फूल. बेनूरी - दृष्टिहीनता/ज्योतिविहीनता. चमन - बाग़. दीदावर - नेत्र वाला/ पारखी/गहरी नजर रखने वाला.

    भावार्थ: नेत्र की तरह दिखने वाला नर्गिस पुष्प हजारों सालों तक अपनी बदहाली (दृष्टिहीनता/बेनूरी) पर रोता है क्योंकि नेत्र सदृश होने के बावजूद वह देख नहीं सकता. असल (वास्तविक) आँखों वाला पारखी (दीदावर) तो बाग़ (चमन) में विरले ही (बड़ी मुश्किल से) पैदा होता है.

    व्याख्या: यह शेर महान शायर शायर इकबाल की रचना है. कथित रूप से यह शेर उन्होंने आजादी के पहले के भारतीय मुस्लिम समाज की बदहाली का जिक्र करते हुए प्रेरणा देने के लिए लिखा था. शायर का तात्पर्य है कि नेत्र की आकृति का होने के बावजूद नर्गिस हजारों सालों से दुखी है. कैसी विडम्बना है कि नेत्र के आकार का होने के बावजूद नर्गिस (पुष्प) कुछ देख नहीं सकता. वह वैसे ही व्यथित है जैसे एक खुबसूरत आँखों वाला अँधा होगा. व्यथित मन से वो सोचता है कि मेरे जैसे फूलों से तो बाग़ भरा पड़ा है. लेकिन बाग़ में ऐसा फूल तो बड़ी मुश्किल से (सदियों में) बिरले ही होता है जो देख सके. जो बस रंग-रूप में ही आँखों की तरह नहीं हो पर वास्तव में भी जो असली पारखी हो और सब कुछ देख सके. सच भी है सदियों में एक आध ही तो पारखी पैदा होते हैं, यहाँ व्यापक अर्थ में परखी का मतलब युग प्रवर्तक या दार्शनिक जैसे लोग हैं तथा चमन का अर्थ समाज और देश.
    यहाँ नूर से नेत्र का मतलब लिया गया है. पर साधारण तौर पर नूर का मतलब खुबसूरत से भी लिया जाता है और इस प्रकार बेनूरी का अर्थ हुआ कुरूप. इस प्रकार ये भी मतलब मिकाला जा सकता है: सालों से नर्गिस (महज एक औरत का नाम) अपनी बदसूरती पर रोती रही है (क्योंकि बदसूरत औरत को पूछता ही कौन हैं !) ऐसे पारखी तो विरले ही होते हैं जो औरत के रूप पर नहीं गुणों पर जाते हैं. संभवतः यह उस समय औरतों के हालत सुधार के लिए लिखा गया हो !

    और अपने शिव भैया ने तो पप्पी-झप्पी वाले समाजवादी पार्टी के महासचिव की दीदावरी देखी तो उन्हें ये शेर याद आ गया. उनकी माताश्री का नाम नर्गिस था. और शायद इसीलिए उन्होंने नर्गिस को 'नर्गिस' लिखा था अर्थात नर्गिस को नर्गिस नाम की तरह ही लिया जाय उसका शाब्दिक अर्थ नहीं.

    अब बताइये छात्र को इस उत्तर पुस्तिका पर कितने अंक मिले?

    :-)

    अभिषेक

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  4. सुन्दर चर्चा। जन्मदिन हमारी तरफ़ से भी मुबारक हो।

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  5. चर्चा ने सारे दरवाजे खुले रखे हैं।
    ब्लॉगर अपना दर खुद तलाशें।

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  6. कई ऐसी पोस्ट पढने को मिलीं जो पहले नहीं देख पाया था. धन्यवाद.

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  7. बहुत खूबसूरती से आपने चर्चा की है

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  8. सुन्दर!! अब तक का सबसे अलग अंदाज.विविधता जरुरी भी है.

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  9. चर्चा अति सुन्दर रही. हवेली में घूम कर हमें भी मज़ा आया..

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  10. ham haveli ke sare kamare ghoom aaye jo jo aap ne bataye the. kahi kahi to nishaan bhi chhod aaye aur kahi se chup chap chale aye bina kisi ko khabar diye

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  11. आपका लिखने का यह अंदाज़ खूब भाता है .अच्छी लगी चर्चा

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  12. जन्मदिन मुबारक हो..चर्चा अति सुन्दर .

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  13. एकदम से रचनात्मक चिट्ठाचर्चा का दर्शन हो गया । लगता ही नहीं कोई पोस्ट/लिंक जोड़ा गया है- सब कुछ स्वाभाविक ।

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  14. सुंदर चर्चा और इसी बहाने मिश्र जी की अद्‍भुत व्याख्या ने मन मोह लिया...अभी कुछ दिनों पहले ही यहाँ अपने गश के दौरान नर्गिस देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और अचानक से इकबाल साब का ये प्रसिद्ध शेर याद आ गया था और साथ ही ब्लौग के लिये एक पोस्ट का आइडिया भी , लेकिन शिव कुमार जी की पहल पर मन-मसोस कर बैठ गये...
    फ़ुरसतिया देव और और अरविंद जी को धन्यवाद- एक शेर पर अलग-अलग नजरिया देने के लिये...

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  15. जन्म दिन मुबारक ! और आपकी यात्रा शुभ हो.

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  16. आपने तो आते ही समां बांध दिया!! बहुत खूब!!

    जिस नये अंदाज से आप ने चर्चा की है वह शुरू से आखिर तक पाठकों को बांधे रहती है

    सस्नेह -- शास्त्री

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  17. जन्मदिन की शुभकामनाएँ। इस शुभ दिन आप ने ब्लागर महल के सारे चोर दरवाज़े खोल कर सब का राज़ फाश कर दिया।
    द्विवेदी जी कहते हैं-"उधर द्विवेदी जी कहते हैं... देव और दानव किताबों में खूब मिलते हैं। लेकिन पृथ्वी पर उन के अस्तित्व का आज तक कोई प्रमाण नहीं है। " यदि वे कचहरी में अपने इर्द-गिर्द देख लेते तो प्रमाण मिल ही जाता :)

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  18. आमद सुखद है यहाँ पर....
    जन्मदिन की शुभ कामनाये अभी नहीं देंगे....शाम तक कई बार पढेगे तब देंगे .जाने कौन बुरा मान जाये ?

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  19. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  20. यह चर्चा अलग अन्दाज में और मनभावन लगी।

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  21. मेरी समझ से इकबाल साहब ने यह शेर खुद अपनी शान में कहा है।
    -जाकिर अली रजनीश
    ----------
    सम्मोहन के यंत्र
    5000 सालों में दुनिया का अंत

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  22. एक अलग ही अंदाज की बहुत ही खूबसूरत चर्चा. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  23. सुंदर रही चर्चा और जन्मदिन की शुभकामना भी .

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  24. इस चर्चा का अंदाज बहुत पसंद आया.. जन्मदिन जब भी हो.. मुबारक हो.. आभार

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